निम्नलिखित में से कौन नक्सलवादी विद्रोह का नेता था? - nimnalikhit mein se kaun naksalavaadee vidroh ka neta tha?

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Title: Discussion on the demands for Grants No. 46 to 55 under the control of the Ministry of Home Affairs, 2017-2018.

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HON. SPEAKER: The House will now take up discussion and voting on Demand Nos. 46 to 55 relating to the Ministry of Home Affairs.

          Hon. Members present in the House whose cut motions to the Demands for Grants relating to the Ministry of Home Affairs have been circulated may, if they desire to move their cut motions, send slips to the Table within 15 minutes indicating the serial numbers of the cut motions they would like to move. Only those cut motions in respect of which intimation is received at the Table will be treated as moved.

          A list showing the serial numbers of cut motions treated as moved will be put up on the Notice Board shortly thereafter. In case any Member finds any discrepancy in the list, he may kindly bring it to the notice of the Officer at the Table immediately.

Motion moved:

That the respective sums not exceeding the amounts on Revenue Account and Capital Account shown in the third column of the Order Paper be granted to the President, out of the Consolidated Fund of India, to complete the sums necessary to defray the charges that will come in course of payment during the year ending the 31st day of March, 2018, in respect of the heads of Demands entered in the Second column thereof against Demand Nos. 46 to 55 relating to the Ministry of Home Affairs.


Demands for Grants- Budget (General), 2017-18 in respect of Ministry of Home Affairs

submitted to the vote of Lok Sabha

   No. of   Demand  

            Name of Demand

Amount of Demands for Grants submitted

              to  the vote of  the House

1

2

3

Revenue Rs.                                  Capital Rs.

46

Ministry of Home Affairs

4777,00,00,000                             322,97,00,000

47

Cabinet

  730,00,00,000                                    

48

Police

6753,66,00,000                           11171,64,00,000                         

49

50

51

52

53

54

55

Andaman and Nicobar Islands

Chandigarh

Dadra and Nagar Haveli

Daman and Diu

Lakshadweep

Transfer to Delhi

Transfer to Puducherry

3736,68,00,000                               526,59,00,000

3802,35,00,000                             332,85,00,000

  686,45,00,000                                389,16,00,000

1288,09,00,000                               296,95,00,000

1083,26,00,000                            165,65,00,000

  758,00,00,000

1411,01,00,000                               72,00,00,000


Hon'ble Speaker: Now, Shri Mallikarjun Kharge.

श्री मल्लिकार्जुन खड़गे (गुलबर्गा) : अध्यक्ष महोदय, मुझे बोलने का समय देने के लिए मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। आज सदन में गृह मंत्रालय की अनुदानों की मांगों पर बोलने के लिए मैं खड़ा हुआ हूं। यह बहुत महत्वपूर्ण विभाग है और इसके लिए चार घंटे की चर्चा देना बहुत ही कम है। क्योंकि राज्य में सरकार उन्हीं इलाकों को समझती है, जैसे कि रेवेन्यू डिपार्टमैन्ट और पुलिस डिपार्टमैन्ट है तो लोग उन्हीं की तरफ ज्यादा ध्यान देते हैं और गौरव का अनुभव करते हैं। आपको मालूम होगा कि किसी डिपार्टमैन्ट की कोई भी समस्या हो, लोग डिप्टी-कमिश्नर, असिस्टेंट कमिश्नर, तहसीलदार या पुलिस ऑफिसर के सामने जाकर बैठते हैं।

14.58 hours                        (Hon. Deputy Speaker in the Chair)  

Governance is actually done by only two Departments in the State and people expect their grievances to be redressed there only. यहां भी तीन डिपार्टमैन्ट्स को बड़े महत्व से देखा जाता है। एक गृह मंत्रालय, दूसरा डिफैंस मिनिस्ट्री और तीसरा फाइनेंस मिनिस्ट्री। ये तीन बड़े महत्व के डिपार्टमैन्ट्स होते हैं, लेकिन इन पर कम ध्यान क्यों दिया जा रहा है, यह मेरी समझ में नहीं आ रहा है। आज डिफैंस मिनिस्ट्री की अनुदानों की मांगों पर चर्चा शुरू भी हो गई और खत्म भी हो गई। ...(व्यवधान) मैं यही बैठा हूं।

रसायन और उर्वरक मंत्री तथा संसदीय कार्य मंत्री (श्री अनन्तकुमार): कल दो घंटे डिफैंस के बारे में चर्चा हुई थी।

श्री मल्लिकार्जुन खड़गे : मुझे मालूम है, मैं कहीं नहीं गया था। मैं आपको लेकर ही चलता हूं और लेकर ही आता हूं। आज होम डिपार्टमैन्ट लिया गया है। होम डिपार्टमैन्ट का रिप्लाई अगर आप मंडे करें तो अच्छा है।

15.00 hours

बोलने वाले बोलते हैं, सोमवार को आप ठीक ढंग से भी रिप्लाई कर सकते हैं और हम भी पूछ सकते हैं। आज शुक्रवार रहने की वजह से आपको तो मालूम है कि आखिरी समय में बहुत से लोग चले जाते हैं, कुछ उनकी पूछताछ भी जो करते हैं, वह नहीं होती है। अगर आप नए मुख्य मंत्री बन कर यू.पी. जा रहे हैं, तो मैं अभी बोलूंगा। ...(व्यवधान) अगर आप यू.पी. जा रहे हैं और सोमवार को रिप्लाई नहीं हो सकता है तो यह मैं आपके ऊपर छोड़ता हूँ। ...(व्यवधान)

श्री अनुराग सिंह ठाकुर (हमीरपुर): सर, मीडिया का काम खड़गे जी ने कब से करना शुरू कर दिया है। ...(व्यवधान) जो काम मीडिया वाले नहीं कर पाए, वह काम खड़गे जी कर रहे हैं। ...(व्यवधान)

श्री मल्लिकार्जुन खड़गे : जब से आपने बोला है, तब से कर रहा हूँ। ...(व्यवधान) ठाकुर जी, जो आपने मुझे बताया है, वही बता रहा हूँ। ...(व्यवधान) इसीलिए ये तीन बड़े ही महत्व के विभाग हैं। इन पर हमेशा कम से कम एक-एक दिन की चर्चा होनी चाहिए। हर देश की एक तरफ रक्षा, दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था और तीसरी तरफ कानून एवं व्यवस्था और हर राज्य सरकार के साथ संबंध, फेडरल सिस्टम में सीधे तौर पर आपके साथ होते हैं। चाहे वह तमिलनाडु का हो, चाहे कर्नाटक का हो, चाहे किसी भी राज्य का हो, हर राज्य का आदमी और हर राज्य का राज्यपाल आपसे सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। जो भी समस्याएं हैं, उनको आप ही हल कर सकते हैं। इसीलिए यह मेरी विनती थी। इस विनती को लोकतंत्र में मान्यता मिलती है। लेकिन यहां पर तो सब बुल्डोज़िंग हैं। आप कुछ भी कहो, उसको मानने का नहीं है। आप कहो हम सुनते रहेंगे और उसको नकारते रहेंगे। यह उनकी आदत बन गई है। लेकिन कम से कम राजनाथ सिंह जी को ऐसा नहीं करना चाहिए था, क्योंकि दूसरे लोगों को अनुभव नहीं है, अगर वे ऐसा करते हैं तो ठीक है, लेकिन कम से कम आपको तो इसमें इंट्रस्ट ले कर हम सबकी हिफाजत भी करनी है। लोकतंत्र की हिफाजत करनी है। संविधान की भी रक्षा करनी है और सब लोगों की देखभाल भी आपको करनी है। महोदय, एक बहुत ही महत्वपूर्ण विभाग होते हुए भी इसको बजट में सबसे कम पैसा दिया गया है। मुझे पता है कि आप आंकड़ें देते हैं, लेकिन आप पर्सेंटेज के हिसाब से बात करेंगे तब आपको सच्ची कहानी इसमें मिल जाएगी या सच्ची बात आपको मालूम हो जाएगी। अब मैं उदाहरण के तौर पर आपसे कहता हूँ। इस बजट में आंतरिक सुरक्षा, आपदा प्रबंधन आदि जो महत्वपूर्ण हैड्स हैं, इसमें सन् 2016-17 में तो कम खर्चा हुआ है और सन् 2017-18 के बजट में भी फण्ड्स कम रखे गए हैं। इससे यह साबित होता है कि बहुत से फण्ड्स को इस्तेमाल करने में या तो सरकार विफल हुई है या फिर महत्वपूर्ण विभागों के लिए जो महत्वपूर्ण अंग है, उन संस्थाओं को फण्ड्स देने में या तो वित्त मंत्रालय कंजूसी कर रहा है या फिर आपका दण्ड है, उसको आप नहीं चला पा रहे हैं। आप सीनियर मोस्ट मिनिस्टर हैं। आप कैबिनेट में नंबर दो के मंत्री हैं। आपकी बात तो सबसे पहले चलनी चाहिए। आप जितना मांगते हैं, उतना देना चाहिए। ...(व्यवधान)

श्री तथागत सत्पथी (धेंकानाल) : वे इतने अच्छे मंत्री हैं, आप उनको नंबर दो बोल कर उनका करियर क्यों बर्बाद कर रहे हैं। ...(व्यवधान)

श्री मल्लिकार्जुन खड़गे : मैं चाहता हूँ कि वे नंबर - 1 पर आएं। लेकिन वे आ नहीं रहे हैं, क्योंकि सब चीज़ मोदी सरकार - मोदी सरकार हो रही है। कम से कम वे बीजेपी सरकार बोलते तो नंबर-1 पर आ जाते थे। ...(व्यवधान) लेकिन इस मंत्रालय को वित्त विभाग से बहुत कम मदद मिल रही है। यह अच्छी बात नहीं है। खास कर नक्सलवाद की समस्या को देखिए कि यह तो उग्रवाद की ओर बढ़ रहा है, यह आप सभी को मालूम है। बीच में कम होता है, फिर उभरता है, फिर कम होता है और नई-नई घटनाएं घटती रहती हैं।   

मैं आपके सामने आँकड़े रखूँगा कि माओवाद के वर्ष 2015-16 के मुकाबले में, वर्ष 2015 में कितने थे और वर्ष 2016 में कितने हो गये, सिविलियन्स किल्ड वर्ष 2015 में 171 थे, वर्ष 2016 में 213 हो गये तो ये बढ़ गये या घट गये। सिक्योरिटी फोर्सेज किल्ड वर्ष 2015 में 59 थे, वर्ष 2016 में 65 हो गये। नम्बर ऑफ एन्काउन्टर्स विद पुलिस वर्ष 2015 में 247 थे।...(व्यवधान) आपकी हुकुमत में ही लास्ट ईयर की बात मैं कर रहा हूँ।...(व्यवधान) डॉ0 साहब यह चिल्ड्रेन स्पेशियलिस्ट नहीं है, यह तो एडल्ट का है, आप जरा बैठिये।

          नम्बर ऑफ एन्काउन्टर्स विद पुलिस वर्ष 2015 में 247 और वर्ष 2016 में 328 हो गये तो ये बढ़ गये या घट गये, यह आप देखिए। जो आँकड़े आपने प्रोवाइड किये थे, उनके आधार पर हम बोल रहे हैं। हम आपको नीचा दिखाने के लिए या आपकी कमजोरी निकालने के लिए नहीं, जो आँकड़े हमें दिये थे, उन आँकड़ों को हम आपके सामने और देश के सामने रख रहे हैं।

          इसके अलावा इंटीग्रेटिड एक्शन प्लान वर्ष 2010-11 में शुरू हुआ था, फिर इसके बाद में इसको पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने को ध्यान में रखकर इसमें वर्ष 2015-16 में कम से कम 1,64,859 प्रोजेक्ट्स लिये थे। उसमें कम्प्लीट आपने जो किये थे, यह तो कान्टिन्यूअस प्रोसेस है, 1,39,729 प्रोजेक्ट्स आप पूरे कर सके। अब इसको बन्द किया गया है, इसको स्टॉप किया गया है। इसकी क्या वजह है, यह मुझे समझ में नहीं आया है। सिक्योरिटी फोर्सेज को इंफ्रास्ट्रक्चर को और मजबूत बनाना चाहिए। जहाँ कहीं भी सहूलियतें देनी हैं, वहाँ पर सहूलियतें देनी चाहिएं, क्योंकि चाहे सी.आर.पी.एफ. हो, चाहे बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स हो, ये भी इतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितनी महत्वपूर्ण मिलिट्री है। बहुत से लोग इन डिपार्टमेंट्स को कम समझते हैं, बी.एस.एफ. के जवानों को कम समझते हैं, लेकिन वे भी उतनी ही कुर्बानी देते हैं, जितना एक जवा बॉर्डर के ऊपर देता है। इसीलिए इधर ध्यान देना जरूरी था, लेकिन इसमें भी आपने कमजोरी दिखायी है।

          मैं सिक्योरिटी रिलेटिड एक्सपेन्डिचर पर एक आँकड़ा आपको और देना चाहता हूँ। वर्ष 2015-16 में 869 करोड़ रुपया खर्च हुआ। रिवाइज्ड एस्टीमेट 1,390 करोड़ रुपया हुआ, लेकिन इस वक्त वर्ष 2017-18 में इसको 1,390 करोड़ रुपया रखना चाहिए था, क्योंकि आपने रिवाइज्ड एस्टिमेट में उतना खर्च किया, इस वक्त भी उतने ही पैसे की जरूरत थी, लेकिन आपने उसको घटाकर 1,222 किया, यानी 12 परसेंट माइनस किया। ऐसा क्यों है? क्या अब नक्सलाइट ठहर गये हैं, क्या यह एक्स्ट्रीमिज्म रूक गया है, क्या आतंकवादी गतिविधियाँ बन्द हो गयी हैं? यह मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि इसे क्यों घटा रहे हैं?   

मुझे मालूम है, जेटली जी ने कहा कि हमारी जो रेवेन्यू रहती है, उसके तहत हमको एडजस्ट करना पड़ता है, लेकिन, चंद चीज़ें इतनी जरूरी होती हैं कि उन्हें पहली प्राथमिकता मिलनी चाहिए, जैसे डिफेंस है, लॉ एण्ड ऑर्डर के लिए होम अफेयर्स है, हेल्थ है, एजुकेशन है, ये प्रॉयोरिटीज़ हैं, रूरल डेवलपमेंट भी है, सभी हैं। लेकिन, उसमें पहले यह देख लीजिए कि देश की रक्षा के लिए क्या करना चाहिए। लॉ एण्ड ऑर्डर अच्छा रहेगा तो कारखाने अच्छे होते हैं, झगड़े कम होते हैं। जब वातावरण शांत रहता है तो सभी कुछ ठीक चलता है। आप दूसरी और चीज़ों को कितनी भी प्राथमिकता दीजिए, उससे कुछ होने वाला नहीं है। यह एक तरफ है।

          दूसरी तरफ पुलिस फोर्सेज़ का मॉडर्नाइजेशन है। इसमें भी आप हर साल पैसे घटाते जा रहे हैं। पहले आडवाणी जी के समय में एक स्कीम थी। उसे फूड-फोर-वर्क के साथ जोड़ कर बहुत सी स्टेट्स को पैसे दिए जाते थे। मॉडर्नाइजेशन स्कीम के तहत पुलिस स्टेशंस बनाए जाते थे। एस.पी. ऑफिस को भी पैसे दिए जाते थे, व्हीकल्स के लिए भी पैसे दिए जाते थे, इक्विप्मेंट्स के लिए पैसे दिए जाते थे। उसे बंद करके आपने स्टेट की पुलिस को कमजोर कर दिया, क्योंकि स्टेट की पुलिस भी आज सिर्फ लॉ एण्ड ऑर्डर ही नहीं देखती। उनके पास बहुत से काम हो गए हैं। वह हर सेंट्रल एक्ट का इम्प्लीमेंटेशन भी देखती है। वहां पर अगर नक्सल एक्टीविटीज़ हो गयीं, तो उसे भी देखती है। टेरेरिस्ट एक्टीविटीज़ को देखती है, रेलवे एक्सीडेंट्स होने पर उसे वहां पर जाना पड़ता है। इतना सब कुछ स्टेट वालों को भी करना पड़ता है। वर्ष 2017-18 में आपने इसके लिए 800 करोड़ रुपए रखे हैं। पहले इसमें 845 करोड़ रुपए थे। उसे घटाकर आपने 800 करोड़ रुपए कर दिया। उसमें भी -5औ है, यानी अगर हर चीज़ में माइनस है तो यह क्यों हो रहा है? क्या आपकी और फाइनैंस डिपार्टमेंट के बीच नहीं जम रही है? क्या आपके डिपार्टमेंट को विफल करने के लिए ऐसी कोई साजिश चल रही है? इसके बारे में सोचना चाहिए। मैं उनके ही आंकड़े दिखा रहा हूं। उन्होंने जो आंकड़े दिए हैं, वही मैं यहां पर प्रस्थापित कर रहा हूं। इसके अलावा, वर्ष 2016-17 में प्रोफेशनल सर्विसेज, मॉडर्नाइजेशन ऑफ आर्म्स एण्ड एम्युनिशंस, रिसर्च, आई.टी. जैसे हेड्स में बजट का पैसा खर्च ही नहीं हुआ। आप पूछ लीजिए।

HON. DEPUTY SPEAKER: Kharge Ji, as you are highlighting, defence is very important as it involves country’s security. Secondly, law and order is another important thing. Those kings, who ruled this country, gave importance to law and order in those days. We are the rulers now. We have to allocate more funds to the Ministry of Home Affairs. Only then we can improve law and order. That is very important. The other day, the Minister of Rural Development was talking about development. After the death of a person, what is the importance of rural development for him? In order to protect the lives of citizens, the Ministry of Home Affairs must be given more importance next to Defence and it must be given more funds. Then, they can give funds to the State Governments to modernize the Police also.

SHRI MALLIKARJUN KHARGE : That is why, initially I told that if law and order is good, everything is good. If you keep peace, all industries will run. If industries close, then there will be no taxes, no income and no salary and they will also go. Therefore, I am insisting that he should assert and should get more money.

HON. DEPUTY SPEAKER: Then, the whole House will support.

श्री राजेन्द्र अग्रवाल (मेरठ): सर, उत्तर प्रदेश में यही तो था। लॉ एण्ड ऑर्डर खराब था।...(व्यवधान)

श्री मल्लिकार्जुन खड़गे : आपकी हालत पहले क्या थी, यह हमें मालूम है। आपका हाल बेहाल था। अब थोड़ी हालत ठीक हो गयी है। उसे थोड़ा पचा लीजिए। ज्यादा खाने की मत सोचिए, उसे थोड़ा पचा लीजिए।

          सर, वर्ष 2016-17 में प्रोफेशनल सर्विसेज, मॉडर्नाइजेशन ऑफ आर्म्स एण्ड एम्युनिशंस, रिसर्च, आई.टी. जैसे हेड्स में बजट का पैसा ही खर्च नहीं हुआ। इसके लिए कौन जिम्मेदार है, ऐसा क्यों हुआ? एक तरफ पैसे नहीं हैं और दूसरी तरफ जो पैसे दिए गए, उन्हें खर्च नहीं किया गया।

          अब तीसरी चीज़ यह है कि नेशनल इंटेलीजेंस ग्रिड जैसे संवेदनशील संगठन के लिए वर्ष 2016-17 में 45 करोड़ रुपए दिए गए थे। उसमें से आपने सिर्फ 18 करोड़ रुपए खर्च किए। You say that you do not have money and we are also saying that. But, on the other hand, whenever money is given, you are not utilizing that money properly and are surrendering it.

Even Assam Rifle, BSF, ITBP और एस.पी.जी. की हालत तो ऐसी है कि वहां पर कैपिटल एक्सपेंडिचर को भी खर्च नहीं किया गया है। आप कहते हैं कि हमें जवानों को बहुत कुछ देना है, लेकिन मैं कहता हूं कि उनको जो पहले दिया गया है, उनको पहले खर्च कीजिए, लेकिन वहां पर भी एक्सपेंडिचर नहीं हुआ है।

          इंडो‑पाक बॉर्डर एक इम्पोर्टेंट विषय है। वर्ष 2016‑17 में सिर्फ 120 करोड़ रूपये रखे गए थे, लेकिन इसमें से सिर्फ 50 करोड़ रूपये खर्च हुए। आपके डिपार्टमेंट में आपके होते हुए अगर 120 करोड़ रूपये में से मात्र 50 करोड़ रूपये खर्च होते हैं तो मैं जानना चाहता हूं कि इसकी क्या वजह है, आप ने इसे रिव्यू क्यों नहीं किया। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? आपको एक्शन लेना चाहिए। अगर इसमें कुछ दिक्कतें हैं, तो आपको सॉल्व करना चाहिए। इसके बजाय जो दिया हुआ पैसा है, आप उसे खर्च नहीं कर रहे हैं। आप ने इस साल कितनी राशि रखी है, आप ने सौ करोड़ रूपये रखा हैं। पहले 120 करोड़ रूपये थे और इस साल 100 करोड़ रूपये है। आपने पहले 50 करोड़ रूपये खर्च किए, अब कितने करने वाले हैं, यह मुझे मालूम नहीं है।

          अब हम कोस्टल सिक्योरिटी की बात करते हैं। इसमें भी वर्ष 2016‑17 में 710 करोड़ रूपये का एलोकेशन हुआ था, लेकिन खर्च मात्र 20 करोड़ रूपये हुए। ये आँकडें आपके ही हैं। अगर हम इस ढंग से काम करते हैं तो सुधार कैसे होगा और इसकी जिम्मेदारी किसकी है। इसी ढंग से नेटवर्क मॉडर्नाइजेशन के लिए पिछले साल 35 करोड़ रूपये दिए थे, लेकिन खर्च 22 करोड़ रूपये हुए। मैं एक नहीं, ऐसे कई उदाहरण आपको दे सकता हूं। मेरे पास इस बारे में सारे आँकड़े हैं।

          अब मैं टेरेरिज्म के बारे में आता हूं। अभी आतंकवाद तो काफी बढ़ रहा है। इस सदन में हमने इस संबंध में बात भी की हैं और आपने भी इसका उत्तर दिया है। इसके बावजूद भी मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि जो पठानकोट में आतंकवादी हमला हुआ। आपने इसकी जांच के लिए फिलीप कैम्पोस कमेटी बिठाई, उसकी रिपोर्ट मई 2016 में आई । इस रिपोर्ट में क्या है, इसमें क्या‑क्या चीजें हैं, उन्होंने क्या सलाह दी है और आपने उस रिपोर्ट के आधार पर क्या इप्रूवमेंट किया है। आपको यह जरूर बताना होगा, नहीं तो कमेटी बनाने से क्या फायदा है। इसका कोई फायदा नहीं है। You had constituted a Committee and it gave its report but you did not disclose it.  Nearly ten months have passed.  This is your working system.

          दूसरी तरफ टेरेरिस्ट इनफ्लिट्रेशन और सीज़फायर पर अगर आप आँकड़ा ले, तो वर्ष 2015‑16 के मुकाबले में वर्ष 2016‑17 में ये आँकड़े बढ़े हुए हैं। अब उदाहरण के तौर पर number of incidents in 2015 were 208,  in 2016 – 322; civilians killed in 2015 – 17 and now 50; security forces killed in 2015 – 39 and now 82; terrorists killed – 108 and now 150; infiltrations – 33 and now in 2016 – 112.  So except two items, rest have increased.  अगर सरकार इसे गंभीरता से नहीं लेगी, तो निश्चित रूप से इसका पूरा असर देश पर आएगा और देश में उग्रवाद भी बढ़ेगा। इससे लॉ एंड आर्डर भी डिस्टर्ब हो जाएगा। यहां पर हर चीज डिस्ऑर्डर हो जाएगी। इसी ढंग से जम्मू व कश्मीर में आर्मी और बी.एस.एफ के बारे में वर्ष 2015‑16 के हिसाब से कम्पेरेटिव स्टेटमेंट देखेंगे, तो पता चलेगा कि यह भी बढ़ गया है। इसमें आर्मी के जो पहले 17 लोग थे, अब 74 लोग मर गए। बीएसएफ के वर्ष 2015 में 9 तो वर्ष 2016 में 25 लोग मरे। ये सारे आंकड़े ये दिखाते हैं कि यह बढ़ रहा है। यह अगर ऐसे ही बढ़ता रहा, तो अच्छे दिन कैसे लाएंगे, क्या यही हैं, अच्छे दिन। सभी को ये कह रहे हैं कि हमने बहुत कुछ काम किए और हमारी सरकार बहुत अच्छी है। मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस। ...(व्यवधान) यह कहां है, कहां गया मैक्सिमम गवर्नेंस? मैं यह आंकड़े के साथ कह रहा हूं। ...(व्यवधान)

          आपने महिलाओं के लिए निर्भया फंड तैयार किया। वीमेंस के ऊपर जो बहुत से क्राइम्स बढ़ रहे थे और हो रहे थे, खासकर दिल्ली और मेट्रोपोलिटन सिटीज में, चाहे बैंगलूरू हो, कोलकाता हो, दिल्ली हो या दूसरी जगह हों। उनके लिए उस वक्त आपने फंड रखा। वर्ष 2016-17 के कैपिटल आउट-ले में 71 करोड़ रुपये आपने रखे और रिवाइज्ड एस्टीमेट में 2016-17 में उसको घटाकर 13 करोड़ रुपये कर दिया और वर्ष 2017-18 में 23 करोड़ रुपये रखे। पहले दिखाने के लिए 71 करोड़ रुपये, उसके बाद आपने खर्च किये 13 करोड़ रुपये और आज रखे 23 करोड़ रुपये, क्या महिलाओं के प्रति क्राइम स्टॉप करने के लिए ये स्टेप्स ठीक हैं? ये चीजें जो आप कर रहे हैं, इससे आप क्राइम्स को कैसे रोक पायेंगे और निर्भया फंड का जिन लोगों तक फायदा पहुंचाना है, वह कैसे पहुंचायेंगे? अगर आप यह घटाते रहेंगे तो यह इंपासिबल है। हमारी तरफ यह कहावत है, जो करणी में है, उसका तर्जुमा अगर करें तो, रस्सी जल गई लेकिन उसका बल नहीं गया। ...(व्यवधान) ऐसी हालत है। हर चीज में फेल्योर, लेकिन बोलते हैं ...(व्यवधान) हां, वही ऐंंठन। इस ढंग से यह सरकार चल रही है। कुछ एचीवमेंट नहीं है। जो वे चाहते थे, जो कहते थे, उसके मुताबिक नहीं है, फिर भी हम कुछ कम नहीं हैं, हमने यह किया और जो भी बोलते हैं, जरा जोर से बोलते हैं। आपको मालूम है कि जब इधर के हमारे लोग सत्य बात कहते हैं, तो एकदम खड़े होकर कहते हैं कि यह असत्य है। ...(व्यवधान)

          मैं आंकड़ों के साथ आपको यह बता रहा हूं। इसी प्रकार से एससी, एसटी के साथ एट्रोसिटीज़ भी बढ़ रही हैं। ये आज ही बढ़ रहे हैं या आज ही उनके ऊपर अत्याचार हो रहे हैं, मैं यह नहीं कह रहा हूं। इस देश में हमेशा उनके ऊपर अत्याचार होते ही रहे हैं। उनको कम करने के लिए क्या कर सकते हैं। मैं आपके माध्यम से कहना चाहता हैं, विनती के रूप में कहना चाहता हूं और एक वार्निंग के रूप में भी कहना चाहता हूं कि अगर इस देश में आप लोगों के ऊपर चतुरवर्ण, सनातन धर्म तत्वों को अगर थोप देंगे तो इस देश में और ऐसे ही अस्पृश्यता बढ़ेगी, बढ़ती ही रहेगी और लोग दबकर ऐसे ही बैठेंगे। इसका कोई न कोई इलाज होना चाहिए। ...(व्यवधान) मैंने डिमांड्स पर ही तो बोला कि आपने क्या-क्या किया। जरा इनको माइक्रोफोन दे दो। ...(व्यवधान) हमारे देश में दलितों के साथ जो अन्याय हो रहा है, इसको रोकना चाहिए। जब तक इस देश से अनटचेबिलिटी नहीं खत्म होती, तब तक देश का समाज एक नहीं होगा और देश की एकता को भी बड़ा धक्का होगा। यह मैं आपसे कहना चाहता हूं। मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि हमें समाज को एकजुट रखना है। जब समाज को एकजुट रखना है तो हम सबका कर्तव्य होता है कि पहले हमारे अंदर जो बुराइयां हैं, उन्हें निकालने की कोशिश करनी चाहिए। अगर कोई व्यक्ति बुराइयों के खिलाफ लड़ने की ताकत नहीं रखता, तो वह निश्चित रूप से फेल हो जाता है, इसलिए मैं इसका भी जिक्र करना चाहता था।

          हमारा देश हमेशा डैमोक्रेसी, सोशलिज़्म और सैकुलरिज़्म पर विश्वास रखता है और हमारा संविधान भी हमें आदेश देता है कि इस देश में इन चीजों की हिफाजत हो, तभी देश सुख और शान्ति की तरफ जाता है। आज ये चीजें भी नहीं हुईं। यहां डैमोक्रेसी और सैकुलरिज़्म को तिलांजलि दी जा रही है।

          जब गोवा और मणिपुर में चुनाव हुए, उस वक्त आपने क्या किया। आपको वहां मैजॉरिटी नहीं मिली। आप यूपी में भारी बहुमत से आए। पहले उसे तो पचा लीजिए। उसे छोड़कर जिस जगह आपको लोगों ने बहुमत नहीं दिया, नकार दिया, उस जगह रातों-रात तोड़-मरोड़कर सरकार बनाने की कोशिश कर रहे हैं।...(व्यवधान) मैं यह दावे के साथ कहना चाहता हूं कि ...*उन्होंने जो लिस्ट दी है, उसमें सब पार्टीज़ के सदस्य हैं और उनकी पार्टी के केवल 13 सदस्य हैं। मुझे क्या करना चाहिए। तब उन्होंने पर्रिकर जी को कहा, आपने लिस्ट दी है, लेकिन मैं जेटली साहब से पूछूंगी और जेटली साहब से पूछकर तय करूंगी। उन्होंने 9.30 बजे जेटली साहब को फोन किया।...(व्यवधान)

 SHRI ANANTHKUMAR: Mr. Deputy-Speaker, Sir, the hon. Governor’s conduct cannot be discussed on the floor of the House. Therefore, I would request you to restrain the hon. Member, Shri Mallikarjun Kharge ji. He is a senior and experienced leader. … (Interruptions)  How can you discuss that?

HON. DEPUTY-SPEAKER: Without mentioning the Governor, he can say whatever he wants to say. Without mentioning the Governor, let him say whatever he wants to say.

 … (Interruptions)

SHRI MALLIKARJUN KHARGE : This is not unparliamentary. This is as per parliamentary procedure and as reported by even the newspapers.  A letter was also written by the Governor to Shri Parrikar on 12th March, 2017. The results were announced on 11th March, 2017 at 7 p.m. The letter was given at 2 o’clock.  … (Interruptions)

HON. DEPUTY-SPEAKER: Shri Kharge ji, you raised this matter two days back. Our hon. Speaker was in the chair. The hon. Speaker gave the ruling that in this House we cannot discuss the conduct of the Governor or the functioning of the Governor. She gave that ruling. According to that, you can speak.

… (Interruptions)

HON. DEPUTY-SPEAKER: On the Adjournment Motion only she mentioned this. The record is there. When Kharge ji gave the notice for Adjournment Motion, she gave the ruling that the conduct of the Governor cannot be discussed here. That is the ruling.

… (Interruptions)

MR. DEPUTY-SPEAKER:  That cannot be discussed in the House. That is all.

… (Interruptions)

SHRI K.C. VENUGOPAL (ALAPPUZHA):  This is the debate on the Demands of the Ministry of Home Affairs. … (Interruptions)

HON. DEPUTY-SPEAKER: I understood what you wanted to say. Please take your seat. Already there is a ruling. I cannot go beyond that. When the hon. Speaker has given the ruling, we have to according to that.

… (Interruptions)

HON. DEPUTY-SPEAKER: We come across many issues in the newspaper. We cannot take up all those things here.

… (Interruptions)

SHRI K.C. VENUGOPAL :  Hon. Speaker’s ruling was on Adjournment Motion only. … (Interruptions)

HON. DEPUTY-SPEAKER: The ruling of the Speaker was on discussion on the Governor’s conduct.

… (Interruptions)

SHRI MALLIKARJUN KHARGE :  I want to bring it to your kind notice that an Adjournment Motion was given and the same was not admitted. It was totally rejected. … (Interruptions)

HON. DEPUTY-SPEAKER: While giving the reasons, she gave this ruling. I was there at that time.

… (Interruptions)

SHRI MALLIKARJUN KHARGE : …*Here, I am referring to the Department of Home Affairs, which is connected, and we are debating to vote on the Demands of the Ministry of Home Affairs. … (Interruptions)

HON. DEPUTY-SPEAKER: The conduct of the Governor cannot be discussed.

… (Interruptions)

SHRI ANANTHKUMAR: In whatever manner, and in whatever discussion, the hon. Member wanted to raise the issue and wanted to discuss the conduct of the hon. Governor, it is not acceptable. It is out of procedure.… (Interruptions)

HON. DEPUTY-SPEAKER: Without mentioning the Governor, you may speak or say whatever you want say.

… (Interruptions)

HON. DEPUTY-SPEAKER: There is a way to tell. You are an experienced Member. You can say without mentioning the Governor.

… (Interruptions)

SHRI MALLIKARJUN KHARGE :  I never took the name of Governor. … (Interruptions)

HON. DEPUTY-SPEAKER: You cannot talk about a particular State Governor.

… (Interruptions)

SHRI MALLIKARJUN KHARGE :  Sir, I am also submitting a letter which may be placed on the Table of the House. What is this then? You have not accepted the fact. … (Interruptions)

SHRI K.C. VENUGOPAL : Deputy-Speaker Sir, you have experience in Tamil Nadu also. … *

SHRI ANANTHKUMAR:  It is not an issue of authenticating or not authenticating by the hon. Leader of the Congress Party. It is only about whether the conduct of the Governor can be discussed or debated on the floor of the House. He cannot. He is saying that they are not discussing under the Adjournment Motion or the Demands for Grants. We cannot discuss in the House at all the conduct of the Governor. … (Interruptions) The hon. Governor of any State may speak  to the Finance Minister. There is no wrong in that.

SHRI K.C. VENUGOPAL :  Hon. Parliamentary Affairs Minister is saying that we cannot discuss the conduct of the Governor. It has come to light that a Governor had talked to a Central Minister in regard to inviting a particular person. Are you admitting that? This is the television interview given by the hon. Governor. … (Interruptions)

SHRI ANANTHKUMAR:  Shri Venugopal is misleading the House. The hon. Governor can definitely have a conversation with the Finance Minister. What conversation they had regarding the State of Goa, is up to them. The question is this. The conduct of the Governor cannot be debated on the floor of the House. … (Interruptions)

SHRI K.C. VENUGOPAL : …*  That is what the television interview has brought out. It is highly undemocratic. How can you justify that? … (Interruptions)

HON. DEPUTY-SPEAKER: I will give the ruling.

… (Interruptions)

SHRI K.C. VENUGOPAL :  Where else can we discuss these issues? We are discussing the Demands of the Ministry of Home Affairs. … (Interruptions)

HON. DEPUTY-SPEAKER: If you want to discuss about the conduct of the Governor, there is a procedure. In that way, you can discuss, not straight away like this. There are procedures for impeachment, etc. You give notice.

… (Interruptions)

THE MINISTER OF STATE IN THE MINISTRY OF AGRICULTURE AND FARMERS WELFARE AND MINISTER OF STATE IN THE MINISTRY OF PARLIAMENTARY AFFAIRS (SHRI S.S. AHLUWALIA): Mr. Deputy Speaker, Sir, we are discussing the Demands for Grants of the Ministry of Home Affairs. In the Rules of Procedure and Conduct of Business in Lok Sabha, it is written categorically that the relevant issue should be discussed. … (Interruptions) I know you are a learned person. I also know a little bit. … (Interruptions)  During the discussion on the Demands for Grants, can we discuss the conduct of the Governor or a television interview given by somebody to somebody.

SHRI K.C. VENUGOPAL: Not somebody.

SHRI S.S. AHLUWALIA: Mr. Venugopal, when I am on my legs, please wait for a minute.

          Sir, can we discuss the conduct of the Governor here? I want your categorical ruling on this point.

HON. DEPUTY SPEAKER: I have already given the ruling that the conduct of the Governor cannot be discussed in the House. If they want to discuss anything, there is another procedure and let them follow that procedure. That is my ruling.

          Khargeji, please continue your speech now.

SHRI MALLIKARJUN KHARGE : Sir, I am not discussing the conduct of Governor. I am discussing here what the Constitution says, what she replied to the Finance Minister and what the Finance Minister said to her. I have quoted that. I am not casting any aspersion or attributing any motive. I am simply telling that this has appeared in the media and everybody knows this. It means that interference from the Home Ministry is there. That is my charge. It is a question of administration and to do better administration, this House is sanctioning funds. हम पैसे दे रहे हैं तो आपकी रिस्पांसिबिलिटी एकाउंटेबिलिटी भी पूछेंगे। हम एकाउंटेबिलिटी फिक्स करने के लिए पूछेंगे। हम आपको पैसा दे रहे हैं, इसके बावजूद आपके लोग क्या कर रहे हैं, पंछी कमेटी, उसके बाद सरकारिया कमीशन, नारीमन जैसे लोग आर्टिकल्स लिख रहे हैं, ऐसे लोगों की अगर आप नहीं सुनते हैं तो किसकी सुनते हैं...(व्यवधान) प्रिसिडेंसी है, वाजपेयी जी का प्रिसिडेंट है। आप इतना आतुर इल्लीगल करने के लिए हैं, तोड़-मोड़ कर करने के लिए हैं। जो मिला है, पहले उसे तो सुरक्षित रख लो। उत्तराखंड आपको मिला, यूपी मिला, वहां चीफ मिनिस्टर बनाने के लिए देर कर रहे हैं।  But here, only 12 hours have been taken. At 7.00 p.m. results were announced and at 2 o’clock the letter was given. How can it be done? This is very important. It is the responsibility of the Home Ministry to safeguard democracy in this country and the Home Ministry is also responsible to safeguard the interests of Dalits in this country. I cannot go and beg somewhere else. I am begging here in this House. … (Interruptions)

श्री एस.एस.अहलुवालिया: सबको कितना पैसा दिया, इसके बारे में बोलें।

श्री मल्लिकार्जुन खड़गे : आप देर से आए हैं, इसलिए आपने नहीं सुना। मैंने बोला कि बीएसफ को कितना पैसा दिया, मॉडर्नाइजेशन को कितना पैसा दिया। ...(व्यवधान) आप हमेशा गलत समझ लेते हैं तो मैं क्या करूं।

          Sir, the letter says like this. ‘I, Mridula Sinha, Governor of Goa, hereby appoint Shri Manohar Parikkar as the Chief Minister of the State of Goa. He will assume office from the date he is administered the oath of office and secrecy.’ …*

SHRI ANANTHKUMAR: Sir, the communication of the hon. Governor of Goa, about incumbent Chief Minister, about letter written and authenticating of the letter -- all these should be expunged from the records… (Interruptions)

SHRI MALLIKARJUN KHARGE : How can you do it?… (Interruptions)

HON. DEPUTY-SPEAKER: I have already given my ruling.

… (Interruptions)

SHRI MALLIKARJUN KHARGE : This is relating to the Ministry of Home Affairs… (Interruptions) He is our guardian; he is the guardian of the democracy; and he has to safeguard it… (Interruptions) What is this?

          The hon. Minister can respond afterwards…*

          Sir, there were four /options. First was,   the group of parties, which had pre-poll alliance commanding the largest number. Second was, the single largest party staking a claim to form the Government with support of others. Third was, the post electoral coalition with all partners joining the Government. Fourth was, the post electoral alliance with some parties joining the Government and the remaining, including the independents, supporting the Government from outside.

          ये जो चीजें हैं, वे इसमें एक में भी नहीं आते।… *

SHRI ANANTHKUMAR: Sir, I am on a point of order.

          The hon. leader of the Congress party in the Lok Sabha is very experienced Member.  खड़गे जी बहुत अनुभवी हैं और नौ बार विधान सभा के सदस्य रह चुके हैं। ...(व्यवधान) उन्हें कर्नाटक वापस जाने का मौका नहीं मिला, इसलिए हमारे ऊपर बरस रहे हैं।

          Sir, if you see, rule 352(v) of Rules of Procedure and Conduct of Business sin Lok Sabha says:

A member while speaking shall not (v) reflect upon the conduct of persons in high authority unless the discussion is based on a substantive motion drawn in proper terms

          Sir, here, we   are having a discussion on the Demands for Grants relating to the Ministry of Home Affairs.  Kharge-je started the debate, of course, with wrong numbers being dialed and spoken in this august House, about various   items in the Demands for Grants.  That is okay.  But I do not understand,  how come he has started his discussion on the conduct of the hon. Governor of Goa, Manipur and other States?

          Sir, you have been continuously reminding him that the hon. Speaker’s ruling is there while he tried to move the Adjournment Motion on this issue. 

          Sir, you also gave twice your own ruling that he cannot discuss such issues.  You also very clearly gave a ruling that whatever he has spoken on this issue,  should not go on the records of the House.  Despite that, he is continuously repeating the same things.

          Through your kindself, I urge the hon. Leader of the Opposition to restrain himself, and continue and conclude his speech on the Demands for Grants… (Interruptions) Sir, he has taken more than his party’s allotted time.

HON. DEPUTY-SPEAKER:  That I will take care of. 

… (Interruptions)

PROF. SAUGATA ROY (DUM DUM): Sir, I am on a point of order.

          The Minister of Parliamentary Affairs was just mentioning rule 352(v), in which it is mentioned that people in high authority cannot be discussed excepting by a properly worded and framed motion. That is all right. We all know that.

          But you please read Demand No. 47 of the Ministry of Home Affairs -- the Development Heads, General Services, President/Vice-President/Governor/Administrator of Union Territories,  for which certain money is allocated.

          Now, Governor is in the Ministry of Home Affairs’ Demand No. 47, Cabinet. So, how come you say that Governor cannot be discussed?  He is not discussing but Governor can be discussed. You read this Demand.

SHRI ANANTHKUMAR: Sir, Prof. Saugata Roy should understand that they can definitely discuss about the expenditure part of the hon. Governor but not any other thing.… (Interruptions)

PROF. SAUGATA ROY : If you discuss expenditure, …*

 SHRI K.C. VENUGOPAL : …*

SHRI MALLIKARJUN KHARGE : Sir, I am not criticizing the Governor or his conduct.  Simply, I am pointing out as to how the Central Government is misusing its powers in the States.  We are living in a Federal structure of Government. They should respect the Constitution.… (Interruptions)

          मोदी जी, हमेशा कहते हैं और हमेशा डॉक्टर अम्बेडकर जी को कोट करते हैं, कल भी उन्होंने अपनी पार्टी की मीटिंग में डॉक्टर अम्बेडकर जी को कोट किया।...(व्यवधान) क्या आप पेपर नहीं पढ़ते हैं? हमेशा पेपर पढ़ना चाहिए, टी.वी. देखना, दूसरे लोग अगर क्रिटिसाइज करते हैं तो उसे भी सुनना, मोदी जी क्या कहते हैं, उसे भी सुनना, हमारी बात भी सुनना चाहिए।  हमेशा मोदी जी कहते हैं कि डॉक्टर अम्बेडकर जी ने इस देश को ऐसा संविधान दिया है, जिसके तहत हम डेमोक्रेसी की रक्षा करेंगे।  सेकुलरिज्म आदि जो भी उसूल हैं, उन सभी तत्वों को हम अपनाएंगे, ऐसा उनका कहना है, लेकिन आज क्या कर रहे हैं? * इसीलिए बाबा साहब डॉक्टर अम्बेडकर ने कहा था, आपने भी पढ़ा होगा। ...(व्यवधान) 

SHRI K.C. VENUGOPAL : Sir, there are only three BJP Ministers, apart from them, there are nine from other parties. … *

 HON. DEPUTY SPEAKER: Kharge ji, please wind up.  There are many members to speak. I cannot allow this discussion like that.

… (Interruptions)

SHRI MALLIKARJUN KHARGE : Sir, Dr. Ambedkar said:

…it is quite possible in a country like India – where democracy from its long disuse must be regarded as something quite new – there is danger of democracy giving place to dictatorship. It is quite possible for this new born democracy to retain its form but give place to dictatorship in fact. If there is a landslide, the danger of the second possibility becoming actuality is much greater.

          When they get absolute majority; when they get thumping majority; there is every possibility that this may lead them to dictatorship.

          Sir, I want to finish by quoting the same thing what Dr. Ambedkar said in 1949.  He said: 

The second thing we must do is to observe the caution which John Stuart Mill has given to all who are interested in the maintenance of democracy, namely, not to lay their liberties at the feet of even a great man, or to trust him with power which enable him to subvert their institutions.

HON. DEPUTY SPEAKER: Kharge ji, please wind up.

… (Interruptions)

SHRI MALLIKARJUN KHARGE : Sir, Dr. Ambedkar further said:

This caution is far more necessary in the case of India than in the case of any other country. For in India, Bhakti or what may be called the path of devotion or hero-worship, plays a part in its politics unequalled in magnitude by the part it plays in the politics of any other country in the world.

यह आपके लिए बोलना इसलिए जरूरी है कि आप हमेशा हीरो की वर्शिप करते हैं, एक ही का नाम बोलते हैं, अपनी पार्टी का भी नाम नहीं बोलते हैं। ...(व्यवधान)

He further said, bhakti in religion may be a road to the salvation of the soul. But in politics, bhakti or hero-worship is a sure road to degradation and to eventual dictatorship.

          If things go on like this, there will be dictatorship.  Therefore, I request the Minister to control everybody according to law and you run the Government according to the Constitution.  I hope, at least now you will take this suggestion very seriously. 

          With these words, I conclude. 

HON. DEPUTY SPEAKER: I want to inform the House, those Members who want to lay their written speeches – that can also be taken into consideration – they are allowed to lay them.


