मानक इलेक्ट्रोड विभव क्या है इसकी उपयोगिता समझाइए? - maanak ilektrod vibhav kya hai isakee upayogita samajhaie?

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चालकत्व को परिभाषित कीजिए तथा चालकत्व एवं प्रतिरोध में सम्बन्ध बताइए।


उत्तर –  किसी विद्युत अपघट्य की जलीय विलयन में विद्युत धारा को प्रवाहित करने की क्षमता उसका विद्युत अपघटनी चालकत्व कहलाती है। इसे 'C से प्रदर्शित करते हैं। यह चालक के प्रतिरोध (R) के व्युत्क्रमानुपाती होती है। अर्थात्


C= 1/R



 विद्युत अपघटनी विलयन की विशिष्ट चालकता एवं मोलर चालकता को परिभाषित कीजिए। 



विद्युत-अपघटनी या आयनिक चालकत्व


विद्युत–अपघट्य गलित अवस्था एवं विलयन में विद्युत धारा का संचालन करते हैं। विलयन में उपस्थित आयनों के कारण विद्युत के चालकत्व को विद्युत अपघटनी या आयनिक चालकत्व कहते हैं।


विद्युत अपघटनी चालकता से सम्बन्धित कुछ मूल अवधारणाएँ


(i) विद्युत चालकता (C) यह चालक के प्रतिरोध (R) के व्युत्क्रमानुपाती होती है, अर्थात्


C = 1 / R


विद्युत-चालकता का मात्रक ओम-1 या म्हो (mho) होता है। SI पद्धति में विद्युत चालकता का मात्रक सीमेन्स होता है।


(ii) विशिष्ट चालकता (k) किसी चालक के विशिष्ट प्रतिरोध (p) के व्युत्क्रम को उस चालक की विशिष्ट चालकता {कप्पा (k)} कहते हैं। 


k = 1/p     p = l/(R.A)  [:: p=R.A/l] 


विशिष्ट चालकता का मात्रक ओम-¹ सेमी-¹ या साइमन सेमी -¹ (Scm-¹) होता है।


(iii) मोलर चालकता (λm) किसी विलयन के एक निश्चित आयतन में उपस्थित विद्युत अपघट्य के 1 मोल द्वारा उपलब्ध कराए गए आयनों की चालकता, मोलर चालकता (λm) कहलाती है।



 मोलर चालकता को परिभाषित कीजिए तथा इसकी इकाई भी लिखिए।


 मोलर चालकता (λm) किसी विलयन के एक निश्चित आयतन में उपस्थित विद्युत अपघट्य के 1 मोल द्वारा उपलब्ध कराए गए आयनों की चालकता, मोलर चालकता (λm) कहलाती है।


मोलर चालकता (λ m) तथा विशिष्ट चालकता (k) में सम्बन्ध


लेमड़ा m = (K x 1000)/C 


= (K x 1000)/M


जहाँ, C या M = विलयन की मोलर सान्द्रता


λm का मात्रक साइमन मी² मोल-¹अथवा साइमन सेमी² मोल-¹ होता है। 




 तनुता बढ़ने पर विशिष्ट चालकता का मान क्यों घटता है?


उत्तर – विलयन को तनु करने पर विलयन का आयतन बढ़ जाता है, किन्तु उसी अनुपात में उसमें आयनों की संख्या नहीं बढ़ती, अतः विलयन के प्रति मिली में आयनों की संख्या कम हो जाती है। चूँकि विशिष्ट चालकत्व का मान विलयन के प्रति मिली में उपस्थित आयनों की संख्या पर निर्भर करता है। अतः विलयन का विशिष्ट चालकत्व घट जाता है।



 कोलराऊश नियम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


अथवा 


कोलराऊश के नियम को समझाइए। 


अथवा 


कोलराऊश के नियम की व्याख्या कीजिए।



उत्तर – कोलराऊश द्वारा प्रस्तावित आयनों के स्वतन्त्र अभिगमन के नियम के अनुसार, किसी विद्युत अपघट्य की अनन्त तनुता पर मोलर चालकता (λ∞ₘ) उसके धनायनों तथा ऋणायनों की अनन्त तनुता पर मोलर चालकताओं (λ०∞ तथा λ∞ₘ) का कुल योग होती है।



