माता का अंचल पाठ का मूल भाव क्या है *? - maata ka anchal paath ka mool bhaav kya hai *?

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पाठ का सार 

‘माता का अँचल’ नामक पाठ में लेखक माता-पिता के स्नेह और शरारतों से भरे अपने बचपन को याद करता है। उसका नाम तारकेश्वर था। पिता अपने साथ ही उसे सुलाते, सुबह उठाते और नहलाते थे। वे पूजा के समय उसे अपने पास बिठाकर शंकर जी जैसा तिलक लगाते और खुश कर देते थे। लेखक आईने में बड़े-बड़े बालों के साथ अपना तिलक लगा चेहरा देखता, तो पिता मुस्कुराने लगते और वह शरमा जाता था। पूजा के बाद पिता जी उसे कंधे पर बिठाकर गंगा में मछलियों को दाना खिलाने के लिए ले जाते थे और रामनाम लिखी पर्चियों में लिपटीं आटे की गोलियाँ गंगा में डालकर लौटते हुए उसे रास्ते में पड़ने वाले पेड़ों की डालों पर झुलाते। घर आकर जब वे उसे अपने साथ खाना खिलाते, तो माँ को कौर छोटे लगते। वे पक्षियों के नाम के निवाले ‘कौर’ बनाकर जब उनके उड़ने का डर बतातीं, तो वह उन्हें उड़ने से पहले ही खा लेता। खाना खाकर बाहर जाते हुए माँ उसे झपटकर पकड़ लेती थीं और रोते रहने के बाद भी बालों में तेल डाल कंघी कर देतीं। कुरता-टोपी पहनाकर चोटी में फूलदार लट्टू लगा देती थीं। बुरी नज़र से बचाने के लिए काजल की बिंदी लगातीं और पिता के पास छोड़ देती थीं। वहाँ खड़े अपने मित्रों को देख वह रोना भूल खेल में लग जाता था।

माता का अंचल पाठ का मूल भाव क्या है *? - maata ka anchal paath ka mool bhaav kya hai *?
  

पिता जी उसको बहुत लाड़ करते। वे कभी उसके हाथों का चुम्मा लेते, कभी दाढ़ी-मूँछ गड़ाते। कुश्ती खेलते और बार-बार हार जाते। घर के सामने ही खेले जाने वाले मिठाई की दुकान के खेल में दो-चार गोरखपुरिए पैसे देकर शामिल हो जाते। घरौंदे के खेल में खाने वालों की पंक्ति में आखिरी में चुपके से बैठ जाने पर जब लोगों को खाने से पहले ही उठा दिया जाता, तो वे पूछते कि भोजन फिर कब मिलेगा। बरात के खेल में जब दुल्हन की विदाई होती, तो चूहेदानी की पालकी में पिता दुल्हन के मुख को कपड़ा हटाकर देखते और बच्चों को हँसाते। खेती के खेल में फसल आने पर पूछते कि खेती केसी रही। लेखक मित्रों के साथ आस-पास के छोटे-मोटे सामान को जुटाकर इतनी रुचि से खेलता कि उन खेलों को देखकर सभी खुश हो जाते। तिवारी के नाम के जान-पहचान वाले एक बूढ़े का मजाक उड़ाना और आँधी आने पर लोकगीत गाना लेखक व उसके मित्रों की आदत बन गई थी। एक बार तिवारी का मजाक उड़ाने पर अध्यापक ने लेखक की खूब पिटाई की। पिता ने बचाव कर उसे सांत्वना दी। पिता द्वारा घर ले आते समय मित्रों के मिलने पर वह सब भूल गया और खेतों में चिड़ियों को पकड़ने की कोशिश करने लगा। चिड़ियों के उड़ जाने पर जब एक टीले पर आगे बढ़कर चूहे के बिल में उसने आस-पास का भरा पानी डाला, तो उसमें से एक साँप निकल आया। डर के मारे लुढ़ककर गिरते-पड़ते हुए लेखक लहूलुहान स्थिति में जब घर पहुँचा, तो सामने पिता को बैठे देखा। पिता के साथ सदा अधिक समय बिताने के बाद भी उसे अंदर जाकर माँ से चिपटने में सुरक्षा महसूस हुई। माँ ने घबराते हुए भी अँचल से उसकी धूल साफ़ की और हल्दी लगाई। लेखक को तब माँ की ममता पिता के प्रेम से बढ़कर लगी।