CUT MOTIONS


श्री हरीश मीना (दौसा) : उपाध्यक्ष जी, मैंने अभी सदन के बहुत ही वरिष्ठ सदस्य और कर्नाटक लोक सभा संसदीय क्षेत्र के नौ बार सदस्य रहे आदरणीय खड़गे जी को बड़े ध्यान से सुना है। इन्होंने अपनी बात एक घंटे में कही है, शायद उसे वह पांच मिनट में भी खत्म कर सकते थे, लेकिन उनकी अपनी सोच है और अपना विचार है।

          सर, आज गृह विभाग के बजट प्रस्ताव पर चर्चा हो रही है। यह देश की आंतरिक सुरक्षा, आतंकवाद एवं अपराध को डील करता है। वर्ष 2014 से पहले की स्थिति के बारे में मैं खड़गे जी को याद दिलाना चाहता हूं कि हमारे देश में क्या स्थिति थी। आतंकवादियों द्वारा दो पूर्व प्रधान मंत्रियों की हत्या कर दी गयी, एक मुख्य मंत्री  की हत्या कर दी गयी, उससे कोई शहर बचा हुआ नहीं था। हमारी आर्थिक राजधानी मुंबई भी नहीं बची हुई थी, हमारे देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली और यह सदन भी आतंकवाद का शिकार हो चुका है। इन परिस्थितियों से यह देश गुजर रहा था कि हर हिन्दुस्तानी आतंकवाद से परेशान था, चाहे वे नेता हों, व्यापारी हों या आम आदमी हों। ...(व्यवधान)

श्री मल्लिकार्जुन खड़गे  : होगा या नहीं होगा, उस वक्त तो वे हमारे साथ थे।  ...(व्यवधान)

श्री हरीश मीना : सर, मैं अभी भी सदन में आपके साथ हूं। मैं आपकी बात बड़े ध्यान से सुन रहा हूं।

          सर, मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि किन परिस्थितियों में वर्ष 2014 का चुनाव हुआ। आम हिन्दुस्तानी आतंकवाद और अपराध से त्रस्त था। आतंकवादियों की यह भावना थी कि सरकार हमारे खिलाफ कुछ नहीं करेगी। एक तरह से अपराध और आतंकवाद का तुष्टीकरण हो रहा था। हर चीज को राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जा रहा था, जबकि अपराध की राजनीति कभी नहीं होनी चाहिए। अपराध को मेरिट पर ट्रीट करना चाहिए, उसको नियम के अनुसार ट्रीट करना चाहिए, उस बैकग्राउंड में वर्ष 2014 के चुनाव हुए और इस देश की जनता ने सभी भेदभाव भुला कर आदरणीय मोदी जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनायी और एक ही संदेश दिया कि हमारा इस आतंकवाद से पीछा छुड़ा दें, देश में कानून-व्यवस्था स्थापित कर दें। उस बैकग्राउंड में हमें अभूतपूर्व सफलता मिली। अब यह जनता क्या चाहती है, जिसके लिए यह बजट आपके सामने आया है। जनता यह चाहती है कि हम चैन की नींद सोयें, जब वे ऑफिस से घर आयें तो हमें किसी आतंकवादी या अपराधी का खतरा न हो।

          मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि पिछले तीन सालों में किसी बड़े शहर में कोई बड़ी आतंकवादी घटना नहीं हुयी है। एक काम करने वाली सरकार का और वायदा निभाने वाली सरकार का यह फायदा देश को मिला है। मोदी जी ने देश को आश्वस्त किया था कि आप मुझे मौका दीजिए, मैं आपके देश को पूरी तरह से आतंकवाद मुक्त कर दूंगा और बिट्टू जी मेरी बात से सहमत होंगे, क्योंकि ये बार्डर स्टेट से आते हैं। बिना किसी हिंसा के सफलतापूर्वक इनके राज्य में चुनाव सम्पन्न हुए हैं। यह हमारी सरकार की और नेतृत्व की उपलब्धि है।

          महोदय, आप देख सकते हैं कि हमारी सरकार की नीति कामों से बोलती है। आतंरिक सुरक्षा को प्रमुखता देते हुए आतंकवाद से निपटने के लिए वर्ष 2017-18 के बजट में गृह विभाग के लिए 83 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 11 प्रतिशत अधिक है। यह इस बात का द्योतक है कि हम अपराध के प्रति, आतंकवाद के प्रति, असुरक्षा के प्रति जीरो टोलरेंस की नीति रखते हैं। मैं आशा करता हूं कि यह नीति फलीभूत होगी, जो केंद्र सरकार का सही दिशा में उचित कदम है। आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा को एक संगठन नेशनल सिक्योरिटी कौंसिल सचिवालय है। इसकी अहमियत और रोल को पहचानते हुए केंद्र सरकार ने इस सचिवालय के लिए वर्ष 2015-16 के लिए जहां इसका बजट 25 हजार करोड़ रुपये का था, उसे इस साल बढ़ा कर 33,358 करोड़ रुपये का प्रावधान इसमें रखा है। इससे लगता है कि सरकार की नीति में, करनी में, सोच में कोई फर्क नहीं है। हम चाहते हैं कि हमारा देश अपराध मुक्त हो, आतंकवाद मुक्त हो, भयमुक्त हो और आम जनता चैन की सांस ले। ये नीतियां इसी बात की द्योतक हैं।

          महोदय, माननीय राजनाथ सिंह जी के नेतृत्व में केंद्रीय सुरक्षा बलों की डय़ूटी है कि देश को बाहरी शत्रुओं से भी बचाएं और आंतरिक शत्रुओं से भी बचाएं। केंद्रीय सुरक्षा बलों पर खर्चा गत वर्ष के मुकाबले पांच हजार करोड़ रुपए बढ़ाने का प्रस्ताव है। इससे लगता है कि हमारी सरकार की कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं है। हमारी सरकार ने केंद्रीय बलों को आतंकवाद और अपराधियों से डील करने की पूरी छूट दी है और इसमें किसी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होगा। गृह मंत्री हर बार अपनी स्टेटमेंट में कहते हैं कि इन घटनाओं को प्राथमिकता के आधार पर ट्रीट करें और जो जैसी भाषा समझता है, वैसी भाषा में उन्हें समझाओ। मंत्री जी की इन्हीं नीतियों की वजह से हमारा देश सुरक्षित और शांत है।

          महोदय, खड़गे जी ने महिला सुरक्षा की बात कही है और सभी जानते हैं कि यह बहुत महत्वपूर्ण विषय है। इससे हर व्यक्ति, हर जिला, हर गांव, हर शहर इससे प्रभावित होता है। ऐसी घटनाओं से हमारे देश की छवि पर भी फर्क पड़ता है कि हमारे देश में महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं। हम स्वीकार करते हैं कि महिलाएं हमारे समाज का एक कमजोर तबका है और महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करना हमारा दायित्व है। हमें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इनके हित की रक्षा करनी चाहिए। इसी बात को ध्यान में रखते हुए बजट में 10,506 करोड़ रुपयों का प्रावधान रखा है। प्रेमचन्द्रन जी, यह इस बात का प्रतीक है कि हम महिला सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं। यह बात इसी के अंतर्गत आती है। पैसा आबंटित किया गया है और पैसा खर्च भी किया जाएगा तथा पैसे का सदुपयोग होगा, उसका दुरुपयोग नहीं होने दिया जाएगा, यह हमारी सरकार की प्रतिबद्धता है।

          महोदय, एक चीज 70 सालों से कभी देश में नहीं हुई थी और देश की बड़ी समस्या थी। हमारे यहां तरह-तरह के विस्थापित आए थे। इस समय के ईस्ट पाकिस्तान, वेस्ट पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए थे। लोगों का एक ऐसा वर्ग था जो वेस्ट पाकिस्तान से आए थे और कश्मीर में रह रहे थे। 70 सालों से उन्हें कोई देख नहीं रहा था। यहां बांग्लादेश से जो रिफ्यूजी आए, उन्हें सुविधाएं मिलीं। जो पाकिस्तान से रिफ्यूजी आए, उन्हें सुविधाएं मिलीं, लेकिन जो लोग वेस्ट पाकिस्तान से आए थे और कश्मीर में भारत सरकार ने इनका पुनर्वास किया था, इन्हें कोई सुविधा नहीं थी।

श्री एस.एस.अहलुवालिया : उस समय वेस्ट पाकिस्तान नहीं था, वेस्ट पंजाब था।

श्री हरीश मीना : मैं तत्कालीन वेस्ट पंजाब की बात कह रहा हूं। चूंकि यह मेरा पहला भाषण है और मैं मेडेन स्पीच दे रहा हूं इसलिए मुझे बेनीफिट आफ डाउट दें।

          महोदय, वेस्ट पंजाब से जो रिफ्यूजी आए थे और कश्मीर में बसाए गए थे, इनके पुनर्वास की कोई योजना नहीं थी। 

16.00 hours

           सरकार ने पहली बार बजट में 32 पर्सेंट धनराशि की बढ़ोत्तरी करते हुए इनके पुनर्वास और सुविधाओं के लिए प्रावधान किया है। इससे उन लोगों को तथा उनके बच्चों को राहत मिलेगी। इसके लिए श्री राजनाथ सिंह जी को और उनके मंत्रालय को मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ।

          यही नहीं, अभी खड़गे जी बोल रहे थे कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। हाँ, आँकड़े बताते हैं, ये बढ़ रहे हैं, लेकिन उसमें केन्द्र सरकार का बहुत कम रोल होता है। क्राइम प्रिवेंशन एंड डिटेक्शन राज्य सरकार का विषय है। इसमें केन्द्र सरकार राज्य को सहायता देती है, लेकिन उसे डील करना राज्य सरकार के अंतर्गत आता है। केन्द्र सरकार का विषय आंतरिक सुरक्षा और बाहरी सुरक्षा से संबंधित है। उसके बजट से संबंधित मैं बात करना चाहूँगा। हमको इस पर राजनीति नहीं करनी है, स्पष्ट बात कहनी है, अच्छे काम को अच्छा कहना है, जहाँ सुधार की आवश्यकता वहाँ सुधार भी अवश्य की जाएगी। समय-समय पर हमारी सरकार का यही प्रयास रहता है। 

          देश की थल एवं जल सीमा का महत्त्व समझते हुए आवश्यक बजट उपलब्ध कराया गया है। लैंड बॉडर्स, सी-बॉडर्स और कोस्ट गार्ड के बजट में भी बढ़ोत्तरी की गयी है ताकि हमारे देश को बाहरी दुश्मनों से, बाहरी शक्तियों से किसी तरह का खतरा न हो।

          केन्द्र सरकार की आंतरिक सुरक्षा की जो एजेन्सीज़ हैं, जैसे पैरामिलिट्री फोर्सेज़ हैं, उनकी ट्रेनिंग फैसिलिटीज, हाउसिंग फैसिलिटीज, इंफ्रास्ट्रक्चर, वेलफेयर आदि हर हेड में धनराशि की बढ़ोत्तरी की गयी है। इनमें इसलिए बढ़ोत्तरी की गयी है ताकि उनकी कार्यकुशलता बढ़े। जब वे कार्यकुशल होंगे, तो उसके परिणाम अच्छे आएंगे, देश में लोग राहत की सांस लेंगे और शांति-व्यवस्था स्थापित होगी।

          इसके साथ ही, आदरणीय गृह मंत्री को मेरा कुछ सुझाव भी है। पूरे जम्मू-कश्मीर में करीब दो सौ पुलिस स्टेशंस हैं। जम्मू-कश्मीर पुलिस की जो स्ट्रेन्थ है, जिसमें पुलिस फोर्स, एसपीओज़ और होम गार्ड्स को मिलकार यह संख्या एक लाख से ऊपर है। इसके अतिरिक्त वहाँ पर समय-समय पर केन्द्रीय बलों की भी सहायता दी जाती है। उसे भी हमें ध्यान में रखना है कि यदि वहाँ ऐसी स्थिति है, तो उसमें क्या सुधार किया जा सकता है।

          मैं आपके समक्ष केरल का एक उदाहरण देना चाहूँगा। वर्ष 2006 में केरल में एक प्रयोग किया गया था। वहाँ एक योजना लायी गयी थी, जिसके अंतर्गत जनता, खास तौर से युवाओं और पुलिस के बीच में जो दूरी है, उसको समाप्त करने के लिए लायी गयी थी। स्टूडेंट कैडेट - पुलिस प्रोग्राम नामक योजना के अंतर्गत दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के बच्चों और उनके परिजनों को पुलिस के नजदीक लाना था ताकि वे लॉ-एबाइडिंग सिटीज़ंस बनें। आज का यूथ ही कल का नागरिक है और आगे चलकर हमारे देश का भविष्य है। इस स्कीम को बढ़ाने के लिए मैं आग्रह करूँगा। शिक्षा राज्य का विषय है। राज्य अपना इंतजाम करे, पर जहाँ-जहाँ केन्द्रीय विद्यालय हैं, वहाँ इसे करना चाहिए। केरल में इस योजना को देखते हुए ही हमने इसे वर्ष 2012-13 में राजस्थान सरकार द्वारा लागू किया गया था। राज्य सरकारों को इसमें प्रौब्लम हो सकती है, लेकिन केन्द्रीय विद्यालय, जो केन्द्र सरकार के अधीन हैं, उनके माध्यम से इस योजना का प्रयोग किया जाए। स्कूलों और कॉलेजों में एनसीसी होती थी, इससे होकर जो विद्यार्थी निकलते थे, वे वर्दी की रिस्पेक्ट करते थे, लॉ की रिस्पेक्ट करते थे। केन्द्रीय विद्यालयों और नवोदय विद्यालयों के माध्यम से आप जिस स्टेट में भी आप चाहें, इसका प्रयोग जरूर करें। इसके जो परिणाम हों, उसके आधार पर इसे आगे बढ़ाया जाए। यह एक नयी योजना है, जो जनता और पुलिस के बीच में नजदीकी बढ़ाता है।

          केरल में लागू किये गये स्टूडेंट कैडेट-पुलिस योजना का उद्देश्य भ्रमित युवाओं को मुख्य धारा से जोड़ना, उनमें कानून के प्रति जागरुकता पैदा करना, विद्यार्थियों को सजग, शांतिपूर्ण मूल्य आधारित समाज के लिए तैयार करना था ताकि वे अनुशासन और विधि-पालन को अपने स्वाभाविक जीवन शैली के रूप में विकसित कर सकें। वर्ष 2006 में केरल सरकार द्वारा किया गया यह प्रयास था, जिसे प्रैक्टिस में लाया गया था। It is a good practice appreciated by every Government. I think the Government of India should take a lead in this.

          महोदय, इसके साथ ही मैं एम.एच.ए. के अंडर बी.ए.डी.पी. फंड के बारे में बात करना चाहता हूँ। इस बार्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम के अंतर्गत भारत सरकार बार्डर स्टेट्स के लिए फंड एलॉट करती है। केंद्र सरकार इस प्रकार के फंड्स को देकर भूल जाती है। केंद्र सरकार की ‘दिशा योजना’ की उसके द्वारा मॉनिटरिंग और सुपरविजन किया जाता है। यह योजना उसके अधीन नहीं है। मैं माननीय श्री राजनाथ सिंह जी से आग्रह करुँगा कि वे इस फंड की मॉनिटरिंग के लिए भी दिशा-निदेश दें। यह हंड्रेड परसेंट भारत सरकार का फंड है। इस फंड की मॉनिटरिंग और इसका सुपरविजन एम.पीज के द्वारा किया जाना चाहिए, ताकि इस पैसे का सदुपयोग हो सके।

          महोदय, मैं एक बात और कहना चाहता हूँ। जब आदरणीय जॉर्ज फर्नांडिज जी भारत के रक्षा मंत्री थे, तब उन्होंने महसूस किया कि रक्षा मंत्रालय में बैठे हुए बाबू और हमारे देश की सीमाओं पर तैनात जवानों के विचारों में काफी फर्क था। जब भी उनके कल्याण का कोई प्रस्ताव आता था, तो यहाँ उसको किसी और रूप में देखा जाता था। उन्होंने मंत्रालय के कुछ बाबुओं को बोला कि आप सियाचिन में जाकर मेरे जवानों के साथ रहिए, आप को पता चलेगा कि वे किन परिस्थितियों में काम करते हैं। इनके वहाँ जाने से उन जवानों की हौसला अफजाई होती है, उनकी कार्यकुशलता बढ़ती है और हमारे देश को सही नतीजे हासिल होते हैं। आपके विभाग के अंतर्गत बी.एस.एफ., आई.टी.बी.पी., सी.आर.पी.एफ. आदि सेनाओं के जवान पता नहीं किन-किन दुर्गम स्थानों पर नौकरी करते हैं। सी.आर.पी.एफ. के जवान नक्सल प्रभावित इलाकों में नौकरी करते हैं। जो अधिकारी यहाँ काम कर रहे हैं, उनमें से कुछ को इन इलाकों में भी भेजा जाना चाहिए, ताकि उनके माध्यम से आपको सही सूचना मिल सके जिससे कि आप उनके बारे में सही निर्णय ले सकें। मेरा आपसे यही आग्रह रहेगा।

16.06 hours                (Shri Hukmdeo Narayan Yadav in the Chair)

          महोदय, आपके गृह विभाग के अधीन कुछ विशेषज्ञों की कमेटियाँ बनी हुई हैं, जिनमें से कुछ आतंकवाद और कुछ नक्सलवाद के विशेषज्ञ हैं। यह कमेटियाँ आपके कार्यकाल से पहले काफी लंबे समय से चली आ रही हैं। कश्मीर में सरकारें बदल गईं, आतंकवादियों के तौर-तरीके बदल गए, आतंकवादी बदल गए और उनके संगठन तक बदल गए, लेकिन वे एक्सपर्ट वहीं के वहीं हैं। कृपया समय रहते हुए आप उनके बारे में भी विचार करें।

          महोदय, मैं बजट प्रस्ताव में किए गए प्रावधानों को पढ़ रहा था। Provision for expenditure on salaries and other allowances of Cabinet Ministers, Ministers of State and former PMs has been increased from Rs.413 crore to Rs.723 crore, nearly 85 to 90 per cent. I have nothing to comment on that. महोदय, इसमें हम एम.पी. लोगों का भी आप ध्यान रखें। हमारे ऊपर भी आप कृपा-दृष्टि करें। 

          महोदय, मैं अंत में हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के बारे में कहना चाहूँगा। मैं गर्व के साथ यह बात कह सकता हूँ। मैं भी एक पूर्व पुलिस अधिकारी हूँ। मैंने केंद्रीय पुलिस बलों में भी नौकरी की है।

प्रो. सौगत राय : वहाँ आप किस पोस्ट पर थे?

श्री हरीश मीना : मैं केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल सी.आर.पी.एफ. में था। मैं आपसे यह बात अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि आज हमारे केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों का मनोबल और उनके दिशा-निदेश स्पष्ट हैं। उन्हें पता है कि उनका क्या रोल है और किस परिस्थिति में उन्हें क्या करना है। उन्हें दाएँ-बाएँ देखने की आवश्यकता नहीं है। हमारी सरकार इसके लिए बधाई की पात्र है। जहाँ नेतृत्व मजबूत होता है और आदेश स्पष्ट होते हैं, वहाँ सफलता अवश्य हासिल होती है। वहाँ असफल होने का कोई कारण ही नहीं है। हम जानते हैं कि हमें अपराध को अपराध की दृष्टि से देखना है और कल्याण को कल्याण की दृष्टि से देखना है। हमें तुष्टिकरण की राजनीति नहीं करनी है। मैं मानता हूँ कि अपराध की राजनीति करना अन्याय है। मैं किसी पर कोई आरोप नहीं लगा रहा हूँ, लेकिन जो कोई भी ऐसी राजनीति करता है, यह सही नहीं है। राजनीति अवश्य करनी चाहिए, लेकिन वह राजनीति विकास, विचार, भाईचारे और सबको साथ लेकर चलने की होनी चाहिए।

          महोदय, बटला हाउस एनकाउंटर का जो केस हुआ था, उसमें दायाँ हाथ कह रहा था कि यह एनकाउंटर था, जबकि बायाँ हाथ कह रहा था कि यह एक निर्मम हत्या थी। कोई क्या कह रहा था, यह खुद सरकार के समझ में नहीं आ रहा था। लेकिन जो जैसा करता है, हममें उसे वैसा कहने की हिम्मत है। We call a spade a spade. मैं आदरणीय मोदी जी, आदरणीय राजनाथ जी और हमारे सभी सैनिक और अर्द्धसैनिक बलों को धन्यवाद देना चाहूँगा, कि वे अपने काम का बहुत अच्छी तरह से निर्वहन कर रहे हैं। 

          यह दिल्ली है, भारत की राजधानी है और इसमें भारत के हर क्षेत्र के लोग रहते हैं। दिल्ली को स्टेट मान लें या इसको देश भी मान सकते हैं। यहां हर वर्ग का व्यक्ति रहता है। मैं यहां रहता हूं, मुझे कभी यह सुनने को नहीं मिला कि फलाने वर्ग के खिलाफ कोई हिंसा हुई, पहले हम सुनते थे कि नॉर्थ-ईस्ट के लोगों के खिलाफ नस्लीय हिंसा हो रही है। उनको देखकर लोग कहते थे कि तुम यह हो, तुम वह हो। आज कोई किसी को कुछ नहीं कहता। मुझे यह कहते हुए बड़ा फLा महसूस होता है कि हां आदरणीय राजनाथ सिंह जी के नेतृत्व में दिल्ली पुलिस ने बहुत ही सराहनीय कार्य किया है, जिसका मैं स्वागत करता हूं।

          सर, खड़गे जी चले गए, वेणुगोपाल जी बैठे हैं। मैं आपके माध्यम से इनको सूचना पहुंचाना चाहता हूं कि ये बिल्कुल विरोध करें, लेकिन विरोध उस चीज का करें जो विरोध करने योग्य हो। विरोध इसलिए न करें कि हमें विरोध करना है। विरोध सकारात्मक होना चाहिए। आपकी भाषा में देशहित दिखना चाहिए, आपकी लैंग्वेज में जनहित दिखना चाहिए, क्योंकि देशभक्ति से बड़ी कोई भक्ति नहीं और राष्ट्रहित से बड़ा कोई हित नहीं। हमारा नेतृत्व आदरणीय मोदी जी, आदरणीय राजनाथ सिंह जी और हमारी पूरी पार्टी पूर्णतः इस देश की सुरक्षा, हित व देशभक्ति के लिए समर्पित है। जय हिन्द, जय भारत।


*DR. HEENA VIJAYKUMAR GAVIT (NANDURBAR):  Now days, we can’t predict about any natural calamity. In view of this our Government is the first ever to prepare National Disaster Management Plan in the 2016 in the country.  The NDMP has been aligned broadly with the goals and priorities set out in the Sendai Framework for Disaster Risk Reduction.  The Vision of the Plan is to make India disaster resilient, achieve substantial disaster risk reduction, and significantly decrease the losses of life, livelihoods, and assets – economic, physical, social, cultural and environmental – by maximizing the ability to cope with disasters at all levels of administration as well as among communities.

          The process of sealing Indo-Pak border in Rajasthan, Punjab, Gujarat and Jammu & Kashmir has been started.  The Government has approved Rehabilitation Package of Rs. 2000 crores for Displaced Families from Pakistan occupied Jammu & Kashmir and Chhamb under the Prime Minister’s Development Package for Jammu & Kashmir, 2015.

          Recently our Government has passed the Enemy Property Bill to make amendments to the Enemy Property Act, 1968. The enemy properties that have been vested in the Custodian remain so and they do not revert back to the enemy subject or enemy firm.

          Enhancement of Pension for Freedom Fighters under the Swatantrata Sainik Samman Pension Scheme is a welcome move.

*श्री कौशलेन्द्र कुमार (नालंदा)ः यह एक महत्वपूर्ण मंत्रालय है और आप पर देश के नागरिकों की रक्षा की जिम्मेदारी है। किन्तु आज देश आंतरिक सुरक्षा के विकट परिणामों से जूझ रहा है। देशवासी आज अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि माहौल और घटनाएँ ही ऐसी होती रहती हैं। अतः देश की आंतरिक सुरक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यह देखा जाता है कि देश के किसी भाग में कोई घटना घटती है तो उसका दोषारोपण शुरू हो जाता है। कहा जाता है कि यह तो कानून व्यवस्था राज्य सरकार को देखनी चाहिए। किन्तु क्या राज्य सरकारों को केन्द्र पहले कोई समुचित सूचनाएँ देती है। फिर एजेंसी पर बात चली जाती है। उसके बाद राजनीतिक उलझनों में उक्त घटनाओं को उलझा दिया जाता है। बाद में इसकी जाँच शुरू हो जाती है। अब सरकार बताए कि आजादी के बाद किसी घटना की जाँच रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया और जाँच रिपोर्ट के अनुसार कोई कार्रवाई होती भी है?

          इस संबंध में मेरा सुझाव है कि आप राज्यों की पुलिस बल को सक्षम एवं आधुनिक हथियारों से लैस करें, ट्रेनिंग दें, तभी कुछ हद तक आप इस समस्या से राहत पा सकते हैं। फिर इस कार्य के लिए राज्य सरकारों को आर्थिक मदद करनी होगी नहीं तो राज्य सरकार अपने बल पर कुछ नहीं करेगी और मामला वहीं का वहीं रह जाएगा।

          आज पूरे देश में आतंरिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था में काफी सुधार की आवश्यकता है। जगह-जगह चोरी, डकैती, छीना-झपटी, बलात्कार, मारपीट, हत्या, माओवादियों और आतंकी दुर्घटनाएँ, ठगी, बच्चों और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, शोषण आदि अपराध बढ़ते जा रहे हैं।  हमारी मानसिक स्थिति भी बदल रही है। नागरिक भी संवेदनहीन होते जा रहे हैं। हमारे पड़ोस में क्या हो रहा है हमें उससे कोई मतलब नहीं है। अगर ऐसा ही रहा तो हमारा समाज किस स्थिति में चला जायेगा-कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

          अब प्रश्न उठता है कि इन सबका कारण क्या है? प्रमुख कारण सरकार की निष्क्रियता नज़र आती है। लोगों में कानून व्यवस्था का डर समाप्त होता जा रहा है। अतः सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए। हमें पुलिस बल को अत्यधिक सक्षम बनान चाहिए। केवल प्रदर्शनकारियों और असहाय को पकड़ कर मारने पीटने से काम नहीं चलेगा। पुलिस को संवेदनशील बनाना होगा। गृह मंत्रालय पर मानवता की रक्षा की अहम जिम्मेवारी है। उसे सही सलामत निभानी होगी।

अंत में मैं अपने बिहार राज्य की बात रखना चाहता हूँ- हम लोग नक्सली समस्या से जूझ रहे हैं अतः राज्य सरकार को केन्द्र पूरी मदद करे। दूसरी बात बिहार में शराब बंदी के बाद अपराध के ग्राफ में काफी कमी आई है। अतः केन्द्र सरकार बिहार की तर्ज पर पूरे देश में शराबबंदी लागू करे जिससे कि अपराध मुक्त समाज की कल्पना की जा सके।


*SHRI VINAYAK BHAURAO RAUT (RATNAGIRI-SINDHUDURG):  In the contextual framework of the internal security of India, Ministry of Home Affairs has a very salient role covering the entire spread of the country. In that sense, the Hon'ble Finance Minister has been fairly generous in enhancing the overall budgetary allocation for the Ministry of Home Affairs by 11.24 per cent with an overall provision of Rs. 83,323.30 crore vis-à-vis Rs. 75,355.48 crore for 2016-17.

          The provision includes Rs. 54,985.11 crore allocated for seven paramilitary forces who have a wide mandate on internal security and protection of critical national infrastructure. The intelligence Bureau and National Intelligence Grid have an allocation of Rs. 1577.07 crore and Rs. 45.57 crore.  There is also a provision of Rs. 287.13 crore for education, training and research.

          With the foregoing narration of allocations, I wish to emphasize that we have a very challenging security situation to cope with. I would like to highlight some issues of grave concern for our nation.

          We all know that the CRPF is deployed for internal security; action against Maoists in some State and in operations against militants in J & K and North-East. It is a multi-faceted problem with social and economic dimensions and we have to face it with diligence and perseverance. It cannot be an issue of expedient political discourse.

          The second issue which is of very serious concern relates to growth of ISIS cells in many States in the country.  Unfortunately, we have been taking a benign attitude about the emergence of these cells, little realizing the havoc, such cells have enacted in various countries.  We need to upgrade our intelligence grid and create an intelligence framework to locate and neutralize these cells in their primary, lest they become a menace to the integrity and security of the country.

          Under Demand No. 46, the Centrally Sponsored Scheme, there is a mention about PM’s package for relief and rehabilitation of Kashmiri migrants. I should like to believe this is a reference to the relief/rehabilitation of Kashmiri pundits who were forced out of Kashmir valley. It is very sad and depressing phase in the history of independent India. No government has shown the courage and aptitude to give justice to the migrants. This Government had specifically promised to ensure the return and rehabilitation of the migrant Kashmiri Pundits. It was expected that specific zones will be earmarked and colonies will be built to enable them to move to their cherished land. We all know that the militants, who were initially responsible for their forced migration, are opposing their return and rehabilitation on the facile plea that this will result in demographic imbalance in Kashmir valley. We want to know, who has been guilty of demographic ethnic cleansing in Kashmir. We reiterate that the promise made to Kashmiri migrants for their return and rehabilitation be honoured.

          Fourthly, I would like to add a few lines about the Development of Infrastructure along Indo-China Border which also finds mention in the Budget. I humbly request the Hon'ble House to ask the Government to give special priority to this work.


*श्री राजेश रंजन (मधेपुरा)ः मैं अनुदानों की माँगे 2017-18 , गृह मंत्रालय के सन्दर्भ में कुछ तथ्य रखना चाहता हूँ। आज हमारा देश चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं नेपाल की सीमाओं पर उत्पन्न समस्याओं के साथ-साथ आन्तरिक समस्या जैसे आतंकवाद, उग्रवाद, नक्सलवाद समेत अन्य कई गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है जिससे निपटने की जिम्मेदारी गृह मंत्रालय की होती है। इसी संबंध में बजट आवंटन के बारे में कुछ तथ्य रखना चाहता हूँ।

केन्द्रीय बजट 2017-18 में आन्तरिक सुरक्षा की योजनाओं का जिक्र तक नहीं है, जबकि देश इस समय आतंकवाद, उग्रवाद, नक्सलवाद जैसे समस्या से ग्रसित है। सीमाओं को आधुनिक तकनीक से लैस स्मार्ट निगरानी की योजना, पुलिस आधुनिकीकरण, बटालियनों की संख्या बढ़ाने की माँग, नए उपकरणों की खरीद तथा साईबर आतंकवाद जैसे मुद्दों का बजट भाषण में जिक्र तक नहीं आया। सीमा ढाँचा और प्रबंधन के मद मे भी बजट आवंटन उम्मीदों को पूरा नहीं कर पायेगा। सीमा पर आधारभूत ढाँचे एवं प्रबंधन के लिए पिछले साल आवंटित राशि 2699 करोड़ रूपए थी इसे अब 2600 करोड़ रूपये कर दिया गया है। इसी तरह से कई योजनाओं की राशि घटाई गई है। अपराध एवं अपराधी निगरानी नेटवर्किंग सिस्टम का आवंटन 845 करोड़ रूपए से घटाकर 800 करोड़ रूपए कर दिया गया है। इसके तहत राज्यों मे पुलिस आधुनिकीकरण योजना को केन्द्र सहायता देता है। नक्सल प्रभावित इलाकों के लिए विशेष आधारभूत  ढाँचा योजना एस.आर.ई के तहत बजट बढ़ाने की माँग गृह मंत्रालय की तरफ से की गई थी। एस.आर.ई के तहत वर्ष 2016-17 में कुल आवंटन 840 करोड़ रूपए था एवं बाद में संशोधित बजट 1390 करोड़ रूपए हो गया था लेकिन इस बजट में एस.आर.ई के तहत 1222 करोड़ रूपए का आवंटन किया गया है। सरकार ने पुलिस आधुनिकीकरण के लिए किए गए आबंटन में मूल आवंटन से करीब 300 करोड़ रूपए बढ़ाए हैं लेकिन पिछले साल के संशोधित बजट से यह राशि काफी कम है।

बी.एस.एफ. के पूर्व डी.जी.पी. के मिश्र का भी मानना है अगर हमें बढ़ते अपराध, कट्टरपंथ को रोकना है तो सुरक्षाबलों एवं पुलिस बलों के आधुनिकीकरण पर ज्यादा खर्च की जरूरत है। बजट आवंटन में आई.एस. के बढ़ते खतरे, सुरक्षा बलों की तकनीकी अपग्रेडेशन, साईबर सुरक्षा, तटीय सुरक्षा एवं सीमा पर निगरानी के मद्देनज़र जो जरूरत थी, उसकी तुलना में बजट में बहुत कम दिया गया है।

सर्वप्रथम नक्सल की समस्या के बारे में बताना चाहता हूँ। भारत दुनिया का सबसे विशाल लोकतांत्रिक देश है। 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी के बाद से ही यहाँ लोकतंत्र लगातार मजबूत हुआ है। गणतांत्रिक व्यवस्था पर जनता के मजबूत विश्वास ने यहाँ लोकतांत्रिक संस्कार पैदा किए हैं। लेकिन ये विडंबना है कि भारत की आजादी में छिपी आधुनिक विकास और प्रगति व उन्नति की रोशनी आजादी के सालों बाद भी जब देश के कई इलाकों में नहीं पहुँच पाई, तो रोटी, कपड़ा, मकान, सड़क, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जनसंख्या का बड़ा तबका बागी होने लगा। विकास की लहर एक तरफा चली और संसाधनों के अभाव और लालफीता शाही में फंसी व्यवस्था में बड़े पैमाने पर लोगों का शोषण, अधिकारों  का हनन हुआ, जिसका नतीजा व्यवस्था से नाराजगी के रूप में सामने आया और आगे चलकर इसने विद्रोह का रूप ले लिया, जिसकी परिणित हिंसा के रूप में हुई। व्यवस्था के खिलाफ अपने अधिकारों की जंग में ऐसे लोगों ने हिंसा का रास्ता चुना और उनकी इस हिंसा ने नक्सलवाद का रूप अख्तियार कर लिया। दरअसल, आज देश जिस नक्सलवाद से जूझ रहा है उसकी शुरूआत प.बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलवाडी से हुई। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के चारू मुजुमदार और कानू सान्याल ने 1967 में एक सशस्त्र आंदोलन को नक्सलबाड़ी से शुरू किया इसलिए इसका नाम नक्सलवाद हो गया। बहरहाल, उनका मानना था कि भारतीय मज़दूरों और किसानों की दुर्दशा के लिए सरकारी नीतियाँ और पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था जिम्मेदार है। सिलिगुड़ी मैं पैदा हुए चारू मजूमदार आंध्र प्रदेश के तेलंगाना आंदोलन से व्यवस्था से बागी हुए। 

वैसे नक्सलवाद के असली जनक कानून ही माने जात हैं। कानून का जन्म दार्जिलिंग में हुआ था। वे पश्चिम बंगाल के सीएम विधानचंद्र राय को काला झंडा दिखाने के आरोप में जेल में गए थे। कानून और चारू मुजुमदार जब बाहर आए तो उन्होंने सरकार और व्यवस्था के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का रास्ता चुना। कानू ने 1967 में नक्सलबाड़ी में सशस्त्र आंदोलन की अगुवाई की। आगे चलकर कानू और चारू के बीच वैचारिक मतभेद बढ़ गए और दोनों ने अपनी अलग राहें, अलग पार्टियों के साथ बना लीं। लेकिन यह भारत के कई राज्यों आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड और बिहार तक फैलता गया, पर जिन वंचितों, दलितों, शोषितों के अधिकारों की लड़ाई के लिए शुरू हुआ, तो उनके कुछ हाथ आया, न नक्सलवादियों के। हिंसा की बुनियाद पर रखी इस आंदोलन की परिणिति भटकाव ही थी। देश के कई राज्य आज भी लंबे समय से इसे झेल रहे हैं। नक्सलवादी हिंसा में सैकड़ो बेगुनाहों की मौत हो चुकी है जबकि देश का आदिवासी समुदाय भी अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से इस हिंसा का शिकार है।

नक्सली समस्या के उन्मूलन के प्रति दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का विकास - क्योंकि बिना दृढ़ संकल्प के किसी भी उपलब्धि की आशा नहीं की जा सकती। आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के उपायों से विकास के समान अवसरों की उपलब्धता की सुनिश्चितता होनी चाहिए। शासकीय योजनाओं का समुचित क्रियान्वयन एवं उनमें पारदर्शिता की सुनिश्चितता- जिससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके। समुचित एवं सहयोगपूर्ण कानून व्यवस्था - जिससे स्थानीय लोग नक्सलवादियों का प्रतिकार कर सकें और उन्हें जीवनोपयोगी आवश्यक चीजें उपलब्ध न करानें के लिए साहस जुटा सकें। कानून व न्याय व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर बल- जिससे लोगों को सहज और समय पर न्याय मिलने की सुनिश्चितता हो सके। आजीविकापरक एवं सर्वोपलब्ध शिक्षा की व्यवस्था- जिससे सामाजिक विषमताओं पर अंकुश लग सके। कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवित करने के समुचित प्रयास- जिससे वर्गभेद की सीमायें नियंत्रित की जा सकें। राष्ट्र के विकास की मुख्यधारा में नक्सलियों को लाने और उनके पुनर्व्यवस्थापन के लिए रोजगारपरक विशेष पैकेज की व्यवस्था की जानी चाहिए। चीन और पाकिस्तान से नक्सलियों को प्राप्त होने वाले हर प्रकार के सहयोग को रोकने के लिए दृढ़ राजनीतिक और सफल कूटनीतिक उपायों पर गम्भीरतापूर्वक चिंतन और तद्विषयक प्रयासों का वास्तविक क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।

आदिवासियों का जंगल से गहरा संबंध होता है। जंगल के बिना आदिवासियों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। किंतु औद्योगिकीकरण के द्वारा तेजी से आर्थिक विकास करने की सरकारी नीति से आदिवासी खनिज-सम्पदा, वन सम्पदा, जल सम्पदा एवं भूमि सम्पदा से वंचित हो रहे हैं। खनिज सम्पदाओं के विदोहन एवं कल-कारखानों की स्थापना से आदिवासी विस्थापित हो रहे हैं। जंगलों में बांध बनाए जाने से उनकी जमीन एवं गाँव डूबान में आ गए है और उन्हें अपने घर, जमीन से वंचित होना पड रहा है। आदिवासियों के पुनर्वास, रोजगार एवं कौशल निर्माण के लिए कार्य नहीं किया गया। आदिवासियों में आज भी साक्षरता की दर सबसे कम है। उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, खाद्यान्न जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा गया। आदिवासी उपयोजना एवं निर्धनता-उन्मूलन कार्यक्रमों के अंतर्गत राज्य सरकारों के द्वारा भारी राशि व्यय की गई। किंतु आदिवासियों की अशिक्षा के कारण बिचौलिए एवं दलालों के कारण आदिवासियों को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिला, बल्कि इनसे अधिकारी वर्ग एवं सरकारी कर्मचारी वर्ग लाभ उठाते रहे। आदिवासी क्षेत्रों का विकास भी नहीं हुआ। आदिवासी क्षेत्रों में सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत अत्यंत कम है। उनकी खेती वर्षा पर आधारित होती है। कृषि-उत्पादकता अत्यंत कम है। वनोपज ही उनके जीवन का मुख्य आधार बना हुआ है।

इसके साथ-साथ अर्धसैनिक बलों में जवानों की स्थिति भी काफी खराब है, जिसका प्रमाण अभी हाल में आए कई वीडियो में मिलता हैं जिसमें खाने से लेकर जवानों के शोषण तक का जिक्र है। इसके साथ ही साथ देश के आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने वाली अर्धसैनिक बलों में भी नौकरी छोड़ने की प्रवृति बढ़ी हुई है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक अर्धसैनिक बलों में पिछले तीन सालों में करीब 21000 जवान और अफसर या तो वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृति) ले चुके हैं या फिर इस्तीफा दे चुके हैं। 2014 से 2016 तक 20618 अर्धसैनिक बलों (सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ और असम राइफल) में इस्तीफे आए हैं। सबसे ज्यादा वीआरएस सीआरपीएफ में लिए गए, पिछले तीन सालों में 5960 जवान और अफसर सीआरपीएफ से वीआरएस ले चुके हैं और 1206 ने इस्तीफे दिए। सिर्फ वर्ष 2016 में 57 गजेटेड अफसरों ने सीआरपीएफ छोड़ा, 542 सबआर्डिनेट अफसरों ने और 2155 जवानों ने वर्दी की जिंदगी को अलविदा किया। यह चलन बीएसएफ में भी देखने को मिलता है, वर्ष 2017 में 52 गजेटेड अफसरों ने बीएसएफ छोडा जबकि इससे पहले 2015 में इनकी संख्या 36 और 2014 में 40 थी। अगर सिर्फ गजेटेड अफसरों की बात करें तो गृह मंत्रालय के मुताबिक पिछले साल यानी 2016 में 151 अफसरों ने अर्धसैनिक बलों को छोड़ा। कुल 1400 सबआर्डिनेट अफसरों ने और 7415 जवानों ने अर्धसैनिक बलों को छोड़ा।

अर्धसैनिक बलों से जवानों का स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेना चिंता का विषय है। प्राकृतिक आपदा और आंतरिक सुरक्षा की स्थिति बिगड़ जाने पर अर्धसैनिक बलों का ही सहारा होता है। औद्योगिक सुरक्षा तो ऐसे बलों के हवाले है ही, सीमा पर सेना की पूरक इकाई के रूप में भी उनका संवेदनशील इलाकों में इस्तेमाल जरूरी हो जाता है। पिछले दो साल में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल, सीमा सुरक्षा बल, केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, इंडो तिब्बत सीमा पुलिस, सशस्त्र सीमा बल और असम रायफल्स जैसे अर्धसैनिक बलों के 35 हजार 473 जवानों व कर्मियों ने समय से पहले सेवा निवृत्ति ले ली है। औसत निकाला जाए तो यह रोज का पचास के आसपास बैठता है। स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति (वीआरएस) लेने वालों में सीमा सुरक्षा बल के सबसे ज्यादा 15,990 जवान हैं। दूसरा नंबर केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के 3225, असम रायफल्स के 2194, इंडो तिब्बत सीमा बल के 1333 और सशस्त्र सीमा बल के 1321 जवानों का नौकरी से किनारा कर लेना यही बताता है कि उनका अर्द्ध सैनिक बलों से मोह भंग हो गया है। सीमा पर नजर रखने वाले और आंतरिक स्थिति बिगड़ने पर या प्राकृतिक आपदाओं के समय स्थानीय प्रशासन की मदद को तत्पर रहने वाले अर्धसैनिक बलों का एक समय जलवा था लेकिन अब चाहे सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) हो या केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीआरपीएफ) या कोई और भी अर्धसैनिक बल हो, न तो युवक उसमें भर्ती होने में ज्यादा रूचि दिखा रहे हैं और जो सेवारत हैं वे इससे किनारा करने मे लगे हुए हैं। जरूरत से ज्यादा अपेक्षाएँ, वेतन में असमानता, मानव शक्ति की कमी, खराब स्तर की वर्दी और आदेशों में कोई स्पष्टता न होना इसका कारण है।

सबसे बड़ी शारीरिक और मानसिक यातना यह है कि काम के बोझ में इन बलों के जवान ठीक से सो नही पाते। हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि इन्हीं कारणों से जवान अर्धसैनिक बल छोड़ रहे हैं। 2009 में सीआरपीएफ के 3580 जवानों ने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली और 266 ने इस्तीफा दे दिया। 2010 में इस्तीफा देने वाले 335 हो गए जबकि 2790 ने समय से पहले सेवा निवृत्ति माँग ली है। 2011 में 2377 जवानों ने वीआरएस ली और 308 ने नौकरी छोड़ दी। बीएसएफ में भी स्थिति ज्यादा अलग नहीं रही। 2009 में उसके 6319 जवानों ने वीआरएस ली और 218 ने इस्तीफा दे दिया। 2010 में नौकरी छोड़ने वालों की संख्या घट कर 182 भले ही रह गई लेकिन 2011 में इसमें उछाल आया और 302 जवान नौकरी छोड़ कर चले गए। वीआरएस लेने वाले भी 2010 में 5443 थे जो 2011 में बढ़ कर 5877 हो गए। इस प्रवृति के लगातार बढ़ने की वजह से केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने पिछले साल जनवरी में भारतीय प्रबंधन संस्थान (अहमदाबाद) को स्थिति का अध्ययन करने का काम सौंपा। अध्ययन का निचोड़ यह निकला कि इन बलों के अधिकारी महसूस करते हैं कि उनके संगठन को उनकी परवाह नहीं है। उन्हें रंगरूटों को प्रशिक्षण देने का मौका ही नहीं दिया जाता। आईआईएमए के प्रोफेसर धीरज शर्मा ने यह अध्ययन किया था जिससे पता चला कि सी.आर.पी.एफ. और बी.एस.एफ. के अधिकारी बेहतर जिम्मेदारी न दिए जाने से तनाव में रहते हैं। कुछ ही अधिकारियों को बहुत कम ही अवसर दिए जाते हैं कि वे बेहतर संस्थानों में प्रशिक्षण पा सकें। ऐसा कोई निश्चित आधार अभी तक नहीं बन सका जिससे पता चले कि अधिकारियों का चयन कैसे होता है और उन्हें प्रशिक्षित कैसे किया जाए?

अर्धसैनिक बलों के जवानों को छुट्टी मिलने में अड़चन के बारे में अध्ययन में कहा गया है- छुट्टी मंजूर करने की प्रक्रिया इतनी लंबी और दुरूह है कि कभी तो छुट्टी उस तारीख के बाद मंजूर की जाती है, जिस तारीख के लिए छुट्टी मांगी गई थी। नींद पूरी न हो पाने पर अध्ययन का आकलन है - ‘डय़ूटी की वजह से उन्हें अक्सर ज्यादा काम करना पड़ता है। नींद पूरी न हो पाने का असर क्षमता पर पड़ता है और जवानों में असंतोष पनपने लगता है।’ जहाँ तक जवानों की वर्दियों की बात है तो उसमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री को अध्ययन में घटिया स्तर का बताया गया है और कहा गया ऐसी वर्दियाँ ज्यादा समय चल भी नहीं पातीं। हर बार नियमित अंतराल के बाद नई वर्दी जवान में आत्मसम्मान की भावना कम करती है। अध्ययन में कहा गया है कि नाजुक परिस्थितियों तक में अपने स्तर पर कोई फैसला करने का अधिकार बल के अधिकारियों को नहीं है। सामान्य अधिकार न मिलने से भी उनका दम घुटने लगता है। अध्ययन के मुताबिक कई मामलों में तो बल के सामने यह स्पष्ट ही नहीं हो पाता कि उसे डय़ूटी क्या निभानी है। उन्हें सटीक निर्देश ही नहीं मिलते। मिसाल के तौर पर कुछ अरसा पहले जब बांग्लादेश सीमा पर आक्रामक भीड़ से जवानों का आमना-सामना हुआ तो जवानों को फायरिंग करने की इजाजत नहीं दी गई, उस हालत में भी नहीं जब सीधे उन पर हमला होने की स्थिति बन रही थी।

बीएसएफ के जवानों के मामले में अध्ययन गुजरात, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और बंगाल के मोर्चो पर जवानों, अधिकारियों से बातचीत के आधार पर किया गया। इसके अलावा महिला बटालियन और जालंधर, चंडीगढ़, श्रीनगर व संबल में बल के जवानों से संपर्क किया गया। अध्ययन में वेतन में असमानता और शिकायतों पर विशेष गौर करने की बढ़ती प्रवृति पर भी इशारा किया गया। अध्ययन के मुताबिक एक ही रैंक के जवानों के वेतन में फर्क पाया गया। जब दो लोग एक ही रैंक के हों और एक जैसा काम कर रहे हों तो उनके वेतन में फर्क पीड़ा पहुँचाता ही है। इससे असंतोष बढ़ता है और काम करने का उत्साह जाता रहता है। अधिकारियों की शिकायत पर गौर करने की प्रक्रिया सबसे ज्यादा चिंताजनक है। अधिकारियों को लगता है कि जरा सी चूक भी अच्छे भले करिअर का सत्यानाश कर सकती है।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि जवानों के रहने की व्यवस्था भी काफी खराब है। सबसे ज्यादा चिंता की बात तो यह है कि जिस काम के लिए जितने जवानों की जरूरत होती है, उतने कभी उपलब्ध नहीं होते। कई बार तो पदोन्नति के बाद भी निचले रैंक का काम करना पड़ता है। अर्धसैनिक बल के जवानों के वीआरएस लेने को शायद इसलिए गंभीरता से नहीं लिया जाता क्योंकि पिछले दो साल में जिन जवानों ने वीआरएस ली है, उनकी संख्या विभिन्न बलों के करीब साढ़े सात लाख जवानों व अधिकारियों में पाँच फीसदी से भी कम है। पिछले दिनों केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल में वीआरएस का मुद्दा संसद में उठा तो गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने बताया कि स्वास्थ्य कारणों से, बच्चों या परिवार की समस्या की वजह से अथवा पारिवारिक मजबूरियों की वजह से ऐसा हो रहा है। गृहराज्य मंत्री ने तीन पेज का जो बयान दिया उससे यही निचोड़ निकला कि केन्द्र ने बल की तरफ से निभाई गई मामूली समस्याओं का भी समाधान नहीं किया। हालांकि आरपीएन सिंह ने यह जरूर कहा कि जवानों को बल छोड़ने से रोकने के लिए केन्द्र ने बहुआयामी नीति बनाई है। उन्होंने कहा - ‘हमने छुट्टियाँ देने के मामले में स्पष्ट व पारदर्शी नीति बनाई है जिसे समयबद्ध कार्यक्रम के तहत लागू किया जाएगा।’ इस नीति के तहत केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल के जवानों को जरूरी पारिवारिक समस्याएँ निपटाने के लिए विशेष छुट्टियाँ दी जाएगीं। जवानों की समस्याओं को जानने व समझने के लिए उनकी कमांडरों व अधिकारियों से औपचारिक बातचीत कराए जाने का प्रस्ताव है। पूर्व की कई सरकारों द्वारा आश्वासन गया कि जवानों की शिकायतों का निपटारा करने वाली व्यवस्था को व्यापक स्तर पर सुधारा जाएगा। उन्हें पर्याप्त आराम व राहत मिल सके, इसके लिए डय़ूटी के समय को नियमित किया जाएगा। उन्हें बेहतर सुविधाएँ मुहैया कराई जाएँगी। अपने परिवार से संपर्क करने के लिए जवानों के एसटीडी टेलीफोन की सुविधा उपलब्ध कराने का भी प्रस्ताव है। इससे दूर दराज के बीहड़ इलाकों में तैनात जवानों को तनाव कम होगा। जवानों और उनके परिजनों को विशेष स्वास्थ्य सुविधा दिलाने पर भी विचार हो रहा है। योजना निश्चित तौर पर अच्छी है, उस पर कायदे से अमल हो जाए, यह ज्यादा जरूरी है।

तेज बहादुर यादव नामक इस जवान ने जो बातें कही थीं, उन्होंने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया था। अभी इस घटना को बीते हुए 4 दिन भी नहीं हुए हैं, कि CRPF के एक जवान का Video सामने आ गया है। जिसमें उसने अर्धसैनिक बलों को मिलने वाली सुविधाओं पर गंभीर सवाल पूछे हैं। हम यहाँ समझने की कोशिश करेंगे, कि हमारे देश की सेना और अर्धसैनिक बलों को मिलने वाली सुविधाओं के बीच कितनी गहरी खाई है।

CRPF के कॉन्सटेबल जीत सिंह ने रोटी और दाल को लेकर शिकायत नहीं की, बल्कि उनकी दुविधा पेट से ज्यादा अपने भविष्य को लेकर है। हालांकि ये वीडियो पुराना है, लेकिन तेज बहादुर का वीडियों सामने आने के बाद.... ये वीडियो भी सुर्खियों में आ गया है। कुछ ऐसी ही पीड़ा BSF के एक और जवान की भी थी। इस जवान ने गृह मंत्रालय को 9 पन्नों की एक चिट्ठी लिखी थी। चिट्ठी में इस जवान ने खाने से लेकर, कपड़े, रहने की सुविधा और डय़ूटी के घंटों पर कुछ चुभने वाले सवाल पूछे हैं। इस जवान ने लिखा है, कि खाने के लिए Allot किए गए पैसे खाने पर नहीं, बल्कि दूसरी चीजों पर खर्च किए जाते हैं। इन्होंने ये भी लिखा है, कि नियमों के मुताबिक आठ घंटों की डय़ूटी करना अनिवार्य है, लेकिन उन्हें लगातार 20-20 घंटों की डय़ूटी पर तैनात किया जाता है।

पहले BSF के तेज बहादुर यादव का वीडियो वायरल हुआ, फिर CRPF के जीत सिंह का वीडियो वायरल हुआ और अब BSF के ही एक और जवान की चिट्ठी का सामने आना महज इत्तेफाक नहीं हो सकता। क्योंकि धुआँ वहीं से उठता है, जहाँ आग लगी होती है। हमें इसकी जड़ में जाकर सच्चाई को ढूँढना होगा। BSF के तेज बहादुर यादव ने आरोप लगाया था, कि उन्हें मिलने वाली दो वक्त की रोटी जली हुई होती है और आरोप ये भी था, कि खाने में मिलने वाली दाल में भी भ्रष्टाचार का पानी मिला हुआ है। घटनाओं का विश्लेषण एक बड़े नज़रिए से करेंगे तो केन्द्रबिन्दु में एक तरफ भारतीय सेना है और दूसरी तरफ Central Armed Police Forces के तहत आने वाले सुरक्षा बल। ये एक दुखद विडंबना है, कि जब भी देश में सुरक्षा व्यवस्था की बात आती है, तो अक्सर लोगों के दिमाग में सबसे पहले भारतीय सेना का नाम आता है। लेकिन कोई Central Armed Police Forces की बात नहीं करता।

भारतीय सेना और Central Armed Police Forces में बहुत फर्क है। गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले इन सुरक्षा बलों में मुख्य रूप से CRPF, BSF, ITBP, CISF, Assam Rifles और SSB शामिल हैं। देश मे अर्धसैनिक बलों के जवानों की संख्या 9 लाख से थोड़ी सी ज्यादा है। जबकि Indian Army, Indian Air Force और  Indian Navy में शामिल सैनिकों की संख्या करीब साढ़े 13 लाख है। देश के अर्धसैनिक बल बांग्लादेश, पाक्सितान, म्यांमार, चीन, भूटान और नेपाल से सटे सीमाओं की रखवाली कर रहे हैं। इसके अलावा अर्धसैनिक बल पूरे देश में आतंकवाद और नक्सलवाद विरोधी अभियानों में भी लगे हुए हैं। वी.आई.पी. सिक्योरिटी में भी  मुख्य तैर पर अर्धसैनिक बलों के जवान ही होते हैं। आपदाओं से निबटने के लिए बनाई गई   NDRF में अर्धसैनिक बलों के जवानों को ही शामिल किया गया है। आजादी के बाद से लेकर वर्ष 2015 तक देश के लिए शहीद होने वाले सैनिकों की संख्या 22 हज़ार 500 से ज्यादा थी। जबकि वर्ष 2015 तक, 53 वर्षों में देश के लिए, 31 हज़ार 895 अर्धसैनिक बल के जवान अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं। सुविधाओं के नाम पर जो सहूलियतें भारतीय सेना को मिलती हैं, वैसी सुविधाएँ अर्धसैनिक बलों को नहीं मिलती। दुख इस बात का भी है, कि हमारे देश के लिए बलिदान देने वाले जवान शहीद  की श्रेणी में नहीं आते। सरकार संसद में बाकायदा एक सवाल के जवाब में ये कह चुकी है, कि हमारे सिस्टम मे शहीद शब्द की कोई परिभाषा है ही नहीं। यानी शहीद शब्द सिर्फ बातचीत और नारेबाज़ी के दायरे में ही खत्म हो जाता है.... और ये शब्द अधिकारिक तौर पर हमारे सिस्टम में आजादी के 69 साल बाद भी कोई जगह नहीं बना पाया है....