λ∞ₘ = v+λ∞ +v-λ∞


जहाँ v+ तथा v-विद्युत अपघट्य के एक अणु के वियोजन से उत्पन्न क्रमशः धनायनों तथा ऋणायनों की संख्याएँ हैं। जैसे- HCI के लिए v+ = 1 तथा v-= 1 


क्योंकि यहाँ धनायन (H+) की संख्या = 1 व ऋणायन (CI-) की संख्या = 1 होती हैं।



जिंक तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से अभिक्रिया करता है, जबकि  ताँबा नहीं, कारण सहित स्पष्ट कीजिए।



उत्तर – विद्युत रासायनिक श्रेणी में जिंक का स्थान हाइड्रोजन से ऊपर है, जिससे यह ज्ञात होता है, कि जिंक हाइड्रोजन से अधिक प्रबल अपचायक है। हाइड्रोजन से अधिक प्रबल अपचायक होने के कारण जिंक तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के विलयन से अभिक्रिया कर लेता है, जबकि Cu हाइड्रोजन से दुर्बल अपचायक होने के कारण क्रिया नहीं करता है।



प्रबल तथा दुर्बल विद्युत अपघट्यों को उदाहरण द्वारा समझाइए।



उत्तर (i) प्रबल विद्युत अपघट्य वे विद्युत अपघट्य जो जलीय विलयन में या ध्रुवीय विलायकों में लगभग पूर्णतया आयनित हो जाते हैं, विद्युत अपघट्य कहलाते हैं। प्रबल


उदाहरण— NaCl, KCl, HCl, NaOH, आदि। 


(ii) दुर्बल विद्युत-अपघट्य वे विद्युत-अपघट्य जो जलीय विलयन या ध्रुवीय विलायकों में कम आयनन दर्शाते हैं, दुर्बल विद्युत अपघट्य - कहलाते हैं।


उदाहरण- CH₃COOH, NH₄OH, H₂CO₃, आदि। 



नेर्नस्ट के इलेक्ट्रोड विभव का समीकरण लिखिए और उसमें दिए गए संकेतों को स्पष्ट कीजिए। 


अथवा


नेर्नस्ट समीकरण क्या है? मानक इलेक्ट्रोड विभव एवं इलेक्ट्रोड विभव में सम्बन्ध लिखिए।


अथवा 


नेर्नस्ट समीकरण की व्याख्या कीजिए।


उत्तर – नेर्नस्ट समीकरण इलेक्ट्रोड विभव तथा विलयन के सान्द्रण के मध्य सम्बन्ध को दर्शाने वाली समीकरण नेर्नस्ट समीकरण कहलाती है।


 जर्मन भौतिक विज्ञानी नेर्नस्ट के अनुसार, किसी ताप T पर धातु इलेक्ट्रोड (M / Mⁿ+) के विभव (E), मानक इलेक्ट्रोड विभव (E°) और विलयन में धातु आयनों की सान्द्रता M+ में निम्नलिखित सम्बन्ध होता है।


E = E° –( 2.303 RT )/nF log (1/Mⁿ+)



जहाँ,


R = गैस नियतांक, T = परमताप


 F = फैराडे नियतांक, (1F = 96600 कूलॉम मोल-¹)


n = प्रयुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या


तथा [M+ ] = विलयन के धातु की सक्रियता




क्या सेल अभिक्रियाओं के लिए, पेल अथवा 4,G° शून्य हो सकते सेल हैं।




उत्तर नहीं, अन्यथा अभिक्रिया सम्भव नहीं होगी।



Cu/Cu+² इलेक्ट्रोड का मानक इलेक्ट्रोड विभव -0.34 वोल्ट है। इस युग्म के मानक अपचयन विभव व मानक ऑक्सीकरण विभव का मान कारण सहित बताइए।


उत्तर दिया है, E°ऑक्सीकरण =-0.34 वोल्ट


 अत:  E° अपचयन =+ 0.34 वोल्ट;


क्योंकि किसी अर्द्ध-सेल के लिए मानक ऑक्सीकरण विभव = -(मानक अपचयन विभव)


तथा किसी अर्द्ध-सेल के लिए मानक अपचयन विभव


=- (ऑक्सीकरण विभव)




विधुत रासायनिक श्रेणी के दो अनुप्रयोग लिखिए।



उत्तर 

(i) विद्युत रासायनिक श्रेणी में उच्च विद्युत धनात्मक तत्व, निम्न विद्युत धनात्मक तत्वों को उनके लवणों के विलयन से विस्थापित कर देते हैं। जैसे- जिंक, कॉपर सल्फेट के विलयन से कॉपर को विस्थापित कर देता है। 


(ii) विद्युत रासायनिक श्रेणी में आयरन से नीचे स्थित धातुओं के ऑक्साइडों का हाइड्रोजन द्वारा अपचयन हो जाता है। 



 कॉपर सल्फेट के विलयन में लोहे की कील डालने पर क्या होगा? 


