मनोरंजक गणित के विभिन्न स्वरूप क्या है? - manoranjak ganit ke vibhinn svaroop kya hai?

वास्तविक रूप से गणित विषय को इतना अधिक महत्व देने, अनिवार्य विषय बनाने तथा इसके अध्ययन से बच्चों को विभिन्न लाभ होते हैं, जिनको हम गणित शिक्षण के मूल्य भी कहते हैं। अर्थात बच्चों को गणित पढ़ाए जाने से होने वाले लाभ का अध्ययन गणित शिक्षण के मूल्यों में किया जाता है।

Contents

  • गणित शिक्षण के मूल्य
  • 1. बौद्धिक मूल्य
  • 2. प्रयोगात्मक मूल्य
  • 3. अनुशासन संबंधी मूल्य
  • 4. नैतिक मूल्य
  • 5. सामाजिक मूल्य
  • 6. सांस्कृतिक मूल्य
  • 7. कलात्मक मूल्य
  • 8. जीविकोपार्जन संबंधी मूल्य
  • 9. मनोवैज्ञानिक मूल्य
  • 10. अंतरराष्ट्रीय मूल्य

गणित शिक्षण के मूल्य

गणित शिक्षण द्वारा मुख्य रूप से निम्नलिखित मूल्य या लाभों की प्राप्ति हो सकती है।

  1. बौद्धिक मूल्य
  2. प्रयोगात्मक मूल्य
  3. अनुशासन संबंधी मूल्य
  4. नैतिक मूल्य
  5. सामाजिक मूल्य
  6. सांस्कृतिक मूल्य
  7. कलात्मक मूल्य
  8. जीविकोपार्जन संबंधी मूल्य
  9. मनोवैज्ञानिक मूल्य
  10. अंतरराष्ट्रीय मूल्य

1. बौद्धिक मूल्य

बौद्धिक विकास के लिए गणितीय शिक्षण का अत्यधिक महत्व है। पाठ्यक्रम का अन्य कोई विषय ऐसा नहीं है जो की गणित की तरह बच्चों के मस्तिष्क को तेज बनाता हो। गणित की प्रत्येक समस्या को हल करने के लिए दिमाकी कार्य की आवश्यकता होती है। जैसे ही गणित की कोई समस्या बच्चे के समक्ष आती है, उसका मस्तिष्क उस समस्या को समझने तथा उसका समाधान करने के लिए क्रियाशील हो जाता है।

गणित की प्रत्येक समस्या एक ऐसे क्रम से गुजरती है, जो कि एक रचनात्मक एवं सृजनात्मक प्रक्रिया के लिए जरूरी है। इस प्रकार बच्चे की संपूर्ण मस्तिष्क शक्तियों का विकास गणित पढ़ने से सरलता से हो जाता है। किसी भी समस्या का उचित हल ज्ञात करने की क्षमता का विकास गणित के अध्ययन से ही संभव है।

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गणित शिक्षण के बौद्धिक मूल्य पर प्रकाश डालते हुए महान शिक्षा शास्त्री प्लेटो ने स्पष्ट किया है कि “गणित एक ऐसा विषय है जो मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षित करने का अवसर प्रदान करता है।” एक सुसुप्त आत्मा में चेतना एवं नवीन जागृति उत्पन्न करने का कौशल गणित ही प्रदान कर सकता है। विश्व में ज्ञान का अथाह भंडार है और इस ज्ञान भंडार में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। यह बात अधिक महत्वपूर्ण नहीं है कि ज्ञान की प्राप्त की जाए बल्कि यह है कि ज्ञान प्राप्त का तरीका सीखा जाए।

जिससे प्राप्त किया गया ज्ञान अधिक उपयोगी तथा लाभप्रद सिद्ध हो सके। किसी व्यक्ति के लिए ज्ञान प्राप्त करना तभी उपयोगी हो सकता है जबकि वह ज्ञान का अपनी आवश्यकता अनुसार उचित उपयोग कर सकें। किसी ज्ञान का उचित उपयोग करना व्यक्ति की मानसिक शक्तियों पर निर्भर करता है। अतः यह गणित शिक्षण के मूल्य का अभिन्न अंग है।