इसी शब्द से जुड़ा हुआ एक मुद्दा ये भी है कि देश की सुरक्षा करते हुए..अपनी जान देने वाले अर्धसैनिक बलों के जवानों को..मरणोपरांत शहीद का दर्जा क्यों नहीं दिया जाता? सीमा पर देश के लिए अपनी जान देने वाले सेना के जवान अगर शहीद हैं..तो फिर नक्सली हमलों, आतंकवादियों और देश के भीतर बैठे दुश्मनों का मुकाबला करने वाले जवानों को बलिदान के बाद शहीद का दर्जा क्यों नहीं मिल सकता....? ये बहुत बड़ा सवाल है....लेकिन सच्चाई ये है कि इस सवाल का किसी के पास कोई जवाब नहीं है.... इसलिए आज अर्धसैनिक बलों की तकलीफ और उनकी पीड़ा को पूरे देश के सामने रखना ज़रूरी है।

त्रिपुरा के घने जंगलों में जहाँ BSF के जवानों का मुकाबला आतंकवादियों के अलावा ज़हरीले कीड़े-मकोड़ों और जानलेवा मच्छरों से होता है। ये मच्छर इतने ख़तरनाक हैं कि जवानों को गश्त के दौरान जाली से बना हुआ मास्क पहनना पड़ता है। यहाँ कई महीनों तक बारिश होती है और जवानों को अपनी चौकियों तक पहुँचने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना होता है। भारत और बांग्लादेश की सीमा पर फैला सुंदरबन जवानों के सामने अलग चुनौतियाँ पैदा करता है....यहाँ जवानों को नावों से गश्त करनी होती है यहाँ तक कि उनकी चौकियाँ भी पानी पर बनी होती है। यहाँ जंगलों में जानवरों से भी जवानों को सावधान रहना पड़ता है....जवानों की ये परेशानी भी हमने आपको दिखाई थी। कच्छ को दुनिया की सबसे वीरान जगहों में से एक माना जाता है....कच्छ के रण में तैनात जवानों को नमक की आंधियों के साथ-साथ 50 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की गर्मी का सामना करना पड़ता है। यहां जवानों को खासतौर पर दलदल में ऑपरेशन करना सीखना होता है क्योंकि यहां आतंकवादियों की घुसपैठ का खतरा बना रहता है। यहां की हवा शरीर का पानी सुखा देती है और नमकीन पानी की दलदल लोहे को भी गला देती है। हालांकि इन कठिन परिस्थितियों के बावजूद हमारे जवान यहां तैनात रहते हैं। जैसलमेर जैसे इलाकों में गर्मियों में तापमान 52 डिग्री से भी ज्यादा हो जाता है। यहां पीने का पानी हफ्ते में एक दिन आता है जिसे स्टोर करके रखना पड़ता है। रेगिस्तान में गश्त के लिए ऊंटों का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यहां कोई और तरीका संभव ही नहीं है। हिमालय की ऊंचाइयों पर तैनात भारत-तिब्बत सीमा पुलिस को सर्दियों में -40 डिग्री तक की ठंड में दुश्मन से मुकाबले के लिए तैयार रहना होता है। इन जवानों को बर्फ और ऊंचाई पर होने वाली शारीरिक दिक्कतों के बीच डय़ूटी करनी होती है। यहां ऑक्सीजन की कमी होती है और आम इंसान का सांस ले पाना भी मुश्किल होता है, लेकिन आई.टी.बी.पी. के जवान यहां साल के बारहों महीने डटे रहते हैं। सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेस को सरहद के अलावा पूरे देश में आतंकवाद और नक्सल-विरोधी अभियानों में तैनात किया जाता है। यहां ये जवान घने जंगलों में, हर मौसम में नक्सलवादियों के हर हमले का सामना करते हैं तो कुल मिलाकर ऐसी मुश्किल और कठिन परिस्थितियों के बावजूद सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेस के जवान देश की रक्षा के लिए डटे हुए हैं। ये तस्वीरें बताती हैं कि हमारे इन जवानों के हौसलों के आगे मुश्किल परिस्थितियां भी छोटी पड़ जाती हैं।

अपने हौसलों से ऐसी ही एक कहानी इन दिनों सी.आर.पी.एफ. की पहली महिला असिस्टेन्ट कमांडेंट उषा किरण भी लिख रही हैं। उषा किरण छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके बस्तर में तैनात हैं और उन्होंने अपने हौसलों को परखने के लिए खुद ही बस्तर को चुना है। उषा किरण को तीन जगहों पर तैनाती के विकल्प दिए गए थे, लेकिन उन्होंने देश के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित इलाके बस्तर को चुना। पिछले कई वर्षों से नक्सलवाद की आग में जल रहे बस्तर में नक्सलवादियों के खात्मे के लिए लगातार ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं। ऐसे में सी.आर.पी.एफ. की पहली असिस्टेंट कमांडेंट उषा किरण भी नक्सलियों के खात्मे के लिए जंगलों में घूम रही हैं। उषा किरण के पिता और दादा भी सी.आर.पी.एफ. में काम कर चुके हैं। यानी उषा किरण को देश की सेवा करने का हौसला विरासत में मिला है। देश के जवानों का सम्मान होना चाहिए और हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि जब सीमा पर ये जवान तैनात होते हैं, तभी देश के आम लोगों को घूमने, मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने की या मॉल में घूमने की आज़ादी मिलती है।

दो वीडियो सामने आने के बाद बहुत सारे जवानों को अपनी तमाम परेशानियों का एक ही इलाज दिखाई दे रहा होगा कि उन्हें अपना वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड कर देना चाहिए। लेकिन हमें लगता है कि ये सही तरीका नहीं है.. जवानों की कई ऐसी समस्याएं होंगी जो बिना वीडियो शेयर किए.. सिर्फ बातचीत से सुलझ सकती हैं... इस दिशा में प्रयास करना चाहिए। हमें लगता है कि अर्धसैनिक बलों के बड़े अधिकारियों को, नीतियाँ बनाने वाले लोगों को और सरकार को ये सुनिश्चित करना होगा कि अर्धसैनिक बलों के जवानों को अपनी समस्याओं का वीडियो बनाकर अपलोड करने की जरूरत  न पड़े और जहाँ तक सिस्टम की बात है..तो सिस्टम भी बहुत कुछ कर सकता है..सिस्टम को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि देश में किसी भी शहीद के परिवार को किसी मूलभूत जरूरत के लिए परेशान न होना पड़े......देश की किसी भी लाइन में शहीदों के परिवार वालों का नंबर सबसे आगे होना चाहिए....इसके लिए शहीदों के परिवार को आरक्षण भी दिया जा सकता है...हमारे देश में जाति और धर्म के नाम पर आरक्षण की माँग जोर-शोर से होती है....लेकिन हमें लगता है कि आरक्षण देना ही है तो शहीद के परिवारों को देना चाहिए..ताकि उनका दर्द कम हो सके और वो सम्मान के साथ अपना जीवन जी सकें।


*SHRIMATI SUPRIYA SULE (BARAMATI):  The Government has allocated Rs. 97,187 crore to the Ministry of Home Affairs in this year’s Budget, which is 5.4% increase from the revised estimate of Rs. 92,170 crore in 2016-17.  Compared to the budgeted allocation in 2016-17 of Rs. 88,547 crore, this is a 9.7% increase.

          More than 80% of the Budget is allocated to police with provision of Rs. 78,000 crore. This is a 6.4% increase from the revised estimate of Rs. 73,328 crore in 2016-17. The grants to the Union Territories constituted 13.7% of the budget of the Ministry of Home Affairs. The grants released to the union territories increased by only 0.05% to Rs. 13,357 crore in 2017-18 from Rs. 13,350 crore in 2016-17.  The rest of the 6% of the Budget is spent on disaster management among other miscellaneous items. The expenditure on disaster management, rehabilitation of refugees and migrants is increased by 19.2% to Rs. 5,830 crore in 2017-18.

          Budgetary allocation to border and police infrastructure has increased by 37.9% in 2017-18 to Rs. 7.047 crore from Rs. 5,112 crore. Though this is a positive step, the budget allocated in 2016-17 of Rs. 5,646 crore remains underutilized.  This underperformance is also highlighted by the Standing Committee.  As infrastructure augmentation is important, the Government must release the allocated funds. Maintaining border check posts, inducting high tech surveillance in the borders and setting up mobile check posts in the coastal areas are crucial to buffer the country from infiltrations.

Funds allocated to modernization of the police force decreased by 9.5% to Rs. 2,022 crore in Budget 2017-18 as compared to the revised estimate of Rs. 2,235 crore in 2016-17.

          The central armed police forces face total staff shortage of 7%.  According to the Bureau of Police Research and Development, forces facing relatively high vacancy are Central Industrial Security Force (10%), Indo-Tibetan Border Force (9%), National Security Guards (8%).

          The detailed demand for grants for Ministry of Home Affairs reveals that the budget allocated to National Disaster Response Force (NDRF) is Rs. 650 crore; which is less than the revised estimate for 2016-17.  The funds assigned to infrastructure for disaster management also declined compared to the budget estimate of Rs. 212 crore in 2016-17.  It is important to be prepared for dealing with disasters.  In the last two years since 2015, the Indian subcontinent especially the places along the coast, were subjected to weather vagaries like floods, cyclones, untimely rainfall. Though India has a full fledged National Disaster Response Force, it is the Indian Army that reaches the site of disaster before NDRF.  There are staff, response personnel and disaster management skill shortages reported in NDRF. The Government must thus increase its allocation to NDRF, which can be deployed to augment the capacities and capabilities of the disaster response force.

          The National Cyclone Risk Mitigation Project is overlooked the most with its budget declining from Rs. 159 crore in 2015-16, to Rs. 11.9 crore in 2016-17 and Rs. 4.25 crore in the present budget.

          Under the Home Affairs Ministry, the Department of Police is allocated an estimate of Rs. 78,000 crore in 2017-18 budget.  This is only a mere 6% increase compared to the revised estimates for 2016-17.

          Expenditure in 2017-18 for capital outlay of border infrastructure has decreased to Rs. 2,355 crore compared to the 2016-17 Budget.  Given the increased breaches in the border by foreign elements and instability especially across the Line of Control, the Government must have strengthened border security.  Rather, total expenditure for border infrastructure and management is estimated at less than in the previous year’s budget, at Rs. 2,600 crore. The Central Government must take into consideration the precarious situation of soldiers at the borders and must invest to improve the infrastructure here.

          Infrastructure available to the police force is crucial for them to maintain law and order efficiently. In line with these needs, the Centre must have increased the budget allocation. But, the expenditure for modernization of police forces for 2017-18 year is estimated at Rs. 2,022 crore, which is less than the revised estimates of Rs. 2,235 in 2016-17.  An important scheme under modernization of police force, Crime and Criminal Tracking Network and Systems (CCTNS) is allocated Rs. 800 crore. This amount is less compared to the revised 2016-17 estimate of Rs. 845 crore.

          The Central Government prides itself for promoting cooperative federalism. But the grants-in-aid to the States for maintenance of police in 2017-18 Budget is Rs. 3,117 crore, which is less than the revised estimates of grants in 2016-17.  The Centre must increase its devolution to the states, to augment them in maintaining law and order.


DR. KAKOLI GHOSH DASTIDAR (BARASAT): Sir, I stand here on behalf of the All India Trinamool Congress in support of the Demands for Grants of the Home Ministry. But it saddens me that the hon. Finance Minister is not here considering that this is not an important subject. I am saying this because in this speech of his on page 36 he has given a list of important Ministries and amongst those important Ministries Home Ministry is not there. So, it is saddening that it is considered by the Government that Home Ministry is not important.

          I think that the internal security is one of the most important issues by which we live safely in this country. The Home Ministry takes care of the internal security and we have the brave jawans who are protecting us. But even before starting, I want to pay respect to all the jawans who have lost their lives in protecting us over the last few years.

I would also like to congratulate this Government for selecting a lady as the Director General of SSB. I think that it is the first time in history that a lady is commanding the SSB. I congratulate the Minister for it. I also would like to request him that there was a decision and a promise to have about 33 per cent of the forces as women, but as of today we have about 6 per cent and these girls are working very hard to protect us. They are doing the international borders, and they are maintaining law and order. This House has very rightly passed the Maternity Benefit Bill. I would request the hon. Minister to consider about these girls, these ladies and these young women that when they give birth, then at least for two years give them posting close to their homes so that they can take care of these little future citizens.

          I would also like to congratulate this Government and the hon. Minister for increasing the scholarship of the children of the jawans, and raising the amount of money and the number of children to be included both boys and girls.

But as I have congratulated on these good points, let us come to the sour ones. As regards the authorized strength of the forces, you know, that our country has a very long international border. The land border is more than 15,106.7 kms. and the coast line is 7,516.6 kms. It is a very large border for any country with seven different neighbouring countries out of which some of them are friendly countries and we also have non-friendly countries. So, the fencing is not complete. The forces that guard us, guard our motherland and guard our very favourite Bharat Mata are the Assam Rifles, BSF, CISF, CRPF, SSB and ITBP whose authorised strength has been 9,67,816 but as of today, we are lacking 73,464 jawans. The vacancies are lying and we are not filling them up. I would request, when you are filling those vacancies, hon. Sir, please give cognizance to the girls also who are doing very well. We have been to the border and we have seen how much hard work they do. Along with that, it is astonishing to see how, in spite of policing having changed too drastically, today, we have the foreign terrorist groups, we have the threat of ISIS, we have cyber crime.

Regarding budget allocation and expenditure, we are starting right from Grant nos. 46 to 53. We see that it is not being spent and the percentage increased over 2016-17 as far as Grant no. 46 is concerned. It is (-)48.6 per cent. So, I wonder how this is happening. In Grant no. 48 for Police Budget that it is (-)3.65, and for overall, it is (-)5.93. Instead of increasing the budget, the budget has gone down.

If we look at the expenditure, Grant no. 46, we have spent least amount in the year 2016-17 over the last three fiscals. Only 80 per cent has been spent. I wonder, how? We do not have up-to-date equipment. Why do these jawans not have mine protected vehicles who are in the left-wing extremism areas? We were told that there is no money to buy those mine protected vehicles. But, here we see that the money is not being spent. So, there surely seems to be a gap between expenditure, requirement and allotment which need serious concern.

As far as Police Grant is concerned, if we consider the Budget Estimate, the Revised Estimate and expenditure, that is the lowest in the last three fiscals and the whole amount has not been spent. This year, for machine and equipment, only 1.7 per cent of the whole has been given. For arms and ammunition, 1.46 has been given. We think that this has to be increased because when our poor jawans are facing terrorists, they have to be equipped to the teeth. They have to be more equipped than terrorists to take them on and protect our motherland. I do not understand why the allotment has been slashed as far as the cyber crime registry, the crime and criminal tracking system and the left-wing terrorism heads are concerned.

I would also like to draw the attention of the hon. Minister here that the condition of women in this country, the safety, security of women in the country is still at stake. It is only three days ago on the day of Holi, a young mother was gangraped and to save her life, she had to jump from the first floor of the building here in the city of Delhi. So, let us imagine the plight of women all over the country in the rural areas without her clothes. She was being gangraped. She lay on the street without her clothes for minutes together before an autoriskshawala came and took her up to the police station as per media report.

We are sometimes talking about an app which will come on the smart phones of the women. My question to you through hon. Chair is: How many of us or how many of our rural women, how many of the agricultural women workers and how many women labours have smart phones? Only 27 per cent of this country uses smart phones. If the App is on a smart phone, no girl while being raped or tortured can dial that App to get police. You have to think of some better way by which we can protect our women.

          The Nirbhaya Fund was not spent. When the Nirbhaya kaand had taken place, it had been decided that in all buses, in the evening, one or two police constables would remain for protection of women. I do not know whether those constables are still there.

          The problem remains because we are running short of staff. Like I said, 73,000 and odd constables are required for proper functioning, but they have not been appointed.

          I would also like to draw the attention of the august House and, through you, Sir, that of the Minister to the fact that between July 2016 and January 2017, the number of law and order incidents that shook us up in Jammu and Kashmir was 2,392; the number of civilians killed was 73; and the number of Forces’ personnel killed was two. In the North Eastern Region, we experienced 484 incidents in which, of course, 87 extremists were killed, 17 Forces’ personnel had been killed, and 48 civilians had been killed. It looks like a war being raged all around our borders.

          Amongst the Forces that we have, we have an elite Force known as the National Security Guard. There are four regional hubs – Kolkata, Chennai, Mumbai and Hyderabad. Now, they are doing good work. They are practising and they are being trained in situations like if an aeroplane is hijacked, how they are going to take out the hostages. They are being trained for all that.

          I know about the Kolkata set up because it is close to the Airport. I have been writing, and it has all been futile, that it is actually a five-minute drive from their hub to the Airport, but it is a congested market place. So, I have given one whole MPLAD fund to build additional subways so that people can go down and the road is kept empty for the NSG jawans. There is 160 Battalion of BSF also there. I am doing this so that they can reach the Airport when their requirement comes.

          Through you, Sir, I would like to request the hon. Minister here that if you can have a flyover or an elevated corridor for them – it is a short distance of two to three kilometres – then they can reach the main road from where the Airport is only another two kilometres. God forbid, if anything happens in the eastern region of the country, they will be able to move very fast. They are very hardworking and we see them practising throughout the day and night; they are also doing recce. I also suggested to them as to why they do not have a helipad there. They said it was not possible because it is a congested area. Bypass is not possible; so, an elevated road or a flyover from their hub – BSF and NSG are opposite to one another on Badu Road – to the main national highway of Jessore Road, then, in the event of any terrorist attack anywhere in the eastern part of the country, they can reach the Airport very fast.

          I would also like to draw the attention of this august House to the fact that India is a very large country with very, very long international borders, like I said, and coastal region. It is because of the unguarded coast that we had the misfortune of seeing the day when our enemies took a boat and came up to Maharashtra where people were shot dead. Now, I understand that there is always water in Rann of Kutch in Gujarat and it is difficult to build a fence. I also understand that we have the tidal waves in Sundarbans and it is difficult to maintain the fence. In spite of the difficulties, we will have to think of something. For the last seven or eight years, I have been talking about this and I have been hearing that we are getting technical support from international friends to have laser fences, thermal detectors, night vision gadgets, but till date that is not there. Every night, hundreds of infiltrators come in through these open porus borders. The BSF has to be more careful. They are also standing for hours together guarding the borders. If we can have more number of jawans, then the shift can be of lesser hours. They can be ज्यादा चौकन्ना रह सकते हैं। आठ घंटे खड़े-खड़े वे भी थक जाते हैं। We have to have more people  loooking after this. The fencing is not complete anywhere.

 As far as Bengal is concerned, we have about 2,828 kilometres of fencing out of the sanctioned 3,326 kilometres. Similarly, we have this kind of border gap in Rajasthan, in Gujarat and in Punjab area. Where the ITBP looks after the border in the Kashmir area, the building of the Gwadar Port and the road that is connecting the two countries which are not so friendly with us, through our land, is one of deep concern. I would like to know as to what our Government is thinking in terms of connection to the Gwadar Port. How are the foreigners building the road? Why can we not build the road there? That remains a question with the people of this country.

          In the coastal areas, we have these floating Border Out Posts (BOPs). I have been, time and again, requesting about these BOPs, which are floating. There is no doubt that speed boats have been given. But we do not have the technology; the State does not have the technology. We do not have the drivers who can drive the speed boats. The speed boats are lying there. We need technical support for maintenance of those boats. We need technical support for their total functioning. That is not happening. You should consider this and give us some funds.

          The other thing is that the State Police is demanding for watch towers. Up to certain kilometres, it is the duty of the BSF and after that it is the duty of the State Police. Unless we have some watch towers, we are not able to watch the coastal areas when people are coming at night time or animals are crossed over during the day or night.  So, some money should be sanctioned under BADP for building these roads properly and to have the watch towers. 

          There is so much to say because of the internal security that concerns us.  The Defence personnel who are situated at a very high altitude, beyond the altitude of 15,000, are not getting enough supplies.  They are our children.  They are looking after us.  We understand that it is very difficult to grow vegetables there.  We are trying for it. But, even then they are either dying of snow storm or avalanche.  So, we have to even take care of them in a better fashion so that they can look after us better.

          I would like to draw your august attention that the Registrar General of India has the totally unspent amount, under the Head of Town Mapping, the money was unspent, under the Head of Modernisation of Data Dissemination Activity, the fund was unspent and even in the case of non-filling of vacant posts, the fund was unspent.  So, there are various areas like cyber crimes and NATGRID, all these require special attention.  We would be grateful if you can consider these. Thank you.


* डॉ. सुनील बलीराम गायकवाड़ (लातूर)ः भारत सरकार के गृह मंत्रालय की डिमांडस फॉर ग्रान्ट  के बारे में मैं यह कहना में चाहता हूँ कि, सरकार ने अनुदान की जो तरमूद की है यह महत्वपूर्ण है। देश में शांति ओर कानून व्यवस्था बनाई रखने के लिए गृह मंत्रालय की भूमिका बहुत ही आवश्यक है। भारत के सभी प्रमुख शहरों में सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखना और निगरानी करने के लिए सीसीटीवी का प्रावधान किया है। केन्द्र सरकार ने हर तरह से सुरक्षा के मामले में बजट के कभी भी राशि बढ़ाने का ही काम किया है। मेरे लातूर लोकसभा क्षेत्र में शहर को ट्रैफिक और क्राईम पर निगरानी रखने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से करोड़ों की राशि दी है। मेरे लोकसभा क्षेत्र में CRPF का ट्रेनिंग सेंटर और BSF का ट्रेनिंग सेंटर  है ।

पिछले साल पानी की कमी की वजह से CRPF और BSF को दिक्कतें हो गई। लेकिन मेरे M.P.LAD के फंड से दोनों सेंटर पर बोरवेल दिया और उनको बड़ी राहत मिल गई। मैं माननीय गृह मंत्री जी से विनती करता हूँ कि इतनी कड़ी मेहनत करके CRPF की ट्रेनिंग होतीहै। इनके सेंटर के नज़दीक हरेंगुए रेलवे स्टेशन है। CRPF के जवानों की सुविधा के लिए रेल रोकना भी महत्वपूर्ण है ऐसा मुझे लगता है।

यह कैम्प जहाँ है वहाँ बी.एस.एन.एल. के नेटवर्क की भी समस्या है। बी.एस.एन.एल. द्वारा भी वहाँ बी.टी.एस. लगाने की जरूरत है। हमारे देश की कानून व्यवस्था को अबाधित रखने के लिए हमारे सिपाही को अच्छी सुविधा भी देने की जरूरत है। ऐसा मुझे लगता है।

हमारे देश में बार्डर पर जाने वाले पुलिस सिपाही को जो ट्रेनिंग दी जाती है वह हमारे लातूर में दी जा रही है। इस सेंटर की ओर केन्द्र सरकार का गृह मंत्रालय विशेष ध्यान देकर सभी कमियों को निरस्त करें, मैं यह मांग करता हूँ।

देश में गृह मंत्रालय एक महत्वपूर्ण मंत्रालय है। इस मंत्रालय के काम-काज के लिए भारत सरकार ने जो आर्थिक नियोजन किया है वह अच्छा है, इसे और अच्छी तरह से राशि बढ़ाकर देश की कानून व्यवस्था अच्छी रखने के लिए काम में लाएं।

आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी की सरकार जब से आई है तब से हमारे गृह मंत्रालय के सभी कर्मचारियों,  पुलिस, जवानों के लिए सभी प्राथमिक सुविधाएं ज्यादा देने का काम किया है। विशेषकर हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष राशि का भी आवंटन किया गया है। देश में महिला दलित, गरीब और अल्पसंख्यक की सुरक्षा हमारी सरकार कर रही है।

मैं केन्द्र सरकार की इस गृह मंत्रालय की अनुदानों की माँग का समर्थन करता हूँ।

SHRI TATHAGATA SATPATHY (DHENKANAL): Sir, many hon. Learned colleagues have already spoken on various issues concerning the Demands for Grants of the Ministry of Home Affairs, 2017 on topics such as naxalism, extremism, encounter death figures, expenditure of the Nirbhaya Account, modernization of police force, and border policing.  They have talked about many things.  I wish to refrain from the usual discourse and use this opportunity to speak on two pillars of any society that feels it civilized.

          What is the difference between a civilised society and an uncivilised, barbaric society? As I understand, it is my personal perception, just two things differentiate the society. One is the judiciary, the judges, legal system; and the second is the police, the law enforcement authorities or the bodies that are deputed to enforce law. These two things divide society into two very extreme ends.

          Our long, rich heritage of subjugation has left very deep and indelible societal scars on all of us. When we look at our judiciary, we hear of the CBI investigating relatives of very senior judges, of how a certain judge of the Calcutta High Court has been hauled up under contempt of court charges and has been served with an arrest warrant, and how he in turn demanded Rs.14 crore from seven members of a Supreme Court Bench.

I am not commenting on who is right or who is wrong. I am just saying that this is showing the collapse of one of our most critical systems exclusively due to the callousness of men who operate this system. Those who should be setting exemplary standards of personal behaviour are bickering and fighting amongst themselves and that sends out a very wrong message to society.

Coming to the police next, as of now the average Indian is incapable of understanding whether the police is a service or the police is a force. As far as I understand from the little bit of interaction I have been unfortunate enough to have with our police officers, whether they are IPS officers or State police officers they all consider themselves as a force. They do not think they are here for service.

Our police establishment, especially its leaders - the Indian Police Service officers – have failed miserably over the years to change this perception within their rank and file, within their subordinates that they are here because of the people, that their salary comes from the tax payers’ money. And I have a sneaking suspicion that this has happened because they do not depend on their salaries. The moment they start depending on their salaries, they would actually think who their master is. But since they do not depend on it, they do not have to bother. … (Interruptions)

PROF. SAUGATA ROY : Where do they get their salaries from?

SHRI TATHAGATA SATPATHY : Sir, that is for others to decide, the Government to decide.

          I am quite conscious while saying this that it is easy to blame others but all political dispensations - whether it is Congress led, whether it is BJP led, whether it is a regional party led, nobody is an exception - have felt comfortable by using the police for its own particular ends. Like the British for 200 plus years subjugated the average Indian with the lathi, today very easily we fall in the rut and we want to use the police as our personal force that we can use when we are in Government. When we go over to the other side, when we sit in the Opposition, then we shriek and shout. But when we are in power we forget the injustices that are meted out to the people, the average citizen of this country.

          India is a rare country where when an average citizen sees a police personnel, her or his first feeling is of fear. There is an adrenaline rush, there is a fear and there is a desire to run away. I think except a handful of African and South American countries all across the world if you see a policeman you feel safe. Here in India if you see a policeman what happens? I am not trying to bring in the Army or the paramilitary forces; then, it is easy to label a person as an anti-national; either you are a bhakt or you are a Pakistani. I am not a Pakistani; I wish to be a bhakt but I wish to live up to my standards. Here the policeman does not instil confidence in the minds of the people and in the minds of the citizens.

          I will give a couple of small examples where it could be a Moninder Singh Pandher brutally killing children and walking scot-free in this country; or a Kaliko Pul suicide note which has absolutely gone underground, under wraps maybe purposefully manipulated for investigation; or, the website of CVC the apex body that is supposed to stop corruption in this country crashing last November, the historic November, 2016 and interestingly wiping out all details of corrupt officials from across the country. For an instant, somebody told me it did not matter if the hard disk is affected or the website crashes since they would have a backup of files but you would be amazed to know that there is no backup of files because when you dream of digitisation in the country you obviously dump all the paper away. In the process we are creating new kinds of troubles.

          We have to understand that whether it is high-tech or low-tech, there has to be a human interface. A technical apparatus or a technical system does not operate on its own. The world has not come to that level of artificial intelligence where robots would be controlling a country or the law and order system. So, when you are dreaming of a digital India, you also have to dream how to make the society more peaceful and how the police force could be more pro-people.

          You are talking about ease of doing business which is a very welcome thought. I must congratulate the hon. Prime Minister because he has thought of this. The thought is good but how do you embolden that thought is something that we are forgetting. When you are talking about ease of doing business, it is very important to have a society which is peaceful, which is welcoming, and which is at ease with itself.

          Can you imagine any corporation or any multinational company planning to invest in a country like, say, Syria, Iraq, Afghanistan, or Libya? Can we ever imagine that? Nobody wants to go there primarily because they all want to have a peaceful society and a peaceful country where they can do business.

          I would wind up saying that we have a police force that operates on guidelines and codes of something that was drafted in 1861. You are a young person; so, you also do not know what 1861 was like, who was ruling India at that time and how. The police force is operating and is guided by the Police Act that was drafted in 1861. It is working under the Criminal Procedure Code and the Indian Penal Code of equal antiquity. We can imagine how easily these systems can adapt to a digitised world.

          Sir, it is really amazing that in 2017 we are still continuing with the police system which was first conceived by the British rulers and was meticulously designed and structured to enforce law and public order for sustaining their foreign rule.

माननीय सभापति : माननीय सदस्य,अब आप समाप्त करिए।

SHRI TATHAGATA SATPATHY : I am giving respect to you, Sir. On your order, in the end I would just like to point out two small points. 

I have seen many a times when a new SP is posted in my district, the first thing the young officer does is to go out in an open jeep with five-six people sitting at the back with big lathis.    Do you know what they do, Sir?  They beat up all the truck drivers, the cleaners, the helpers and the daily labourers who go to dhabas to eat late at night because the whole day the poor people are working.  They do this for about fifteen-twenty days.  Then there is an atmosphere that is created: अरे! बड़ा तगड़ा एस.पी. आ गया।  Then they sit back.  Do you know the next step, Sir?  Then they check out the profit making thanas, police stations.  Then they start the auctioning process; ‘If you want to be the IIC in this police station, this is your initial payment and this will be your monthly quota’.  This is happening across the country.  So, today, we talk much about giving money for police modernisation, walkie-talkies, jeeps, guns but what about the humane angle to police?  Sensitisation is a must.

माननीय सभापति : अब आप समाप्त करिए।

SHRI TATHAGATA SATPATHY : The Central Government needs to take up this charge of sensitizing the police regarding how they should handle both criminals and victims.  Unless you do that whatever money you apportion for anything, it is a total wastage and it is a shame for tax-payers like me that my money is being wasted.  Thank you, Sir.

माननीय सभापति : अब आगे वक्ता लोग ध्यान रखेंगे कि 5 मिनट में सभी अपनी बात समाप्त करेंगे, क्योंकि बहस को समय पर समाप्त करना है।

…(व्यवधान)

श्री तथागत सत्पथी : बहुत टाइम बीएसी में दिया था।  I was within my limit, Sir.   तीन-चार बार टोक दिया, but I was within my limit. आप टोक देते हैं, हम आपसे डर जाते हैं। आप सोशलिस्ट हैं न, तो हम डर जाते हैं। 


*SHRI ARKA KESHARI DEO (KALAHANDI): The internal security of our country is a very challenging job now-a-days.  The various terrorists outfits adopt new ways, new technology to kill innocent people of our country. The outfits like SIMI, LWE are posing threat to our internal security.

          My parliamentary constituency- Kalahandi in the State of Odisha is falling under LWE influence.  Armed with new and advanced weapons, funding from outside the border to carry out fear, terror and attack on our security personnel, armed forces and common people.

          In order to control and destroy their operation our police, para-military forces be well equipped with advanced warfare, sharing of intelligence between State, Centre and other agencies involved in these operation.

          There is an increase of 11% budgetary allocation to Ministry of Home Affairs during 2017-18.  I appreciate the Finance Minister’s move to hike Home Ministry’s Budget to carry out modernization and improvement of weapons of police and para-military forces to counter the challenge of terrorists outfits.

          I request Hon’ble Home Minister to open one reserve CRPF Batallian at Bhawanipatna, the district headquarters of my parliamentary constituency Kalahandi for quick and speedy movement of CRPF when there will be an attack by LWE in my district as well as bordering districts.


*SHRI T.G. VENKATESH BABU (CHENNAI NORTH):  The total size of the budget for 2017-18 has come down from 13.4% of GDP for last year (revised) to 12.7% of GDP for 2017-18. The total revenue has come down from 9.4% of GDP to 9% of GDP. The total taxes foregone is Rs. 30,000 i.e. 2% of GDP, despite an additional revenue of Rs. 75,000 crore through indirect taxes, which will hit the common man.  Capital expenditure has come down to 1.84% from 1.86%.  Farm sector allocation has also fallen from 1.98% to 1.95% of GDP.  While all the parameters have fallen, the budgetary allocation for the Ministry of Home Affairs alone has shot up exponently by 11%.

          It cannot be faulted given the scenario in which India is sitting as an epicenter of terrorism in South Asia and is the 2nd most volatile region in the world after West Asia. According to the latest US report, transnational terrorist groups are targeting India.

          Apart from the left wing extremism which is India’s greatest threat, the jihadi terrorism, drug trafficking, illegal migration, supply of fake currencies, human trafficking, proliferation of small arms, cyber war fares, narcotics and drugs smuggling are the other threats.

          Unlike other threats, the left wing extremism is ideologically driven.  It has its roots in the pathetic condition of the Adivasis, whom the Governments have repeatedly neglected and deprived off. Left extremism is a failed ideology but it cannot be tackled as a mere law and order problem.  Allocation of more funds and deployment of more armed forces will only accentuate the menace further.  Instead, a considerable part of the allotment may go for mitigating the sufferings of the Adivasis, whose habitat is the fertile soil for left wing extremism. So, sufficient fund has to be diverted for this cause.

          Around 15 million Bangladeshis have infiltrated into the north eastern states of our country, leading to demographic upheavals and threat. The Indo-Bangladesh border stretches to 4096 Km and we have 3323 Km long border with Pakistan. We have embarked on an ambitious plan to seal these borders, which is nevertheless an uphill task.  The 2355.68 crore allotted for fencing these borders with barbed wires and for induction of high tech surveillance is insufficient. More funds can be allotted for this, to expedite the scheme since the infiltration by cross-border terrorists has become more frequent. The additional funds may facilitate the mapping of the border through the satellites.

          Though the present hike to Home Ministry is 11%, it falls short of the hike of 24.58% in 2016-17.  The distribution among various forces is not equitable. The allotment to the seven paramilitary forces is up to a phenomenal figure of Rs. 54,985.11 crore.  The Nirbhaya fund is increased by 7 times to 28.9 crore, though it is not fully utilized and the plight of women in this country is ever mounting.  There is 32% increase for providing relief and rehabilitation to the migrants, repatriates and the internally displaced people like the Kashmir Pundits. But the government could not attend to the crux of the problem by resettling these Pundits.  The compensation to the victims of 1984 anti-Sikh riots is enhanced but the culprits cannot be booked, even after the change of guard at the Center.

          There is 33% increase for the central police organization. There is an across the board increase of almost 50% for the salaries and allowances by the cabinet ministers, MOS and former PMs.  The Delhi Police has a bonanza of an additional fund of Rs. 465 crore totaling to Rs. 6378.18 crore., though the Delhi Police had not been able to fully spend the funds allotted in 2015-16.  Important initiatives like the city-wide surveillance system, etc. pending for several years saw only partial development.  The law and order problem in Delhi is the worst in the country and it is the most unsafe place for women. But, still they are rewarded with more funds. May be, they are effectively tackling the Aam Admi Government at Delhi.      

          But, for the modernization of the State Police Force the allocation is reduced to Rs. 800 crore from Rs. 845 crore.  This reveals the mindset of the Center though they are aspiring to be more federalist.  There has been a far cry for strengthening and modernizing the state police who, by virtue of the proximity to the problems of insurgency and left wing terrorism, could tackle them more effectively. Further the deployment of paramilitary forces, who are aliens to the conflict zones in the states, for prolonged periods, will breach the confidences of the local people. But the Center wants to override the powers of the states by modifying the 7th schedule of the Constitution to include internal security either in the central list or in the concurrent list. That mindset is echoed in the meager allocation of funds to the state police forces.

          If we could change our strategy to a correct perspective with respect to our foreign affairs, we can better our relationship with China, our mighty neighbour.  If we desist from the arms race we can effectively reduce our defence budget and instead focus on growth and development.

          Instead, our foreign policy has a definite shift and lenience towards US.  The renewal of Indo-US Defence framework Agreement for 10 years, the joint vision statement of Asia-Pacific and Indian Ocean are enough proofs that we had aligned with US as a pivot to Asia to contain China.  The quadrilateral defence agreement between US, India, Japan and Australia aimed at militarizing the Asia Pacific, East and South Asia and fostering enmity in the region will aggressively boost our defence budget.

          Instead we should align and support multilateral forums like the BRICS/Shanghai cooperation organization, the Community of Latin American and Caribbean states, Bolivarian Alliance, ASEAN, SAARC, etc. which will pave way for enduring peace in the world.

          Our allocation to Home Affairs and Defence may be healthy but may not contribute to the health of the nation.


*श्री महेश गिरी (पूर्वी दिल्ली)ः वैसे तो कहने को लॉ एंड ऑर्डर राज्यों का विषय है किन्तु गृह मंत्रालय की महत्ता सर्वोपरि है क्योंकि आंतरिक सुरक्षा से संबंधित मामलों, केन्द्र-राज्य संबंध, केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल, सीमा प्रबंधन और आपदा प्रबंधन सम्बंधित मुद्दों के लिए गृह मंत्रालय ही जिम्मेदार है, इस वर्ष गृह मंत्रालय को (97,187 करोड़ की बजट राशि आवंटित की गई है जो कि पिछले बजट के मुकाबले लगभग 5 प्रतिशत अधिक है) बजट राशि में वृद्धि अत्यंत सराहनीय है, क्योंकि पिछले वर्ष में जिस तरीके से सीमा पर पाकिस्तान द्वारा बार-बार युद्ध विराम का उल्लंघन किया गया तथा देश के भीतर न केवल नक्सलवादी, माओवादी बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों तथा खासकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पनप रहे विभिन्न एंटी-नेशनल कार्यक्रमों पर रोकथाम लगाने के लिए यह बजट राशि उपयोगी सिद्ध होगी।

कुल बजट राशि में से लगभग 80औ राशि जो कि 78,000 करोड़ है, पुलिस बल के लिए आवंटित की गई है, यह पिछले वर्ष के मुकाबले लगभग 6औ ज्यादा है, यह जगजाहिर  है कि संविधान के अनुसार लॉ एंड ऑर्डर राज्यों का विषय है लेकिन संविधान के अनुसार केन्द्र सरकार की यह जिम्मेदारी भी है कि वह राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाए जिसके लिए केन्द्र सरकार CRPF, CISF, NSG, BSF, इंडो-तिबेतियन बार्डर पुलिस, सहस्त्र सीमा बल, असम राइफल्स सीमा के बुनियादी ढाँचे, खुफिया जानकारी एकत्रित करना और पुलिस प्रशिक्षण पर यह राशि व्यय करती है, इसके अलावा केन्द्र सरकार राज्यों की पुलिस के आधुनिकीकरण पर केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के तहत व्यय करती है। पुलिस को आवंटित राशि में से लगभग 70औ राशि सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स को सबसे अधिक राशि को आवंटित की गई है किन्तु यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि इन सभी फोर्स में कुल मिलाकर लगभग 60,000 सैनिक बल की कमी है अतः यह आशा है कि आगामी वर्ष में इस अधिक बजट आवंटन से हमारे सैनिक बल में वृद्धि होगी।

मेरे द्वारा अभी तक उल्लिखित पहलू हो या बॉर्डर Infrastucture या disaster management, कुल मिलाकर इस बार बजट में लगभग सभी प्रमुख विषयों के लिए पिछली बार से अधिक राशि आवंटित की गई है, इसके लिए मंत्री जी प्रशंसा के पात्र हैं।

देववाणी संस्कृत के एक श्लोक की पंक्ति है (उद्यमेनैव सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।) अर्थात प्रयत्न करने से ही कार्य पूर्ण होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं। यह श्लोक दिल्ली की आम आदमी पार्टी की निष्क्रिय सरकार एवं केन्द्र की भारतीय जनता पार्टी की अभूतपूर्व सरकार की तुलना के लिए बिल्कुल सटीक है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की सरकार आम आदमी पार्टी की तरह झूठे वादे करने में विश्वास नहीं रखती बल्कि असल में काम करने और जनता की सेवा करने में विश्वास रखती है। दिल्ली आम आदमी पार्टी ने 2015 में दिल्ली में चुनाव जीतने के पहले यह घोषणा की थी कि अगर वे दिल्ली में सरकार बनाते हैं तो पूरी दिल्ली में 15 लाख सीसीटीवी कैमरे लगाएगें, लेकिन कैमरे तो छोड़िये, आजतक इस सरकार ने असंवैधानिक तरीके से सरकार चलाने, सत्ता का दुरूपयोग करने, केन्द्र सरकार पर झूठे इल्जाम लगाने, लाभ के पद पर अपने विधायकों को पहुँचाने और दिल्ली की जनता को मूर्ख बनाने के अलावा कोई काम नहीं किया, जिसका फल इन्हें अभी के पंजाब और गोवा राज्य के नतीजों में मिली भारी हार से मिल गया है और रही बात दिल्ली की जनता की तो वो आगामी एमसीडी चुनावों में इस भ्रष्ट सरकार को मज़ा चखा देगी। लेकिन सीसीटीवी कैमरों का लगाया जाना हमारी राजधानी की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए कारगर सिद्ध होगा इसके लिए मैंने अपने संसद फण्ड से अब तक डेढ़ करोड़ रूपए से अधिक राशि आवंटित कर दी है और पूर्वी दिल्ली को सुरक्षित करने के लिए आगे और  भी राशि आवंटित करूँगा लेकिन पूरी दिल्ली के लिए यह आवश्यक है कि सीसीटीवी कैमरों के लिए इस बजट में और राशि अलग से मुहैया कराई जाए।

इस बार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की पुलिस के लिए बजट में लगभग 5,900 करोड़ रूपए आवंटित किये गए हैं जो  की पिछले बजट के अनुपात में लगभग 5औ अधिक है जो की सराहनीय कदम है। किन्तु दिल्ली में क्राइम रेट बहुत ज्यादा है, जो देश की राजधानी के लिए शर्म का विषय है। महिलाओं की सुरक्षा से लेकर चोरी, डकैती, अपहरण जैसी घटनाए तथा विभिन्न प्रकार के गैरकानूनी रैकेट्स दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में आमतौर पर प्रचलित हैं। इन सब पर रोकथाम लगाने के लिए न केवल संख्या बल में इजाफा करना जरूरी है बल्कि मॉडर्न जमाने के क्राइम को रोकने के लिए मॉडर्न तरीके अपनाना भी अत्यन्त आवश्यक है, इनमें सीसीटीवी कैमरों की उपयोगिता को नाकारा नहीं जा सकता। अगर हमारी दिल्ली में हम विभिन्न स्थानों पर ये कैमरे लगाए तो निश्चित ही राजधानी में क्राइम रेट कम होगा तथा अपराधियों को पकड़ने में पुलिस को मदद मिलेगी। अतः मेरा मंत्री जी से अनुरोध है दिल्ली पुलिस को और अधिक बजट राशि आवंटित की जाए ताकि विश्व के सबसे तेज गति से प्रगतिशील राष्ट्र की राजधानी में कोई भी व्यक्ति अपने आप को असुरक्षित महसूस न करे।


DR. RAVINDRA BABU (AMALAPURAM): Sir, on behalf of Telugu Desam Party we fully support the Demands for Grants pertaining to the Home Ministry for reasons already enumerated by my hon. colleague. Shri Meena.  I have a small suggestion to make.  Taking cue from Shri Meena and also from Shrimati Ghosh from Kolkata, I have a small suggestion.  I would request the Home Minister to increase the MPLADS fund.  We will definitely be using this money for the welfare of police and also to some extent for the welfare of paramilitary staff.

          In the same way, I have another small suggestion.  There is a CSR element involved.  We spend money for the people affected by the industries.  A fraction of this element can also be spent on the paramilitary forces which undergo a lot of stress.    There is a lot of demand for these paramilitary forces all over the country.  Every State has tremendous faith in these paramilitary forces of India.  Instead of asking the local police to protect them during law and order crisis, every State usually demand deployment of paramilitary forces.  We have BSF, CSF, SSB, ITBP and CRPF.  All organs of our paramilitary forces enjoy equal importance and equal credibility among the masses of India.  Of late, the CRPF is incurring heavy casualties.  It is very unfortunate that sometimes we come across the news of their committing suicides.

          Hon. Minister, Sir, suicide is a very pathetic and grave in nature and it gives wrong signal to other fresh recruits also. We have to understand why there is so much of stress level especially among CRPF personnel who are away from their families and who are doing duty in very difficult areas. जहां रहना बहुत मुश्किल होता है, वहां जाकर काम करना पड़ता है और ऐक्सट्रिमिस्टिस के साथ मुकाबला भी करना पड़ता है। They have to fight an enemy who is within the country. यह नहीं है कि बाहर का दुश्मन है, इसे मार देंगे। ऐसा नहीं है। दुश्मन भी हिन्दुस्तान का है। It is very difficult to face the enemy within the country. They are also in the tribal areas. If any small excess is done, there will be a big news flash that excesses are being committed by the CRPF. But, there will be no news when CRPF personnel are killed in an ambush or when 60-70 personnel are killed in landmine blasts. We do not even care about their welfare whenever such incidents happen. So, therefore, my request is that let us periodically counsel them psychologically so as to reduce the stress level of the CRPF personnel, especially those who are posted in field areas. We can do it either by counselling or by doing periodical rotation of those people who are working in those difficult areas. We can bring them back to their families and expose them to a little entertainment or some sport activities, maybe in the evenings or afternoons. Without doing such activities they are being deployed in a rigid way. That is why, sometimes they kill their senior officers. Some CRPF officers are also getting killed by their own constabulary because they refused their leave. These are all most unfortunate things. So, these things should also be understood.

