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क्या हैं मानसिक रोग के लक्षण? कब देते हैं शॉक थेरेपी?
3 अप्रैल 2017 इमेज स्रोत, Thinkstock पिछली बार आप डॉक्टर के पास किस वजह से गए थे? बीमारियों और अस्पताल का ज़िक्र आते ही दिमाग में जो पहली तस्वीर आती है, वो अक्सर खांसते-छींकते बुखार या फिर अस्पताल के बिस्तर पर पड़े मरीज़ की होती है. क्या आपके ज़ेहन में डिप्रेशन के किसी मरीज की तस्वीर उभरी, जो काउंसलिंग के लिए साइकॉलोजिस्ट के पास आया हो या बाइपोलर डिसॉर्डर का कोई मरीज जो सायकाइट्रिस्ट के कमरे के बाहर अपने नंबर का इंतजार कर रहा हो? मेंटल हेल्थकेयर बिल-2016अभी कुछ दिनों पहले ही लोकसभा में मेंटल हेल्थकेयर बिल-2016 पास हुआ, जो मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों को सुरक्षा और इलाज का अधिकार देता है. यह कानून अपने आप में काफी प्रोग्रेसिव है, जो मरीजों को सशक्त बनाता है. बिल के प्रावधानों के मुताबिक, अब मानसिक बीमारियों को भी मेडिकल इंश्योरेस में कवर किया जाएगा. कोई भी स्वस्थ व्यक्ति अपना नॉमिनी चुन सकता है, जो मानसिक तकलीफ़ की हालत में उसकी देखभाल करेगा. गंभीर मानसिक परेशानी से गुज़र रहे व्यक्ति को परिवार से दूर या अलग-थलग नहीं किया जा सकेगा. न ही उसके साथ किसी तरह की ज़बरदस्ती की जा सकेगी. अपराध के दायरे से बाहर खुदकुशीसबसे ज़रूरी बात. अब खुदकुशी की कोशिश को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया है. यानी अपनी ज़िंदगी ख़त्म करने की कोशिश करने वालों को जेल नहीं भेजा जाएगा बल्कि उन्हें डॉक्टरी मदद दिलाई जाएगी. आखिर हम मानसिक परेशानियों को नकारने की कोशिश क्यों करते हैं? क्या दिमाग हमारे शरीर का हिस्सा नहीं है? सवाल सीधा है लेकिन जवाब उलझे हुए. हमने बचपन से कभी इन बीमारियों के बारे में बात होते सुना ही नहीं, किताबों में भी नहीं पढ़ा. हमने बस फिल्मों में देखा कि कोई पागल लड़की है, जिसे पागलखाने में क़ैद कर दिया गया है. उसके बाल छोटे कर दिए गए हैं. उसे इलेक्ट्रिक शॉक दिया जा रहा है और वह चीख रही है. विद्यासागर इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरोसाइंसेज (VIMHANS) की सायकाइट्रिस्ट डॉ. सोनाली बाली कहती हैं, ''लोगों के मन में दवाइयों को लेकर भी बहुत सी गलत धारणाएं हैं. उन्हें लगता है कि उनके दिमाग में केमिकल ठूंसे जा रहे हैं या उन्हें दवाइयों का आदी बनाया जा रहा है जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है.'' आपने किसी ऐसे इंसान को देखा होगा, जो अपने आप से बातें करता रहता है या फिर कोई ऐसा जो हमेशा मरने की बातें करता है. हर छोटी-छोटी बात पर रो देता है. आप उन खुशमिजाज़ और मस्तमौला लोगों से भी मिले होंगे, जिनकी खुदकुशी की ख़बर पर आपको यकीन नहीं होता. क्या हैं मानसिक बीमारी के लक्षण?VIMHANS में प्रैक्टिस करने वाली साइकॉलजिस्ट डॉ. नीतू राणा कहती हैं, ''इन सभी चीजों को रोका जा सकता है. हालात संभाले जा सकते हैं. इलाज मुमकिन है. ज़रूरत है बीमारियों को पहचानने की.
