मीणाओं की बस्ती क्या कहलाती है? - meenaon kee bastee kya kahalaatee hai?

मीना जनजाति मुख्यत राजस्थान व मध्य प्रदेश राज्य में निवास करती है। इन्हे वैदिक युग के मत्स्य गणराज्य के मत्स्य जन-जाति का वंशज कहा जाता है, जो कि छठी शताब्दी ईसापूर्व में पल्लवित हुए।

वर्तमान की भौगोलिक स्थिति के अनुसार राजस्थान के भरतपुर, जयपुर, दौसा, धौलपुर,अलवर व सवाई माधोपुर व करोली जिले वैदिक काल के मत्स्य गणराज्य का हिस्सा थे इसीलिए ही ये मीनाबाहुल्य जिले हैं।

10वीं शताब्दी में कच्छवाहों के पूर्व जयपुर में मीना सरदारों का ही राज था। ब्रिटिश शासन काल में Criminal tribes Act of 1871 के तहत मीनाओ को जरायम पेशा जाति में शामिल किया गया था।

मीना आदिवासी समुदाय को ‘आपराधिक जनजाति’ के रूप में प्रसिद्ध कर दिया गया था। राजस्थान में राजपूत साम्राज्य के साथ अपना गठबंधन बनाए रखने हेतु यह कृत्य किया गया था, क्योंकि मीना जनजाति अभी भी राजपूतों के साथ युद्ध में थीं, अपने खोए हुए राज्यों को वापस पाने के लिए छापामार हमलों में लिप्त थीं।

लोक देवता – भूरिया बाबा गोतमेश्वर

लोक देवी – जीणमाता (रैवासा, सीकर)

मीणा पुराण रचियता –आचार्य मुनि मगरसागर

पौराणिक कथाएं:

पौराणिक कथाओ के अनुसार मत्स्य अवतार या भगवान विष्णु के दसवें अवतार से मीना जनजाति की उत्पत्ति मानी जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, मीना समुदाय के लोग `चैत्र शुक्ल पक्ष` के तीसरे तीथ पर विष्णु के नाम पर मीनेश जयंती मनाते हैं। यह विश्वास मुख्य रूप से मत्स्य पुराण के ग्रंथ पर आधारित है। मुनि मगर सागर के मीना पुराण में मीनाओ की 24 खाप, 13 पाल,5200 गौत्र का उल्लेख हैं।

मीना जनजाति प्रमुख रूप से निम्न वर्गों में बंटी हुई है:

  • जमींदार या पुरानावासी मीना :  वे मीना जो खेती एवं पशुपालन का कार्य बर्षों से करते आ रहे हैं। ये राजस्थान के सवाईमाधोपुर,करौली,दौसा व जयपुर जिले में सर्वाधिक हैं|
  • चौकीदार या नयाबासी मीना : वे मीना जो अपनी स्वछंद प्रकृति के कारण चौकीदारी का कार्य करते थे। इनके पास जमींने नहीं थीं, इस कारण जहां इच्छा हुई वहीं बस गए। उक्त कारणों से इन्हें नयाबासी भी कहा जाता है। ये लोग सीकर, झुंझुनू, एवं जयपुर जिले में सर्वाधिक संख्या में हैं।
  • प्रतिहार या पडिहार मीना : इस वर्ग के मीना टोंक, भीलवाड़ा, तथा बूंदी जिले में बहुतायत में पाये जाते हैं। प्रतिहार का शाब्दिक अर्थ उलट का प्रहार करना होता है। ये लोग छापामार युद्ध कौशल में चतुर थे इसलिये प्रतिहार कहलाये।
  • रावत मीना : राजपूतों से वैवाहिक संबंध रखने वाले मीना रावत मीना कहलाते है। ये अजमेर, मारवाड़ में निवास करते हैं।
  • भील मीना : ये लोग सिरोही, उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर एवं चित्तोड़गढ़ जिले में प्रमुख रूप से निवास करते हैं।
  • सुरतेवाल मीना :  कुछ जाति समूहों, विशेष रूप से माली के साथ मिश्रित होने वालो के वंशज|
  • असली मीना : जो दूसरी जातियों के साथ मिश्रित नहीं हुए।
  • उजला मीना/गहलोत मीना : वे मीना जिन्होंने धार्मिक सुधारवादी आंदोलन के प्रभाव में आकर भैंस के मांस को खाना छोड़ दिया। ये अधिकतर जयपुर और अलवर में स्थित थे।
  • मेला मीना : वे मीना जिन्होंने भैंस के मांस को खाना नहीं त्यागा।
  • दस्सा मीना : ये आपराधिक प्रवृत्ति के माने जाते थे तथा ये अपने परिवार के मृतक का दाह-संस्कार करते हैं।
  • बिस्सा मीना : ये आपराधिक प्रवृत्ति को त्याग चुके थे तथा ये अपने परिवार के मृतक को दफनाते हैं।
  • चोथिया मीना : वे मीना जो मीनाओ के क्षेत्र से गुजरने वाले यात्रियों से चौथ (लेवी) वसूलते थे।

