विषयसूची इसे सुनेंरोकेंजब साबुन जल की सतह पर होता है तब इसके अणु अपने आपको इस प्रकार व्यवस्थित कर लेते हैं कि इसका आयनिक सिरा जल के भीतर होता है, जबकि हाइड्रोकार्बन पूँछ जल के बाहर होती है। जल के अंदर इन अणुओं की विशेष व्यवस्था होती है। जिससे इसका हाइड्रोकार्बन सिरा जल के बाहर बना होता है। ऐसा अणुओं का बड़ा समूह बनने के कारण होता है। मिसाल के रूप में साबुन स्वच्छ करने में क्यों सक्षम होता है?इसे सुनेंरोकेंऐसा अणुओं का बड़ा समूह बनने के कारण होता है जिसमें हाइड्रोफोबिक पूँछ बड़े समूह के भीतरी हिस्से में होता है जबकि उसका आयनिक सिरा बड़े समूह की सतह पर होता है। साबुन इथेनॉल जैसे दूसरे विलायकों में घुल जाता है इसलिए मिसेल का निर्माण नहीं करता। मिसेल गठन क्या है? इसे सुनेंरोकेंमिसेल (Micelles): जब साबुन जल की सतह पर होता हैं तब इसके अणु अपने को इस प्रकार व्यवस्थित कर लेते हैं कि इनका आण्विक सिरा जल के अंदर होता हैं जबकि हाइड्रोकार्बन पूँँछ जल के बाहर होता हैं जो तैलीय मैल को अपने केंद्र में एकत्रित कर लेता है | ऐसा अणुओं का बड़ा समूह बनने के कारण होता हैं । इस संरचना को मिसेल कहते हैं । मिशेल कितने प्रकार के होते हैं?इसे सुनेंरोकेंजब दूसरा सिरा COO– ध्रुवीय सिरा कहलाता है इसे शीर्ष भी कहते है यह जल रागी होता है। क्रांतिक मिसेल सांद्रता पर स्टियरेट आयन गोलीय (पुच्छ ) के रूप में व्यवस्थित हो जाते है जिसे मिसेल कहते है। स्टीयरेट आयन का अध्रुवीय शिरा केंद्र की ओर जबकि अध्रुवीय शिरा सतह पर होता है। एक मिसेल बनने में 100 से अधिक अणु भाग लेते है। साबुनीकरण क्रिया में मिशेल कैसे बनती है?इसे सुनेंरोकेंसाबुनीकरण की क्रिया में वनस्पति तेल या वसा एवं कास्टिक सोडा या कास्टिक पोटाश के जलीय घोल को गर्म करके रासायनिक प्रतिक्रिया के द्वारा साबुन का निर्माण होता तथा ग्लीसराल मुक्त होता है। साधारण तापक्रम पर साबुन नरम ठोस एवं अवाष्पशील पदार्थ है। यह कार्बनिक मिश्रण जल में घुलकर झाग उत्पन्न करता है। मिशेल क्या है इसका निर्माण कैसे होता है? इसे सुनेंरोकेंमिशेल का निर्माण साबुन उच्च वसीय अम्ल जैसे पामिटिक अम्ल (C15H31COOH) , स्टिऐरिक अम्ल (C17H35COOH) के सोडियम या पोटेशियम लवण होते हैं। जिन्हें क्रमशः RCOONa या RCOOK से दर्शाया जाता है। जहां R लंबी श्रंखला के एल्किल समूह को व्यक्त करता है। जब साबुन को जल में घोला जाता है तो यह आयनीकृत हो जाता है। साबुन का सामान्य सूत्र क्या होता है?इसे सुनेंरोकेंExplanation :मृदू साबुन का सूत्र C17H35COOk व कठोर साबुन का सूत्र हे. साबूनिकरण की क्रिया मे वनस्पती तेल यावसाय व कास्टिक सोडा या कास्टिक पोटाश के जलीय गोल को गर्म करके रासायनिक प्रतिक्रिया के द्वारा साबुन का निर्माण होता तथा ग्लिसरॉल मुख्य होता. प्लास्टर ऑफ पेरिस पर ताप का क्या प्रभाव पडता है?