पहला रेल अधिनियम कब बना था? - pahala rel adhiniyam kab bana tha?

रेल अधिनियम, 1989

(1989 का अधिनियम संख्यांक 24)

[3 जून, 1989]

रेल संबंधी विधि का समेकन और

संशोधन करने के लिए

अधिनियम

                भारत गणराज्य के चालीसवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

अध्याय 1

प्रारंभिक

1. संक्षिप्त नाम और प्रारंभ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम रेल अधिनियम, 1989 है ।

                (2) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे :

                परंतु इस अधिनियम के भिन्न-भिन्न उपबंधों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी, और ऐसे किसी उपबंध में इस अधिनियम के प्रारंभ के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस उपबंध के प्रवृत्त होने के प्रति निर्देश है ।

2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

                                (1) प्राधिकृत" से रेल प्रशासन द्वारा प्राधिकृत अभिप्रेत है ;

                                 [(1क) प्राधिकरण" से धारा 4क के अधीन गठित रेल भूमि विकास प्राधिकरण अभिप्रेत है ;]

                                (2) वहन" से रेल प्रशासन द्वारा यात्रियों या माल का वहन अभिप्रेत है ;  

(3) दावा अधिकरण" से रेल दावा अधिकरण अधिनियम, 1987 (1987 का 54) की धारा 3 के अधीन स्थापित रेल दावा अधिकरण अभिप्रेत है ;

(4) वर्गीकरण" से वस्तुओं के वहन के लिए प्रभारित किए जाने वाले रेट को अवधारित करने के प्रयोजन के लिए धारा 31 के अधीन किया गया ऐसी वस्तुओं का वर्गीकरण अभिप्रेत है ;

(5) वर्ग रेट" से वर्गीकरण में की वस्तु के किसी वर्ग के लिए नियत किया गया रेट अभिप्रेत है ;

(6) आयुक्त" से धारा 5 के अधीन नियुक्त मुख्य रेल सुरक्षा आयुक्त या रेल सुरक्षा आयुक्त अभिप्रेत है ;

(7) वस्तु" से माल की कोई विनिर्दिष्ट मद अभिप्रेत है ;

 [(7क) सक्षम प्राधिकारी" से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जिसे केंद्रीय सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा, ऐसे क्षेत्र के संबंध में, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, सक्षम प्राधिकारी के कृत्यों का पालन करने के लिए प्राधिकृत किया गया है ;]

(8) परेषिती" से रेल रसीद में परेषिती के रूप में नामित व्यक्ति अभिप्रेत है ;

(9) परेषण" से रेल प्रशासन को वहन के लिए सौंपा गया माल अभिप्रेत है ;

(10) परेषक" से किसी रेल रसीद में परेषक के रूप में नामित वह व्यक्ति अभिप्रेत है, जिसके द्वारा या जिसकी ओर से रेल रसीद के अन्तर्गत आने वाला माल रेल प्रशासन को वहन के लिए सौंपा जाता है ;

(11) डेमरेज" से किसी चल स्टाक के निरोध के लिए अनुज्ञात समय छूट की, यदि कोई हो, समाप्ति के पश्चात् ऐसे निरोध के लिए उद्गृहीत प्रभार अभिप्रेत है ;

(12) पृष्ठांकिती" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसके पक्ष में पृष्ठांकन किया जाता है और उतरोत्तर पृष्ठांकनों की दशा में वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसके पक्ष में अंतिम पृष्ठांकन किया जाता है ;

(13) पृष्ठांकन" से किसी रेल रसीद पर परेषिती या पृष्ठांकिती द्वारा यह निर्देश जोड़ने के पश्चात् हस्ताक्षर करना अभिप्रेत है कि ऐसी रसीद में वर्णित माल में की सम्पत्ति किसी विनिर्दिष्ट व्यक्ति को संक्रांत की जाए ;

(14) किराया" से यात्रियों के वहन के लिए उद्गृहीत प्रभार अभिप्रेत है ;

(15) नौघाट" के अन्तर्गत नौकाओं, पान्टूनों या बेड़ों का पुल, झूला-पूल, उड़न-पुल और अस्थायी-पुल तथा नौघाट के पहुंच मार्ग और उतरने के स्थान हैं ;

(16) प्रेषण टिप्पण" से धारा 64 के अधीन निष्पादित दस्तावेज अभिप्रेत हैं ;

(17) माल-भाड़ा" से माल के वहन के लिए उद्गृहीत प्रभार, जिसके अंतर्गत पोतान्तरण प्रभार, यदि कोई हो, अभिप्रेत है ;

(18) महाप्रबन्धक" से धारा 4 के अधीन नियुक्त किसी आंचलिक रेल का महाप्रबन्धक अभिप्रेत है ;

(19) माल" के अंतर्गत निम्नलिखित है-

                (i) माल को समेकित करने के लिए प्रयुक्त आधान पट्टिका या परिवहन की वैसी ही वस्तुएं ; और

                (ii) पशु ;

(20) सरकारी रेल" से केन्द्रीय सरकार के स्वामित्वाधीन कोई रेल अभिप्रेत है ;

(21) रेल द्वारा माल के वहन के संबंध में, अभिवहन में" से ऐसे माल के अभिवहन के प्रारम्भ और पर्यवसान के बीच की अवधि अभिप्रेत है और जब तक कि वह पहले समाप्त न किया गया हो-

(क) अभिवहन उस समय ही प्रारम्भ हो जाता है जब रेल रसीद जारी कर दी जाती है या परेषण की लदाई हो जाती है, इनमें जो भी पूर्ववर्ती हो ;

(ख) अभिवहन का किसी चल स्टाक से परेषण के उतारने के लिए अनुज्ञात समय छूट की समाप्ति के पश्चात् पर्यवसान हो जाता है और जहां माल उतारने का काम ऐसी समय छूट के भीतर पूरा कर लिया गया है वहां अभिवहन रेल परिसर से माल के हटाए जाने के लिए अनुज्ञात समय छूट की समाप्ति पर पर्यवसित हो जाता है ;

                                (22) समतल क्रासिंग" से वह स्थल अभिप्रेत है जहां समतल पर रेल की पटरियां किसी सड़क को काटती हैं ;

                (23) सामान" से यात्री का वह माल अभिप्रेत है जो उसके द्वारा या तो अपने भारसाधन में ले जाया जाता है या रेल प्रशासन को वहन के लिए सौंपा जाता है ;

                (24) एकमुश्त रेट" से वह रेट अभिप्रेत है जो रेल प्रशासन और परेषक के बीच माल के वहन के लिए और ऐसे वहन के संबंध में किसी सेवा के लिए परस्पर तय किया गया है ;

                (25) गैर-सरकारी रेल" से सरकारी रेल से भिन्न कोई रेल अभिप्रेत है ;

                (26) अधिसूचना" से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है ;

                 [(26क) प्राधिकृत अधिकारी" से धारा 179 की उपधारा (2) के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा प्राधिकृत कोई अधिकारी अभिप्रेत है ;]

                (27) पार्सल" से किसी यात्री या पार्सल गाड़ी द्वारा वहन के लिए रेल प्रशासन को सौंपा गया माल अभिप्रेत है ;

                (28) पास" से किसी व्यक्ति को केंद्रीय सरकार या रेल प्रशासन द्वारा दिया गया प्राधिकार अभिप्रेत है जो उसको यात्री के रूप में यात्रा करने के लिए अनुज्ञात करता है, किन्तु इसके अंतर्गत कोई टिकट नहीं है ;

                (29) यात्री" से किसी विधिमान्य पास या टिकट से यात्रा करने वाला कोई व्यक्ति अभिप्रेत है ;

                 [(29क) हितबद्ध व्यक्ति" के अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं :-

(i) इस अधिनियम के अधीन भूमि के अर्जन मद्दे दिए जाने वाले प्रतिकर में किसी हित का दावा करने वाले सभी व्यक्ति ;

(ii) ऐसे जनजातीय और अन्य परंपरागत वन निवासी, जिन्होंने अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 (2007 का 2) के अधीन मान्यताप्राप्त कोई परंपरागत अधिकार खो दिए हैं ;

(iii) भूमि को प्रभावित करने वाले किसी सुखाचार में हितबद्ध कोई व्यक्ति ; और

(iv) सुसंगत राज्य विधियों के अधीन अभिधारण अधिकार रखने वाले व्यक्ति ;]

                                (30) विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;

                (31) रेल" से यात्रियों या माल के सार्वजनिक वहन के लिए रेल या रेल का कोई प्रभाग अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं :-

(क) रेल से अनुलग्न भूमि की सीमाएं दर्शित करने वाली बाड़ या अन्य सीमा-चिह्नों के भीतर की सब भूमि ;

(ख) रेल के प्रयोजनों के लिए या उसके संबंध में उपयोग में लाई जाने वाली सभी रेल लाइनें, साइडिंग या यार्ड या शाखाएं ;

(ग) रेल के प्रयोजनों के लिए या उसके संबंध में उपयोग में लाए जाने वाले सभी विद्युत कर्षण उपस्कर, विद्युत प्रदाय और वितरण प्रतिष्ठापन ;

(घ) रेल के प्रयोजनों के लिए या उसके संबंध में सन्निर्मित सभी चल स्टाक, स्टेशन, कार्यालय, भांडागार, माल उतारने-चढ़ाने के स्थान, कर्मशालाएं, विनिर्माण शालाएं, स्थिर संयंत्र तथा मशीनरी, सड़कें तथा गलियां, चालकवर्ग कमरे, विश्राम गृह, संस्थान, अस्पताल, जल संकर्म तथा जल प्रदाय प्रतिष्ठापन, कर्मचारी निवास स्थान और कोई अन्य संकर्म ;

(ङ) ऐसे सभी यान जो रेल के यातायात के प्रयोजनों के लिए सड़क पर उपयोग में लाए जाते हैं और जो रेल के स्वामित्व में हैं, उसके द्वारा भाड़े पर लिए जाते हैं या चलाए जाते हैं ; और

(च) ऐसे सभी नौघाट, पोत, नौकाएं और बेड़े, जो किसी नहर, नदी, झील या अन्य नाव्य अन्तर्देशीय जल में रेल के यातायात के प्रयोजनों के लिए उपयोग में लाए जाते हैं और जो रेल प्रशासन के स्वामित्व में हैं, उसके द्वारा भाड़े पर लिए गए हैं या चलाए जाते हैं,