गणित की शिक्षा प्राथमिक रूप से मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षित करने के लिए दी जाती है। गणित के विभिन्न तथ्यों का ध्यान देना इसके बाद ही आता है। इस प्रकार गणित का अध्ययन करने से बच्चे को अपने सभी मानसिक शक्तियों को विकसित करने का पूर्ण अवसर मिलता है। गणित कदम बच्चे को अपनी निरीक्षण शक्ति, तर्क शक्ति, स्मरण शक्ति, एकाग्रता, मौलिकता, अन्वेषण शक्ति, विचार एवं चिंतन शक्ति आत्मनिर्भरता तथा कठिन परिश्रम आज सभी मानसिक शक्तियों से पूर्ण रूप से विकसित करने का अवसर प्रदान करता है।

इस संबंध में हाउस ने ठीक ही लिखा है गणित मस्तिष्क एवं तीव्र बनाने में उसी प्रकार कार्य करता है जैसे किसी और को पीछे करने में काम आने वाला पत्थर इसके अध्ययन से स्पष्ट तक समस्त एवं क्रमबद्ध रूप से भलीभांति सोचने की शक्ति आती है।

2. प्रयोगात्मक मूल्य

हमारा दैनिक जीवन एवं व्यवहार पूर्ण रूप से गणित के ज्ञान पर आधारित है। प्रत्येक बात अथवा कार्य को समझने एवं समझाने के लिए हमें किसी न किसी रूप में गणित की आवश्यकता होती है। अपने दैनिक व्यवहार में घर बाहर बाजार आए वह आज सभी में गणित के ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है। गणित के ज्ञान के अभाव में व्यक्ति ना तो अपने परिवार को सुचारू ढंग से चला सकता है। और ना ही समाज में अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह कर सकता है।

इस प्रकार हमारे जीवन का कोई भी पहली गणित के प्रयोग से अछूता नहीं है। हमारी दैनिक क्रियाएं माप तोल और घटनाएं इसी पर आधारित है। प्रात: काल जागने के बाद तथा रात को सोने से पूर्व तक गणित का उपयोग हमारी आवश्यकता हो जाती है, कब उठना है, कब सोना है, कब जगना है, ऑफिस कब जाना है, किस समय पर कौन सा कार्य करना है, आज सभी व्यवस्थाएं गणित पर ही आधारित है।

समाज के प्रत्येक व्यक्ति को गणित के ज्ञान की आवश्यकता होती है। चाहे वह व्यक्ति सामाजिक दृष्टि से उपेक्षित हो या महत्वपूर्ण ऐसा नहीं है कि गणित के ज्ञान की आवश्यकता केवल इंजीनियर उद्योगपति गणित अध्यापक अथवा संस्थानों से संबंधित व्यक्तियों को ही होती है। बल्कि समाज का छोटे से छोटा व्यक्ति मजदूर रिक्शा चालक फुटपाथ पर बेचने वाला दुकानदार, सब्जीवाला, बढ़ई, मोची आदि अन्य सभी व्यक्तियों को अपनी रोजी-रोटी कमाने तथा अपने परिवार की देखभाल करने के लिए गणित की आवश्यकता पड़ती है।

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इस प्रकार सारांश रूप में यह कहा जा सकता है हमारे समाज में प्रत्येक व्यक्ति जो भी अपनी जीविका कमाता है तथा आय व्यय करता है। प्रयोगात्मक मूल्य गणित शिक्षण के मूल्य का अभिन्न अंग है।

उसे किसी ना किसी रूप में गणित के ज्ञान की आवश्यकता होती है। इस संबंध में यज्ञ महोदय का कहना सत्य ही प्रतीत होताहै वाष्प और विद्युत के इस युग में जिस और भी मुड़ कर देखें गणित ही सर्वोपरि है। यदि इस रीड की हड्डी निकाल दी जाए तो हमारी भौतिक सभ्यता का ही अंत हो जाएगा। इसके अतिरिक्त अन्य विद्यालयों विशेष रूप से विज्ञान विषयों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए गणित के ज्ञान की उपेक्षा नहीं की जा सकती। गणित शिक्षण सभी विज्ञानों का सिंहद्वार एवं कुंजी है। अतः आज के इस विज्ञान एवं तकनीकी युग में गणित का ज्ञान अति आवश्यक है।