इसे सुनेंरोकेंजब प्लास्टर ऑफ पेरिस को गर्म किया जाता है, तो यह मौजूद नमी खो देता है और क्रिस्टलीकृत होने लगता है। Explanation: क्रिस्टलीकरण पर, निर्जल कैल्शियम सल्फेट बनता है जिसे जले हुए प्लास्टर के रूप में जाना जाता है। मिसेल क्या है उदाहरण द्वारा समझाइए इसका महत्व साबुन की सफाई प्रक्रिया में क्या है? इसे सुनेंरोकेंमिसेल, विलयन में कोलॉइड के रूप में बने रहते हैं तथा आयन-आयन विकर्षण के कारण वे अवक्षेपित नहीं होते। इस प्रकार मिसेल में तैरते मैल आसानी से हटाए जा सकते हैं। साबुन के मिसेल इससे प्रकाश को प्रकीर्णित कर सकते हैं। जिस कारण साबुन का घोल बादल जैसा दिखता है। साबुन में क्या विद्यमान रहता है?इसे सुनेंरोकेंFAQs on अम्ल, क्षारक और लवण साबुन उच्च अणु भार वाले कार्बनिक वसीय अम्लों के सोडियम या पोटैशियम लवण है। मृदु साबुन का सूत्र एवं कठोर साबुन का सूत्र है। साबुनीकरण की क्रिया में वनस्पति तेल या वसा एवं कास्टिक सोडा या कास्टिक पोटाश के जलीय घोल को गर्म करके रासायनिक प्रतिक्रिया के द्वारा साबुन का निर्माण होता तथा ग्लीसराल मुक्त होता है। वसा या वसीय अम्ल + NaOH या KOH → साबुन + ग्लीसराल[1]साधारण तापक्रम पर साबुन नरम ठोस एवं अवाष्पशील पदार्थ है। यह कार्बनिक मिश्रण जल में घुलकर झाग उत्पन्न करता है। इसका जलीय घोल क्षारीय होता है जो लाल लिटमस को नीला कर देता है। परिचय[संपादित करें]एक आम साबुन (सोडियम स्टिअरेट) की संरचना के दो चित्र ; दोनों चित्र समतुल्य हैं। साबुन, वसा अम्लों के जलविलेय लवण हैं। ऐसे वसा अम्लों में ६ से २२ कार्बन परमाणु रह सकते हैं। साधारणतया वसा अम्लों से साबुन नहीं तैयार होता। वसा अम्लों के ग्लिसराइड प्रकृति में तेल और वसा के रूप में पाए जाते हैं। इन ग्लिसराइडों से ही दाहक सोडा के साथ द्विक अपघटन से संसार का अधिकांश साबुन तैयार होता है। साबुन के निर्माण में उपजात के रूप में ग्लिसरीन प्राप्त होता है जो बड़ा उपयोगी पदार्थ है। उत्कृष्ट कोटि के शुद्ध साबुन बनाने के दो क्रम हैं: एक क्रम में तेल और वसा का जल अपघट होता है जिससे ग्लिसरीन और वसा अम्ल प्राप्त होते हैं। आसवन से वसा अम्लों का शोधन हो सकता है। दूसरे क्रम में वसा अम्लों को क्षारों से उदासीन करते हैं। कठोर साबुन के लिए सोडा क्षार और मुलायम साबुन के लिए पोटैश क्षार इस्तेमाल करते हैं। साबुन कपड़े धोने एवं नहाते समय शरीर की सफाई में प्रयुक्त होता है। ऐतिहासिक रूप से यह ठोस या द्रव के रूप में उपलब्ध है। आजकल साबुन का स्थान अन्य सफाई करने वाले उत्पादों ने लिया है, जैसे संश्लेषित डिटर्जेंट आदि। सोडियम साबुन कड़ा होता है इसलिए कपड़ा धोने के लिए इसका उपयोग होता है एवं पोटैशियम साबुन मुलायम होता है इसलिए इसका उपयोग शरीर धोने के लिए, त्वचा को मुलायम रखने एवं दाढ़ी बनाने में होता है। कार्बोलिक साबुन का उपयोग त्वचा रोगों के इलाज में तथा जीवाणुनाशक के रूप में किया जाता है। इसमें ०.५ प्रतिशत फेनाल होता है, इसे औषधीय साबुन भी कहते हैं। सल्फर युक्त साबुन का उपयोग भी त्वचा रोगों में किया जाता है। एल्यूमीनियम साबुन का उपयोग वाटर प्रूफिंग में होता है।[2] ब्रिटिश शासन के दौरान इंग्लैंड के लीवर ब्रदर्स ने भारत में पहली बार आधुनिक साबुन पेश करने का जोखिम उठाया। कंपनी ने साबुन आयात किए और यहाँ उनकी मार्केटिंग की। हालाँकि नॉर्थ वेस्ट सोप कंपनी पहली ऐसी कंपनी थी जिसने १८९७ में यहाँ कारखाना लगाया। साबुन की कामयाबी की एक अहम कड़ी में जमशेदजी टाटा ने १९१८ में केरल के कोच्चि में ओके कोकोनट ऑयल मिल्स खरीदी और देश की पहली स्वदेशी साबुन निर्माण इकाई स्थापित की।