मनोविज्ञान का विषय क्षेत्र क्या है? - manovigyaan ka vishay kshetr kya hai?

मनोविज्ञान का क्षेत्र 

(Scope of Psychology)

 मनोविज्ञान,  सभी प्राणीमात्र के सम्पूर्ण व्यवहार के अध्ययन से अपना सम्बन्ध रखता है। अध्ययन किया जाने वाला यह क्षेत्र अपने आपमें काफी विस्तृत है। इसका अनुमान जिसके व्यवहार का मनोविज्ञान में अध्ययन किया जाता है और जिस प्रकार के व्यवहार का अध्ययन होता है, इन दोनों पक्षों की विस्तृतता की व्याख्या के आधार पर सहज ही लगाया जा सकता है। 

अगर पहले पक्ष को लिया जाए तो हमें यह समझने में कोई कठिनाई नहीं होगी कि यह पक्ष अपने आप में बहुत विस्तृत है | सभी प्रकार के प्राणी वर्ग में मानव के अतिरिक्त पश-पक्षी और उससे भी आगे वनस्पति जगत से सम्बन्धित सभी पेड़-पौधे इत्यादि शामिल किये जा सकते हैं। पौधे भी सुख-दुःख का अनुभव करते हैं, उनमें भी संवेदना और प्रत्यक्षीकरण की क्रियाएँ हो सकती हैं। इस तरह की बातों को सत्यता में बदलने वाले भारतीय वैज्ञानिक श्री जगदीश चन्द्र बसु का नाम तो आप सभी ने सुना ही होगा। तब से आज तक इस क्षेत्र के शोध कार्य में काफी प्रगति हो चुकी है जिसके आधार पर वनस्पति वर्ग के व्यवहार का अध्ययन भी मनोविज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में पूरा स्थान प्राप्त कर चुका है। 

_ मानव व्यवहार के अध्ययन की जब बात की जाती है तब इसका अर्थ किसी प्रकार के विशेष मानव वर्ग न हो कर, सम्पूर्ण मानव वर्ग से लिया जाता है। कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, वर्ग, संस्कृति, लिंग और राष्ट्रीयता से अपना सम्बन्ध रखता हो, सभी के जन्म से लेकर मृत्यु तक की सभी अवस्थाओं  के  व्यवहार का अध्ययन करना मनोविज्ञान के क्षेत्र में आता है। 

__ दूसरे पक्ष अर्थात् व्यवहार शब्द की विस्तृतता के बारे में सोचा जाए तो भी जैसा कि व्यवहार शब्द के अर्थ की व्याख्या करते हुए इस अध्याय में पहले चर्चा की जा चुकी है हम यह निश्चिततापूर्वक कह सकते हैं कि सम्पूर्ण व्यवहार में व्यवहार के विभिन्न स्वरूपों एवं पक्षों जैसे- (i) चेतन, अर्धचेतन एवं अचेतन (ii) आंतरिक एवं बाह्य और (iii) ज्ञानात्मक, क्रियात्मक एवं भावात्मक आदि का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। व्यवहार के इस विस्तृत रूप में प्राणी वर्ग द्वारा जो कुछ भी सम्पन्न होता है उसका अध्ययन किया जाना मनोविज्ञान के कार्यक्षेत्र में आता है। ___ उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट हो सकता है कि मनोविज्ञान का क्षेत्र असीमित है क्योंकि न तो गोचर एवं अगोचर प्राणी वर्ग की संख्या ही सीमित है और न उसके द्वारा सम्पादित होने वाली व्यवहारजन्य क्रियाएँ ही। असीमित प्राणी वर्ग द्वारा असीमित प्रकार की व्यवहारजन्य क्रियाओं के अध्ययन करने वाले विषय-मनोविज्ञान के क्षेत्र को शब्दों में बाँधना इस दृष्टि से कठिन ही नहीं, असम्भव भी है। इसके अध्ययन के द्वारा प्रतिपादन सामग्री के वर्णन और अध्ययन किए जाने वाले तरीकों की चर्चा की जाए तो यह और भी कठिन कार्य होगा। फिर अध्ययन के उपरान्त परिणामस्वरूप जो कुछ भी प्राप्त होता है, उसके स्वरूप में भी तो परिवर्तन आता रहता है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में आए दिन होने वाले अनुसंधान, मनोविज्ञान विषय के अध्ययन में प्रयुक्त प्रकरणों और विषय सामग्री के कलेवर को भी निरन्तर परिमार्जित एवं संशोधित करते रहते हैं। इस प्रकार मनोविज्ञान जैसे विस्तृत और प्रवाहशील विषय के क्षेत्र की व्याख्या कर उसको एक सीमित परिधि में बाँधना कदापि उचित नहीं है। यह कहना और समझना ही अधिक उपयक्त है कि मनोविज्ञान का क्षेत्र संकुचित और सीमित न हो कर सागर की तरह अथाह और विशाल है। हाँ, विषय के अध्ययन अध्यापन और उपयोग की दृष्टि से इसे कुछ विशेष शाखाओं में अवश्य बाँटा जा सकता है। 