                किंतु इसके अंतर्गत निम्नलिखित नहीं हैं :-

                                (i) कोई ट्राम, जो पूर्णतया किसी नगरपालिका क्षेत्र के भीतर है ; और

                (ii) रेल की वे लाइनें जो किसी प्रदर्शनी मैदान, मेला, पार्क या किसी अन्य स्थान में मात्र मनोरंजन के प्रयोजन के लिए निर्मित की गई हैं ;

                (32) रेल प्रशासन" से-

                                (क) सरकारी रेल के संबंध में, किसी आंचलिक रेल का महाप्रबंधक अभिप्रेत है ; और

                (ख) किसी गैर-सरकारी रेल के संबंध में, वह व्यक्ति जो किसी रेल का स्वामी या पट्टाधारी है या वह व्यक्ति जो किसी करार के अधीन रेल चला रहा है, अभिप्रेत है ;

 [(32क) रेल भूमि" से ऐसी कोई भूमि अभिप्रेत है जिसमें किसी सरकारी रेल का कोई अधिकार, हक या हित है ;]

(33) रेल रसीद" से धारा 65 के अधीन जारी की गई रसीद अभिप्रेत है ;

(34) रेल सेवक" से रेल सेवा के संबंध में, केंद्रीय सरकार द्वारा या किसी रेल प्रशासन द्वारा नियोजित कोई व्यक्ति  [जिसके अंतर्गत रेल संरक्षण बल अधिनियम, 1957 (1957 का 23) की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (ग) के अधीन नियुक्त रेल-सरंक्षण बल का कोई सदस्य भी है] अभिप्रेत है ;

(35) रेट" के अंतर्गत किसी यात्री या माल के वहन के लिए कोई किराया, भाड़ा या कोई अन्य प्रभार है ;

(36) विनियम" से इस अधिनियम के अधीन रेल रेट अधिकरण द्वारा बनाए गए विनियम अभिप्रेत हैं ;

(37) चल स्टाक" के अंतर्गत रेल पर चलने वाले रेल इंजन, टेंडर, सवारी डिब्बे, वैगन, रेलकारें, आधान, ट्रक, ट्रालियां और सभी प्रकार के यान भी हैं ;

 [(37क) विशेष रेल परियोजना" से ऐसी परियोजना अभिप्रेत है, जो केंद्रीय सरकार द्वारा, समय-समय पर, एक या अधिक राज्यों या संघ राज्यक्षेत्रों को समावेशित करते हुए, किसी विनिर्दिष्ट समय-सीमा में किसी लोक प्रयोजन के लिए राष्ट्रीय अवसरंचना उपलब्ध कराने के लिए, उस रूप में अधिसूचित की गई है ;]

(38) स्टेशन से स्टेशन तक का रेट" से विनिर्दिष्ट स्टेशनों के बीच बुक की गई किसी विनिर्दिष्ट वस्तु को लागू विशेषतः घटाया गया रेट अभिप्रेत है ;

(39) यातायात" के अंतर्गत हर वर्णन का चल स्टाक तथा यात्री और माल भी हैं ;

(40) अधिकरण" से धारा 33 के अधीन गठित रेल रेट अधिकरण अभिप्रेत है ;

(41) स्थान भाड़ा" से वह प्रभार अभिप्रेत है जो माल को रेल से हटाने की समय छूट की समाप्ति के पश्चात् उसे   न हटाने के लिए माल पर उद्गृहीत किया जाता है ;

(42) आंचलिक रेल" से धारा 3 के अधीन गठित आचंलिक रेल अभिप्रेत है ।

अध्याय 2

रेल प्रशासन

3. आंचलिक रेल-(1) केंद्रीय सरकार, सरकारी रेलों के दक्ष प्रशासन के प्रयोजन के लिए, अधिसूचना द्वारा, ऐसी रेलों का उतनी आंचलिक रेलों में गठन कर सकेगी जितनी वह ठीक समझे, और ऐसी अधिसूचना में ऐसी आंचलिक रेलों के नामों और मुख्यालयों को और उन क्षेत्रों को जिनके संबंध में वे अधिकारिता का प्रयोग करेंगे, विनिर्दिष्ट कर सकेगी ।

                (2) इस अधिनियम के प्रारंभ के ठीक पूर्व विद्यमान आंचलिक रेल उपधारा (1) के अधीन गठित आंचलिक रेलें मानी जाएंगी ।

                (3) केंद्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा, चल स्टाक, उसके भागों या रेल में उपयोग किए जाने वाले अन्य उपस्कर के अनुसंधान, विकास, डिजाइन बनाने, सन्निर्माण या उत्पादन में लगी रेल की किसी यूनिट को आंचलिक रेल घोषित कर सकेगी ।

                (4) केंद्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, किसी आंचलिक रेल का उत्सादन कर सकेगी, या किसी विद्यमान आंचलिक रेल या आंचलिक रेलों में से किसी नई आंचलिक रेल का गठन कर सकेगी, किसी आंचलिक रेल के नाम या उसके मुख्यालय को परिवर्तित कर सकेगी या उन क्षेत्रों का अवधारण कर सकेगी जिनके संबंध में कोई आंचलिक रेल अधिकारिता का प्रयोग करेगी ।

4. महाप्रबंधक की नियुक्ति-(1) केंद्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा किसी व्यक्ति को किसी आंचलिक रेल का महाप्रबंधक नियुक्त करेगी ।

                (2) किसी आंचलिक रेल का साधारण अधीक्षण और नियंत्रण महाप्रबंधक में निहित होगा ।

[अध्याय 2

रेल भूमि विकास प्राधिकरण

4क. रेल भूमि विकास प्राधिकरण की स्थापना-केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का निर्वहन करने के लिए, रेल भूमि विकास प्राधिकरण के नाम से अधिसूचना द्वारा, एक प्राधिकरण स्थापित कर सकेगी ।

4ख. प्राधिकरण की संरचना-(1) प्राधिकरण अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और चार से अनधिक अन्य सदस्यों से, जिसके अंतर्गत रेल प्रशासन के बाहर से विशेषज्ञ भी सम्मिलित हैं, से मिलकर बनेगा ।

(2) सदस्य इंजीनियरी, रेल बोर्ड, प्राधिकरण का पदेन अध्यक्ष होगा ।

(3) उपाध्यक्ष और तीन सदस्य, केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे और उन व्यक्तियों में से जो किसी रेल प्रशासन की सिविल इंजीनीयरी, वित्त और यातायात, विद्या शाखा में कार्यरत हैं या कार्य कर रहे हैं और जिन्हें उस सुसंगत विद्या शाखा में जिसे केन्द्रीय सरकार आवश्यक समझे, पर्याप्त अनुभव है ।

(4) केन्द्रीय सरकार ऐसे किसी सदस्य को भी नियुक्त करेगी जो रेल प्रशासन से बाहर का व्यक्ति होगा और ऐसे क्षेत्र में पर्याप्त अनुभव रखता है जिसे वह आवश्यक समझे ।

4ग. उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति के निबन्धन और शर्तें-अध्यक्ष से भिन्न, प्राधिकरण के उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति के निबन्धन और शर्तें तथा उनमें आकस्मिक रिक्तियों को भरने की रीति वह होगी, जो विहित की जाए ।

4घ. प्राधिकरण के कृत्य-(1) प्राधिकरण, रेल के विकास से संबंधित केन्द्रीय सरकार के ऐसे कृत्यों का निर्वहन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा उसे विनिर्दिष्ट रूप से समुनदेशित की जाएं ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, केन्द्रीय सरकार, प्राधिकरण को निम्नलिखित सभी या किन्हीं कृत्यों को समनुदेशित कर सकेगी, अर्थात् :-

(i) इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसरण में रेल भूमि के उपयोग के लिए स्कीम या स्कीमें तैयार करना ;

(ii) वाणिज्यिक उपयोग के लिए रेल भूमि का विकास करना, जो गैर टैरिफ उपायों द्वारा राजस्व जुटाने के प्रयोजन के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा सौंपी जाएं ;

(iii) भूमि और सम्पत्ति के विकास के संबंध में भारत या विदेश में परामर्श, सन्निर्माण या प्रबन्धन सेवाओं का विकास करना और उन्हें उपलब्ध कराना तथा संक्रिया करना ;

(iv) कोई अन्य कार्य या कृत्य करना जो केन्द्रीय सरकार द्वारा लिखित आदेश से उसे सौंपे जाएं ।

4ङ. प्राधिकरण की करार करने और संविदाएं निष्पादित करने की शक्तियां-प्राधिकरण, ऐसे निदेशों के अधीन रहते हुए,   जो उसे केन्द्रीय सरकार द्वारा दिए जाएं, केन्द्रीय सरकार की ओर से करार करने और संविदाएं निष्पादित करने के लिए सशक्त होगा ।

4च. प्राधिकरण के कारबार के संव्यवहार की प्रक्रिया-प्राधिकरण को, अपनी स्वयं की प्रक्रिया को (जिसके अन्तर्गत उसकी बैठकों में गणपूर्ति भी है) उसके द्वारा बनाए गए विनियमों द्वारा विनियमित करने और उसके द्वारा किए जाने वाले सभी कारबार का संचालन करने, सदस्यों की समितियों और उपसमितियों का गठन करने तथा उन्हें प्राधिकरण की किन्हीं शक्तियों का (इस अध्याय के अधीन विनियम बनाने की शक्ति को अपवर्जित करते हुए) और कर्तव्यों का प्रत्यायोजन करने की शक्ति होगी ।

4छ. प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, प्राधिकरण को इस अधिनियम के अधीन उसके कृत्यों का दक्षतापूर्वक निर्वहन करने में उसे समर्थ बनाने के प्रयोजन के लिए, उतने अधिकारी और अन्य कर्मचारी उपलब्ध कराएगी और प्राधिकरण, उन नियमों के अधीन रहते हए, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त बनाए जाएं, प्रतिनियुक्ति पर या अन्यथा, उतने अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को नियुक्त करेगा, जो आवश्यक समझे जाएं ।

(2) प्राधिकरण के प्रयोजनों के लिए नियुक्त अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते तथा सेवा के अन्य निबन्धन और शर्तें वे होंगी, जो विहित की जाएं ।

4ज. वेतन, भत्तों आदि का भारत की संचित निधि में से चुकाया जाना-प्राधिकरण के उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते तथा प्रशासनिक व्यय, जिनके अन्तर्गत प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते सम्मिलित हैं, भारत की संचित निधि में से चुकाए जाएंगे ।