3. अनुशासन संबंधी मूल्य

गणित का ज्ञान केवल बच्चों की मानसिक शक्तियों का विकास एवं उन्हें नियंत्रित ही नहीं करता है, बल्कि उनके व्यक्तित्व को गंभीरता विवेक एवं चिंतन जैसे गुण भी प्रदान करता है यही कारण है कि गणित का अनुशासन संबंधी मूल्य भी महत्वपूर्ण है। गणित का ज्ञान प्राप्त करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए भावनाओं के प्रभाव में आकर नियम विरुद्ध कार्य करना अनुकूल नहीं होता है। गणित पढ़ने वाला बच्चा कोई भी निर्णय लेने से पूर्व अपने तर्क शक्ति विवेक धैर्य एवं आत्मविश्वास का उचित उपयोग करके अपना लाभ हानि तथवा अच्छे बुरे के बारे में ठीक प्रकार से सोच लेता है। आप गणित शिक्षण के मूल्य Sarkari Focus पर पढ़ रहे हैं।

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गणित ही ऐसा विषय है जिस के अध्ययन से बच्चे में कठिन परिश्रम में काव्य का स्वरूप स्पष्ट एवं सही तरीके से कार्य करने की आदतों का विकास होता है। यह ऐसी परिस्थितियां हैं जिनमें गणित का छात्र स्वयं ही स्वयं ही गंभीर विवेकशील एवं अनुशासन मध्य जीवन बिताने में समर्थ हो जाता है। इस संबंध में लाख में कहा है कि गणित एक ऐसा मार्ग है, जिससे मन में तर्क की आदत स्थाई होती है। अनुशासन संबंधी मूल्य गणित शिक्षण के मूल्यों में से एक है।

गणित विषय का ज्ञान यथार्थवाद तथा शुद्ध है इस कारण बच्चों के मन में एक विशेष प्रकार का अनुशासन विकसित करता है। इसके तथा तथा निश्चित है। इससे बच्चों में अपने द्वारा प्राप्त किए गए ज्ञान को प्रयोग में लाने की योग्यता उत्पन्न होती है। किसी सीखे हुए ज्ञान को प्रयोग में लाने की योगिता भी एक प्रकार की अनुशासन ही है।

4. नैतिक मूल्य

नैतिकता एक ऐसा महत्वपूर्ण प्रत्यय है जो समय व्यक्ति परिस्थिति तथा स्थान से सबसे अधिक प्रभावित है। गणित का ज्ञान बच्चों के चारित्रिक एवं नैतिक विकास में सहायक है। एक अच्छे चरित्र वान व्यक्ति में जितने गुण होने चाहिए इनमें से अधिकांश गुण गणित विषय के अध्ययन से विकसित होते हैं। गणित पढ़ने से बच्चों में स्वच्छता, यथार्थता, समय की पाबंदी, सच्चाई, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, आत्म निर्भरता, आत्मसम्मान, आत्मविश्वास, नियमों पर अडिग रहने की शक्ति, दूसरों की बात को सुनना एवं सम्मान देना, अच्छा बुरा सोचने की शक्ति, आज गुणों का विकास स्वयं ही हो जाता है।

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इस प्रकार गणित के अध्ययन से चरित्र निर्माण तथा नैतिक उत्थान में भी सहायता मिलती है। गणित का प्रशिक्षण लेने वाले का स्वभाव स्वयं ही ऐसा हो जाता है कि उसके मन में ईर्ष्या घृणा इत्यादि स्वयं ही निकल जाते हैं। आप गणित शिक्षण के मूल्य Sarkari Focus पर पढ़ रहे हैं।

गणित के नैतिक मूल्य के महत्व को स्पष्ट करते हुए महान दार्शनिक ने कहा कि गणित तर्क सम्मत विचार यथार्थ कथन तथा सत्य बोलने की सामर्थ्य प्रदान करता है। व्यर्थ गप्पे, आडंबर, धोखा तथा छल कपट सब कुछ उस मन का कहना है जिसको गणित शिक्षण नहीं दिया गया। इस प्रकार गणित ही एकमात्र ऐसा विषय है जो वास्तविक रूप में बच्चे को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने का अभ्यास कराता है तथा उच्च प्रशिक्षण प्रदान करता है।