My colleague also said that some of the Secretariat officers who make the policies and a lot of such other things for the para-military forces should also be exposed. But, while doing that, I have a small suggestion. The para-military forces who are in the tribal areas should have interactions with the anthropologists as they are well aware of the tribal culture. When the CRPF personnel go to the tribal areas, where the Left-wing extremism is very rampant, as a fresh recruit or as a fresh posting, there has to be some interface, either through a psychologist or an anthropologist, so that there can be a human understanding of the ethos and culture of those tribal areas. It will help them in dealing with the Left-wing extremism. It is commonly happening.

When the personnel of CRPF, BSF or any para-military forces retire, let us also consider them on the lines of the Defence and give them more benefits, that is, housing, education, post-retirement benefits, industrial incentives, some loans or such other things. It is because these are the forces who are working 24x7. Of course, the casualty during peace time is unfortunately more than that of the war time. In India, especially after the Left-wing extremism has started, the casualty of the forces is more than that of during the war time. This is most unfortunate that they are fighting with their own people and dying in the service of the country. Therefore, we have to give a serious thought to the Left-wing extremism.

Not only that, let there also be a wing in the Home Ministry to understand as to why there is Left-wing extremism. Instead of treating the Left-wing extremism as a law and order issue, let us also understand that it is a socio-economic issue and there are so many economic conditions, tribal exploitation and tribal land alienation. If all these things are understood, the left-wing extremism can be reduced to the minimum so that the CRPF casualties also can be reduced to the minimum. I urge upon the Home Ministry to devote more time and money for the welfare of the CRPF personnel. Thank you very much, Sir.


SHRI B. VINOD KUMAR (KARIMNAGAR): Thank you, Sir. At the outset, I welcome the Demands for Grants of the Ministry of Home Affairs, 2017-18.

          Sir, my good friend, Satpathi Ji had expressed his views on the Police across the country. Every one of us knows that law and order is a State subject. But, at the same time, the Ministry of Home Affairs is also supplementing funds for the modernization of Police in our country and they are allocating good funds to the State Governments to equip themselves in order to maintain law and order.

          Sir, unfortunately, the budget for the Ministry of Home Affairs is only 4.5 per cent of the total budget expenditure of the Union Government.  In fact, my other friend also said that the Ministry of Home Affairs is not in the priority list of the Ministry of Finance.  The total allocation is only 4.5 per cent of the total budget which is now under consideration of this august House. 

In this total budget which is around Rs.97,187 crore for this year, there is only a marginal increase of 5 per cent from the revised estimates of 2016-17 and out of this budget, 80.3 per cent expenditure is only on police, 13.7 per cent on the grants made to the Union Territories and six per cent is on the items such as disaster management, rehabilitation of refugees/migrants, census and two other constitutional bodies like the President of India, the Vice President and the Governors, etc.

Under Demand No.48, the amount allocated is Rs.78000 crore to police.  As I mentioned just now, law and order is a State subject.  The Central Government is supplementing the State Governments for modernisation of State Police under MPF Scheme.  For this also, the allocation made by the Central Government is only 60 per cent and the rest 40 per cent share has to be contributed by the respective State Governments.  This amount is for strengthening the police infrastructure, for construction of police stations, training centres, residential houses, for equipping police stations with the required mobility, modern weaponry, communication equipment, etc. 

This year, the budget allocated for the modernisation of police is only Rs.2000 crore which is 9.5 per cent less than the revised estimates.  Moreover, last year even out of that only Rs. 522 crore were spent.  It is very unfortunate.  There are 29 States and seven Union Territories in this country.   They have spent only Rs.522 crore for the modernisation of police. 

Telangana is a new State and everybody knows that when it was part of Andhra Pradesh, it was badly affected by the Left Wing extremism.  It is a backward State.  We got only Rs.16 crore last year.  Very recently, the Telangana Government under the Chief Minister, Mr. K. Chandrasekhara Rao,  has purchased modern vehicles for each police station in order to maintain law and order. 

Sir, earlier we had ten districts in Telangana.  Now we have created 21 more districts and now there are 31 districts in the State of Telangana.  In order to equip the police stations with the modern equipment and vehicles, we need more money.  We have increased police circles, police stations and Commissioners.  Earlier, there were three Commissioners and now we have increased it by three more Commissioners because Telangana State is an urban State and we have 42 per cent urban population. 

As I have just now mentioned, Telangana State was badly affected by naxal movement earlier.  Last year, we met the hon. Home Minister. We requested for allotment of funds for laying of roads in the areas badly affected by extremists, backward areas and forest areas.  However, the Home Minister was kind enough to have granted around Rs. 1200 crores last year.  We are laying roads in the interior parts of Telangana.   Our Government has already taken steps in this regard and this is the answer because as mentioned by my earlier speaker, we have to see development in the remote areas of our country in order to curb naxalism or any extremist movements.  So, the hon. Finance Minister should allot more money for the Ministry of Home Affairs for development of remote areas affected by Left Wing extremism.

          Sir, I will give one example.  The hon. Prime Minister had launched the programme, Sansad Adarsh Gram Yojana.  I have selected a village called Virnapalli which is a remote village affected by naxalism where around 40 youths were killed for the last two decades.  By choosing that village and by approaching our State Government, I have laid roads in that village connecting that village to the Headquarters.  Now the youth of that village are very happy.  This is the way we should develop the remote areas affected by extremism.

          Another point is regarding border management, staffing and infrastructure.  As mentioned by earlier speakers, there are 70,000 vacancies in CISF, CRPF, BSF, NCG and ITBP.  Why cannot these Forces recruit youths of this country from the remote areas, particularly from the tribal areas?  There are 70,000 vacancies.  I request the hon. Home Minister who is here to initiate the process of recruitment in these Forces.

          Sir, as you are asking me to conclude, I will end with an important issue regarding my State.  In fact, I thought of speaking on disaster management.

          I request the hon. Home Minister to consider heat waves as also a national calamity.  Cold waves are declared as national calamity by the NDMA.  I request that heat waves should also be taken into consideration.

          My State, Telangana, is bifurcated from the erstwhile Andhra Pradesh.   There are two or three issues relating to Telangana.   I request the hon. Home Minister to initiate action on the bifurcation of High Court and also increase the Assembly seats in both the States which was promised in the AP State Reorganisation Act.

श्री मोहम्मद सलीम (रायगंज) :माननीय सभापति जी, गृह मंत्रालय की अनुदान की मांगों पर चर्चा करते समय लोकसभा में यह कहना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि जब रक्षा मंत्रालय की अनुदान की मांगों की चर्चा कर रहे थे, रक्षा मंत्री जी गोवा के मुख्यमंत्री बनकर चले गए और अब हम गृह मंत्रालय की अनुदान की मांगों के बारे में बात कर रहे हैं, अभी भी मंत्री जी के बारे में कुछ तय नहीं है।...(व्यवधान) फैसला तो आप करेंगे, आपके लोग करेंगे। आप अगर जाएंगे तो हमें खुशी होगी और बिछड़ने का दर्द भी होगा, लेकिन यह फैसला आपका होगा। मंत्रालय को चुनने का फैसला महत्वपूर्ण तरीके से किया गया है।

          सुरक्षा का मामला बहुत महत्वपूर्ण है। पूरे विश्व की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक स्थिति बदल गई है। किसी भी देश के गृह मंत्रालय के लिए आंतरिक सुरक्षा का मामला बहुत महत्वपूर्ण होता जा रहा है। बजट के आंकड़े खड़गे जी ने बताए, अन्य सदस्यों ने भी बताए, लेकिन चुनौतियां हमारे सामने हैं। हम जितना सोच लें कि अब सब कुछ हो गया है, ठीक है और जैसा सत्ता पक्ष के सदस्यों ने भी कहा है, लेकिन मैं समझता हूं कि अंतर्राष्ट्रीय मामले जिस तरह से मोड़ ले रहे हैं, जिस तरह से पड़ोसी देशों और हमारे देश में रीजनल स्थिति बन रही है, हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि सुरक्षा हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है,

          महोदय, चाहे हम सुरक्षा के बारे में हम जितनी भी बात करें, आजकल कन्वेंशनल युद्ध उस तरह से नहीं होता है। हम एटामिक पावर बने हैं, पड़ोसी देश पाकिस्तान भी बना है, इसके साथ हमारी ज्यादा समस्याएं हैं। आजकल प्रॉक्सी वार या सीमा के अंदर वार होती है, चाहे घुसपैठ से हो या नए तरीके तरीके अपनाकर हो, इसे देखते हुए गृह मंत्रालय का मामला बहुत महत्वपूर्ण होता जा रहा है।

17.00 hours

हम आज सुबह ही बात कर रहे थे कि चाइल्ड ट्रैफिकिंग, वूमैन ट्रैफिकिंग काफी बढ़ गया है। नयी आर्थिक नीति के कारण हम जिस माहौल में बढ़ रहे हैं, उसमें पुराने मूल्य टूट रहे हैं। इससे यह चुनौती काफी बढ़ रही है। हम कह सकते हैं कि यह राज्य सरकार का मामला है, लेकिन आप देखिये कि जिस होम में लड़कियों को रखा जाता है, वहां से उन्हें बेचने का काम हो रहा है। यह कोई एक स्टेट, एक जिले या एक पार्टी का मामला नहीं है। हमारे मूल्य घट रहे हैं और चुनौती बढ़ रही है। इसी तरह से सोच, फिक्र, राजनीति में एक्सट्रीमिज्म बढ़ रहा है। हम इन्टॉलरेंस की बात करते हैं। अभी अमेरिका में भारतीय नस्ल के लोगों को मारा जा रहा है। पूरे एशियाई लोगों को वहां के राजनीतिक, आर्थिक वातावरण से एक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। जब हम अपने यहां हेट क्राइम की बात करते हैं या नफरत की बात करते हैं तो हमें आईने में देखना चाहिए। इसे करना एक बात है और झेलना दूसरी बात है। उसका असर क्या होता है, यह हमें दिमाग में रखना चाहिए।

          यह ठीक है कि दिल्ली में पूर्वोत्तर भारत के लोगों की संख्या कम है, लेकिन हमारा देश बहुभाषा, बहुजाति, बहुधर्म की जनगोष्ठी का एक सामूहिक रूप है, संगठित कल्चर है, मुश्तरका तहजीब है। उसे जब हम खत्म करते हैं या हमारा नैरो व्यू होता है, टनल व्यू होता है तो अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर या मिजोरम से लोग आये, तो हम समझते हैं कि पीपल नॉट लाइक अस। यह पीएलयू और पीएलएनयू है, वह सोच कभी-कभी इस तरह की चुनौती को बढ़ा देती है। मैं समझता हूं कि यह आपकी जिम्मेदारी है और सरकार को यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए। हमारी जो ट्रेडिशनल चुनौती है, वह हमारे सामने जम्मू-कश्मीर जैसी है। हम आंकड़ों में नहीं जा रहे हैं, लेकिन आप आतंकवाद के हमलों को देखिये। पठानकोट में एक सीरीज में हमले हुए। उसके बाद हमारी सीमा में घुसपैठ करके सुरक्षाकर्मियों पर हमले हों, नागरिकों पर हमले हों या आतंकी हमले हों, वे बढ़ रहे हैं। मैं समझता हूं कि इसे नैरो राजनीति से नहीं देखकर उस चुनौती को स्वीकार करना पड़ेगा। इसका कोई मिलिट्री सॉल्यूशन नहीं हो सकता है। अगर वह होता तो नागालैंड और मणिपुर में हम इसे न झेलते। दांतेवाड़ा, छत्तीसगढ़ में जो माओवादी हमले हैं, वे कभी कम होते हैं और कभी बढ़ जाते हैं। हम उसका पूरा बंदोबस्त ठोस तरीके से नहीं कर पा रहे हैं। उस चुनौती को हम अपनी नजर से ओझल भी नहीं कर सकते हैं। मैं समझता हूं कि यहां आंकड़े बहुत हैं, लेकिन जो माडर्न चैलेंजेज हैं, जैसे साइबर क्राइम है, उसमें बहुत बढ़ोत्तरी हो रही है। अब ब्रॉडबैंड, वाई-फाई, इक्विपमैंट्स आदि आ रहे हैं, लेकिन उसके साथ-साथ इनका इस्तेमाल भी हो रहा है। हम एक्सट्रीमिज्म की बात करते हैं, तो हमारे पास एक बड़ी चुनौती है। आज नौजवानों का रेडिकलाईजेशन हो रहा है। आप कोई भी नाम दे दो, लेकिन वे नाम बदल देते हैं, ब्रांड बदल देते हैं, लेकिन जो सोच है, अगर धार्मिक उन्माद पैदा करने के लिए धर्म को इस्तेमाल किया जाता है, तो उससे पूरे विश्व और आस-पड़ोस का माहौल बहुत बिगड़ जाता है। अभी कुछ दिन पहले हम कहते थे कि हमारे देश में ये आईएसआईएस वाला मामला नहीं है। हमारे होमग्रोन कोई टेरेरिस्ट नहीं होते। ट्रांस बार्डर, एक्रॉस बोर्डर से टेरेरिस्ट आते हैं। अभी जो वाकयात सामने आ रहे हैं, वे कहां तक सही हैं, यह हमें नहीं मालूम। आजकल मीडिया में बहुत ज्यादा निकाला जाता है। कभी चुनावी मामले में इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन यह चुनौती है और इस चुनौती को हम सबको मिलकर स्वीकार करना होगा। मैं समझता हूं कि धार्मिक उन्माद पैदा करके, धार्मिक विभाजन करके या असुरक्षा के भाव पैदा करके, मिलिट्री या मिलिटेंसी पोलिटिक्स करके हम उसे रोक नहीं पायेंगे। हम ईस्ट एशिया में देख रहे हैं कि लोग यह मामला दशकों से झेल रहे हैं। वहां आम लोग परेशानी में हैं। युद्ध के कारोबारी अपना काम कर रहे हैं और राजनीतिक कारोबारी राजनीति का काम कर रहे हैं।

          सभापति महोदय, मैं गृह मंत्रालय के बजट पर कहना चाहता हूं। अब नयी सोच, नयी फिक्र, नये इक्विपमैंट्स, नयी तरह की घोषणाएं की जाती हैं, लेकिन उनका इम्प्लीमैंटेशन बहुत खराब है। मैं एक मिसाल देना चाहता हूं कि सेंसस के जो फंड्स हैं, गृह मंत्रालय के मंत्री बहुत ऊंची सोच के विचार रखते हैं, लेकिन जीआईएस, यानी जियोग्राफिक इन्फोर्मेशन सिस्टम में टाउन मैपिंग का मामला था। हम उसका बजट खर्च नहीं कर पाए हैं। हिन्दुस्तान के लोग पूरे विश्व में जीआईएस बेस्ड काम कर रहे हैं, लेकिन हमें सेंसस के लिए जो काम करना था, जिसका मल्टीपल यूज हो सकता था, उसमें शून्य रह गए। इसी तरह से डिजीटल इंडिया की हम बात कर रहे हैं, लेकिन जहां-जहां पर मॉडर्न लेबोरेट्रीज की बात थी, चाहे नेशनल क्राइम ब्यूरो में हो, चाहे अन्य किसी विभाग में हो, जहां भी हमें न्यू टेक्नोलॉजी को डेवलप करना था या उसका इस्तेमाल करना था, उसमें हम आवंटित पैसे को खर्च नहीं कर सके। नेशनल इंटेलीजेंस ग्रेड की बात आई है। यहां जब भी आतंकी हमले हुए, ऐसी घोषणा की गयी, पिछली सरकार ने भी ऐसा किया कि हमारी अलग-अलग इंटेलीजेंस एजेंसीज को एक ग्रिड में लाना होगा। वह काम बहुत ज्यादा टेक्नोलॉजी इंटेंसिव है, लेकिन उसका बजट भी खर्च नहीं हुआ। जब रिपोर्ट में मंत्रालय से पूछा गया तो कहते हैं कि इसके लिए क्वालीफाइड लोग नहीं मिल रहे हैं। आज भारत पूरे विश्व में आईटी पावर के रूप में गौरवान्वित है, फिर या तो हम उनको तनख्वाह कम दे रहे हैं या ठीक से उसे विज्ञापित नहीं किया गया है या उसे लागू नहीं कर रहे हैं।  हमें अच्छे आईटी प्रोफेशनल्स नहीं मिल रहे हैं, इसलिए हम नेटग्रेड के लिए पैसे खर्च नहीं कर पाए हैं, यह बात मानने के लिए मैं तैयार नहीं हूं। यह जरूरी है, क्योंकि आजकल जिन लोगों ने हमसे युद्ध छेड़ रखा है, वे अपनी टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाते जा रहे हैं। ... (व्यवधान) सर, मैंने अभी बजट पर बोलना शुरू किया है। 

माननीय सभापति :आपको बोलते हुए नौ मिनट हो गए हैं।

श्री मोहम्मद सलीम : सर, मैं मणिपुर, गोवा गवर्नर आदि की बातें नहीं कर रहा हूं। ... (व्यवधान)  

माननीय सभापति :  आपको बोलते हुए नौ मिनट हो गए हैं, अब समाप्त कीजिए।

श्री मोहम्मद सलीम : सर, देश की सुरक्षा के लिए नौ मिनट क्या हैं। हम चुनाव में घण्टों देश की सुरक्षा के बारे में भाषण देते हैं।

          मैं समय के लिए नहीं बोल रहा हूं। आप भी जब भाषण देते हैं, इसी तरह की सोच को सामने रखते हैं। बजट में एक तरफ नॉमिनल इनक्रीज हुई।  ... (व्यवधान) मैं गृहमंत्री जी के पक्ष में बोल रहा हूं। आप देखेंगे कि जिस तरह से इनफ्लेशन होता है, जिस तरह से खर्च बढ़ रहा है, यह नॉमिनल इनक्रीज है, लेकिन हम उस तरह से विचार नहीं करते हैं।  हमें देखना होगा कि आपने वित्त मंत्रालय को क्या प्रोजेक्शन्स दी थीं, आपने उनसे कितना पैसा मांगा था और आपको क्या मिला, तब पता चलेगा कि आपने जिस चुनौती को स्वीकार किया, उसे मूर्त रूप देने के लिए, इम्पलीमेंट करने के लिए आपकी आर्थिक रूप से जो जरूरत थी, वह आपको नहीं दी गयी। आप दिल्ली पुलिस को ले लीजिए, वह आपके नजदीक है। दिल्ली पुलिस के बजट में प्रोजेक्शन थी - 11093 करोड़ रुपये। आपने इतनी राशि मांगी थी, लेकिन आपको उससे 4743 करोड़ रुपये कम मिले। अगर आपको एक-तिहाई से अधिक पैसा कम मिलेगा तो how can you do justice to that. हम जब डिमाण्ड्स फॉर ग्राण्ट्स की बात कर रहे हैं, आपके समय ही नहीं, पिछली सरकार के समय से भी, पिछले दस साल से दिल्ली पुलिस के ऊपर स्टेट पुलिस और सेंट्रल पुलिस के 1600 करोड़ रूपये बकाया हैं। आप सेंट्रल पुलिस को डिप्लॉय करते हैं, हम जब आते हैं तो सीआरपीएफ को देखते ही हैं, लेकिन उसका पैसा हम पे नहीं कर पा रहे हैं। वित्त मंत्रालय से जब गृह मंत्रालय को पैसा नहीं मिलेगा तो यही स्थिति होगी। इस तरह से अगर आप आंकड़ों को देखेंगे तो यह लगेगा कि हम महत्वाकांक्षी बातें कर रहे हैं, लेकिन उसको क्रियान्वित करने के लिए हमें जो करना चाहिए, वह नहीं कर पा रहे हैं।

          मैं बंगाल से आता हूं। सरकार हमेशा कहती है, 70 साल से ऐसा है, पिछली सरकार के लोग यहां नहीं है, लेकिन हम जानते हैं कि कुछ हुआ और कुछ नहीं हुआ है। वहां बांग्लादेश के साथ जो एनक्लेव आया, मैं चूंकि उस समय संसदीय समिति का सदस्य था, हम इसके लिए बंगाल में भी लड़े कि एनक्लेव का यह मामला पूरा होना चाहिए। गृह मंत्रालय के होम सेक्रेटी को बुलाकर, हमने कमेटी में जिम्मेदारी दी कि इसे राज्य सरकार पर छोड़ने से नहीं चलेगा। अलग-अलग विभाग इसमें शामिल हैं। आपने इसके लिए 340 करोड़ रुपये का बजट रखा। उन लोगों को हमारे देश का नागरिक बने दो साल हो गए। उस बजट एलोकेशन को आपने रिवाइज्ड एस्टीमेट में घटाकर 200 करोड़ रुपये कर दिया और एक्चुअल में उस पर एक पैसा भी खर्च नहीं हुआ। अभी कल ही एक माननीय सदस्य कह रहे थे कि वहां बिजली नहीं गयी। लोग हताश हो रहे हैं। जो हमारे नए नागरिक बने, वे बहुत उम्मीद के साथ बने। वे बांग्लादेश को छोड़कर आए कि हम भारत के साथ रहेंगे। अब वे सोचते हैं कि हमें यहां क्या मिला, हम वापस जाएं। रिपोर्ट में ही यह कहा गया है। ... (व्यवधान) 

माननीय सभापति :   अब आप समाप्त करें। समय की सीमा है।

श्री मोहम्मद सलीम : सर, एनक्लेव वालों की बात कौन करेगा?

माननीय सभापति :  समय की सीमा है।

श्री मोहम्मद सलीम : ठीक है, जम्मू-कश्मीर की बात करते हैं। यह आपके लिए बहुत प्यारा मामला है। अभी सत्ता पक्ष के सदस्य कह रहे थे कि आपने पैकेज की घोषणा की है। पीओके से जो हमारे नागरिक हमारे पास आये थे, उस जगह को छमनिहावल कहा जाता है। वित्त मंत्री जी ने उनके लिए 500 करोड़ रुपए रखा तो सभी ने ताली बजायी। प्रधानमंत्री जी के नाम से रिहैबलिटेशन पैकेज के लिए 500 करोड़ रुपए की घोषणा की गयी। ...(व्यवधान)

माननीय सभापति : कृपया अब आप अपनी बात समाप्त करें।...(व्यवधान)

श्री मोहम्मद सलीम  : महोदय, आपसे कहना पड़ेगा कि एक पैसा खर्च नहीं हुआ। आपने 500 करोड़ रुपए रखा, लेकिन एक भी पैसा खर्च नहीं किया, यह कौन कहेगा?...(व्यवधान)

माननीय सभापति : श्री विष्णु दयाल राम जी।

…(व्यवधान)

श्री मोहम्मद सलीम : सर, कृपया दो मिनट का समय दे दीजिए।...(व्यवधान)

माननीय सभापति : आप अपनी बात जल्दी समाप्त कीजिए, आप अच्छा बोल रहे हैं, इसलिए मैंने आपको इतना समय दे दिया।

 …(व्यवधान)

श्री मोहम्मद सलीम : सर, यह सरकार के लिए अच्छा है। मैं सभी की भलाई की बात कर रहा हूं। ’निर्भया फंड’ 1,000 करोड़ रुपए का रखा गया। आप मेरी व्यथा सुनिए। हम ने अपने संसदीय क्षेत्र में डिस्ट्रिक्ट कलैक्टर से पायलट प्रोजैक्ट के तहत ’निर्भया क्षेत्र’ बनाने के लिए जमीन का एलोकैशन करवाया। मंत्री जी ने हमें पत्र लिखा, लेकिन आज तक एक भी पैसा खर्च नहीं हुआ। यह हमारा मामला नहीं है। पायलेट प्रोजैक्ट के तहत जो ’निर्भया सेन्टर’ बनना था, वह नहीं बना।...(व्यवधान)

माननीय सभापति : श्री विष्णु दयाल राम जी।

…(व्यवधान)

श्री मोहम्मद सलीम : सर, मैंने आपसे दो मिनट का समय मांगा था।...(व्यवधान) मैं अपनी बात एक मिनट में समाप्त करता हूं।...(व्यवधान)

          वित्त मंत्रालय से हमारा स्पेसिफिक सवाल है कि उन्होंने सदन में कहा था कि आई.पी.सी. में संशोधन किया जायेगा। नॉर्थ-ईस्ट के लोगों पर जो रेशियल अटैक्स होते हैं, बंगलूरू में भी कई दिन पहले यह हुआ, वहां जिसकी भी सरकार हो, हमारी यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, उस आई.पी.सी. में संशोधन कहां हुआ है?...(व्यवधान)


श्री विष्णु दयाल राम (पलामू) : सभपति महोदय, मैं गृह मंत्रालय की अनुदान मांगों के संबंध में बोलने के लिए खड़ा हुआ हूं।

          महोदय, हम सभी देश की आंतरिक सुरक्षा की महत्ता को समझते हैं और यह भी जानते हैं कि देश की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेवारी गृह मंत्रालय के कंधों पर है और गृह मंत्रालय सदैव इस दिशा में तत्पर है। जब से एनडीए की सरकार आदरणीय नरेन्द्र भाई मोदी जी के नेतृत्व में बनी है और जब से आदरणीय राजनाथ सिंह जी ने गृह मंत्रालय का दायित्व संभाला है, तब से अपने सहयोगियों श्री किरेन रिजीजू और श्री हंसराज गंगाराम अहीर के साथ मिल कर देश की आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने का सफलतापूर्वक कार्य किया है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2017-18 में गृह मंत्रालय के लिए कुल 99,279.58 करोड़ रुपए का आबंटन हुआ है, जो विगत वर्ष से 10.13 प्रतिशत ज्यादा है। बीते वर्ष यह आबंटन 89,996.83 करोड़ रुपए था।

          महोदय, विगत कुछ वर्षों से पुलिस शीर्ष के अंतर्गत बढ़ती हुई राशि का आबंटन आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों को देख कर और सरकार की दृढ़ इच्छा को देख कर किया जा रहा है। विगत कई वर्षों से देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण और सबसे कड़ी चुनौती नक्सलवाद की है।

          महोदय, हम सभी जानते हैं कि नक्सलवाद की समस्या से निपटने की प्राथमिक जिम्मेवारी राज्य सरकारों की है, लेकिन केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को सहायता के रूप में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती करती है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि जब वर्ष 1967 में नक्सल अपराइजिंग की घटना परिलक्षित हुई, नक्सलवाड़ी में आम क्लैसेज की घटना हुई, तब तत्कालीन गृह मंत्री, भारत सरकार ने इस घटना को मियर लॉलेसेनेस की संज्ञा दी। नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2010 आते-आते देश के प्रधान मंत्री जी को यह कहना पड़ा कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा नक्सलवाद है। हमारी सरकार ने नक्सलवाद पर प्रभावकारी नियंत्रण किया है। मैं आंकड़ों में नहीं जाना चाहता था, लेकिन आदरणीय खड़गे जी ने जो आंकड़े प्रस्तुत किये हैं, उससे एक भ्रम की स्थिति पैदा होती है कि नक्सलवाद की समस्या से निपटने में हमारी सरकार कहीं अक्षम साबित हो रही है।   

          महोदय, मैं आंकड़ों को प्रस्तुत करने के लिए मजबूर हूं। यदि हम नक्सलवाद संबंधी घटनाओं की तुलना करें, तो पता चलता है कि वर्ष 2013 में यूपीए सरकार के समय हिंसक नक्सल घटनाओं की संख्या 1136 थी, जबकि वर्ष 2016 में हमारी सरकार के समय इन घटनाओं की संख्या कम हो कर 248 रह गई है। नक्सली घटनाओं में साठ प्रतिशत की कमी हुई है। इसी प्रकार वर्ष 2013 में नक्सल हिंसा में मारे गए व्यक्तियों की संख्या 397 थी, जबकि वर्ष 2016 में इनकी संख्या घटकर 278 हो गई है। यानी 31 प्रतिशत की कमी ऐसी घटनाओं में आई है। पुलिस बलों के साथ मुठभेड़ में मारे जाने वाले नक्सलियों की संख्या वर्ष 2013 में 100 थी, जबकि वर्ष 2016 में बढ़कर इनकी संख्या 222 हो गई है। इस प्रकार 122 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी तरह सिक्योरिटी फोर्सेज की कैजुअलटीज वर्ष 2013 में 115 थीं, यह संख्या घटकर वर्ष 2016 में 65 रह गई है, यानी सिक्योरिटी फोर्सेज की कैजुअलटीज में 43 परसेंट की कमी आई है। दूसरी तरफ वर्ष 2016 में नक्सलियों की गिरफ्तारी की संख्या बढ़कर 1397 से 1840 हो गई है, यानी 32 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। सबसे सुखद बात यह है कि सरकार के निरंतर एवं अथक प्रयास से और लोगों में सरकार के प्रति और सरकार की योजनाओं के प्रति विश्वास के चलते वर्ष 2016 में 1422 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जो वर्ष 2013 की तुलना में 411 प्रतिशत अधिक है।

          महोदय, मुझे मालूम नहीं है कि किस परिस्थिति में खड़गे जी द्वारा कहा जा रहा था कि नक्सल समस्या के समाधान में गृह मंत्रालय के स्तर पर कमी रह गई है। हमारी सरकार ने देश में वामपंथी उग्रवाद की समस्या पर भी प्रभावी नियंत्रण किया है। झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और उड़ीसा के नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सलियों की गतिविधियों में भारी कमी आई है।

माननीय सभापति : आप अपनी बात समाप्त कीजिए।

श्री विष्णु दयाल राम : सभापति जी, मैं पहली बार बोल रहा हूं, इसलिए मुझे बोलने का थोड़ा अधिक समय दिया जाए।

माननीय सभापति :  हमारे सामने समय की सीमा है। निर्धारित समय में चर्चा समाप्त करनी पड़ती है।

श्री विष्णु दयाल राम : सभापति जी, गृह मंत्रालय ने वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में विकास की योजनाओं की समीक्षा के लिए एम्पावर्ड कमेटी बनाई है। यह कमेटी देश के सबसे ज्यादा प्रभावित 35 जिलों के विकास की योजनाओं की समीक्षा करती है और लगातार निगरानी करती है।


*SHRI JITENDRA CHAUDHURY (TRIPURA EAST):  MHA is not only mandated to maintain the law and order but to maintain peace and harmony of the country also.  Peace and harmony is such a delicate thing that can’t be bought by money or achieved by use of muscle power. It depends upon creating conducive environment and fulfilling urges of the people.

          The vast hinterland of our country is affected by the Left wing extremists. Both Union and State Governments have been spending crores of money, thousands of security forces are deployed, but disturbances prone areas have been increasing. Scores of the members of security forces and innocent people are losing their lives almost every day, losses of property is huge. Hundreds of innocent tribal youth are languishing in the jail without any trial, which is further aggravating the situation.  What is the cause of this problem and whether this problem can solved by police initiative only? The answer is a big No.

          I urge upon the Union Government to immediately initiate the political dialogue with the groups in all Left Wing Extremists affected States, launch massive developmental onslaught and ideological campaign together, which shall bring the affective solution in the States of Chhattisgarh, Jharkhand, Andhra Pradesh, Assam, Odissa and Manipur, etc.

          Tripura is the glaring example how this problem has been largely contained and of course the initiative is still on to heal the root cause of this social and political problem.

          I would like to submit few specific issues of Tripura which are very essential and popular demand of the State.

          The Tripura Tribal Areas Autonomous District Counsel (TTA-ADC) may be empowered by amending the provision of the Sixth Schedule of the Constitution. TTA-ADC bodies should be adequately funded by the Ministries of the Government of India and NITI Aayog, like the three tier Panchayat.

          Kok-Borok, one of the official languages of Tripura should be included in the 8th Schedule of the Constitution in order to preserve and promote the language and cultural heritage of the second largest linguistic population of the State.

          A holistic effort may be initiated to solve the decade long problem of the Bru people of Mizoram, who have sheltered in Tripura. To ensure dignified repatriation of these people to their home land, a comprehensive Economic and Social package may be drawn for this ill-fated population for the sake of their proper rehabilitation.

          Assam Rifles’ Complex situated in the heart of the Agartala City should immediately be handed over to the State Government in order to set up a multi-disciplined Sports, Culture & Youth Complex.


*SHRIMATI POONAMBEN MAADAM (JAMNAGAR):  I thank the Hon'ble Minister for allocating Rs. 97,187 crore in Union Budget 2017-18, which is an increase of 5.4% over the revised estimates in 2016-17.  Further, this is 9.7% higher than the budget allocation of last year. With that, I would like to highlight some of the many takeaways from the MHA Budget for FY 2017-2018.

          First, I thank the Hon’ble Minister for focusing on border management. This area has witnessed a substantial increase in budgetary allocations for the fiscal year 2017-18.  Belonging to a coastal region, I understand the need to effectively secure the country’s international borders against infiltration, trafficking and irregular crossings which has become a pressing problem courtesy Pakistani terrorist’s infiltration through the India-Pakistan international border and subsequent attacks on strategic installations over the years. I am happy to share that for the first time ever the present Government has acknowledged the issue and has decided to enhance surveillance and detection by building fence barriers and putting up laser walls along riverine stretches, employing sensors, cameras and tunnel detection gadgets, building roads and other infrastructures along the borders. The budget also makes capital outlays for construction on India’s international borders and for setting up mobile check posts in coastal areas. The implementation of the comprehensive integrated border management systems (CIBMS) along the India-Pakistan border on a pilot basis is a step in this direction and I thank the Hon’ble Minister of Home Affairs and External Affairs for implementing this. With that, I would request the Ministry to expedite the work under CIBMS and also demand for investing more funds for border security.

          Similarly, I welcome the increased budgetary allocations for the border guarding forces to improve their strength and efficiency. I would like to mention that the Border Security Force (BSF), which has responsibility for the India-Pakistan and India-Bangladesh borders, received the highest amount of Rs. 15,569.11 crore, an increase of Rs. 917 crores from the previous year. This highlights the government’s commitment towards greater regional integration by ensuring smooth and efficient cross-border movement of people and goods.

          Third, I would like to mention that this is the first time ever that J&K witnessed a dip in terrorism related operations and violence post demonetization. I congratulate our Hon'ble PM, Shri Narendrabhai Modi and our Hon’ble Minister of Home Affairs, Shri Rajnath Singh for their vision and ability to be able to curb separatist activities in J&K.

          This Government stands for reform. The Government is constantly trying to revamp the Indian economy and the various sectors that were left crippled by the previous Government. The third segment that I would like to talk about is the substantial increase in allocations made towards police modernization and infrastructure. Under police modernization, Rs. 800 crore has been allocated for modernization of the state police forces. This sum includes grants by the Government to states to strengthen police infrastructure in terms of training, weaponry, mobility and communication, and establishment of secure police stations.  Further, it also includes the establishment and upkeep of the crime and criminal network tracking system.  This indicates the seriousness of the present Government to improve the living and working conditions of these police organizations. With this, I would like to request the Government regarding the need to increase MPLADS funds; of which a major chunk can be utilized for modernization of forces of respective constituencies and the State.

          However, one of the serious internal security threats that the country has been grappling with for more than a decade is the left wing extremism. At present, 106 districts in 10 states are affected by LWE. Although the primary responsibility of fighting LWE lies with the concerned states, the Central Government assists them by providing battalions of central armed police forces to counter the subversive activities of left wing extremists and maintain public order. As a result, to maintain national stability and law and order situation in the country, the budgetary allocation has been increased this year for 2017-18.  I congratulate the Minister for doing so, especially at a time when the country has been witnessing internal threats and rise of anti-socials across the states.

          I would like to share my concern regarding under utilization of funds by the Ministry. Most of the schemes have found surrendered funds, reasons pertaining to no-finalization of proposals, slow progress of construction works and procedural delays. As my suggestion, I would request that the Ministry to explore innovative solutions to prepare flexible and workable action plans and consistently meet all deadlines and develop strategic alternatives wherever the current strategy may not yield the intended results so as to achieve the desired physical and financial targets.

          Secondly, it is really sad that it is 21st Century and we still have to debate women’s safety. Women should be able to feel safe at all times and at all places; and the responsibility has to be shared by the men, families, society and administration as a whole.  As we all know that rapes, eve-teasing and other heinous crimes against women are still rampant in the country, I would request the Ministry to step up investment to develop infrastructure and resources for women’s safety.  Also, strongest possible action has to be meted out to the anti-socials so that there is a fear of law. Further, the Ministry has to take initiatives to introduce programs in schools where children are engaged, exposed and introduced to gender equality concepts.  Lastly, we have to run gender sensitization programs across cities and villages regarding ‘the right to consent’ and respecting women and their choices.

          My third concern would be regarding cyber crime. With every passing year cyber attacks continue to escalate in frequency, severity as well as impact. With that, I would like to refer to an Assocham – PwC joint study which mentions an approximate surge of 300% in cyber crime cases in India registered under the IT Act, 2000.  In this digital era, when virtual space occupies a dominant place in the lives of almost every citizen, the challenges of controlling cyber theft and cyber terrorism has increased. Securing our nation’s cyber infrastructure, cyber security is one of the most serious economic and national security challenges. Cyber crime has emerged as the new weapon for terrorist groups to attack the economic system of countries so that economies can be collapsed.

          The upsurge in radicalization of the youth by extremists groups like ISIS, Al Qaeda and JeM in the Indian Ocean Region is one of the darkest effects of cyber terrorism. I would like the Minister to answer in this regard, as to what are the steps that are being taken by the Ministry to address this issue. The need of the hour for the policy-makers is to work on an integrated framework for nations at large to secure internal security from external invasion.  There is a need to step up investment in the area and also develop potential employment opportunities with regard to cyber and allied sectors. This will help create much needed employment for the youth in the sector. There is a need for policy to derive that protection is rendered to both national and global economy as well as national and global security. India has a big role to play in fighting the virtual war against cyber crime.

          As I conclude, I request the Ministry to step up grants under the aforementioned categories.  The enhanced budgetary allocations for the MHA reflect the efforts of the Government to comprehensively overhaul the internal security set up of the country through a series of measures- such as capacity building of security improved training, technical upgradation; enhancing intelligence gathering, analysis and dissemination; and infrastructure development in violence affected areas as well as border regions. While the revenue outlays have been increasing, the capital outlays have seen troughs and crests in the last four years. This indicates that while the concerned organizations have been successful in increasing manpower, they have been unable to build up the commensurate infrastructure required for capacity building such as training schools and laboratories, procuring arms and ammunitions, computers and surveillance equipment. Efforts, therefore, must be made to fully utilize the budgetary outlays provided to the MHA in order to achieve a comprehensive reform of the internal security system of the country. With that, I express my support towards the Demands for Grants under the Ministry of Home Affairs for the financial year of 2017-2018.


श्री जय प्रकाश नारायण यादव (बाँका) : सभापति महोदय, आपने गृह मंत्रालय की अनुदान की मांगों पर चर्चा करने का अवसर दिया है, इसके लिए मैं आपका आभारी हूं। मैंने इस संबंध में कटौती प्रस्ताव दिया है।

          महोदय, गृह विभाग आंतरिक सुरक्षा का कवच है और आंतरिक सुरक्षा का कवच हमारी बुनियाद है। जैसे हम घर की साफ-सफाई करते हैं और घर की सुंदरता से दिखाई पड़ता है कि हमारे संस्कार क्या हैं, हमारा रहन-सहन क्या है, हमारा आचार-व्यवहार क्या है, इसी तरह गृह मंत्रालय हमारी आंतरिक सुरक्षा का कवच और बुनियाद है। इस बुनियाद को हमें बेहतर बनाना चाहिए। इसी से राष्ट्र की चमक बढ़ती है और इसी से सभ्यता, संस्कृति और भाईचारे का माहौल बनता है। हमारा देश सभी के लिए है। हम राम-रहीम के बंदे हैं, हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई हम सभी आपस में भाई-भाई हैं। हम मेल मौहब्बत से चलने वाले लोग हैं और इस बाग और चमन का हिस्सा हैं। सभी ने मिलकर देश की आजादी में खून बहाया और खून बहाकर अंग्रेजों को भारत से बाहर भगाने का काम किया है। हमारी सेना और पुलिस के जवान बहादुर हैं। उनको आधुनिक संसाधनों से हमें लैस करना चाहिए, उनको अत्याधुनिक संसाधन मुहैया कराना चाहिए। उनके हाथों में बढ़िया हथियार हाने चाहिए। कोई जंग या लड़ाई होती है या आंतरिक सुरक्षा की बात होती है, हम किसी पर हमला नहीं करते हैं, लेकिन यदि कोई हमारे देश को छेड़ता है, तो जवान कमर कसकर लड़ते हैं।

          गुप्तचर विभाग को बेहतर बनाने का काम हो। पठानकोट की घटना हो गयी, उड़ी की घटना हो गयी, ये दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ हैं। इनसे हमें सबक लेना चाहिए और गुप्तचर विभाग को बेहतर बनाना चाहिए। यहाँ पर माननीय गृह मंत्री जी बैठे हुए हैं। वे अच्छे व्यक्ति हैं, इनको प्रशासन का लम्बा अनुभव भी है, इसीलिए इनसे अपेक्षाएँ हैं। तभी देश में मेक इन इंडिया हो सकता है और अच्छे दिन लाये जा सकते हैं।

          चाहे सैनिकों या पुलिसवालों को खराब भोजन मिलने की बात हो, यह भी दुखद है। उनकी वर्दी, उनके परिवार की सुरक्षा, सुविधा, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, हेल्थ आदि का हमें ख्याल रखना चाहिए। चाहे कोई सेना या पुलिस का जवान  एससी हो, एसटी हो या ओबीसी हो, उनकी सुरक्षा और संरक्षा होनी चाहिए। वैसे लोगों का कोटा समाप्त नहीं होना चाहिए। आरक्षण के कोटे को सौ प्रतिशत पूरा किया जाना चाहिए। जो सेना के जवान अवकाश प्राप्त कर लेते हैं, उनको अनुभव होता है, उनको डय़ूटी पर लगाकर हमें उनकी सेवाएँ लेनी चाहिए, इसलिए इस ओर ध्यान देना बेहतर होगा।

          कोई आत्महत्या कर लेता है तो इसके पीछे कई कारण हैं। उन बातों का हमें ख्याल रखना चाहिए। सेना के जवान तो सीमा पर रहते हैं या पुलिस के जवान पुलिस तंत्र में अपना काम करते रहते हैं, लेकिन उनके घर पर कोई उनकी सम्पत्ति का हिस्सा ले लेता है, कोई ताना मारता है, कोई परेशानी पैदा करता है, उनको घर से फोन आता है, फिर भी वे वर्ष-दो वर्ष तक अपने घर नहीं जा पाते हैं। इससे उनको परेशानी उठानी पड़ती है, इसलिए सभी जिलाधिकारियों को यह आदेश होना चाहिए कि यदि सेना के जवानों या पुलिस के जवानों के परिवारों को सही में कोई परेशान करता है, तो उनके साथ न्याय होना चाहिए।

          आदरणीय गृह मंत्री जी के साथ सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के अंतर्गत हम लोग जम्मू-कश्मीर गये थे। उसमें कई विषयों पर चर्चाएँ हुईं। जम्मू-कश्मीर हमारे कलेजे का टुकड़ा है, वह हमारा गुलदस्ता है। यदि कोई भी बार-बार कश्मीर पर नज़र डालेगा, तो दुनिया की जितनी भी ताकतें हैं, वे सारी पीछे हो जाएंगी, लेकिन कश्मीर हमारा है और हमारा ही रहेगा, क्योंकि वह हमारा चमन, बगिया और फुलवारी है। उसके लिए बैठकें हुईं कि वहाँ कैसे सद्भावना और शांति का माहौल बनाया जा सकता है, हम वहाँ कैसे भाईचारा बढ़ा सकते हैं। आज ग्रामीण क्षेत्रों में अशांति पैदा हो रही है। ...(व्यवधान)


[1]* श्री सुमेधानन्द सरस्वती (सीकर)ः गृह मंत्रालय से संबंधित अनुदान मांगों का समर्थन करता हँ। बजट 2017-18 में भारत सरकार ने गृह मंत्रालय को अच्छा बजट दिया है। माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी के कुशल नेतृत्व में तथा गृह मंत्रालय माननीय  श्री राजनाथ सिंह जी तथा उनके सहयोगी मंत्री श्री किरण रिजीजू व श्री हंसराज अहीर ने विगत वर्षों में प्रशंसनीय कार्य किये हैं। जम्मू एवं कश्मीर में वहां की पुलिस तथा अर्धसैनिक बलों ने व सेना ने जिस संयम व धैर्य के साथ जिन कठिन परिस्थितियों में कार्य किया है, बहुत ही सराहनीय है। हमारे सैनिकों ने देश की बाह्य व आंतरिक सुरक्षा हेतु जो बलिदान दिये हैं मैं उन्हें नमन करता हूँ।

          भारत माता के प्रति हमारे सैनिकों में जो श्रद्धा है वह अनुकरणीय है। उग्रवादियों तथा आतंकवादियों के पास जिस प्रकार के हथियार व संसाधन है वे चिन्ता का विषय है। विशेष कर हमारी पुलिस के पास जो सुविधायें है वे उक्त लोगों की तुलना में कम हैं। हमारी पुलिस के पास कुछ प्रान्तों में वाहनों का अत्यंत अभाव है तथा हथियारों का भी अभाव है। इस विषय में मेरे कुछ सुझाव हैं। आबादी की दृष्टि से थानों की संख्या व पुलिस कर्मियों की संख्या बढ़ानी चाहिये। पुलिस के पास आधुनिकतम हथियार होने चाहिये। पुलिस कर्मियों को समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये। सैनिक तनावमुक्त रहें इस हेतु उन्हें नित्य प्रति योग प्रशिक्षण देना चाहिये। सैनिकों के भोजन, आवास तथा वस्त्र आदि की समुचित व्यवस्था हो। सैनिकों के बच्चों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था हो तथा उनके परिजनों को चिकित्सा आदि की समुचित सुविधायें दी जायें। शिक्षा के साथ-साथ विद्यालयों व महाविद्यालयों में सैनिक शिक्षा का प्रावधान किया जाये। उग्रवाद व आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र के नागरिकों को प्रशिक्षित किया जाए।

          मैं पुनः इस बजट में अनुदान मांगों का समर्थन करते हुए माननीय गृह मंत्री जी से अपेक्षा करता हूँ कि मेरे सुझावों पर विचार करें।


डॉ. उदित राज (उत्तर-पश्चिम दिल्ली) :  माननीय सभापति जी, मैं गृह मंत्रालय की अनुदानों की मांगों के पक्ष में बोलने के लिए खड़ा हुआ हूँ।

          माननीय राजनाथ जी, माननीय किरेन रिजिजू जी और माननीय अहीर जी ने जो कार्य किया है।...(व्यवधान)

माननीय सभापति  : आपकी बातें रेकॉर्ड पर नहीं जा रही हैं?

