राजा बलि की बेटी का क्या नाम था? - raaja bali kee betee ka kya naam tha?

पौराणिक कथाओं में राजा बलि का बहुत बार उल्लेख मिलता (Raja Bali Ki Katha) हैं जो ऋषि कश्यप के कुल से थे। राजा बलि के दादा का नाम प्रह्लाद तथा पिता का नाम विरोचन (Raja Bali Kaun The) था। वह महर्षि कश्यप तथा दैत्य हिरण्यकश्यप के कुल में जन्मा एक दैत्य राजा था। वह स्वभाव से अपने दादा के समान दानवीर था किंतु उसमे दैत्यों के गुण होने के कारण अहंकार तथा अधर्म भी (Raja Bali Story In Hindi) था। आज हम आपको दानवीर महाबलि के जन्म, यज्ञ, शक्ति तथा पराक्रम के बारे में बताएँगे।

प्रह्लाद के पौत्र राजा महाबलि का जीवन परिचय (Raja Bali Ki Kahani)

राजा बलि का जन्म (Raja Bali Ka Janm)

राजा बलि के माता-पिता का नाम विरोचन तथा विशालाक्षी था। उसके दादा प्रह्लाद थे जो भगवान विष्णु के प्रिय भक्त थे। अपने पिता विरोचन की देवराज इंद्र के द्वारा छल से हत्या कर देने के बाद राजा बलि तीनों लोकों के सम्राट बने थे। वह अत्यंत शक्तिशाली तथा पराक्रमी था तथा इसी के बल पर उसने तीनों लोकों पर अपना राज्य स्थापित कर लिया था। उसकी राजधानी दक्षिण भारत में केरल (Raja Bali Kahan Ke Raja The) थी।

राजा बलि का अहंकार (Raja Bali Ka Ahankar)

चूँकि उसका जन्म प्रह्लाद के कुल में हुआ था लेकिन दैत्य जाति होने के कारण उसके अंदर अहंकार ज्यादा था। वह दानवीर होने के साथ-साथ अधर्म रुपी कार्य भी करता था। हालाँकि वह भगवान विष्णु का भक्त भी था लेकिन देवताओं आदि से वह ईर्ष्या रखता था। इसी ईर्ष्या में उसने इंद्र को उनके सिंहासन से अपदस्थ कर दिया (Raja Bali Aur Indra Ka Yuddh) था।

उसने अपने गुरु शुक्राचार्य की सहायता से सौ अश्वमेघ यज्ञों का आयोजन करवाया था। 99वें यज्ञों का वह सफलतापूर्वक आयोजन कर चुका था और यदि वह सौवां यज्ञ भी निर्विघ्न आयोजित कर लेता तो इंद्र के पद पर वह हमेशा के लिए आसीन हो जाता।

उसके इस कृत्य से देवताओं में भय व्याप्त हो गया लेकिन किसी में भी उसे रोकने की शक्ति नही थी। स्वयं देवराज इंद्र असहाय अनुभव कर रहे थे। जब वह सौवां यज्ञ आयोजित करने जा रहा था तब इंद्र सभी देवताओं के साथ भगवान विष्णु से सहायता मांगने गए तथा धर्म की रक्षा की बात की।

भगवान विष्णु का वामन अवतार (Raja Bali Aur Vaman Ki Kahani)

जब भगवान विष्णु को बलि के द्वारा सौवां यज्ञ करने तथा उसके प्रभाव का ज्ञान हुआ तब उन्होंने धरती पर अवतार लेने का निश्चय किया। चूँकि राजा बलि उनके प्रिय भक्त प्रह्लाद का पौत्र था इसलिये वे उसका वध नही करना चाहते थे। इसलिये उन्होंने उसका अहंकार दूर कर इंद्र को फिर से स्वर्ग के आसन पर बिठाने के लिए एक योजना सोची।

इसके लिए भगवान विष्णु ने एक छोटे ब्राह्मण का अवतार लिया जिसे बटुक ब्राह्मण अवतार भी कहा जाता है। इसके बाद वे राजा बलि के यज्ञशाला में गए तथा कुछ मांगने की इच्छा प्रकट की। राजा बलि द्वार पर आये किसी ब्राह्मण को खाली हाथ वापस नही भेजते थे, इसलिये वह यज्ञ शुरू करने से पहले ब्राह्मण को दान देने की इच्छा से बाहर आ (Raja Bali Ki Pariksha) गया।