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पाठ 1 माता का आंचल महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर प्रश्न 1. माता का आँचल’ पाठ का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – माँ बच्चे की जन्मदाता तथा पालन-पोषण करने वाली है। स्वाभाविक रूप से बच्चा माँ से अधिक लगाव रखता है। माँ भी एक बाप की अपेक्षा हृदय से अधिक प्यार-दुलार करती है। वह बाप की अपेक्षा बच्चों की भावनाओं को अधिक अच्छा समझ लेती है। माँ का अपने बच्चे से आत्मिक प्रेम होता है। बच्चा चाहकर भी माँ की ममता को नहीं भुला सकता। यह भी सत्य है कि एक बाप अपने बच्चों को बहुत अधिक प्यार तो दे सकता है लेकिन एक माँ का हृदय वह कभी प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए प्रस्तुत पाठ में बच्चों का अपने पिता से अधिक लगाव होने पर भी वह विपदा के समय पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है।

प्रश्न 2. आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है ?

उत्तर – मनुष्य स्वाभाविक रूप से अपनी आयु तथा प्रकृति के लोगों के साथ अधिक जुड़ा रहता है। वह मन से उनकी संगति लेना चाहता है। उनकी संगति में आकर उसके दुःख, रोग सब मिट जाते हैं। विशेषकर बच्चा तो अपने जैसे साथियों की संगति अवश्य चाहता है क्योंकि उनके बिना उसकी अठखेलियां मौज-मस्ती अधूरी रह जाती हैं। वह अपनी संगति में आकर अपने सारे सुख-दुःख भूल जाता है। इसलिए भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना भूल जाता है।

प्रश्न 3. ‘माता का आँचल’ शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।

उत्तर – ‘माता का आँचल’ पाठ के माध्यम से लेखक ने माँ के आँचल के प्रेम एवं शांति का वर्णन किया है। लेखक और उसका भाई वैसे तो अधिकतर अपने पिता के साथ रहते हैं। उनके पास सोते हैं। लेकिन जो प्यार और शांति उन्हें माँ के आँचल में मिलती है वैसी पिता के साथ नहीं मिलती। माँ अपने बच्चों को नहला-धुलाकर, कुरता-टोपी तिलक आदि लगाकर बाहर खेलने के लिए भेजती है। पिता के द्वारा रोटी खिलाने पर भी माँ बच्चों को कबूतर तोता, मैना आदि के बनावटी नाम देकर रोटी खिलाती है। पाठ के अंत में भी जब बच्चे साँप से भयभीत होकर यहाँ-वहाँ गिरते हुए खून से लथपथ होकर घर पहुँचते हैं तो वे अपनी माँ के आँचल में छिप जाते हैं। उन्हें हुक्का गुड़गुड़ाते हुए पिता अनदेखा कर देते हैं। माँ ही अपने आँचल में लेकर बच्चों को हल्दी का लेप लगाती है। कांपते होंठों को बार-बार देखकर उन्हें गले लगा लेती है। उसी समय बाबू जी माँ की गोद से बच्चों को लेना चाहते हैं लेकिन बच्चे अपनी माता के आँचल की प्रेम और शांति की छाया को नहीं छोड़ते। संभवतः माता का आँचल एक उपयुक्त शीर्षक है। इसका अन्य शीर्षक बचपन हो सकता है।

प्रश्न 4. पठित पाठ के आधार पर भोलानाथ की किन्हीं तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – भोलानाथ ग्रामीण परिदेश में पलने वाला बालक था उसकी प्रमुख तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) पितृ-प्रेमी- भोलानाथ और उसके भाई को अपने पिता के प्रति विशेष लगाव था। पिता को भी उनसे उतना ही लगाव था और वे सदा उनके सुख-दुख में सहायता के लिए तैयार रहते थे भोलानाथ अपने पिता से ही हर रोज नहाते थे और उनके साथ पूजा-पाठ करते थे।
(ii) शरारती और मौज-मस्ती करने वाला- भोलानाथ शरारती स्वभाव का था। वह अपने भाई और मित्रों के साथ मिलकर खूब खेलता था, शरारतें करता था और सदा मौज-मस्ती में डूबा रहता था। वह अपने पिता की लंबी-लंबी मूंछों से भी खेला करता था।
(iii) कल्पनाशील- भोलानाथ कल्पनाशील बालक था। वह चबूतरे पर अपने मित्रों के साथ खेलते हुए पत्ते की पूरियाँ, मिट्टी की जलेबियाँ, तिनकों के छप्पर, दातून के खंभे, दीये की कड़ाही आदि बनाया करता था। वह कल्पना में ही सब के साथ पंक्ति में बैठ झूठ ही जीमने लगता था। वह कनस्तर का तंबूरा, आम के पौधे की शहनाई और टूटी हुई चूहेदानी की पालकी बनाया करता था वह हर रोज अपने मित्रों के साथ मिलकर नाटक किया करता था।

पाठ 2 जॉर्ज पंचम की नाक महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है। वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है ?