[3] इसका नाम बदलकर टाटा ऑयल मिल्स कंपनी कर दिया गया और उसके पहले ब्रांडेड साबुन बाजार में १९३० की शुरुआत में दिखने लगे। १९३७ के करीब साबुन धनी वर्ग की जरूरत बन गया। साबुन के लिये कच्चे माल[संपादित करें]बड़ी मात्रा में साबुन बनाने में तेल और वसा इस्तेमाल होते हैं। तेलों में महुआ, गरी, मूँगफली, ताड़, ताड़ गुद्दी, बिनौले, तीसी, जैतून तथा सोयाबीन के तेल, और जांतव तैलों तथा वसा में मछली एवं ह्वेल की चरबी और हड्डी के ग्रीज (grease) अधिक महत्व के हैं। इन तेलों और वसा के अतिरिक्त रोज़िन भी इस्तेमाल होता है। अधिकांश साबुन एक तेल से नहीं बनते, यद्यपि कुछ तेल ऐसे हैं जिनसे साबुन बन सकता है। अच्छे साबुन के लिए कई तेलों अथवा तेलों और चरबी को मिलाकर इस्तेमाल करते हैं। भिन्न-भिन्न कामों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के साबुन बनते हैं। धुलाई के लिए साबुन सस्ता होना चाहिए। नहाने वाला साबुन महँगा भी रह सकता है। तेलों के वसा अम्लों के टाइटर, तेलों के आयोडीन मान, साबुनीकरण मान और रंग महत्व के हैं। टाइटर के साबुन की विलेयता का, आयोडीन मान से तेलों की असंतृप्ति का और साबुनीकरण मान से वसा अम्लों के अणुभार का पता लगता है और कुछ के लिए ऊँचे टाइटर वाला। असंतृप्त वसा अम्लों वाला साबुन रखने से साबुन में से पूतिगंध आती है। कम अणुभार वाले अम्लों के साबुन चमड़े पर मुलायम नहीं होते। कुछ प्रमुख तेलों और वसाओं के आँकड़े इस प्रकार हैं:
तेल के रंग पर ही साबुन का रंग निर्भर करता है। सफेद साबुन के लिए तेल और रंग की सफाई नितांत आवश्यक है। तेल की सफाई तेल में थोड़ा सोडियम हाइड्रॉक्साइट का विलयन डालकर गरम करने से होती है। तेल के रंग की सफाई तेल को वायु के बुलबुले और भाप पारित कर गरम करने से अथवा सक्रियित सरंध्र फुलर मिट्टी के साथ गरम कर छानने से होती है। साबुन में रोज़िन के अम्ल का सोडियम लवण बनता है। यह साबुन सा ही काम करता है। रोज़िन की मात्रा २५ प्रतिशत से अधिक नहीं रहनी चाहिए। सामान्य साबुन में यह मात्रा प्राय: ५ प्रतिशत रहती है। साबुन के चूर्ण में रोज़िन नहीं रहता। रोज़िन से साबुन में पूतिगंध नहीं आती। साबुन को मुलायम अथवा जल्द घुलने वाला और चिपकने वाला बनाने के लिए उसमें थोड़ा अमोनिया या ट्राइ-इथेनोलैमिन मिला देते हैं। हजामत बनाने में प्रयुक्त होने वाले साबुन में उपर्युक्त रासायनिक द्रव्यों को अवश्य डालते हैं। साबुन का निर्माण[संपादित करें]साबुन बनाने के लिए तेल या वसा को दाहक सोडा (कास्टिक सोडा) के विलयन के साथ मिलाकर बड़े-बड़े कड़ाहों या केतली में उबालते हैं। कड़ाहे भिन्न-भिन्न आकार के हो सकते हैं। साधारणतया १० से १५० टन जलधारिता के ऊर्ध्वाधार सिलिंडर मृदु इस्पात के बने होते हैं। ये भापकुंडली से गरम किए जाते हैं। धारिता के केवल १/३ ही तेल या वसा से भरा जाता है। कड़ाहे में तेल और क्षार मिलाने और गरम करने के तरीके