इस रूप में मनोविज्ञान के भी अन्य विज्ञानों की तरह दो मुख्य पहलू हो सकते हैं, एक सैद्धान्तिक (Theoret और दूसरा व्यवहारात्मक (Applied)। सैद्धान्तिक पहलू के अन्तर्गत जहाँ मनोविज्ञान में व्यवहार के अध्ययन से सर सिद्धान्तों का निरूपण किया जाता है, वहाँ व्यवहारात्मक पहलू में इन नियमो तथा सिद्धान्तों को क्रियात्मक व्यवहार में लाने की चेष्टा की जाती है। सिद्धान्त और व्यवहार दोनों पक्षों को ध्यान में रखते हुए मनोविज्ञान के को विभिन्न शाखाओं में बाँटा जा सकता है। इनमें से कुछ प्रमुख शाखाओं की चर्चा हम नीचे कर रहे हैं: 

1. सामान्य मनोविज्ञान (General psychology)-

मनोविज्ञान की इस शाखा में मनोविज्ञान के सामान्य कर समावेश होता है। एक तरह से मनोविज्ञान की सभी शाखाओं तथा क्षेत्रों से इस प्रकार के मनोविज्ञान का सामान्य सम्त होता है क्योंकि इसमें सामान्य रूप से मनोविज्ञान के सभी प्रकार के सिद्धान्तों तथा नियमों का वर्णन तथा व्यारया का जाती है। इसमें सामान्य की ही चर्चा होती है विशेष की नहीं, इस दृष्टि से इसका सम्बन्ध सामान्य र (Normal people) के सामान्य व्यवहार (Normal behaviour) के निरूपण से ही होता है।

 2. असामान्य मनोविज्ञान (Abnormal psychology)

-मनोविज्ञान की इस शाखा में ऐसे सभी व्यक्तियों के व्यवहार और मनोदशा का अध्ययन किय जाता है जो किसी कारणवश सामान्य व्यवहार (Normal behaviour) करने में असमर्थ हात है । असामान्य व्यवहार क्या होता है, असामान्य व्यक्ति किस प्रकार के व्यवहार एवं व्यक्तित्व गुणों से यक्त होने हैं, उनका इस प्रकार का व्यवहार किस कारण बन जाता है आदि बातों का अध्ययन और विवेचना करना ही असामान्य मनोविज्ञान का प्रमुख उद्देश्य होता है।

 3. नैदानिक मनोविज्ञान (Clinical psychology)-

नैदानिक मनोविज्ञान का कार्य असामान्य मनोविज्ञान के बाद ही शुरु होता है। असामान्य मनोविज्ञान हमें यह बताता है कि किसी व्यक्ति के व्यवहार में असामान्यतया (Abnormality) से क्या अभिप्राय है तथा सामान्य रूप से असामान्य व्यवहार के पीछे क्या परिस्थितियाँ, तत्त्व तथा कारण कार्य करते हैं। इस प्रकार का ज्ञान नैदानिक मनोविज्ञान का आधार बनता है। जब कोई व्यक्ति असामान्यता का शिकार होता है और अपने तथा अपने वातावरण से समायोजित नहीं हो पाता तो उस अवस्था में वह मानसिक व्याधियों, रोगों तथा दुर्बलताओं से घिर जाता है। नैदानिक कुसमायोजन के कारणों एवं परिस्थितियों का उचित निदान करके उसे समायोजन में सहायता करने तथा उसके व्यवहार में उचित सुधार लाने का उत्तरदायित्व अब नैदानिक मनोविज्ञान द्वारा निभाया जाता है। इसलिए इसे प्रायः उपचारात्मक मनोविज्ञान भी कहा जाता है क्योंकि इससे मानसिक व्याधियों से युक्त असामान्य व्यवहार को सामान्य बनाने जैसा उपचारात्मक कार्य करने की भूमिका निभाई जाती है। इस प्रकार के मनोविज्ञान का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों तथा विद्यार्थियों को नैदानिक मनोवैज्ञानिक (Clinical Psychologist) कहा जाता है और उनकी नियुक्ति मानसिक रोगों की चिकित्सा करने वाले विभागों तथा संस्थानों में की जाती है।