…(व्यवधान)

माननीय सभापति  : माननीय सदस्य बैठ जाइए। श्री खड़गे जी तो बोल ही चुके हैं।

…(व्यवधान)

डॉ. उदित राज :  जो घटनाएँ होती रही हैं, अब उन पर अंकुश लगा है। अभी हमारे साथी श्री बी.डी. राम जी ने जो आँकड़े पेश किये, उनसे पूरी तरह से सत्यापित हो गया है कि गृह मंत्रालय की चुस्ती से सीमा पर जो घटनाएँ होती थीं, उनमें भारी कमी आयी है।

          जब से हमारी सरकार आयी है, तब से ऐसी कोई बड़ी घटना नहीं हुई है, लेकिन पूरा देश जानता है कि नक्सली हमले में भारत के बड़े-बड़े नेताओं और अधिकारियों की भी हत्याएँ हुआ करती थीं, लेकिन वैसा अभी तक नहीं हो सका है। 

          महोदय, मैं एक और बात की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा। हमारी सरकार ने बड़ी शिद्दत से 2015 में प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज एक्ट में सुधार संबंधी बिल पास किया था। पहले प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज एक्ट में लगभग 22 तरह के अपराध थे, लेकिन वह हमारी ही सरकार थी, जिसने दिसंबर, 2015 में वह बिल पास किया था। इस एक्ट में 122 अपराध जोड़े गए। एस.सीज. और एस.टीज. के रेशियल और कास्ट डिस्क्रिमिनेशन के संबंध में जो एट्रोसिटीज एक्ट हुआ करता था, उसमें तमाम ऐसी घटनाएँ और वाएलेशन हुआ करते थे, जिन्हें प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज एक्ट के अंतर्गत कवर नहीं किया जाता था। यह हमारी सरकार ही थी, जिसने इसे पास कर एस.सीज. और एस.टीज. के साथ होने वाले उन 122 तरह के अन्यायों को भी इस एक्ट में शामिल किया।

          महोदय, मैं दिल्ली सरकार की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। यह सरकार बड़े जोशोखरोश के साथ गरीबों, दलितों और पूर्वांचलियों की रक्षक बनकर आई थी। यह देखा जाता है कि प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज एक्ट के नियम-कानूनों को जब लागू करने की बात आती है, तो दिल्ली सरकार बिलकुल बहरी हो जाती है। वह इस विषय पर बिलकुल भी सेंसिटिव नहीं होती है। प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज एक्ट के तहत जो मुकदमे दर्ज किए जाते हैं, right from filing of FIR, then, of course, preparing the charge-sheet and then adjudication and finally the trial, the judgement. In this long procedure, what happens that most of the cases the Government loses.  As a result, the perpetrators, those who commit atrocities on SCs and STs, get scot free. एक चीफ मिनिस्टर की लीडरशिप में इसके लिए एक कमेटी बनाए जाने की जरुरत है। अभी तक एट्रोसिटीज के जितने केसेज़ दर्ज हुए हैं, उन केसेज़ की मॉनिटरिंग के संबंध में दिल्ली सरकार ने कोई मॉनिटरिंग कमेटी नहीं बनाई है। दिल्ली के चीफ मिनिस्टर ने ऐसी किसी भी कमेटी को प्रिसाइड करने का कार्य नहीं किया है।

          महोदय, मैं श्री राजनाथ सिंह जी से आग्रह करना चाहूँगा कि दिल्ली सरकार को सख्त निर्देश दिए जाएं, कि यह केंद्र सरकार का कानून है और उसके द्वारा इस कानून की अवहेलना की जा रही है। मेरी काँस्टीट्वेन्सी नार्थ-वेस्ट दिल्ली में है। वहाँ तमाम दलितों और आदिवासियों के साथ हुई घटनाओं के बारे में मामले सामने आते रहते हैं। इन मामलों का फेयर ट्रायल और उनका कंविक्शन नहीं हो पा रहा है।      

          महोदय, लास्ट में मैं यह कहना चाहूँगा कि मैंने दिल्ली पुलिस में देखा है कि उसमें बहुत से एस.सी. एवं एस.टी. एस.एच.ओ. और आई.पी.एस. लेवल के अधिकारी हैं। इनको इंपॉर्टेंट पोस्ट्स पर कम रखा जाता है। यह व्यवस्था हमें विरासत में मिली है। हमारी सरकार में बहुत इंप्रूवमेंट हुआ है। मेरा सुझाव है कि दिल्ली पुलिस में एस.सी. एवं एस.टी. के इंक्सपैक्टर्स, एस.एच.ओ., ए.सी.पी., डी.सी.पी. और अन्य सीनियर लेवल पर जो लोग है, उनकी भी दिल्ली पुलिस में महत्वपूर्ण स्थानों पर तैनाती की जाए। मैंने उनमें एक निराशा का भाव देखा है, इसलिए मैंने यह सुझाव दिया है।


*डॉ. किरिट पी. सोलंकी (अहमदाबाद) ः मैं गृह मंत्रालय द्वारा 2017-18 में देश के ऐसे राज्यों जो कि वामपंथी, माओवादी व अन्य आतंकवाद से प्रभावित हैं, को विशेष अवसंरचना योजना से संबंधित अपने विचार प्रकट करना चाहता हूं-

          वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों में 250 मजबूत थानों का निर्माण किया, जिसका मध्यावधि परिणाम यह है कि स्थानीय पुलिस प्रशासन को वामपंथी उग्रवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने में सहायता मिली है।

          वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों में अधिक से अधिक सुरक्षा संबंधी व्यय, जिसके परिणामस्वरूप वामपंथी उग्रवाद से उत्पन्न हिंसा और सुरक्षा बलों/पुलिस कर्मियों पर वामपंथी उग्रवादियों के हमलों में आयी कमी के रूप में दिखा है।

          पूर्वोत्तर राज्यों के लिए सुरक्षा से संबंधित व्यय की प्रतिपूर्ति के परिणामस्वरूप देखा जाए, तो इस योजना से पुलिस स्थापना के सुरक्षा बलों की लोजिस्टिक आवश्यकताओं को पूरा करने में और आत्मसमर्पण कर चुके उग्रवादियों को मुख्यधाराओं में लाने के लिए आत्मसमर्पण-सह-पुनर्वास नीति के माध्यम से भटके हुए युवकों को उग्रवादी समूहों में शामिल न होने में काफी सहायता मिली है।

          सुरक्षा संबंधी व्यय योजना से उन कश्मीर प्रवासियों जिन्हें आतंकवाद अवधि के दौरान घाटी से विस्थापित कर दिया गया था, के लिए राहत एवं पुनर्वास में काफी सहायक साबित हुआ है।

          भारत-चीन सीमा पर अवसंरचना के विकास की योजना से सीमा पर तैनात सुरक्षा बलों की प्रचालन क्षमता बढ़ी है और सीमावर्ती आबादी का आर्थिक विकास भी भरपूर हुआ है, जिसके अंतर्गत भारत- नेपाल सीमा पर सड़कों का विकास व साथ ही भारत-भूटान सीमा पर भी सड़कों का विकास निहित है।

          भारत सरकार की देश की सुरक्षा के प्रति सुरक्षात्मक भावना की गंभीरता बजट के आवंटन से ही ज्ञात होती है। मौजूदा बजट में गृह मंत्रालय को 78000 करोड़ रूपये मिले जिसके आवंटन में सीआरपीएफ को ही आंतरिक सुरक्षा, माओवादियों तथा आतंकवादियों के खिलाफ अभियान में पुरज़ोर सामना करने के लिए लगभग 15569 करोड़ आवंटित किए गये व सीबीआई जो कि देश की सुप्रीम जांच एजेंसी है, को 695 करोड़ रूपये की धनराशि आवंटित की गयी, जो कि ई-गवर्नेंस, प्रशिक्षण केंद्रों के आधुनिकीकरण, तकनीकी व फोरेंसिक यूनिट आदि में जिसका प्रयोग किया जाएगा।

          गृह मंत्रालय द्वारा महिला सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए पूर्व में निर्भया फंड की धनराशि को वर्तमान में बढ़ाकर 3.40 करोड़ रूपये से 28.90 करोड़ रूपये कर दिया गया है, जो कि पहले आवंटित बजट से आठ गुना है, जो कि अत्यंत सराहनीय कदम है।

          मैं देश में ऐसे राज्य जो कि आतंकवाद व उग्रवाद से प्रभावित हैं, को दृष्टिगत रखते हुए व देश की सुरक्षा (बाहरी व आंतरिक) को दृष्टिगत रखते हुए लागू की गयी योजना व नीति, जिसका असर साफ-साफ दिखाई दे रहा है। वर्तमान में देश के जवानों ओर जनता का सुरक्षा की दृष्टि से हौसला बढ़ा हुआ है, के लिए मैं भारत सरकार का आभार व्यक्त करता हूँ।


17.29 hours                          (Shri Pralhad Joshi in the Chair)

SHRI E.T. MOHAMMAD BASHEER (PONNANI): Chairman, Sir, even though maintenance of law and order situation is a State subject, I feel that the Government of India should not play the role of a silent spectator when things are going from bad to worse in different parts of the country.  We all know that.

Atrocities against the minorities, dalits and women and children are taking place in different parts of the States and in different parts of India. 

Sir, the Government of India should act on this within the limit as per the federal system in our country. What is happening?  These kinds of incidents are taking place one after another and it is increasing like anything.

Similarly, in the name of cultural nationalism, attacks are taking place on poets, on our cultural leaders, on writers and on many authors.  It is a shame for the nation.  I hope that the hon. Minister is aware of all these things and we hope that the Government will take some swift action on these things. 

I wish to say that some … * I am not blaming any particular party or any body - are trying to control the entire things. They are controlling our food habits.  They are saying what you should eat.  Regarding our dress code, they are dictating what our dress code should be.  They are saying everything - what cinema we should see, what music we should hear.  All these things are being controlled by some …*. I hope that the hon. Minister who is aware of all these things will make a control on all these things. 

I would like to say about the misuse of AFSPA and UFPA. I have talked about these things on several occasions.  I hope that wisdom may prevail upon the Government.  The Government should repeal this forthwith. I demand that. 

Sir, then coming to NIA, I would like to say, with all the politeness, that the credibility of NIA is diminishing.  I hope that the Minister will rise up to the occasion and ensure the credibility of the National Investigation Agency.

I am coming to another important thing, that is, with regard to fake encounters.  What is happening?  We call it as encounters.  Actually, it is not that. These are fabricated stories against the people.  It should not be allowed. I humbly request the Government to see this very seriously.  The Government figures show that in the last four years, 555 fake encounter cases were registered across India wherein majority were being reported in Uttar Pradesh–138, followed by Manipur – 62, Assam-52, West Bengal-35, Jharkhand-30, Chattisgarh-29, Odisha-27 and Jammu & Kashmir-26.   

HON. CHAIRPERSON : Mohd. Basheer Ji, please conclude.

SHRI E.T. MOHAMMAD BASHEER : I am concluding Sir.

HON. CHAIRPERSON: I understand that but you should understand the constraints.

SHRI E.T. MOHAMMAD BASHEER : Now, with regard to emigration, it comes under the Ministry of Home Affairs.  Emigration is of two types – ECR and ECNR.  Most of the illiterate people try to get some job outside India. Philippines, Bangladesh and Pakistan are our competitors. They are getting easily emigration. Their emigration laws are very liberal. I would humbly request the Minister to take care of this thing also.

HON. CHAIRPERSON: Please conclude.

SHRI E.T. MOHAMMAD BASHEER : Please give one more minute to me. We are all one or two minutes speaking Members.

          Coming to disaster management, it also comes under the Ministry of Home Affairs. I wish to submit that effective steps should be taken to revamp the institution pertaining to disaster manager.

          I have another point. The Minister also may be very kind enough. He has attended that. That is why, I am saying. The Rohingyo refugees are suffering like anything. Within your maximum possible limit, since you are the Minister with kindness,        I appeal to you to extend maximum possible help to them. I am going to conclude. I am thankful to you for giving me the time. Thank you very much.


*डॉ. वीरेन्द्र कुमार (टीकमगढ़)ः माननीय वित्त मंत्री जी द्वारा आम बजट में वित्त वर्ष 2017-18 के लिए गृह मंत्रालय को 78 हजार करोड़ रू. आवंटित किए गए हैं, जिनमें से 1577 करोड़ रू. आई.बी. के व्यय के लिए है। वर्ष 2016-17 में गृह मंत्रालय को 73 हजार 328 करोड़ रू. आवंटित किए गए थे।

          वर्तमान बजट में देश के 7 अर्द्ध सैनिक बलों के लिए 54,985.11 करोड़ रू. आवंटित किए गए हैं, जो मौजुदा वित्त वर्ष के लिए 52,433 करोड़ रू. है। इन बलों में से सीआरपीएफ को अधिकतम 17,868.3 करोड़ रू. आवंटित किए गए हैं। सीआरपीएफ जैसे अर्द्ध सैनिक बल को माननीय वित्त मंत्री जी द्वारा किया गया आवंटन सराहनीय है क्योंकि सीआरपीएफ को आंतरिक सुरक्षा,माओवादियों तथा आतंकवादियों के खिलाफ अभियान में शामिल किया जाता है।

          भारत-पाक और भारत-बांग्लादेश सीमाओं की रक्षा करने वाले बीएसएफ के लिए 15,569.11 करोड़ रू. आवंटित किए गए हैं। इसके अलावा बजट में दिल्ली पुलिस के लिए 5,910.28 करोड़ रू. का आवंटन किया गया है।   देश के अति विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा करने वाले निकाय एसपीजी को 389.25 करोड़ रू. का आवंटन किया गया है।

           उपरोक्त आवंटन से यह परिलक्षित होता है कि सरकार देश की आंतरिक सुरक्षा को लेकर पूरी तरह सतर्क रहती है तथा सुरक्षा बलों के कल्याण को लेकर भी सरकार लगातार संवेदनशील बनी रहती है। उक्त आवंटन देश की सुरक्षा को दृष्टि में रखकर किया गया है, जो कि प्रशंसनीय है तथा इसके लिए मैं माननीय वित्त मंत्री जी का अभिनंदन करता हूं।

          देश की सुप्रीम जांच एजेंसी सीबीआई को वर्ष 2017-18 के बजट में 695.62 करोड़ रू. आवंटित किए गए हैं। पिछले वित्त वर्ष से यह राशि 8.31 फीसदी अधिक है। माननीय वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली जी द्वारा पिछले साल की तुलना में सीबीआई को 8.31 फीसदी अधिक बजट आवंटन किया गया है।

          माननीय वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली जी द्वारा पिछले साल की तुलना में सीबीआई को 53.38 करोड़ रू. ज्यादा आवंटित किए गए हैं। सीबीआई के ई-गवेनेंस, प्रशिक्षण केन्द्रों के आधुनिकीकरण, तकनीकी व फॉरेंसिक यूनिट तथा ऑफिसों के निर्माण और आवासीय कॉम्पेक्स बनाने के लिए इस बजट राशि का इस्तेमाल किया जाएगा।

          सरकार द्वारा इस बजट में देश की सीमाओं को आधुनिक तकनीकी से लैस करके स्मार्ट निगरानी की योजना, पुलिस आधुनिकीकरण, बटालियनों की संख्या बढ़ाने की मांग तथा नए उपकरणों की खरीद आदि जैसे तमाम विषयों पर  पर्याप्त ध्यान दिया गया है।

          निर्भया फंड के नाम से महिला सुरक्षा के लिए आवंटित की जाने वाली राशि में इस बार करीब 8 गुना की वृद्धि की गई है। निर्भया फंड को इस बार बढ़ाकर पिछले वर्ष की तुलना में 28.90 करोड़ रू. कर दिया गया है। पिछले वर्ष यह आवंटन 3.40 करोड़ रू. था।

          इस बार प्रस्तुत आम बजट में सरकार ने देश और दिल्ली की सेहत, शिक्षा और सुरक्षा पर काफी जोर दिया है। इसमें जहां एम्स, सफदरजंग और डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पतालों के बजट में बढ़ोत्तरी की गयी है, वहीं शिक्षा में केन्द्रीय विकास संगठन, डी.यू. के बजट में भी पर्याप्त इजाफा किया गया है। वर्किंग वुमेन होस्टल पर भी बजट आवंटन बढ़ाया है। इसे 28 करोड़ रू. बढ़ाकर 50 करोड़ कर दिया गया है। सरकार द्वारा वित्त वर्ष 2017-18 में गृह मंत्रालय को किए गए आवंटन के माध्यम से देश की सुरक्षा व्यवस्था को चाकचौबंद रखने के लिए पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं।

          पुलिस प्रशासन को वामपंथी उग्रवाद की समस्या से अधिक कारगर ढ़ग से निपटने के  लिए वामपंथी उग्रवाद  से प्रभावित राज्यों में 250 मजबूत थानों के निर्माण सहित विशेष अवसंरक्षणा स्कीम को लाया गया है। इस स्कीम का परिणाम वामपंथी उग्रवाद से उत्पन्न हिंसा और सुरक्षा बलों तथा पुलिसकर्मियों पर वामपंथी उग्रवादियों के हमलों में कमी के रूप में दिखाई पड़ेगा।

देश के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए सुरक्षा से संबंधित व्यय की प्रतिपूर्ति वित्त वर्ष 2017-18 में 330 करोड़ रू. के आवंटन से की जाएगी। इस स्कीम से पुलिस स्थपना के सुरक्षा बलों की लॉजिस्टिक आवश्यकताओं को पूरा करने में और आत्म समर्पण कर चुके वामपंथी उग्रवादियों को मुख्यधारा में लाने तथा भटके हुए युवाओं के पुनर्वास करने में मदद मिलेगी। इस आवंटन से पूर्वोत्तर क्षेत्र में कानून व्यवस्था में सुधार होगा तथा साथ ही पुलिस स्थापनाओं का सुदृढ़ीकरण भी होगा।

दूसरी एक अन्य स्कीम जिसको कि क्राईम एंड क्रिमिनल ट्रेकिंग नेटर्वक एंड सिस्टम् नाम दिया गया है तथा इसके लिए 31 करोड़ रू. का वित्तीय आवंटन किया गया है। इसके माध्यम से लगभग 16 हजार पुलिस थानों को हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर उपलब्ध कराए जाएंगे। इसके अलावा इसमें सिस्टम एवं राष्ट्रीय डाटा सेन्टर का प्रचालन एवं अनुरक्षण भी शामिल होगा।

देश की सरकार ने देश की सीमाओं पर भी अवंसरचना विकास का पूरा ध्यान रखा है। इसके लिए सरकार ने क्रमशः भारत-चीन सीमा पर अवसरंचना विकास के लिए 261.31 करोड़ रू., भारत-नेपाल सीमा पर सड़को के विकास के लिए 200.92 करोड़ रू. तथा भारत- भूटान सीमा पर सड़को के विकास के लिए 1 करोड़ रू. का आवंटन किया है।

          निष्कर्षतः सरकार ने कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक देश की सुरक्षा के लिए सभी पुख्ता इंतजाम वित्तीय आवंटन के माध्यम से किए हैं। इसके लिए मैं माननीय वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली जी को पुनः धन्यवाद करते हुए गृह मंत्रालय की अनुदान मांगों का पुरजोर समर्थन करता हूं।

HON. CHAIRPERSON: Smt. Kirron Kher, Madam, please take only five minutes.

SHRIMATI KIRRON KHER (CHANDIGARH): Sir, I was told that I would be given eight minutes.  I would seek your indulgence, please.

HON. CHAIRPERSON : No, Madam.

SHRIMATI KIRRON KHER : Thank you very much for giving me an opportunity to present my views.

          Firstly, I would like to say that the Budget for the Home Ministry focuses on the right aspects and I would like to congratulate the hon. Home Minister, Shri Rajnath Ji for this.  Many learned colleagues have spoken about it at length before me. So, I will not repeat it. In the light of growing threats to our nation’s internal security, I welcome the 5.4 per cent increase in the budget allocated to the Ministry of Home Affairs.  This reflects the Government’s policy of zero tolerance to terrorism and anti-social elements. Security measures in border areas as well as in the left wing extremist regions have been of paramount importance to our Government.

          As the House may recall, eight Centrally-Sponsored Schemes were restructured and brought under an umbrella scheme called the National Scheme for Modernization of Police and other Forces, back in 2013. Later on, the Ministry decided to terminate this scheme, since seven out of these eight original schemes were under the direct control of the State Governments.

          However, in 2016 the Government did an excellent job in reviving the Modernization of Police Forces Scheme by merging various existing schemes such as Crime and Criminal Tracking Network and Systems and Security Related Expenditure Schemes.

          Sir, the umbrella scheme of Modernization of Police Forces strives to bring the much-needed reform in the police forces of our country. It is of utmost importance that the police forces are well equipped to function with efficiency. Hence, I sincerely request the Government to approve the scheme for the period till the year 2020.

          The 2017-18 Budget Estimates for grants and loans to the Union Territories has seen a marginal increase of 0.5 per cent from the Revised Estimates for 2016-17. Having said that, I would like to draw your attention to the issues pertaining to my constituency of Chandigarh.

          At the outset, I am happy to note that the Budget Estimates for Chandigarh has increased from Rs.3,937.79 crore to Rs.4,312.40 crore in 2017-18. However, out of this 9.5 per cent increase in the total Budget Estimates, only 11 per cent of the budget is allocated under the capital head.

          As we are aware that the funds under capital head are for developmental works, I am of the opinion that this section deserves more attention. Moreover, when compared to the Revised Estimates of 2016-17, this year’s Budget Estimates under capital head has decreased from Rs.644.71 crore to Rs.475 crore. This roughly translates to a 26.3 per cent reduction in funds allocated to developmental activities.

          Chandigarh has a population of nearly 12 lakhs and is the Capital of two States, Punjab and Haryana. On several occasions, I have been stating that Chandigarh is catering to the needs of not just its residents but also people from neighbouring States.

          Owing to its strategic location and flourishing education and health sector, Chandigarh is catering to the growing demands of people from Punjab, Haryana, Himachal Pradesh, Uttarakhand, Jammu and Kashmir, and sometimes even Uttar Pradesh and Bihar.   To be able to keep pace with the current scenario, Chandigarh is projected to incur an additional expenditure of Rs.1,298 crore.

          About Rs.700 crore of this additional expenditure is required for the purpose of land acquisition for major works. The awards for land acquisition have been finalised by the hon. Supreme Court. But Chandigarh Administration is facing a delay in payment of the principal amount which is payable with an interest rate of 15 per cent per annum.

          As per the Fourth Delhi Finance Commission, the share of the Municipal Corporation of Chandigarh comes to Rs.672 crore. However only Rs.419.26 crore has been allocated. This includes Rs.100 crore for the Smart City initiatives and Rs.50 crore for the Kajauli Water Works where we got the extra canals and we need to lay the pipes. Therefore, the Municipal Corporation of Chandigarh is in need of Rs.250 crore in addition to the already allocated funds.

          The power sector of Chandigarh has estimated an additional expenditure of Rs.145 crore. This amount is required for payment of arrears of Rs.80 crore for the year 2015-16 and Rs.65 crore for the year 2016-17. This expenditure is in reference to supply and materials involved in the purchase of power.

          As per the order of the hon. Supreme Court and the Ministry of Home Affairs, Director General Fire Services, Civil Defence and Home Guards Order dated 16th September, 2016, duty allowances to home guard volunteers have been increased to the minimum of the pay to which the police personnel are entitled.

HON. CHAIRPERSON : Please conclude.

SHRIMATI KIRRON KHER : Please give me three minutes more time.

HON. CHAIRPERSON: No, not three minutes. You please conclude within one minute.

श्रीमती किरण खेर : सर, हमें बोलने का चांस नहीं मिलता है, इधर-उधर से लोग बोलते रहते हैं। प्लीज, मुझे थोड़ी देर बोलने दीजिए।

Due to this revision in wages, the Chandigarh Administration has incurred arrears of Rs.50 crore. Including Rs.26 crore for meeting other outsourced staffs deployed in various Departments, an additional expenditure of Rs.76 crore is estimated for payment of wages and other charges.

Apart from this, there are four avenues which require additional funds for the purpose of creating essential capital assets. Rajnath Singh Ji knows this. In one of his visits to Chandigarh, I had requested him. Firstly, the Government Medical College and Hospital of Chandigarh is in need of an additional Rs.30 crore in order to procure machinery and equipment such as PET scan and Linear Accelerator. Government Medical College and Hospital has plans of starting a trauma centre because of many accidents occur in the tri-city area and surrounding highways. All the persons are brought to the hospital in Chandigarh as the PGI is already overburdened. So, we need this trauma centre. It requires a fund of Rs.150 crore. The Chandigarh administration has already granted 10 acres of land through an MoU with the Government of India. But no financial grant has been received from the Government.

          Secondly, the Punjab Engineering College requires Rs.34 crore. Then, an amount of Rs.34 crore is required to purchase CTU buses and a amount of Rs.28 crore is required for purchase of petrol, diesel and lubricant oil for that.

          I take this opportunity to express that Chandigarh is leading among all the Union territories, with and without legislature, in terms of percentage of the funds utilized. Till date, Chandigarh has utilized 82.19 per cent of the funds allocated at the stage of Revised Estimates 2016-17. This reflects Chandigarh’s fund absorption capacity and successful implementation of Government schemes and projects.

HON. CHAIRPERSON : All the relevant points about Chandigarh have already been mentioned by other hon. Members. Please conclude it now.

SHRIMATI KIRRON KHER : Sir, I once again emphasise that an additional amount of Rs.1,298 crore that Chandigarh seeks is crucial for its functioning. I would request the hon. Minister to give it to us. Thank you very much.

HON. CHAIRPERSON: One of the hon. Members has used the word, which is an unparliamentary expression. It should, therefore, be expunged.

*श्री रामचरण बोहरा(जयपुर शहर)ः वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब पूरे विश्व में गलाकाट प्रतियोगिता का वातावरण  है। पूरा विश्व एक बाजार के रूप में है तथा सभी देश इस प्रतियोगिता के वातावरण में आगे बढ़ने की होड़ में नैतिकता को कहीं पीछे छोड़ चुके हैं। एक ओर 1965 व 1971 के प्रत्यक्ष युद्ध में पराजय के बाद पडोसी देश ने भारत के विरूद्ध छद्म युद्ध छेड़ रखा है वहीं वैश्विक प्रतियोगिता के इस दौर में हमारे सबसे प्रतियोगी चीन ने अपनी आर्थिक सुपरेमेसी को बनाए रखने के लिए, हमारे दशे में अस्थिरता बनाये रखने के लिए नक्सलवाद को लगतार पोषित करने का कार्य किया है, क्योंकि आर्थिक प्रगति के लिये किसी भी देश में शांति का वातावरण होना आवश्यक है। आज जब भारत विश्व में सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है तथा पूरा विश्व मान रहा है कि हमारा राष्ट्र असीम संभावनाओं के द्वार पर खड़ा है, भारत विरोधी ताकतें और अधिक शक्ति के साथ अपने हितों को साधने के लिये भारत में अशांति व अस्थिरता के लिये षडयंत्ररत हैं।

          2014 में माननीय नरेन्द्र मादी जी के नेतृत्व में सारे राजनीतिक विश्लेषकों के कयासों को सत्य साबित करते हुए पूर्ण बहुमत की सरकार बनी, भारत की जनता ने देश की आंतरिक सुरक्षा एवं सीमाओं की सुरक्षा  को सुदृढ़ करने की आशा के साथ माननीय नरेन्द्र मोदी जी को सत्ता की कमान सौंपी तथा भारत की सरकार इन सभी अपेक्षाओं पर खरी उतरी है।

          विगत तीन वर्षों में सक्षम नेतृत्व ने स्पष्ट आदेशों के माध्यम से देश में न केवल आंतकवादी घटनाओं पर विराम लगया है अपितु नक्सलवाद पर भी प्रभावी नियंत्रण कायम किया है।  नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में एक ओर आधारभूत संरचनाओं के विकास एवं रोजगार के अवसरों का सृजन किया गया है अपितु दूसरी ओर आंतकवाद एवं नक्सलवाद के साथ-साथ सभी अराष्ट्रवादी गतिविधियों के मेरूदण्ड ""कालाधन"" पर पुनर्मुद्रीकरण के माध्यम से प्रहार कर इनकी कमर तोड़ दी है।

          गृह मंत्रालय अनेक योजनाओं के माध्यम से राज्य पुलिस बलों के आधुनिकीकरण, कारवासों के आधुनिकीकरण नक्सलवाद की समस्या से निपटने के लिये राज्यों द्वारा किये व्यय की प्रतिपूर्ति, विद्रोह से पीड़ित सरकारों की व्ययपूर्ति, सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम सीमाओं की सुरक्षा के लिये तारबंदी, कश्मीरी नागरिकों के पुनर्वास, नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार को रोकने के लिये संरचनाओं का विकास, सीमाओं एवं तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा के लिये प्रभावशाली कार्य कर रहा है।

          मैं राजस्थान से आता हूँ जो कि सीमावर्ती प्रदेश है तथा देश की कुलसीमा, जो कि पाकिस्तान के साथ लगती है का लगभग एक तिहाई, 1043 किमी सीमावर्ती क्षेत्र राजस्थान में है, हालांकि राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्र में लगभग तीस किमी के क्षेत्र को छोड़कर सर्वदूर तारबंदी है। तीस किमी का क्षेत्र शाहगढ़ बल्ज जो कि Shifting Sandures(उड़ने वाले धोरो) का क्षेत्र है में तारबंदी असंभव है। मैं धन्यवाद करना चाहता हूँ कि माननीय गृहमंत्री जी ने लेज़र तकनीकी आधारित सुरक्षा व्यवस्था इस सीमा पर लागू करने का निर्णय किया है। इससे न केवल सुरक्षा व्यवस्था और अधिक चाक- चौबंद होगी अपितु अराष्ट्रीय गतिविधियों यथा नशीले पदार्थों, हथियारों एवं नकली नोटों की तस्करी पर भी विराम लगेगा।

बंगाल के साथ हमारी सीमाओं का निर्धारण 1974 के इन्दिरा-मुज़ीब समझौते के समय से ही लंबित था और इसके चलते बांग्लादेश सीमा पर तारबंदी न होने के कारण उस सीमाओं से अवैध घुसपैठियों का आना, गायों की तस्करी व अन्य अराष्ट्रीय गतिविधियाँ लगातार जारी थी, यह समस्या देश के लिये नासूर की भांति खडी थी। मैं माननीय मादी जी को धन्यवाद देना चाहता हूँ कि उन्होंने लंबे समय से लंबित इस समस्या का संविधान संशोधन के माध्यम से समाधान किया। जिससे बांग्लादेश सीमा आधुनिक तारबंदी का कार्य प्रारंभ हुआ है।

अंत में एक निवेदन करना चाहता हूँ। राजभाषा एवं भाषाओं को मान्यता देना गृह मंत्रालय अधीन है राजस्थान के 8 करोड़ लोग पिछले कई दशकों से मायड़- भाषा को संवैधानिक दर्जा दिलवाने के लिये प्रायसरत है। सीताकांत महापात्र समिति ने भी इसकी अनुशंसा की है, भोजपूरी व राजस्थानी, भाषाओं को अन्य देशों ने मान्यता प्रदान कर दी है। ऐसे में अब भी यदि हम अपनी इन करोड़ों लोगों की भाषाओं को आठवीं अनुसूची में दर्ज नहीं करते हैं तो यह उनकी आंकाक्षाओं पर कुठाराघात है। मैं निवेदन करना चाहता हूँ कि इसी सत्र में इस पर विधेयक लाकर इस बहुप्रतीक्षित मांग को पूरा किया जाये।

अंत में सीमाओं के सुरक्षा के सुंदर प्रबंधन एवं आंतरिक सुरक्षा की दिशा में अद्वितीय कार्य के लिये धन्यवाद ज्ञापित करते हुए मैं मांगों का समर्थन करता हूँ।


*श्रीमती रीती पाठक (सीधी)ः किसी भी देश के लिये यह आवश्यक है कि वह अपने नागरिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ उनके अधिकारो और सुरक्षा के प्रति संवेदनशील हो।

          मुझे यह कहते हुये प्रसन्नता है कि देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में नागरिकों के अधिकार और सुरक्षा दोनों के ही प्रति गंभीरता बढ़ी है।

दुर्भाग्य से, पूर्व में आंतरिक सुरक्षा के साथ जिस तरह से अनदेखी की गई उसका ही परिणाम है कि हमारे सामने चुनौतियाँ बढ़ी है लेकिन इस बात का गर्व है कि सक्षम नेतृत्व के कारण इन चुनौतियों से हम सफलतापूर्वक निपट रहें है। पिछले वर्षों में आतंकवाद जिसने बड़ी संख्या में निर्दोष और मासूमों की बलि ली, को देखने व इससे निपटने का नज़रिया राजनैतिक व वोटों की गणित पर आधारित होता था। हमारे सुरक्षा बलों का मनोबल इसके कारण गिर रहा है, यह चिन्ता पूर्व के सरकार की नहीं रही। लेकिन आज स्थितियाँ पूर्णतः बदली है।

          आज हमारे सुरक्षा बलों का मनोबल ऊंचा हैं क्योंकि एक विश्वास उनके अन्दर है कि हमारी यह सरकार प्रतिबद्ध है न सिर्फ उनको सक्षम बनाने में, बल्कि किसी अनहोनी की स्थिति में उनके परिजनों के साथ भी खड़ी है।

          यह साधारण बात नहीं है कि पिछले तीन वर्षों में सरकार के किसी भी दबाव में न आनें की नीति के चलते 2600 से भी अधिक उग्रवादियों ने आत्मसर्मपण किया है। जम्मू कश्मीर में सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद और घुसपैठ की कोशिशों का मुंहतोड़ जबाब दिया जा रहा है।

          बजट अनुमान 2016-17 की तुलना में 2017-18 में आवंटन में 10.3 प्रतिशत की वृद्धि है। 2016-17 में यह 89996.83 करोड़ रू. की तुलना में 99279.58 करोड़ रू. किया गया है।

          पुलिस आधुनिकीकरण की सर्वाधिक आवश्यकता है जिस पर पूर्व की सरकारों ने हमेशा उदासीनता का व्यवहार किया। मुझे प्रसन्नता यह है कि माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में आधुनिकीकरण के लिए अनेक प्रावधान किये गये हैं। इस हेतु 2015-16 में जहां 1581.35 करोड़ रू. का प्रावधान था वहीं 2016-17 में 1685 करोड़ रूपए के बजट की तुलना में संशोधित अनुमान 2295 करोड़ रू. रहा हैं। साथ ही 2017-18 में बजट अनुमान 337 करोड़ रू. से बढ़ाकर देश के नागरिकों की सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रकट किया है।

          आंतरिक सुरक्षा मामले में 2014 के बाद से देश में काफी सुधार हुआ है। पूर्वोत्तर राज्यों और वामपंथी अभिवाद के मामलों में हिंसात्मक धटनाओं में 2013 के बाद से 30 प्रतिशत तक कमी आई है। 2013 के बाद से अभी तक वामपंथी व अन्य उग्रवादियों द्वारा आत्मसमपर्ण में 400 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। यह इस बात का प्रमाण है कि आज जम्मू कश्मीर में भी हमारे सुरक्षा बलों के मनोबल और केन्द्र सरकार की इच्छा शक्ति के कारण ही परिस्थिति पूर्णतः नियंत्रण में है।

          जब सदन में गृह मंत्रालय के अनुदान मांगों पर चर्चा हो तो मै कहना चाहूंगी कि जब देश में लगातार कानून व्यवस्था सृदृढ़ हो रही है वही पूरे विश्व में एक संदेश जा रहा है कि देश आतंकवाद और उग्रवाद के मामले में जीरो टालरेंस की नीति पर चल रहा है।

          आज देश की जनता का विश्वास सरकार के प्रति सदृढ़ हुआ है। इसलिए हम सभी को एकमत होकर इस बजट के समर्थन में विश्वास व्यक्त करना चाहिये।


*श्री आलोक संजर (भोपाल) भारत की वाणिज्यिक राजधानी, मुम्बई, में कुछ वर्षों पूर्व घटी घटनाओं, आंतकवादी हमलों के खतरे को हम हमेशा याद रखते है। चौंकाने वाली बात यह है कि देश में भारी-भरकम सुरक्षा मौजूद होने के बावजूद आतंकवादी अपनी मर्जी से देश के प्रमुख ठिकानों पर हमला करने में सफल रहे है। आज हम सभी मिलजुल कर लघु और दीर्धकालिक नीतिगत उपायों के माध्यम से आतंकवाद के बढ़ते हुए खतरे से निपटने के लिए तैयार है।

          भारत की कुल भूमिगत सीमा 15,106.70 किलोमीटर और कुल तटीय सीमा 7,516.60 किलामीटर की है। मुख्य भूमि के अलावा इसके अधिकार क्षेत्र में 1,197 द्वीप हैं और समुद्र तट की लम्बाई में 2,094 किमी की अतिरिक्त लम्बाई को जोड़ देते है। भारत अस्थिर पडोसी देशों से घिरा हुआ है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल जैसे देश आंतरिक समस्याओं से घिरे हैं। हमको यह समझ लेना होगा कि आतंकवाद से निपटने की सभी रणनीतियां विफल हो जाएँगी जब तक भारत की खुली सीमा के आर पार घुसपैठ और मादक पदार्थों की तस्करी पर रोक नहीं लगाई जाती है। इसको सुनिश्चित करने के लिए सीमा क्षेत्रों में सतर्कता बढाने के साथ-साथ सीमाओं पर बाढ़ लगाने के कार्य को भी प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने की आवश्यकता है। समुद्री इलाकों की सुरक्षा के लिए जल्द से जल्द केंद्रीय नौवहन बोर्ड का गठन कर दिया जाना चाहिए ताकि नौसेना के रक्षा बलों के बीच अधिक तालमेल सुनश्चित किया जा सके। सरकार को अपने खुफिया तंत्र को और अधिक मज़बूत करना होगा जो आतंकवादी हमलों को रोकने के लिए अति-महत्वपूर्ण है। भारत सरकार को सशस्त्र बलों की एकीकृत कमान की तर्ज पर एक केन्द्रीय, संयुक्त खुफिया एंजेंसी का गठन कर देना चाहिए। इसकी भूमिका संयुक्त राज्य अमेरिका में सीआईए की भूमिका के समान हो। गृह मंत्रालय में एक अलग विभाग का गठन कर दिया जाना चाहिए। जो केवल देश भर में चल रहे आतंकवाद विरोधी अभियानों की निगरानी करे। इसके प्रकोष्ठ राज्य स्तर पर भी गठित कर दिए जाने चाहिए। यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि आतंकवादी संगठन कई राज्यों में फैले हुए होते हैं और उन्हें पूरी तरह नष्ट किया जाना जरूरी है। इस कदम से उन लोगों को भी गिरफ्तार करने में सफलता मिलेगी जो आतंकवादी गतिविधियों में सीधे तौर पर शामिल नहीं हैं लेकिन आतंकवादी संगठनो के सहयोगी है। पुलिस और अर्धसैनिक बलों के कर्मियों को पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और उन्हें आतंकवादी हमलों से निपटने के लिए सुसज्जित किया जाना चाहिए। अतीत में कई ऐसे मामले हुए हैं जिनमें पुलिस कर्मी आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहने हुए थे और इसके कारण उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस से यह पता चलता है कि या तो वह स्थिति से निपटने के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित नहीं थे या फिर उनके पास वह हथियार और उपकरण नहीं थे जिन के बल पर वे उच्च प्रशिक्षण पाए हुए और जान देने की हद तक प्रेरित आतंकवादियों, जो अत्याधुनिक आग्नेयास्त्रों का उपयोग कर रहे थे, का सामना कर सकते थे। आधार कार्ड नागरिक पहचान संख्या आज के समय की अहम जरूरत बन चुकी है। इससे न केवल भारत सरकार को देश में रह रहे अवैध प्रवासियों की पहचान करने और उन्हें उनके देश में वापस भेजने में मदद मिलेगी, बल्कि इस से बैंकों में होने वाले वित्तीय लेनदेन में भी पारदर्शिता आएगी। देश में पनपने वाले राष्ट्र विरोधी संगठनों को मिलने वाले धन पर अंकुश लगाने के लिए यह कदम आवश्यक होगा।

          मेरा गृह मंत्री जी से आग्रह है कि आतंकवाद से संबंधित सभी मामलों की सुनवाई दैनिक आधार पर होनी चाहिए। ऐसे मामलों में जल्द सुनवाई और फैसला आ जाने से आतंकवादी संगठनों को अपने गिरफ्तार साथियों को छुड़वाने के लिए आतंक़वादी योजना बनाने हेतु कम गुंजाइश बचेगी। एक बार देश की उच्च न्यायपालिका ने किसी व्यक्ति को आतंकवाद के कृत्यों के लिए दोषी ठहरा दिया हो तो उसे ऐसी सजा से बचने के लिए कोई मौका नहीं देना चाहिए जो दूसरों के लिए एक मिसाल साबित होगी।

          कश्मीर में हम देख रहे है कि इंसानियत के दुश्मन आतंकवादी युवाओं, बेरोजगारों और उन लोगों को जिनका व्यवस्था से मोहभंग हो गया है, उन्हें भ्रमित कर अपने संगठन में भर्ती करते हैं। इस प्रक्रिया को रोकने के लिए सभी कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। मैं प्रशंसा करना चाहता हूँ कि श्री मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार देश के पिछडें और आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोजगार परियोजनाएं शुरू कर रही है, जिससे वह शिक्षित होने के साथ- साथ व्यवसाय व रोजगार से जुड़ सके, देश के साथ चल सके।

          जन जन के नेता देश के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार सभी स्तरों पर चलने वाला एक सतत, दीर्घकालिक, सुविचारित और सुनियोजित प्रयास ही आतंकवाद के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान में सफलता दिला रही है। भारत अतीत में आतंकवाद के खिलाफ पंजाब, नगालैंड और मिजोरम जैसे राज्यों में सफल रहा है। यह दर्शाता है कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में निर्णायक विजय प्राप्त की जा रही है।

          गत वर्ष के बजट की तुलना में इस वर्ष का बजट 6.37 प्रतिशत अधिक है, वर्ष 2016-17 में गृह मंत्रालय को 73328 करोड़ आवंटित किये गये थे जो वित्त वर्ष के आम बजट में 78 हजार करोड़ आवंटित किये गये है जिनमें से 1577 करोड़ आईबी के लिये रहेंगे। प्रधानमंत्री जी व गृहमंत्री जी की सराहना करते हुये देश के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए अनुदान माँगों का समर्थन करता हूँ।

*श्री रोड़मल नागर (राजगढ़) ः मैं गृह मंत्रालय की अनुदान मांगों पर अपने विचार रखता हूँ, ।  सबसे पहले मैं प्रधानमंत्री जी और गृह मंत्री को धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने देश की आंतरिक सुरक्षा की दशा और दिशा को ही बदल दिया है। भारत- पाक और भारत - बांग्लादेश सीमाओं की रक्षा करने वाले बल बीएसएफ के लिए 15569 करोड़ रूपये आवंटित किया है, वित्त वर्ष 2017-18 में आम बजट में गृह मंत्रालय के लिये 78 हजार करोड़ रूपये आवंटित किये गये है, जिसमें से 1577 करोड़ रूपये आईबी के लिये रखे गये है, यह आवंटन वर्ष 2016-17 के आवंटन से 6.37  प्रतिशत अधिक है, तब 73328 करोड़ रू. किये गये थे। बजट में सात अर्ध सैनिक बलों के लिये 54985 करोड़ रूपये आवंटित किये गये हैं, सीआरपीएफ को सबसे ज्यादा 17868 करोड़ रूपये आवंटित किये गये है जो माओवादियों व आतंकवादियों के खिलाफ अभियान में लगे रहते है।

          मेरा मानना है कि गृह मंत्रालय में एक अलग विभाग का गठन कर दिया जाना चाहिए जो केवल देश भर में चल रहे आतंकवाद विरोधी अभियानों की निगरानी करे। इसके प्रकोष्ठ राज्य स्तर पर भी गठित कर दिए जाने चाहिए। यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि आतंकवादी संगठन कई राज्य में फैले हुए होते हैं और उन्हें पूरी तरह नष्ट किया जाना जरूरी है।  इस कदम से उन लोगों को भी गिरफ्तार करने में सफलता मिलेगी जो आतंकवादी गतिविधियों में सीधे तौर पर शामिल नहीं हैं लेकिन आतंकवादी संगठनो के सहयोगी है। पुलिस और अर्धसैनिक बलों के कर्मियों को पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और उन्हें आतंकवादी हमलों से निपटने के लिए सुसज्जित किया जाना चाहिए। अतीत में कई ऐसे मामले हुए हैं जिनमें पुलिस कर्मी आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहने हूए थे और इसके कारण उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस से यह पता चलता है कि या तो वह स्थिति से निपटने के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित नहीं थे या फिर उनके पास वह हथियार और उपकरण नहीं थे जिन के बल पर वे उच्च प्रशिक्षण पाए हुए और जान जान देने की हद तक प्रेरित आतंकवादियों, जो अत्याधुनिक आग्नेयास्त्रों का उपयोग कर रहे थे, का सामना कर सकते थे। आधार कार्ड नागरिक पहचान संख्या आज के समय की अहम जरूरत बन चुकी है। इस से न केवल भारत सरकार को देश में रह रहे अवैध प्रवासियों की पहचान करने और उनके देश वापस भेजने में मदद मिलेगी, बल्कि इस से बैंकों में होने वाले वित्तीय लेनदेन में भी पारदर्शिता आएगी। देश में पनपने वाले राष्ट्र विरोधी संगठनों को मिलने वाले धन पर अंकुश लगाने के लिए यह कदम आवश्यक होगा।

          मेरा गृह मंत्री जी से आग्रह है कि आतंकवाद से संबंधित सभी मामलों की सुनवाई दैनिक आधार पर होनी चाहिए। ऐसे मामलों में जल्द सुनवाई और फैसला आ जाने से आतंकवादी संगठनों को अपने गिरफ्तार साथियों को छुड़वाने के लिए आतंकवादी योजना बनाने हेतु कम गुंजाइश बचेगी। एक बार देश की उच्च न्यायपालिका ने किसी व्यक्ति को आतंकवाद के कृत्यों के लिए दोषी ठहरा दिया हो तो उसे ऐसी सजा से बचने के लिए कोई मौका नहीं देना चाहिए जो दूसरों के लिए एक मिसाल साबित होगी।

          कश्मीर में हम देख रहे है कि इंसानियत के दुश्मन आतंकवादी युवाओं, बेरोजगारों और उन लोगों को जिनका व्यवस्था से मोहभंग हो गया है, उन्हें भ्रमित कर अपने संगठन में भर्ती करते हैं। इस प्रक्रिया को रोकने के लिए सभी कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। मैं प्रशंसा करना चाहता हूँ कि श्री मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार देश के पिछडें और आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोजगार परियोजनाएं शुरू कर रही है, जिससे वह शिक्षित होने के साथ-साथ व्यवसाय व रोजगार से जुड़ सके और देश के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके।

          मैं गृह मंत्रालय की अनुदान मांगो का समर्थन करते हुये देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी व गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी को धन्यवाद देता हूँ कि आज नक्सलवाद, आतंकवाद, उग्रवाद तथा अलगावाद को समाप्त करने की दिशा में सार्थक कदम उठाया है।


SHRI ABHIJIT MUKHERJEE (JANGIPUR): Thank you, Sir. Due to paucity of time, I will mention only a few points with respect to my constituency, Jangipur. Before that I must congratulate one of my colleagues as he has pointed out certain points with respect to paramilitary forces like CRPF, BSF, etc. I will just urge upon the hon. Home Minister to let the cadre officer come, at least, to the level of IG, that is, Inspector General of Police.  Otherwise, there has been a lot of demoralization in the police force. I have a lot of friends in these paramilitary forces and they keep on complaining me that there is demoralization among rank and file. I would request the hon. Minister to consider this aspect.

          Sir, in respect of the Border Area Development Programme (BADP), I would like to mention that only 55 per cent fund has been allocated out of the projected fund. My constituency shares its border with Bangladesh particularly at Pirazpur from where all fake Indian currencies enter into India through Bangladesh. There is no fencing on that border. Right from the beginning, since 2014, I have been requesting the Government to erect fencing over there, which is a stretch of around 27 kms.

          Another very important which I want to raise before this august House is that because of lack of all weather motorable roads the BSF is posted almost 7-8 kms inside the country which should have been housed at the border. We have already spoken with the State Government. They have agreed to give land for integrated Border out Posts (BOPs).

          I would also like to request the hon. Home Minister that since Bangladesh has been a friendly country as of now, Border Haats should be arranged there so that no illegal activities like cattle smuggling occur, which is very common in that area itself. It is not possible to stop it without fencing and proper securing at border.

          It has also been reported that a lot of miscreants from Bangladesh enter India through Murshidabad and Malda districts. Recently, in some newspapers it was reported that NIA has nabbed two or three miscreants who were apprehended while entering India. It is also an apprehension that they have been trained by some foreign countries.

          My next point is in respect of modernization of police. I want to know from the hon. Minister as why we cannot use UAVs or drones for collecting intelligence before sending our troops for patrolling. Recently, around 30 personnel of CRPF have been killed because of lack of intelligence about the terrorists’ plan. The terrorists trapped our soldiers and killed them. If we give thrust on the use of UAVs and drones in modernization programmes, we may be able to collect a lot of intelligence about terrorist activities and would be able to save lives of our jawans.

          Sir, on border areas, the Paramilitary Forces, especially the BSF does not allow the farmers to grow crops higher than two feet. In Punjab the cultivators get compensation for this. But in West Bengal the cultivators at border areas do not get any kind of compensation. I request the hon. Minister to look into this aspect so that there is a uniform rule for all.

HON. CHAIRPERSON: Please conclude.

SHRI ABHIJIT MUKHERJEE : Sir, I have a lot of other important points to present before this august House. But due to paucity of time, I conclude my speech. Thank you.