5. सामाजिक मूल्य

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा सामाजिक जीवन एक दूसरे के परस्पर सहयोग पर निर्भर करता है। सामाजिक जीवन यापन करने के लिए गणित के ज्ञान की अत्यधिक आवश्यकता होती है क्योंकि समाज में भी लेनदेन व्यापार उद्योग आदि व्यवसाय गणित पर ही निर्भर हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना तथा समाज के विभिन्न अंगों को निकट लाने में सहायक विभिन्न अविष्कारों सामाजिक कठिनाइयों आवश्यकताओं आदमी सहायता देने में गणित का बहुत बड़ा योगदान है क्योंकि सभी वैज्ञानिक खोजों का आधार गणित विषय ही है। (गणित शिक्षण के मूल्य)

आदर्श शिक्षा वही है जो कि बालक को प्रारंभ से ही समाज के लिए योग्य नागरिक बनाने में सहायता प्रदान करती है। नेपोलियन ने गणित शिक्षण के सामाजिक महत्व को स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि गणित की उन्नति तथा वृद्धि देश की संपन्नता से संबंधित है।

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इस प्रकार समाज की उन्नति को उचित ढंग से समझने के लिए ही नहीं बल्कि समाज को आगे बढ़ाने के लिए भी गणित की प्रमुख भूमिका रही है। वर्तमान में हमारी सामाजिक संरचना इतनी वैज्ञानिक एवं सुव्यवस्थित नजर आती है जिसका श्रेय भी गणित को ही जाता है। गणित के अभाव में संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था एवं संरचना का स्वरूप ही बिगड़ जाएगा।

6. सांस्कृतिक मूल्य

किसी राष्ट्रीय समाज की संस्कृति की अपनी कुछ अलग ही विशेषताएं होती हैं। प्रत्येक समाज या राष्ट्र की संस्कृति का अनुमान उस राज्य समाज के निवासियों के रीति रिवाज खान पान रहन सहन कलात्मक उन्नति आर्थिक सामाजिक तथा राजनीतिक आदि पहेलियों के द्वारा होता है।

गणित का इतिहास विभिन्न राष्ट्रों की संस्कृति का चित्र प्रस्तुत करता है प्रसिद्ध गणितज्ञ हार्डवेन ने लिखा है। कि गणित सभ्यता और संस्कृति का दर्पण है गणित हमें केवल संस्कृति एवं सभ्यता से ही परिचित नहीं कराता। बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित उन्नत एवं उसे भविष्य में आने वाली पीढ़ी तक हस्तांतरित करने में भी सहायता प्रदान करता है। गणित विषय को संस्कृति एवं सभ्यता का सृजन करता एवं पोषक माना जाता है।

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रस, छंद, अलंकार संगीत के सभी सामान चित्रकला और मूर्तिकला आदि सभी अप्रत्यक्ष रूप से गणित के ज्ञान पर ही निर्भर होते हैं। संस्कृत किसी भी राष्ट्र के जीवन दर्शन का प्रतिबिंब होती है जीवन के प्रति दृष्टिकोण जीवन पद्धति को प्रभावित करता है। जिसके परिणाम स्वरूप हमारा जीवन दर्शन प्रभावित होता है। इस प्रकार नए नए अविष्कारों से हमारे जीने का ढंग सभ्यता एवं संस्कृति में निरंतर परिवर्तन होता रहता है। अतः गणित शिक्षण के सभी मूल्यों में सांस्कृतिक मूल्य का विशेष स्थान है।

7. कलात्मक मूल्य

गणित पढ़ने वाले तथा गणित के प्रेमियों के लिए यह एक गीत है, कला है, संगीत है तथा आनंद प्राप्त का एक प्रमुख साधन है, ऐसे लोगों ने ही धारणा बना रखी है कि गणित एक कठिन तथा नीरस विषय हैं। जिन्हें गणित का अध्ययन करने का अवसर नहीं मिलता। गणित में विभिन्न समस्याओं को हल करने में बहुत आनंद की प्राप्ति होती है। विशेषता या जब उनकी समस्या का उत्तर किताब में दिए गए उत्तरों से मिल जाता है।

उस समय गणित पढ़ने वाला प्रत्येक बच्चा आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता तथा संतुष्टि सफलता की खुशी से प्रफुल्लित हो उठता है। शायद इसी कारण पाइथागोरस ने पाइथागोरस प्रमेय की खोज की खुशी में 100 बैलो की बली चढ़ाई थी। तथा अपने तो अपने सिद्धांत की खोज के बाद अपना नंगापन भूलकर खुशी से प्रफुल्लित हो उठा था।

