जहां चाह वहां राह से हमें क्या शिक्षा मिलती है? - jahaan chaah vahaan raah se hamen kya shiksha milatee hai?

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Class 5 Hindi Chapter 5 जहाँ चाह वहाँ राह 


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जहाँ चाह वहाँ राह पाठ का सारांश 

जहाँ चाह वहाँ राह पाठ या लेख इला सचानी नाम की एक ऐसी अपाहिज लड़की, जिसका हाथ काम नहीं करता, के दृढ़ इच्छाशक्ति और बेशुमार हौसले को वर्णित करता है | 


जहाँ चाह वहाँ राह लेख के अनुसार, इला सचानी छब्बीस साल की है | वह गुजरात के सूरत जिले में रहती है | वह अपने हमउम्र दोस्तों के साथ खेलने में ख़ूब मजे करती, पर ज्यों ही कोई खेल खेलना हाथ के बगैर असम्भव होता, तो वह चुपचाप वहीं एक किनारे बैठ जाती थी | क्योंकि उसका हाथ अपंगता का शिकार बन बैठा था | कभी वह अपने दोस्तों के साथ किसी खेल से सम्बन्धित एक गाने में स्वर मिलाती ----- 


" कच्चे नीम की निंबौरी 

  सावन जल्दी अइयो रे !"


उसके हाथ काम नहीं करते | परन्तु, इससे इला सचानी जरा भी नहीं घबराती है | उसने अपनी अपंगता को स्वीकार किया है | हाथ से करने वाले तमाम कामों को पैरों से करने की कोशिश करती रहती है | भोजन करना, दूसरों के बाल बनाना, फर्श बुहारना, कपड़े धोना, तरकारी काटना, तख्ती पर लिखना जैसे काम उसने पैरों से करना सीख लिया है | 


इला ने एक स्कूल में दाखिला भी ले लिया है | पहले तो सभी उसकी सुरक्षा और उसके काम की गति को लेकर काफी चिंतित रहते थे | लेकिन अब जिस फुर्ती से इला कोई काम करती है, उसे देखकर सभी हैरान रह जाते हैं | कभी-कभी किसी काम में परेशानी जरूर आती थी, लेकिन इला ने इन परेशानियों के आगे कभी घुटने नहीं टेका | 


जहां चाह वहां राह से हमें क्या शिक्षा मिलती है? - jahaan chaah vahaan raah se hamen kya shiksha milatee hai?
 जहाँ चाह वहाँ राह जहाँ चाह वहाँ राह लेख के मुताबिक, इला ने दसवीं कक्षा तक पढ़ाई भी की | परन्तु, दसवीं की परीक्षा पास नहीं कर पाई क्योंकि वह दिए गए समय में लिखने का काम पूरा नहीं कर पाई थी | समय रहते अगर उसे यह मालूम हो जाता कि उसे ऐसे व्यक्ति की सुविधा मिल सकती थी जो परीक्षा में उसके लिए लिखने का काम कर सके तो शायद उसे परीक्षा में कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता था | उसे इस बात का बहुत अफ़सोस है | 


प्रस्तुत पाठ के अनुसार, इला की माँ और दादी कशीदाकारी करती थीं | इला उन्हें सुई में रेशम पिरोने से लेकर बूटियाँ उकेरते हुए देखती रहती थी | एक दिन इला सचानी ने भी अपनी दादी और माँ की तरह कशीदाकारी करने की ठान ली, वह भी पैरों से | दोनों अंगूठों के बीच सुई थामकर कच्चा रेशम पिरोने जैसा कठिन कार्य उसने काफी धैर्य, आत्मविश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति से करना शुरू कर दिया था | पन्द्रह-सोलह साल के होते-होते इला काठियावाड़ी कशीदाकारी में महारत हासिल कर चुकी थी | किस वस्त्र पर किस तरह के नमूने बनाए जाएँ, कौन-से रंगों से नमूना खिल उठेगा और टाँके कौन-से लगेंगे | यह सब वह अच्छी तरह समझ गई थी | 


एक समय ऐसा भी आया कि उसके द्वारा काढ़े गए परिधानों की प्रदर्शनी लगी | इन परिधानों में काठियावाड के साथ-साथ लखनऊ और बंगाल की भी झलक थी | उसने पत्तियों को चिकनकारी से सजाया था | डंडियों को कांथा से उभारा था | पशु-पक्षियों की ज्यामितीय आकृतियों को कसूती और जंजीर से उठा रखा था | पारम्परिक डिज़ाइनों में यह नवीनता सभी को ख़ूब भाई | 


इला के पांव अब रुकते नहीं हैं | उसकी आँखों में चमक और होंठों पर मुस्कान विराजमान है | वह दृढ़ आत्मविश्वास लिए सुनहरी रूपहली बूटियाँ उकेरते थकती नहीं है | 