4झ. प्राधिकरण की विनियम बनाने की शक्ति-(1) प्राधिकरण, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से, इस अध्याय के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए इस अधिनियम और तद्धीन बनाए गए नियमों से संगत विनियम बना सकेगा ।

(2) इस अध्याय के अधीन प्राधिकरण द्वारा बनाया गया प्रत्येक विनियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह ऐसी कुल तीस दिन की अवधि के लिए सत्र में हो जो एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी, रखा जाएगा । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं या तत्पश्चात् दोनों सदन इस बात से सहमत हो जाएं कि वह विनियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा या उसका कोई प्रभाव नहीं होगा । तथापि उस विनियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।]

अध्याय 3

रेल सुरक्षा आयुक्त

5. मुख्य रेल सुरक्षा आयुक्त और रेल सुरक्षा आयुक्तों की नियुक्ति-केंद्रीय सरकार, किसी व्यक्ति को मुख्य रेल सुरक्षा आयुक्त और उतने अन्य व्यक्तियों को जितने वह आवश्यक समझे, रेल सुरक्षा आयुक्त नियुक्त कर सकेगी ।

6. आयुक्त के कर्तव्य-आयुक्त-

(क) किसी रेल का निरीक्षण यह अवधारित करने की दृष्टि से करेगा कि क्या वह यात्रियों के सार्वजनिक वहन के लिए चालू किए जाने के लिए उपयुक्त है, और उस बाबत केंद्रीय सरकार को इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन अपेक्षित रूप में रिपोर्ट देगा;

(ख) किसी रेल का या उसमें उपयोग में लाए जाने वाले किसी चल स्टाक का ऐसा नियतकालिक, या अन्य निरीक्षण करेगा, जैसा केंद्रीय सरकार निदेश दे;

(ग) किसी रेल पर किसी दुर्घटना के कारणों की इस अधिनियम के अधीन जांच करेगा; और

(घ) ऐसे अन्य कर्तव्यों का निर्वहन करेगा जो इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उसको प्रदत्त किए जाएं ।

7. आयुक्त की शक्तियां-केंद्रीय सरकार के नियंत्रण के अधीन रहते हुए, आयुक्त, जब कभी इस अधिनियम के प्रयोजनों में से किसी के लिए ऐसा करना आवश्यक हो, -

(क) किसी रेल या उसमें उपयोग में लाए जाने वाले किसी चल स्टाक में प्रवेश कर सकेगा और उसका निरीक्षण   कर सकेगा;

(ख) रेल प्रशासन को संबोधित लिखित आदेश द्वारा अपने समक्ष किसी रेल सेवक की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा और ऐसे रेल सेवक या रेल प्रशासन से ऐसी पूछताछ की बाबत जैसी वह करना ठीक समझे, उत्तरों या विवरणी की अपेक्षा कर सकेगा; और

(ग) किसी रेल प्रशासन की या उसके कब्जे या नियंत्रण में की किसी ऐसी पुस्तक, दस्तावेज या ऐसे सारवान् पदार्थ को प्रस्तुत करने की अपेक्षा कर सकेगा, जिसका निरीक्षण करना उसे आवश्यक प्रतीत होता है ।

8. आयुक्त का लोक सेवक होना-आयुक्त, भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थान्तर्गत लोक सेवक समझा जाएगा ।

9. आयुक्तों को दी जाने वाली सुविधाएं-रेल प्रशासन आयुक्त को इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन उस पर अधिरोपित कर्तव्यों के निर्वहन के लिए या उसको प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने के लिए सभी युक्तियुक्त सुविधाएं देगा ।

10. आयुक्तों की वार्षिक रिपोर्ट-मुख्य रेल सुरक्षा आयुक्त प्रत्येक वित्तीय वर्ष में एक वार्षिक रिपोर्ट उस वित्तीय वर्ष से, जिसमें ऐसी रिपोर्ट तैयार की जाती है, ठीक पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के दौरान आयुक्तों के क्रियाकलापों का पूर्ण विवरण देते हुए तैयार करेगा और उस तारीख से पूर्व जो केंद्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, इसकी प्रतियां केंद्रीय सरकार को भेजेगा और केन्द्रीय सरकार, उस रिपोर्ट को उसकी प्राप्ति के पश्चात्, यथाशक्यशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी ।

अध्याय 4

संकर्मों का सन्निर्माण और अनुरक्षण

11. सभी आवश्यक संकर्मों के निष्पादन की रेल प्रशासनों की शक्ित-तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी किन्तु इस अधिनियम के उपबंधों और सार्वजनिक प्रयोजन के लिए या कंपनियों के लिए भूमि के अर्जन की किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए और किसी गैर-सरकारी रेल की दशा में गैर-सरकारी रेल और केंद्रीय सरकार के बीच किसी संविदा के उपबंधों के भी अधीन रहते हुए, रेल प्रशासन किसी रेल के सन्निर्माण या अनुरक्षण के प्रयोजनों के लिए-

(क) किन्हीं भूखंडों या किन्हीं मार्गों, पहाड़ियों, घाटियों, सड़कों, रेलों या ट्रामों या किन्हीं नदियों, नहरों, नालों, सरिताओं या अन्य जलखंडों या किन्हीं नालियों, पानी के नलों, गैस के नलों, तेल के पाइपों, मल प्रणाली, विद्युत प्रदाय लाइनों या तार लाइनों में, या उन पर, उनके आर-पार, नीचे या ऊपर ऐसे अस्थायी या स्थायी आनत, समपथ, पुल, सुरंग, पुलिया, तटबंध, जलसेतु, सड़कें, रेल की लाइनें, पथ, रास्ते, नलिकाएं, नालियां, प्रस्तंभ, कटाव और बाड़, अन्तःग्राही कुएं, नलकूप, बांध, नदी नियंत्रण और संरक्षण संकर्म बना या सन्निर्मित कर सकेगा जैसा वह उचित समझे ;

(ख) किन्हीं नदियों, नालों, सरिताओं या अन्य जल-सरणियों के मार्ग को, उसके ऊपर या नीचे सुरंगों, पुलों, रास्तों या अन्य संकर्मों के सन्निर्माण और अनुरक्षण के प्रयोजन के लिए परिवर्तित कर सकेगा और किन्हीं नदियों, नालों, सरिताओं या अन्य जल-सरणियों या किन्हीं सड़कों, मार्गों या पथों को इस उद्देश्य से कि उन्हें रेल के ऊपर या नीचे या बगल में से, अधिक सुविधापूर्वक ले जाया जा सके, अस्थायी रूप से या स्थायी रूप से मोड़ या परिवर्तित कर सकेगा या उसके तल को ऊंचा या नीचा कर सकेगा ;

(ग) रेल से या रेल तक पानी प्रवाहित करने के प्रयोजन के लिए नालियां या नलिकाएं, रेल से लगी हुई किन्हीं भूमियों में या उन पर होकर या उनके नीचे बना सकेगा;

(घ) ऐसे घर, भांडागार, कार्यालय और अन्य भवन और ऐसे यार्ड, स्टेशन, माल उतारने-चढ़ाने के स्थान, इंजन, मशीनरी, साधित्र और अन्य संकर्म तथा सुविधाएं, जो रेल प्रशासन उचित समझे, परिनिर्मित और सन्निर्मित कर सकेगा;

 [(घक) वाणिज्यिक उपयोग के लिए किसी रेल भूमि का विकास करना;]

(ङ) यथापूर्वोक्त ऐसे भवनों, संकर्मों और सुविधाओं में या उनमें से किसी में परिवर्तन कर सकेगा, उनकी मरम्मत कर सकेगा या उन्हें बन्द कर सकेगा और उनके स्थान पर दूसरे बना सकेगा;

(च) रेल के कार्यकरण के संबंध में किन्हीं तार लाइनों और टेलीफोन लाइनों का परिनिर्माण, प्रवर्तन, अनुरक्षण या मरम्मत कर सकेगा;

(छ) रेल के कार्यकरण के संबंध में किसी विद्युत कर्षण उपस्कर, विद्युत प्रदाय और वितरण प्रतिष्ठापन का परिनिर्माण, प्रवर्तन, अनुरक्षण या मरम्मत कर सकेगा; और

(ज) रेल के बनाने, अनुरक्षण करने, परिवर्तन या मरम्मत करने और उपयोग में लाने के लिए आवश्यक अन्य सब कार्य कर सकेगा ।

12. पाइप, विद्युत प्रदाय लाइनों, नालियों या सीवर आदि की स्थिति में परिवर्तन करने की शक्ति-(1) रेल प्रशासन इस अधिनियम द्वारा उसको प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने के प्रयोजन के लिए गैस, जल, तेल या संपीड़ित वायु के प्रदाय के लिए किसी पाइप की स्थिति या किसी विद्युत प्रदाय लाइन, नाली या सीवर की स्थिति में परिवर्तन कर सकेगा:

                परंतु किसी ऐसे पाइप, विद्युत प्रदाय लाइन, नाली या सीवर की स्थिति में परिवर्तन करने के पूर्व, रेल प्रशासन ऐसा करने की सूचना पाइप, विद्युत प्रदाय लाइन, नाली या सीवर पर नियंत्रण रखने वाले स्थानीय प्राधिकारी या अन्य व्यक्ति को देगा जिसमें वह समय उपदर्शित किया जाएगा जब ऐसे परिवर्तन का कार्य प्रारंभ किया जाएगा ।

(2) रेल प्रशासन उपधारा (1) में निर्दिष्ट कार्य का निष्पादन उपधारा (1) के परंतुक के अधीन सूचना प्राप्त करने वाले स्थानीय प्राधिकारी या व्यक्ति के समुचित समाधानप्रद रूप में करेगा ।

13. सरकारी संपत्ति के लिए संरक्षण-धारा 11 और धारा 12 की कोई बात-

(क) सरकारी रेल के किसी रेल प्रशासन को ऐसे संकर्मों, भूमियों या भवनों पर या उनके बारे में, जो किसी राज्य सरकार में निहित हैं या उसके कब्जे में हैं, उस सरकार की सम्मति के बिना कुछ करने के लिए प्राधिकृत नहीं करेगी; और

