नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना क्यों हुई? - naalanda vishvavidyaalay kee sthaapana kyon huee?

विद्या के क्षेत्र में कभी भारत का ऐसा बोलबाला था कि विदेशों से विद्यार्थी नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा लेने आते थे। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि यह सब बातें बस इतिहास बन कर रह गयी। आखिर ऐसा क्या हुआ जिसने भारत को विद्याविहीन करने का प्रयास किया। आइये जानते हैं ( Nalanda University History In Hindi ) नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास क्या है :-

नालंदा विश्वविद्यालय खंडहर फोटो :-

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना क्यों हुई? - naalanda vishvavidyaalay kee sthaapana kyon huee?

Nalanda University History In Hindi

नालंदा विश्वविद्यालय नाम का अर्थ :-

नालंदा विश्विद्यालय का उदय 5वीं शताब्दी में माना जाता है। नालंदा विश्वविद्यालय विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है। वर्तमान समय में यह बिहार में स्थित है। 7 वीं शताब्दी के शुरुआती चीनी तीर्थयात्री, जुआनज़ांग ( Xuanzang ) के अनुसार स्थानीय परंपरा बताती है कि नालंदा नाम एक नागा से आया है – भारतीय धर्मों में नाग देवता – जिसका नाम नालंदा था।

ऐसा भी कहा जाता है कि नालंदा संस्कृत के 3 शब्दों से मिल कर बना है – ना + अलम + दा । जिसका अर्थ होता है न रुकने वाला ज्ञान का प्रवाह। नालंदा की जानकारी हमें ह्वेन सांग और इत्सिंग जैसे चीनी यात्रियों के अकाउंट से मिलती है।

ह्यून सांग ( Xuanzang ) 7 वीं शताब्दी में नालंदा आते हैं। वे इसकी स्थापना का श्रेय गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्ता 1 को देते हैं। वे लिखते हैं कि यहाँ 10,000 विद्यार्थी और  2,000 से अधिक अध्यापक रहते थे। मतलब यह एक रिहायशी विश्वविद्यालय हुआ करता था। जहाँ चीन, जापान, कोरिया, इंडोनेशिया, पर्शिया, तुर्की और श्री लंका जैसे देशों से लोग पढ़ने के लिए आते थे।

यहाँ बुद्ध धर्म शिक्षा ( Buddhism ) के साथ-साथ गणित, खगोल विज्ञान ( Astronomy ), दर्शनशास्त्र ( Philosphy ), औषधि ( Medicine ) और व्याकरण ( Grammar ) जैसे विषयों की शिक्षा भी दी जाती थी। यहाँ तक कि उपनिषदों की कुछ असली प्रतियाँ भी यहाँ मौजूद मानी जाती थीं। इतना ही नहीं यहाँ पढ़ने वालों से किसी भी तरह का शुल्क नहीं लिया जाता था।

यहाँ पढ़ने वालों में हर्षवर्धन, वासुबंधू, धर्मपाल, नागार्जुन, ह्यून सांग, पद्मसंभव जैसे बड़े-बड़े नाम शामिल हैं। ऐसा भी माना जाता है प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट इस विश्विद्यालय के विद्यार्थी रहे थे। ज्ञान का ये केंद्र लगभग 800 सालों तक ऐसे ही फलता-फूलता रहा। लेकिन 12 वीं शताब्दी में अचानक ही यह अतीत के अंधेरों में खो जाता है। इसके पीछे की कहानी बड़ी रोमांचक है।

नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमण

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास पढ़ने पर पता चलता है कि नालंदा पर एक नहीं तीन आक्रमण हुए थे। पहले दो आक्रमण के बाद इसे दुबारा बना लिया गया था। लेकिन तीसरा आक्रमण इसके लिए घातक सिद्ध हुआ।

सबसे पहला आक्रमण स्कन्दगुप्त के समय 455-467 AD मिहिरकुल के नेतृत्व में हून ने किया था। हून मध्य एशिया के कबीले के एक समूह को कहते हैं। जो ख्य्बर पास के रस्ते भारत में प्रवेश करते हैं। 4 और 6 ई.पू. हुन लोगों ने भारत पर आक्रमण किया था। लेकिन स्कन्दगुप्त के वंशजों ने न सिर्फ नालंदा को दुबारा बनाया बल्कि इसे पहले से भी बड़ा और मजबूत बनाया।