उत्तर – हमारा देश चाहे पिछले अनेक वर्षों से स्वतंत्र हो चुका है पर यहां अभी भी मानसिक गुलामी का भाव विद्यमान है। सरकारी तंत्र अपने देश की मान-मर्यादा की रक्षा करने की अपेक्षा उन विदेशियों के तलवे चाटने की इच्छा करता है जिन्होंने लंबे समय तक देशवासियों को अपने पैरों तले कुचला था, परेशान किया था और देश भक्तों को अपने जुल्मों का शिकार बनाया था। सरकारी तंत्र की चिंता और बदहवासी का कोई कारण नहीं था पर फिर भी वह अकारण परेशान था। उसे अपनी, अपनी जनता और देश की मान-मर्यादा से अधिक चिंता उस पत्थर की नाक की थी जिसे आंदोलनकारियों ने अपने गुस्से का शिकार बना दिया था। इससे सरकारी तंत्र की अदूरदर्शिता, संकुचित सोच और जनता के पैसे के अपव्यय के साथ-साथ अखबारों में छपने की तीव्र इच्छा प्रकट होती है। उनकी गुलाम मानसिकता किसी भी दृष्टि से सराहनीय नहीं कही जा सकती।

प्रश्न 2. रानी एलिज़ाबेथ के दरज़ी की परेशानी का क्या कारण था ? उसकी परेशानी को किस प्रकार तर्क संगत ठहराएंगे ?

उत्तर – रानी एलिजाबेथ के दरजी की परेशानी का कारण रानी के द्वारा पहने जाने वाले वस्त्रों की विविधता, सुंदरता और आकर्षण था जो हमें हिंदुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर लोगों और सरकारों के बीच प्रकट करनी थी।
दरजी की परेशानी उसकी अपनी दृष्टि से तर्कसंगत थी। हर व्यक्ति अपने द्वारा किए गए कार्य को सर्वश्रेष्ठ रूप में प्रस्तुत करना चाहता है ताकि वह दूसरों के द्वारा की जाने वाली प्रशंसा को सहज रूप से बटोर सके। एलिजाबेथ उस देश की रानी थी जिसने उन देशों पर राज्य किया था जहाँ अब वह दौरे के लिए पधार रही थी। हर व्यक्ति की दृष्टि में पहली झलक शारीरिक सुंदरता और वेशभूषा की ही होती है और उसी से वह बाहर से आने वाले के बारे में अपने विचार बनाने लगता है इसलिए दरज़ी रानी के लिए अति सुंदर और उच्च स्तरीय वस्त्र तैयार करना चाहता था। उसकी परेशानी तर्कसंगत और सार्थक है।

प्रश्न 3. जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यल किए ?

उत्तर – मूर्तिकार ने जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुन: लगाने के लिए सारे देश के पर्वतीय क्षेत्रों का भ्रमण किया। पत्थरों की खानों को देखा। इससे पहले पुरातत्व विभाग से यह जानने की भी कोशिश की थी मूर्ति कहाँ बनी, कब बनी और किस पत्थर से बनी। मूर्ति जैसा पत्थर प्राप्त न कर पाने के कारण देश भर के महापुरुषों की मूर्तियों की नाक उस मूर्ति पर लगाने का प्रयत्न किया लेकिन सभी मूर्तियों की नाक लंबी होने के कारण वह ऐसा कर नहीं पाया। उसने अपनी हिम्मत बनाए रखते हुए जॉर्ज पंचम की नाक की जगह देशवासियों में से किसी की जिंदा नाक लगाने का प्रस्ताव रखा जिसे स्वीकार कर लिया गया। उसने इंडिया गेट के पास तालाब को सुखा कर साफ़ किया। उसकी रवाब निकलवाई और उसमें ताजा पानी भरवाया ताकि जिंदा नाक लगने के बाद सूख न पाए।