उत्तर विद्युत रासायनिक श्रेणी में Cu को Fe से नीचे रखा गया है। अत: Fe (लोहा) अधिक सक्रिय होने के कारण Cu²+ आयनों को Cu (कॉपर धातु) में अपचयित करने में सक्षम होता है। इसी कारण, CuSO₄ (कॉपर सल्फेट) के विलयन में लोहे की कील डालने पर कॉपर निक्षेपित होने लगता है और विलयन का नीला रंग (जोकि Cu²+ आयनों के कारण होता है) गायब होने लगता है।


CuSO₄ (aq) + Fe(s) →  FeSO₄(aq) + Cu(s)                                               नीला                                       हरा।      कॉपर



 कॉपर सल्फेट के विलयन में जस्ते की बनी छड़ डालने पर उसका 'नीला रंग धीरे-धीरे गायब हो जाता है। कारण सहित समझाइए।




उत्तर – किसी विद्युत रासायनिक श्रेणी में Cu को Zn से नीचे रखा गया है। अतः Zn (जिंक) अधिक सक्रिय होने के कारण Cu+² आयनों को Cu में अपचयित करने में सक्षम होता है। इसी कारण CuSO₄ (कॉपर सल्फेट) विलयन में जस्ते (Zn) की छड़ डालने पर कॉपर निक्षेपित होने लगती है और विलयन का नीला रंग (जोकि Cu+² आयनों के कारण होता है) अदृश्य होने लगता है।


CuSO₄ (aq) + Zn(s) → ZnSO4 (aq) + Cu(s)

 नीला         जस्ते की छड़



लवण विलयनों से धातुओं के विस्थापन की व्याख्या विद्युत रासायनिक श्रेणी के आधार पर कीजिए। 


उत्तर –  लवण विलयनों से धातुओं का विस्थापन रासायनिक श्रेणी में ऊपर रिक्त धातु अपने से नीचे वाली धातु को, उसके लवण के जलीय विलयन से विस्थापित कर देती हैं अर्थात् अधिक ऋणात्मक विभव

 (E°= –eV) वाला तत्व, अपेक्षाकृत कम ऋणात्मक अथवा धनात्मक विभव वाले तत्व को उसके लवण के जलीय विलयन से विस्थापित करके, धनात्मक आयन को परमाणु में परिवर्तित कर देता है तथा स्वयं धनात्मक आयन में परिवर्तित हो जाता है। उदाहरण लोहे के टुकड़ों को कॉपर सल्फेट के विलयन से कॉपर को विस्थापित कर देता है


CuSO₄ (aq) + Fe(s) → FeSO₄ (aq) + Cu(s)


सिल्वर नाइट्रेट के विलयन में कॉपर डालने से विलयन का रंग नीला हो जाता है, क्यों? समझाइए।



उत्तर – विद्युत रासायनिक श्रेणी में Ag (सिल्वर) को Cu (कॉपर), से नीचे रखा गया है। चूँकि विद्युत रासायनिक श्रेणी में प्रत्येक तत्व अपने से नीचे स्थित तत्वों को उनके लवण के विलयन से विस्थापित कर सकता है। अतः Cu, Ag को उसके लवण के विलयन से विस्थापित कर देता है तथा स्वयं Cu+² (आयनों) में परिवर्तित हो जाता है। Cu²+ (आयनों) का रंग नीला होने के कारण विलयन नीला हो जाता है। Cu की AgNO₃ के साथ अभिक्रिया निम्न प्रकार होगी


 Cu + 2AgNO₃ → Cu (NO₃)₂ + 2Ag



 यद्यपि विद्युत रासायनिक श्रेणी में ऐलुमिनियम हाइड्रोजन से ऊपर स्थित है, परन्तु यह वायु और जल में स्थायी है, क्यों?