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कलात्मक मूल्य

यदि गणित शिक्षण को कलाओं का सृजनकर्ता तथा पोषक भी कहा जाए तो गलत नहीं है क्योंकि सभी कलाएं, चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत तथा नृत्य कला आदि सभी की प्रगति में गणित शिक्षण का विशेष महत्व है।

लेविन ने भी स्पष्ट किया है कि संगीत मानव के अवचेतन मन का अंकगणित की संख्याओं से संबंधित एक आधुनिक गुप्त व्यायाम है। हमारे कपड़ों के दिन प्रतिदिन सुंदर व नवीन डिजाइन सुंदर बाग बगीचे यहां तक कि जमनिया फूलदान में रखे हुए फूलों की सुंदरता तथा आकर्षण वास्तव में किसी ना किसी रूप में गणित के नियमों का पालन करते हैं।

संगीत तथा नृत्य में भी ताल व कदम एक निश्चित क्रम में व्यवस्थित करने होते हैं जो कि गणित द्वारा ही संभव है कि महोदय ने कहा है। कि सत्य ही सुंदर है जबकि गणित पढ़ने वाला कोई भी व्यक्ति तथ्यों नियमों एवं सिद्धांतों की सहायता से नवीन ज्ञान की खोज करता है। अथवा प्राकृतिक घटनाओं की सत्यता की व्याख्या करता है तो उसके मन को आनंद की अनुभूति होती है तथा अपने परिणामों के संघात्मक पहलुओं को महसूस करता है। इस प्रकार अपनी अप्रत्याशित उपलब्धि प्राप्त करने पर उसे उसी में संतुष्टि प्रेरणा तथा प्रसन्नता मिलती है।

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वास्तविक रूप से उसके मन में गणित की प्रशंसा करने की भावना का विकास हो जाता है। अवकाश का सदुपयोग करने के लिए गणित की संख्याओं के खेल एवं पहेलियां विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जादू के वर्ग बनाए जा सकते हैं। जिनकी सहायता से छात्र अभ्यास करके अपने मस्तिष्क को और अधिक विकसित कर सकते हैं।

इस प्रकार विभिन्न गणितीय पहेलियां बच्चों का केवल मनोरंजन ही नहीं करती बल्कि बच्चों में आनंद की अनुभूति तथा गणित के ज्ञान की प्रशंसा करने की भावना भी अधिक प्रबल होती है। जो गणित शिक्षण के मूल्य का अभिन्न अंग है।

8. जीविकोपार्जन संबंधी मूल्य

शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य बालकों को अपनी जीविका कमाने तथा रोजगार प्राप्त करने में समर्थ बना देना भी है। अन्य विषयों की अपेक्षा गणित उस उद्देश्य की प्राप्ति में सर्वाधिक सहायक सिद्ध हुआ है।

आज वैज्ञानिक तथा तकनीकी समय में विज्ञान के सूची कम नियमों और सिद्धांतों तथा कारणों का प्रयोग एवं प्रसार सर्व व्यापी हो गया। जिन की आधारशिला गणितीय वर्तमान समय में इंजीनियरिंग तथा तकनीकी विषयों में अधिक से अधिक गणित को प्रतिष्ठित माना गया है। इन सभी विषयों का ज्ञान एवं प्रशिक्षण गणित शिक्षण के द्वारा ही संभव है।

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लघु उद्योग एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना का आधार भी गणित ही है या कहा जा सकता है कि को अपनी जीविका कमाने के लिए गणित के ज्ञान की आवश्यकता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अवश्य ही होनी चाहिए। तभी वह अपना जीवन यापन कर सकता है तथा अपने जीवन को सरल बना सकता है।

9. मनोवैज्ञानिक मूल्य

गणित की शिक्षा मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी उपयोगी है। गणित के अध्ययन से बालकों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। गणित में क्रियाओं तथा अभ्यास कार्य पर अधिक बल दिया जाता है जिसके कारण गणित का ज्ञान अधिक स्थाई हो जाता है।

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मनोवैज्ञानिक मूल्य

गणित शिक्षण मनोविज्ञान के विभिन्न नियमों एवं सिद्धांतों का अनुसरण करता है। उदाहरण के लिए गणित में छात्र करके सीखना अनुभव द्वारा सीखना तथा समस्या समाधान आदि महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर ज्ञान प्राप्त करता है। गणित शिक्षण द्वारा बालकों की जिज्ञासा रचनात्मक संतुष्टि तथा आत्म प्रकाशन आदि मानसिक भावनाओं की तरफ से तथा संतुष्ट होती है।