प्रश्न 4. नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पुरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभर कर आई है? लिखिए।
अथवा
जार्ज पंचम की नाक’ पाठ का मूल भाव अथवा निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – वास्तव में ही नाम मान-सम्मान और प्रतिष्ठा की द्योतक है। रानी एलिजाबेथ का चार सौ पौंड का हल्का नीला सूट उस की नाक-सम्मान और प्रतिष्ठा का द्योतक है तो दरजी की चिंता उसके नाक की प्रतिष्ठा को प्रकट करती है कि कहीं उसकी सिलाई-कढ़ाई रानी के स्तर से कुछ नीचे न रह जाए। अखबारों के नाक की प्रतिष्ठा इस बात में छिपी है कि कोई भी, कैसी भी खबर छपने से रह न जाए। रानी के इंग्लैंड में रहने वाले कुत्ते की भी फोटो समेत खबर हिंदुस्तान की जनता को आखबारों में दिख जानी चाहिए। सरकार की नाक तभी ऊँची रह सकती है जब सदा धूल-मिट्टी से भरी रहने वाली टूटी- फूटी सड़कें विदेशियों के सामने जगमगाती दिखाई दें। आंदोलन करने वालों के नाक की ऊंचाई इसी बात पर टिकती है कि वे कुछ और कर सकें या न कर सकें पर पत्थर की बनी जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक भला क्यों सही सलामत रह जाए। इससे कोई लाभ होगा या हानि, उन्हें इस बात से कुछ लेना देना नहीं है उन्होंने एक बार निर्णय कर लिया कि मूर्ति की नाक नहीं रहनी चाहिए तो वह नहीं रहेगी। देश के शुभचिंतकों ने एक बार ठान लिया कि मूर्ति की नई नाक लगानी है तो वह लगेगी क्योंकि यह उनके मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रश्न था। इसके लिए चाहे कितना भी धन व्यर्य करें, देश के महान् नेताओं की मूर्तियों की नाक हटवाएं या किसी जिंदा व्यक्ति की नाक ही क्यों न लगवाएं। मूर्तिकार की नाक इसी में ऊँची रहनी थी कि वह किसी भी प्रकार कैसी भी नाक मूर्ति को लगा दे। ऐसा न कर पाने पर उसकी नाक तो दाव पर लग जाती। लेखक ने अपनी व्यंग्य रचना में नाक को मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का द्योतक मान कर अपनी बात को स्पष्ट किया है कि सब का अहं उन्हें ऊँचे स्थान पर प्रतिष्ठित करना चाहता है। इसी से उनके नाक की ऊंचाई बनी रह सकती है।

प्रश्न 5. जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप थे ?

उत्तर – जॉर्ज पंचम की मूर्ति को चालीस करोड़ भारतीयों में से किसी एक की जिंदा नाक लगाने का जिम्मा मूर्तिकार ने लिया था। अखबारों में छप गया था कि उसे जिंदा नाक लगा दी गई। भारतवासियों को ऐसा लगा जैसे उन सबकी नाक कट गई। सबका घोर अपमान हुआ। आजाद देश में उस व्यक्ति की मूर्ति को जिंदा नाक लगाई गई जिसने सारे देश को गुलामी की बेड़ियों में जकड़ रखा था। इस अपमानजनक सुविचारित घटना के बाद अखबार चुप थे। इस अपमान से पीड़ित होने के कारण उनके पास कहने के लिए कुछ भी शेष नहीं बचा था।

पाठ 3 साना साना हाथ जोड़ी महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है ?

उत्तर – यूमघांग जाते हुए रास्ते में बहुत सारी बौद्ध पताकाएँ दिखाई दीं। लेखिका के गाइड जितेन नार्गे ने बढ़ाय कि श्वेत पताकाएँ जब किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है तो उस समय उसकी आत्मा की शांति के लिए फहराई जाती हैं। रंगीन पताकाएं किसी नये कार्य के आरंभ पर लगाई जाती हैं।

प्रश्न 2. कटाओ को भारत का स्विट्जरलैंड क्यों कहा गया है ?