(ख) किसी गैर-सरकारी रेल के रेल प्रशासन को ऐसे संकर्मों, भूमियों या भवनों पर या उनके बारे में, जो केंद्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार में निहित हैं या उसके कब्जे में हैं, संबद्ध सरकार की सम्मति के बिना कुछ करने के लिए प्राधिकृत नहीं करेगी ।

14. बाधा हटाने, मरम्मत करने या दुर्घटना के निवारण के लिए भूमि पर अस्थायी प्रवेश-(1) जहां रेल प्रशासन की राय में-

(क) इस बात का आसन्न खतरा है कि कोई वृक्ष, खंभा या संरचना रेल लाइन पर ऐसे गिर सकती है जिससे चल स्टाक के संचलन में बाधा हो सकती है, या

(ख) कोई वृक्ष, खंभा, संरचना या प्रकाश चल स्टाक के संचलन के लिए व्यवस्था किए गए सिगनल के दिखने में बाधा डालता है, या

(ग) कोई वृक्ष, खंभा या संरचना उसके द्वारा अनुरक्षित किसी टेलीफोन या तार लाइन में बाधा डालती है,

वहां वह ऐसे उपाय कर सकेगा, जो ऐसे खतरे को टालने के लिए या ऐसी बाधा हटाने के लिए आवश्यक हों और उसकी एक रिपोर्ट केंद्रीय सरकार को ऐसी रीति से और ऐसे समय के भीतर, जो विहित किया जाए, प्रस्तुत करेगा ।

                (2) जहां रेल प्रशासन की राय में, -

                                (क) कोई स्खलन या दुर्घटना हुई है; या

                                (ख) रेल से संबंधित किसी कटाव, तटबंध या अन्य संकर्म में कोई स्खलन या दुर्घटना होने की आशंका है,

वहां वह रेल से लगी किसी भूमि पर प्रवेश कर सकेगा और ऐसे सभी कार्य कर सकेगा, जो ऐसे स्खलन की मरम्मत करने या ऐसी दुर्घटना को रोकने के प्रयोजन के लिए आवश्यक हों और उसकी एक रिपोर्ट केंद्रीय सरकार को ऐसी रीति से और ऐसे समय के भीतर, जो विहित किया जाए, प्रस्तुत करेगा ।

                (3) केंद्रीय सरकार उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात्, लोक सुरक्षा के हित में, आदेश द्वारा रेल प्रशासन को निदेश दे सकेगी कि उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन आगे कार्रवाई रोक दी जाए या वह ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए की जाए जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएं ।

15. नुकसान या हानि के लिए रकम का संदाय-(1) रेल प्रशासन के विरुद्ध कोई वाद इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी के द्वारा प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में कारित किसी नुकसान या हानि के लिए कोई रकम वसूल करने के लिए नहीं लाया जाएगा ।

                (2) रेल प्रशासन, इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी के द्वारा प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में कारित किसी नुकसान या हानि के लिए संदाय करेगा या संदाय निविदत्त करेगा और इस प्रकार संदत्त या निविदत्त किसी रकम की पर्याप्तता के बारे में या रकम प्राप्त करने के लिए हकदार व्यक्तियों के बारे में विवाद की दशा में वह विवाद को तत्काल जिले के जिला न्यायाधीश के विनिश्चय के लिए निर्दिष्ट करेगा और उसका उस पर विनिश्चय अंतिम होगा:

                परंतु जहां रेल प्रशासन ऐसे विवाद के प्रारंभ की तारीख से साठ दिन के भीतर, ऐसा निर्देश करने में असफल रहता है, वहां जिला न्यायाधीश संबद्ध व्यक्ति द्वारा उसे आवेदन किए जाने पर, रेल प्रशासन को निदेश कर सकेगा कि वह उस विवाद को उसके विनिश्चय के लिए निर्दिष्ट करे ।

                (3) उपधारा (2) के अधीन निर्देश सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की धारा 36 के अधीन अपील माना जाएगा और उसका निपटारा तद्नुसार किया जाएगा ।

                (4) जहां किसी रकम का उपधारा (2) द्वारा अपेक्षित रूप में संदाय किया गया है, वहां रेल प्रशासन उस समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, इस प्रकार संदत्त किसी रकम के संबंध में किसी व्यक्ति के प्रति सभी दायित्वों से, वे जो भी हों, उन्मोचित हो जाएगा ।

16. सुविधा संकर्म-(1) रेल प्रशासन रेल से लगी हुई भूमि के स्वामियों और अधिभोगियों की सुविधा के लिए निम्नलिखित संकर्म बनाएगा और उनका अनुरक्षण करेगा, अर्थात्: -

(क) रेल के ऊपर, नीचे या बगल में या रेल तक जाने या रेल से आने के लिए ऐसे क्रासिंग, पुल, पुलियाएं और रास्ते, जो राज्य सरकार की राय में उन भूमियों के, जिनमें से होकर रेल मार्ग बनाया गया है, उपयोग में रेल द्वारा कारित किसी अवरोध को दूर करने के प्रयोजन के लिए आवश्यक है; और

(ख) रेल के ऊपर, नीचे या बगल में इतने विस्तार के सब आवश्यक पुल, सुरंगे, पुलियाएं, नालियां, जल-सरणियां या अन्य रास्ते जितने राज्य सरकार की राय में उन भूमियों में से या उन तक, जो रेल के निकट हैं या जिन पर रेल का प्रभाव पड़ा है, सब समयों पर जल के इतने निर्बाध रूप से प्रवहण के लिए जितना रेल के बनाए जाने से पूर्व था या यथाशक्य संभव हो, पर्याप्त होंगे ।

                (2) इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट संकर्म उन भूमियों में, जिनमें से रेल गुजरती है, रेल के बिछाए जाने या बनाए जाने के दौरान या तुरन्त पश्चात् रेल प्रशासन के खर्च पर और ऐसी रीति से बनाए जाएंगे जिससे उन भूमियों में हितबद्ध या उन संकर्मों से प्रभावित व्यक्तियों को यथासंभव कम नुकसान या असुविधा हो:

                परन्तु-

(क) किसी रेल प्रशासन से यह अपेक्षा नहीं की जाएगी कि वह किन्हीं सुविधा-संकर्मों को ऐसी रीति से बनाए जिससे रेल के कार्यकरण या उपयोग में रुकावट या बाधा हो या ऐसे किन्हीं सुविधा-संकर्मों को बनाए जिनकी बाबत भूमि के स्वामियों या अधिभोगियों को ऐसे संकर्मों के बनाए जाने की अपेक्षा न करने के प्रतिफलस्वरूप प्रतिकर का संदाय कर दिया है;

(ख) इस अध्याय में इसके पश्चात् जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, कोई रेल प्रशासन, उस तारीख से जिसको उन भूमियों में से होकर जाने वाली रेल, सार्वजनिक यातायात के लिए प्रथम बार चालू की गई थी, दस वर्ष की समाप्ति के पश्चात्, भूमि के स्वामियों या अधिभोगियों के उपयोग के लिए कोई और या अतिरिक्त सुविधा-संकर्म निष्पादित करने के लिए दायी नहीं होगा;

(ग) जहां रेल प्रशासन ने सड़क या जलधारा पार करने के लिए यथोचित सुविधा-संकर्म की व्यवस्था कर दी है और वह सड़क या जल धारा उस पर नियंत्रण रखने वाले व्यक्ति के कार्य या उपेक्षा से तत्पश्चात् मोड़ दी जाती है वहां रेल प्रशासन को उस सड़क या जलधारा को पार करने के लिए किसी अन्य सुविधा-संकर्म की व्यवस्था करने के लिए विवश नहीं किया जाएगा ।

                (3) राज्य सरकार उपधारा (1) के अधीन निष्पादित किए जाने वाले किसी संकर्म के प्रारंभ के लिए कोई तारीख विनिर्दिष्ट कर सकेगी और यदि उस तारीख के पश्चात् अगले तीन मास के भीतर रेल प्रशासन संकर्म प्रारंभ करने में असफल रहता है या उसे प्रारंभ करने पर उसे तत्परतापूर्वक निष्पादित करते रहने में असफल रहता है तो केन्द्रीय सरकार ऐसी असफलता राज्य सरकार द्वारा उसकी जानकारी में लाए जाने पर, रेल प्रशासन को ऐसे निदेश देगी जो वह ठीक समझे ।

                स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए भूमियों" पद के अन्तर्गत सार्वजनिक सड़कें भी हैं ।

17. स्वामी, अधिभोगी, राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी की अतिरिक्त सुविधा-संकर्म बनवाने की शक्ति-(1) यदि किसी रेल द्वारा प्रभावित किसी भूमि का स्वामी या अधिभोगी यह समझता है कि धारा 16 के अधीन बनाए गए संकर्म उस भूमि के उपयोग के लिए अपर्याप्त हैं या यदि राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी रेल के आर-पार, नीचे या ऊपर सार्वजनिक सड़क या अन्य संकर्म बनाना चाहता है तो, यथास्थिति, ऐसा स्वामी या अधिभोगी या राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी किसी भी समय रेल प्रशासन से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह, यथास्थिति, उस स्वामी या अधिभोगी या राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी के खर्च पर ऐसे अतिरिक्त सुविधा-संकर्म बनाए जो आवश्यक समझे जाएं और जिनके लिए रेल प्रशासन सहमत हो जाए ।

                (2) उपधारा (1) के अधीन बनाए गए सुविधा-संकर्मों का अनुरक्षण भूमि के स्वामी या अधिभोगी, उस राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी के खर्च पर किया जाएगा, जिसके अनुरोध पर संकर्म बनाए गए थे ।

                (3) रेल प्रशासन और, यथास्थिति, स्वामी या अधिभोगी, राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी के बीच, -

                                (i) ऐसे अतिरिक्त सुविधा-संकर्मों की आवश्यकता; या

                                (ii) ऐसे अतिरिक्त सुविधा-संकर्मों के सन्निर्माण पर उपगत किए जाने वाले व्यय; या

                (iii) ऐसे अतिरिक्त सुविधा-संकर्मों के अनुरक्षण पर व्यय की मात्रा, के बारे में मतभेद होने की दशा में, वह केन्द्रीय सरकार को निर्दिष्ट किया जाएगा जिसका उस पर विनिश्चय अंतिम होगा ।

