These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 ममता (गद्य खंड). Show जीवन-परिचय एवं कृतियाँ प्रश्न 1. जीवन-परिचय – हिन्दी-साहित्य के महान् कवि, नाटककार, कहानीकार एवं निबन्धकार श्री जयशंकर प्रसाद जी का जन्म सन् 1889 ई० में वाराणसी के प्रसिद्ध हुँघनी साहू परिवार में हुआ था। इनके पिता बाबू देवीप्रसाद काशी के प्रतिष्ठित और धनाढ्य व्यक्ति थे। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई तथा स्वाध्याय से ही इन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू और फारसी का श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त किया और साथ ही वेद, पुराण, इतिहास, दर्शन आदि का (UPBoardSolutions.com) भी गहन अध्ययन किया। माता-पिता तथा बड़े भाई की मृत्यु हो जाने पर इन्होंने व्यवसाय और परिवार का उत्तरदायित्व सँभाला ही था कि युवावस्था के पूर्व ही भाभी और एक के बाद दूसरी पत्नी की मृत्यु से इनके ऊपर विपत्तियों का पहाड़ ही टूट पड़ा। फलतः वैभव के पालने में झूलता इनका परिवार ऋण के बोझ से दब गया। इनको विषम परिस्थितियों से जीवन-भर संघर्ष करना पड़ा, लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी और निरन्तर साहित्य-सेवा में लगे रहे। क्रमशः प्रसाद जी का शरीर चिन्ताओं से जर्जर होता गया और अन्तत: ये क्षय रोग से ग्रस्त हो गये। 14 नवम्बर, सन् 1937 ई० को केवल 48 वर्ष की आयु में हिन्दी साहित्याकाश में रिक्तता उत्पन्न करते हुए इन्होंने इस संसार से विदा ली। | कृतियाँ – प्रसाद जी ने काव्य, नाटक, कहानी, उपन्यास और निबन्धों की रचना की। इनकी प्रमुख कृतियों का विवरण निम्नलिखित है| साहित्य में स्थान – प्रसाद जी छायावादी युग के जनक तथा युग-प्रवर्तक रचनाकार हैं। बहुमुखी प्रतिभा के कारण इन्होंने मौलिक नाटक, श्रेष्ठ कहानियाँ, उत्कृष्ट निबन्ध और उपन्यास लिखकर हिन्दी-साहित्य के कोश की श्रीवृद्धि की है। आधुनिक हिन्दी के (UPBoardSolutions.com) मूर्धन्य साहित्यकारों में प्रसाद जी का विशिष्ट स्थान है। आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी के शब्दों में, भारत के इने-गिने श्रेष्ठ साहित्यकारों में प्रसाद जी का स्थान सदैव ऊँचा रहेगा।” इनके विषय में किसी कवि ने उचित ही कहा है सदियों तक साहित्य नहीं यह समझ सकेगा तुम मानव थे या मानवता के महाकाव्य थे। गद्यांशों पर आधारित प्रश्न प्रश्न-पत्र में केवल 3 प्रश्न (अ, ब, स) ही पूछे जाएँगे। अतिरिक्त प्रश्न अभ्यास एवं परीक्षोपयोगी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण दिए गये हैं। प्रश्न 1. (ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या – श्री जयशंकर प्रसाद जी का कहना है कि रोहतास राजप्रासाद के मुख्य द्वार के निकट अपने कमरे में बैठी हुई ममता सोन नदी के तेज बहाव को देख रही है। विधवा ममता का यौवन भी सोन नदी के प्रवाह के समान पूर्ण रूप से उमड़ रहा था। भरी तरुणाई में विधवा हो जाने के कारण उसका मन दु:ख से भरा था। उसके मस्तिष्क में आँधी के समाम तीव्रगति से अपने भावी जीवन की चिन्ता से सम्बन्धित अनेक विचार उत्पन्न हो रहे थे। उसकी आँखों से दु:ख के आँसू निरन्तर बह रहे थे और राजप्रासाद की समस्त सुख-सुविधाएँ उसे काँटे की भाँति कष्ट पहुँचा रही थीं। कोमल बिस्तरों पर शयन भी उसे काँटों की शय्या के समान प्रतीत होता था। द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या – श्री जयशंकर प्रसाद जी का कहना है कि ममता रोहतास दुर्ग के अधिपति के मन्त्री चूड़ामणि की इकलौती पुत्री थी। इसलिए उसके पास सुख-सुविधाओं के अभाव होने को प्रश्न ही नहीं उठता था; अर्थात् उसके पास सभी सुख विद्यमान थे, परन्तु वह सुखी नहीं थी क्योंकि वह एक हिन्दू बाल विधवा थी। हिन्दू समाज में विधवा का जीवन दु:खी, उपेक्षित और अनाथ जैसा होता है। इस कारण उसका जीवन उसके लिए भार बन जाता है। संसार की सभी सुख-सुविधाएँ भी उसको शान्ति प्रदान नहीं कर पाती हैं। ऐसी ही विकट परिस्थितियों से युक्त ममता के कष्टों का भी अन्त नहीं था। (स) 1. प्रस्तुत गद्यांश में रोहतास दुर्ग के दुर्गपति के मन्त्री चूड़ामणि की एकमात्र कन्या ममता के विषय में कहा गया है, जो कि