 4. शारीरिक मनोविज्ञान (Physiological psychology)-

मनोविज्ञान की इस शाखा में इस बात की जानकारी से सम्बन्धित बातों का अध्ययन किया जाता है कि व्यवहार का शारीरिक संरचना तथा कार्य प्रणाली से किस तरह का सम्बन्ध होता है। दूसरे शब्दों में मानव व्यवहार के शारीरिक आधार का अध्ययन करना ही इस शाखा का प्रमुख उद्देश्य होता है। 

5. सामाजिक मनोविज्ञान (Social psychology)

-इसमें व्यक्ति के व्यवहार का उसके सामाजिक परिवेश के संदर्भ में समूह या सामाजिक दायरे के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है।

 6. औद्योगिक मनोविज्ञान (Industrial psychology)-

यह मानव व्यवहार का औद्योगिक परिस्थितियों में किया जाने वाला अध्ययन है। आपसी सम्बन्धों को ध्यान में रख कर औद्योगिक क्षमता बढ़ाना इसका उद्देश्य होता है। 

7. अपराध मनोविज्ञान (Crime psychology)-

व्यक्तियों की मनोदशा और व्यवहार का अध्ययन कर अपराधी का पता लगाना और अपराधी के अपराध करने के मूल में उपस्थित कारणों का पता लगा कर उसके आचरण में सुधार लान का प्रयत्न यह शाखा करती है। 

8. प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Experimental psychology)-

इसमें मनोविज्ञान के प्रयोगों द्वारा विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्ति की मनोदशा और व्यवहार का अध्ययन करके मनोवैज्ञानिक नियम एवं निष्कर्ष निकाले जाते हैं अथवा मनोवैज्ञानिक सैद्धान्तिक पक्ष की पुष्टि की जाती है।

 9. बाल मनोविज्ञान (Child psychology)-

इसमें बाल्यावस्था में होने वाले क्रमिक विकास, व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं और मनोदशा का अध्ययन किया जाता है। 

10. किशोर मनोविज्ञान (Adolescent psychology)-

इसमें किशोरावस्था में होने वाले विकास, व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं, समायोजन सम्बन्धी कठिनाइयों आदि का अध्ययन किया जाता है। 

11. प्रौढ़ मनोविज्ञान (Adult psychology)-

प्रौढ़ों की व्यवहार सम्बन्धी समस्याओं, उनमें विकास एवं वृद्धि सम्बन्धी विशेषताओं, समायोजन सम्बन्धी कठिनाइयों आदि का अध्ययन किया जाता है।

 12. शिक्षा मनोविज्ञान (Educational psychology)-

शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें शिक्षार्थी के व्यवहार का शैक्षिक परिस्थितियों तथा वातावरण में अध्ययन किया जाता है। यह एक प्रकार से सीखने और सिखाने का मनोविज्ञान है जो इस बात की जानकारी देता है कि पढ़ने और पढ़ाने तथा सीखने और सिखाने की क्रिया और परिस्थितियों आदि को किस तरह नियोजित एवं संगठित किया जाये जिससे शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की सर्वोत्तम उपलब्धि संभव हो सके। दूसरे शब्दों में अध्यापकों को ठीक प्रकार से अध्यापन कार्य कर सकने तथा विद्यार्थियों को ठीक प्रकार से शिक्षा प्राप्त करने में मनोविज्ञान की इस शाखा द्वारा उपयुक्त भूमिका निभाने का कार्य किया जाता है। इसके अतिरिक्त अपनी विशेष पाठ्यसामग्री द्वारा शिक्षा मनोविज्ञान, निर्देशन तथा परामर्श प्रदान करने का कार्य भी करता है। इस तरह बालकों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने तथा उन्हें भली-भाँति समयोजित होने में सहायता करने की सफल भूमिका भी शिक्षा मनोविज्ञान द्वारा निभाने का कार्य किया जाता है। 

13. परा मनोविज्ञान (Para psychology)