इस प्रकार इला सचानी अपंग होते हुए भी अपंगता की भावना से ख़ुद को दूर रखा | ‘जहाँ चाह वहाँ राह’ जैसे शीर्षक को चरितार्थ किया है | बेशक, वह सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है...|| 


जहाँ चाह वहाँ राह पाठ का उद्देश्य 

जीवन में चाहे लाख कठिनाइयाँ या विपत्तियाँ आए, पर हमें नहीं घबराना चाहिए | उनका डटकर सामना करना चाहिए | सदा सकारात्मक रहना चाहिए और दृढ इच्छाशक्ति से हर असम्भव को सम्भव बनाने का निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिए | 



जहाँ चाह वहाँ राह के प्रश्न उत्तर

प्रश्न-1 इला को लेकर स्कूल वाले चिंतित क्यों थे ? क्या उनका चिंता करना सही था या नहीं ? अपने उत्तर का कारण लिखो | 


उत्तर- पाठ के अनुसार इला एक अपंग लड़की थी | इसलिए स्कूल वाले इला की सुरक्षा और उसके काम करने की धीमी गति को लेकर चिंतित थे | उनका चिंता करना भी सही था क्योंकि ऐसे बच्चे अपनी सुरक्षा खुद नहीं कर पाते हैं और परीक्षा के समय जल्दी लिखने में उनको परेशानी भी होती है | 


प्रश्न-2 इला की कशीदाकारी में खास बात क्या थी ?


उत्तर- इला की कशीदाकारी में काठियावाड़ के साथ-साथ लखनऊ और बंगाल की भी झलक मौजूद थी | उसने पत्तियों को चिकनकारी से सजाया था | डंडियों को कांथा से उभारा था | पशु-पक्षियों की ज्यामितीय आकृतियों को कसूती और जंजीर से उठा रखा था | पारम्परिक डिज़ाइनों में यह नवीनता सभी को ख़ूब भाई थी | इसलिए हम कह सकते हैं कि इला की कशीदाकारी में खास बात थी | 


प्रश्न-3 क्या इला अपने पैर के अँगूठे से कुछ भी करना सीख पाती, अगर उसके आस-पास के लोग उसके लिए सभी काम स्वयं कर देते और उसको कुछ करने का मौका नहीं देते ?


उत्तर- अगर इला के आसपास के लोग उसका सभी काम कर देते या उसे कोई भी काम करने का मौका नहीं देते, तो उसके मन में काम करने की इच्छा ही नहीं जागती | वह दृढ आत्म विश्वासी नहीं बन पाती | इस तरह वह हमेशा के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाती | 


प्रश्न-4 इस लेख को पढ़ने के बाद क्या तुम्हारी सोच में कुछ बदलाव आए ?


उत्तर- इस लेख को पढ़ने के बाद हमारी सोच में बदलाव आना स्वाभाविक है | एक अपाहिज या अपंग को कभी कमज़ोर या लाचार नहीं समझाना चाहिए | 


वे अगर दृढ़ संकल्प कर लें तो हर काम करने में सक्षम हो सकते हैं | हमें अपनी कमियों का रोना रोने के बजाय उन कमियों को दूर करने की निरन्तर कोशिश करना चाहिए | सदा सकारात्मक रहना चाहिए | 

जहाँ चाह वहाँ राह पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

वह हाथ से करने वाले सभी कामों को पैरों से करने की कोशिश करती रहती है। वह भोजन करना, दूसरों के बाल बनाना, फर्श बुहारना, कपड़े धोना, तरकारी काटना, तख्ती पर लिखना आदि सारे काम पैरों से करना सीख चुकी है। इला ने एक स्कूल में दाखिला भी ले लिया है । वहां भी सभी लोग उसकी फुर्ती को देखकर हैरान रह जाते हैं ।

जहां चाह वहां राह से आप क्या समझते हैं?

अर्थ (Meaning) 'जहाँ चाह, वहाँ राह' यह कहावत कहती है कि यदि वास्तव में कोई कुछ हासिल करना चाहता है, तो वह इसे प्राप्त करने के तरीके खोजता रहेगा और अंत में सफल होकर ही रहेगा। अगर आप किसी चीज को पाने के लिए सख्ती से लगे हुए हैं और पूरी तरह से प्रयास करते हैं तो आप सभी कठिनाइयों को पार कर आखिर में सफल हो ही जाते हैं

राह का वाक्य क्या होगा?

करोंडों गरीब लोगों की राह में।

लीला की कशीदाकारी में खास बात क्या थी?

इला की कशीदाकारी में खास बात क्या थी? उत्तर: इला की कशीदाकारी में काठियावाड़ के साथ-साथ लखनऊ और बंगाल की भी झलक थी। उसने काठियावाड़ी | टॉकों के साथ-साथ और कई टाँके भी इस्तेमाल किए थे।