भारत में पंचायती राजभारत में प्राचिन काल, मध्यकाल व वर्तमान काल में किसी न किसी व्यवस्था में पंचायती राज के अवशेष मिलते हैं। Show ब्रिटीश काल 1880 से 1884 के मध्य लार्ड रिपन का कार्यकाल पंचायती राज का स्वर्ण काल माना जाता है। इसने स्थाई निकायों को बढाने का प्रावधान किया। स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के भाग -4 में अनुच्छेद 40 में ग्राम पंचायतों के गठन और उन्होंने शक्तियां प्रदान करने की बात की लेकिन संवैधनिक दर्जा नहीं मिला। सवैधानिक दर्जा 73 वें संविधान सेशोधन 1992 से दिया गया। ग्याहरवी अनुसूची, भाग -9 व अनुच्छेद 243 में 16 कानून व 29 कार्यो को वर्णित किया गया। 1957 - बलवन्त राय मेहता समिति का गठन त्रिस्तरीय पंचायती राज की सिफारिश। ग्राम स्तर पर ग्रामपंचायत, खण्ड स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद। 2 अक्टूबर 1959 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसका शूभारम्भ राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गांव से किया। पंचायती राज अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर पाया। इसलिए 1978 में जनता पार्टी की सरकार ने अशोक मेहता समिति का गठन किया इसने द्विस्तरीय पचांयती राज की सिफारिश की। 1. मण्डल पचांयत 2. जिला परिषद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा पंचायती राज के विकास हेतू 64 व 65 वां संविधान संशोधन लाया गया लेकिन संसद से पास नहीं हो पाया। राजीव गांधी के काल को आधूनिक पंचायति राज का स्वर्णकाल कहा जाता है। 1986 में एल. एम. सिंघवी(लक्ष्मीमल) समिति का गठन किया गया जिसकी सिफारिशों के आधार पर पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया। 1989 में पी. के. थूगन समिति गठित की गई। इसने भी पंचायती राज के विकास के लिए सिफारिश की। 73 वें संविधान संशोधन द्वारा 24 अप्रैल 1993 को इस संवैधानिक पंचायती राज दर्जे को सम्पूर्ण भारत में लागू किया। प्रत्येक 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। राजस्थान में इसे 23 अप्रैल 1994 से लागू किया गया। पंचायती राज के सवैधानिक प्रावधान तथा राजस्थान पंचायती राज अधिनियम - 1994 विषय - राज्य सुची के अन्तर्गत। अनुच्छेद - 243 पंचायती राज का प्रावधान। अनुच्छेद 243(A) ग्राम सभा का प्रावधान (राजस्थान में सन 2000 में स्थापना)। लोक तन्त्र की सबसे छोटी संवैधानिक इकाई। एक वर्ष में दो बार आवश्यक राजस्थान में 6 बैठक - 26 जनवरी, 8 मार्च, 1 मई, 15 अगस्त, 20 अक्टुबर, 14 नवम्बर। अनुच्छेद 243(B) त्रिस्तरीय पंचायती राज। अनुच्छेद 243(D) आरक्षण का प्रावधान। महिलाओं को 1/3 व एस. सी. व एस. टी. को जनसंख्या के अनुपात में । अनुच्छेद 243(K) राज्य निर्वाचन आयोग का प्रावधानस्थापना - 1994 नियूक्ति - राज्यपाल द्वारा। कार्यकाल - 65/5 वर्ष जो भी पहले हो। त्यागपत्र - राज्यपाल को। कार्यकाल से पूर्व हटाने का अधिकार - राष्ट्रपति को। प्रथम - अमर सिंह राठौड़। अनुच्छेद 243(I) राज्य वित्त आयोग का प्रावधाननियूक्ति - राज्यपाल द्वारा। कार्यकाल - 5 वर्ष। त्यागपत्र - राज्यपाल को। कार्यकाल से पूर्व हटाने का अधिकार - राष्ट्रपति को। पथम - के. के. गोयल(कृष्ण कुमार)।