सामाजिक जीवन :

मीना जनजाति में संयुक्त परिवार की प्रथा का प्रचलन है तथा परिवार पितृ सत्तात्मक होते हैं। सम्पूर्ण गाँव (ढाणी या थोक) में आमतौर पर एक ही वंश का कबीला होता है। इस जाति के गांव को ‘ढाणी’ या थोक कहते है। प्रत्येक थोक या ढाणी का नेतृत्व एक पटेल द्वारा किया जाता है जिसका चयन वंशानुगत आधार पर होता है।

जाति पंचायत :

मीनाओ में जाति पंचायत की सामाजिक नियंत्रण में अहम् भूमिका होती है। सामाजिक झगड़ो व विवाद जैसे – नाता, विवाह विच्छेद, मौसर, ऋण आदि का निपटारा इन पंचायतों में किया जाता हैं।जाती पंचायत के विभिन्न स्तर होते है :

झूमटी (दजिया)- भील जनजाति के द्वारा वनों की जलाकर की जाने वाली कृषि (झूमिंग कृषि) को झूमटी (दजिया) कहते है।

चिमाता या वालरा- भील जनजाति के द्वारा पहाड़ी ढलानों पर की जाने वाली झूमिंग कृषि को चिमाता या वालरा कहते है।

कू या टापरा- भील जनजाति में घर को कू या टापरा कहते है।
ढालिया- भील जनजाति में टापरा (घर) के बाहर बने बरामदे को ढालिया कहते है।

पाल- भीलों के बड़े गाँव को पाल कहते है पाल का मुखिया पालवी कहलाता है।
फला- भीलों के छोटे गाँव (मोहल्ला) को फला कहते है।

पालवी या तदवी- भीलों के गाँव का मुखिया पालवी या तदवी कहलाता है।
गमेती- भीलों के सभी गाँवों का या सभी गाँवों की पंचायत का मुखिया गमेती कहलाता है।

डाम देना- भील जनजाति में रोगोपचार की विधि को डाम देना कहते है भील जनजाति में रोगोपचार की डाम देना विधि प्रचलित है डाम देना विधि में हाथों पर जलती हुई या गरम ठकिरि रखकर बीमारी भगायी जाती है।

हाथी पेड़ों- भील जनजाति में पेड़ को साक्षी मानकर की जाने वाली शादी को हाथी पेड़ों कहते है।

विधवा विवाह- भील जनजाति में विधवा विवाह तो प्रचलन में है परन्तु छोटे भाई की विधवा से बड़ा भाई विवाह नहीं कर सकता है।

अपहरण विवाह- भील जनजाति में अपहरण विवाह को सह-पलायन प्रथा भी कहा जाता है। अपहरण विवाह में लड़का व लड़की भागकर 2-3 दिन बाद वापस आते है तब गाँव के लोग एकत्रित होकर उनके विवाह को मान्यता प्रदान करते है।

टोटम- भीलों का कुल देवता टोटम है।
राई बुढ़िया- भीलों की कुल देवी राई बुढ़िया है।

फाइरे-फाइरे- भील जनजाति के द्वारा शत्रु से निपटने के लिए सामूहिक रुप से किया जाने वाला रणघोष फाइरे-फाइरे कहलाता है।