-मनोविज्ञान की यह एक आधुनिकतम शाखा है। बहुत दूर रहने वाले किसी सदस्य पर कोई विपत्ति आने पर पता लग जाना, आने वाली दुर्घटना का, आनंद की घड़ी का पूर्वानुमान हो जाना, पूर्व जन्म के अनुभवों की याद रहना ऐसी असाधारण गुत्थियाँ हैं जिन्हें सुलझाने का प्रयत्न मनोविज्ञान की इस शाखा द्वारा किया जाता है। राजस्थान विश्वविद्यालय का परा मनोविज्ञान विभाग इस क्षेत्र में काफी कुछ कर रहा है।

 14. विकासात्मक मनोविज्ञान (Developmental psychology)-

मनोविज्ञान की इस शाखा में गर्भाधान की क्रिया (Conception) से प्रारम्भ कर, बालक के जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक होने वाली सभी प्रकार की वृद्धि और विकास का क्रमबद्ध अध्ययन करने का कार्य किया जाता है। विकास के किस स्तर पर व्यक्ति के विभिन्न पक्षों या व्यवहार जन्य क्रियाओं का क्या रूप होता है, इस बात की सामान्य जानकारी प्रदान करना ही इस शाखा का प्रमुख उद्देश्य होता है।

 15. पश मनोविज्ञान (Animal psychology)-

पशु मनोविज्ञान वह शाखा है जिसमें पशुओं के व्यवहार का अध्ययन नियन्त्रित परिस्थितियों में किया जाता है। थोर्नडाइक द्वारा बिल्ली, पैवलोव द्वारा कुत्ते, स्किनर द्वारा चूहों तथा कबूतरों और कोहलर तथा कोफका आदि मनोवैज्ञानिकों द्वारा चिम्पैन्जियों पर किये जाने वाले प्रयोग तथा परीक्षण इसी प्रकार की मनोवैज्ञानिक शाखा के अन्तर्गत आते हैं। इन प्रयोगों का उद्देश्य जहाँ एक ओर पशु-पक्षी तथा अन्य प्राणी वर्ग के व्यवहार की निश्चित वातावरणजन्य परिस्थितियों के सन्दर्भ में जानकारी लेना होता है, वहीं दूसरी ओर एक-दूसरे के व्यवहारजनित अनुक्रियाओं की तुलना करना भी होता है। इस प्रकार के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा सामान्यीकरण का रास्ता पकड़ कर मानव व्यवहार को समझने की चेष्टा करना भी पशु-पक्षियों पर जैसे-चिपैंजी, गोरिल्ला, वनमानुष पर किये गये अध्ययनों के द्वारा मानव व्यवहार की गुत्थियों को सुलझाने में मदद मिल सकती है। स्नायु संस्थान, मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी आदि पर चोट लगने या उनके क्षतिग्रस्त, रोगग्रस्त आदि होने पर व्यवहार किस तरह परिवर्तित होता है, यौन व्यवहार पर संवेग, प्रतिकल तथा अनुकूल परिस्थितियों आदि का क्या प्रभाव पड़ता है दर प्रकार की बातों को जानने तथा समझने में पशु मनोविज्ञान की अध्ययन सामग्री काफी मदद कर सकती है। तुलनात्मक अध्ययन में अपने विशेष योगदान के कारण पशु मनोविज्ञान को कई बार तुलनात्मक मनोनित (Comparative Psychology) का नाम भी दिया जाता है।

 16. संज्ञानात्मक मनोविज्ञान (Cognitive psychology)

 मनोविज्ञान की यह शाखा व्यवहार के अध्ययन में संज्ञाना विकास तथा प्रक्रियाओं को अधिक महत्त्व देती है। मनोविज्ञान की इस शाखा से जुड़े हुए मनोवैज्ञानिक व्यवहार को उद्दीपन-अनुक्रिया (Stimulus Response) जैसी यन्त्र चलित क्रिया नहीं मानते और न इसे आदत (Habitasan अनुबन्धन Conditioning) के प्रतिफल के रूप में स्वीकार करते हैं बल्कि इसे पूरी तरह सोची-समझी ज्ञानात्मक सक्रिया का परिणाम मानते हैं। उनकी दृष्टि में मानव व्यवहार में मस्तिष्क की विकसित शक्तियों, अनुभव, विवेक तथा अन्तःदृष्टि (Insight) का उपभोग होता है तथा इन्हीं के आधार पर निर्णय क्षमता तथा समस्या समाधान योग्यता सम्बनी सज्ञानात्मक व्यवहार के दर्शन मानव व्यवहार में देखने को मिलते हैं। इस प्रकार की व्यवहारजनित बातों का अध्ययन ही संज्ञानात्मक मनोविज्ञान का मुख्य उद्देश्य होता है।

