पोंगल का दूसरा दिन क्या कहलाता है? - pongal ka doosara din kya kahalaata hai?

पोंगल का दूसरा दिन क्या कहलाता है? - pongal ka doosara din kya kahalaata hai?
Pongal Festival 2021

हेल्लो दोस्तों पोंगल एक हिंदू त्यौहार है जिसे तमिलनाडु में मनाया जाता है। चार दिन का त्योहार हर साल जनवरी के मध्य में आता है। पोंगल का सबसे महत्वपूर्ण दिन थाई पोंगल के रूप में जाना जाता है। थाई पोंगल, चार दिनों के पोंगल उत्सव का दूसरा दिन है, इसे संक्रांति के रूप में भी मनाया जाता है। इसी दिन को उत्तर भारतीय राज्यों में मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष पोंगल पर्व 14 जनवरी 2021 दिन बुधवार को मनाया जाएगा। पोंगल का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह तमिल महीने की पहली तारीख को आरम्भ होता है. Pongal Festival 2021

पोंगल दक्षिण भारत का एक लोकप्रिय फसल त्योहार है, जो मुख्य रूप से सूर्य देवता को समर्पित है और त्यौहार उत्तरायण की शुरुआत का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कि सूरज इस दिन से उत्तर में बढ़ना शुरू कर देता है। पोंगल तमिलनाडु का सबसे बड़ा त्योहार है। पोंगल मकर संक्रांति और उत्तरायण से मेल खाता है, जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध में स्थानांतरित होता है।

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पोंगल को पारंपरिक रूप से राज्य में चार दिनों तक मनाया जाता है। इस वर्ष पोंगल 13 से 16 जनवरी तक है, लेकिन मुख्य दिन 14 जनवरी को है। पोंगल मूल रूप से किसानों को बंपर फसल देने के लिए सूर्य देव और भगवान इंद्र का आभार व्यक्त करने के लिए एक फसल उत्सव है। पोंगल के बहुत सारे पहलू हैं – सजावट, अनुष्ठान और रीति-रिवाज और निश्चित रूप से विशेष भोजन।

  • चार दिन का मनाया जाता है यह पर्व :
  • पहली पोंगल (भोगी पोंगल) –
  • दूसरी पोंगल (थाई पोंगल या सूर्य पोंगल) –
  • तीसरी पोंगल (मट्टू पोगल) –
  • चौथी पोंगल (कन्नुम पोंगल) –
  • क्‍यों कहते हैं पोंगल :
  • पौंगल की कथा :
  • पोंगल का महत्व :

चार दिन का मनाया जाता है यह पर्व :

पोंगल के महत्व का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यह पर्व चार दिनों तक चलता है. हर दिन के पोंगल का अलग-अलग नाम होता है.

पोंगल का दूसरा दिन क्या कहलाता है? - pongal ka doosara din kya kahalaata hai?
Pongal Festival 2021

पहली पोंगल (भोगी पोंगल) –

इसको भोगी पोंगल कहते हैं जो देवराज इन्द्र का समर्पित हैं। यह 13 जनवरी, दिन बुधवार को है इसे भोगी पोंगल इसलिए कहते हैं क्योंकि देवराज इन्द्र भोग विलास में मस्त रहनेवाले देवता माने जाते हैं। इस दिन संध्या समय मे लोग अपने अपने घर से पुराने वस्त्र कूड़े आदि लाकर एक जगह इकट्ठा करते हैं और उसे जलाते हैं। यह ईश्वर के प्रति सम्मान एवं बुराईयों के अंत की भावना को दर्शाता है। इस अग्नि के इर्द गिर्द युवा रात भर भोगी कोट्टम बजाते हैं जो भैस की सींग का बना एक प्रकार का ढ़ोल होता है।

दूसरी पोंगल (थाई पोंगल या सूर्य पोंगल) –

14 जनवरी, दिन गुरुवार को थाई पोंगल या सूर्य पोंगल कहा जाता है थाई पोंगल संक्रांति का समय सुबह 8:29 बजे है यह भगवान सूर्य को समर्पित होता है। इस दिन, लोग सुबह का स्नान करते हैं और रंगोली और कोल्लम बनाते हैं। इस दिन पोंगल नामक एक विशेष प्रकार की खीर बनाई जाती है जो मिट्टी के बर्तन में नये धान से तैयार चावल मूंग दाल और गुड से बनती है। पोंगल तैयार होने के बाद सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है और उन्हें प्रसाद रूप में यह पोंगल और गन्ना अर्पण किया जाता है और फसल देने के लिए कृतज्ञता व्यक्त की जाती है।

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तीसरी पोंगल (मट्टू पोगल) –

इसको मट्टू पोगल कहा जाता है यह तीसरे दिन 15 फरवरी दिन शुक्रवार को है। तमिल मान्यताओं के अनुसार मट्टू भगवान शंकर का बैल है जिसे एक भूल के कारण भगवान शंकर ने पृथ्वी पर रहकर मानव के लिए अन्न पैदा करने के लिए कहा और तब से वह पृथ्वी पर रहकर कृषि कार्य में मानव की सहायता कर रहा है। इस दिन किसान अपने बैलों को स्नान कराते हैं उनके सींगों में तेल लगाते हैं और अन्य प्रकार से बैलों को सजाते है। सजाने के बाद उनकी पूजा की जाती है। बैल के साथ ही इस दिन गाय और बछड़ों की भी पूजा की जाती है। कही कहीं लोग इसे केनू पोंगल के नाम से भी जानते हैं जिसमें बहनें अपने भाईयों की खुशहाली के लिए पूजा करती है और भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं।

