प्रस्तावना- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा समाज में रहते हुए वह दिन भर अपने कर्तव्यों को पूरा करने में व्यस्त रहता है। ये व्यस्तताएँ उसके तन के साथ मन को भी थका देती है। इसी थकान को दूर करने, नीरसता को सरसता में बदलने तथा मन को प्रफुल्ल करने के लिए मानव आदिकाल से ही मनोरंजन की खोज करता आया है। इस प्रकार जीवन में एक परिवर्तन तथा सार्थकता लाने के लिए मनोरंजन के नए-नए साधनों का आविष्कार हुआ। Show मनोरंजन का तात्पर्य एवं उपयोगिता- मनोरंजन शब्द दो शब्दों को मिलाने से बना है- मनः + रंजन, जिसका अर्थ है मन का रंजन, अर्थात् मन का आनन्द । मनोरंजन से हास्य भी उत्पन्न होता है तथा हास्य से मनुष्य की आयु में वृद्धि होती है तथा चेहरे पर भी रौनक आती है। मनोरंजन के अभाव में जीवन का सन्तुलन बिगड़ जाता , जिससे स्वभाव में नीरसता, चिड़चिड़ापन तथा रुखाई आ जाती है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि यदि तन के लिए भोजन आवश्यक है तो मन के लिए मनोरंजन भी उतना ही जरूरी है। प्रत्येक मनुष्य को अपने व्यस्त जीवन में से कुछ क्षण अपने मनोरंजन के लिए भी अवश्य निकालने चाहिए। प्राचीनकालीन मनोरंजन के साधन- प्रीचनकाल में भी मानव मनोरंजन करता था परन्तु उस समय मनोरंजन के साधन बहुत सीमित एवं सरल थे। प्राचीनकाल में मनुष्य आखेट, मल्लयुद्ध, कुश्ती, कथा-कहानी सुनाना, घुड़सवारी, धार्मिक स्थानों का भ्रमण, खेल-तमाशे, मेले, नृत्य, संगीत आदि के रूप में मनोरंजन करता था। इसके अतिरिक्त कठपुतलियों का नृत्य, नौटंकियाँ, रासलीला, रामलीला आदि भी मनुष्य का मनोरंजन करते थे। पहले समय में बच्चे भी आपस में गिल्ली डंडा, गेंद, गिट्टे, रस्सा आदि कूदकर अपना दिल बहला लेते थे। आधुनिक काल में मनोरंजन के साधन- आज जमाना बदल चुका है। विज्ञान की प्रगति ने मनोरंजन को मनुष्य की आवश्यकता बना दिया है। पहले व्यक्ति इतना व्यस्त नहीं था, इसलिए यदि वह आपस में एक-दूसरे से बातें भी कर लेता था तो उसका मन हल्का हो जाता था, परन्तु आज के व्यस्त जीवन में किसी के पास भी समय नहीं है इसलिए आज हम ऐसा मनोरंजन चाहते हैं तो कम-से-कम समय ले, साथ में हमें नई जानकारियाँ भी दे सके। अतः विज्ञान ने हमारे लिए रेडियो, सिनेमा, चलचित्र, दूरदर्शन, वीडियोगेम, इन्टरनेट आदि मनोरंजन के अनेक साधनों का आविष्कार कर डाला। इन सभी में टेलीविजन सबसे सस्ता एवं सरल मनोरंजन का साधन है। टेलीविजन पर हर आयु, हर जाति, हर वर्ग के लोगों की रुचि के कार्यक्रम आते हैं। यदि बच्चों के लिए कार्टूनों की भरमार होती है, तो महिलाओं के लिए सास-बहू धारावाहिको की, यदि बुजुर्गों के लिए धार्मिक कार्यक्रम आते हैं तो युवाओं के लिए भी फिल्मों तथा खेल-कूद सम्बन्धित कार्यक्रमों की कोई कमी नहीं है। ये सभी कार्यक्रम घर बैठे मनोरंजन करने के साथ-साथ ज्ञानवर्धन