भीलों के प्रमुख नृत्य-
1. ढेंकण
2. युद्ध नृत्य
3. द्विचकी नृत्य
4. घूमरा नृत्य
5. गवरी नृत्य
6. नेजा नृत्य
7. गैर नृत्य- भील जनजाति के द्वारा फाल्गुन मास में होली के अवसर पर भील पुरुषों के द्वारा किया जाने वाला नृत्य गैर नृत्य कहलाता है। होली को भीलों का प्रमुख त्योहार भी माना जाता है।
8. हाथी मना नृत्य- भील जनजाति में विवाह के अवसर पर पुरुष के द्वारा घुटनों के बल बैठकर तलवार घुमाते हुए किया जाने वाला नृत्य हाथी मना नृत्य कहलाता है।

भीलों का प्रमुख लोक नाट्य-
1. गवरी या राई- गवरी या राई लोक नाट्य भीलों का प्रमुख लोक नाट्य है। गवरी या राई लोक नाट्य राखी के दूसरे दिन से प्रारम्भ होकर 40 दिन तक चलता है। गवरी या राई लोक नाट्य राजस्थान का सबसे प्राचीन लोक नाट्य माना जाता है।

बैणेश्वर मेला (डूँगरपुर, राजस्थान)- बैणेश्वर मेला राजस्थान के डूँगरपुर जिले में सोम, माही तथा जाखम नदियों के त्रिवेणी संगम पर बैणेश्वर धाम में माघ पूर्णिमा के दिन आयोजित किया जाता है। बैणेश्वर मेला भील जनजाति का सबसे बड़ा मेला माना जाता है। बैणेश्वर मेले को आदिवासियों का कुंभ भी कहा जाता है।

उन्दरिया संप्रदाय- भील जनजाति में उन्दरिया संप्रदाय की मान्यता है।

जनसंख्या- 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में भीलों की कुल आबादी लगभग 41 लाख है जो की राजस्थान की कुल जनजाति का 44.38 प्रतिशत है। राजस्थान के अधिकांश जिलों में भील जनजाति पायी जाती है लेकिन दक्षिणी राजस्थान में भील जनजाति सर्वाधिक पायी जाती है जैसे- बाँसवाड़ा, डूँगरपुर, उदयपुर, प्रतापगढ़ तथा सिरोही जिलों में सर्वाधिक पाये जाते है।

जनगणना 2011 के अनुसार राजस्थान में सर्वाधिक जनसंख्या वाले तीन जिले निम्नलिखित है-
1. बाँसवाड़ा- राजस्थान में सर्वाधिक भील जनजाति वाला जिला बाँसवाड़ा है जिसमें भीलों की आबादी लगभग 13. 40 लाख है।
2. डूँगरपुर- बाँसवाड़ा जिले के बाद राजस्थान में जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा जिला डूँगरपुर है राजस्थान के डूँगरपुर जिले में भीलों की कुल जनसंख्या लगभग 6.87 लाख है।
3. उदयपुर- डूँगरपुर जिले के बाद राजस्थान में जनसंख्या की दृष्टि से तीसरा सबसे बड़ा जिला उदयपुर है राजस्थान के उदयपुर जिले में भीलों की कुल जनसंख्या लगभग 6.52 लाख है।

पाखरिया- भील जनजाति में किसी भील पुरुष के द्वारा किसी सैनिक के घोड़ें को मार दिया जाता है उसे पाखरिया या पाखरिया भील कहते है।

भीलों की भाषा- भील जनजाति के भाषा बागड़ी या भीली कहलाती है। भीलों की बागड़ी या भीली भाषा मेवाड़ी तथा गुजराती भाषाओं से प्रभावित भाषा है।

घोटिया अम्बा मेला- राजस्थान राज्य के बाँसवाड़ा जिले की घोटिया अम्बा नामक स्थान पर भरने वाला भीलों का प्रसिद्ध मेला ही घोटिया अम्बा मेला है।

ऋषभ देव (केशरिया नाथ या काला जी)- उदयपुर में ऋषभ देव (केशरिया नाथ या काला जी) के मंदिर में चढ़ाई गई केशर को पीकर भील जनजाति के लोग कभी झूठ नहीं बोलते है।