उत्तर – अत्यधिक सक्रिय होने के कारण वायु की उपस्थिति में ऐलुमिनियम धातु की सतह पर ऐलुमिनियम ऑक्साइड (Al₂0₃) की रक्षी परत जम जाती है, जिसके कारण ऐलुमिनियम धातु पर वायु तथा जल का कोई प्रभाव नहीं होता है। इसी कारण यह वायु व जल में स्थायी होती है। 


"Zn कॉपर सल्फेट के विलयन से Cu को विस्थापित कर देता है, जबकि Ag ऐसा नहीं कर पाता है।" स्


उत्तर – विद्युत रासायनिक श्रेणी में Zn को Cu से ऊपर रखा गया है, जबकि सिल्वर को Cu से नीचे रखा गया है। इसी कारण, Zn (जिंक) कॉपर सल्फेट (CuSO₄) के विलयन से Cu (कॉपर) को विस्थापित कर देता है, जबकि Ag (सिल्वर) कम सक्रिय होने के कारण ऐसा नहीं कर पाता है।


Zn + CuSO₄ → ZnSO₄ + Cu


Ag + CuSO₄ → कोई क्रिया नहीं



 Mg, Zn, Cu तथा Ag में से किस तत्व की अम्ल से अभिक्रिया होने पर हाइड्रोजन गैस मुक्त होती हैं?


 

उत्तर – 

Mg और Zn विद्युत रासायनिक श्रेणी में H (हाइड्रोजन) से ऊपर स्थित हैं, जबकि Cu और Ag दोनों हाइड्रोजन से नीचे स्थित हैं। अत: Mg और Zn,

H से अधिक सक्रिय होने के कारण अम्ल से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन गैस मुक्त करते हैं।


Mg + 2HCI → MgCl₂+ H2 


 Zn  + H₂SO₄  → ZnSO₄ + H₂




जिंक धातु, कॉपर सल्फेट के विलयन से कॉपर को विस्थापित कर सकती है, जबकि सोना ऐसा नहीं करता। कारण स्पष्ट कीजिए। 


उत्तर – विद्युत रासायनिक श्रेणी में जिंक (Zn) को कॉपर (Cu) से ऊपर रखा गया है, अतः Zn धातु अधिक सक्रिय होने के कारण CuSO₄, के विलयन से Cu को विस्थापित कर देती है जबकि सोना (Au) धातु विद्युत रासायनिक श्रेणी में Cu से नीचे स्थित है। अतः यह कम सक्रिय होने के कारण CuSO₄ के विलयन से Cu को विस्थापित नहीं कर पाता है। 



 कोलराऊश नियम क्या है? इस नियम का एक अनुप्रयोग उदाहरण सहित दीजिए।


अथवा 


कोलराऊश नियम को समझाइए।


उत्तर – कोलराऊश द्वारा प्रस्तावित आयनों के स्वतन्त्र अभिगमन के नियम के अनुसार, किसी विद्युत अपघट्य की अनन्त तनुता पर मोलर चालकता (λ∞ₘ) उसके धनायनों तथा ऋणायनों की अनन्त तनुता पर मोलर चालकताओं (λ०∞ तथा λ∞ₘ) का कुल योग होती है।



λ∞ₘ = v+λ∞ +v-λ∞


जहाँ v+ तथा v-विद्युत अपघट्य के एक अणु के वियोजन से उत्पन्न क्रमशः धनायनों तथा ऋणायनों की संख्याएँ हैं। जैसे- HCI के लिए v+ = 1 तथा v-= 1 


क्योंकि यहाँ धनायन (H+) की संख्या = 1 व ऋणायन (CI-) की संख्या = 1 होती हैं।



 कोलराऊश के नियम के अनुप्रयोग 


कोलराऊश नियम की सहायता से दुर्बल विद्युत अपघट्यों की, अनन्त तनुता पर मोलर चालकता ज्ञात की जा सकती है। उदाहरण ऐसीटिक अम्ल (CH₃COOH) जैसे दुर्बल विद्युत अपघट्य की अनन्त तनुता पर मोलर चालकता प्रबल विद्युत अपघट्यों (HCI, CH₃COONa व NaCl) के विलयनों की अनन्त तनुता पर मोलर चालकताओं से कोलराऊश के नियम द्वारा परिकलित की जा सकती है।