 17. सन्य मनोविज्ञान (Military psychology)-

मनोविज्ञान की इस शाखा में मनोविज्ञान के नियमों एवं सिद्धान्तों का उपयोग सैन्य जगत की गतिविधियों में वांछित परिणाम प्राप्त करने हेतु किया जाता है। सैन्य विज्ञान (Military Science) के विद्यार्थियों को यह एक प्रमुख विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। इसके अन्तर्गत जिन विषयों को लेकर आगे बढ़ा जाता है उनमें से कुछ प्रमुख हैं-सेना के विभिन्न अंगों में सिपाही तथा अफसरों के रूप में योग्य तथा कुशल व्यक्तियों का चुनाव कैसे किया जाए, युद्ध में तथा युद्ध के बाहर जवानों तथा अफसरों के हौंसले कैसे बुलन्द रखे जायें, शत्रु को प्रोपेगंडा तथा अन्य मनोवैज्ञानिक उपायों के द्वारा किस प्रकार शिरकत देने की कोशिश की जाए, अफसरों में कुशल नेतृत्व क्षमता कैसे विकसित की जाए, सैन्य संचालन तथा कुशल प्रबन्ध हेतु क्या कदम उठाये जायें, विषय परिस्थितियों तथा स्थानों में भली-भाँति समायोजित रखने हेतु मनोवैज्ञानिक रूप से क्या उपाय किए जाएँ, इत्यादि इत्यादि। 

18. कानून मनोविज्ञान (Legal psychology)-

मनोविज्ञान की इस शाखा में कानून की दुनिया से सम्बन्धित व्यक्तियों जैसे अपराधी, मुवक्किल (Client), गवाह (Witnesses) आदि के व्यवहार का अध्यन कानून तथा अदालती परिवेश के सन्दर्भ में किया जाता है। यहाँ मनोविज्ञान के नियम तथा सिद्धान्त, अपराधी के अपराधपूर्ण व्यवहार को पहचानने, दी जाने वाली गवाहियों में सत्य-असत्य की पकड़ करने तथा न्यायधीशों को साक्षियों तथा मुकद्दमों से जुड़े हुए व्यक्तियों के व्यवहार के आधार पर मुकद्दमों में सही निर्णय लेने जैसी महत्त्वपूर्ण बातों में सहायक सिद्ध होते हैं। बराई अपराधी में नहीं बल्कि अपराध में होती है, कोई भी अपराधी जन्मजात अपराधी नहीं होता बल्कि परिस्थितियों का शिकार होता है इत्यादि विचारधाराओं को कानूनी दुनिया में समाविष्ट करके उचित सुधारात्मक उपाय करने की बात सामने लाने में मनोविज्ञान ने कानूनी दुनिया की बहुत सहायता की है और इस प्रकार की बातों का विवेचन और अध्ययन भी कानून मनोविज्ञान का विषय होता है।

 19. राजनीतिक मनोविज्ञान (Political psychology)-

मनोविज्ञान की इस शाखा में मनोविज्ञान के सिद्धान्तों तथा तकनीकों का उपयोग राजनीति सम्बन्धी विभिन्न विषयों का अध्ययन करने, राजनीति को व्यावहारिक रूप देने तथा राजनीतिक चालों को चलने और समझने में सहायता करने आदि के रूप में किया जाता है। जनमत क्या है, जनमत को एक विशेष मोड़ कसे दिया जाता है, प्रचार (Propaganda), सुझाव (Suggestion) समह व्यवहार (Group behaviour) आदि बातों का सहारा लेकर जनप्रिय कैसे बना जाता है, कुशल नेतृत्व क्या होता है, किस तरह की बात या व्यवहार से राजनीतिक लाभ उठाये जा सकते हैं, कुशल राजनीतिक बनने के लिए किस प्रकार का व्यवहार व्यक्तित्व गुण अपेक्षित है इत्यादि बातों का समावेश ही इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है। 

20. प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Experimental psychology)-