Start Quiz! गांव रही व्यवस्था की छोटी इकाई, अब है 'छोटी सरकार'जागरण संवाददाता बलिया पंचायती राज व्यवस्था कोई नई नहीं है वैदिक काल से ही यह व्यवस्था अप जागरण संवाददाता, बलिया : पंचायती राज व्यवस्था कोई नई नहीं है, वैदिक काल से ही यह व्यवस्था अपने देश में किसी न किसी रूप में चलती आ रही है। वैदिक काल में पंचों को परमेश्वर माना जाता था। उस वक्त अधिकारियों में पुरोहित, सेनापति और ग्रामीण मुख्य थे। ग्रामीण ही पंचायत का प्रमुख होता था। वह सैनिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने में मुख्य भूमिका का निर्वहन करता था। पंचायती राज व्यवस्था को स्थानीय स्वशासन भी बोला जाता है। अब इसे हम गांव की ''छोटी सरकार'' भी कहते हैं। भारत के हर काल खंड में किसी न किसी रूप में पंचायती राज की व्यवस्था के निशान मिलते हैं। कुंवर सिंह महाविद्यालय के प्राचार्य व राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर डा. अशोक सिंह ने बताया कि हर काल खंड में अलग-अलग स्वरूप में पंचायती राज व्यवस्था के निशान मिलते हैं। कई पुस्तक व वेदों में इसका उल्लेख है। ------------------ बौद्धकाल में पंचायती राज इस काल में गांव की शासन व्यवस्था और सुगठित हुई। तब गांव के शासक को ग्रामयोजक कहते थे। गांव से जुड़े मामले सुलझाने का दायित्व ग्रामयोजक पर ही होता था। ग्रामयोजक चुनाव ग्राम सभा के मार्फत ही होता था। चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री चाणक्य ने 'अर्थशास्त्र' में सुगठित शासन प्रणाली का उल्लेख किया है। इसमें 800 गांवों का समूह, द्रोणमुख 400 गांवों का समूह, खार्वटिक 200 गांवों का समूह होता था। यह विभाजन राजस्व, न्याय व न्याय व्यवस्था को ध्यान में रखकर किया था। इस काल में गांव का प्रमुख ग्रामिक नाम से जाना जाता था, ग्रामिक की नियुक्ति सरकार करती थी, लिहाजा उसे सरकारी मुलाजिम समझा जाता था। शासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम होती थी। मुख्य अधिकारी को ग्रामिक, महतर अथवा भाजक कहते थे। ------------------ मध्य और मुगलकालीन पंचायती राज सल्तनत काल में भी सबसे छोटी इकाई गांव ही थी। इसमें ग्राम पंचायतों का प्रशासनिक स्तर बहुद उम्दा था। गांवों का प्रबंधन लंबरदारों, पटवारियों, और चौकीदारों के जिम्मे था। मुगलकाल में भी गांव ही सबसे छोटी इकाई हुआ करती थी, तब परगना गांव में विभाजित थे। पंचायत में चार प्रमुख अधिकारी हुआ करते थे। मुकद्दम, पटवारी, चौधरी, और चौकीदार। -------------- ईस्ट इंडिया कंपनी का राज स्थानीय स्वशासन की जो परंपरा भारत में चली आ रही थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के आने के बाद इनका बजूद धुंधला सा होने लगा। ईस्ट इंडिया के शासन काल में ही 1687 में मद्रास नगर निगम और 1726 में कोलकाता और बॉम्बे नगर निगम का गठन हुआ। 1880 में लॉर्ड रिपन ने स्थानीय स्वशासन पर लगी पाबंदियों को हटाने का प्रयास शुरू किया। रिपन के कार्यकाल में ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय बोर्डों की स्थापना की गई। --------------- आजादी के बाद मिला संवैधानिक दर्जा 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू हुआ। स्थानीय स्वशासन को राज्य की सूची में रखा गया। पंचायती राज को और ताकतवर बनाने का प्रयास पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल से शुरू हुआ। भारतीय इतिहास में 23 अप्रैल 1993 को पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा मिला। 73वां संविधान संशोधन अस्तित्व में आया और पंचायती राज व्यवस्था से गांव की सरकारों को कई अधिकार प्राप्त हुए। Edited By: Jagran पंचायती राज में सबसे प्रमुख इकाई कौन है?जिला परिषद या जिला पंचायत
जिला परिषद त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की शीर्ष इकाई है।
पंचायती राज की सबसे निचली इकाई कौन सी है?जिला परिषद (जिला स्तर)।
हरियाणा में पंचायती राज व्यवस्था की सबसे निचली इकाई ग्राम पंचायत है। ग्राम पंचायत ”का अर्थ है ग्राम स्तर पर गठित पंचायत।
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