भिन्न-भिन्न कारखानों में भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। कहीं-कहीं कड़ाहे मे तेल रखकर गरम कर उसमें सोडा द्राव डालते हैं। कहीं-कहीं एक ओर से तेल ले आते और दूसरी ओर सोडा विलयन ले आकर गरम करते हैं। प्राय: ८ घंटे तक दोनों को जोरों से उबालते हैं। अधिकांश तेल साबुन बन जाता है और ग्लिसरीन उन्मुक्त होता है। अब कड़ाहें में नमक डालकर साबुन का लवणन (salting) कर निथरने को छोड़ देते हैं। साबुन ऊपरी तल पर और जलीय द्राव निचले तल पर अलग-अलग हो जाता है। निचले तल के द्राव में ग्लिसरीन को निकाल लेते हैं। साबुन में क्षार का सांद्र विलयन (८ से १२ प्रतिशत) डालकर तीन घंटे तक फिर गरम करते हैं। इसे साबुनीकरण परिपूर्ण हो जाता है। साबुन को फिर पानी से धोकर २ से ३ घंटे उबालकर थिराने के लिए छोड़ देते हैं। ३६ से ७२ घंटे रखकर ऊपर के स्वच्छ चिकने साबुन को निकाल लेते हैं। ऐसे साबुन में प्राय: ३३ प्रतिशत पानी रहता है। यदि साबुन का रंग कुछ हल्का करना हो, तो थोड़ा सोडियम हाइड्रोसल्फाइट डाल देते हैं। इस प्रकार साबुन तैयार करने में ५ से १० दिन लग सकते हैं। २४ घंटे में साबुन तैयार हो जाए ऐसी विधि भी अब मालूम है। इसमें तेल या वसा को ऊँचे ताप पर जल अपघटित कर वसा अम्ल प्राप्त करते और उसको फिर सोडियम हाइड्रॉक्साइड से उपचारित कर साबुन बनाते हैं। साबुन को जलीय विलयन से पृथक् करने में अपकेंदित्र (सेण्ट्रीफ्यूज) का भी उपयोग हुआ है। आज ठंडी विधि से भी थोड़ा गरम कर सोडा विलयन के साथ उपचारित कर साबुन तैयार होता है। ऐसे तेल में कुछ असाबुनीकृत तेल रह जाता है। तेल का ग्लिसरीन भी साबुन में ही रह जाता है। यह साबुन निकृष्ट कोटि का होता है, पर अपेक्षया सस्ता होता है। अर्ध-क्वथन विधि से भी प्राय: ८० डिग्री सेल्सियस तक गरम करके साबुन तैयार हो सकता है। मुलायम साबुन, विशेषत: हजामत बनाने के साबुन, के लिए यह विधि अच्छी समझी जाती है। यदि कपड़ा धोने वाला साबुन बनाना है, तो उसमें थोड़ा सोडियम सिलिकेट डालकर, ठंढा कर, टिकियों में काटकर उस पर मुद्रांकण करते हैं। ऐसे साबुन में ३० प्रतिशत पानी रहता है। नहाने के साबुन में १० प्रतिशत के लगभग पानी रहता है। पानी कम करने के लिए साबुन को पट्टवाही पर सुरंग किस्म के शोषक में सुखाते हैं। यदि नहाने का साबुन बनाना है, तो सूखे साबुन को काटकर आवश्यक रंग और सुगंधित द्रव्य मिलाकर पीसते हैं, फिर उसे प्रेस में दबाकर छड़ (बार) बनाते और छोटा-छोटा काटकर उसको मुद्रांकित करते हैं। पारदर्शक साबुन बनाने में साबुन को ऐल्कोहॉल में घुलाकर तब टिकिया बनाते हैं। धोने के साबुन में कभी-कभी कुछ ऐसे द्रव्य भी डालते हैं जिनसे धोने की क्षमता बढ़ जाती है। इन्हें 'निर्माण द्रव्य' कहते हैं। ऐसे द्रव्य सोडा ऐश, ट्राइ-सोडियम फ़ास्फ़ेट, सोडियम मेटा सिलिकेट, सोडियम परबोरेट, सोडियम परकार्बोनेट, टेट्रा-सोडियम पाइरों-फ़ास्फ़ेट और सोडियम हेक्सा-मेटाफ़ॉस्फ़ेट हैं। कभी-कभी ऐसे साबुन में नीला रंग भी डालते हैं जिससे कपड़ा अधिक सफेद हो जाता है। भिन्न-भिन्न वस्त्रों, रूई, रेशम और ऊन के तथा धातुओं के लिये अलग-अलग किस्म के साबुन बने