सामान्य मनोविज्ञान, असामान्य मनोविज्ञान, सामाजिक मनोविज्ञान शारीरिक मनोविज्ञान की भॉति ही प्रयोगात्मक मनोविज्ञान की ऐसी स्वतन्त्र तथा महत्त्वपर्ण शाखा है जिसका अध्ययन और अध्यापन मनोविज्ञान की स्नातक तथा स्नातकोत्तर कक्षाओं में काफी लोकप्रिय है। प्रयोगात्मक मनोविज्ञान जैसा कि नाम से ही आभास होता है मनोविज्ञान की ऐसी शाखा है जिसमें मनोवैज्ञानिक परीक्षणों तथा प्रयोगों को मनोवैज्ञानिक अध्ययन का केन्द्र बनाया जाता है। मनोविज्ञान में ऐसे परीक्षण तथा प्रयोग कैसे किये जाते हैं इनके आधार पर निष्कर्ष निकाल कर मनोवैज्ञानिक सत्यों की खोज कैसे की जाती है अथवा पहले से स्थापित तथ्यों एवं सिद्धान्तों की खोज, उनके उपयोग सम्बन्धी बातों का परीक्षण तथा प्रयोगों द्वारा पुष्टि आदि बातों का अध्ययन और विवेचन इसी शाखा के अन्तर्गत आता है। 

21. स्वास्थ्य मनोविज्ञान (Health psychology)-

मनोविज्ञान की इस शाखा में मनोविज्ञान के नियमों, तथ्यों एवं सिद्धान्तों का प्रयोग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का संरक्षण करने, अस्वस्थता तथा बीमारियों से अपना बचाव करने तथा सभी प्रकार से निरोग तथा सबल बने रहने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त अस्वस्थ एवं बीमारियों से आक्रान्त होने पर किस तरह पुनः अच्छे स्वास्थ्य की ओर लौटा जा सकता है इसके लिये भी उपयुक्त मनोवैज्ञानिक वातावरण तैयार करने में इस प्रकार की शाखा का अध्ययन काफी सहायक होता है। मनोवैज्ञानिक कारण जैसे चिन्ता, भय, निराशा, क्रोध और मानसिक तनाव बीमारियों का कारण कैसे बनते हैं तथा उनसे किस प्रकार दूर रहकर स्वस्थ रहा जाता है आदि ऐसी बातों की विवेचना स्वास्थ्य मनोविज्ञान की परिधि में ही आती है।

 22. क्रीड़ा मनोविज्ञान (Sports psychology)-

व्यवहार को प्रभावित करने में परिवेश या पर्यावरण सम्बन्धी कारकों (Environmental Factors) की क्या भूमिका रहती है तथा इन कारकों पर उचित नियन्त्रण स्थापित करके वैयक्तिक तथा सामूहिक व्यवहार को उपयुक्त बनाने में किस प्रकार सफलता प्राप्त की जा सकती है, इन बातों का वर्णन तथा विवेचना करना ही पर्यावरण मनोविज्ञान का प्रमुख उद्देश्य होता है। अच्छा तथा बुरा भौगोलिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवेश किस प्रकार व्यवहार एवं व्यक्तित्व को अच्छी या बुरी दिशा प्रदान करता है। प्रदूषण सम्बन्धी बातें जैसे-शोर, धुआँ, भीड़-भाड़, विषाक्त गैसें, प्रदूषित जल, खराब मौसम, प्रतिकूल भौगोलिक परिस्थितियाँ तथा अनुपयुक्त घरेलू पारिवारिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक वातावरण तथा सांस्कृतिक प्रदूषण किस प्रकार व्यवहार को विकृत एवं समाज विरोधी के सुधारने में किए गए योगदान की चर्चा इसी प्रकार की शाखा के अन्तर्गत की जाती है। 

23. सामुदायिक मनोविज्ञान (Community psychology)-

प्रत्येक समुदाय का अपना मनोविज्ञान होता है। उस समुदाय में रहने वाले एक विशेष ढंग से व्यवहार करते हैं, उनके समायोजन का अपना एक अलग तरीका होता है। सामुदायिक मनोविज्ञान की जानकारी न केवल उस समुदाय से सम्बन्धित व्यक्तियों, उनके व्यवहार तथा परिवेश को समझने में सहायक सिद्ध हो सकती है बल्कि इससे उनकी प्रगति सम्बन्धी उपायों पर भी प्रभावी ढंग से पहल की जा सकती है। यही कारण है कि समाजशास्त्र के विद्यार्थियों, समाज कार्यकर्ता तथा शोधकर्ताओं के लिए इस प्रकार के मनोविज्ञान का ज्ञान काफी आवश्यक माना जाता है। 