पाडा- भील जनजाति में पाडा कटने पर भील प्रसन्न होते है।

काडी (काड़ी)- भील जनजाति में काडी कहने पर भील नाराज हो जाते है।

हरिया-कामटी- भील जनजाति के लोग तीर-कमान को हरिया कामटी भी कहते है।

रोने- Wild Tribes of India नामक पुस्तक लेखक रोने के द्वारा लिखी गई है जिसमें लेखक रोने ने भीलों का मूल निवास स्थान मारवाड़ बताया है।

भगत- भील जनजाति में धार्मिक संस्कार करवाने वाले व्यक्ति को भगत कहा जाता है।

भगत पंथ- भील जनजाति में गुरु गोविन्द गिरी ने ही भगत पंथ का प्रारंभ किया किया था।

भील समुदाय में सामाजिक सुधार एवं जनजाग्रति उत्पन्न करने वाले प्रमुख व्यक्ति निम्नलिखित है-
1. गुरु गोविन्द गिरी
2. मोतीलाल तेजावत
3. संत मावजी
4. भोगीलाल पाण्ड्या
5. माणिक्य लाल वर्मा
6. सुरमल दास जी

भीलों की वेशभूषा-
1. भील पुरुषों की वेशभूषा-
फेंटा- भील पुरुषों के द्वारा सिर पर बाॅंधा जाने वाला लाल, पीला व केसरिया रंग का साफा फेंटा कहलाता है।

पोत्या- भील पुरुषों के द्वारा सिर पर पहने जाने वाला सफेद रंग का साफा पोत्या कहलाता है।

लंगोटी या खोयतू- भील पुरुषों के द्वारा कमर में पहने जाने वाला वस्त्र लंगोटी या खोयतू कहलाता है।

ठेपाड़ा या ढेपाड़ा- भील पुरुषों के द्वारा कमर से घुटनों तक पहने जाने वाली तंग धोती ठेपाड़ा या ढेपाड़ा कहलाती है।

फालू- भील पुरुषों का अंगोछा फालू कहलाता है।

2. भील स्त्रियों के वस्त्र-
कछाबू या कछावू- भील स्त्रियों के द्वारा घुटनों तक पहना जाने वाला घाघरा कछाबू या कछावू कहलाता है।

सिंदूरी- भील स्त्रियों की लाल रंग की साड़ी को सिंदूरी कहते है।

अंगरुठी- भील स्त्रियों के द्वारा पहने जाने वाली चोली को अंगरुठी कहते है।

पिरिया- भील जनजाती में दुल्हन के द्वारा पहने जाने वाला पीले रंग का लहंगा पिरिया कहलाता है।

परिजनी- भील महिलाओं के द्वारा पैरों में पहने जाने वाली पीतल की मोटी चूड़ियाँ परिजनी कहलाती है।

ओढ़नी- भील स्त्रियों की साड़ी ओढ़नी कहलाती है। तारा भाँत की ओढ़नी आदिवासी महिलाओं की लोकप्रिय ओढ़नी है। ओढ़नी को लूगड़ा भी कहा जाता है।

मीणा के घर को क्या कहते हैं?

मीणा जाति के घरों के समूह को 'ढाणी' या थोक कहलाते है।

भीलो की बस्ती को क्या कहते हैं?

भील जिन बस्तियों में रहते हैं, उन्हें “पाल” कहते हैं। हर एक “पाल” में भीलों का एक नेता होता है जिसे मध्य भारत में “तरबी” कहा जाता है एवं राजस्थान में उसे “गमेती' के नाम से पुकारते हैं। जो भू-भाग पहाड़ी एवं ऊँचा होता है उसे ये लोग डौंगर (डूंगर) कहते हैं

चिमाता व दजिया क्या है?

भील जनजाति द्वारा मैदानी इलाकों में की जाने वाली खेती को दजिया के नाम से जाना जाता है और पहाड़ी इलाकों में उनके द्वारा की जाने वाली झूमिंग खेती को चिमाता के नाम से जाना जाता है।

गरासिया जनजाति के मुख्य को क्या कहा जाता है?

गरासिया जनजाति में गांव के मुखिया पटेल कहा जाता है, पटेल साहब को एक-दो नामों से और जाना जाता है और वो है सहलोत और पालवी। पटेल साहब पंचायत द्वारा आर्थिक व शारीरिक दोनों प्रकार के दंड देते है