यहाँ, x, y व z क्रमश: HCI, CH₃COONa व NaCl विलयनों की प्रयोगों द्वारा निर्धारित अनन्त तनुता पर मोलर चालकताएँ हैं। 


 इलेक्ट्रोड विभव क्या है? किसी धातु के इलेक्ट्रोड विभव को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।



उत्तरइलेक्ट्रोड विभव जब धातु की पत्ती को इसके स्वयं के आयन युक्त विलयन में रखा जाता है, तो धातु की पत्ती विलयन के सापेक्ष धनावेशित या ऋणावेशित हो जाती है तथा धातु की पत्ती एवं इसके विलयन के मध्य विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है, जिसे इलेक्ट्रोड विभव कहते हैं। 


इलेक्ट्रोड विभव को प्रभावित करने वाले कारक इलेक्ट्रोड विभव निम्न कारको पर निर्भर करता है


(i) विलयन की सान्द्रता


(ii) धातु की प्रकृति


(iii) विद्युत अपघट्य की प्रकृति


 (iv) ताप की परिस्थिति




 विद्युत रासायनिक श्रेणी क्या है? व्याख्या कीजिए कि निम्नांकित अभिक्रियाएँ सम्भव हैं या नहीं। 


(i) Fe को गर्म भाप के साथ गर्म करते हैं।


 (ii) Cu को हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में रखते हैं।



उत्तर

विद्युत रासायनिक श्रेणी


विभिन्न तत्वों को उनके बढ़ते हुए अपचयन इलेक्ट्रोड विभवों के क्रम में रखने पर जो श्रेणी प्राप्त होती है, उसे विद्युत रासायनिक श्रेणी कहा जाता है।


इस श्रेणी में स्थित कुछ धातुओं का क्रम निम्न होता है


 Li,K,Na. Mg, Al, Zn, Cr, Fe, Co, Ni, Sn, Pb, H, Cu, Hg. Ag. Au.




(i) Fe, Pb, Sn, Ni, Co आदि धातुएँ जो श्रेणी में नीचे स्थित हैं, शीतल जल से अभिक्रिया नहीं करती हैं, परन्तु वाष्प के साथ अभिक्रिया करके हाइड्रोजन मुक्त करती हैं।


3Fe आयरन (तप्त) + 4H₂O गर्म → Fe₃O₄+ 4H₂फेरोसोफेरिक ऑक्साइड हाइड्रोजन




(ii) Cu, Ag, Au आदि धातुएँ, जो हाइड्रोजन के नीचे स्थित हैं, बहुत कम सक्रिय होने के कारण प्रोटिक विलयनों (वे विलयन जिनमें H+ उपस्थित होता है) जैसे—हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl), जल आदि से हाइड्रोजन को विस्थापित नहीं करते हैं।


Cu + HCl कोई क्रिया नहीं



 मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड का सचित्र वर्णन कीजिए तथा इसकी एक उपयोगिता लिखिए।


अथवा


 अर्द्ध-सेलों का सचित्र वर्णन कीजिए तथा इसकी उपयोगिता लिखिए।




उत्तरमानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड (अर्द्ध-सेल) 1 मोलर सान्द्रता के HCI विलयन को एक पात्र में लेते हैं, अब प्लेटिनम (Pt) के तार के एक सिरे पर Pr धातु की छोटी प्लेट को उपयोग में लेकर तार को काँच की नली में सील करके पात्र में लिए गए HCI के 1 मोलर विलयन में डुबाते हैं। काँच की नली में 1- वायुमण्डलीय दाब पर आवश्यकता अनुसार, H₂-गैस उत्सर्जित एवं प्रवाहित की जा सकती है।


मानक इलेक्ट्रोड विभव क्या है इसकी उपयोगिता समझाइए? - maanak ilektrod vibhav kya hai isakee upayogita samajhaie?