*श्रीमती जयश्रीबेन पटेल (मेहसाणा)ः मैं गृह मंत्री जी द्वारा पेश किए गए गृह अनुदानों की मांगो का समर्थन करती हूँ।

          वित्त वर्ष 2017-18 के लिए आम बजट में गृह मंत्रालय को 78,000 करोड़ रूपये दिए गए हैं। जिसमें से 1577 करोड़ रूपए आईबी के लिए आवंटित किए गए हैं।

          वर्ष 2016-17 में गृह मंत्रालय को 73,328 करोड़ रूपए ही दिए गए थे। 2016-17 की तुलना में 2017-18 के बजट में 6.37 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इससे प्रतीत होता है कि हमारी मोदी सरकार आंतरिक सुरक्षा के लिए कितनी सतर्क है।

          बजट में सात अर्धसैनिक बलों के लिए 54,985.11 करोड़ रूपए आवंटित किए गए हैं। इन बलों में से आरपीएफ को सबसे ज्यादा 17,868.53 करोड़ रूपए आवंटित किए गए हैं। सीआरपीएफ को आंतरिक सुरक्षा, माओवादियों तथा आतंकवादियों के खिलाफ अभियान में शामिल किया जाता है। भारत-पाक और भारत- बांग्लादेश सीमाओं की रक्षा करने वाले बल बीएसएफ के लिए 15,569.11 करोड़ रूपए आवंटित किए गए है।

          इसके साथ ही सुरक्षा के तहत निर्भया कोष के तहत 28.90 करोड़ रूपए आवंटित किए गए हैं। मैं इसकी सराहना करती हूँ। एनडीए सरकार की नजरो में महिलाओं के लिए इज्जत है, आदर है। महिलाओं के साथ हो रहे हादसों पर काबू पाने के लिए सरकार पुरजोर कोशिश कर रही है। केन्द्र सरकार महिला सुरक्षा को लेकर पूरी चौकसी बरत रही है। इसलिए इस बार महिला सुरक्षा पर केन्द्रित निर्भया फंड में काफी इजाफा किया गया है। यह बेहतर बजट है। दिल्ली पुलिस की प्राथमिकता महिला सुरक्षा है। इस मद में मिलने वाले निर्भया फंड में करीब 8 गुना की बढ़ातरी की गई है। ऐसे में इस दिशा में तेजी से और बड़े कदम उठाने में मदद मिलेगी।

          देश में बढ़ते क्राइम को रोकने में सीबीआई की अहम भूमिका है। इसके तहत उनके क्रियाकलापों को सार्थक बनाने के लिए भी में बजटीय प्रावधान किया गया है।

          दिल्ली जो देश की राजधानी है और दिल्ली पुलिस सेंट्रल गर्वमेंट के दायरे में है। पिछले सरकारों के निर्बल तौर-तरीकों के कारण दिल्ली में निर्भया कांड जैसी घटनाएं घटती रहीं और देश दुनिया में भारत की छवि खराब होती रही। इसके मद्देनज़र वर्तमान सरकार ने 6378.18 करोड़ रूपए आवंटित किए। पिछले साल की तुलना में आवंटित धनराशि 454.44 ज्यादा है। दिल्ली के वर्तमान एलजी द्वारा नई पार्किंग नीति के तहत जो कड़े प्रावधान किए है। मैं उसकी सराहना करती हूँ।

          हाल ही में यू.पी. में सैफ्फुलाह आतंकवादी को हमारे पुलिस जवानों ने ढ़ेर कर दिया। इकसे तहत उनके पिताजी ने उसका शव लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि हमारी कई पीढ़ियां भारत में जन्मी हैं। हम भारतवासी है हमें अपने देश पर गर्व है। मेरा बेटा किसी के बहकावे के कारण आतंकवादी बन गया है। इसलिए हमारा परिवार उसके साथ सभी नाते तोड़ चुका है। इस घटना के अंतर्गत माननीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह जी ने संसद के अपने बयान में उनको सलाम करके उनका गौरव बढ़ाया है।

          इससे हमारे पुलिस बलों और देशवासियों का मनोबल बढ़ता है। मैं इसकी सराहना करती हूँ। मेरे कुछ सुझाव इस प्रकार हैं ः- ट्रैफिक कंट्रोल रूम को कोर्ट के सर्वर से जोड़ा जाना चाहिए। महिला पुलिस कर्मियों और पुलिस कर्मियों की विधवाओं को रोजगार मिले इसके तहत घरेलू और पुलिस हैडक्वाटर के परिसर में स्क्लि डेवलेपमेंट को कार्यक्रम चलाने चाहिए। सीनियर सिटीजनो (एकल स्त्री/पुरूष या दोनों) की सुरक्षा के लिए एनजीओ के साथ उनकी सुरक्षा के तहत मदद पहुंचाने के लिए स्पेशल वार्निंग बटन के प्रावधान किए जाने चाहिए। एन्टी रोमियो स्कवायड के लिए ज्यादा पुलिस बल की तैनाती करनी चाहिए। मरीन पुलिस स्टेशनों की बढ़ोतरी करनी चाहिए तथा बार्डरों पर तार फेंसिंग, लाइटिंग और नाइट विजन वाले वीडियो कैमरे से लैस करना चाहिए।     अतः मैं गृह मंत्री जी द्वारा लाई गई अनुदानों की मांगों का समर्थन करती हूँ।


*श्री श्रीरंग आप्पा बारणे (मालवा)ः        जैसा की हम सभी जानते हैं कि गृह मंत्रालय राज्यों के संवैधानिक अधिकारों में दखल दिए बिना, सुरक्षा एवं सौहार्द बनाये रखने के लिए राज्य सरकारों को जनशक्ति एवं वित्तीय सहायता, मार्ग दर्शन और विशेषज्ञता प्रदान करता है और गृह मंत्रालय के अंतर्गत आंतरिक सुरक्षा विभाग और राज्य विभाग, गृह विभाग, जम्मू कश्मीर कार्य विभाग सीमा प्रबंधन विभाग और राज भाषा विभाग जैसे अनेक महत्वपूर्ण विभाग आते हैं।

          पिछले कुछ वर्षों से भारत की आंतरिक सुरक्षा को खतरा पैदा हुआ है और हम सब जानते है कि इन सब खतरों को बाहरी मदद मिल रही है और यह हमारे लिए दिन प्रतिदिन घातक होती जा रही है। नशीली दवाइयों की तस्करी एक नये खतरे के रूप में जन्म ले रही है  और हमारे देश में अनेक तरह की जिहादी गतिविधियों और विद्रोह की भावना को बढ़ावा दिया जा रहा है और यह हम सब जानते हैं कि उग्रवादियों, विद्रोहियों ओर आतंकवादियों को हमारे पड़ासी देशों द्वारा पैसे की मदद और पनाह मिल रही है और हम सब यह भी जानते हैं कि नशीली दवाइयों का उत्पादन करने वाले पाकिस्तान और म्यांमार हमारे पड़ोसी देश हैं और यही देश भारत के विद्रोही गुटों की मदद करते हैं और इन्हें उकसाते हैं और पाकिस्तान जिहादी आतंकवाद के गढ़ के रूप में उभरा है। खुफियां एजेंसी आईएसआई ने भारत के खिलाफ परोक्ष रूप से युद्ध छेड़ रखा है।

          आज हमारे देश में जो परिस्थिति है, हमें उस पर विचार करने की आवश्यकता है, चोर, डकैत, हत्यारों का बंदोबस्त करना आसान होता है। कानून और सुरक्षा के पालन की जिम्मेदारी की व्यवस्था करना राज्य पुलिस के अंतर्गत आता है और प्रत्येक राज्य में इसके लिए एक पुलिस विभाग होता है हम जानते हैं कि चोर, डकैतों की कोई एक टोली हो सकती है। उस टोली का बंदोबस्त करने का कर्तव्य, हमारा पुलिस विभाग पूरी ताकत से कर रहा है और इन टोलियों की शक्ति मर्यादित होती है। वे अन्य किसी के एजेंट बनकर काम नहीं करते अपना स्वार्थ ही उनके हिंसक कृत्य का प्रयोजन होता है। लेकिन हमारे देश में असली खतरा बाह्य आतंकवाद से है। हमारे देश के शिक्षित मुसलमान पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इरान, इराक, सीरिया आदि इस्लामी देशों की गतिविधियाँ देखते ही होगे। इन सब देशों में मुसलमान ही मुसलमानों के विरूद्ध लड़ रहे है। वस्तुतः हर किसी को शांत और सभ्य जीवन की ही आकांक्षा होगी। भारत के मुसलमान भी शांत और सभ्य जीवन ही चाहते होंगे। उनकी उस मानसिकता की ओर सियासी पार्टियों का ध्यान होना चाहिए। ये लोग पाकिस्तान के एजेंट बनकर काम नहीं करेंगे, विपरीत गद्दारों को सबक सिखाएंगे। हमारे देश की राजनीति की मुस्लिम खुशामद की दिशा बदलना यही इस जिहादी आतंकवाद का रामबाण उपाय है। "एक देश, एक जन, एक राष्ट्र" ही हमारे सब सामाजिक और सियासी क्रियाकलापों का नारा होना चाहिए।

          जिहादी आतंकवाद जैसे एक धार्मिक पृष्ठभूमि है, वैसी ही माओवादी आतंकवाद एक बौद्धिक या ये कहें की एक सैद्धांतिक पृष्ठभूमि है और हम इनको नक्सली, माओवादी, जैसे अलग- अलग नाम से जानते हैं, लेकिन इनका प्रेरणास्त्रोत एक ही है वह है साम्यवाद या कम्युनिज्म। साम्यवाद को जनतंत्र मान्य नहीं है। उनका एकमात्र हथियार और विज्ञान, क्रांति है क्रांति की यह लहर बंगाल के नक्लसबारी गाँव से निकली। इस कारण इन आतंकवादियों पर "नक्सली" विशेषण लगाया जाता है। उनका और भी एक नाम प्रचलित है। वह है "पीपल्स वॉर ग्रुप।"

          ये वामपंथी विचारधारा के क्रांतिप्रवण समूह, शहरों में सक्रिय नहीं होते। वे जंगल, पहाड़ो में सक्रिय होते है। कारण वहाँ उन्हें छिपना और गुप्त कार्रवाईयों की रूपरेखा बनाना आसान होता है। स्वतंत्र होने के 70 साल बाद भी इन क्षेत्रों के लोगों के विकास की ओर शासकों ने आवश्यक ध्यान नहीं दिया। उनके अज्ञान का लाभ उठाकर स्वार्थी  साहूकारों ने भी उन्हें खूब लूटा। इन वामपंथी आतंकवादियों ने उनके बीच अपने लिए आस्था निर्माण की, और उनका समर्थन हासिल किया। उनमें से ही उन्हें कार्यकर्ता भी मिले और वह भारत के पड़ोसी देशों ने भी इनकी पूरी सहायता की और इनको आधुनिक हथियार उपलब्ध करायें। इसमें संदेह नहीं है कि छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड इन एक-दूसरे से सटे राज्यों में उनकी शक्ति केंन्द्रित है। और इन राज्यों की सीमाओं से जुड़ा हुआ महाराष्ट्र का गढ़चिरोली जिला, तथा आंध्र प्रदेश के सीमावर्ती जिले भी आतंकवादग्रस्त है। इन प्रदेशों पर अपना स्वामित्व प्रस्थापित कर, अन्यत्र फैलाव के लिए एक लाल मार्ग (रेड कॉरिडोर) निर्माण करने का उनका इरादा है। इसका अर्थ यह है कि संपूर्ण भारत उनका आघात लक्ष्य है। एक दृष्टि से उनके बंदोबस्त के लिए यह सुविधाजनक भी है। उनकी केंद्र सरकार द्वारा घेराबंदी भी हो सकती है। इन हिंसक समूहों की कारवाईयाँ, अलग- अलग राज्यों में होने के कारण, और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी संबंधित राज्यों की होने के कारण, उनकों जड़ से समाप्त करने की रणनीति सफल नहीं हो पर रही है। वस्तुतः आतंकवाद की यह समस्या संबंधित राज्यों की ही नहीं, वह संपूर्ण भारतवर्ष की समस्या है। इसलिए इस समस्या के निकाकरण के लिए केंद्र के ही अभिक्रम की आवश्यकता है। विलंब से ही सही, केंद्र को इसका अहसास हुआ है। केंद्र सरकार ने नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए)  निर्मित की है। इसी प्रकार प्रत्यक्ष कार्रवाई के लिए नेशनल कांउटर टेररिज़म सेंटर (एनसीटीसी) की स्थापना की जा रही है लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि इस आतंकवाद विरोधी केन्द्र की स्थापना का आतंकवादग्रस्त राज्य ही विरोध कर रहे है। उन्हें लगता है कि, हमारे अधिकारों का यह अतिक्रमण है। यह बात इन राज्य सरकारों के ध्यान में नहीं आती कि यह संपूर्ण देश की समस्या है अतः सरकार को इन दोनों तरह के आतंवादियों से निपटने के लिए हर संभव रणनीति बनानी होगी और साथ ही साथ राज्य सरकारों को भी अपना पूर्ण सहयोग देना होगा।

          कोई भी देश तब तक एक शक्तिशाली राष्ट्र नहीं बन सकता, जब तक वहां आंतरिक सुरक्षा का प्रबंधन उच्च और कारगर न हो, हमें अपने आप को आर्थिक, बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनाना होगा। इसके साथ ही साथ संगठित अपराध, आतंकवाद, उग्रवाद और आंतरिक मामलों में विदेशी ताकतों के हस्तक्षेप को समाप्त करना पड़ेगा।


*श्री चन्द्र प्रकाश जोशी (चित्तौड़गढ़)ः वर्ष 2017-18 के लिए एनडीए सरकार ने अपना बजट पेश किया है उसमें गृह मंत्रालय की अनुदान की मांग का समर्थन करता हूँ, मैं समझता हूँ। माननीय वित्त मंत्री जी ने प्रधानमंत्री मोदी जी के कुशल नेतृत्व में देश के विकास के लिए देश के आम लोगों के लिए बहुत सारे कार्य किये हैं और किसी भी देश की आंतरिक सुरक्षा उस देश के विकास की प्रथम जरूरत होती है। इसके लिए गृह मंत्रालय आंतरिक सुरक्षा से संबंधित मामलों, केंद्र-राज्य संबंध, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, सीमा प्रबंधन, और आपदा प्रबंधन के लिए इसके अतिरिक्त, मंत्रालय केंद्र शासित प्रदेशों को अनुदान भी देती है। इस बार गृह मंत्रालय को 97,187 करोड़ रूपये आवंटित किया गया है जो कि वर्ष 2016-17 के संशोधित अनुमानों जो कि 92,170 करोड़ था से यह 5.4 प्रतिशत अधिक है। वर्ष 2017-18 के लिए पुलिस के लिए आवंटित 78,00 करोड़ रूपये की राशि है। यह मंत्रालय के कुल व्यय का सबसे बड़ा हिस्सा है एवं यह 80.3 प्रतिशत है और यह जरूरी भी है। भारत के संविधान के अंतर्गत, पुलिस और कानून व्यवस्था राज्य के विषय हैं। हालांकि केंद्रीय सरकार उग्रवाद से लड़ने के लिए राज्यों की मदद करती है। इसके अलावा, केंद्र सरकार सात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के लिए जिम्मेदार है। सीमा के बुनियादी ढांचे, खुफिया जानकारी एकत्र करना और पुलिस प्रशिक्षण भी केंद्र का कार्य है। इसके अलावा केंद्र सरकार पुलिस के आधुनिकीकरण में भी मदद करती है। मंत्रालय के बजट का लगभग 13.7 प्रतिशत अर्थात, संघ के प्रशासन के लिए प्रदेशों के ऋण अनुदान के लिए 13,357 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं। इसमें पांच संघ शामिल हैं विधानसभा के बिना (अंडमान और निकाबार द्वीप समुह, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और द्वीव, लक्षद्वीप) और दो केंद्र शासित प्रदेशों की विधायिकाओं (दिल्ली और पुडुचेरी) सहित। अन्य विविध मामलों को गृह मंत्रालय के व्यय के लिए 5,830 करोड़ रूपये आवंटित किया गया है। इसमें आपदा प्रबंधन शरणर्थियों के पुनर्वास और प्रशासनिक मामले शामिल हैं। कुल बजट का 7.6 प्रतिशत दिल्ली पुलिस को आवंटित किया गया है और 2.6 प्रतिशत पुलिस के आधुनिकीकरण से संबंधित योजनाओं के लिए है। पुलिस के आधुनिकीकरण के लिए आवंटन के संबंध में वर्ष 2017-18 में बजट आवंटन में वर्ष 2016-17 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 9.5 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी है। इंटेलिजेंस ब्यूरो के लिए 1.7 प्रतिशत आंवटित किया गया है। यह मंत्रालय सात केंद्रीय पुलिस बल के लिए जिम्मेदार है। (एक) केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल(सीआरपीएफ) जो आंतरिक सुरक्षा तथा कानून और व्यवस्था में सहायता करता है (दो) केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल(सीआईएसएफ) जो महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों (जैसे, हवाई अड्डे और सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम) की रक्षा करता है, (तीन) राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड(एनएसजी) जो एक विशेष आतंकवाद रोधी बल है, और (चार) चार सीमा सुरक्षा बल(बीएसफ), इंडो- तिब्बत सीमा पुलिस(आईटीबीपी), सशस्त्र सीमा बल(एसएसबी) और असम राइफल्स(एआर)। वर्ष 2017-18 के लिए, केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल को कुल पुलिस बजट का 32.5 प्रतिशत आवंटित किया गया है जोकि 17,868.5 करोड़ रूपये है, सीमा सुरक्षा बल को 28.4 प्रतिशत राशि दी गयी है जो 15,569 करोड़ रूपये है। सीमा संरचना और प्रबंधन के लिए 2017-18 में, 2,600 करोड़ रूपये का बजट निर्धारित किया गया है। ये 2016-17 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 37.9 प्रतिशत अधिक है। इसमें कार्यालय के निर्माण के लिए और केंद्रीय सशस्त्र बलों के लिए आवासीय भवन पुलिस बल और केंद्रीय पुलिस बल और केंद्रीय पुलिस संगठन, और अन्य अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान के लिए आवंटन भी शामिल है। वर्ष 2017-18 में ऐसी इमारतों के लिए, 4,008 करोड़ रूपये का बजट तय किया गया है। पुलिस के आधुनिकीकरण के लिए, केंद्र सरकार ने 2017-18 में चार योजनाओं के लिए आवंटन किया है। (एक) राज्य पुलिस बल योजना का आधुनिकीकरण; (दो) अपराध और अपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (सीसीटीएनएस) योजना; (तीन) सुरक्षा संबंधित व्यय (एसआरई) योजना; और (चार) विशेष वामपंथी क्षेत्रों के लिए इन्फास्ट्रक्चर स्कीम (एसआईएस)। कुल मिलाकर,वर्ष 2017-18 के बजट अनुमानों में पुलिस के आधुनिकीकरण से जुड़ी योजनाओं के लिए 2,022 करोड़ रूपये है। यह 9.5 प्रतिशत से कम है पिछले साल के लिए संशोधित अनुमान से, जो रू. 2,235 करोड़ था।

          इसके साथ ही मैं माननीय मंत्री जी को धन्यवाद देना चाहता हूँ कि मेरे संसदीय क्षेत्र में प्रतापगढ़ में महाराणा प्रताप बटालियन की स्थापना की जा रही है जिससे की आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के युवाओं को रोजगार मिलेगा और वहां के क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ेगी। इसके साथ ही मेरी मांग रहेगी की चित्तौढ़गढ़ एक ऐतिहासिक नगरी है और यहाँ साल भर अनेकों देशी विदेशी पर्यटक आते है और उनकी और नगर वासियों की सुरक्षा के लिए नगर में सीसीटीवी कैमरे लगाने का प्रस्ताव केंद्र के पास विचाराधीन हैं उसको शीघ्र ही स्वीकृत किया जाये।

          मेरा मानना है कि माननीय मंत्री जी द्वारा जो बजट पेश किया गया है वो देश की सुरक्षा को ध्यान में रखकर ही किया गया है और ये बजट दर्शाता है कि हमारी सरकार देश की सुरक्षा के प्रति कितनी गंभीर और संवेदनशील है।

श्री राजेन्द्र अग्रवाल (मेरठ): महोदय, आपने मुझे गृह मंत्रालय की अनुदान माँगो पर चर्चा करने के लिए समय दिया, इसके लिए मैं आपका आभार व्यक्त करता हूँ। जो कुछ भी वित्त मंत्रालय की सीमायें हैं और जो उसके अन्दर प्रायोरिटीज हो सकती हैं, उसका एक श्रेष्ठ बैलेंस करके जो कुछ माँगें आयी हैं, उसकी मैं ज्यादा चर्चा नहीं करना चाहता हूँ। मैं दो बातों का उल्लेख जरूर करना चाहता हूँ। एक तो बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर है, इसमें इस बार 2600 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो पिछले वर्ष के मुकाबले लगभग 38 प्रतिशत ज्यादा है। यह निश्चित रूप से अभिनन्दनीय है और यह सरकार की प्राथमिकता को अभिव्यक्त करता है। इसी प्रकार से जो केन्द्रीय पुलिस है, उसके बिल्डिंग प्रोजेक्ट्स के ऊपर इस बार 4,008 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो पिछले वर्ष के मुकाबले 34 प्रतिशत ज्यादा है, यानी पुलिस बल को सुविधायें प्राप्त हों, उनके आवास अच्छे हों, उनकी अन्य समस्याएँ समाप्त हों, यह कुल मिलाकर पुलिस की वर्किंग को प्रभावित करता है। पूरे देश के अन्दर जो आतंकवाद है या अन्य आन्तरिक सुरक्षा के विषय हैं, यह उनको ठीक प्रकार से हैन्डिल करने में मदद करता है।

          महोदय, मेरे सामने दो छोटी-छोटी खबरें मेरठ से सम्बन्धित हैं। एक खबर मार्च के प्रथम सप्ताह की है, जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के लगभग 20 जिले सिमी के केन्द्र बन चुके हैं, यानी उनकी घुसपैठ वहाँ पर बन चुकी है। स्लीपिंग मॉडय़ूल्स वहाँ पर हैं, इस बात का कई बार उल्लेख हो चुका है। इसी प्रकार से एक खबर मेरे सामने आज की है। मैंने दो बार इस विषय को लोक सभा के अन्दर उठाया है कि मेरठ के अन्दर आस-पास के प्रदेशों से उठाये गये वाहन काटे जाते हैं। मैंने चिन्हित करते हुए कहा कि इनके माध्यम से जरूर अन्तर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय स्तर के अन्तर्राज्यीय अपराध होते हैं, जो देश की आन्तरिक सुरक्षा के लिए खतरा होते हैं। इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। कल कार्रवाई हुई और कल उस सारे क्षेत्र को घेरकर के वहाँ पर जो सारे गोदाम बने हुए थे, उन पर कार्रवाई हुई है। दोनों बातों का उल्लेख मैंने इसीलिए किया है कि कल क्यों कार्रवाई हुई, 11 मार्च से पहले कार्रवाई क्यों नहीं हुई। ये सिमी के केन्द्र क्यों बने? हम जीरो टॉलरेंस की बात करते हैं, परन्तु मेरा निवेदन यह है कि जीरो टॉलरेंस यदि हम रखना चाहते हैं तो हमें अपराधों के सम्बन्ध में साप्रदायिक सोच से छुटकारा पाना पड़ेगा। यह उसकी पहली शर्त है। ये जो सिमी के केन्द्र बने हैं, ये इसीलिए बने हैं, क्योंकि हम कहीं न कहीं वोट बैंक की राजनीति से प्रभावित होकर फैंसले करते हैं। कल यदि उन गोदामों के खिलाफ कार्रवाई हुई है तो वह इसीलिए हो पायी है, क्योंकि प्रदेश के अन्दर वैसी सरकार आयी है, जो वोट बैंक की राजनीति से मुक्त है।

          मैं एक बात और कहना चाहता हूँ, समय कम है, मुझे पता है कि आप थोड़ी देर में घंटी बजा देंगे। आज आतंकवाद से पूरी दुनिया त्रस्त है, भारत आतंकवाद से विशेष रूप से त्रस्त है और आतंकवाद के प्रति सतर्क रहकर के देश की सुरक्षा करना गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी है। स्थानीय कानून-व्यवस्था के जो मामले होते हैं, वे तो प्रदेश सरकार से सम्बन्धित होते हैं। आतंकवाद के सम्बन्ध में, हमारे माननीय गृह मंत्री जी आ गये हैं, उन्होंने हिन्दुस्तान के बारे में एक बात कही थी, मैं उसे कोट करना चाहता हूँ  "कि दुनिया के अन्दर इस्लाम के 72 फिरके हैं और केवल हिन्दुस्तान ऐसा देश है, जिसमें 72 के 72 फिरके रहते हैं, उन्हें मानने वाले लोग रहते हैं। दुनिया का कोई भी अन्य इस्लामी देश भी इस गौरव को प्राप्त करने की स्थिति में नहीं है।" यह हमारी विशेषता है और इसीलिए दुनिया के अंदर जो आतंकवाद हो रहा है, वह ज़िहाद के रूप में हो रहा है, क़ुफ्र को समाप्त करने के रूप में हो रहा है, यदि कहीं से उसके लिए आवाज़ उठ सकती है तो वह हिन्दुस्तान से उठ सकती है।

          मैं मानता हूँ कि सीधे-सीधे यह शायद डिमांड्स फॉर ग्रांट्स से संबंधित विषय नहीं है, परन्तु जिस प्रकार से हम नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ते हैं तो प्रशासनिक उपायों के अलावा कुछ सामाजिक उपाय भी करते हैं, समाज को कुछ सेंसिटाइज़ भी करते हैं। उस नाते मेरा यह अनुरोध है कि गृह मंत्रालय या सरकार या यह सदन इस बात की चिंता करे कि किस प्रकार से इन चीज़ों को ऐड्रेस किया जाए। मैं चाहूंगा कि क्या वास्तव में यह सदन हिम्मत कर सकता है, मैं यह शब्द नहीं कहना चाहूंगा, पर क्या इस सदन में ऐसा हो सकता है कि क़ुफ्र पर चर्चा हो, ज़िहाद पर चर्चा हो? अगर कोई आतंकवादी घटना होती है तो कुछ लोग एक बात कहते हैं और दूसरे लोग दूसरी बात कहते हैं। वास्तविकता क्या है? उसके आधार पर हिन्दुस्तान लीड ले सकता है, हिन्दुस्तान एक वातावरण बना सकता है। इससे पूरी दुनिया के अंदर आतंकवाद को समाप्त करने की प्रक्रिया भी शुरू हो सकती है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर, वैश्विक स्तर पर यह हमारी जिम्मेदारी है। यह सर्वोच्च सदन है, इसलिए इस विषय को मैंने यहाँ उठाया है।

          मैं पुनः माननीय गृह मंत्री जी का, माननीय वित्त मंत्री जी का अभिनंदन करते हुए इन अनुदान माँगों का समर्थन करता हूँ।

निम्नलिखित में से कौन नक्सलवादी विद्रोह का नेता था? - nimnalikhit mein se kaun naksalavaadee vidroh ka neta tha?

HON. CHAIRPERSON : Before I call next speaker, I allow Shri Ananthkumar to present the Report of the Business Advisory Committee.


17.50 hours

BUSINESS ADVISORY COMMITTEE

          41st Report

निम्नलिखित में से कौन नक्सलवादी विद्रोह का नेता था? - nimnalikhit mein se kaun naksalavaadee vidroh ka neta tha?


17.51 hours

DEMANDS FOR GRANTS(GENERAL), 2017-18

Ministry of Home Affairs …Contd.

KUNWAR BHARATENDRA SINGH (BIJNOR): I thank you for allowing me to speak on this very important topic of Demands for Grants on the Home Affairs Budget. I would like to commend and congratulate the hon. Minister for increasing this Budget by 11.24 per cent, and also, for undertaking the 5th longest land border in the world of 4,096 kilometers. Then, now we will be ceiling this border completely in Bangladesh.

Sir, I will not indulge anymore in number crunching as my esteemed colleagues have already done that. I would immediately move to the topic which has so far not been discussed by anybody.

 We have given a lot of budget for the operational part in our Central Armed Police Forces in terms of equipment, night vision and all that, but nobody has spoken about the logistical part.

In the logistical part, the welfare part is of utmost importance. The infrastructure of medical facilities of our paramilitary forces is very weak. If a person is shot in J&K, for example, he is completely dependent on the Army or civil hospital. If he is shot in the forest of Jharkhand or any other person, a lot of CRPF personnel are being shot there. We do not have a helicopter dedicated to this job of transporting them here. We have to rely on the Army for this. If we compare this to the Armed Forces, they have an R&R in Delhi, they have an AFMC which trains their personnel, they have five command hospitals and they have the base hospitals and field hospitals. This is a major problem. We are told that CAPFIMS, Central Armed Police Forces Institute for Medical Sciences is being built in Maidangari, Delhi, but it is really lagging. It has been eight years, I think, not much has been done there.

Similarly, the condition of housing is extremely poor of these people who have more casualties than our Army does. There is cantonment’s availability for the Armed Forces, for the Army and there is a term called ‘Separated Family Accommodation’ which means that the families of the serving personnel are accommodated in the cities of their choice so that the children can study, but there is no such arrangement for any of our Armed Police Forces is there.

          Similarly, regarding ration, we saw a very distressing clip on the social media of a BSF personnel in Jammu & Kashmir showing the Dal. But if we look deeper into this problem, there is no dedicated army supply and there is no dedicated body. So, obviously, the quality and the timely supply of procurements is always affected. There are battalions of CRPF and other forces which have to procure the rashions locally. This makes an adhoc arrangement with no quality control and no timely supply and, therefore, it leaves our personnel very disgruntled and upset as we saw on that clip.

          Similarly, we need much more personnel employed because there is no leave reserve. We are employed to threadbare capacity, adequate leave reserves are required in battalions. This causes frustration. We also saw another clip of a person shooting his colleagues because one person got leave sanctioned but the other did not.

I would finally like to comment on the Gallantry service. We have a Veer Chakrain the Army, but we have no such Gallantry Award in the CAPF.

          Finally, I think it is a much workable option if we just attach the Central Armed Paramilitary Forces to the Defence Medical Corps and increase their budget. We can, at least, accommodate them in times of injury, for providing accommodation to them and their families. Thank you.


*SHRI NISHIKANT DUBEY (GODDA):   Beginning with the spike in budgetary allocation to the Ministry of Home Affairs (MHA) in 2009-10 following the Mumbai terror attacks of November 2008, the MHA has been witnessing a steady increase in its allocations over the years. In the last three years too, allocations have increased from Rs. 61,401.78 crore in 2014-15 to 65,651.10 crore in 2015-16, and to 73,406.37 crore in 2016-17. For the upcoming financial year 2017-18 as well, this upward trend has persisted with allocations reaching Rs. 83,823 crore, a hike of around 11.5 per cent over that of the previous year.

          Of the total allocations to the MHA, allocation made under the head ‘Police’ pertains to matters of internal security such as the Central Armed Police Forces (CAPFs), Central Police Organizations (CPOs), border infrastructure, intelligence, disaster and emergency management, etc.  The increased budgetary allocations under the ‘Police’ head over the years reflect the growing concerns over various internal security challenges plaguing the country as well as a firm intent to tackle them. The emphasis has been to prioritize these threats and challenges and deal with them in a concerted and sustained manner through security interventions and development activities.

          One of the serious internal security threats that the country has been grappling with for more than a decade is the left wing extremism (LWE).  At present, 106 districts in 10 states are affected by LWE. Although the primary responsibility of fighting LWE lies with the concerned states, the Union government assists them by providing battalions of central armed police forces to counter the subversive activities of left wing extremists and maintain public order. Given that the Central Reserve Police Force (CRPF) is the primary force deployed in the LWE-affected states, the Government of India had, in 2009, sanctioned funds for raising 39 additional battalions of the CRPF. As a result, the CRPF has been receiving the highest allocations in successive budgets since then. In the previous fiscal year, the force received Rs. 16,228.18 crore, which has been increased by another 1635.35 crore to Rs. 17,868.53 crore for 2017-18. Of the sanctioned 39 battalions, 26 have been raised till 2016 and the remainder is to be raised by 2018-19.

          Another way in which the Union government assists the LWE affected state governments is by providing funds for capacity building through various security related expenditure (SRE) schemes. Under these schemes, the Union government reimburses the expenditure incurred by LWE-affected states in training and operational requirements of the security forces, insurance of police personnel, ex gratia payments to the families of civilian or security forces personnel killed in LWE violence, compensation to surrendered left wing extremist cadres under the surrender and rehabilitation policy of the respective states, etc.  In the last two financial years, i.e. 2015-16 and 2016-17 (until 15 November 2016), funds released to LWE states under these schemes were Rs. 258.65 crore and 111.49 crore respectively. For the upcoming fiscal year, the budgetary allocation under SRE has been pegged at Rs. 1,222 crore, an increase of Rs. 380 crore from the previous year. Since SRE also comprises expenditures incurred by Jammu and Kashmir and insurgency affected states in the North East, the rise of almost 45 per cent under this head could be because of the deteriorating security situation and the expectation of a consequent rise in spending under SRE in these states.

          Border management is the second area that has witnessed a substantial increase in budgetary allocations for the fiscal year 2017-18.  The need to effectively secure the country’s international borders against infiltration, trafficking and irregular crossings has become even more pressing following a series of successful infiltration attempts by Pakistani terrorists through the India-Pakistan international border and subsequent attacks on strategic installations in the past couple of years. These attacks have raised serious concerns about the effectiveness of the present border management system in thwarting such border breaches and have compelled the Union Government to undertake measures to fortify the India-Pakistan and India-Bangladesh borders in particular.  Towards this end, the Union Government had decided to enhance surveillance and detection by building ditch cum fence barriers, putting up laser walls along riverine stretches, employing sensors, cameras and tunnel detection gadgets, building roads and other infrastructures along the borders. The implementation of the comprehensive integrated border management systems (CIBMS) along the India-Pakistan border on a pilot basis is a step in this direction. Accordingly, Rs. 2,600 crore has been allocated for border infrastructure, of which 2,355 crore is for capital expenditure i.e., spending on fences, electronic surveillance gadgets, etc. This amount, however, is lower than the Rs. 2,490 crore provisioned for 2016-17.  One of the reasons for the lower allocation could be the under or non-utilization of funds due to various reasons, a fact revealed by the revised budget of 2016-17, where the expenditure under capital outlay has been reduced to Rs. 1,722.33 crore.

          Similarly, budgetary allocations for the border guarding forces have been substantially increased to improve their strength and efficiency. Allocations under this sub-head are made for raising additional battalions, training, procurement of weapons and ammunition, administrative requirements, etc. The Border Security Force (BSF), which has responsibility for the India-Pakistan and India-Bangladesh borders, received the highest amount of Rs. 15,569.11 crore, an increase of Rs. 917 crores from the previous year.  Furthermore, the Land Port Authority of India (LPAI), entrusted with the mandate to build and manage integrated check posts (ICPs), received Rs. 300 crore for 2017-18, an increase of 241 per cent from the previous year. This highlights the government’s commitment towards greater regional integration by ensuring the smooth and efficient cross border movement of people and goods. Likewise, the Border Area Development Programme (BADP), a scheme to meet the infrastructural requirements of the border people, received an enhanced allocation of Rs. 1100 crore, an increase of 11 per cent from 2016-17.

          The third segment which received a substantial increase in allocations is police modernization and infrastructure. Under police modernization, Rs. 800 crore has been allocated for modernization of the state police forces. This sum includes grants by the Union Government to states to strengthen police infrastructure in terms of training, weaponry, mobility and communication, and the establishment and upkeep of the crime ad criminal network tracking system (CCTNS).  Building projects, both residential and office, for CAPFs and COPs received Rs. 4008.06 crore, indicating the seriousness of the Union Government to improve the living and working conditions of these police organizations.

          The Intelligence Bureau (IB), which in recent years has been augmenting its strength, has also received an allocation of Rs. 1,577 crore, an increase of 11 per cent from the previous year. Most of the expenditure, however, will be revenue outlay indicating an increase in spending on salaries and perks of personnel. In the past, the IB was functioning at a reduced strength with a shortfall of around 2000 agents, but in the aftermath of the Mumbai terror attack, calls were made to strengthen the IB in a comprehensive manner through increased recruitments, among other things. The IB has been recruiting personnel since 2009, but this is yet to reflect accurately in the manpower strength since full induction of operatives would only happen after the completion of their training.

Last but not the least, Delhi Police, the National Emergency Response System for crimes against women and national disaster schemes have also received increased budgetary allocations for the fiscal year 2017-18.  The enhanced budgetary allocations for the MHA since 2009 reflect the efforts of the successive Union Governments to comprehensively overhaul the internal security set up of the country through a series of measures, such as capacity building of security and law enforcement organizations through strength augmentation, improved training, modern weaponry and other infrastructure, technical upgradation; enhancing intelligence gathering, analysis and dissemination; infrastructure development in violence affected areas as well as border regions; improving responses to natural disaster and other emergencies; etc. The budgetary allocation for the fiscal year 2017-18 is a continuation of this process. Though the Union Government has been making substantial budget allocations to the MHA, the Ministry’s efforts to bring about the desired reforms have, however, shown mixed results so far. While the revenue outlays have been increasing, the capital outlays have seen troughs and crests in the last four years. This indicates that while the concerned organizations have been successful in increasing manpower, they have been unable to build up the commensurate infrastructure required for capacity building such as training schools and laboratories, and procuring additional vehicles and boats, arms and ammunitions, computers and surveillance equipment, etc.  Therefore, efforts must be made to fully utilize the budgetary outlays provided to the MHA in order to achieve a comprehensive reform of the internal security system of the country.


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श्री दुष्यंत चौटाला (हिसार) : सभापति महोदय, आपने मुझे मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स की डिमांड्स फॉर ग्रांट्स पर बोलने का मौका दिया।

          आज एक बहुत अहम विषय है कि पैरा मिलिट्री इस देश के अंदर मिलिट्री फोर्सेज़ और पुलिस के बीच का रोल प्ले करती हैं। इस रोल के अंदर पीस कीपिंग एक बहुत बड़ा हिस्सा है। जब हम कहीं न कहीं अपने पैरा मिलिट्री फोर्स के अफसरों की बात करते हैं तो जो बेसिक फैसिलिटी है, वे इसमें लैक करते हैं, चाहे मॉडर्नाइजेशन ऑफ एक्विपमेंट्स की बात हो, चाहे जम्मू व कश्मीर जैसे रीजन के अंदर, जहां हमारे जवानों को आज भी टेम्परेरी स्ट्रक्चर्स हैं, जिनमें उन्हें सोने की दिक्कत होती है। आज जब सरकार की ग्रांट्स की बात आती है तो हमें बजट का अहम हिस्सा डेवलपमेंट ऑफ इंफ्रास्ट्रक्चर्स हैं, और मॉडर्नाइजेशन पर एक्सपेंड करना चाहिए। पिछले दिनों हमारी सरकार ने भी देखा कि हमारे एक हवलदार ने खाने की क्वालिटी का मुद्दा उठाया, उस गंभीर मुद्दे को भी ध्यान में रखना चाहिए। आज देश के जवान ऐसी टफ कंडीशंस में हमारी सुरक्षा में लगे हुए हैं, उन्हें मूलभूत सुविधाओं से कहीं वंचित न रहना पड़े, आज हम कम्पेयर करें तो इस देश के अंदर सबसे अधिक अगर किसी का कैजुअलटी रेट है तो वह हमारे पैरा मिलिट्री जवानों का है। हमने पिछले दिनों माओइस्ट अफेक्टेड एरियाज़ में 13 जवानों को खो दिया। इससे पहले जब जम्मू कश्मीर में वारदात हुई तो सबसे ज्यादा इन्जरीज़ हमारे पैरा मिलिट्री फोर्स के जवानों की हुईं।

          मैं एक आग्रह करूंगा कि अगर हम आर्मी की तरह पैरा मिलिट्री के अंदर भी रेजीमेंट स्पेसिफिक एरिया बनाएं, तो कहीं न कहीं हमारे जवानों के लिए एक सोर्स ऑफ मोटिवेशन होगा। आज हम देखते हैं कि सिख इंफेंट्री रेजीमेंट है। हमारे जनरल साहब तो जानते हैं, सबसे ज्यादा लड़ाई अगर किसी ने लड़ी तो वह गोरखाओं ने लड़ी। आज जाट रेजीमेंट, मराठा रेजीमेंट इत्यादि हैं। इसी तरीके से अगर पैरा मिलिट्री फोर्स के अंदर भी हम रीजन स्पेसिफिक जवान को लेंगे तो कहीं न कही वहां मोटिवेशन बढ़ेगी और लोकल समस्याओं को वे डील कर पाएंगे।

          आज एक बहुत बड़ी समस्या मिलती है कि आर्मी की जगह‑जगह कैंटीन है, मगर हमारे पैरा मिलिट्री के जो रिटायर्ड जवान हैं, वे इन बेसिक फेसिलिटीज़ से वंचित रहते हैं। पैरा मिलिट्री के रीजन में, जैसे बी.एस.एफ. हिसार में है तो और जितने पैरा मिलिट्री फोर्स के जवान हैं, उन्हें भी इन सुविधाओं का फायदा जरूर मिलना चाहिए।

          जब हम होम अफेयर्स की बात करते हैं तो पिछले दिनों हमने जंतर‑मंतर पर धरना दिया, धरना समाप्त होने के बाद जब लोग पीसफुली जा रहे थे तो हमारे पार्लियामेंट स्ट्रीट के एक ए.सी.पी. …*  ने धरना समाप्त होने के आधे घंटे बाद वहां खड़े व्हिकल्स के शीशे टोड़ने का काम किया।

HON. CHAIRPERSON : The name will not go on record.

श्री दुष्यंत चौटाला :मैं गृह मंत्री जी से आग्रह करूंगा कि वे इसकी इंक्वायरी करवाये, क्योंकि जब पीसफुल प्रोटेस्ट के बाद लोग डिस्बर्श हो रहे हैं, तो उन पर पुलिस अधिकारी को भड़ास निकालने का क्या अधिकार है।

          अंत में, मैं एक और बात कहना चाहूंगा कि डिज़ास्टर मैनेजमेंट एक बहुत बड़ा हिस्सा है। मैं आपसे निरंतर पत्र के माध्यम से भी मांग कर चुका हूं। हरियाणा प्रदेश कांगड़ा बेल्ट के बॉटम ऐंंड पर आता है। अगर कांगड़ा में अर्थक्वेक आएगा, तो पंजाब के बाद सबसे बड़ा इफैक्टेड एरिया अगर कोई होगा तो वह हरियाणा प्रदेश होगा। मैं यह मांग करता हूं कि हरियाणा प्रदेश में भी एन.डी.आर.एफ. की एक रेजीमेंट स्थापित किया जाए।


*DR. THOKCHOM MEINYA (INNER MANIPUR):  The Ministry of Home Affairs is responsible for matters concerning internal security, centre-state relations, central armed police forces, border management and disaster management. In addition, the Ministry also makes certain grants to the union territories.

          Due to the Union’s mandate under Article 355 of the Constitution to ‘protect every state against external aggression and internal disturbance and to ensure that the Government of every state is carried on in accordance with the provisions of the Constitution’, the Ministry is supposed to monitor the internal security situation, issue appropriate advisories, share intelligence inputs, extend manpower and financial support, guidance and expertise to the State Governments for maintenance of security, peace and harmony.

          If we overview the fund allocation, the Ministry of Home Affairs has been allocated Rs. 97,187 crore in Union Budget 2017-18. This is a small increase of 5.4% over the revised estimates in 2016-17, which was Rs. 92,170 crore. Further, this is 9.7% higher than the budget allocation of last year, which was Rs. 88,547 Crore.  The budget for the Ministry of Home Affairs constitutes 4.5% of the total expenditure budget of the Union Government in 2017-18.

          Of the total budget estimates for 2017-18, 80.3% expenditure is on police; 13.7% is on grants made to union territories (UTs) and 6% is on miscellaneous items such as disaster management, rehabilitation of refugees and migrants, census and Cabinet.

          For Police, in 2017-18 Budget, Rs. 78,000 Crore has been allocated towards police. This is the largest expenditure item for the Ministry as it constitutes 80.3% of the ministry’s total budget.  Budget estimates for police has increased by 6.4% from revised estimates for 2016-17, which was Rs. 73,328 Crore.

          Towards Grants and Loans to Union Territories, around 13.7% of the Ministry’s budget, i.e. Rs. 13,357 Crore has been allocated for grants and loans for the administration of union territories. The 2017-18 budget estimates for grants and loans to union territories has seen a marginal increase of 0.5% from revised estimates for 2016-17, which was Rs. 13,350 Crore.

          The other miscellaneous expenditure items of the Ministry of Home Affairs have been allocated Rs. 5,830 Crore.  This includes subjects such as disaster management, rehabilitation of refugees and migrants, and administrative matters (relating to the census, the secretariat and Cabinet). This constitutes 19.2% of the Ministry’s total budget for 2017-18.

          Regarding issues in Border Infrastructure and Building Projects for Central Police, in 2016-17, the budget estimates for border infrastructure and management was Rs. 2699 crore. This was reduced by 28.5% to Rs. 1929 crore at the revised estimates stage. The Standing Committee observed that the Ministry was unable to spend the reduced allocation at the revised estimates stage which was an indicator of underperformance.

          Building projects include allocations for construction of office and residential buildings for the central armed police forces and central police organizations, and other intelligence, research and training institutes. For 2017-18, Rs. 4,008 crore has been budgeted towards such building projects. This is around 34% higher than the revised estimates for 2016-17, which was Rs. 2992 crore.

          However, the Standing Committee had noted that there has been an underutilization of funds in relation to various plan schemes.  In particular, it highlighted the underutilization in schemes related to infrastructure for the central armed police forces and border management.

          For 2017-18, the central government has made allocations towards four schemes related to modernization of police. These include Modernization of State Police Forces scheme; the Crime and Criminal Tracking Network and Systems (CCTNS) scheme; Security related expenditure (SRE) scheme; and Special Infrastructure scheme (SIS) for Left Wing Areas.         Overall, the 2017-18 budget estimates for the schemes related to modernization of police is Rs. 2,022 crore. This is 9.5% lesser than the revised estimates for last year, which was Rs. 2,235 crore.

          The major items covered under the MSPF scheme include mobility, weapons, equipment, training infrastructure, computerization and forensic science and infrastructure development.  In 2016-17, Rs. 522 crore was released to the 29 states under the MSPF scheme.  State police forces suffer from a shortage of vehicles. As a result, this has reduced their response time and efficiency.

          Audit reports of the Comptroller and Auditor General (CAG) had observed that several of the new vehicles procured had replaced old ones, or had been diverted towards escorting of VIPs.  Some vehicles remained unused due to a shortage of drivers. As of January 2015, state forces had a total of 1,63,946 vehicles.  This was 30.5% lesser than the required stock of vehicles (2,35,339 vehicles).

          The NDRF is a specialized force that is responsible for disaster response and relief. For 2017-18, the budget estimates for the NDRF is Rs. 650 crore. This is marginally higher than the revised estimates of Rs. 647 crore for 2016-17.  In the past, there has been a reduction of allocated funds at the stage of revised expenditure due to delays in development of infrastructure of various battalions of the NDRF. In this regard, the Standing Committee had recommended that procedural complexities in relation to infrastructure development of the NDRF battalions should be minimized. This view was seconded by the CAG.

          The Disaster Management Act, 2005 assigns the general superintendence, direction and control of the NDRF to the NDMA.  However, currently the Ministry of Home Affairs is responsible for its deployment and other administrative matters. This causes a lack of clarity over the supervision of the NDRF.

National Disaster Management Authority (NDMA) is a planning and policy making body created under the Disaster Management Act, 2005.  As per the 2005 Act, the NDMA is mandated to make recommendations for the provision of funds for mitigation and relief and grant of loans to persons affected by disasters. However, the Standing Committee has observed that the NDMA has failed to fulfill its mandate of recommending the provision of funds towards disaster management.

          As on February 2014, of the 10 projects which were recommended to be taken up by the NDMA during the 11th Five Year Plan (2007-2012), four were yet to be approved. Of the remaining five projects which were approved, one project, i.e. micro-zonation of major cities, has been completed. The remaining four are under various stages of implementation.

          Hence, I oppose the Demands for Grants under the control of the Ministry of Home Affairs.


डॉ. संजय जायसवाल (पश्चिम चम्पारण) :  सभापति महोदय, आपने मुझे गृह मंत्रालय के नियंत्रणाधीन अनुदानों की मांगों पर बोलने का अवसर दिया, आपको बहुत‑बहुत धन्यवाद।

          मैं माननीय गृह मंत्री जी को बहुत‑बहुत बधाई और धन्यवाद देता हूं। इनके कार्यकाल में जो काम हो रहा है, वह अतुलनीय है। मेरा क्षेत्र पश्चिम चंपारण खुद उग्रवाद प्रभावित जिला है। विगत तीन वर्षों में वहां एक भी घटना नहीं घटी है, उसके लिए मैं गृह मंत्रालय को बहुत‑बहुत धन्यवाद और साधुवाद देता हूं, परंतु एक जगह ऐसी जरूर है, जहां पैसे का बहुत ज्यादा दुरूपयोग हो रहा है, वह बी.ए.डी.पी. है। इसके माध्यम से गृह मंत्रालय पूरी की पूरी राशि स्टेट को दे देता है, लेकिन गृह मंत्रालय के पास ऐसी कोई मॉनिटरिंग एजेंसी नहीं है, जो यह देख सके कि पैसे का उपयोग हो रहा है या दुरूपयोग हो रहा है। मेरे इलाके में बी.ए.डी.पी. के माध्यम से दो या तीन किलोमीटर की सड़क बनती है और तीन महीने में वह पूरी तरह से टूट जाती है। हम लोगों को दिखाया जाता है कि यह गृह मंत्रालय की सड़क है, जो तीन महीने में पूरी तरह उजड़ गई।

18.00 hours

          मेरा माननीय मंत्री जी से अनुरोध होगा कि एक तो इसकी मानिटरिंग एजेंसी केन्द्र से जरूर होनी चाहिए, ताकि अगर कोई शिकायत आए, तो उसकी जांच हो। उसके शिलान्यास का अवसर सांसदों को जरूर मिलना चाहिए। बीएडीपी के सारे इलाके में जो भी सांसद आएं, उनको अवसर मिलना चाहिए। जो भी योजना बनती है, तो पंचायतों को कहा जाता है कि उनकी पसंद से हो और डीएम की पसंद से हो। रक्सौल इलाके में हमारे इंडो-नेपाल बार्डर पर आरओबी नहीं बनने के चलते 16 घंटे वह बंद रहता है, बिहार सरकार उसकी एनओसी नहीं दे रही है। वहां हम बीएडीपी की राशि नहीं दे सकते हैं। बीएडीपी की राशि छोटी-छोटी ऐसी जगहों पर मिलती है, जहां पर उसकी कोई उपयोगिता नहीं है। मेरा माननीय गृह मंत्री जी से अनुरोध होगा कि जो भी फाइनल हो, उसमें सांसदों का भी सिग्नेचर डीएम के साथ लिया कि जो बीएडीपी की सड़कों का चुनाव या जो भी कार्यक्रम का चुनाव होता है और उसका शिलान्यास भी सांसदों से कराया जाए। कोई न कोई मैकेनिज्म जरूर होना चाहिए कि जिससे उस राशि के लिए कैग से शिकायत नहीं हो, बल्कि गृह मंत्रालय खुद जांच कर ले कि उसका उपयोग सही हुआ है या नहीं।

          मुझे बोलने का अवसर देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।                                                                           

HON. CHAIRPERSON : The time of the House is extended till the Demands for Grants of the Ministry of Home Affairs are completed.