उत्तर – ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। ‘कटाओ’ को भारत का स्विट्ज़रलैंड कहा जाता है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता असीम है, जिसे देखकर सैलानी स्वयं को ईश्वर के निकट समझते हैं। वहाँ उन्हें अद्भुत शांति मिलती है। यदि वहाँ पर दुकानें खुल जाती हैं तो लोगों की भीड़ बढ़ जाएगी, जिससे वहाँ गंदगी और प्रदूषण फैलेगा। लोग सफ़ाई संबंधी नियमों का पालन नहीं करते। वस्तुएँ खा-पीकर व्यर्थ का सामान इधर-उधर फेंक देते हैं। लोगों का आना-जाना बढ़ने से जैसे यूमथांग में स्नोफॉल कम हो गया है। वैसा ही यहाँ पर भी होने की संभावना है। ‘कटाओ’ के वास्तविक स्वरूप में रहने के लिए वहाँ किसी भी दुकान का न होना अच्छा है।

प्रश्न 3. प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है ?

उत्तर – प्रकृति का जलसंचय करने का अपना ही ढंग है। सर्दियों में वह बर्फ के रूप में जल इकट्ठा करती है। गर्मियों में जब लोग पानी के लिए तरसते हैं तो ये बर्फ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बन जाती है, जिससे हम लोग जल प्राप्त कर अपनी प्यास और दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

प्रश्न 4. लेखिका को बर्फ कहाँ देखने को मिल सकती थी और वह कहाँ स्थित है ?
अथवा
सिक्कमी नवयुवक ने ‘कटाओ’ के बारे में लेखिका को क्या जानकारी दी थी?

उत्तर – एक सिक्कमी नवयुवक ने लेखिका को बताया था कि इस समय बर्फ ‘कटाओ’ में देखने को मिल सकती थी। कटाओ को भारत का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। अभी तक वह टूरिस्ट स्पॉट नहीं बना इसीलिए वह अपने प्राकृतिक स्वरूप में था। कटाओ लातूर से 500 फीट की ऊंचाई पर था। कटावो लाथूंग से 500 फीट की ऊंचाई पर था। वहां पहुंचने के लिए लगभग 2 घंटे का समय लगना था।

प्रश्न 5. जितेन ने सैलानियों से गुरु नानक देव जी से संबंधित किस घटना का वर्णन किया है ?

उत्तर – जितेन को वहाँ के इतिहास और भौगोलिक स्थिति का पूरा ज्ञान था। वह उन्हें रास्ते भर तरह-तरह की जानकारियों देता रहा था। एक : यान पर उसने बताया कि यहाँ पर एक पत्थर पर गुरु नानक देव जी के पैरों के निशान हैं। जब गुरु नानक जी यहाँ आए थे उस समय उनकी थाली से कुछ चावल छिटक कर बाहर गिर गए थे। जहाँ-जहाँ चावल छिटके थे वहाँ-वहा चावलों की खेती होने लगी थी।

माता का आँचल पाठ का मूल भाव क्या है?

माता का आँचल' पाठ का मूलभाव स्पष्ट कीजिए। उत्तर – माँ बच्चे की जन्मदाता तथा पालन-पोषण करने वाली है। स्वाभाविक रूप से बच्चा माँ से अधिक लगाव रखता है। माँ भी एक बाप की अपेक्षा हृदय से अधिक प्यार-दुलार करती है।

माता का अंचल पाठ का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर- माता का आंचल पाठ का उद्देश्य बाल मनोभावों की अभिव्यक्ति के साथ-साथ तत्कालीन समाज के पारिवारिक परिवेश का चित्रण करना है।

माता का अंचल पाठ से आपको क्या शिक्षा मिलती है?

माता के आंचलपाठ से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि माँ ही सबसे महत्वपूर्ण होती है। भले ही हमें अपने पिता से कितना भी प्रेम हो, लेकिन जब भी हम पर कोई संकट आता है, हमें कोई कष्ट होता है, हम दुखी या उदास होते हैं तो हमें अपनी माँ ही सबसे पहले याद आती है। माँ की गोद बालक के लिए सबसे सुरक्षित जगह लगती है।

माता का अंचल अध्याय में किसका वर्णन किया गया है?

भोलानाथ का अपने पिता से अपार स्नेह था पर जब उस पर विपदा आई तो उसे जो शांति व प्रेम की छाया अपनी माँ की गोद में जाकर मिली वह शायद उसे पिता से प्राप्त नहीं हो पाती। माँ के आँचल में बच्चा स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। लेखक ने इसलिए पिता पुत्र के प्रेम को दर्शाते हुए भी इस कहानी का नाम माँ का आँचल रखा है।