हैं। निकृष्ट कोटि के नहाने के साबुन में पूरक भी डाले जाते हैं: पूरकों के रूप में केसीन, मैदा, चीनी और डेक्सट्रिन आदि पदार्थ प्रयुक्त होते हैं। साबुन व डिटरजेंट के निर्माण की प्रक्रिया धुलाई की प्रक्रिया[संपादित करें]साबुन से वस्त्रों के धोने पर मैल कैसे निकलती है, इस पर अनेकश् निबंध समय-समय पर प्रकाशित हुए हैं। अधिकांश मैल तेल किस्म की होती है। ऐसे तेल वाले वस्त्र को जब साबुन के साथ मिलकर छोटी-छोटी गुलिकाएँ बन जाता है, जो कचारने से वस्त्र से अलग हो जाती है। ऐसा यांत्रिक विधि से हो सकता है अथवा साबुन के विलयन में उपस्थित वायु के छोटे-छोटे बुलबुलों के कारण हो सकता है। गुलिकाएँ वस्त्र से अलग ही तल पर तैरने लगती हैं। साबुन के पानी में घुलाने से तेल और पानी के बीच का पृष्ठ तनाव बहुत कम हो जाता है। इससे वस्त्र के रेशे विलयन के घनिष्ठ संस्पर्श में आ जाते हैं और मैल के निकलने में सहायता मिलती है। मैले कपड़े को साबुन के विलयन प्रविष्ट कर जाता है जिससे रेशे की कोशिओं से वायु निकलने में सहायता मिलती है। ठीक-ठीक धुलाई के लिए यह आवश्यक है कि वस्त्रों से निकली मैल रेशे पर फिर जम न जाए। साबुन का इमलशन ऐसा होने से रोकता है। अत: इमलशन बनने का गुण बड़े महत्व का है। साबुन में जलविलेय और तेलविलेय दोनों समूह रहते हैं। ये समूह तेल बूँद की चारों ओर घेरे रहते हैं। इनका एक समूह तेल में और दूसरा जल में घुला रहता है। तेल बूँद में चारों ओर साबुन की दशा में केवल ऋणात्मक वैद्युत आवेश रहते हैं जिससे उनका सम्मिलित होना संभव नहीं होता। सन्दर्भ[संपादित करें]
मिशेल के रूप में साबुन स्वच्छ करने में क्या सक्षम होता है?मिसेल के रूप में साबुन सफ़ाई करने में सक्षम होता है। तैलीय मैल मिसेल के केंद्र में एकत्र हो जाते हैं। मिसेल, विलयन में कोलॉइड के रूप में बने रहते हैं तथा आयन-आयन विकर्षण के कारण वे अवक्षेपित नहीं होते। इस प्रकार मिसेल में तैरते मैल आसानी से हटाए जा सकते हैं।
मिसाल के रूप में साबुन स्वच्छ करने में क्यों सक्षम होता है?ऐसा अणुओं का बड़ा समूह बनने के कारण होता है। यह हाइड्रोफोबिक पूँछ समूह के भीतरी हिस्से में होती है, जबकि उसका आयनिक सिरा समूह की सतह पर होता है। इस संरचना को मिसेल कहते हैं। मिसेल के रूप में साबुन सफाई करने में सक्षम होता है।
मिसेल क्या है पानी में साबुन मिलाने पर मिसेल क्यों बनता है क्या मिसेल एथेनॉल जैसे अन्य विलायक में भी बनेगा?जल में विलयशील हाइड्रोफिलिक और हाइड्रोकार्बन में विलयशील हाइड्रोफ़ोबिक के समूह को ही मिसेल कहते हैं। साबुन एथेनॉल जैसे दूसरे विलायकों में घुल जाता है इसलिए मिसेल का निर्माण नहीं करता।
साबुन क्या है मिशेल की अवधारणा के आधार पर साबुन की सफाई प्रक्रिया समझाइए?साबुन की सफाई क्रिया:
जब साबुन को पानी में घोला जाता है, तो उसका हाइड्रोफोबिक सिरा गंदगी से जुड़ जाता है और उसे कपड़े से हटा देता है। फिर, साबुन के अणु खुद को व्यवस्थित करके मिसेल बनाते हैं और गंदगी को क्रस्टल के केंद्र में फंसाते हैं। ये मिसेल पानी में निलंबित रहते हैं।
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