चौथी पोंगल (कन्नुम पोंगल) –

चार दिनों के इस त्यौहार का अंतिम दिन कन्या पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इसे तिरूवल्लूर के नाम से भी पुकारते हैं। इस दिन घर को सजाया जाता है। इस दिन आम के पलल्व और नारियल के पत्‍तों से दरवाजे पर तोरण बनाया जाता है। महिलाएं इस दिन घर के मुख्य द्वारा पर कोलम यानी रंगोली बनाती हैं। इस दिन पोंगल लोग नये वस्त्र पहनते है और एक दूसरे के यहां पोंगल और मिठाई वायना के तौर पर भेजते हैं। इस पोंगल के दिन ही बैलों की लड़ाई भी होती है जो काफी प्रसिद्ध है। रात्रि के समय सामुदायिक भोज का आयोजन भी होता है, और एक दूसरे को मंगलमय वर्ष की शुभकामना देते हैं।

पोंगल का दूसरा दिन क्या कहलाता है? - pongal ka doosara din kya kahalaata hai?
Pongal Festival 2021

क्‍यों कहते हैं पोंगल :

इस त्यौहार का नाम पोंगल इसलिए पड़ा, क्योंकि इस दिन सूर्य देव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है वह पगल कहलाता है. तमिल भाषा में पोंगल का एक अन्य अर्थ निकलता है ‘अच्छी तरह उबालना’. दोनों ही रूप में देखा जाए तो बात निकल कर यह आती है कि अच्छी तरह उबाल कर सूर्य देवता को प्रसाद भोग लगाना. पोंगल का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह तमिल महीने की पहली तारीख को आरम्भ होता है.

पौंगल की कथा :

मदुरै के कण्णकी और कोवलन नामक व्यक्ति से जुड़ा हुआ है। कहते हैं एक बार कण्णकी के कहने पर कोवलन ने गरीबी के कारण अपनी नुपुर बेचने के लिए सुनार के पास गया तो सुनार ने राजा को जाकर यह सूचना दी कि जो नुपुर कोवलन नामक युवक बेचने आया है वह रानी के चोरी गए नुपुर से मिलते जुलते हैं।

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राजा ने इस अपराध के लिए बिना किसी जांच पड़ताल के कोवलन को फांसी की सजा दे दी। इससे क्रोधित होकर कण्णकी ने शिव जी की भारी तपस्या की और उससे राजा के साथ साथ उसके राज्य को नष्ट करने का वरदान माँगा।

जब राज्य की समस्त जनता को इसकी जानकारी हुई तो वहां महिलाओं ने मिलकर किलिल्यार नदी के किनारे काली माता की आराधना कर अपने राजा पांड्या के जीवन एवं अपने शहर की रक्षा के लिए कण्णकी में मातृत्व भाव जगाने के लिए माता से प्रार्थना की।

कहते हैं माता काली महिलाओं के व्रत से प्रसन्न होकर कण्णकी में मातृत्व भाव जगाकर राजा और उसके नगर की रक्षा की। तब से यहां के काली मंदिर में यह त्यौहार बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। इस तरह चार दिनों का पोंगल का समापन होता है।

पोंगल का दूसरा दिन क्या कहलाता है? - pongal ka doosara din kya kahalaata hai?
Pongal Festival 2021

पोंगल का महत्व :

पोंगल पर्व का मूल कृषि है। सौर पंचांग के अनुसार यह त्यौहार तमिल माह की पहली तारीख यानि 14 या 15 जनवरी को आता है। जनवरी तक तमिलनाडु में गन्ना और धान की फसल पक कर तैयार हो जाती। प्रकृति की असीम कृपा से खेतों में लहलहाती फसलों को देखकर किसान खुश हो जाते हैं और प्रकृति का आभार प्रकट करने के लिए इंद्र, सूर्य देव और पशु धन यानि गाय व बैल की पूजा करते हैं। पोंगल उत्सव करीब 3 से 4 दिन तक चलता है। इस दौरान घरों की साफ-सफाई और लिपाई-पुताई शुरू हो जाती है। मान्यता है कि तमिल भाषी लोग पोंगल के अवसर पर बुरी आदतों को त्याग करते हैं। इस परंपरा को पोही कहा जाता है।

पोंगल के दूसरे दिन को क्या कहते हैं?

दूसरी पोंगल को सूर्य पोंगल कहते हैं

पोंगल का पहला दिन क्या है जिसे के नाम से जाना जाता है?

पोंगल के पहले दिन को भोगी कहा जाता है और इसे भगवान इंद्र के सम्मान में मनाया जाता है। पोंगल का दूसरा दिन सूर्य पोंगल के रूप में जाना जाता है और यह सूर्य देव को समर्पित है। पोंगल के तीसरे दिन को मट्टू पोंगल कहा जाता है और गायों के नाम पर मनाया जाता है।

पोंगल के तीसरे दिन क्या किया जाता है?

3- मट्टू पोंगलपोंगल के तीसरे दिन को मट्टू पोंगल कहा जाता है। इस दिन मट्टू अर्थात बैल और पशुधन की पूजा की जाती है।

पोंगल कितने दिन का होता है?

4 दिन का यह त्‍योहार हर साल जनवरी महीने के मध्‍य में आता है। सबसे पहले दिन भोगी पोंगल, दूसरे दिन पोंगल और तीसरे दिन मट्टू पोंगल और चौथे व आखिरी दिन कानूम पोंगल के रूप में मनाया जाता है। मुख्‍य रूप से यहां किसान समुदाय के लोग यह त्‍योहार मनाते हैं।