अगर आप इन बातों के अलावा गूगल पर खुदकुशी के तरीके सर्च करते हैं तो आपको तुरंत मदद लेनी चाहिए.'' कैसे होगा इलाज?आपका इलाज सिर्फ थेरेपी या काउंसलिंग से होगा या फिर दवाइयों की ज़रूरत भी पड़ेगी, इसका फैसला डॉक्टर करेगा. अगर बीमारियां गंभीर हैं, मसलन किसी को अजीबों-गरीब आवाज़ें सुनाई पड़ रही हैं. वह कुछ ऐसा देख या सुन रहा है जो दूसरे नहीं, या अगर कोई खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है तो ऐसे में परिवार और दोस्तों की ज़िम्मेदारी है कि वे उसे डॉक्टर के पास ले जाएं क्योंकि ऐसी हालत में मरीज कभी खुद स्वीकार नहीं करेगा कि वह बीमार है. डिप्रेशन में इंसान क्यों नहीं रह पाता है खुश?एक गलत धारणा यह भी है कि डिप्रेशन या दिमागी तकलीफें सिर्फ उसे ही होती हैं, जिसकी जिंदगी में कोई बहुत बड़ा हादसा हुआ हो या जिसके पास दुखी होने की बड़ी वजहें हों. लोग अक्सर पूछते हैं, ''तुम्हें डिप्रेशन क्यों है? क्या कमी है तुम्हारी लाइफ में?'' यह पूरी तरह से गलत है. डिप्रेशन के दौरान इंसान के शरीर में खुशी देने वाले हॉर्मोन्स जैसे कि ऑक्सिटोसीन का बनना कम हो जाता है. यही वजह है कि डिप्रेशन में आप चाहकर भी खुश नहीं रह पाते. इसे दवाइयों, थेरेपी और लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर बेहतर किया जा सकता है. कब दी जाती है शॉक थेरेपी?रही बात फिल्मों में दिखाई जाने वाली शॉक थेरेपी की, तो डॉ. नीतू मानती हैं, ''इसमें हायतौबा मचाने की ज़रूरत नहीं है. शॉक थेरेपी तब दी जाती है जब मरीज पर दवाइयों का असर न हो रहा हो. अगर कोई अपनी जान लेने पर तुला है और उसे तुरंत काबू में लाना पड़े, तब ही इसकी ज़रूरत पड़ सकती है.'' डॉ. सोनाली कहती हैं, ''हम मानसिक बीमारियों से ग्रसित गर्भवती महिलाओं को भी शॉक थेरेपी देते हैं, क्योंकि कुछ दवाइयों के साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं. इससे पता चलता है कि यह पूरी तरह सेफ है.'' इमेज स्रोत, Science Photo Library डॉ. सोनाली का मानना है कि मेंटल हेल्थकेयर बिल पास होने के बाद डॉक्टरों को भी अपना काम करने में आसानी होगी. मरीज की बीमारियां इंश्योरेंस में कवर होंगी तो उसे पैसों की फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं होगी. उसके साथ कोई ज़बरदस्ती नहीं की जाएगी और ज़रूरत पड़ने पर वह कानूनी मदद भी ले सकेगा. तो अगर अब आपको इनमें से कोई भी लक्षण नजर आएं, खुद में या किसी और में तो उसे हल्के में मत लीजिए. न ही 'मूड स्विंग' कहकर टालने की कोशिश कीजिए. सायकाइट्रिस्ट के पास जाने के लिए 'पागल' होने की ज़रूरत नहीं होती. न ही सायकाइट्रिस्ट के पास जाने से आप 'पागल' कहलाएंगे. हेल्थ और बीमारियों को इस नज़रिए से भी देखना शुरू करिए, क्योंकि दिमाग भी आपका है और शरीर भी आपका. (बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.) मानसिक बीमारी का मूल कारण क्या है?मानसिक विकार कोई रोग नहीं हैं बल्कि बुरी आत्माओं की वजह से पैदा होते हैं।
मानसिक बीमारी के 5 लक्षण क्या हैं?DOWNLOAD NOW.... मनोभ्रंश रोग. ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार के लक्षण. जुनूनी बाध्यकारी विकार के लक्षण ओसीडी अक्सर कीटाणुओं के डर या चीज़ों को रखने के एक ख़ास तरीके जैसे विषयों पर केंद्रित होता है. ... . द्विध्रुवी विकार. स्वलीनता के लक्षण. मनोविदलाता. दुश्चिंता. मानसिक रोगी की क्या पहचान होती है?कोई भी स्वस्थ व्यक्ति अपना नॉमिनी चुन सकता है, जो मानसिक तकलीफ़ की हालत में उसकी देखभाल करेगा. गंभीर मानसिक परेशानी से गुज़र रहे व्यक्ति को परिवार से दूर या अलग-थलग नहीं किया जा सकेगा. न ही उसके साथ किसी तरह की ज़बरदस्ती की जा सकेगी.
मानसिक रोग कितने दिनों में ठीक होता है?सवाल- पढ़ाई में मन नहीं लगता है। बहुत कोशिश के बाद भी कुछ याद नहीं होता है।
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