गणित हमें केवल अपने देश की पृष्ठभूमि से ही परिचय नहीं कराता बल्कि राशिता का संदेश भी देता है। गणित के अध्ययन से यह पता चलता है कि आज का मानव जो भी बहुत ही उन्नति प्राप्त करने में सफल हुआ है। वह कभी इतना असभ्य और अनुभव था कि उसे एक से आगे गिनती भी नहीं आती थी। गणित के क्षेत्र में जो भी प्रगति हुई है वह किसी एक राष्ट्र वर्ग जाति या धर्म अनुयायियों के लिए ही नहीं हुई है और ना ही किसी राष्ट्र विशेष की संपत्ति है।

मानव निर्मित दीवारों की परिधि की गणित के ज्ञान तथा नवीन अनुसंधान को बांधकर नहीं रख सकती है। किसी एक देश द्वारा किया गया अविष्कार उसकी सीमाओं को पार करके अंतरराष्ट्रीय विषय बन जाता है।

यही गणित तथा विज्ञान के क्षेत्र में होने वाली उन्नति तथा प्रगति का रहस्य है। वर्तमान समय की आवश्यकता है कि दुनिया भर के सभी गणितज्ञ, वैज्ञानिक तथा शिक्षा शास्त्री परस्पर मिलकर कार्य करें क्योंकि एक राष्ट्र द्वारा की गई खोज का अन्य देशों में चल रहे अध्ययन पर तत्काल असर पड़ता है। कोई भी राशि चाहे कितना ही उन्नत क्यों ना हो वह अकेला क्षेत्र में पूर्ण रूप से प्रगति नहीं कर सकता। जब तक उसे अन्य देशों में होने वाले अनुसंधान की जानकारी ना हो यह सभी प्रमाण गणित के अंतरराष्ट्रीय मूल्य के घोतक हैं।

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इस प्रकार सारांश के रूप में कहा जा सकता है हमारे जीवन का कोई पहलू ऐसा नहीं है जो कि गणित के ज्ञान से ही किसी ना किसी रूप से प्रभावित तथा संबंधित ना हो

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में गणित के दैनिक जीवन व राष्ट्रीय विकास के महत्व को स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया गया कि यह वास्तविकता है कि गणित को अधिकांश बच्चे कठिन विषय समझते हैं

अतः विद्यालय और अध्यापक द्वारा ऐसे ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। जिससे सभी बच्चों के गणित के स्तर को उन्नत किया जा सके।

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गणित का स्वरूप क्या है?

गणितीय अवधारणाओं के स्वरूप के तीन पहलु होते हैं मूर्त से अमूर्त की ओर, विशिष्ट से व्यापक की ओर तथा सोपानक्रमिक संरचनाएं | ये तीनों किसी भी क्षेत्र में ज्ञान की खोज में देखे जा सकते हैं। सभी ज्ञान की तरह गणित भी हमारे ठोस अनुभवों से विकसित होता है । जैसे- त्रिविम आकार में "गोलाई" या गोल की संकल्पना ।

मनोरंजक गणित का महत्व क्या है?

(1) मनोरंजक क्रियाएं गणित में रुचि उत्पन्न करती हैं। (2) मनोरंजक क्रियाएं कक्षा के वातावरण में एक स्वस्थ एवं आनन्ददायक परिवर्तन लाती हैं। (3) मनोरंजक क्रियाओं के आयोजन से छात्र गणित के महत्त्व एवं उसकी सुन्दरता को पहचानते हैं।

गणित कितने प्रकार के होते हैं?

गणित की कई शाखाएँ हैं : अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि।

गणित निरूपण से आप क्या समझते हैं उल्लेख कीजिए?

गणित शिक्षा में निरूपण कुछ माध्यम, गणितीय या अन्य का उपयोग करके गणितीय अवधारणाओं की अभिव्यक्तियों को संदर्भित करता है। बच्चों को गणितीय ज्ञान का बेहतर प्रदर्शन मिलता है जब उन्हें मूर्त सामग्री, चित्रों और वास्तविक दुनिया के उदाहरणों का उपयोग करके पढ़ाए जाने वाले गणितीय ज्ञान का निरूपण करने में मदद मिलती है।