*श्री सुनील कुमार सिंह (चतरा)ःगृह मंत्रालय के नियंत्रणाधीन अनुदानों की मांगो वर्ष 2017-18 पर में अपनी बात रखना चाहता हूँ। इस साल बजट में गृह मंत्रालय के लिए 78,000 करोड़ रूपये आवंटित किये गये है। यह आवंटन गत वर्ष 2016-17 के आवंटन से 6.37 प्रतिशत अधिक है। वर्ष 2016-17 में गृह मंत्रालय को 73,328 करोड़ का आबंटन किया गया था। बजट में सात अर्धसैनिक बलों के लिए 54,985.11 करोड़ रूपये आवंटित किया गया है। इन बलों में से सीआरपीएफ को सबसे ज्यादा 17,868.53 करोड़ रूपये दिये गये हैं। इसके लिए माननीय वित्त मंत्री जी को धन्यवाद देना चाहता हूँ। माननीय गृह मंत्री जी को भी धन्यवाद देना चाहता हूँ कि सीआरपीएफ को अधिक बजट दिया गया है जिसे आतंरिक सुरक्षा, माओवादियों तथा आतंकवादियों के खिलाफ अभियान में शामिल किया जाता है। साथ ही बजट में दिल्ली पुलिस को 6378.18 करोड़ रूपये दिये गये हैं। महिलाओं की सुरक्षा का सरकार ने विशेष ध्यान रखा है और इस पर अधिक राशि का प्रावधान किया गया है। निर्भया फण्ड में पिछले वर्ष की 3.40 करोड़ रूपए की राशि को बढ़ाकर 28.90 करोड़ रूपये कर दिया गया है।

वर्तमान में साईबर आतंकवाद और साईबर क्राईम की घटनाओं में बहुत बढ़ोतरी हो रही है। लेकिन इनसे निपटने के लिए उतने प्रभावी उपाय नहीं है। इसलिए ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाये जाने की आवश्यकता है और साईबर थानों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। साथ ही केंद्रीय बजट में इस मद में राशि बढ़ाने की आवश्यकता है।

अण्डमान- निकोबार एवं लक्षद्वीळप केंद्र शासित प्रदेश है। इन प्रदेशों से भारत का समुद्र में बहुत ही अच्छा स्वामित्व बना हुआ है। इन प्रदेशों की सुरक्षा का निगरानी तंत्र मजबूत किया जाना चाहिए। यहां पर मूलभूत सूविधाओं का अभाव है जिसमें पीने का पानी और उच्च मेडिकल सुविधाएं मुख्य है जिन्हें दूर किया जाना चाहिए। साथ ही यहां पर आवागमन की सुविधाओं का भी अभाव है। लक्षद्वीळप में पर्यटन की बहुत संभावनाऐंं है। इसलिए अवागमन की सुविधाओं को बढ़ाया जाना चाहिए।

मैं माननीय मंत्री जी का ध्यान आकर्षित करते हुए कहना चाहता हूं कि मंत्रालय ने वामपंथी उग्रवाद वाले राज्यों में चल रही विशेष अवसंरचना योजना को अन्य योजनाओं के साथ मिलाकर एक समग्र योजना बना दिया है। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण इन योजनाओं का दायित्व अब राज्य सरकारों पर होगा। मेरा आग्रह है कि सरकार ऐसी योजनाओं, जिनका राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, को राज्यों को सौंपते समय सावधानी बरतें। किसी केंद्रीय प्रायोजित योजना को राज्यों को अंतरित किया भी जाता है तो केंद्र सरकार उन योजनाओं के कार्यान्वयन की प्रगति पर ठोस निगरानी की प्रणाली बनाएं।

वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों (एलडब्ल्यूई में सुरक्षा संबंधी उपायों में आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग, पुलिस आधुनिकीकरण, पुलिस और प्रशासनिक भवन निर्माण, सड़कों के सुधार हेतु सड़क आवश्यक योजना जैसी विकासात्मक योजनाओं का क्रियान्वयन, मोबाईल टावर्स स्थापित करने हेतु परियोजनाएं, रेल संपर्क का सुधार, शिक्षा, स्वास्थ्य अवसंरचना इत्यादि पर विशेष ध्यान देते हुए इनके लिए अलग से कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए। माननीय मंत्री जी को धन्यवाद देना चाहता हूँ कि सरकार ने वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों में 250 मजबूत थानों के निर्माण सहित विशेष अवसंरचना स्कीम (एसआईएस) चालू की है। सरकार की इस योजना के तहत सुदूर क्षेत्रों में सुरक्षित शिविर स्थल और हेलीपेड बनाना, थानों की सुरक्षा बढ़ाना, जेलो का सुदृढ़ीकरण और वामपंथी उग्रवाद से मुकाबला करने के लिए राज्यों के विशेष बलों की प्रशिक्षण अवंसरचना, आवासीय अवसंरचना, हथियारों एवं वाहनों की आवश्यकताओं को पूरा करना हैं। इस स्कीम से पुलिस प्रशासन को वामपंथी उग्रवाद की समस्या से अधिक कारगर ढ़ंग से निपटने तथा राज्यों से वामपंथी उग्रवाद को जड़ से समाप्त करने में सहायता मिलेगी। मैं माननीय मंत्रीजी का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ कि झारखण्ड राज्य में वामपंथी उग्रवाद की समस्या बहुत अधिक है। राज्य के अधिकतर जिलों जिसमें विशेष रूप से मेरे संसदीय क्षेत्र का चतरा, लातेहार एवं पलामू जिला घोर वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र है। इसलिए मेरा आग्रह है कि सरकार ने जो 250 थानों का निर्माण करने का लक्ष्य रखा है, उसमें कम से कम दो-दो थानों चतरा, लातेहार एवं पलामू जिलों में निर्मित किये जायें। सरकार ने वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों में सुरक्षा संबंधित व्यय के लिए 231 करोड़ रूपये दिये है। उससे वामपंथी उग्रवाद से उत्पन्न हिंसा में मारे गये नागरिकों/ सुरक्षा कर्मियों के परिजनों को अनुग्रह राशि का भुगतान, पुलिस का बीमा प्रीमियम, प्रशिक्षण, एसपीओ को मानदेय एवं प्रचार सामग्री पर व्यय किया जायेगा। इस राशि का भी अधिकतम खर्च चतरा, लातेहार एवं पलामू जैसे उग्रवाद प्रभावित जिलों में किया जाना चाहिए। झारखण्ड सरकार वामपंथी उग्रवाद के प्रभाव को समाप्त करने के लिए काफी अच्छा काम कर रही है और इसमें शीघ्र सफल होगी।

मैं सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए कहना चाहता हूँ कि अर्धसैनिक बलों के अधिकारियों एवं जवानों की प्रतिनियुक्तियाँ विभिन्न राज्यों में होती है। लेकिन यह देखने में आया है कि अलग- अलग राज्यों में वेतन एवं भत्तों को लेकर विसंगतियां है। इसलिए मेरा सूझाव है कि सभी प्रतिनियुक्त अधिकारियों एवं कर्मचारियों को प्रत्येक राज्य में समान वेतन एवं भत्ते दिये जाने चाहिए। इन विसंगतियों को दूर किया जाना चाहिए। अर्धसैनिक बलों की सेवाओं में पुलिस सेवा के अधिकारी एवं कर्मचारियों को प्रतिनियुक्ति पर रखा जाता है। जिससे उनके मूल कैडर के लोगों को समय पर पदोन्नति नहीं मिल पाती है। अतः मेरा सुझाव है कि पुलिस सेवा अधिकारियों को अर्धसैनिक बलों में प्रतिनियुक्तियों को बन्द किया जाना चाहिए। इसके अलावा केंद्रीय बलों एवं पुलिस के कार्य संचालन की दृष्टि से एक संयुक्त संमन्वय समिति गठित की जानी चाहिए क्योंकि ऐसा देखा गया है कि पुलिस एवं केंद्रीय बलों में आपस में समन्वय की कमी है।

होम गार्ड की वर्तमान में सभी राज्यों में बहुत ही दयनीय स्थिति है। होम गार्डस राज्यों में पुलिस बल की सहायता के लिए प्रयोग किए जाते हैं। राज्यों को इसके लिए केंद्रीय सहायता दी जाती है। परन्तु होम गार्ड के लिए वेतन बहुत कम है। अलग- अलग राज्यों में असमान है और समय पर भुगतान नहीं होता है। इसलिए मेरा सुझाव है कि केंद्र सरकार राज्यों को होम गार्ड के लिए एक गाईड लाइन जारी करे। साथ ही इस मद में केंद्रीय बजट को भी बढ़ाया जाना चाहिए। वर्तमान में ट्रैफिक कण्ट्रोल की जिम्मेदारी पुलिस की है। परन्तु यातायात के नियम बनाने का कार्य परिवहन मंत्रालय के जिम्मे है। इसलिए गृह मंत्रालय एवं परिवहन मंत्रालय को यातायात से संबंधित कार्यों को मिलकर करना चाहिए। साथ ही जिस प्रकार दिल्ली में इंटेलीजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (आईटीएमएस जैसी ट्रैफिक पुलिस की योजना है, इसे सभी राज्यों में लागू किया जाना चाहिए।

मैं माननीय गृह मंत्री जी का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ कि देश के जो वामपंथी उग्रवाद प्रभावित 82 जिले हैं, उनमें विकास कार्यों को चलाकर उग्रवाद की समस्या को नियंत्रित एवं समाप्त करने के लिए एक योजना भारत सरकार की तरफ से चलाई जाती है। पहले इसका नाम इंटीग्रेटेड एक्शन प्लान था, अब इसी को एडीशनल सेंट्रल असिस्टेंस कर दिया गया है, जिसके तहत योजनाओं के चयन के लिए निर्णय लेने वाली एक समिति है, जिसमें केवल जिला कलक्टर, पुलिस अधीक्षक और वन अधिकारी को सदस्य बनाया गया है। जनतंत्र में जनप्रतिनिधियों को इस महत्वपूर्ण समिति से महरूम रखा गया है, उनको इसमें नहीं रखा गया है। उनसे केवल सुझाव देने को कहा गया है, जिसको मानने के लिए ये अधिकारी बाध्य नहीं है। केंद्र सरकार एसीए के लिए जो कमेटी है, उसमें सासंद को सदस्य बना कर, उनकी अनुशंसा को अनिवार्य मानते हुए कार्य करवाये, ऐसा प्रावधान किया जायें। मैं यह भी बताना चाहता हूँ कि श्री नितिन गडकरी जी माननीय परिवहन मंत्री ने लोक सभा में तारांकित प्रश्न का जवाब देते हुए 14.8.2014 को इस बारे सदन को आश्वासन भी दिया था।

आईपीए से संबंधित जितने जिले है जिनको अब हम सेंट्रल असिसटेंस के रूप में चला रहे हैं, उसमें फण्ड की मॉनीटरिंग के साथ-साथ समन्वय की भी जरूरत है। इसमें अनेक विभाग संलग्न हैं, जैसे कि गृह मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, योजना मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, एचआरडी और एनर्जी मंत्रालय के सहयोग से यह पूरी की पूरी योजना चलती है। लेकिन इसकी मॉनीटरिंग एवं समन्वय के लिए कोई एकीकृत प्रणाली नहीं है। सरकार ने अधिकारियों के स्तर पर विभिन्न एजेंसियां बनायी हुई है। मैं सरकार से मांग करता हूँ कि इम्पावर्ड ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स बना कर इन योजनाओं को एक कमाण्ड के अंदर सही और सुचारू रूप से चलाने के लिए कोई योजना बनाई जायें। साथ ही झारखण्ड के 24 जिलों में 22 जिले उग्रवाद प्रभावित जिले हैं, लेकिन हम 17 जिलों पर विशेष फोकस देते हैं और पांच जिले, जो एसआरई के अंतर्गत है, उनको सड़क निर्माण और बाकी के कामों से नहीं जोड़ते है। इसलिए इन जिलों में भी सभी प्रकार के विकास कार्यों को स्वीकृति दी जानी चाहिए।

झारखंड राज्य का संथाल परगना सहित पूरा राज्य आज बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण जनसंख्या के असंतुलन का संकट झेल रहा है। इससे कानून- व्यवस्था से जुड़े पहलुओं पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है। अतः इस पर अंकुश लगाने हेतु आवश्यक है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों का चिन्हित कर उन्हें वापस भेजने की कार्रवाई की जाए। साथ ही मेरा आग्रह है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगनिस्तान से आये हुये उन देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता शीघ्र प्रदान की जानी चाहिए।

भारत सराकर ने इस बजट में गृह मंत्रालय की आपदा प्रबंधन के तहत राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना के तहत 694.25 करोड़ राशि दी है। इस राशि से 150 चक्रवात आश्रयस्थल, 200 किमी सड़के, 15 पुल, 35 किमी के सलाइन तटबंध बनाये जायेगें जिससे चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों में जान और माल की हानि में कमी आएगी। मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी का ध्यान चतरा लोक सभा क्षेत्र की ओर दिलाना चाहता हूँ, गत वर्ष भयंकर चक्रवात एवं तूफान इस क्षेत्र में आया था जिससे काफी जन, धन और पशुधन का नुकसान हुआ था। इसलिए मेरा आग्रह है कि इस मद के तहत चतरा में चक्रवात आश्रयस्थल का निर्माण किया जायें।

मैं माननीय मंत्री जी का ध्यान बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर दिलाना चाहता हूँ कि संविधान की आठवीं अनुसूची में राष्ट्रीय भाषाओं के रूप में बाईस भाषाएं शामिल हैं जो हमारे लोगों द्वारा व्यापक तौर पर बोली एवं लिखी जाती हैं। यह माना जाता है कि इन्हीं भाषाओं के सानिध्य में हमारे लोगों की शिक्षा, संस्कृति तथा बौद्धिकता का विकास होता है। भाषा न केवल संचार का माध्यम है अपितु सम्मान का एक प्रतीक भी है। भाषा इतिहास, संस्कृति, जनता, शासन की प्रणाली, परिस्थितिकी, राजनीति, आदि को भी दर्शाती है। भोजपुरी, भाषा इस देश के उत्तर- केंद्रीय और पूर्वी क्षेत्रों के कई भागों में बोली जाती है। ये बिहार राज्य के पश्चिमी भाग, झारखण्ड के उत्तर-पश्चिम भाग तथा उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में विशेष रूप से बाली जाती है। राजस्थानी एक प्रमुख भाषा है, जिसकी समृद्ध परम्पराएं हैं और राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात और पंजाब राज्यों में व्यापक तौर पर बोली जाती है। लगभग पैंतीस मिलियन लोग यह भाषा केवल राजस्थान राज्य में ही बोलते है। राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए कई वर्षों से प्रयास किए जा रहे हैं जिसकी वह हकदार है। मैं भारत सरकार से मांग करता हूँ कि भोजपुरी, मगही, राजस्थानी और उरांव भाषाओं को बोलने वाले लोगों के सम्मान, उनकी संस्कृति तथा परंपराओं के संरक्षण के लिए इन भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जायें।

इसके साथ ही मैं पुनः वित्त मंत्री जी और गृह मंत्री जी का धन्यवाद देते हुये गृह मंत्रालय की अनुदानों की मांगों का समर्थन करता हूँ।


*श्री निहाल चन्द (गंगानगर)ः मैं सीमावर्ती क्षेत्र से आता हूँ। सीमा पर जवान आज कच्चे मकान में रहते हैं वहां पर पानी की दिक्कत भी रहती है। मैं सरकार से आग्रह करूंगा कि कंटीली तार में आयी किसानों की जमीन का मुआवजा नहीं मिला है जिससे किसान परेशान होता है। फसल बो नहीं सकता जिससे किसान बर्बाद हो गया। सीमावर्ती  क्षेत्र में बीएडीपी की योजना की शुरूआत होती है बीएडीपी की सीमा भी 10 कि.मी. तक है। बीएडीपी की सीमा बढ़ाई जाये तथा संबंधित सांसद को बीएडीपी का अध्यक्ष भी बनाया जाये ताकि जनप्रतिनिधीयों की भूमिका भी उसमें हो, मैं सरकार की अनुदानों की मांग का समर्थन करता हूँ।


*श्रीमती अंजू बाला (मिश्रिख)ः मैं माननीय गृह मंत्री जी द्वारा वर्ष 2017-18 के लिए पेश बजट के समर्थन में अपने विचार रखना चाहती हूँ। मैं माननीय मंत्री जी से कहना चाहती हूँ कि मैं भी एक महिला हूँ और महिलाओं की सुरक्षा की बात हम भी करते है पर आज भी महिलाओं को वह सुरक्षा नहीं मिली जो मिलनी चाहिए। हर दिन नयी घटना होती है। माननीय मंत्री जी से मैं यह कहने का प्रयत्न कर रही हूँ कि जैसे उत्तर प्रदेश की घटना आप ने आए दिन टीवी पर देखी है। मैं चाहती हूँ की आप महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की रोकथाम के लिए सबल कानून बनाए और अलग- अलग थाने जहाँ वो अपनी बात कहने की हिम्मत कर पाए क्योंकि जिले में थाने तो है पर महिला पुलिस नहीं है। इसलिए महिला अपनी बात नहीं कर पाती।

माननीय मंत्री जी जब एक सांसद को सोशल मीडिया पर  पर उसे मृत घोषित कर दिया जाता है, मैंने यह बात लोक सभा में भी उठाई थी। परन्तु आज तक कुछ नहीं हुआ। मैं चाहती हूँ कि ऐसी हरकत करने वाले अपराधी को सख्त सजा मिले और ऐसे कानून बनाए ताकि दूसरा ऐसी कोई हिम्मत न कर पाए।

अभी हाल ही में लखनऊ में हुई घटना जिस में वो उग्रवादी मारा गया। जिस देशद्रोही ने अपने पिता का नाम बदनाम कर दिया। उस पिता को हम बधाई देते है जिसने ऐसे बेटे का शव लेने से इन्कार कर दिया, जो भारत के खिलाफ गतिविधियां कर रहा था।

माननीय मंत्री जी को बधाई देना चाहती हूँ कि हर ऐसे दुश्मन जो हमारे देश की तरफ आँख उठाने की हिम्मत करता है उस की आँखे निकालने की हिम्मत हमारी सरकार में हैं।


*श्रीमती दर्शना विक्रम जरदोश (सूरत)- होम अफेयर्स एक ऐसा मंत्रालय है जो सीधे-सीधे आम जनता के साथ जुड़ा हुआ है। आमतौर पर आम लोगों को इसी मंत्रालय से दूरी रखने की अगर बात पूछी जाये तो वे सबसे पहले पुलिस तंत्र से दूरी रखने की बात कहेगा। फिर भी उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सीधे-सीधे गृह विभाग की होती है। 2004 में जहां देश में पुलिस तंत्र के एक व्यक्ति को करीब 700 लोगों की सुरक्षा देखनी होती थी, वहीं आज करीब 500 लोगों की सुरक्षा की ओर ध्यान देने के लिए जिम्मेदार हो रहा है। वही अगर भूमि के संबंध में देखें तो 71.48 पुलिस कर्मियों को करीब 100 स्कवायर किलोमीटर जमीन पर बसे लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है। यानि पुलिस फोर्स राज्य की जिम्मेदारी होते हुए भी जिस तरह से केंद्र सरकार द्वारा फंड को बढ़ाया गया है, वह स्वागतयोग्य है। एक समय था जब देश में कही न कही दंगे, फसाद, जातीय बिखराव होते रहते थे लेकिन आज स्थिति बदल गई है। यह स्थिति पुलिस तंत्र के मॉडर्नाइजेशन एवं महकमे के बढ़ाने से हुई है।

          पुलिस तंत्र में काम करने वाला व्यक्ति घर से निकलता है तो घर के लोगों के पास वह कब आयेगा, उसकी डय़ूटी कब पूरी होगी वह निश्चित नहीं होता। हर साल देश में कई पुलिस के जवान चाहे वे राज्यों की फोर्सेस हो या केंद्र सरकार की फोर्सेस हो, देश में कई जवान अपनी डय़ूटी बजाते हुए शहीद होते हैं। मेरी मांग है कि ऐसे शहीद जवानों के बच्चों की पढ़ाई एवं उनके भविष्य को ध्यान में रखकर तथा उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर कुछ न कुछ योजना बनानी चाहिए।

मेरी मांग है कि सीमावर्ती क्षेत्रों एवं समुद्री सीमा से जुड़े हुए क्षेत्रों में पुलिस तंत्र को एवं खुफिया तंत्र को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। सूरत जैसे क्षेत्र में, शहर के नज़दीक जहां पाकिस्तान कुछ ही अंतर पर है, ऐसी जगह में मरीन पुलिस स्टेशन को ज्यादा सुदृढ़ किया जाये एवं उन्हें अत्याधुनिक साधन मुहैया कराये जाये, ऐसी भी मेरी मांग है।

होम डिपार्टमेंट के अंदर सेंट्रल डिजास्टर मैनेजमेंट भी आता है। मेरी मांग है कि डिजास्टर एवं तुरंत रेस्पोन्स मिले एवं पुलिस महकमे सहित डिजास्टर एवं रेस्पोन्स टाईम कैसे कम हो उसकी ओर ध्यान देते हुए उस क्षेत्र को अत्याधुनिक बनाने की ओर ध्यान देना चाहिये। उतना नहीं तो डिजास्टर रिस्क रीडक्शन फंड ओपरेशनल हो, ऐसी कार्यवाही करने के लिए योजना बने। डिजास्टर रिस्क रिडक्शन की बड़ी संख्या में जन जागृति की जाये या किसी भी डिजास्टर के वक्त आम लोग किस परिस्थिति में क्या कर सकते हैं, उस संबंध में जन जागृति के कार्यक्रम बनने चाहिये। नेशनल साईक्लोन मिटीगेशन प्रोजेक्ट, मल्टी हेजार्ड रिस्क मैनेजमेंट केपिसिटी बढ़ाने की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। मेरी यह भी मांग है कि एन.डी.आर.एफ. के केंद्र बढ़ाने की ओर भी सोचना चाहिये जिससे डिजास्टर के वक्त क्विक रेस्पोन्स दिया जा सके। डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट,2005 के अंतर्गत एन.डी.आर.एफ. की नीतिगत जिम्मेदारी एन.डी.एम.ए. की है, लेकिन उसके डिप्लोयमेंट का ध्यान गृह मंत्रालय रखता है। मेरी मांग है कि इस कानून में संशोधन करके एन.डी.आर.एफ. को पूरी तरह से सीधे गृह मंत्रालय के अंतर्गत लाना चाहिये। एन.डी.एम.ए. के फंक्शन की हर तीन साल में मॉनिटरिंग करने की आवश्यकता है। एन.डी.एम.ए. के अंतर्गत कई ऐसे प्रोजेक्ट हैं, जिनमें प्रगति की आवश्यकता है। जो सालो से चल रहे हैं परंतु पूर्ण नहीं हुए हैं। मसलन माइक्रो जोनेशन ऑफ मेजर सिटी, नेशनल अर्थक्वेक मिटीगेशन प्रोजेक्ट, ये ऐसे प्रोजेक्ट हैं जो फरवरी, 2014 में शुरू किये गये थे, आज उनकी क्या स्थिति है एवं 11वीं पंचवर्षीय योजना 2007 से 2012 में जिन प्राजेक्टों की शुरुआत की गई थी या करनी थी, वे प्रोजेक्ट आज कहां पर है। ऐसे प्रोजेक्ट को समय पर पूरा करने के लिए योजना बने एवं समय पर शुरु न होने के कारण या समय पर पूर्ण न होने के कारणों की भी समीक्षा की जाये।


*श्री ओम बिरलाः गृह मंत्रालय देश के सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों में से एक है। इसके अंतर्गत केन्द्र व राज्यों के संबंध, सीमा सुरक्षा, आंतरिक सुरक्षा, आपदा प्रबंधन, मानवाधिकार व महिला सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभागीय कार्य आते हैं। मैं माननीय गृह मंत्री जी द्वारा लाए गए प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहना चाहूँगा कि आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि आज भारत के प्रधानमंत्री के नेतृत्व में गृह विभाग इतना संवेदनशीलता का परिचय दे रहा है।

          लगभग 30 वर्षों के बाद भारत की जनता ने किसी दल को इस लायक समझा कि उसे पूर्ण बहुमत दिया जाए। आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी के नेतृत्व में हमने सरकार बनाई। हमारी सरकार अब तक की सबसे मजबूत सरकारों में से एक है और इसलिए हम पूरी ताकत से देश की सुरक्षा में लगे हुए हैं। अब अगर सीमा पर दुश्मन गोलियां बरसाता है तो हम पहले की तरह याचना नहीं करते वरन इधर से गोला दागते हैं, उन्हें मुहतोड़ जवाब देते हैं। ये वाकई काबिले तारीफ है कि हमने किसी बड़ी आतंकवादी घटना को होने से हमारी सरकार के आने के बाद रोका है एवं मुंबई जैसी वीभत्स घटना की पुनरावृत्ति नहीं हुई है।

          गृह मंत्रालय के उत्तरदायित्वों में राज्य पुलिस बलों का आधुनिकीकरण, मानवाधिकारों के सिद्धांतों का संरक्षण एवं उन्हें बढ़ावा देना, अंतर्राष्ट्रीय सीमा और तटवर्ती रेखा का प्रभावी रूप से प्रबंधन, आपदाओं से पैदा होने वाली कठिनाइयों को कम करना तथा राहत प्रदान करना, स्वतंत्रता सेनानियों के कल्याण के लिए कार्य करना, जनगणना करना, मादक पदार्थों के अवैध व्यापार एवं दुरूपयोग की रोकथाम एवं नियंत्रण करना एवं राजभाषा नीति के कार्यान्वयन के साथ-साथ भारतीय पुलिस सेवा नियमों के अनुसार भारतीय पुलिस सेवा संवर्ग का उचित प्रशासन सुनिश्चित करना है। किसी भी देश में व्यक्तियों के विकास, समाज की अपेक्षाओं को पूरा करने  लिए एवं मजबूत, स्थिर एवं खुशहाल राष्ट्र के निर्माण के लिए शांति एवं सद्भावना अनिवार्य अपेक्षाएं होती हैं। इस उद्देश्य के लिए यह परिकल्पना की गई कि गृह मंत्रालय निम्नलिखित बातों के लिए पूरा प्रयास करेगा और हमारी सरकार पूरी ताकत से इन उद्देश्यों की पूर्ति में लगी है इसके लिए आदरणीय गृह मंत्री बधाई के पात्र हैं। जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ की समस्या अहम् है। जम्मू एवं कश्मीर राज्य सरकार के साथ मिलकर भारत सरकार ने सीमा पार से घुसपैठ पर नियंत्रण लगाने के एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ सीमा प्रबंधन का सुदृढ़ीकरण, बाढ़ का निर्माण, सुरक्षा बलों के लिए बेहतर तकनीक, हथियार और उपकरण, बेहतर सूचना के प्रवाह की सक्रियशीलता शामिल है। इसी का नतीजा है कि वहां हुए लोकसभा चुनाव एवं विधानसभा चुनावों में वहां की जनता ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, शांतिपूर्ण मतदान हुआ और जिसकी प्रशंसा दुनियाभर ने की। आज जम्मू-कश्मीर की स्थिति पहले से काफी बेहतर हुई है और हमारी सरकार ने कश्मीरी पंडितों के घर वापसी का मार्ग प्रशस्त किया है। मुझे उम्मीद है कि कश्मीरी पंडित जल्द ही घाटी में सुरक्षित रूप से फिर से रहने लगेंगे।

          पूर्वोत्तर राज्यों में विद्रोही और उग्रवादी गतिविधियों से निपटने के लिए सरकार ने एक बहुआयामी रणनीति अपनाई है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ वार्ता का द्वार भी खोला है, बशर्ते कि वे हिंसा का परित्याग करें एवं भारत के संविधान के दायरे में रहकर अपनी मांगों का समाधान कराये। सरकार द्वारा की गई पहल तथा वार्ता नीति के अनुसरण में पूर्ववर्ती राज्यों में शांति वार्ता के लिए अनेक उग्रवादी संगठन अपनी शिकायतों के समाधान के लिए सामने आए हैं। पूर्वोत्तर राज्यों के विकास के लिए एवं विकास के जरिए उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है।

          पीएमजीएसवाई, एनआरएलएम, एमएनआरईजीए, सर्व शिक्षा अभियान, नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम (एनआरडीडब्ल्यूपी), इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट स्कीम (आईसीडीएस), इंदिरा आवास योजना (आईएवाई), फोरेस्ट एक्ट, 2006 इत्यादि योजनाओं के जरिए भारत सरकार नक्सल प्रभावित राज्यों में गरीब एवं आवश्यकता मंद लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने का प्रयत्न कर रही है। इसके पीछे भारत सरकार का एकमात्र उद्देश्य है कि गरीब, पिछड़े क्षेत्रों के गरीब, दलित, शोषित आदिवासी बंधु नक्सलियों के विचारों से प्रभावित होकर या उनके दबाव में आकर उग्रवादी संगठन में शामिल न हो। परन्तु इन सारे उपायों के बावजूद नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए जिन बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है उनमें महत्वपूर्ण बात यह है कि नक्सलियों के द्वारा उगाही की जाने वाली राशि या उनको की जाने वाली फंडिंग पर प्रभावकारी नियंत्रण स्थापित किया जाए। उनको समाप्त किया जाए। बाल दस्ते को प्रतिबंधित किया जाए। फोरेस्ट एक्ट, 2006 के प्रावधानों को प्रभावकारी ढंग से लागू किया जाए। वन उत्पादों पर वनों में रहने वाले आदिवासी लोगों का एकाधिकार हो। फोरेस्ट एक्ट, 2006 के प्रावधानों का सख्ती से अनुपालन हो क्योंकि आज भी अधिनियम के स्थापित हो जाने के बावजूद इन गरीब आदिवासियों को वन विभाग के अधिकारियों द्वारा तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है। इसे रोकने की जरूरत है।

          पिछले कुछ दशकों में भारत की आंतरिक सुरक्षा को भारी खतरा पैदा हुआ है और अधिकांश खतरे बाहरी मदद से और भी घातक साबित हो रहे हैं। नशीली दवाओं की तस्करी एक नए खतरे के रूप में उभरी है, जिससे भारत में जिहादी गतिविधियों और विद्रोही आंदोलनों को सुलगाया जा रहा है। उग्रवादियों, विद्रोहियों तथा आतंकवादियों को हमारे पड़ोसी देशों द्वारा विध्वंसक गतिविधियों के लिए पैसा और पनाह दी जा रही है। इन मसलों पर सरकार द्वारा और भी प्रभावकारी कदम उठाने की जरूरत है। भारत के उत्तर-पूर्व और उत्तर पश्चिम में नशीले पदार्थों के दो सबसे बड़े उत्पादक देश-म्यांमार और पाकिस्तान हैं। दोनों ने भारत के विद्रोही गुटों को मदद दी है और उन्हें उकसाया है। सीमा-पार आतंकवाद को सत्ता नीति के रूप में अपना कर पाकिस्तान जिहादी आतंकवाद के गढ़ के रूप में उभरा है। वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने भारत के खिलाफ परोक्ष युद्ध के लिए निहित स्वार्थों को मोहरा बनाया। इन चालों को सफलतापूर्वक हमारी सरकार ने अब तक विफल किया है पर कुछ घटनाएं घटित हुई है जो चिंता का विषय हैं। इस पर और भी सावधानी बरतने की जरूरत है।

          केन्द्र-राज्य संबंध मधुर रहने चाहिए, इसके लिए हमारी सरकार ने संविधान के अंतर्गत अनेकों कदम उठाए हैं, ताकि संघवाद की भावना का विस्तार हो। हमारे देश में सूचना तंत्र को मजबूत और व्यापक बनाने की आवश्यकता है, जिससे बाहरी घटनाओं की त्वरित गति से जानकारी मिल सके। यदि इसमें सुधार नहीं किया गया तो देश में आंतरिक सुरक्षा का खतरा पैदा हो जाएगा। हमारी आंतरिक सुरक्षा सवालों के घेरे में रहती है। जिसका कारण हमारी जनसंख्या है, जनसंख्या के हिसाब से हमारे पास पुलिस बल उपलब्ध नहीं है। राज्य सरकारों को जितना धन देना चाहिए, उसकी भरपूर कोशिश करके उन्हें इस बजट में धन की उपलब्धता सुनिश्चित करने का फैसला इस बजट के माध्यम से लिया गया है। केन्द्रीय बजट में गृह मंत्रालय को 97 हजार 187 करोड़ की धन राशि का आवंटन किया गया है, जो पिछले वर्ष के आवंटन से 9.7 प्रतिशत अधिक है। गृह मंत्रालय को आवंटित किया गया बजट कुल बजट का 4.5 प्रतिशत है और देश की सुरक्षा के प्रति हमारी गंभीरता को ये पूर्णत परिलक्षित करता है। देश की आतंरिक सुरक्षा की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी पुलिस हैं जिन पर इस बजट में 78 हजार करोड़ का आवंटन किया गया है और ये कुल बजट का तकरीबन 80 प्रतिशत है। पिछले वर्ष के रिवाइज्ड एस्टीमेट से यह 6 प्रतिशत से भी ज्यादा है।

          मंत्रालय के बजट का लगभग 13.7औ अर्थात्, 13,357 करोड़ रुपये केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रशासन के लिए आवंटित किया गया है। जोकि पिछले वर्ष के 13 हजार 350 करोड़ से ज्यादा है। आपदा प्रबंधन, शरणार्थियों और प्रवासियों के पुनर्वास आदि के लिए भी 5 हजार 830 करोड़ रुपये जारी किये गए हैं। केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के लिए कुल पुलिस बल को दी गयी राशि का 70 प्रतिशत यानि कि 59 हजार 485 करोड़ रुपये जारी किये गए हैं जो पिछले वर्ष के संशोधित अनुमानों से 4.8औ ज्यादा है। बजट का 9औ सीमा और पुलिस बुनियादी ढांचे के लिए आवंटित किया गया है जो कि 2016-17 के संशोधित अनुमान 5112 करोड़ रुपये से 37.9औ अधिक है। इंटेलिजेंस ब्यूरो जो सभी आंतरिक सुरक्षा से संबंधित मामलों के लिए केन्द्रीय खुफिया एजेंसी है, के लिए 1.7औ आवंटित किया गया है।

          हमारे देश के सामने आतंकवाद, माओवाद व नक्सलवाद जैसी चुनौतियाँ हैं। हमारे देश को माओवाद और नक्सलवाद खोखला करते जा रहे हैं। नोटबंदी ने इनकी कमर तोड़ी है, परन्तु ये पूर्णतया कुचल दिए जाए इसके लिए और भी प्रयास किये जाने की जरूरत है। ऐसे संगठनों को पनपने से रोकने के लिए उनके फंडिंग सोर्स पर भी लगाम लगाने की आवश्यकता है।

          देश में मादक पदार्थों की तस्करी के भी मामले बढ़ रहे हैं। खबरें सुनने में आ रही है कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान से तस्करी की वारदातें लगातार बढ़ रही है। यह भी सुनने में आया कि नाइजीरिया के नागरिक भारत में मादक पदार्थों के मामले में पकड़े जा रहे हैं। भारत में भी इसके कई बड़े रैकेट सक्रिय है। हमारी युवा पीढ़ी को मादक पदार्थों की चपेट में आने से रोकने के लिए इस संबंध में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

          मैं सरकार को यह भी बताना चाहूँगा कि आज हमारे जेलों से कैदियों की भागने की संभावनाएं तो कम हुई है, लेकिन जेलों की स्थिति बहुत बदत्तर होती जा रही है। हमारे देश के जेलों में नशे, ऐशो आराम के सभी साधन कैदियों को उपलब्ध करावाए जा रहे हैं। नए कैदियों के साथ पुराने कैदियों और पुलिस कर्मियों का व्यवहार भी अत्यंत चिंताजनक है। पिछले कुछ वर्षों में कैदियों में आपस में हाथापाई के कारण कई कैदियों को जान से हाथ धोना पड़ा है, जिस पर भी सरकार को चिंता करने की आवश्यकता है। भोपाल जेल ब्रेक की घटना भी चिंताजनक है।

          पुलिस बलों के आधुनिकीकरण में गतिशीलता, हथियार, उपकरण, प्रशिक्षण बुनियादी ढांचे, कम्प्यूटरीकरण और फोरेंसिक विज्ञान और अवसंरचना विकास बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनके विकास के बिना हमारी पुलिस आधुनिक नहीं हो सकती। यह बेहद चिंता की बात है कि 2017-18 के बजट अनुमानों में पुलिस के आधुनिकीकरण से जुड़ी योजनाओं के लिए 2,022 करोड़ ही जारी किये गए हैं जो पिछले वर्ष के संशोधित बजटीय अनुमानों से 9.5 प्रतिशत कम हैं। इतना ही नहीं वर्ष 2015 के जनवरी तक 1,63,946 वाहन ही राज्य बलों के पास थे यह आवश्यक वाहनों की अपेक्षा से 30.5औ कम था। इस संबंध में उचित कार्रवाई किये जाने की जरुरत है।

          परिष्कृत हथियारों की संख्या भी राज्य पुलिस बलों के पास पर्याप्त संख्या में नहीं है। राजस्थान पुलिस की ऑडिट के अनुसार वहां की पुलिस के पास 2009 से 14 के बीच परिष्कृत हथियारों की 75 प्रतिशत तक की कमी थी। इतना ही नहीं जब हथियार खरीदे गए तब 59 प्रतिशत हथियार पुलिस स्टेशनों में वितरित नहीं किये गए। वामपंथ से निपटने के लिए इस वर्ष 1222 करोड़ रुपये आवंटित किये गए हैं जो कि पिछले वर्ष के संशोधित बजटीय अनुमानों से 168 करोड़ रुपये कम हैं।

          सरकार को गरीब आदिवासियों एवं जंगलों में रहने वाले अन्य लोगों में एक विश्वास पैदा करना होगा कि उनकी जिन्दगी सरकार के साथ रहने से महफूज होगी, नक्सलियों का साथ देने में उनकी हानि है। आदिवासियों के विरूद्ध  बल प्रयोग, नक्सली संगठन में सम्मिलित नहीं होने के लिए उल्टा प्रभाव करेगा। सरकार को इन क्षेत्रों में शांति व्यवस्था स्थापित करनी होगी जो कम्युनिटी पुलिसिंग के माध्यम से की जा सकती है। सीआरपीएफ के द्वारा इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया जा रहा है। अतः इसके लिए ज्यादा राशि उपलब्ध करानी होगी। उस क्षेत्र का विकास करके ही संभव है। सरकार नक्सलियों के कुकृत्यों एवं अपनी उपलब्धियों को वृहद पैमाने पर और प्रभावकारी ढंग से प्रचारित/प्रसारित करें एवं विकास से जुड़े पदाधिकारियों खासकर बीडीओ/सीओओ को विशेष रूप से प्रशिक्षित कर इन क्षेत्रों में तैनाती की जाए जो जंगल में रहने वाले लोगों खासकर आदिवासी लोगों के प्रति एवं उनके कार्यों के प्रति ज्यादा संवेदनशील हों, उनके कार्यों को अपना कार्य समझकर सम्पादित करें। आदिवासी क्षेत्रों/नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सरकार से मांग है कि उचित कार्ययोजना बना कर वैसे बंगलादेशी या अन्य देशों के विदेशी नागरिक जो अवैध रूप से देश में रह रहे हैं उन्हें उनके देश भेज दिया जाए।

          मेरी सरकार से ये भी मांग है कि अंग्रेजों द्वारा बनाये गए पुलिस एक्ट 1861 को समाप्त किया जाये और सोली सोराबजी समिति द्वारा बनाये गए मॉडल पुलिस एक्ट 2006 को लागू किया जाये या कोई विशेषज्ञ समिति गठित कर एक तय समय में पुलिस रिफॉर्म्स को जल्द लागू किया जाये। समय की ये मांग है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुलिस सुधार के लिए 2006 में दिए गए आदेश को सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में तुरन्त लागू किया जाये। अपराध की इंक्वायरी और शांति व्यवस्था के लिए अलग-अलग स्टाफ की व्यवस्था की जाये और साथ ही भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग का गठन किया जाये जिसमें सभी राज्यों का उचित प्रतिनिधित्व हो एवं ये एजेंसी पूरे समन्वय से कार्य करें। पुलिस का पूरे देश के स्तर पर नेटवर्क स्थापित किया जाए। ये भी बेहद आवश्यक है कि पुलिस के इंफ्रास्ट्रक्चर-मैनपावर, वाहन, संचार, फोरेंसिक रिसर्च, ट्रेनिंग में सुधार किया जाये और सभी स्तर के पुलिस कर्मचारियों के लिए आवासीय व्यवस्था की जाये। एफआईआर रजिस्ट्रेशन और चार्जशीट फाइलिंग के लिए आईटी का प्रयोग किया जाये। निर्धारित समय के अंदर चार्जशीट फाइल न करने और देर से एफआईआर लिखने पर कार्यवाही की जाये। ऐसी व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाए जिसके अंतर्गत देश के किसी भी कोने से कोई भी व्यव्ति देश के अन्दर घटित घटना को देख सके। शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता है जब पुलिस से संबंधित कोई आलोचनात्मक खबर अखबारों में न छपती हो। उत्पीड़न, उगाही, जनता के साथ दुर्व्यवहार, घटना स्थल पर समय से न पहुँचना, विवेचना में लापरवाही, कुछ न कुछ आए दिन होता ही रहता है। अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य की रक्षा और शासक वर्ग के हितों को ध्यान में रखते हुए इस पुलिस की संरचना की थी। स्वतंत्रता या उसके शीघ्र बाद में पुलिस व्यवस्था को बदलने की आवश्यकता थी, परन्तु ऐसा नहीं किया गया। अतः अब तक हुई सुधारों की देरी को जल्द ही दूर किया जाए एवं इस पर जल्द ही उचित कार्ययोजना बनाई जाए। भ्रष्टाचार और अपराध मुव्त विकसित भारत के निर्माण के लिए पुलिस सुधार को तुरन्त लागू करने की आवश्यकता है।          

          हाल के वर्षों में साइबर अपराधों में हो रही बढ़ोतरी पूरे विश्व के लिए चिन्ता का विषय बन गई है। भविष्य का युद्ध एयर कंडीशंड कमरों में बैठ कर कंप्यूटरों से लड़ा जाएगा। दो देशों के बीच यदि तनाव का माहौल बन रहा हो, तो परमाणु मिसाइलें, लड़ाकू विमान, टैंक और तोप आदि के इस्तेमाल से पहले ही दुश्मन मुल्क को पंगु बनाया जा सकता है। यह लड़ाई आतंकवादियों का एक छोटा सा गुट भी लड़ सकता है। इसलिए भविष्य में दुनिया एक नए तरह के आतंकवाद का सामना कर सकती है। ऐसा हमला करने वाले साइबर आतंकवादी के नाम से जाने जाएंगे और उन्हें दुश्मन देश में घुसपैठ कर या फिर जंगलों या शहरी भीड़ में छिप कर हमला करने की जरूरत नहीं होगी। जिस तरह से आतंकवाद की दुनिया में अब पढ़े-लिखे युवक भर्ती हो रहे हैं, उसे देखते हुए यह कल्पना की जा सकती है कि इन युवकों को साइबर आतंकवादी बनने को भी प्रेरित किया जा सकता है। जितनी आसानी से कट्टरपंथी साहित्य ऑनलाइन माध्यमों पर उपलब्ध हैं ये युवाओं के भटकने के लिए काफी हैं। पिछले दो सालों में चीन एवं पाकिस्तान से भारत, अमेरिका और संयुव्त राष्ट्र सहित अनेक अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के कंप्यूटर तंत्र में सेंध लगाने की कोशिशें की गई हैं। फिलहाल इन साइबर हमलों से कोई बड़ी तबाही नहीं हुई है, लेकिन इनके जरिए काफी तबाही की जा सकती है। मेरी सरकार से मांग है कि एक व्यापक कार्ययोजना बनाकर इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया जाए जो इस तरह के अपराधों को निष्क्रिय कर सके।

          देश के अन्दर कुछ युवा जिहादी एवं कट्टर साहित्य की आसान उपलब्धता से अपनी राह भटक रहे हैं। केरल, आंध्रप्रदेश, तेलगाना, बंगाल आदि राज्यों से कुछ युवाओं का इस्लामिक स्टेट में शामिल होने सरहद पार जाना अत्यंत गंभीर मसला है। मेरी सरकार से मांग है कि जल्द ही एक उचित कार्ययोजना बनाकर इस समस्या का निराकरण किया जाए।


*श्री भैरों प्रसाद मिश्र (बांदा)ः मैं सदन में प्रस्तुत गृह मंत्रालय की अनुदानों की माँगो 2017-18 का समर्थन करता हूँ। इस बार के गृह मंत्रालय के बजट में करीब 7 हजार करोड़ रूपए की बढ़ोत्तरी की गयी है। जिसमें सीआरपीएफ की जरूरतो को देखते हुए सबसे ज्यादा 17868 करोड़ रूपए 53 लाख रूपए आवंटित किए गए है। जिससे उन्हें आंतरिक सुरक्षा, माओवादियों एवं आतंकवादियो से निपटने में संसाधन की कोई कमी नहीं रहेगी। सीबीआई अपना कार्य ठीक से कर सके इसलिए उसके बजट में भी 53 करोड़ 38 लाख का इजाफा किया गया है। महिला सुरक्षा के लिए निर्भया फंड में करीब 8 गुना वृद्धि की गई है। दिल्ली पुलिस को इस बार पुलिस को इस बार पिछले साल की तुलना में 554 करोड़ 44 लाख ज्यादा मिले हैं। जिससे राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हो सकेगी निर्भया फंड को 3 करोड़ 40 लाख से बढ़ाकर 28 करोड़ 90 लाख कर दिया गया है। इससे महिलाओं की सुरक्षा हेतु व्यापक योजनायें बनाई जा सकेगीं। खुफिया जानकारी इकट्ठा करने वाली संस्था आईबी के लिए 1577 करोड़ ज्यादा आवंटित किया गया है। भारत- पाक एवं भारत- बांग्लादेश की सीमा की रक्षा करने वाली बीएसएफ के लिए15569 करोड़ 11 लाख रूपये आंवटित किए गए हैं। गृह मंत्रालय केंद्र सरकार के अधीन है जिसमें 7 केंद्रीय बल हैं। पुलिस राज्य सरकारों के अधीन रहती है क्योंकि कानून व्यवस्था संभलना राज्य सरकार के अधीन आता है। यही बल आम जनता से जुड़ा होता है, देखने में यह आया है कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में पिछले करीब पंद्रह सालों से वहां की राज्य सरकारों ने इसका दुरूपयोग किया है। अपने राजनीतिक हित साधने के लिए जाति आधारित व वर्ग के आधार पर थानाध्यक्षों की नियुक्तियां करना, डीआईजी, आईजी व पुलिस महानिदेशक जैसे पदों में वरिष्ठता को नजर अंदाज कर अपने लोगों को बैठाया गया है। अवैध खनन आदि में उसे सह साझीदार के रूप में इस्तेमाल किया गया है। ब्लाक प्रमुख तथा जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में पुलिस द्वारा सदस्यों को पकड़वाया जाता है। इस हेतु राज्य सरकारों से मिलकर कानून व्यवस्था बनाने की जरूरत है। इसी के साथ मैं गृह मंत्रालय के बजट का समर्थन करता हूँ।


*SHRI PREM DAS RAI (SIKKIM):   I support the budgetary provisions of the Ministry Home Affairs.  I want to raise the issue of H.H. Karmapa Ugyen Trinky Dorjee.  The Home Minister has to take substantive steps to ensure that he can visit Sikkim. Much of the problems will be settled which are growing slowly into a political issue in my State.