युवावस्था में ही विधवा हो गयी थी। समस्त प्रकार की सुख-सुविधाओं की उपलब्धता होने के बाद भी उसकी परेशानियों का अन्त नहीं था। प्रश्न 2. (स) 1. थाल में रखे हुए सुवर्ण के सिक्कों की चमक; जो कि ममता के पिता ने शेरशाह से उत्कोच (घूस) के रूप में स्वीकार किये थे; ममता की आँखों को अन्धा बना रही थी। आशय यह है कि विधर्मियों से उत्कोच के रूप में आये सुवर्ण से उत्पन्न सम्भावित भय के कारण उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया था। प्रश्न 3. (स) 1. स्तूप के अवशेष की छाया में दीपक के प्रकाश में बैठी एक स्त्री पाठ कर रही थी‘अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते’, अर्थात् जो भक्त अनन्य भावना से मेरा चिन्तन करते हैं, उपासना करते हैं; उनका योग-क्षेम मैं स्वयं वहन करता
हूँ। प्रश्न 4. ममता अपने मन में सोचने लगी कि मैंने इस मुगल को जल देकर उचित नहीं किया। इसके प्राण तो बच गये लेकिन क्या पता अब यह मेरे साथ कैसा व्यवहार करेगा क्योंकि सभी विधर्मी दया के योग्य नहीं होते। अपने पिता के वध का स्मरण कर (UPBoardSolutions.com) उसका मन विरक्त हो गया; क्योंकि पितृ-हन्ता को तो कदापि आश्रय न देना चाहिए। (स) 1. गद्यांश में वर्णित व्यक्ति बाबर का पुत्र हुमायूँ है। हुमायूँ चौसा के युद्ध में शेरशाह से पराजित होकर भागता है और भागते हुए सारनाथ के खण्डहरों में आश्रय पाता है और ममता से उसकी कुटिया में विश्राम करने की आज्ञा देने का आग्रह
करता है। प्रश्न 5. (स) 1. “क्या आश्चर्य है कि तुम भी छल करो।” वाक्य ममता ने मुगल हुमायूँ से कहे; क्योंकि उसके पिता की हत्या भी
विधर्मियों अर्थात् मुगलों ने ही की थी। वह दोनों ही मुगलवंशियों में कोई भेद नहीं कर सकी थी। प्रश्न 6. (स) 1. मुगल-पठान युद्ध से आशय हुमायूँ (मुगल) और शेरशाह (पठान) के मध्य हुए चौसा के युद्ध से है। यह युद्ध सन् 1536 ई० के आसपास हुआ था। प्रश्न 7. (स) 1. प्रस्तुत गद्यांश में ‘शहंशाह’ शब्द मुगल सल्तनत के बाबर के पुत्र और अकबर के पिता हुमायूं के लिए प्रयोग किया गया है। व्याकरण एवं रचना-बोध प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 ममता (गद्य खंड) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 ममता (गद्य खंड), drop a comment below and we will get back to you at the earliest. 1 ममता कौन थी?ममता रोहतास के दुर्गपति के मंत्री चूड़ामणि की एकलौती विधवा पुत्री थी। सुख के सब साधनों के होते हुए भी विधवा का दुःख के कारण उसे कुछ भी नहीं सुहाता था।
लेखक ने ममता को कैसे बताया है?Mamta| ममता |class 10th hindi | Chapter 2 Mamata up board 2023, jayashankar prasad ka jivan parichay - YouTube.
ममता कहानी का मुख्य उद्देश्य क्या है?इस कहानी के रचयिता जयशंकर प्रसाद जी हैं। इसमें लेखक ने भारतीय नारी पात्र ममता की त्याग भावना तथा देश-प्रेम को चित्रित किया है और साथ ही नारी की मनोस्थिति का वर्णन भी किया है।
ममता की तुलना में उसके पिता का चरित्र आपको कैसे लगता है?वह चाहे अपने पिता से कितना प्रेम करता हो या पिता अपने बच्चे को कितना भी प्रेम देता हो पर जो आत्मीय सुख माँ की छाया में प्राप्त होता है वह पिता से प्राप्त नहीं होता।
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