भगवान विष्णु ने वामन अवतार में उससे तीन पग धरती (Raja Bali Ka Daan) मांगी जिस पर राजा बलि को आश्चर्य हुआ। गुरु शुक्राचार्य (Raja Bali Ke Guru Kaun The) ने उसे रोकने का प्रयास किया लेकिन राजा बलि ने अपने दानवीर व अहंकारी स्वभाव के कारण ब्राह्मण को तीन पग धरती देने का संकल्प ले लिया।

इसके पश्चात भगवान वामन ने अपना अवतार आकाश तक बड़ा कर लिया जो संपूर्ण लोकों में फैल गया। उन्होंने अपने एक पग में संपूर्ण पृथ्वी तथा दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। तीसरे पग को रखने की अब कोई जगह नही बची थी। यह देखकर राजा बलि का अहंकार नष्ट हो (Raja Bali Ka Ant Kaise Hua) गया तथा उसने उनका तीसरा पग रखने के लिए अपना मस्तक आगे कर दिया।

भगवान विष्णु ने तीसरा पग रखकर उसका मान भंग किया तथा उसे पाताल लोक भेज (Raja Bali In Hindi) दिया। इस प्रकार राजा बलि के हाथों से स्वर्ग तथा पृथ्वी का अधिकार छीन गया और अब वह पाताल लोक में रहने लगा।

राजा बलि व ओणम (King Bali And Onam)

मान्यता हैं कि वर्ष में एक बार राजा बलि अपने प्रजा से मिलने अवश्य आते हैं। इस अवसर पर केरल के लोग प्रसिद्ध ओणम का त्यौहार मनाते है तथा राजा बलि का हर्षोल्लास के साथ स्वागत करते है।

संघ ओणम को एक हिंदू त्योहार बनाना चाहता है जिसमें वामन अवतार की पूजा हो. दूसरी तरफ कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी हैं जो मुसलमानों को ओणम को मनाने से दूर रखना चाहते हैं.

राजा बलि की बेटी का क्या नाम था? - raaja bali kee betee ka kya naam tha?

(फोटो: अमित शाह के ट्विटर हैंडल से साभार)

राक्षसों और देवों के बीच युद्ध से दुनिया भर के लोग अच्छी तरह से परिचित हैं. इन युद्धों का अभिन्न हिस्सा है पाप पर पुण्य की विजय. हमारे देश के हर हिस्से में इस तरह की जीतों को मनाया जाता है.

पिछले कुछ दशकों में इन युद्धों, विजय और पराजय के किस्से एक जैसे बनने लगे हैं. अब हर जगह राम को नायक और रावण को खलनायक माना जाने लगा है. दुर्गा देवी हैं और महिषासुर दानव. पांडव कृष्ण की मदद से अच्छे हैं और दुर्योधन और उनके कौरव भाई बुरे.

यह संयोग नहीं की विजेता पुण्य के प्रतीक माने जाते हैं और हारने वाले बुराई के. एक अकेला अपवाद है महाबली और वामन के बीच का युद्ध और इसको दुनिया भर में और केरल में तमाम मलयाली लोगों द्वारा याद किए जाने का तरीका.

महाबली या राजा बलि केरल का प्राचीनकालीन राजा था. उसका राज्य एक ऐसे स्वर्ण काल के रूप में याद किया जाता है जिसमें उसकी समस्त प्रजा समानता और न्याय के फल का भोग करती थी. उनके लिए आपस में और प्रकृति के साथ संतुष्टि से जीने के लिए सब कुछ उपलब्ध था.

जैसा कि उस ज़माने में आम था, देवताओं को इस जनप्रिय और गुणवान राजा से जलन होने लगी. वे डरने लगे कि उसके तमाम परोपकार के परिणामस्वरूप वह स्वयं उनके इंद्रलोक का राजा बन जाएगा. वह सब के सब भगवान विष्णु के पास पहुंचे.

