निजी और सार्वजनिक संपत्तियों के उदाहरण लिखिए कोई दो - nijee aur saarvajanik sampattiyon ke udaaharan likhie koee do

सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों के खिलाफ

डिसक्लेमर:यह आर्टिकल एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड हुआ है। इसे नवभारतटाइम्स.कॉम की टीम ने एडिट नहीं किया है।

Show

| Updated: Jun 17, 2022, 8:12 PM

नयी दिल्ली, 17 जून (भाषा) केंद्र की ‘अग्निपथ’ सैन्य भर्ती योजना के खिलाफ कई राज्यों में व्यापक हिंसक विरोध और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान कानूनी सिद्धांतों के मूल और इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए विभिन्न निर्णयों में उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित निर्देशों के खिलाफ है। अतीत में, शीर्ष अदालत ने निजी व्यक्तियों के हिंसक विरोध और प्रदर्शनों में "निराशाजनक वृद्धि" संबंधी ऐसी घटनाओं में लिप्त लोगों के साथ सख्ती से निपटने का काम किया तथा यह भी देखा कि "किसी को भी कानून का स्वयंभू संरक्षक बनने का अधिकार नहीं है और न ही कोई दूसरों

निजी और सार्वजनिक संपत्तियों के उदाहरण लिखिए कोई दो - nijee aur saarvajanik sampattiyon ke udaaharan likhie koee do

नयी दिल्ली, 17 जून (भाषा) केंद्र की ‘अग्निपथ’ सैन्य भर्ती योजना के खिलाफ कई राज्यों में व्यापक हिंसक विरोध और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान कानूनी सिद्धांतों के मूल और इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए विभिन्न निर्णयों में उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित निर्देशों के खिलाफ है।

अतीत में, शीर्ष अदालत ने निजी व्यक्तियों के हिंसक विरोध और प्रदर्शनों में "निराशाजनक वृद्धि" संबंधी ऐसी घटनाओं में लिप्त लोगों के साथ सख्ती से निपटने का काम किया तथा यह भी देखा कि "किसी को भी कानून का स्वयंभू संरक्षक बनने का अधिकार नहीं है और न ही कोई दूसरों पर कानून की अपनी व्याख्या जबरन थोप सकता है।’’

शीर्ष अदालत द्वारा मुद्दे पर अग्रसक्रिय ढंग से काम किए जाने के बाद पिछले कुछ वर्षों में, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले हिंसक विरोध प्रदर्शनों में शामिल संगठनों के नेताओं पर मुकदमा चलाने, इस तरह की घटनाओं पर उच्च न्यायालयों से स्वत: संज्ञान लेने के लिए कहने और पीड़ितों को मुआवजा देने जैसे कई महत्वपूर्ण निर्देश देखे गए हैं।

हाल के वर्षों में, जब भी सरकारी नीतियों तथा अन्य मुद्दों को लेकर हिंसा की व्यापक घटनाएं हुई हैं, शीर्ष अदालत ने अधिकारियों से उन लोगों पर जवाबदेही तय करने को कहा है जो सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं।

शीर्ष अदालत ने 2007 में व्यापक स्तर पर हिंसा और सार्वजनिक संपत्तियों के नुकसान की घटनाओं पर स्वत: संज्ञान लिया और सिफारिशें देने के लिए दो समितियों का गठन किया।

न्यायालय ने 16 अप्रैल, 2009 को न्यायमूर्ति के टी थॉमस, शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, और प्रसिद्ध न्यायविद एफएस नरीमन के नेतृत्व वाली दो समितियों की सिफारिशों पर ध्यान दिया और कहा कि सुझाव अत्यंत महत्वपूर्ण हैं तथा वे पर्याप्त दिशा-निर्देश देने वाले हैं जिन्हें अपनाए जाने की अवश्यकता है।

शीर्ष अदालत ने नरीमन समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था जिनमें कहा गया था कि "जहां भी विरोध या उसके कारण संपत्ति का सामूहिक नुकसान हो, उच्च न्यायालय स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई जारी कर सकता है और नुकसान की जांच के लिए मशीनरी स्थापित कर सकता है तथा मुआवजे का निर्देश दे सकता है।

इसने कहा था कि जहां एक से अधिक राज्य शामिल हों; वहां इस तरह की कार्रवाई उच्चतम न्यायालय कर सकता है।

वर्ष 2018 में शीर्ष अदालत ने कहा था कि किसी को भी कानून का "स्व-नियुक्त अभिभावक" बनने का अधिकार नहीं है क्योंकि भीड़ की हिंसा कानूनी सिद्धांतों के मूल के खिलाफ चलती है।

Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप

लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें

These articles, the information therein and their other contents are for information purposes only. All views and/or recommendations are those of the concerned author personally and made purely for information purposes. Nothing contained in the articles should be construed as business, legal, tax, accounting, investment or other advice or as an advertisement or promotion of any project or developer or locality. PropTiger.com does not offer any such advice. No warranties, guarantees, promises and/or representations of any kind, express or implied, are given as to (a) the nature, standard, quality, reliability, accuracy or otherwise of the information and views provided in (and other contents of) the articles or (b) the suitability, applicability or otherwise of such information, views, or other contents for any person’s circumstances.

PropTiger.com shall not be liable in any manner (whether in law, contract, tort, by negligence, products liability or otherwise) for any losses, injury or damage (whether direct or indirect, special, incidental or consequential) suffered by such person as a result of anyone applying the information (or any other contents) in these articles or making any investment decision on the basis of such information (or any such contents), or otherwise. The users should exercise due caution and/or seek independent advice before they make any decision or take any action on the basis of such information or other contents.

सार्वजनिक संपत्ति का अर्थ क्या है?

सार्वजनिक संपत्ति की परिभाषा: सार्वजनिक संपत्ति" का अर्थ है कोई भी संपत्ति, चाहे वह अचल हो या चल (किसी भी मशीनरी सहित) जो स्वामित्व में हो, या उसके कब्जे में हो या उसके नियंत्रण में हो। कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 617 में परिभाषित कोई भी कंपनी।

सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र क्या है?

यह भागीदारी शासन / सांविधिक निकाय / शासन के स्वामित्व वाले निकाय एवं निजी क्षेत्र के निकायों के मध्य होती है । ii. भागीदारी का उद्देश्य सार्वजनिक सम्पत्ति अथवा लोक सेवाओं को उपलब्ध कराना है।

निजी क्षेत्र का उद्योग कौन है?

जैसा कि आप पहले अध्याय में पढ़ चुके हैं, निजी क्षेत्र में व्यवसायों के स्वामी व्यक्ति होते हैं अथवा व्यक्तियों का समूह। इसमें संगठन के विभिन्न स्वरूप हैं— एकल स्वामित्व, साझेदारी, संयुक्त हिंदू परिवार, सहकारी समितियाँ एवं कंपनी।

सरकार सभी को सार्वजनिक सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु धन की व्यवस्था कैसे करती है?

भारतीय रि‍ज़र्व बैंक ने पूरे भारतवर्ष में सरकार की ओर से राजस्व संग्रह करने के साथ-साथ भुगतान करने के लि‍ए सुसंचालि‍त व्यवस्था की है।