18. बाड़, फाटक और अवरोधक-केन्द्रीय सरकार उतने समय के भीतर, जितना उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए या ऐसे अतिरिक्त समय के भीतर जो वह मंजूर करे, अपेक्षा कर सकेगी कि: -

(क) रेल प्रशासन किसी रेल या उसके किसी भाग के लिए और उसके संबंध में सन्निर्मित सड़कों के लिए सीमा-चिह्नों या बाड़ों की व्यवस्था करे या उन्हें नवीकृत करे;

(ख) रेल प्रशासन समतल क्रासिंगों पर, यथोचित, फाटक, जंजीर, अवरोधक, खंभे या डंडहरे परिनिर्मित करे या नवीकृत करे;

(ग) रेल प्रशासन फाटकों, जंजीरों या अवरोधकों को खोलने और बन्द करने के लिए व्यक्तियों को नियोजित करे ।

19. उपरि पुल और अधोमार्गी पुल-(1) जहां रेल प्रशासन ने सार्वजनिक सड़क के समतल पर आर-पार रेलों की लाइनें सन्निर्मित की हैं, वहां राज्य सरकार या सड़क का अनुरक्षण करने वाला कोई स्थानीय प्राधिकारी किसी भी समय सार्वजनिक सुरक्षा के हित में रेल प्रशासन से अपेक्षा कर सकेगा कि वह समतल पर सड़क को पार करने के बजाय सड़क को पुल या मेहराब द्वारा, उस पर चढ़ने और उतरने की सुविधाओं और अन्य सुविधापूर्ण पहुंच मार्गों सहित, रेल मार्ग के नीचे या ऊपर से ले जाए अथवा ऐसे अन्य संकर्म निष्पादित करे जो मामले की परिस्थितियों में राज्य सरकार या सड़क का अनुरक्षण करने वाले स्थानीय प्राधिकारी को उस खतरे को हटाने या कम करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त प्रतीत हो जो समतल क्रासिंग से उत्पन्न होता है ।

                (2) रेल प्रशासन, यथास्थिति, राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी से उपधारा (1) के अधीन कोई संकर्म निष्पादित करने की शर्त के रूप में, यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह रेल प्रशासन को संकर्म की संपूर्ण लागत और संकर्म के अनुरक्षण का व्यय या ऐसी लागत और व्यय का उतना अनुपात जो केन्द्रीय सरकार न्यायसंगत और युक्तियुक्त समझे संदाय करने का भार अपने ऊपर ले ।

                (3) यथास्थिति, रेल प्रशासन और राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी के बीच उपधारा (1) में वर्णित किसी विषय के बारे में कोई मतभेद होने की दशा में वह केन्द्रीय सरकार को निर्दिष्ट किया जाएगा, जिसका उस पर विनिश्चय अंतिम होगा ।

20. सुरक्षा के लिए निदेश देने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार, यदि उसकी यह राय है कि किसी संकर्म से, जिसे हाथ में लिया गया है या लिया जा सकता है, किसी जल प्रवाह के प्राकृतिक पथ में परिवर्तन या बाधा की या ऐसे प्रवाह की मात्रा में वृद्धि होने की संभावना है जिससे रेल पथ का कटाव, तटबंध या कोई अन्य संकर्म संकटापन्न हो सकता है, तो वह ऐसे संकर्म के लिए जिम्मेदार किसी व्यक्ति, अधिकारी या प्राधिकारी को उस संकर्म को   बन्द करने, विनियमित करने या प्रतिषिद्ध करने का लिखित निदेश जारी कर सकेगी ।

[अध्याय 4

किसी विशेष रेल परियोजना के लिए भूमि अर्जन

20क. भूमि अर्जन करने, आदि की शक्ति-(1) जहां केंद्रीय सरकार का यह समाधान हो जाता है कि किसी लोक प्रयोजन के लिए कोई भूमि किसी विशेष रेल परियोजना के निष्पादन के लिए अपेक्षित है, वहां वह, अधिसूचना द्वारा, उस भूमि का अर्जन करने के अपने आशय की घोषणा कर सकेगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक अधिसूचना, उस भूमि और उस विशेष रेल परियोजना का संक्षिप्त विवरण देगी, जिसके लिए भूमि का अर्जन किया जाना आशयित है ।

(3) यथास्थिति, राज्य सरकार या संघ राज्यक्षेत्र, इस धारा के प्रयोजनों के लिए, जब कभी अपेक्षा की जाए, सक्षम प्राधिकारी को भूमि अभिलेखों के ब्यौरे उपलब्ध कराएगा ।

(4) सक्षम प्राधिकारी, अधिसूचना के सार को दो स्थानीय समाचारपत्रों में प्रकाशित कराएगा, जिनमें से एक जन भाषा में होगा ।

20ख. सर्वेक्षण, आदि के लिए प्रवेश करने की शक्ति-धारा 20क की उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना के जारी किए जाने पर, इस निमित्त सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति के लिए-

(क) कोई निरीक्षण, सर्वेक्षण, नापजोख, मूल्यांकन या जांच करना;

(ख) तलमाप लेना;

(ग) अवमृदा की खुदाई या उसमें वैधन करना;

(घ) संकर्म का सीमांकन और आशयित रेखांकन करना;

(ङ) चिह्न लगाकर और खाई खोद कर ऐसे तलमापों, सीमाओं और रेखाओं को चिह्नांकित करना; या

(च) ऐसे अन्य कार्य या बात करना, जो सक्षम प्राधिकारी द्वारा आवश्यक समझी जाएं,

विधिपूर्ण होगा ।

20ग. सर्वेक्षण, नापजोख, आदि के दौरान हुई नुकसानी का मूल्यांकन-भूमि पर ऐसा कोई संकर्म करते समय, जैसे कि अवमृदा का सर्वेक्षण, खुदाई या वेधन, सीमांकन या खाई खोदते या किसी खड़ी फसल, बाड़ या वन को साफ करते या ऐसा कोई अन्य कार्य या बात करते समय, जिससे धारा 20ख के अधीन, विशिष्टतः ऐसी भूमि से संबंधित कोई कार्य करते समय, जिसे अर्जन कार्यवाही से अपवर्जित किया गया है, कोई नुकसान कारित हो सकता है, कारित नुकसान का मूल्यांकन किया जाएगा और उक्त संकर्म के पूरा होने से छह माह के भीतर उस भूमि में हित रखने वाले व्यक्तियों को प्रतिकर का संदाय किया जाएगा ।

20घ. आक्षेपों, आदि की सुनवाई-(1) भूमि में हितबद्ध कोई व्यक्ति, धारा 20क की उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना के प्रकाशन की तारीख से तीस दिन की अवधि के भीतर, उस उपधारा में वर्णित प्रयोजन के लिए भूमि के अर्जन के संबंध में आक्षेप कर सकेगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक आक्षेप, सक्षम प्राधिकारी को लिखित में किया जाएगा और उसके आधारों को उपवर्णित करेगा तथा सक्षम प्राधिकारी आक्षेपकर्ता को या तो व्यक्तिगत रूप से या विधि व्यवसायी के माध्यम से, सुने जाने का अवसर देगा और ऐसे सभी आक्षेपों की सुनवाई करने के पश्चात् और ऐसी अतिरिक्त जांच करने के पश्चात्, यदि कोई हो, जो सक्षम प्राधिकारी आवश्यक समझे, आदेश द्वारा, आक्षेपों को या तो मंजूर कर सकेगा या नामंजूर कर सकेगा ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, विधि व्यवसायी" का वही अर्थ है, जो अधिवक्ता अधिनियम, 1961(1961 का 25) की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (i) में है ।

(3) उपधारा (2) के अधीन सक्षम प्राधिकारी द्वारा किया गया कोई आदेश अंतिम होगा ।

20ङ. अर्जन की घोषणा-(1) जहां धारा 20घ की उपधारा (1) के अधीन कोई आक्षेप, उसमें विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर, सक्षम प्राधिकारी को नहीं किया गया है या जहां सक्षम प्राधिकारी ने उस धारा की उपधारा (2) के अधीन आक्षेपों को नामंजूर कर दिया है, वहां सक्षम प्राधिकारी, यथाशीघ्र, तद्नुसार केन्द्रीय सरकार को रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा और ऐसी रिपोर्ट की प्राप्ति पर, केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, यह घोषणा करेगी कि भूमि को धारा 20क की उपधारा (1) में वर्णित प्रयोजन के लिए अर्जित किया जाना चाहिए ।

(2) उपधारा (1) के अधीन घोषणा के प्रकाशन पर, भूमि सभी विल्लंगमों से मुक्त केन्द्रीय सरकार में पूर्णतया निहित हो जाएगी ।

(3) जहां किसी भूमि की बाबत, धारा 20क की उपधारा (1) के अधीन उसके अर्जन के लिए अधिसूचना प्रकाशित की गई है, किन्तु इस धारा की उपधारा (1) के अधीन कोई घोषणा, उस अधिसूचना के प्रकाशन की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर प्रकाशित नहीं की गई है, वहां उक्त अधिसूचना निष्प्रभाव हो जाएगी:

परंतु एक वर्ष की उक्त अवधि की संगणना करने में, वह अवधि जिसके दौरान धारा 20क की उपधारा (1) के अधीन जारी अधिसूचना के अनुसरण में की जाने वाली किसी कार्रवाई या कार्यवाहियों पर किसी न्यायालय के आदेश द्वारा रोक लगा दी गई है अपवर्जित कर दी जाएगी ।

(4) उपधारा (1) के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा की गई किसी घोषणा को किसी न्यायालय में या किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा प्रश्नगत नहीं किया जाएगा ।

20च. प्रतिकर के रूप में संदेय रकम का अवधारण-(1) जहां कोई भूमि इस अधिनियम के अधीन अर्जित की जाती है, वहां ऐसी रकम का संदाय किया जाएगा, जो सक्षम प्राधिकारी के आदेश द्वारा अवधारित की जाएगी ।

(2) सक्षम प्राधिकारी, घोषणा के प्रकाशन की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर इस धारा के अधीन अधिनिर्णय देगा और यदि उस अवधि के भीतर कोई अधिनिर्णय नहीं दिया जाता है तो भूमि के अर्जन के लिए संपूर्ण कार्यवाहियां व्यपगत हो जाएंगी:

परंतु सक्षम प्राधिकारी, परिसीमा की अवधि की समाप्ति के पश्चात्, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि विलंब अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण और उन कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, हुआ है तो वह छह मास की विस्तारित अवधि के भीतर अधिनिर्णय दे सकेगा:

परंतु यह और कि जहां अधिनिर्णय विस्तारित अवधि के भीतर किया जाता है, वहां हकदार व्यक्ति को, न्याय के हित में, इस प्रकार विस्तारित अवधि के प्रत्येक मास, अधिनिर्णय करने में विलंब के लिए, अधिनिर्णय के मूल्य के पांच प्रतिशत से अन्यून की दर से ऐसे विलंब के प्रत्येक मास के लिए अतिरिक्त प्रतिकर का संदाय किया जाएगा । 

(3) जहां किसी भूमि पर उपयोक्ता का अधिकार या सुखाचार की प्रकृति का कोई अधिकार, इस अधिनियम के अधीन अर्जित किया जाता है, वहां स्वामी और ऐसे किसी अन्य व्यक्ति को, जिसका उस भूमि में उपभोग का अधिकार, ऐसे अर्जन के कारण किसी भी रीति में प्रभावित हुआ है, उस भूमि के लिए, उपधारा (1) के अधीन अवधारित रकम के दस प्रतिशत पर परिकलित रकम का संदाय किया जाएगा ।

(4) सक्षम प्राधिकारी, यथास्थिति, उपधारा (1) या उपधारा (3) के अधीन रकम का अवधारण करने के लिए अग्रसर होने से पूर्व, दो स्थानीय समाचारपत्रों में प्रकाशित ऐसी लोक सूचना देगा, जिनमें से एक जन भाषा में होगा, जिसमें अर्जित की जाने वाली भूमि में हितबद्ध सभी व्यक्तियों से दावे आमंत्रित किए जाएंगे ।

(5) ऐसी सूचना में भूमि की विशिष्टियां वर्णित होंगी और उस भूमि में हितबद्ध सभी व्यक्तियों से व्यक्तिगत रूप से या   धारा 20घ की उपधारा (2) में निर्दिष्ट किसी अभिकर्ता या किसी विधि व्यवसायी के माध्यम से, किसी भी समय और स्थान पर, सक्षम प्राधिकारी के समक्ष हाजिर होने और उस भूमि में अपने-अपने हित की प्रकृति का कथन करने की अपेक्षा की जाएगी ।

(6) यदि, यथास्थिति, उपधारा (1) या उपधारा (3) के अधीन सक्षम प्राधिकारी द्वारा अवधारित रकम, किसी पक्षकार को स्वीकार्य नहीं है तो वह रकम, किसी भी पक्षकार द्वारा आवेदन किए जाने पर, केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाने वाले मध्यस्थ द्वारा ऐसी रीति में, जो विहित की जाए अवधारित की जाएगी ।

(7) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (1996 का 26) के उपबंध, इस अधिनियम के अधीन प्रत्येक माध्यस्थम् को लागू होंगे ।

(8) सक्षम प्राधिकारी या मध्यस्थ, यथास्थिति, उपधारा (1) या उपधारा (6) के अधीन प्रतिकर की रकम का अवधारण करते समय, निम्नलिखित को ध्यान में रखेगा-

(क) धारा 20क के अधीन अधिसूचना के प्रकाशन की तारीख को भूमि का बाजार मूल्य;

(ख) भूमि का कब्जा लेने के समय, अन्य भूमि से ऐसी भूमि को अलग करने के कारण, हितबद्ध व्यक्ति को हुआ नुकसान, यदि कोई हो;

(ग) भूमि का कब्जा लेने के समय, हितबद्ध व्यक्ति को उसकी अन्य स्थावर संपत्ति या उसके उपार्जन को किसी रीति में हानिकर रूप से प्रभावित करने वाले अर्जन के कारण हुआ नुकसान, यदि कोई हो;

(घ) यदि, भूमि के अर्जन के परिणामस्वरूप, हितबद्ध व्यक्ति अपने निवास या कारबार के स्थान को परिवर्तित करने के लिए बाध्य होता है तो ऐसे परिवर्तन से आनुषंगिक युक्तियुक्त व्यय, यदि कोई हो ।

(9) भूमि के बाजार मूल्य के अतिरिक्त जिसका ऊपर उपबंध किया गया है, यथास्थिति, सक्षम प्राधिकारी या मध्यस्थ, प्रत्येक मामले में, अर्जन की अनिवार्य प्रकृति के प्रतिफलस्वरूप ऐसे बाजार मूल्य पर साठ प्रतिशत की राशि प्रदान करेगा ।

20छ. भूमि के बाजार मूल्य के अवधारण के लिए मापदंड-(1) सक्षम प्राधिकारी, भूमि के बाजार मूल्य का निर्धारण और अवधारण करने में निम्नलिखित मापदंड अपनाएगा, -

(i) उस क्षेत्र में, जहां भूमि स्थित है, विक्रय विलेखों के रजिस्ट्रीकरण के लिए भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 (1899 का 2) में विनिर्दिष्ट न्यूनतम भूमि मूल्य, यदि कोई हो; या

(ii) उस ग्राम में या आसपास, जहां उच्चतर कीमत संदत्त की गई है, स्थित उसी प्रकार की भूमि के लिए, पूर्ववर्ती तीन वर्षों के दौरान रजिस्ट्रीकृत विक्रय विलेखों के पचास प्रतिशत से अन्यून से अभिनिश्चित, विक्रय कीमत का औसत,

इनमें से जो भी अधिक हो ।

(2) जहां उपधारा (1) के उपबंध, निम्नलिखित किसी कारण से लागू नहीं होते हैं कि, -

(i) भूमि ऐसे क्षेत्र में स्थित है, जहां भूमि में संव्यवहार उस क्षेत्र में तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन निर्बंधित हैं; या

(ii) उपधारा (1) के खंड (i) में यथावर्णित उसी प्रकार की भूमि के संबंध में पूर्ववर्ती तीन वर्षों के रजिस्ट्रीकृत विक्रय विलेख उपलब्ध नहीं हैं; या

(iii) समुचित प्राधिकारी द्वारा भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 (1899 का 2) के अधीन न्यूनतम भूमि मूल्य विनिर्दिष्ट नहीं किया गया है,

वहां, संबंधित राज्य सरकार, लगे हुए क्षेत्रों में या आसपास, जहां उच्चतर कीमत संदत्त की गई है, स्थित उसी प्रकार की भूमि के लिए, संदत्त औसत उच्चतर कीमत पर आधारित उक्त भूमि की प्रति यूनिट क्षेत्र न्यूनतम कीमत जो पूर्ववर्ती तीन वर्षों के दौरान रजिस्ट्रीकृत विक्रय विलेखों के पचास प्रतिशत से अन्यून अभिनिश्चित की गई हो, विनिर्दिष्ट करेगी और सक्षम प्राधिकारी तद्नुसार भूमि का मूल्य परिकलित कर सकेगा ।

(3) सक्षम प्राधिकारी, इस अधिनियम के अधीन अर्जित की गई भूमि का बाजार मूल्य निर्धारित और अवधारित करने से पूर्व, अर्जित की जा रही भूमि के बाजार मूल्य का अवधारण करने के प्रयोजन के लिए, -

(क) उस भूमि के आशयित भूमि उपयोग का प्रवर्ग अभिनिश्चित करेगा; और

(ख) लगे हुए क्षेत्रों या आसपास के आशयित प्रवर्ग की भूमि का मूल्य ध्यान में रखेगा ।

(4) उस भूमि या भवन से, जिसको अर्जित किया जाना है, संलग्न भवन और अन्य स्थावर संपत्ति या आस्तियों का बाजार मूल्य अवधारित करने में, सक्षम प्राधिकारी किसी सक्षम इंजीनियर या सुसंगत क्षेत्र में किसी अन्य विशेषज्ञ की, जो सक्षम प्राधिकारी द्वारा आवश्यक समझा जाए, सेवाओं का उपयोग कर सकेगा ।

(5) सक्षम प्राधिकारी, वृक्षों और पौधों का मूल्य अवधारित करने के प्रयोजन के लिए, कृषि, वानिकी, उद्यानकृषि, रेशम-उत्पादन के क्षेत्र में या किसी अन्य क्षेत्र में, जो उसके द्वारा आवश्यक समझा जाए, अनुभवी व्यक्तियों की सेवाओं का उपयोग कर सकेगा ।

(6) भूमि अर्जन कार्यवाहियों की प्रक्रिया के दौरान नष्ट हुई खड़ी फसल का मूल्य अवधारित करने के प्रयोजन के लिए, सक्षम प्राधिकारी, कृषि के क्षेत्र में ऐसे अनुभवी व्यक्तियों की सेवाओं का उपयोग कर सकेगा, जो वह आवश्यक समझे ।

20ज. रकम का निक्षेप और संदाय-(1) धारा 20च के अधीन अवधारित रकम, केन्द्रीय सरकार द्वारा भूमि का कब्जा लेने से पूर्व, सक्षम प्राधिकारी के पास, ऐसी रीति में जमा की जाएगी, जो उस सरकार द्वारा विहित की जाए ।

(2) सक्षम प्राधिकारी उपधारा (1) के अधीन रकम जमा कर दिए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, केन्द्रीय सरकार की ओर से रकम का संदाय उसके लिए हकदार व्यक्ति या व्यक्तियों को करेगा ।

(3) जहां अनेक व्यक्ति उपधारा (1) के अधीन जमा की गई रकम में, हितबद्ध होने का दावा करते हैं, वहां सक्षम प्राधिकारी उन व्यक्तियों का अवधारण करेगा, जो उसकी राय में उनमें से प्रत्येक को संदेय रकम प्राप्त करने के लिए हकदार हैं ।

(4) यदि रकम या उसके किसी भाग के प्रभाजन या किसी व्यक्ति के बारे में कोई विवाद उत्पन्न होता है, जिसको वह या उसका भाग संदेय है तो सक्षम प्राधिकारी विवाद को मूल अधिकारिता वाले उस प्रधान सिविल न्यायालय के विनिश्चय के लिए भेजेगा, जिसकी अधिकारिता की सीमाओं के भीतर भूमि अवस्थित है ।

(5) जहां मध्यस्थ द्वारा धारा 20च के अधीन अवधारित रकम, सक्षम प्राधिकारी द्वारा अवधारित रकम से अधिक है, वहां मध्यस्थ धारा 20झ के अधीन कब्जा लेने की तारीख से उसके वास्तविक निक्षेप की तारीख तक, ऐसी अधिक रकम पर नौ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिला सकेगा ।