नालंदा पर दूसरा आक्रमण 7 वीं शताब्दी में बंगाल के गौदास राजवंश के द्वारा किया गया था। इस आक्रमण के बाद बौद्ध राजा हर्षवर्धन इसे दुबारा बनवाते हैं।

नालंदा पर तीसरा आक्रमण किया था 1193 AD में तुर्की के शासक बख्तियार खिलजी ने। आइये जानते हैं इसके पीछे की कहानी को कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिसके कारण बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्विद्यालय को ध्वस्त कर दिया।

कहा जाता है की एक बार बख्तियार खिलजी बहुत बीमार पड़ गया था । बहुत से उपाय और हकीमों के इलाज के बाद भी सेहत में कोई सुधार न हुआ । ऐसे में किसी ने सलाह दी कि नालंदा महावीरा के प्रधानाध्यापक ( Principal ) राहुल श्री भद्र इलाज कर सकते हैं । एक बार उनसे इलाज करवा कर देखा जाए । बख्तियार खिलजी को किसी गैर-मुसलमान से इलाज करना मंजूर नहीं था । मगर जब उसकी सेहत में कोई सुधार न हुआ तो उसने सोचा कि एक बार राहुल को बुला कर देख लेना चाहिए।

राहुल श्री भद्र जब बख्तियार खिलजी का उपचार करने पहुंचे तो खिलजी ने उनके सामने यह शर्त रख दी कि वो इनकी दी गयी कोई भी दवा नहीं खाएगा । वह राहुल श्री भद्र को चुनौती देना चाहता था और हिन्दू को भी नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा था इसके बावजूद राहुल श्री भद्र उसको विश्वास दिलाते हैं कि वह जल्दी ही ठीक हो जाएगा । वह खिलजी को क़ुरान देते हिं और कहते हैं कि इसके कुछ पन्ने रोज पढ़िएगा। कुछ-ही दिनों में उनकी सेहत में सुधार हो जाता है ।

राहुल श्री भद्र ने क़ुरान में एक ऐसी दवा लगाई थी जो पढ़ते समय खिलजी तक पहुँच जाती। जिस कारण वह पूर्ण तौर पर सही हो जाता है। जब खिलजी को इस बारे में पता चलता है तो उसे बहुत ज्यादा असुरक्षा और उत्कंठा की भावना आ जाती है कि इन काफिरों के पास मुस्लिम हकीमों से ज्यादा ज्ञान कैसे है । बस इसी भावना में खिलजी यह निर्णय लेता है कि वह इस ज्ञान के स्त्रोत को ही समाप्त कर देगा। और यहीं से शुरुआत हुई नालंदा की बर्बादी की ।

नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया

नालंदा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए ज्ञान का स्त्रोत थीं नालंदा विश्विद्याल के परिसर में स्थित पुस्तकालय की पुस्तकें। उस समय यह विश्व का सबसे बड़ा पुस्तकालय था। इसका नाम धर्मगंज हुआ करता था। यह तीन बहुमंजिला ईमारत से मिल कर बनी थी। इन तीनों इमारतों का नाम था रतनसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक। इसमें लगभग 90,00,000 पुस्तकों का संग्रह था।

खिलजी को जब इस बात का पता चला तो वो नालंदा पर आक्रमण करने का निर्णय लेता। हजारों की संख्या में रह रहे निहत्थे विद्यार्थियों की हत्या कर दी जाती है जिसमें से कईयों को तो जिन्दा ही जला दिया जाता है। इसके बाद पुस्तकालय में आग लगा दी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि पुस्तकालय में रखी पुस्तकों को जलने में 3 महीने लग जाते हैं।

यह मात्र एक विश्विद्यालय पर ही नहीं बल्कि एक सभ्यता पर आक्रमण था। यह आक्रमण इतना गंभीर था कि इसके बाद नालंदा को एक बार फिर से वही रूप देने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। कुछ बचा तो बस दीवारों के अवशेष। बख्तियार खिलजी यहीं नहीं रुका था नालंदा के बाद उसने बिहार में स्थित विक्रमशिला और ओदान्तापुरी नामक विश्वविद्यालयों को भी नष्ट कर दिया। यह मात्र भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की हानि थी।