          The second issue is to make Sikkim a full tribal State. Today, Sikkim’s major issue is this.  All the 11 communities of Nepali community can be categorized as ST into the Tribal State.  Already the Limboo and Tamang communities have been given this status in 2003.  Hence, the rest of the communities can also be given ST status as such, since all of them fall under the Sikkim subject category, under the 1961 Order under the Chogyal’s regime.

          Hence, before 1975, Sikkim did not have the divisions in the various communities as has been thrust upon us and have changed the societal fabric in a negative way. Hence, giving Tribal status is the only way forward.

          Furthermore, we look forward to Limboo and Tamang ST communities getting their seat reservation as per the formula of 40 seats in the assembly in Sikkim.

          With these words, I support the budget of the Ministry of Home Affairs.


*श्री जुगल किशोर (जम्मू)ः  जबसे केंद्र में नरेद्रभाई मोदी जी सरकार बनी है और आदरणीय राजनाथ सिंह जी ने गृह मंत्री का कार्य संभाला है तबसे ही भारत- पाक सीमा पर पहरा देने वाले सैनिकों का मनोबल बढ़ा है तथा भारत पाकिस्तान के तरफ से होने वाली गोलीबारी को मुंहतोड़ जवाब दिया जाता है। अब जवाब देने के लिए किसी का ऑडर का इंतजार नहीं करना पड़ता है, अगर पाकिस्तान की तरफ से एक गोली दागी जाती है तो जवाब में कई गोलियां दागी जाती हैं। गृह मंत्रालय के तरफ से भारत- पाक सीमा पर रहने वाले लोगों के लिए कई कदम उठाए गए है। अगर पाकिस्तान की तरफ से चलाई गयी गोली से मारे जाने पर पहले 1 लाख रूपया दिया जाता था, अब नरेन्द्र भाई मोदी जी और गृह मंत्री जी के सौजन्य से यह राशि 1 लाख से बढ़ाकर 5 लाख रूपये कर दी गई है तथा उस परिवार के एक सदस्य को किसी विभाग में भर्ती किया जाता है जिससे सीमा पर रह रहे लोगों का मनोबल बढ़ा रहता है।

          भारत-पाक युद्ध के समय जो लोग घर से बेघर हुए थे उनके लिए सरकार कुछ नहीं किया था और 60 सालों तक सिर्फ वोटों की राजनीति का शिकार होते रहें, परंतु जबसे नरेन्द्रभाई मोदी जी की सरकार बनी है, तबसे उन लोगों की आशा बढ़ गयी है उन लोगों के लिए हजारों करोड़ रू. पैकेज की घोषणा की है तथा उन लोगों के लिए तथा पाक रिफ्यूजी के लिए लिए 2,000 करोड़ रू. का अनुदान रखा है जो आज के दिन में वितरित हो रहा है।

          इस देश को बताना चाहता हूँ विशेषकर आदरणीय नरेन्द्रभाई मोदी जी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह जी का आभार प्रकट करना चाहता हूँ कि वो नौजवान जो आतंकवादियों का मुकाबला करते हैं, वैसे एसपीओ का मानदेय 3000 रू. से बढ़ाकर 6000 रू. किया है।

          मैं गृह मंत्री जी से कहना चाहता हूँ कि बीएडीपी के माध्यम से सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए जो निधि जारी की जाती है, उस निधि के आवंटन से पहले सांसद से परामर्श होना चाहिए ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि इस निधि का सही कामों के लिए उपयोग हो।

          जम्मू- कश्मीर सीमावर्ती  क्षेत्रों के लिए आदरणीय नरेन्द्रभाई मोदी जी की सरकार ने अर्धसैनिक बलों की 5 बटालियन खड़ी करने की बात कही है, इससे जम्मू- कश्मीर विशेषतौर पर जम्मू- कश्मीर भारत - पाक सीमा पर रहने वाले नौजवानों पर एक खुशी की लहर दौड़ पड़ी है।

          अतः गृह मंत्री एवं सरकार से प्रार्थना है कि 5 बटालियनों के जल्द से जल्द शुरू करने की प्रक्रिया की जाए। अंत में गृह मंत्री और सरकार से आग्रह है कि भारत - पाक सीमा पर आधुनिक उपक्रम लगाये जाये ताकि पाक द्वारा ट्रेनिंग लिए हुए आतंकवादी को भारत में घुसपैठ करने से रोका जा सके ।     अतः मैं मांगों का समर्थन करता हूँ।


*PROF. RICHARD HAY (NOMINATED):  The Hon. Home Minister is both vigilant and alert. Such a large country with her inherent problems, border incursions and with vast borders, though apparently difficult to manage well, the Hon. Home Minister and his entire team has done full justice to the country in the most exemplary way by securing safety for all.

          Though, we have gone through some minor aberrations, our country has remained one of the most peaceful nations in the world. There is communal harmony and people of all faiths are living harmoniously. The minorities live in peace and the GOI takes measures to see that minorities are provided with effective welfare schemes.

          This government is a pro-poor and pro-farmer, for whom the government allocates grants, funds and credit for their development.

          I wholeheartedly support the grants for Ministry of Home Affairs.

गृह मंत्री (श्री राजनाथ सिंह) :  सभापति महोदय, जिन सदस्यों ने भी इस चर्चा में भाग लिया है, मैं उन सबके प्रति आभार व्यक्त करना चाहता हूं। मैं उनके नामों का भी उल्लेख करना चाहूंगा। श्री मल्लिकार्जुन खड़गे, श्री हरीश मीना, डॉ. काकोली घोष दस्तीदार, श्री तथागत सत्पथी जी, इसके अतिरिक्त डॉ. रविन्द्र बाबू, टीडीपी, श्री बी.विनोद कुमार, टीआरएस, श्री मोहम्मद सलीम, श्री विष्णु दयाल राम जी, श्री जय प्रकाश नारायण यादव, डॉ. उदित राज, श्री ई. टी. मोहम्मद बशीर, श्रीमती किरण खेर, श्री अभिजीत मुखर्जी, श्री राजेन्द्र अग्रवाल, कुँवर भारतेन्द्र सिंह, श्री दुष्यंत चौटाला और डॉ. संजय जायसवाल, इन सभी सम्मानित सदस्यों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं।

          मैं यह कहना चाहूंगा कि जिन भी माननीय सदस्यों ने विचार व्यक्त किये हैं, कई ने गृह मंत्रालय के कामकाज की सराहना की है और कुछ ने उसकी समालोचना की है, आलोचना की बात मैं नहीं कर रहा हूं। लेकिन जिसने आलोचना भी की है, उसे भी मैं सकारात्मक रूप में स्वीकार करता हूं और आलोचना करते हुए भी जो उनके सुझाव प्राप्त हुए हैं, मैं उन्हें आश्वस्त करना चाहता हूं कि हम उन सुझावों पर जहां तक हो सकेगा, पूरी तरह से अमल करने की कोशिश करेंगे। यदि उन्होंने आलोचना भी की है, तो मैं यह मानकर चलता हूं कि देशहित को ध्यान में रखकर ही उन्होंने आलोचना की होगी, ताकि गृह मंत्रालय उनकी आलोचनाओं का संज्ञान लेते हुए उस दिशा में कुछ प्रभावी कदम उठा सके।

          जहां तक देश की आंतरिक स्थिति का सवाल है, मैं फर्म कन्विक्शन के साथ यह बात कहना चाहता हूं कि देश की आंतरिक सुरक्षा स्थिति में, जो सिक्योरिटी सिनोरियो है, उसमें काफी हद तक सुधार हुआ है। मैं यह नहीं कहना चाहता हूं कि पूरी तरह से सुधार हुआ है।           भारत एक बड़ा देश है। लगभग 124-125 करोड़ की पॉपुलेशन यहां पर है। भारत विविधताओं से भरा हुआ है। यहां पर लोगों की एस्पिरेशंस भी अलग-अलग हैं, लोगों की नीड्स भी अलग-अलग हैं। इसलिए यह कोई दावा नहीं कर सकता है कि कहीं किसी प्रकार कान्फ्लिक्ट नहीं होगा, कहीं किसी प्रकार की वारदात नहीं होगी, लेकिन फिर भी गृह मंत्रालय ने बहुत ही विवेकपूर्ण तरीके से, जो भी यहां की आतंरिक सुरक्षा के हालात में सुधार लाने के लिए प्रयास किये जा सकते हैं, वे प्रयास किये हैं।

          कई सम्मानित सदस्यों ने अपने विचार यहां व्यक्त किए हैं। मेरी इच्छा तो यह है कि मैं सभी सम्मानित सदस्यों द्वारा, जिन भी बिंदुओं की ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया गया है, उन सबका चूंकि मैंने संज्ञान लिया है और सब पर मैं जवाब दूं, लेकिन मैं समझता हूं कि यदि सभी सम्मानित सदस्यों के द्वारा व्यक्त किये गये विचारों पर, उनके द्वारा उठाए गए जो प्वाइंट्स हैं, उन पर यदि मैं अपने विचार व्यक्त करूंगा तो डेढ़, दो या ढाई घंटे का समय भी यहां लग सकता हूं, इसलिए मैं बहुत ही संक्षेप में अपनी बात रखना चाहूंगा। उनके द्वारा जो भी मुद्दे उठाये गये हैं, उन पर कुछ बोलने के पहले मैं 10-12 मिनट के अंदर ही देश की आंतरिक सुरक्षा परिदृश्य के बारे में माननीय सदस्यों को यहां पर जानकारी देना चाहूंगा।

          जहां तक देश में आतंकी हमलों का संबंध है, वर्ष 2016 में पाकिस्तान से आये आतंकवादियों द्वारा पठानकोट, उड़ी और नागरोटा में जो हमारे आर्मी स्टैब्लिशमेंट्स हैं, उन पर यह हमला हुआ, इसकी सभी को जानकारी है। भारत में रहने वाले लोगों ने उसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया है। इस मामले में आगे इन्वैस्टीगेशन जारी है। लेकिन जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा स्पॉन्सर्ड  जो 322 टैरोरिस्ट्स इंसिडैंट्स हुए हैं, उनमें 150 आतंकवादियों को केवल 2016 में हमारी सेना और सुरक्षा के जवानों ने मारने में कामयाबी हासिल की है। 8 जुलाई, 2016 को 3 आतंकवादी मारे जाने के बाद कश्मीर घाटी के विभिन्न हिस्सों में वॉयलैंट प्रोटैस्ट्स हुए हैं और लॉ एंड आर्डर से संबंधित कुछ डिस्टर्बैंसेज़ भी शुरू हुए हैं, लेकिन सिक्युरिटी फोर्सेज और जम्मू-कश्मीर की पुलिस उस पर नियंत्रण पाने में काफी हद तक कामयाब रही है। जहां जुलाई, 2016 में 820 लॉ एंड आर्डर संबंधित घटनाएं हुई थीं वहीं दिसम्बर, 2016 में, मैं इसे फिर रिपीट करना चाहूंगा, जुलाई, 2016 में 820 लॉ एंड आर्डर से संबंधित घटनाएं हुई थीं वहीं दिसम्बर, 2016 में ये घटकर 36 और जनवरी, 2017 में सिर्फ 6 रह गई हैं। वैसे जम्मू-कश्मीर के हालात को सुधारने के लिए हमने बहुत सारे स्टैप्स लिए हैं। वहां स्पैशल पुलिस ऑफिसर्स की लगभग 10 हजार पोस्ट सैंक्शन की है, हमारी उड़ान स्कीम भी प्रभावी तरीके से चल रही है जिसमें लगभग 9 हजार से अधिक नौजवानों की ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है।

          मैं नार्थ-ईस्ट डिविजन की इसलिए चर्चा करना चाहता हूं कि हम जब कभी इस देश के सिक्युरिटी सिनेरियो के बारे में चर्चा करते हैं, तो टैरोरिज़्म, एलडब्ल्यूई अफैक्टेड एरियाज़ की चर्चा के साथ-साथ नार्थ-ईस्ट डिविजन की भी चर्चा होनी चाहिए। इनसर्जैंसी एक बहुत बड़ी चुनौती नार्थ-ईस्ट की रही है। मैं आज इस विश्वास के साथ कह सकता हूं कि 15-20 वर्षों पहले नार्थ-ईस्ट में इनसर्जैंसी के जो हालात थे, उसमें 75 प्रतिशत की कमी आई है। मुझे सदन को यह जानकारी देते हुए बेहद खुशी हो रही है। मैं आंकड़े भी देना चाहता हूं। नार्थ-ईस्ट रीजन में इनसर्जैंसी रिलेटेड इंसिडैंट्स की वर्ष 2015 की तुलना में वर्ष 2016 में, मैं 2015-16 की बात कर रहा हूं, दस साल पहले की बात नहीं कर रहा हूं, इस सरकार के बनने के बाद की बात कर रहा हूं, प्रति वर्ष क्या प्रोग्रैस हो रही है। हम 2015 और 2016 में देखें तो उसमें 15 प्रतिशत की कमी आ गई है। 2015 में जो घटनाएं घटित हुईं, इनसर्जैंसी रिलेटेड इंसिडैंट्स 574 थे, लेकिन 2016 में वे कम होकर 484 रह गए हैं। 2016 में वर्ष 1997 से अब तक के सबसे कम इनसर्जैंसी रिलेटेड इंसिडैंट्स हुए हैं। यह एक सुखद सूचना है जो मैं इस सम्मानित सदन को देना आवश्यक समझता था, इसलिए आपको उसकी जानकारी दी है।

          गृह मंत्रालय के अंतर्गत पुलिस-2 डिवीजन आता है जो पैरा-मिलिट्री फोर्सेज से रिलेटेड सारी गतिविधियां करता है। उनकी बहुत सारी प्रॉब्लम्स हैं, जैसे कई माननीय सदस्यों ने कहा कि जिस स्ट्रैस के दौर से उन्हें गुजरना पड़ता है, उनके बारे में कुछ न कुछ करना चाहिए। उनकी कौंसलिंग करनी चाहिए, उनके ग्रिवैंसेज के रिड्रैसल की व्यवस्था भी करनी चाहिए। ये सारे काम गृह मंत्रालय द्वारा इस समय किए जा रहे हैं। लेकिन मैं सदन को यह भी जानकारी देना चाहता हूं कि हमारी जो सैंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स है, हाउसिंग प्रॉब्लम्स  को भी एड्रैस करने के लिए सरकार में 68 ऐसे लोकेशन्स हैं जहां 3090.68 करोड़ रुपये की लागत से सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी के पर्सोनेल्स के लिए 13 हजार 72 मकान और 113 बैरकों के निर्माण के प्रस्ताव को हमने अभी-अभी ऐप्रूव कर दिया है। एनएसजी के लिए, रीजनल हब की स्थापना के लिए हमने प्रस्ताव को 9 मार्च को ऐप्रूव किया है। इसके अतिरिक्त 30 इंडिया रिजर्व बटालियन्स, मैं राज्यों के नाम लेना चाहूंगा, 4 आंध्र प्रदेश, 4 तेलंगाना, 5 जम्मू कश्मीर, 4 छत्तीसगढ़, 3 झारखंड, 2 महाराष्ट्र, 3 ओडिशा, 2 पंजाब, 2 गुजरात और एक राजस्थान के गठन किए जाने के बारे में भी हमने ऐप्रूवल कर दिया है। इनको दी जाने वाली फाइनैंशियल असिस्टैंस भी प्रोवाइड की जा चुकी है।

          महिलाओं की सुरक्षा की बात आती है। कानून और व्यवस्था संबंधी परिस्थितियों से निपटने में महिला पुलिस की मांग पहले की अपेक्षा तेजी के साथ बढ़ी है। गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने के साथ ही सैंट्रल गवर्नमैंट से रिलेटेड फोर्सेज के लिए मुझे जो आदेश जारी करना था, वह मैंने जारी किया है। लेकिन उसके अतिरिक्त जितने भी राज्य हैं, मैंने उन सभी मुख्यमंत्रियों को एक एडवाइजरी जारी की है। पुलिस फोर्स हो अथवा कोई भी फोर्स हो उसमें कम से कम 33 परसेंट महिलाओं का रिजर्वेशन होना चाहिए। मैं यह कह सकता हूं कि इस दिशा में तेजी से प्रगति हो रही है। राज्य सरकारों ने भी इसका कॉग्निजेंस लिया है, इस दिशा में राज्य सरकारें भी प्रभावी तरीके से काम कर रही हैं। इसके अतिरिक्त, सरकार ने सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में भी महिलाओं का परसेंटेज बढ़ाने के लिए 21 महिला कंपनी को अलग से अभी हाल ही में एप्रूव किया है। हम लोगों ने ऐसे बहुत सारे स्टेप्स जवानों के बारे में लिए हैं।

           सभापति महोदय, जब जवान घायल हो जाता था और हॉस्पिटल में एडमिट होता  है तो वह ऑन डय़ूटी नहीं माना जाता था। मैंने गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने के बाद आदेश किया कि यदि हमारा जवान घायल हो जाता है और हॉस्पिटल में एडमिट रहता है तो वह ऑफ डय़ूटी नहीं माना जाएगा बल्कि ऑन डय़ूटी माना जाएगा। यह आदेश भी प्रभावी तरीके से लागू हो गया है। पैरामिलिट्री फोर्सेज के जवान शहीद हो जाते हैं, उनके बच्चों की भी हम लोगों ने चिंता की है। मैंने स्वयं एक सरोजनी दामोदरन फाउंडेशन से संपर्क किया है, हमने उसके चेयरमैन से संपर्क किया, मैंने उनसे अनुरोध किया कि हमारे जो जवान शहीद हो जाते हैं, उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की पूरी जिम्मेदारी यदि आपका फाउन्डेशन अपने कंधों पर उठा ले तो मैं समझता हूं कि यह देश के लिए आपका बहुत बड़ा योगदान होगा। उन्होंने इसे सहज रूप से इसे स्वीकार कर लिया। मैं सदन को जानकारी देना चाहूंगा कि आज हम शहीदों के लगभग 295 बच्चों को छात्रवृत्ति दे रहे हैं और 178 बच्चों को शिक्षा सहायता प्रदान करने हेतु नामिनेशन के लिए सरोजनी दामोदरन फाउन्डेशन को भेजा है।

          सभापति महोदय, मैं सदन को जानकारी देना चाहता हूं कि हाल ही में छत्तीसगढ़ में 12 सीआरपीएफ के जवान मारे गए, केन्द्र सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जो भी सहायता संभव होती, वह सहायता दी जा रही है। उसके अतिरिक्त, मैंने कुछ अन्य लोगों से भी अनुरोध किया है, फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार ने एक पहल की। उन्होंने कहा, सर, जितने भी जवान मारे गए हैं, उनके परिवार के सदस्यों का एकाऊंट नंबर भेजिए और उन्होंने हर शहीद परिवार को नौ-नौ लाख रुपये की धनराशि अपनी तरफ से दी है। मैं कॉरपोरेट जगत के अन्य लोगों से भी संपर्क कर रहा हूं, हमारे जो जवान शहीद हो रहे हैं, उनकी जितनी अधिक से अधिक मदद कर सकते हैं, वह अपनी तरफ से मदद करें।

          सभापति महोदय, महिला सुरक्षा एवं साइबर क्राइम में बढ़ोत्तरी देश के सामने एक मेजर चैलेंज है। सचमुच में हम लोगों ने इस चैलेंज को स्वीकार किया है। इसका सामना करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। मैं यहां पर सीसीटीएनएस प्रोजेक्ट की चर्चा करना चाहूंगा। इसे आगे बढ़ाते हुए पुलिस थानों का कम्प्यूटराइजेशन किया जा रहा है ताकि पुलिस थाने आपस में डाटा एक्सचेंज कर सकें। इस अपराधी ने केवल इस स्टेट में अपराध किया है या दूसरे स्टेट में किया है या तीसरे स्टेट में किया है, इसकी जानकारी हो सके। इसके साथ ही हम इसे पोसिक्यूशन कार्यालय एवं फॉरेन्सिक लेबोरेटरीज से लिंक-अप कर रहे हैं जिससे यह कोर्ट, जेल और थानों से जुड़ सकेंगी, इसकी भी व्यवस्था की जा रही है। मैं सीसीटीएनएस की प्रोग्रेस की जानकारी देना चाहता हूं। बिहार और राजस्थान को छोड़कर देश के कुल 13,353 पुलिस स्टेशन में से 12,622 पुलिस स्टेशन में एफआईआर सीसीटीएनएस का इस्तेमाल करके रजिस्टर कर रहे हैं। यह प्रोग्रेस मात्र दो ढ़ाई वर्षों के अंदर हुई है। दिसम्बर 2016 तक लगभग 99.6 लाख एफआईआर इस प्रकार से रजिस्टर किए जा चुके हैं। इंटर ऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम लागू करने के लिए पुलिस स्टेशन, जेल, कोर्ट, फिंगर प्रिंट, फॉरेन्सिक एवं प्रोसिक्यूशन को जोड़ते हुए विभिन्न कदम उठाए गए हैं।

          सभापति महोदय, निर्भया फंड की भी चर्चा हुई, निर्भया फंड के अंतर्गत महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध होने वाले साइबर अपराधों पर भी कंट्रोल करने के लिए, साईबर क्राईम प्रोसिक्यूशन अगेंस्ट वुमेन एंड चिल्ड्रेन की स्कीम पर गृह मंत्रालय अगले तीन वर्षों में 195.83 करोड़ की लागत से इम्लीमेंट करेंगी। सभी स्टेट और यूटीज में 36 साईबर फॉरेन्सिक ट्रेनिंग सेंटर्स और इस्टैब्लिश किए जाएंगे। सारे देश में 40,500 पुलिस अफसरों को केवल वूमेन सिक्योरिटी और साइबर सिक्योरिटी के परपज़ से  ट्रेंड किया जाएगा, हमने यह डिसीजन लिया है।

          महोदय, हमने निर्भया फंड के अंतर्गत देश में इमरजेंसी रिस्पांस सिस्टम को नया स्वरूप देने की कोशिश की है। इसमें पुलिस एम्बुलेंस, फायर जैसी इमरजेंसी सर्विसिस को एक टेलीफोन नंबर 112 में जोड़ने के लिए राज्यों, युनियन टेरीटरीज़, संचार मंत्रालय के साथ गृह मंत्रालय काम कर रहा है।

          महोदय, मैं यहां एलडब्ल्यूई अफेक्टिड, माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों की चर्चा करना चाहता हूं। वामपंथी उग्रवाद हिंसा में भी पिछले कई वर्षों की अपेक्षा तेजी से गिरावट आई है। मैं यहां आंकड़ा देना चाहता हूं, 2011 में 1760 हिंसक घटनाएं हुई थी, जिनमें 611 सिक्योरिटी फोर्सिस और सिविलियन्स की मृत्यु हुई थी। वर्ष 2016 में 1088 हिंसक घटनाओं में केवल 278 की मृत्यु हुई, यानी पहले 611 की मृत्यु हुई थी, उसमें गिरावट आई है। पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे गए उग्रवादियों की संख्या 2011 में 99 थी और 2016 में बढ़कर 222 हो गई है। आत्मसमर्पण यानी सरैंडर करने वाले इन्सर्जेन्ट्स की संख्या 2011 में 394 थी जो 2016 में बढ़कर 1442 हो गई है।

          महोदय, मैं यह भी जानकारी देना चाहता हूं कि दस राज्यों के 106 जिले माओवाद से प्रभावित थे। वर्तमान में 68 ऐसे जिले हैं जिनमें उग्रवादी हिंसा के मामलों की रिपोर्ट मिल रही है। मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि 90 परसेंट घटनाएं विशेष रूप से आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा और तेलंगाना में, यानी कुल सात राज्यों के मोस्ट अफेक्टिड 35 जिले हैं, इनका नंबर लगातार गिरता जा रहा है और आगे भी गिरता जाएगा।        

          महोदय, हम सिक्योरिटी रिलेटिड स्टैप्स लेते हैं जिसमें राज्यों को अर्ध सैनिक बल और अधिक उपलब्ध कराते हैं, इन्टेलिजेंस शेयरिंग करते हैं और कैपिसिटी बिल्डिंग के लिए सैंटर अपनी तरफ से जो भी फाइनेंशियल असिस्टेंस, फोर्स असिस्टेंस प्रोवाइड कर सकता है, करते हैं। माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों में डैवपलपमेंट का काम भी तेजी के साथ चल रहा है। वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित आठ प्रदेशों के 34 जिलों में सड़क व्यवस्था को सुधारने के लिए 5422 किलोमीटर सड़कों का निर्माण आरआरपी फेज़-1 स्कीम के तहत स्वीकृत किया गया था, जिसमें 4225 किलोमीटर सड़कों का निर्माण अब तक हो चुका है। इसके अलावा दिसम्बर 2016 में सरकार ने एलडब्ल्यूई प्रभावित नौ राज्यों के 44 जिलों में 5412 किलोमीटर सड़क, 126 ब्रिजेज़ के निर्माण के लिए मंजूरी दे दी है। इस योजना में कुल 11725 करोड़ रुपए की राशि व्यय होगी। पिछले दो वित्तीय वर्ष में माओवाद से प्रभावित 35 जिलों में 358 नए बैंक खुलवाए गए हैं और 752 नए एटीएम लगाए गए हैं। इसके अतिरिक्त इन्हीं 35 जिलों में 1789 नए पोस्ट आफिस खोलने की अनुमति दी जा चुकी है।

          बार्डर मैनेजमेंट गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता है। मैं इसकी भी जानकारी देना चाहता हूं कि फैंसिंग का काम इंडो बांग्लादेश और इंडो पाकिस्तान बार्डर पर काफी हद तक पूरा हुआ है। मैं आंकड़े दे सकता हूं, लेकिन इसमें लंबा समय लगेगा और मैं जानता हूं कि अब अधिकांश सदस्य जाना चाहते हैं। इंटरनेशनल बार्डर पर बॉर्डर इफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को मजबूत करने के लिए 4805 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट स्वीकृत किए गए हैं। बार्डर एरिया डैवलपमेंट प्रोग्राम के अंतर्गत सीमा पर इफ्रास्ट्रक्चर डैवलपमेंट के लिए 2844 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं। अभी हमारे कुछ सम्मानित सदस्यों ने यह भी सवाल खड़ा किया कि बार्डर एरिया डेवलपमैंट प्रोजैक्ट्स द्वारा जो भी इफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमैंट होता है, उसमें इनका भी इन्वाल्वमेंट होना चाहिए, इनके भी सुझाव लिये जाने चाहिए। मैं आश्वस्त करना चाहता हूं कि इस संबंध में गंभीरता पूर्वक विचार करूंगा। जो भी होगा, हम वे आवश्यक कदम उठायेंगे ।

          हमारे कई इंटीग्रेटेड चैकपोस्ट हैं। मैं यहां पर रक्सौल के इंटीग्रेडेट चैकपोस्ट की चर्चा करना चाहूंगा। 3 जून, 2016 से, जोगबनी स्थित आईसीपी ने 15 नवम्बर, 2016 से कार्य करना शुरू कर दिया है, पेट्रापोल आईसीपी में कारगो टर्मिनल का 31 जूलाई, 2016 को उद्घाटन किया गया है। 24 जनवरी, 2017 को मेघालय में एक अन्य आईसीपी का शिलान्यास किया गया है। अब इफैक्टिविली बार्डर मैनेजमैंट हो सके, इसके लिए स्पेस बेस्ड टेक्नोलॉजी की पहचान के लिए एक टास्क फोर्स 21 नवम्बर, 2016 को गठित की गयी है। भारत सरकार ने विभिन्न कठिन क्षेत्रों, जहां फैंसिंग नहीं लगायी जा सकती है, वहां निगरानी करने के लिए टेक्नोलॉजिकल सॉल्यूशन, जैसे राडार्स, सेन्सर्स, कैमराज, कम्युनिकेशन नेटवर्क्स एंड कमांड एंड कंट्रोल सॉल्यूशन की तैनाती का भी निर्णय लिया है। इस समय पायलट प्रोजैक्ट के तहत हमारी चार परियोजनाएं इस समय चल रही हैं। मैं समझता हूं कि महीने, डेढ़ महीने के बाद इन पायलट प्रोजैक्ट्स के जो रिजल्ट्स आयेंगे, उस आधार पर हम टेक्नोलाजिकल सॉल्यूशन का काम बार्डर को सिक्योर करने के लिए प्रारंभ करेंगे।

          सभापति महोदय, यूटी डिवीजन, यानी यूनियन टेरिटरीज डिवीजन भी इसी गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता है। इसके संबंध में मुझे कुछ कहने की जरूरत नहीं है। यहां पर कई कदम उठाये गये हैं। मैं यहां केवल निर्भया फंड की ही चर्चा करना चाहता हूं। निर्भया फंड के अंतर्गत इस वर्ष दो प्रोजैक्ट्स सैंक्शन किये गये, जिसमें 60 कौंसलर्स को दो वर्ष के लिए हायर करना था। इस पर 6.2 करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे हैं। वहीं पर एसपीयूडब्ल्यूएसी और एसपीयूएनआर की बिल्डिंग्स की कंस्ट्रक्शन में 23.3 करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे हैं। इऩ प्रोजैक्ट्स के काम प्रारंभ हो गये हैं। दिल्ली पुलिस द्वारा क्राइम को रोकने के लिए कई ऐसे प्रभावी कदम उठाये गये हैं, जैसे सीसीटीवी कैमराज लगे हैं। साथ ही साथ सैल्फ डिफेंस की भी ट्रेनिंग यहां के स्कूल्स, कालेजेज और यूनीवर्सिटीज में नौजवानों को दी जाती है। जन सम्पर्क का भी काम चलता है। इसके अतिरिक्त हमारी दूसरी यूटीज हैं, मैं उनकी डिटेल में नहीं जाना चाहता, क्योंकि अब काफी विलंब हो चुका है।

          सभापति महोदय, मैं यहां जरूर इस बात की चर्चा करना चाहूंगा कि इस सदन के सम्मानित सदस्य, कांग्रेस लेजिस्लेचर पार्टी के लीडर खड़गे साहब ने कहा है कि बजट ऐस्टीमेट जितना था, उतना हमने खर्च नहीं किया है। मैं इस संबंध में क्लेरीफिकेशन देना चाहता हूं कि यह एक रिकार्ड है कि जितना बजट एलोकेशन हुआ था, होम मिनिस्ट्री ने अब तक तकरीबन 91 परसेंट खर्च कर लिया है और मार्च समाप्त होते-होते वह 100 परसेंट पूरा हो जायेगा। यह अपने में एक रिकार्ड है। इससे पहले कभी नहीं हुआ, यह भी मैं बताना चाहता हूं।

          सभापति महोदय, गृह मंत्रालय की अनुदानों में आबंटनों का बजट ऐस्टीमेट वर्ष 2016-17 में 89996.83 करोड़ रुपये से बढ़ाकर वर्ष 2017-18 में 99279.8 करोड़, यानी 10.31 परसेंट की वृद्धि हुई है। मैं माननीय सदस्यों का ध्यान इस बात की ओर भी आकर्षित करना चाहता हूं कि पिछले दो वर्षों में, यानी वर्ष 2015-16 और 2016-17 में प्लान एलोकेशन के व्यय में गृह मंत्रालय का प्रदर्शन अभूतपूर्व रहा है। इससे पहले ऐसा प्रदर्शन कभी नही रहा है। इसके अतिरिक्त जितने भी बजट ऐस्टीमेट्स हैं, उनके बारे में मैं अलग-अलग बता सकता हूं, लेकिन मैं बहुत डिटेल में नही जाऊंगा। लेकिन ख़ड़गे साहब ने जो कुछ भी आंकड़े दिये थे, वे बहुत ही सलैक्टिव फिगर्स दी थी।

          खड़गे साहब ने नक्सलिज्म के बारे में कुछ बातें उठाई थीं, उनके बारे में मैंने पहले ही जानकारी दे दी है कि माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलियों का प्रभाव पहले की तुलना में कैसे तेजी के साथ गिरा है। यहां पर पठानकोट पर आतंकवादी हमले के बारे में खड़गे साहब ने सवाल पूछा है, मैं जानकारी देना चाहता हूं कि इसके बारे में फिलिप कैम्पोस कमेटी बनी थी। यह कमेटी मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस ने बनाई थी, इसलिए जब रक्षा मंत्रालय की अनुदान की मांगों पर जब चर्चा हो रही थी, उस समय खड़गे साहब को इस विषय को उठाना चाहिए था।

          सभापति महोदय, इनटॉलरेंस की बात एक सम्मानित सदस्य ने कही है। मैं यहां साप्रदायिक घटनाओं की चर्चा करना चाहूंगा कि वर्ष 2013 में 823 साप्रदायिक घटनाएं हुई थीं, 2014 में 644 घटनाएं, 2015 में 751 घटनाएं और 2016 में 703 साप्रदायिक घटनाएं हुई हैं।  मैं बताना चाहता हूं कि जो साप्रदायिक घटनाएं होती हैं, वह लॉ एंड ऑर्डर का प्रश्न होता है, जो राज्य सरकारों से जुड़ा हुआ है। जो भी राज्य सरकार हमसे सपोर्ट मांगती हैं, हम उसे वह सपोर्ट प्रोवाइड करने का काम करते हैं।

          सभापति महोदय, खड़गे साहब ने पुलिस मॉडर्नाइजेशन स्कीम के बारे में कुछ बातें कही थीं, मैं पहले ही उनका जवाब दे चुका हूं। हरीश मीणा जी ने स्टूडेंट पुलिस कैडर स्कीम की बात कही है। उनका सुझाव अच्छा है, मैं इसके लिए उनको धन्यवाद देना चाहता हूं। मैं हरीश मीणा जी के साथ ही पूरे सदन को बताना चाहता हूं कि स्टूडेंट पुलिस कैडर स्कीम, जो केरल और गुजरात में चल रही है। मैंने स्वयं वहां जाकर इसे देखा है और कैसे यह स्कीम पूरे देश में लागू की जा सकती है, उसका पूरा एक्शन प्लान हम लोगों ने तैयार कर लिया है। आगामी कुछ ही महीनों में हम इसे लागू करने जा रहे हैं।

          खड़गे साहब ने माओवाद प्रभावित क्षेत्रों के लिए सिक्योरिटी रिलेटेड एक्सपेंडिचर स्कीम में वर्ष 2017-18 में पूर्व के वर्षों की तुलना में कम फण्ड उपलब्ध कराने की बात कही है। मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि सिक्योरिटी रिलेटेड एक्सपेंडिचर स्कीम जम्मू-कश्मीर, एलडब्ल्यूई और नॉर्थ-ईस्ट के क्षेत्रों में लागू है। वर्ष 2016-17 में हमारा बजट एस्टीमेट 840 करोड़ रुपये था, जो रिवाइज्ड एस्टीमेट में बढ़कर 1390 करोड़ रुपये कर दिया गया। वर्ष 2017-18 में बजट एस्टीमेट पूर्व वर्ष से बढ़ाकर 1221 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसलिए उनकी बात तथ्यों पर आधारित नहीं है।

          डॉ0 काकोली घोष दस्तीदार ने सीआरपीएफ के बारे में कहा है, मैं जानकारी देना चाहता हूं कि सीआरपीएफ में अब तक 126 माइन प्रोटेक्टेड वेहिकल्स कार्यरत हैं, आईटीबीपी में 20 माइन प्रोटेक्टेड वेहिकल्स कार्यरत हैं। इस समय बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स 42 माइन प्रोटेक्टेड वेहिकल्स की खरीद अपनी तरफ से कर रहा है। उन्होंने दूसरी बात बॉर्डर फेंसिंग के बारे में कही है। इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे कहीं पर हिल एरिया है, कहीं रिवराइन है, कहीं पर फॉरेस्ट रिजर्व्स हैं, कहीं पर नेबरिंग कंट्रीज की आपत्तियां रहती हैं कि वहां फेंसिंग नहीं होनी चाहिए और कहीं पर राज्य सरकार के द्वारा जो लैण्ड एक्वीजिशन होना चाहिए, वह न हो पाने के कारण इस काम में विलम्ब होता है। हमने आने के बाद, बॉर्डर फेंसिंग कितनी तेजी के साथ हो रही है, लगातार इसकी मॉनीटरिंग कर रहे हैं और मेरे दोनों सहयोगी राज्य मंत्रीगण - श्री किरेन रिजीजू जी और हंसराज अहीर जी, इस काम को बहुत मुस्तैदी के साथ देख रहे हैं।

          यहां पर मैं पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा लैण्ड एक्वायर करने के संबंध में कहना चाहूंगा कि रिक्वेस्ट की गयी थी, लेकिन अभी तक एक्वीजिशन नहीं हो पाया है। हमारे वरिष्ठ संसद सदस्य सौगत राय जी और डॉ0 दस्तीदार जी यहां हैं, मैं आप लोगों से भी कहूंगा कि मुख्यमंत्री जी से कहिए कि जल्दी लैण्ड एक्वीजिशन का काम पूरा हो जाए, जिससे ताकि हम फेंसिंग के इस काम को पूरा कर सकें।

          नेशनल इमर्जेंसी रिस्पांस सिस्टम की बात कही गयी है। माननीय सदस्य ने कहा था कि जो कम पढ़ी-लिखी महिलाएं होती हैं, वे स्मार्ट फोन और इस एप का प्रयोग नहीं कर सकती हैं। नेशनल इमरजैंसी रिस्पाँस सिस्टम के तहत इमरजैंसी कॉल करने के लिए स्मार्ट फोन अथवा ऐप की कोई जरूरत नहीं है। वे ऑर्डिनरी फोन से भी काम कर सकते हैं, इसलिए वर्ष 2017-18 वित्त वर्ष में इस नेशनल इमरजैंसी रिस्पाँस सिस्टम को लागू कर दिया गया है।

          काकोली घोष जी ने गैंग रेप ऑफ वुमन इन पंडरनगर, न्यू दिल्ली ने कहा है। इस केस में दिल्ली पुलिस द्वारा दिनांक 12.02.2017 को एफआईआर दर्ज की गयी है तथा सभी पांचों आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। काकोली घोष जी ने 33 परसेंट रिजर्वेशन फॉर वुमन का प्रश्न उठाया था। हम ने इसकी जानकारी आपको दे दी है, हम इस पर प्रभावी तरीके से अमल कर रहे हैं।

          विनोद कुमार जी यहां पर मौजूद नहीं हैं, फिर भी मैं उत्तर दे देता हूं। उन्होंने कहा था कि ’हीट वेभ’ को एक प्राकृतिक आपदा माना जाना चाहिए। भारत सरकार द्वारा जो निर्धारित गाइडलाइन्स हैं, गाइडलाइन्स ऑन काँस्टिटय़ूशन एंड एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ स्टेट डिसास्टर रिस्पाँस फंड, एसडीआरएफ के तहत राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपने एसडीआरएफ में से 10 प्रतिशत तक की राशि किसी भी क्षेत्रीय आपदा जो इस राज्य के क्षेत्र में आती है, उसके प्रभावित पीड़ितों के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। इसलिए अलग से ’हीट वेभ’ को नेचुरल डिजास्टर घोषित करने की बजाय, बेहतर यह होगा कि राज्य सरकारें का जो 10 प्रतिशत का फंड है, उसी से जो इससे प्रभावित हैं, उनको सहायता प्रदान करें। विनोद कुमार जी ने मॉडर्नाइजैशन पुलिस फंड की चर्चा की थी। संभवतः एलोकैशन के बारे मे उन्होंने कहा था कि यह कम हो गया है। वर्ष 2016-17 में मॉडर्नाइजैशन ऑफ पुलिस फंड के लिए 595 करोड़ रुपए का बजट दिया गया, जो 31 मार्च तक 100 प्रतिशत खर्च हो जायेगा। उन्होंने कहा कि यह फंड खर्च नहीं हुआ है। वर्ष 2015-16 में भी पुलिस मॉडर्नाइजैशन का बजट 100 प्रतिशत खर्च हो चुका है।

          तेलंगाना को वर्ष 2015-16 में 16.32 करोड़ रुपए और वर्ष 2016-17 में 14.93 करोड़ रुपए दिये गये हैं। सीसीटीएनस में तेलंगाना को अब तक 60 करोड़ रुपए दिये जा चुके हैं। यह उनके प्रश्न का उत्तर है। सत्पथी जी ने स्मार्ट पुलिसिंग की बात कही थी। हम लोगों ने पुलिस को सेंसिटिव बनाने के लिए कई इनिशिएटिव लिये हैं। स्मार्ट पुलिस का यह कंसेप्ट हमारे प्रधान मंत्री जी ने दिया था। ‘S’ means Strict but Sensitive;  ‘M’ means Modern and Mobile; ‘A’ means Accountable and Alert; ‘R’ means Reliable and Responsible; and ‘T’ means Techno-savvy and Well Trained.  सत्पथी जी ने यह कल्पेबल होमीसाइड के बारे में कहा था। इस मामले को अरूणाचल प्रदेश की कैबिनेट ने भारत सरकार को भेजा है। We are examining this issue.

          रवीन्द्र बाबू, टीडीपी ने कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉसिबिलिटी का प्रयोग, जो शहीद या घायल होते हैं अथवा उनके लिए किया जाना चाहिए, उसका उत्तर मैंने दे दिया। हम लोग वह कर रहे हैं। उन्होंने स्ट्रेस की भी बात उठायी है। हम इस दिशा में भी कदम उठा रहे हैं। हमारे जितने भी फोर्सेज हैं, हर सैक्टर, रेंज और यूनिट पर ऑपरेशन में जो भी ग्रिवांसेज मिलती हैं, उसकी अपनी ग्रिवांस रिड्रेसल मैकेनिज्म है। एक बार ग्रिवांस लॉज किए जाने के बाद इंक्वायरी और रिड्रेसल का निर्धारित सिस्टम एवं प्रोसिजर है एवं नीचे के स्तर पर रिड्रेसल नहीं किए जाने पर ग्रिवांस को आगे बढ़ाने के मैकेनिज्म है। ग्रिवांस रिड्रेसल की उचित मॉनिटरिंग की जाती है। सभी केन्द्रीय पुलिस बलों के पास अपने कार्मिकों एवं अधिकारियों के बीच कम्यूनिकैशन का उचित चैनल मौजूद है। ओपेन दरबार, सैनिक सम्मेलन व्यक्तिगत सुनवाई जैसे बातचीत के सीधे तरीकों, जो विभिन्न स्तरों पर बातचीत के स्थापित मंचों के भाग हैं, जैसे वेब बेस्ड ग्रिवांस रिड्रेसल, मोबाइल सर्विस, ई-मेल, उचित सुरक्षा, सिक्योरिटी ऑडिट के साथ इसका उपयोग किया जाता है।

          मोहम्द सलीम साहब ने बांग्ला इनक्लेव की बात कही है, वह यहां से चले गये हैं। इस बारे में मैं कहना चाहता हूं कि बांग्लादेश से जो व्यक्ति भारतीय नागरिक बने हैं या जो इनक्लवे अब भारत का हिस्सा है, उनके विकास पर भारत का कोई ध्यान नही है, यह बात उन्होंने कही है। मैं समझता हूं कि उन्होंने जो कहा है, वह उचित नहीं है। वर्ष 2015-16 में राज्य सरकार की रिक्वायरमेंट के अनुसार 140 करोड़ रुपए उसके लिए रिलीज किये गये और उसके बाद 2016-17 में 340 करोड़ रुपए हम देने को तैयार थे। लेकिन राज्य सरकार ने यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट देरी से भेजी, इसलिए 140 करोड़ रुपये ही और हम रिलीज कर पाए। हम केवल 140 करोड़ रुपये ही रिलीज कर पाए क्योंकि यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट नहीं आयी थी। वर्ष 2017 में 477.49 करोड़ रुपये का बजट एस्टीमेट रखा है, समय पर यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट आता रहे, हम पूरी धनराशि रिलीज कर देंगे। यह मैं आश्वस्त करना चाहता हूँ।

          मोहम्मद सलीम साहब ने जो बातें कही हैं, उनके संबंध में मैं कहना चाहता हूँ कि पीओके-चम्ब को भारत सरकार ने 36,384 परिवारों के लिए 22 दिसम्बर, 2016 को वित्तीय सहायता की मंजूरी दे दी है। प्रत्येक विस्थापित परिवारों को साढ़े पाँच लाख रुपये दिये जाएंगे। इस स्कीम में दो हजार करोड़ रुपये खर्च का प्रावधान है।

          जम्मू-कश्मीर की सरकार को हर परिवारों के दस्तावेज को चेक करना है। अब तक 20 हजार से अधिक परिवारों ने राज्य सरकार से फॉर्म ले लिये हैं और तीन हजार परिवारों ने सभी डॉक्युमेंट्स जमा कर दिये हैं। भारत सरकार की ओर से इसी वित्तीय वर्ष में धनराशि का डिस्ट्रिब्यूशन कर दिया जाएगा।

          मोहम्मद बशीर साहब ने स्टेप्स टू स्ट्रेन्देन ट्रेनिंग ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट के बारे में कहा है। इस संबंध में मैं कहना चाहूँगा कि सरकार ने इस दिशा में कई इनिशिएटिव लिये हैं। नैशनल इंस्टीटय़ुट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट का कैम्पस रोहिणी में बनना शुरू हो गया है। यह अगले दो वर्षों में पूरा हो जाएगा।

          एनआईडीएम (नैशनल इंस्टीटय़ुट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट) का दक्षिण कैम्पस आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में काम करना शुरू कर दिया है। नैशनल सिविल डिफेन्स कॉलेज, नागपुर को अपग्रेड करके नैशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स एकेडमी बनाने का निर्णय लिया गया है।

          श्री विनोद कुमार जी ने एलडब्ल्यूई क्षेत्रों के बारे में कहा था। इस संबंध में मैं जवाब दे चुका हूँ।

          सभापति जी, मैं समझता हूँ कि अब कुछ शेष नहीं बचा है। इसलिए मैं सभी सम्मानित सदस्यों से अनुरोध करना चाहूँगा कि गृह मंत्रालय के जो भी डिमांड्स फॉर ग्रांट्स हैं, उनको पारित करने की कृपा करें।

HON. CHAIRPERSON :  I shall now put cut motions moved to the Demands for Grants relating to the Ministry of Home Affairs to the vote of the House.

I shall now put cut motion Nos. 2, 3 and 4  to the Demands for Grants relating to the Ministry of Home Affairs moved by Shri Jai Prakash Narayan Yadav to the vote of the House.

The cut motions were put and negatived.

HON. CHAIRPERSON:  I shall now put cut motion Nos. 5, 39, and 59 to the Demands for Grants relating to the Ministry of Home Affairs  moved by Shri Adhir Ranjan Chowdhury to the vote of the House.

The cut motions were put and negatived.


HON. CHAIRPERSON: I shall now put cut motion Nos. 14 to 27 to the Demands for Grants relating to the Ministry of Home Affairs moved by Shri N.K. Premachandran to the vote of the House.

The cut motions were put and negatived.

HON. CHAIRPERSON: I shall now put the Demands for Grants relating to the Ministry of Home Affairs to the vote of the House.

          The question is:

That the respective sums not exceeding the amounts on Revenue Account and Capital Account shown in the third column of the Order Paper be granted to the President, out of the Consolidated Fund of India, to complete the sums necessary to defray the charges that will come in course of payment during the year ending the 31st day of March, 2018, in respect of the heads of demands entered in the second column thereof against Demand Nos. 46 to 55 relating to the Ministry of Home Affairs.

          The motion was adopted.

HON. CHAIRPERSON: The Demands for Grants relating to the Ministry of Home Affairs are passed.

HON. CHAIRPERSON: The House stands adjourned to meet on Monday, the 20th March, 2017 at 11 a.m.

नक्सलवाद विद्रोह का नेता कौन था?

सत्ता के खिलाफ भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल के सशस्त्र आंदोलन का नाम है नक्सलवाद। ये आंदोलन 1967 में पश्चिम बंगाल के गांव नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ था

नक्सलवादी आंदोलन कहाँ शुरू हुआ था?

नक्सलबाड़ी (Naxalbari) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के दार्जीलिंग ज़िले में स्थित एक बस्ती है। यहाँ सन् १९६७ में सशस्त्र क्रांति के विचार वाले विफल नक्सलवादी आंदोलन का प्रारंभ हुआ था

नक्सलवादी आंदोलन कब हुआ था?

कार्ल मार्क्स के वर्ग संघर्ष के सिद्धांत से प्रेरित नक्सलवाद का जन्म 25 मई, 1967 को हुआ माना जाता है जब कम्युनिस्ट नंेता चारू मजूमदार, कानू सान्याल और जंगल संथाल के नेतृत्व में उत्तरी बंगाल के दॉजिलिग जिले में नक्सल बाड़ी गांव के कृषकों ने विद्रोह कर दिया था

नक्सलवाद का अर्थ क्या होता है?

नक्सलवाद का हिंदी अर्थ नक्सल आंदोलन की विचारधारा या मत; ऐसा सिद्धांत या मत जिसमें सामाजिक बराबरी तथा व्यवस्था परिवर्तन के लिए हिंसा को भी अपनाया जाता है; माओवाद से प्रभावित मत।