(6) जहां मध्यस्थ द्वारा अवधारित रकम, सक्षम प्राधिकारी द्वारा अवधारित रकम से अधिक है, वहां अधिक रकम, उपधारा (5) के अधीन दिए गए ब्याज के साथ, यदि कोई हो, केन्द्रीय सरकार द्वारा, ऐसी रीति में सक्षम प्राधिकारी के पास जमा की जाएगी, जो उस सरकार द्वारा विहित की जाए और उपधारा (2) से उपधारा (4) के उपबंध ऐसे निक्षेप को लागू होंगे ।

20झ. कब्जा लेने की शक्ति-(1) जहां कोई भूमि धारा 20ङ की उपधारा (2) के अधीन केन्द्रीय सरकार में निहित हो गई है और उस भूमि की बाबत धारा 20च के अधीन सक्षम प्राधिकारी द्वारा अवधारित रकम को धारा 20ज की उपधारा (1) के अधीन, केन्द्रीय सरकार द्वारा सक्षम प्राधिकारी को जमा कर दिया गया है, वहां सक्षम प्राधिकारी, लिखित सूचना द्वारा, स्वामी और ऐसे किसी अन्य व्यक्ति को, जिसके कब्जे में वह भूमि हो, सूचना की तामील से साठ दिन की अवधि के भीतर सक्षम प्राधिकारी या इस निमित्त उसके द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत किसी व्यक्ति को उसका कब्जा अभ्यर्पित या परिदत्त करने का निदेश दे सकेगा ।

(2) यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) के अधीन दिए गए किसी निदेश का अनुपालन करने से इंकार करेगा या उसमें असफल रहेगा तो सक्षम प्राधिकारी, -

(क) यदि कोई भूमि, महानगर क्षेत्र के भीतर आने वाले किसी क्षेत्र में स्थित है तो पुलिस आयुक्त को आवेदन करेगा;

(ख) यदि कोई भूमि खंड (क) में निर्दिष्ट क्षेत्र से भिन्न किसी क्षेत्र में स्थित है तो जिले के कलक्टर को आवेदन करेगा,

और, यथास्थिति, ऐसा आयुक्त या कलक्टर, सक्षम प्राधिकारी को या उसके द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत व्यक्ति को भूमि का अभ्यर्पण कराएगा ।

20ञ. जहां भूमि केन्द्रीय सरकार में निहित हो गई है वहां भूमि में प्रवेश करने का अधिकार-जहां भूमि धारा 20ङ के अधीन केन्द्रीय सरकार में निहित हो गई है, वहां इस निमित्त केन्द्रीय सरकार द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति के लिए विशेष रेल परियोजना या उसके भाग के निर्माण, अनुरक्षण, प्रबंध या प्रचालन या उससे संबद्ध कोई अन्य कार्य करने के लिए भूमि में प्रवेश करना और भूमि पर आवश्यक अन्य कार्य करना विधिपूर्ण होगा ।

20ट. सक्षम प्राधिकारी को सिविल न्यायालय की कतिपय शक्तियां होना-सक्षम प्राधिकारी को, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए, निम्नलिखित विषयों की बाबत, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय, सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी, अर्थात्: -

(क) किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना और शपथ पर उसकी परीक्षा करना;

(ख) किसी दस्तावेज के प्रकटीकरण और उसके पेश किए जाने की अपेक्षा करना;

(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;

(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख की अध्यपेक्षा करना;

(ङ) साक्षियों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना ।

20ठ. भूमि का उस प्रयोजन के लिए उपयोग, जिसके लिए वह अर्जित की गई-(1) इस अधिनियम के अधीन अर्जित भूमि को लोक प्रयोजन के लिए ही और केन्द्रीय सरकार का पूर्व अनुमोदन प्राप्त करने के पश्चात् ही अंतरित किया जाएगा और न कि किसी अन्य प्रयोजन के लिए ।

(2) जब, इस अधिनियम के अधीन अर्जित कोई भूमि या उसका भाग, कब्जा लेने की तारीख से पांच वर्ष की अवधि के लिए अनुपयोजित रहेगा तो उसे उत्तरभोगी द्वारा केन्द्रीय सरकार को वापस कर दिया जाएगा ।

20ड. किसी भूमि की कीमत के अंतर में, जब उच्चतर प्रतिफल के लिए अंतरित की गई हो, भू-स्वामियों के साथ हिस्सा बंटाना-जब कभी इस अधिनियम के अधीन अर्जित किसी भूमि को प्रतिफल के लिए किसी व्यक्ति को अंतरित किया जाता है, तब अर्जन खर्च और प्राप्त प्रतिफल में अंतर के अस्सी प्रतिशत में, जो किसी भी दशा में अर्जन खर्च से कम नहीं होगा, उन व्यक्तियों, जिनसे भूमि अर्जित की गई थी या उनके वारिसों के बीच उस मूल्य के अनुपात में हिस्सा बांटा जाएगा, जिस पर भूमि अर्जित की गई थी और उस प्रयोजन के लिए, एक पृथक् निधि रखी जाएगी, जो सक्षम प्राधिकारी द्वारा उस रीति में प्रशासित की जाएगी, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।

20ढ. भूमि अर्जन अधिनियम 1894 का 1 का लागू होना-भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 की कोई बात इस अधिनियम के अधीन किसी अर्जन को लागू नहीं होगी ।

20ण. राष्ट्रीय पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन नीति, 2007 का भूमि अर्जन के कारण प्रभावित व्यक्तियों कोलागू होना-भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा संख्या एफ० 26011/4/2007-एल०आर०डी०, तारीख 31 अक्तूबर, 2007 के अधीन परियोजना प्रभावित कुटुंबों के लिए अधिसूचित राष्ट्रीय पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन नीति, 2007 के उपबंध इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा भूमि के अर्जन के संबंध में लागू होंगे ।

20त. इस अध्याय के विषयों की बाबत नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, इस अध्याय के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

(क) धारा 20च की उपधारा (6) के अधीन मध्यस्थ की नियुक्ति की रीति;

(ख) वह रीति, जिसमें धारा 20ज की उपधारा (1) और उपधारा (6) के अधीन सक्षम प्राधिकारी के पास रकम जमा की जाएगी;

(ग) धारा 20ड के प्रयोजनों के लिए पृथक् निधि रखने और उसके प्रशासन की रीति ।]

अध्याय 5

रेलों का चालू किया जाना

21. रेल चालू किए जाने के लिए केन्द्रीय सरकार की मंजूरी-यात्रियों के सार्वजनिक वहन के लिए कोई भी रेल तब तक चालू नहीं की जाएगी जब तक केन्द्रीय सरकार ने उस प्रयोजन के लिए उसके चालू किए जाने की मंजूरी, आदेश द्वारा, न दे दी हो ।

22. किसी रेल के चालू किए जाने की मंजूरी देने से पूर्व औपचारिकताओं का अनुपालन किया जाना-(1) केन्द्रीय सरकार धारा 21 के अधीन किसी रेल के चालू किए जाने की अपनी मंजूरी देने से पूर्व आयुक्त से यह रिपोर्ट अभिप्राप्त करेगी, कि-

(क) उसने रेल और चल स्टाक का, जिसका उस पर उपयोग किया जा सकता है, सावधानी से निरीक्षण कर लिया है;

(ख) केन्द्रीय सरकार ने जो गतिमान और स्थिर विस्तार अधिकथित किए हैं, उनका अतिलंघन नहीं हुआ है;

(ग) रेल की लाइनों की संरचना, धुरों की मजबूती, संकर्मों का साधारण संरचनात्मक स्वरूप और किसी चल स्टाक के धुरों का आकार और उन पर का अधिकतम कुल भार केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिकथित अपेक्षाओं के अनुरूप है; और

(घ) उसकी राय में रेल को उसका उपयोग करने वाली जनता के लिए किसी खतरे के बिना, यात्रियों के सार्वजनिक वहन के लिए चालू किया जा सकता है ।

                (2) यदि आयुक्त की यह राय है कि रेल को उसका उपयोग करने वाली जनता के लिए बिना किसी खतरे के चालू नहीं किया जा सकता है तो वह अपनी रिपोर्ट में इसके आधारों को तथा उन अपेक्षाओं को भी, जिनका उसकी राय में केन्द्रीय सरकार द्वारा मंजूरी दिए जाने के पूर्व अनुपालन किया जाना है, अधिकथित करेगा ।

                (3) केन्द्रीय सरकार, आयुक्त की रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात् धारा 21 के अधीन रेल के उसी रूप में चालू किए जाने की या उन शर्तों के अधीन चालू किए जाने की मंजूरी दे सकेगी जिनको वह लोक सुरक्षा के लिए आवश्यक समझे ।

23. कुछ संकर्मों के चालू किए जाने के संबंध में धारा 21 और धारा 22 का लागू होना-धारा 21 और धारा 22 के उपबन्ध निम्नलिखित संकर्मों के चालू किए जाने के संबंध में लागू होंगे यदि वे संकर्म यात्रियों के सार्वजनिक वहन के लिए उपयोग में लाई जाने वाली रेल के भागरूप हैं या उससे प्रत्यक्षतः संबंधित हैं और आयुक्त द्वारा धारा 22 के अधीन रिपोर्ट के दिए जाने के पश्चात् सन्निर्मित किए गए हैं, अर्थात्: -

                                (क) रेल की अतिरिक्त लाइनों और पथान्तर लाइनों का चालू किया जाना;

                                (ख) स्टेशनों, जंकशनों और समतल क्रासिंगों का चालू किया जाना;

                                (ग) यार्डों को नया रूप देना और पुलों का पुनः निर्माण करना;

                                (घ) विद्युत कर्षण का चालू किया जाना; और

                (ङ) कोई परिवर्तन या पुनर्निर्माण जो ऐसे किसी संकर्म के संरचनात्मक स्वरूप पर तात्त्विक रूप से प्रभाव डालता है जिसको धारा 21 और धारा 22 के उपबन्ध लागू होते हैं या जिस पर इस धारा द्वारा उनका विस्तार किया गया है ।