24. सुधारात्मक मनोविज्ञान (Correctional psychology)-

जिनका व्यवहार असामान्य है, जो असामाजिक तथा अनैतिक आचरणों में लिप्त हैं, जिन्हें अपराधी, आत्मघाती या मानसिक रूप से विकलांग तथा अस्वस्थ घोषित किया जा चुका है, उन्हें सुधारने, स्वस्थ तथा सामान्य अवस्था में लौटाने तथा उनका पुनः व्यवस्थापन तथा समायोजन करना काफी आवश्यक हो जाता है। दूसरे शब्दों में, जो कमी आ गई है, जो बिगाड़ या दोष पैदा हो गये हैं, उन्हें दूर करके ठीक रास्ते पर लाने के सुधारात्मक उपाय तो होने ही चाहिएं। इनके लिए कारणों की तलाश, निवारण तथा सुधारात्मक तीनों प्रकार के कदम ठीक प्रकार उठाने चाहियें और इन सभी बातों से भली-भाँति परिचित कराने में सुधारात्मक मनोविज्ञान नामक शाखा अपनी विशेष भूमिका निभाने का प्रयत्न करती है। 

25. व्योम-अन्तरिक्ष मनोविज्ञान (Aerospace psychology)-

जैसे-जैसे हम धरती से ऊपर आकाश की ऊँचाइयों को छुते जाते हैं, हमारे व्यवहार एवं व्यक्तित्व में काफी कुछ परिवर्तन आने लग जाता है / पर्यावरण में  आने वाले परिवर्तन हमारी शारीरिक क्रियाओं में काफी परिवर्तन ला देते हैं। शरीर के सभी संस्थान कार्यविधि पर इनका प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप मन तथा व्यवहार की गतिविधियाँ भी उसी अनपात में परिवर्तित  हो जाती हैं। पर्वतारोही तथा अन्तरिक्ष यात्रियों पर किये गये व्यवहारगत अध्ययनों से इन बातों की स्पष्ट जानकारी मिली है कि किस प्रकार परिवर्तित पर्यावरण, व्यवहार को एक विशेष रूप प्रदान करने में अपनी सक्रिय भमिका है। उदाहरण के लिए अन्तरिक्ष यात्रियों को कैसे भारहीनता का अनुभव होता है कि वे किस प्रकार अपने शरीर नाड़ियों पर हवा का दबाव महसूस करते हैं। छत से चिपके रहने की अवस्था में वे अपना शारीरिक तथा मान सन्तुलन कैसे बनाते हैं। इस प्रकार की विविध बातों की जानकारी ने ही व्योम तथा अन्तरिक्ष मनोविज्ञान के अध्यन  अध्यापन तथा शोध कार्यों में उपयुक्त मात्रा में वृद्धि करने की आवश्यकता को भी सामने लाया है और फलस्वर इस शाखा के अध्ययन को अब मनोविज्ञान के उच्च स्तरीय पाठ्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण स्थान मिलने लगा है। 

26. उपभोक्ता मनोविज्ञान (Consumer psychology)-

मनोविज्ञान की यह शाखा उपभोक्ताओं के व्यवहार को उनकी अपना परिस्थितियों तथा वस्तुओं के उपभोग सम्बन्धी वातावरण के सन्दर्भ में अध्ययन करती है। इस प्रकार का असर माल बनाने वाली कम्पनियों तथा वस्तु विक्रेताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होता है। अपने माल तथा उत्पादन का विज्ञापन करने में भी उन्हें उपभोक्ता मनोविज्ञान से सम्बन्धित बातें बहुत उपयोगी सिद्ध होती हैं। उपभोक्ता जिस तरह की वस्तुएँ चाहता है तथा जैसा व्यवहार चाहता है उसका उपयोग करके ही बिक्री से जुड़े हुए दलाल, एजेन्ट तथा दुकानदार अधिक-से-अधिक फायदा उठा सकते हैं तथा उत्पादन उपभोक्ता की माँग तथा पसन्द के अनुसार किया जा सकता है। आजकल उपभोक्ता अदालतों (Consumer Courts) में भी उपभोक्ता मनोविज्ञान से जुड़ी हुई बातें विभिन्न प्रकार के व्यापारिक झगड़ों के निपटारे में काफी सहायक सिद्ध हो रही हैं।

 27. वैयक्तिक मनोविज्ञान (Individual psychology)-

व्यक्तियों में व्यक्तिगत भेद पाये जाते हैं । ये भेद व्यक्तित्व की सभी प्रकार की विशेषताओं तथा व्यवहार के हर पहलू को लेकर हो सकते हैं। व्यक्तियों में पाये जाने वाले इन भेदों-समानता तथा असमानताओं का अध्ययन करना ही वैयक्तिक मनोविज्ञान का उद्देश्य होता है। वंशानुक्रम तथा वातावरण सम्बन्धी सभी बातें अलग-अलग रूप से तथा तथा समन्वित रूप से इन भेदों के लिये कहाँ तक उत्तरदायी होती हैं इसका वर्णन और विवेचन करना भी इस प्रकार के मनोविज्ञान में आता है।

