मेखलाकार पर्वत अपार में किस पर्वतमाला का वर्णन हुआ है - mekhalaakaar parvat apaar mein kis parvatamaala ka varnan hua hai

शब्दों की चित्रमयी भाषा से चाक्षुक बिंब या दृश्य बिंब साकार हो उठता है। इससे सारा दृश्य हमारी आँखों के सामन घूम जाता है।

(ग) कविता की संगीतात्मकता पर

  1. अवलोक रहा है बार-बार
    नीचे जल में निज महाकार,
  2. मोती की लड़ियों-से सुंदर
    झरते हैं झाग भरे निर्झर!
  3. रव-शेष रह गए हैं निर्झर !
    है टूट पड़ा भू पर अंबर !

कविता में तुकांतयुक्त पदावली और संगीतात्मकता होने से गेयता का गुण आ जाता है।

प्रश्न 3.
कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर-
कविता से लिए गए चित्रात्मक शैली के प्रयोग वाले स्थल-

  1. पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश
  2. मेखलाकार पर्वत अपार
  3. अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़,
    अवलोक रहा है बार-बार
  4. जिसके चरणों में पला ताल
    दर्पण-सा फैला है विशाल!
  5. मोती की लड़ियों-से सुंदर
    झरते हैं झाग भरे निर्झर !
  6. उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
    हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
  7. उड़ गया, अचानक लो, भूधर
  8. है टूट पड़ा भू पर अंबर!
  9. धंस गए धरा में सभय शाल!
  10. उठ रहा धुआँ, जल गया ताल!
  11. -यों जलद-यान में विचर-विचर
    था इंद्र खेलती इंद्रजाल।

योग्यता विस्तार
प्रश्न 1.
इस कविता में वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों की बात कही गई है। आप अपने यहाँ वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर-
वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तन-वर्षा को जीवनदायिनी ऋतु कहा जाता है। इस ऋतु का इंतज़ार ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से किया जाता है। वर्षा आते ही प्रकृति और जीव-जंतुओं को नवजीवन के साथ हर्षोल्लास भी स्वतः ही मिल जाता है। इस ऋतु में हम अपने आसपास अनेक प्राकृतिक परिवर्तन देखते हैं; जैसे-

  1. ग्रीष्म ऋतु में तवे सी जलने वाली धरती शीतल हो जाती है।
  2. धरती पर सूखती दूब और मुरझाए से पेड़-पौधे हरे हो जाते हैं।
  3. पेड़-पौधे नहाए-धोए तरोताज़ा-सा प्रतीत होते हैं।
  4. प्रकृति हरी-भरी हो जाती हैं तथा फ़सलें लहलहा उठती हैं।
  5. दादुर, मोर, पपीहा तथा अन्य जीव-जंतु अपना उल्लास प्रकट कर प्रकृति को मुखरित बना देते हैं।
  6. मनुष्य तथा बच्चों के कंठ स्वतः फूट पड़ते हैं जिससे प्राकृतिक चहल-पहल एवं सजीवता बढ़ती है।
  7. आसमान में बादल छाने, सूरज की तपन कम होने तथा ठंडी हवाएँ चलने से वातावरण सुहावना बन जाता है।
  8. नालियाँ, नाले, खेत, तालाब आदि जल से पूरित हो जाते हैं।
  9. अधिक वर्षा से कुछ स्थानों पर बाढ़-सी स्थिति बन जाती है।
  10. रातें काली और डरावनी हो जाती हैं।

परियोजना कार्य
प्रश्न 1.
वर्षा ऋतु पर लिखी गई अन्य कवियों की कविताओं का संग्रह कीजिए और कक्षा में सुनाइए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
बारिश, झरने, इंद्रधनुष, बादल, कोयल, पानी, पक्षी, सूरज, हरियाली, फूल, फल आदि या कोई भी प्रकृति विषयक शब्द का प्रयोग करते हुए एक कविता लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर-
‘पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश’ के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि पर्वतीय प्रदेश की वर्षा ऋतु में प्रकृति में क्षण-क्षण में बदलाव आता रहता है। वहाँ अचानक सूर्य बादलों के पीछे छिप जाता है। बादल गहराते ही वर्षा होने लगती है। चारों ओर धुआँ-धुआँ-सा छा जाता है। पल-पल में हो रहे इस परिवर्तन को देखकर लगता है कि प्रकृति अपना वेश बदल रही है।

प्रश्न 2.
कविता में पर्वत को कौन-सा मानवीय कार्य करते हुए दर्शाया गया है?
उत्तर-
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में वर्णित पर्वत अत्यंत ऊँचा और विशालकाय है। पर्वत पर हज़ारों फूल खिले हैं। पर्वत के चरणों के पास ही स्वच्छ जल से भरा तालाब है। पर्वत इस तालाब में अपनी परछाई निहारते हुए आत्ममुग्ध हो रहा है। उसका यह कार्य किसी मनुष्य के कार्य के समान है।