उनसे उन्होंने इस बात की विनती की कि वह किसी भी उपाय से महाबली का नाश करें. विष्णु महाबली के तमाम गुणों से परिचित थे लेकिन वह यह भी जानते थे कि वह एक असुर था जो मनुष्यों के बीच असमानताओं को नहीं मानता था.

राजा बलि की बेटी का क्या नाम था? - raaja bali kee betee ka kya naam tha?

(फोटो: रॉयटर्स)

इस कारण ने विष्णु को देवताओं के आग्रह को स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया. वामन का अवतार ग्रहण करके, वह पृथ्वी पर उतर आए और केरल पहुंच गए.

वह महाबली से सीधी टक्कर नहीं ले सकते थे क्योंकि, अपने नाम की तरह, महाबली एक वीर और अनोखा यौद्धा था. वामन के अवतार में विष्णु उनका मुकाबला छल और कपट द्वारा ही कर सकते थे.

जब महाबली अपनी पूजा समाप्त कर रहे थे तो वामन, एक ब्राह्मण भिक्षु के रूप में, उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया. महाबली ने उसकी तरफ बड़ी सहानुभूति से देखा और कहा कि जो मांगना हो, मांगो.

वामन ने उत्तर दिया कि वह भूमिहीन है. उसे ज़मीन की ज़रूरत है. महाबली ने तुरंत कहा कि वह उसे उतनी ज़मीन देगा जितनी वह चाहता है. वामन ने इस पर यह कहा कि उसे उतनी ज़मीन चाहिए थी जितनी वह तीन कदम में नाप सकता है. महाबली ने उसे नीचे से ऊपर देखा, शायद मुस्कुराया और फिर उसकी बात स्वीकार कर ली.

महाबली से हामी भरवाते ही, चालाक ब्राह्मण वामन ने अपना असली रूप धारण किया. पहले कदम में उसने पूरी धरती नाप ली; दूसरे में पूरा समंदर. वह तीसरा कदम उठा ही रहा था कि महाबली ने सृष्टि को बचाने के लिए, उसके पैर के नीचे अपना सिर रख लिया.

वामन अवतार ने उसका सिर नीचे की ओर दबाया और फिर दबाता ही चला गया जब तक कि महाबली धरती के नीचे पाताल नहीं पहुंच गए.

हालांकि केरल की जनता महाबली को भुलाने के लिए तैयार न थी. वह अपने राजा और उसके स्वर्ण काल को कैसे भूल सकते थे? उनके मातम का यह नतीजा हुआ कि महाबली को साल में दस दिन के लिए केरल तब लौटने की अनुमति मिली जब फसल कटकर खलिहान में पहुंचने का समय होता था.

https://twitter.com/AmitShah/status/775584771753795584/photo/1?ref_src=twsrc%5Etfw&ref_url=https%3A%2F%2Fthewire.in%2F65809%2Fanger-kerala-amit-shah-turns-onam-brahminical-vamana-jayanti%2F

उसकी वापसी का समय इफरात का मौसम होता था जब केरल की समस्त जनता उसके आगमन को ओणम के त्योहार के रूप में मनाने लगी. एक ऐसा त्योहार जिसमें कोई पूजा नहीं, कोई मूर्ति नहीं, केवल तमाम मलयालियों के लिए बढ़िया खान-पान, गीत और संगीत का महत्व था.

रावण के नाम कुछ ही जीर्ण-क्षीर्ण हालत में मंदिर बचे हैं. बिहार और बंगाल में थोड़ी सी संख्या में आदिवासी मौजूद हैं जो महिषासुर की पूजा करते हैं. केरल में ही एक अकेला दुर्योधन के नाम का मंदिर है जिसमें हर साल उसका मेला लगता है. पराजितों के नाम देश भर में गिनती के ही यादगार होंगे. विजेताओं का ही महिमामंडन होता है.

केरल ही एक ऐसी जगह है जहां हर साल पराजय के बावजूद, महाबली लौटता है क्योंकि वह आज भी मलयाली दिलों का ऐसा राजा है जिसकी जगह कोई ले नही पाया है. लेकिन, हाल में इस बात का प्रयास किया जा रहा है कि उन्हें हमेशा के लिए पाताल भेज दिया जाए.