भी करते हैं। नृत्य, संगीत, काव्य गोष्ठियाँ तथा रंगमंचीय नाटक भी मनोरंजन के आधुनिक साधन हैं। आज के इन मनोरंजनों का हम घर बैठे ही आनन्द ले सकते हैं, जबकि कुछ के लिए हमें घर से बाहर जाना पड़ता है या फिर मित्रों के समूह की भी आवश्यकता होती है। घर के बाहर मनोरंजन के साधन- क्रिकेट, हॉकी, बालीबॉल, फुटबॉल, बॉस्केटबॉल, बैडमिंटन, कबड्डी आदि खेलों को खेलने के लिए लम्बे-चौड़े मैदान की आवश्यकता होती है, साथ ही कुछ मित्रों का होना भी जरूरी है। इन खेतों द्वारा मनोरंजन के साथ-साथ शारीरिक विकास भी होता है। विद्यार्थियों एवं किशोरों के लिए ये अत्यन्त लाभदायक है। बच्चों के लिए सर्कस, चिड़ियाघर की सैर, प्रदर्शनियाँ आदि भी मनोरंजन के अच्छे साधन हैं। युवकों के लिए पर्वतारोहण, तैराकी, घुड़सवारी, ऊँची-लम्बी कूद आदि भी मनोरंजन के साथ-साथ स्वास्थ्यवर्धन भी करते है। घर के अन्दर मनोरंजन के साधन- घर के अन्दर खेले जाने वाले खेलों जैसे कैरमबोर्ड, लूडो, ताश, शतरंज, व्यापार आदि भी मनोरंजन के अच्छे साधन हैं। इन खेलों से मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धन भी होता है तथा पारस्परिक मैत्री भाव भी बढ़ता है। अच्छे साहित्य का अध्ययन, लेखन-कला आदि भी मनोरंजन करते हैं। घर बैठकर दूरदर्शन पर अच्छे-अच्छे कार्यक्रम देखना भी सुखद अहसास है, जिससे हमारी आँख एवं कान दोनों ज्ञानेन्द्रियाँ आनन्दित होती हैं। इसके अतिरिक्त आपस में ही चुटकुले, कहानी, कविता आदि सुनाकर भी भरपूर मनोरंजन किया जा सकता है। रुचिनुसार मनोरंजन : सबसे उत्तम- अपनी रुचि में अनुसार कार्य करना सबसे उत्तम मनोरंजन है। किसी को बागवानी करने में आनन्द मिलता है तो किसी को सुबह-शाम भ्रमण करने से प्रसन्नता हासिल होती है। बच्चे भी टिकट-संग्रह, सिक्कों के संग्रह आदि करने में रुचि लेते हैं। इसके अलावा बच्चों को साइकिल चलाना भी अच्छा लगता है। इस प्रकार अपनी रुचिनुसार कार्य करने में ही आनन्द की अनुभूति होती है और वही असली मनोरंजन है, जब तन एवं मन दोनों प्रफुल्लित होकर हल्कापन महसूस करें। उपसंहार- इसके अतिरिक्त भी किसी को फोटो खींचने, घर को सजाने, सिलाई कढ़ाई, बुनाई करने, खाना बनाने में ही आनन्द मिलता है। मनोरंजन चाहे जिस रूप में भी किया जाए, उससे आनन्द मिलना चाहिए, न कि थकावट महसूस हो। मनोरंजन सुखी जीवन के लिए वरदानस्वरूप है। मनोरंजन में विषाद के क्षणों को भी खुशी में परिवर्तित करने की क्षमता होती है। मनोरंजन शरीर में नवीन स्फूर्ति का संचार करता है तथा हमारी कार्यक्षमता को बढ़ाता है। हाँ मनोरंजन अनुचित नहीं होना चाहिए क्योंकि अनुचित मनोरंजन से समय व धन दोनों की हानि होती है। मनोरंजन की उपयोगिता तभी है जब वह शुद्ध, हास्यवर्द्धक एवं प्रसन्न करने वाला हो। Important Links
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