उपयोगिता जिस एकल अर्द्ध-सेल का विभव मापन करना होता है, उसे मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड (अर्द्ध-सेल) के साथ सुचालक तार द्वारा बाह्य परिपथ में जोड़ देते हैं। अब इससे अपचयित अथवा ऑक्सीकृत होने वाले इलेक्ट्रोड के मानक विभव का मापन किया जा सकता है।



 रेडॉक्स विभव क्या है? विद्युत रासायनिक श्रेणी की दो उपयोगिता लिखिए।




उत्तर – रेडॉक्स विभव किसी सेल में ऑक्सीकरण तथा अपचयन अभिक्रियाएँ होने पर, धातु तथा विलयन में उपस्थित आयनों के मध्य स्थापित होने वाले साम्य में विभवान्तर को रेडॉक्स विभव कहते हैं। 


किसी पदार्थ की रेडॉक्स अभिक्रिया,


Mⁿ+  +  ne- → M अपचयित रूप

ऑक्सीकृत रूप


के लिए ताप T, रेडॉक्स इलेक्ट्रोड के विभव E, पदार्थ के ऑक्सीकृत रूप की सान्द्रता [Oxi] तथा अपचयित रूप की सान्द्रता [Red] में निम्न सम्बन्ध होता है 


E = E° - (2.303RT)/ nF - log10 [Red]/ [Oxi]


यहाँ, E° मानक इलेक्ट्रोड विभव है। 





 विद्युत रासायनिक श्रेणी के आधार पर निम्नलिखित को समझाइए। 


(i) एक रेडॉक्स अभिक्रिया के होने की सम्भावना ज्ञात करने में 

(ii) लवण विलयनों से धातुओं का विस्थापन 




उत्तर (i) रेडॉक्स अभिक्रिया के होने की सम्भावना ज्ञात करने में 

रेडॉक्स अभिक्रिया मानक अपचयन विभव के मान पर निर्भर करती है। अर्थात् अधिक E° वाले पदार्थ अपचयित होते हैं तथा कम E° वाले पदार्थ ऑक्सीकृत होते हैं। कैथोड व ऐनोड के इलेक्ट्रोड विभव के मान के आधार पर Eसेल (मानक इलेक्ट्रोड विभव) की गणना निम्न सूत्र की सहायता से की जा सकती है


E°सेल = E꜀° - E°ₐ


जहाँ, E꜀°  = कैथोड पर इलेक्ट्रोड विभव,


E°ₐ = ऐनोड पर इलेक्ट्रोड विभव


यदि E°सेल  का धनात्मक मान प्राप्त होता है, तो विद्युत रासायनिक सेल में विद्युत धारा की दिशा दी गई दिशा में प्राप्त होती है। 



दूसरी ओर, E°सेल का ऋणात्मक मान प्राप्त होने पर विद्युत धारा प्रवाहित होने की दिशा दी गयी दिशा से विपरीत होती है अर्थात् E°सेल का मान जितना अधिक धनात्मक होगा, अभिक्रिया होने की सम्भावना उतनी ही अधिक होगी।


(ii) लवण विलयनों से धातुओं का विस्थापन


रासायनिक श्रेणी में ऊपर स्थित धातु, अपने से नीचे वाली धातु को, उसके लवण के जलीय विलयन से विस्थापित कर देती है अर्थात् अधिक ऋणात्मक विभव ( E°= -eV) वाला तत्व, अपेक्षाकृत कम ऋणात्मक अथवा धनात्मक विभव वाले तत्व को उसके लवण के जलीय विलयन से विस्थापित करके, धनात्मक आयन को परमाणु में परिवर्तित कर देता है, एवं स्वयं धनात्मक आयन में परिवर्तित हो जाता  है।




 विद्युत रासायनिक श्रेणी किसे कहते हैं? इसके प्रमुख लक्षण लिखिए। इसके दो उपयोग भी लिखिए।



उत्तर  विद्युत रासायनिक श्रेणी


विभिन्न तत्वों को उनके बढ़ते हुए अपचयन इलेक्ट्रोड विभवों के क्रम में रखने पर जो श्रेणी प्राप्त होती है, उसे विद्युत रासायनिक श्रेणी कहा जाता है।


इस श्रेणी में स्थित कुछ धातुओं का क्रम निम्न होता है


 Li,K,Na. Mg, Al, Zn, Cr, Fe, Co, Ni, Sn, Pb, H, Cu, Hg. Ag. Au.