पिछले कुछ वर्षों से, केरल में एक मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में उभरने की अपनी कोशिशों को संघ परिवार ने दुगनी कर दी है. उसने धन और बाहुबल दोनों का खूब इस्तेमाल किया है और इसके साथ जातीय व धार्मिक संगठनों के साथ अपना ताल-मेल भी बढ़ाया है. अब वह महाबली पर हल्ला बोल चुके है. उस जनप्रिय राजा की स्तुति के स्थान में वह वामन अवतार की पूजा करवाने पर आमादा हैं.

वह ऐसा क्यों कर रहे हैं? जिस जनता का वह समर्थन प्राप्त करना चाहते हैं उसी के सम्मान और प्यार के प्रतीक पर वह हमला क्यों कर रहे हैं? इस पहेली का उत्तर हमें तब ही मिलेगा जब हम मनुस्मृति के प्रति संघ परिवार की उस निष्ठा को याद करेंगे जो वह ज़माने से व्यक्त कर रही है.

जब से उसका राजनीतिक जन्म हुआ, उसके समस्त राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बावजूद, उसकी यह निष्ठा अमिट रही है, पत्थर की लकीर की तरह.

जिस समय डॉ. आंबेडकर द्वारा रचित संविधान को स्वीकृति प्राप्त हुई थी, उस समय से ही आरएसएस ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह इस नए धर्मशास्त्र को नहीं मानती है. उसके लिए एक ही धर्मशास्त्र है और वह है मनुस्मृति.

उनके अनुसार, भारत के नागरिकों के अधिकारों को सुनिश्चित करने और उनके व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए मनुस्मृति पर्याप्त थी. मनुस्मृति के प्रति निष्ठा का मतलब है वर्णाश्रम धर्म और ब्राह्मणवाद को स्वीकार करना.

आरएसएस द्वारा महाबली की अवहेलना के पीछे इस निष्ठा के अलावा कुछ नहीं है. उनको एक ऐसे राजा के रूप में उन्होंने प्रस्तुत किया है जो बाहर से आकर केरल पर राज कर रहा था.

हिंदू ऐक्य वेदी की राज्य अध्यक्ष केपी शशिकला ने तो यहाँ तक कहा है कि ‘वामन ने केरल को साम्राजवादी शासक महाबली से मुक्त किया. उसे तो स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देखा जाना चाहिए.’

राजा बलि की बेटी का क्या नाम था? - raaja bali kee betee ka kya naam tha?

(फोटो: पीटीआई)

संघ परिवार के आदत अनुसार, महाबली को एक साम्राज्यवादी शासक के साथ-साथ विष्णु और उसके वामन अवतार के उपासक के रूप में भी पेश किया जा रहा है.

आरएसएस के मुखपत्र केसरी साप्ताहिक के पिछले वर्ष के ओणम विशेषांक में राज्य संस्कृत कॉलेज में संस्कृत के प्राध्यापक आर. उन्नीकृष्ण नाम्बूथ्री ने एक लेख में कहा, ‘वामन ने महाबली को पाताल नहीं भेजा बल्कि उसने उस शासक का सम्मानजनक पुनर्वास एक ऐसे स्थान में किया जो स्वर्ग से भी अधिक आरामदेह है.’

सामाजिक श्रेणीगत व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जिनको भी ब्राह्मणवाद ने पराजित किया उनके साथ उसने हमेशा इसी तरह का सुलूक किया है. पहले तो उन्हें नेस्तनाबूत किया गया, उनको अपमानित किया गया.

बाद में उन्हें विजेताओं की संगत में कोई बहुत ही हीन स्थान दे दिया गया ताकि उनके मानने वालों, उनके साथ पराजित होने वालों को नए शासकों और नए नियमों को स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जा सके.

केरल में इस प्रक्रिया के दोहराए जाने की कम संभावना है. आरएसएस के लोग ओणम को एक हिंदू त्योहार बनाना चाहते हैं जिसमें वामन अवतार की पूजा हो. दूसरी तरफ, कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी हैं जो मुसलमानों को ओणम को मनाने से दूर रखना चाहते हैं. लेकिन तमाम मलयाली जनता ओणम को अपनी तरह मनाते रहने पर आमादा दिखती है.