प्रश्न 3.
पर्वतीय प्रदेश में स्थित तालाब के सौंदर्य का चित्रण कीजिए।
उत्तर-
पर्वतीय प्रदेश में पहाड़ की तलहटी में एक विशाल आकार का तालाब है। वहाँ होने वाली वर्षा के जल से यह तालाब परिपूरित रहता है। तालाब के पास ही विशालकाय पर्वत है। इसकी परछाई इसके पानी में उसी तरह दिखाई देती है जैसे साफ़ दर्पण में कोई वस्तु दिखाई देती है।

प्रश्न 4.
पर्वत से गिरने वाले झरनों की विशेषता लिखिए।
उत्तर-
पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु में पर्वत के सीने पर झर-झर करते हुए झरने गिर रहे हैं। इन झरनों की ध्वनि सुनकर ऐसा लगता है, जैसे ये पर्वतों का गौरवगान कर रहे हों। इन झरनों का सौंदर्य देखकर नस-नस में उत्तेजना भर जाती है। ये पर्वतीय झरने झागयुक्त हैं जिन्हें देखकर लगता है कि ये सफ़ेद मोतियों की लड़ियाँ हैं।

प्रश्न 5.
पर्वतों पर उगे पेड़ कवि को किस तरह दिख रहे हैं?
उत्तर-
पर्वतों पर उगे पेड़ देखकर लगता है कि ये पेड़ पहाड़ के सीने पर उग आए हैं जो मनुष्य की ऊँची-ऊँची इच्छाओं की तरह हैं। ये पेड़ अत्यंत ध्यान से अपलक और अटल रहकर शांत आकाश की ओर निहार रहे हैं। शायद ये भी अपनी उच्चाकांक्षा को पूरा करने का उपाय खोजने के क्रम में चिंतनशील हैं।

प्रश्न 6.
कविता में पर्वत के प्रति कवि की कल्पना अत्यंत मनोरम है-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि ने पर्वत के प्रति अत्यंत सुंदर कल्पना की है। विशालकाय पहाड़ पर खिले फूलों को उसके हज़ारों नेत्र माना है, जिनके सहारे पहाड़ विशाल दर्पण जैसे तालाब में अपना विशाल आकार देखकर मुग्ध हो रहा है। अचानक बादलों के घिर जाने पर यही पहाड़ अदृश्य-सा हो जाता है तब लगता है कि पहाड़ किसी विशाल पक्षी की भाँति अपने काले-काले पंख फड़फड़ाकर उड़ गया हो।

प्रश्न 7.
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में तालाब की तुलना किससे की गई है और क्यों?
उत्तर-
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में तालाब की तुलना स्वच्छ विशाल दर्पण से की गई है क्योंकि-

  • तालाब का आकार बहुत बड़ा है।
  • तालाब का जल अत्यंत निर्मल और साफ़ है।
  • तालाब के इस स्वच्छ जल में पर्वत अपना महाकार देख रहा है।

प्रश्न 8.
पर्वतीय प्रदेश में उड़ते बादलों को देखकर कवि ने क्या नवीन कल्पना की है?
उत्तर-
पर्वतीय प्रदेश में बादल इधर-उधर उड़ते फिर रहे हैं। इन बादलों से वर्षा होने से तालाब में धुआँ उठने लगा। पर्वत और झरने अदृश्य होने लगे। शाल के पेड़ अस्पष्ट से दिखने लगे। इन सारे परिवर्तनों के मूल में बादल थे। इन्हें उड़ता देख कवि ने इंद्र यान के रूप में इनकी कल्पना की, जिनमें बैठकर इंद्र अपना मायावी जाल फैला रहा था। कवि की यह कल्पना सर्वथा नवीन है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि के देखते-देखते अचानक कौन-सा परिवर्तन हुआ जिससे शाल के वृक्ष भयाकुल हो गए?
उत्तर-
पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु में कवि ने देखा कि आकाश में काले-काले बादल उठे और नीचे की ओर आकर पर्वत, पेड़ तथा तालाब आदि को घेर लिया, जिससे निम्नलिखित परिवर्तन हुए-

  • ऐसा लगा जैसे पहाड़ चमकीले भूरे पारद के पंख फड़फड़ाकर उड़ गया।
  • पहाड़ पर स्थित झरने अदृश्य हो गए।
  • झरनों का स्वर अब भी सुनाई दे रहा है।
  • मूसलाधार वर्षा होने लगी, जिससे ऐसा लगा कि धरती पर आकाश टूट पड़ा हो।