विद्युत रासायनिक श्रेणी के लक्षण निम्न प्रमुख प्रकार हैं 


(i) विद्युत रासायनिक श्रेणी में मानक अपचयन विभव का ऋण चिन्ह यह प्रदर्शित करता है, कि मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड से जोड़ने पर बने गैल्वेनी सेल का यह ऋण ध्रुव (ऐनोड) है।


(ii) जो धातुएँ हाइड्रोजन (H) की अपेक्षा प्रबल अपचायक हैं, उनको विद्युत रासायनिक श्रेणी में हाइड्रोजन (H) के ऊपर रखा गया है, जैसे-लीथियम। 


(iii) जो धातुएँ हाइड्रोजन (H) से दुर्बल अपचायक हैं, उन्हें श्रेणी में हाइड्रोजन (H) से नीचे रखा गया है।


(iv) इस श्रेणी में हाइड्रोजन (H) का मानक अपचयन विभव शून्य वोल्ट माना गया है। 

 


विद्युत रासायनिक श्रेणी


विभिन्न तत्वों को उनके बढ़ते हुए अपचयन इलेक्ट्रोड विभवों के क्रम में रखने पर जो श्रेणी प्राप्त होती है, उसे विद्युत रासायनिक श्रेणी कहा जाता है। इस श्रेणी में स्थित कुछ धातुओं का क्रम निम्न होता है


Li, K, Na, Mg, Al, Zn, Cr, Fe, Co, Ni, Sn, Pb, H, Cu, Hg, Ag, Au.


विद्युत रासायनिक श्रेणी के अनुप्रयोग


(i) विद्युत रासायनिक श्रेणी में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर धातुओं की रासायनिक सक्रियता तथा धनविद्युती लक्षण क्रमशः घटते हैं।


(ii) विद्युत रासायनिक श्रेणी में उच्च विद्युत धनात्मक तत्व (अर्थात् ऊपर या पहले स्थित तत्व), निम्न विद्युत धनात्मक तत्वों (अर्थात् नीचे स्थित तत्वों) को उनके लवणों के विलयन से विस्थापित कर देते हैं। जैसे- जिंक, कॉपर सल्फेट के विलयन से कॉपर को विस्थापित कर देता है।


(iii) जिन धातुओं के मानक अपचयन विभव का मान हाइड्रोजन के सापेक्ष ऋणात्मक होता है, वे अम्लों के विलयन से हाइड्रोजन विस्थापित कर देती हैं।


(iv) विद्युत रासायनिक श्रेणी में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर धातुओं (तत्वों) की अपचायक क्षमता घटती जाती है, क्योंकि मानक अपचयन विभव के मान बढ़ते जाते हैं।


(v) इस श्रेणी में आयरन से नीचे स्थित धातुओं के ऑक्साइडों का हाइड्रोजन द्वारा अपचयन हो जाता है।


(vi) जिन पदार्थों के रेडॉक्स युग्मों के मानक अपचयन विभव अधिक धनात्मक (या कम ऋणात्मक) होते हैं, वे प्रबल ऑक्सीकारक होते हैं। तथा जिन पदार्थों के मानक अपचयन विभव का मान अधिक ऋणात्मक होता है, वे प्रबल अपचायक होते हैं।

मानक इलेक्ट्रोड विभव क्या है समझाइए?

मानकं इलेक्ट्रोड विभव – किसी धातु की छड़ को 25°C पर एक मोलर धातु आयन सान्द्रता के विलयन में डुबोने पर धातु और विलयन के मध्य जो विभवान्तर उत्पन्न होता है उसे धातु का मानक इलेक्ट्रोड विभव E° कहते हैं।

मानक इलेक्ट्रोड विभव कैसे निकालते हैं?

<br> उपयोग-इसकी सहायता से किसी इलेक्ट्रोड का मानक इलेक्ट्रोड विभव ज्ञात करने हेतु उसे इस इलेक्ट्रोड के साथ जोड़कर एक वैद्युत-रासायनिक (गैल्वेनिक) सेल का निर्माण किया जाता है और उसके पश्चात् उसका वैद्युत वाहक बल ज्ञात कर लेते हैं जो उस इलेक्ट्रोड का हाइड्रोजन के सापेक्ष मानक इलेक्ट्रोड विभव होता है।

मानक ऑक्सीकरण या अपचयन विभव क्या है उदाहरण सहित समझाइए?

जब धातु आयन , धातु में परिवर्तन होता है तो उत्पन्न विभव को अपचयन विभव कहते हैं। नोट : जब इलेक्ट्रोड विभव को 25 डिग्री सेंटीग्रेट (298k ) ताप तथा एक मोल धातु आयन के विलयन की उपस्थिति में ज्ञात किया जाता है तो उसे मानक इलेक्ट्रोड विभव कहते है इसे E0 से व्यक्त करते है।