जाति और धर्म को एक तरफ रखते हुए वह मिलकर ओणम का गीत गाते हैं, ‘मावेली (महाबली) नाडू वानीतम कालम, मानुषर एल्लारम ओंनुपोले’. इस तरह वह महाबली के शासन को परिभाषित करने वाली न्याय और समानता के गुण गाते हैं. उनमें से कई यह भी मानते हैं कि महाबली को मारने के बाद ही वर्णव्यवस्था का प्रवेश केरल में संभव हुआ.

जिस केरल में कम्युनिस्टों का सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है उसमें सामाजिक और आर्थिक समानता का विरोध असहनीय समझे जाते हैं. ऐसे राज्य में महाबली सामाजिक न्याय के प्रतीक कर रूप धारण कर चुके हैं.

केरल में उनकी वार्षिक वापसी का मौका दावतों का मौका बनता है. इन दावतों का इंतज़ाम करना गरीब से गरीब मलयाली के लिए वाम सरकारों द्वारा स्थापित सस्ती खान-पान की दुकानों की वजह से संभव हुआ है.

महाबली का केरल में 10 दिन का पड़ाव इस बात की उम्मीद पैदा करता है कि कभी न कभी जिस समानता, न्याय और शांतिपूर्ण संबंधों के वह प्रतीक हैं, वह एक स्थाई व्यवस्था का रूप धारण करेंगे.

ओणम के स्थान पर वामन महोत्सव मनाने के संघ परिवार के प्रयास केरल में ही लोगों के अंदर प्रतिरोध की भावना पैदा नहीं की है बल्कि उसने अपने भावी कार्यक्रम के एक महत्वपूर्ण हिस्से का ऐलान करके अन्य स्थानों में भी लोगों की पुरानी यादों को कुरेदने का काम किया है.

हो सकता है कि वह असुर एक बार फिर उमड पड़ेंगे जिनकी यादें उनके लोगों और समर्थकों के मस्तिष्क में लंबे समय से दफ़न थी. पराजित शायद विजेता के रूप में उभर ही पड़ेंगे.

(लेखिका कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ इंडिया की सदस्य और आॅल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमेंस एसोसिएशन की अध्यक्ष है.)


क्या आपको ये रिपोर्ट पसंद आई? हम एक गैर-लाभकारी संगठन हैं. हमारी पत्रकारिता को सरकार और कॉरपोरेट दबाव से मुक्त रखने के लिए आर्थिक मदद करें.

साझा करें:

  • Tweet
  • WhatsApp
  • Print
  • More

  • Email

ये भी पढ़ें...

Categories: भारत, राजनीति

Tagged as: Festivas of India, Kerala, News, Onam, Raja Bali, RSS, Vaman Avtar, Vaman Jayanti, Vaman Mahotsav, ओणम, ख़बर, द वायर हिंदी, न्यूज़, वामन अवतार, वामन महोत्सव, संघ, समाचार, हिंदी समाचार, हिंदू त्योहार

राजा बलि की बेटी का नाम क्या था?

बता दें कि श्री कृष्ण द्वारा जिस पूतना राक्षसी का वध किया गया था, वो पिछले जन्म में राजा बलि की पुत्री रत्नमाला (raja bali daughter ratanmala) थी. रत्नमाला पिछले जन्म में एक राजकन्या थी.

राजा बलि पिछले जन्म में कौन था?

राजा बलि के पूर्वज प्रह्लाद थे। जो कि भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। पुराणों में वर्णित हिंदू कथाओं को मानें तो राजा बलि पूर्वजन्म में जुआरी थे।

राजा बलि के पुत्र कौन थे?

ऐसे हुई बलि की उत्पत्ति : कश्यप ऋषि की पत्नी दिति के दो प्रमुख पुत्र हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष थे। हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। प्रह्लाद के कुल में विरोचन के पुत्र राजा बलि का जन्म हुआ।

राजा बलि की जाति क्या थी?

राजा बलि का अहंकार (Raja Bali Ka Ahankar) चूँकि उसका जन्म प्रह्लाद के कुल में हुआ था लेकिन दैत्य जाति होने के कारण उसके अंदर अहंकार ज्यादा था।