पर्वतीय प्रदेश में अचानक हुए इन परिवर्तनों को देखकर शाल के पेड़ भयाकुल हो उठे।

प्रश्न 2.
पर्वतीय प्रदेश में इंद्र अपनी जादूगरी किस तरह दिखा रहा था?
उत्तर-
पर्वतीय प्रदेश में अचानक बादल छाने और धुंध उठने से वातावरण अंधकारमय हो गया। इससे पर्वत अदृश्य हो गए। पहाड़ पर बहते झरते दिखने बंद हो गए। झरनों की आवाज़ अब भी आ रही थी। अचानक जोरदार वर्षा होने लगी। बढ़ती धुंध में शाल के पेड़ ओझल होने लगे। ऐसा लगा, ये पेड़ कटकर धरती में धंसते जा रहे हैं। अचानक तालाब में धुआँ ऐसे उठा मानो आग लग गई हो। इस तरह अपनी जादूगरी दिखाते हुए इंद्र बादलों के विमान पर बैठकर घूम रहा था। यह सब परिवर्तन इंद्र अपनी जादूगरी से दिखा रहा था।

प्रश्न 3.
पर्वतीय प्रदेश में कुछ पेड़ पहाड़ पर उगे हैं तो कुछ शाल के पेड़ पहाड़ के पास। इन दोनों स्थान के पेड़ों के सौंदर्य में अंतर कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पर्वतीय प्रदेश में बहुत से पेड़ पर्वत पर उगे हैं जिन्हें, देखकर लगता है कि वे पहाड़ के सीने पर उगे हैं। ये पेड़ मनुष्य की ऊँची आकांक्षाओं के समान हैं। जिस प्रकार मनुष्य अपनी आकांक्षाएँ पूरी करने के लिए चिंतित रहता है उसी प्रकार ये पेड़ भी अटल भाव से अपलक आकाश की ओर देखे जा रहे हैं; जैसे अपनी महत्त्वाकांक्षा पूर्ति का उपाय सोच रहे हों। दूसरी ओर पर्वत के पास उगे पेड़ वर्षा होने और धुंध के कारण अस्पष्ट से दिखाई दे रहे हैं। ऐसा लगता है कि अचानक होने वाली मूसलाधार वर्षा और धुंध से भयभीत होकर ये पेड़ धरती में धंस गए हों।

प्रश्न 4.
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता पर्वतीय सौंदर्य को व्यक्त करने वाली कविता है। प्रकृति का यह सौंदर्य वर्षा में और भी बढ़ जाता है। वर्षा काल में प्रकृति में क्षण-क्षण होने वाला परिवर्तन देखकर लगता है कि प्रकृति सजने-धजने के क्रम में पल-पल अपना वेश बदल रही है। विशाल आकार वाला मेखलाकार पर्वत है जिस पर फूल खिले हैं। पर्वत के पास ही विशाल तालाब है जिसमें पर्वत अपना सौंदर्य निहारता है और आत्ममुग्ध होता है। तालाब का जल इतना स्वच्छ है जैसे दर्पण हो। पर्वतों से गिरते झरने सफ़ेद मोतियों की लड़ियों जैसे लगते हैं।

अचानक बादल उमड़ते हैं। बादलों में पर्वत और झरने अदृश्य हो जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे पर्वत विशालकाय पक्षी की भाँति पंख फड़फड़ाकर उड़ जाते हैं। मूसलाधार वर्षा आरंभ हो जाती है। शाल के पेड़ भयभीत होकर धरती में धंसने से लगते हैं। तालाब से धुआँ उठने लगता है। ऐसा लगता है जैसे इंद्र अपनी जादूगरी दिखा रहा है।

प्रश्न 2

मेखलाकार का अर्थ है गोल, जैसे - कमरबंध। यहाँ इस शब्द का प्रयोग पर्वतों की श्रृंखला के लिए किया गया है। ये पावस ऋतु में दूर-दूर तक गोल आकृति में फैले हुए हैं।

मातृभूमि कविता में मेखलाकार से क्या आशय है?

Solution : मेखलाकर शब्द का अर्थ है-करधनी। कवि ने कविता में मेखलाकार शब्द का प्रयोग वर्षा ऋतु में पर्वतों की टेढ़ी-मेढ़ी लगने वाली श्रृंखला के लिए किया है। इसने भी धरती को करधनी के समान घेर रखा है। मेखलाकार शब्द का प्रयोग कवि ने पर्वत की विशालता दर्शाने के लिए किया है।

फड़का अपार बादल के पर से क्या आशय है?

फड़का अपार पारद के पर। है टूट पड़ा भू पर अंबर। अचानक मौसम बदल जाता है और लगता है जैसे पर्वत अचानक अपने पारे जैसे चमकीले पंख फड़फड़ाकर कहीं उड़ गया है। अब केवल झरने की आवाज निशानी के तौर पर रह गई है; क्योंकि धरती पर आसमान टूट पड़ा है।

झर झर नस नस उठ उठ में कौन सा अलंकार है?

3. 'झर-झर', 'नस-नस', 'उठ - उठ' में' पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है । 4. 'झरते झाग', 'नीरव नभ', 'अनिमेष अटल' में अनुप्रास अलंकार है।