एक व्यक्ति की ईर्ष्या के कारण हजारों वर्षों का ज्ञान संग्रह जल कर राख हो गया। अब इस ज्ञान संग्रह को दुबारा नहीं प्राप्त किया जा सकता परन्तु भारत सरकार ने नालंदा महावीरा को शैक्षिक केंद्र ( Educational Hub ) बनाने की शुरुआत की है। जब भारत के पूर्व राष्ट्रपति, माननीय डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने मार्च 2006 में बिहार राज्य विधान सभा को संबोधित करते हुए प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने का विचार रखा तब पुराने नालंदा के पुनर्निर्माण के सपने को साकार करने की दिशा में पहला कदम उठाया गया था।

लगभग उसी समय, सिंगापुर सरकार ने भारत सरकार को “नालंदा प्रस्ताव” प्रस्तुत किया। और प्राचीन नालंदा को एक बार फिर से एशिया का केंद्र बिंदु बनाने के लिए उसे फिर से स्थापित करने का सुझाव दिया।

उसी भावना में, बिहार की राज्य सरकार ने दूरदर्शी विचार को अपनाने के लिए तत्परता से आगे बढ़ने के लिए भारत सरकार के साथ परामर्श किया। साथ ही, इसने नए नालंदा विश्वविद्यालय के लिए उपयुक्त स्थान की खोज शुरू की। प्रकृति के पास होने के आधार पर राजगीर हिल्स में 450 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया। इस प्रकार, बिहार राज्य और भारत सरकार के बीच उच्च स्तर के सहयोग ने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना शुरू से ही अपने नए अवतार में की।

अंत में, परियोजना ने गति पकड़ी, जब नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम 2010 को भारतीय संसद के दोनों सदनों में पारित किया गया। जाने-माने अर्थशास्त्री ( Economist ) अमर्त्य सेन को इस विश्विद्यालय की संचालन समिति ( Governing Committee) का अध्यक्ष भी बनाया गया। सितंबर 2014 में, विश्वविद्यालय ने छात्रों के पहले बैच के लिए अपने दरवाजे खोले, लगभग आठ सौ वर्षों के अंतराल के बाद एक ऐतिहासिक विकास का आरंभ हुआ।

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास से सामान्य ज्ञान :-

नालंदा विश्वविद्यालय क्यों प्रसिद्ध है?

नालंदा प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे।

नालंदा यूनिवर्सिटी किसने बनवाया था?

नालंदा यूनिवर्सिटी को कुमारगुप्त प्रथम ने बनवाया था।

नालंदा विश्वविद्यालय का संस्थापक कौन था?

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास के अनुसार संस्थापक कुमारगुप्त प्रथम ।

नालंदा विश्वविद्यालय कब बना था?

नालंदा विश्विद्यालय 5 वीं शताब्दी में बना माना जाता है।

नालंदा विश्वविद्यालय कहाँ स्थित है?

यह राजगीर शहर के पास और पटना से लगभग 90 किलोमीटर (56 मील) दक्षिण-पूर्व में स्थित था।
भारत सरकार द्वारा निर्मित नालंदा विश्वविद्यालय, राजगीर, नालंदा जिला ( Nalanda University , Rajgir , Nalanda District ) में स्थित है।

नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया?

नालंदा विश्वविद्यालय को इख़्तिया रुद्दीन मुहम्मद बिन बख़्तयार ख़िलजी ( Muhammad bin Bakhtiyar Khalji ) ने जलाया था।

नालंदा विश्वविद्यालय को किसने और क्यों जलाया?

तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी। कहा जाता है कि विश्व विद्यालय में इतनी पुस्तकें थी की पूरे तीन महीने तक यहां के पुस्तकालय में आग धधकती रही। उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले। खिलजी ने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था।

नालंदा विश्वविद्यालय का स्थापना कब और किसने किया था?

इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० को प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय को हेमंत कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग मिला। गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा। इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला।

नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण कैसे हुआ?

इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम (450-470) ने की थी। इस विश्वविद्यालय को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी, लेकिन अब यह एक खंडहर बनकर रह चुका है, जहां दुनियाभर से लोग घूमने के लिए आते हैं। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का एक अद्भुत नमूना है।

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास क्या है?

नालंदा एक प्रशंसित महाविहार था, जो भारत में प्राचीन साम्राज्य मगध (आधुनिक बिहार) में एक बड़ा बौद्ध मठ था। यह साइट बिहार शरीफ शहर के पास पटना के लगभग 95 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में स्थित है, और पांचवीं शताब्दी सीई से 1200 सीई तक सीखने का केंद्र था। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।