 28. मनोमिति (Psychometrics)-

मनोविज्ञान की इस शाखा में मन, मस्तिष्क तथा व्यवहार के विभिन्न पहलुओं के वस्तुनिष्ठ मापन से सम्बन्धित परीक्षणों तथा तकनीकों के निर्माण एवं उपयोग की बात की जाती है। विभिन्न प्रकार के बुद्धि परीक्षणों, रुचि तथा अभिरुचि परीक्षणों, अभिवृत्ति मापन स्केल तथा व्यवहारगत विशेषताओं के मापन से जुड़े हुए परीक्षणों के निर्माण, मानकीकरण (Standardization) तथा उपयोग का वर्णन और व्याख्या करना इस प्रकार के मनोविज्ञान का उद्देश्य होता है। इस कार्य में जिस के सांख्यिकी (Statistical) तथ्यों, संप्रत्ययों एवं गणना कार्य की सहायता ली जाती है उसका ज्ञान प्रदान करना भी इस प्रकार के मनोविज्ञान के अन्तर्गत ही आता है। 

29. संगठनात्मक या प्रबन्धात्मक मनोविज्ञान (Organisational or managerial psychology) 

संगठन और प्रबन्ध कुशलता में प्रवीणता लाने की दृष्टि से आज मनोविज्ञान की इस शाखा का भी प्रचलन काफी बढ़ गया है। किसी भी संगठन के उचित प्रबन्ध और प्रशासन में आज इस शाखा से सम्बन्धित मनोविज्ञान का काफी उपयोग किया जा रहा है। संगठन तथा संस्थान से जुड़े हुए सभी प्रकार के मानवीय संसाधनों के व्यवहार का अध्ययन कर ऐसी तकनीक तथा उपाय सोचे जाते हैं जिससे सभी तरह से भावनात्मक तालमेल बना रहे। सभी लोग अपने आपसे, एक-दूसर । तथा अपने काम-काज की दुनिया से भली-भाँति समायोजित रहें। इस प्रकार के व्यवहार तथा वातावरण का अध्ययन और उसकी विवेचना कर प्रबन्ध तथा संगठनात्मक कौशल में वृद्धि करने का उत्तरदायित्व ही इस प्रकार के मनोविज्ञान द्वारा निभाया जाता है। 

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मनोविज्ञान का क्षेत्र

Scope of Psychology

MNOVIGYAN KE CHHETR

मनोविज्ञान के क्षेत्र क्या है?

कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, वर्ग, संस्कृति, लिंग और राष्ट्रीयता से अपना सम्बन्ध रखता हो, सभी के जन्म से लेकर मृत्यु तक की सभी अवस्थाओं के व्यवहार का अध्ययन करना मनोविज्ञान के क्षेत्र में आता है।

मनोविज्ञान के कितने क्षेत्र होते हैं?

सामान्य मनोविज्ञान का मुख्य उद्देश्य मानव-व्यवहार के संबंध में सामान्य नियमों का पता लगाना उन्हें समझना, नियंत्रित करना एवं भविष्यवाणी करना है। दूसरे शब्दों में मनोविज्ञान की इस शाखा के तीन मुख्य कार्य हैं- (i) मानव-व्यवहारों को समझना, (ii) मानव व्यवहारों को नियंत्रित करना तथा (iii) मानव व्यवहारों की भविष्यवाणी करना ।

शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र कौन कौन से हैं?

शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व.
शिक्षार्थी से सम्बन्धित अध्ययन ... .
शिक्षक सम्बन्धी अध्ययन – ... .
सीखने की प्रक्रियाओं का अध्ययन – ... .
शैक्षणिक परिस्थितियों का अध्ययन – ... .
शैक्षिक समस्याओं से सम्बन्धित अध्ययन ... .
बुद्धि –.

मनोविज्ञान विषय क्या है?

साइकोलॉजी (मनोविज्ञान) ऐसा ही एक विषय है, जिसके अंतर्गत मानवीय व्यवहार और उसकी प्रतिक्रियाओं का विस्तार से अध्ययन किया जाता है। सही मायने में देखा जाए तो मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यवहार का विज्ञान है। यह मानव संबंधों को प्रभावित करता है। साथ ही यह व्यक्ति के अचेतन मन का अध्ययन करके उपचार करने की एक विधि है।