24. यातायात का अस्थायी निलम्बन-जब किसी रेल लाइन पर कोई ऐसी दुर्घटना हो गई है जिसके परिणामस्वरूप यातायात अस्थायी तौर से रुक गया है और या तो रेल की मूल लाइनें और संकर्म अपने मूल स्तर तक पुनः स्थापित कर दिए गए हैं या संचार के पुनःस्थापन के प्रयोजन के लिए कोई अस्थायी पथान्तर बना दिया गया है तब, यथास्थिति, ऐसी पुनः स्थापित रेल की मूल लाइन और संकर्म या अस्थायी पथान्तर को आयुक्त के पूर्व निरीक्षण के बिना यात्रियों के सार्वजनिक वहन के लिए निम्नलिखित शर्तों के अधीन चालू किया जा सकेगा, अर्थात् :-

(क) दुर्घटना के कारण हाथ में लिए गए संकर्मों के भारसाधक रेल सेवक ने लिखित रूप में यह प्रमाणित कर दिया है कि पुनः स्थापित रेलों की लाइनों और संकर्मों के, या स्थायी पथान्तर के, चालू किए जाने से उसकी राय में, जनता के लिए कोई खतरा पैदा नहीं होगा; और

(ख) रेल की लाइनों और संकर्मों के या पथान्तर के चालू किए जाने की सूचना आयुक्त को तुरन्त भेजी जाएगी ।

25. यात्रियों के सार्वजनिक वहन के लिए चालू की गई रेल को बन्द करने की शक्ति-जहां यात्रियों के सार्वजनिक वहन के लिए चालू की गई और उपयोग में लाई गई किसी रेल का या उस पर उपयोग किए जाने वाले किसी चल स्टाक का निरीक्षण करने के पश्चात् आयुक्त की यह राय है कि उस रेल या किसी चल स्टाक के उपयोग से उसका उपयोग करने वाली जनता के लिए खतरा होगा तो आयुक्त केन्द्रीय सरकार को एक रिपोर्ट भेजेगा, जो उस पर निदेश दे सकेगी कि-

                                (i) वह रेल यात्रियों के सार्वजनिक वहन के लिए बन्द कर दी जाए; या

                                (ii) चल स्टाक का उपयोग बन्द कर दिया जाए; या

                (iii) उस रेल या चल स्टाक का उपयोग यात्रियों के सार्वजनिक वहन के लिए ऐसी शर्तों के अधीन किया जाए, जो केन्द्रीय सरकार लोक सुरक्षा के लिए आवश्यक समझे ।

26. बन्द रेल का फिर से चालू किया जाना-जब केन्द्रीय सरकार ने धारा 25 के अधीन किसी रेल के बन्द किए जाने का या किसी चल स्टाक के उपयोग को बन्द करने का निदेश दिया है तो-

(क) रेल को यात्रियों के सार्वजनिक वहन के लिए तब तक फिर से चालू नहीं किया जाएगा जब तक कि उसका निरीक्षण आयुक्त द्वारा नहीं कर लिया गया हो और फिर से चालू किए जाने के लिए मंजूरी इस अध्याय के उपबन्धों के अनुसार नहीं दे दी गई हो; और

(ख) चल स्टाक का उपयोग तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि उसका निरीक्षण आयुक्त द्वारा नहीं कर लिया गया हो और उसके पुनः उपयोग के लिए मंजूरी इस अध्याय के उपबन्धों के अनुसार नहीं दे दी गई हो ।

27. चल स्टाक का उपयोग-रेल प्रशासन रेल के सन्निर्माण, प्रचालन और कार्यकरण के लिए ऐसे चल स्टाक का उपयोग कर सकेगा जो वह आवश्यक समझे:

                परन्तु ऐसी रेल के किसी भाग में पहले से ही चल रहे चल स्टाक से भिन्न डिजाइन या किस्म के किसी चल स्टाक का उपयोग करने से पूर्व ऐसे उपयोग के लिए केन्द्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी अभिप्राप्त की जाएगी:

                परन्तु यह और कि केन्द्रीय सरकार कोई ऐसी मंजूरी देने से पूर्व, आयुक्त से यह रिपोर्ट अभिप्राप्त करेगी कि उसने चल स्टाक का सावधानीपूर्वक निरीक्षण कर लिया है और उसकी राय में ऐसे चल स्टाक का उपयोग किया जा सकता है ।

28. शक्तियों का प्रत्यायोजन-केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा यह निदेश दे सकेगी कि धारा 29 को छोड़कर इस अध्याय या उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन उसकी शक्तियों और कृत्यों में से किसी का प्रयोग या निर्वहन ऐसे विषयों के संबंध में और ऐसी शर्तों के अधीन, यदि कोई हों, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं, किसी आयुक्त द्वारा भी किया जा सकेगा ।

29. इस अध्याय के विषयों की बाबत नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार इस अध्याय के प्रयोजनों को क्रियान्वित करने के लिए, अधिसूचना द्वारा, नियम बना सकेगी ।

                (2) विशिष्टितया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्:-

                                (क) यात्रियों के सार्वजनिक वहन के लिए रेल के चालू किए जाने की बाबत रेल प्रशासन और आयुक्त के कर्तव्य;

                (ख) यात्रियों के सार्वजनिक वहन के लिए, रेल के चालू किए जाने के पूर्व, किए जाने वाले इन्तजाम और अनुपालन की जाने वाली औपचारिकताएं;

                (ग) उस ढंग का, जिसमें और उस गति का जिससे रेल में उपयोग किए जाने वाले चल स्टाक को गतिमान या नोदित किया जाना है, विनियमन;

                (घ) वे मामले जिनमें और वह सीमा जिस तक इस अध्याय में उपबन्धित प्रक्रिया को त्यागा जा सकेगा ।

अध्याय 6

रेटों का नियत किया जाना

30. रेट नियत करने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, समय-समय पर, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, यात्रियों और माल के वहन के लिए रेट संपूर्ण रेल या उसके किसी भाग के लिए, नियत कर सकेगी और माल के विभिन्न वर्गों के लिए विभिन्न रेट नियत किए जा सकेंगे तथा ऐसे आदेश में वे शर्तें विनिर्दिष्ट कर सकेगी, जिनके अधीन ऐसे रेट लागू होंगे ।

                (2) केन्द्रीय सरकार, ऐसे ही किसी आदेश द्वारा ऐसे वाहनों के आनुषंगिक या उनसे संबंधित किन्हीं अन्य प्रभारों के, जिनके अन्तर्गत संपूर्ण रेल या उसके किसी भाग पर डेमरेज और स्थान भाड़ा भी है, रेट नियत कर सकेगी तथा ऐसे आदेश में वे शर्तें विनिर्दिष्ट कर सकेगी जिनके अधीन ऐसे रेट लागू होंगे ।

31. वस्तुओं को वर्गीकृत करने या रेटों में परिवर्तन करने की शक्ति-केन्द्रीय सरकार को, -

(क) किसी वस्तु को उसके वहन के लिए प्रभारित किए जाने वाले रेटों का अवधारण करने के प्रयोजन के लिए वर्गीकृत या पुनः वर्गीकृत करने की; और

(ख) वर्ग रेटों और अन्य प्रभारों को, बढ़ाने या घटाने की,

शक्ति होगी ।

32. कतिपय रेट प्रभारित करने की रेल प्रशासन की शक्ति-इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, रेल प्रशासन किसी वस्तु के वहन के बारे में और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो विनिर्दिष्ट की जाएं-

                                (क) स्टेशन से स्टेशन तक का रेट उत्कथित कर सकेगा;

                (ख) स्टेशन से स्टेशन तक के ऐसे रेट को, जो अधिकरण द्वारा बनाए गए किसी आदेश के अनुपालन में आरम्भ किया गया स्टेशन से स्टेशन तक का रेट नहीं है, केन्द्रीय सरकार द्वारा अवधारित रीति में सम्यक् सूचना के पश्चात् बढ़ा या घटा सकेगा या रद्द कर सकेगा;

                (ग) स्टेशन से स्टेशन तक के रेट से संलग्न ऐसी शर्तों को, जो अधिकरण द्वारा बनाए गए आदेश के अनुपालन में लागू की गई शर्तों से भिन्न शर्तें हों, वापस ले सकेगा, अथवा उनमें परिवर्तन कर सकेगा या संशोधन कर सकेगा; और

                (घ) कोई एक मुश्त रेट प्रभारित कर सकेगा ।

अध्याय 7

रेल रेट अधिकरण

33. रेल रेट का अधिकरण का गठन-(1) इस अध्याय में विनिर्दिष्ट कृत्यों के निर्वहन के प्रयोजन के लिए एक अधिकरण होगा जो रेल रेट अधिकरण के नाम से ज्ञात होगा ।

                (2) अधिकरण में एक अध्यक्ष और दो अन्य सदस्य होंगे जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे ।

                (3) कोई व्यक्ति अधिकरण के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति के लिए तब तक अर्ह नहीं होगा जब तक कि वह उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नहीं है या नहीं रहा है और अधिकरण के अन्य दो सदस्यों में से एक व्यक्ति ऐसा होगा जिसे, केन्द्रीय सरकार की राय में, देश की वाणिज्यिक, औद्योगिक या आर्थिक परिस्थितियों का विशेष ज्ञान है और दूसरा ऐसा होगा जिसे केन्द्रीय सरकार की राय में रेल के वाणिज्यिक कार्यकरण का विशेष ज्ञान और अनुभव है ।

                (4) अधिकरण का अध्यक्ष और अन्य सदस्य पांच वर्ष से अनधिक की उतनी अवधि के लिए पद धारण करेंगे जो विहित की जाए ।

                (5) यदि अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य अंग शैथिल्य के कारण या अन्यथा अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो जाता है अथवा छुट्टी पर या अन्यथा ऐसी परिस्थितियों में अनुपस्थित है जिनमें उसका पद रिक्त न हो तो केन्द्रीय सरकार उसकी अनुपस्थिति के दौरान उसके स्थान पर कार्य करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त कर सकेगी ।

                (6) कोई व्यक्ति जो अधिकरण के अध्यक्ष या अन्य सदस्य के रूप में पद धारण करता है, अपने पद की अवधि की समाप्ति पर (जो आकस्मिक रिक्ति भरने के लिए पद नहीं है) उस पद पर पुनर्नियुक्ति के लिए अपात्र होगा ।

                (7) उपधारा (5) और उपधारा (6) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अधिकरण का अध्यक्ष और अन्य सदस्य पद को ऐसे निबंधनों और शर्तों पर धारण करेंगे, जो विहित की जाएं ।

                (8) अधिकरण का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस कारण अविधिमान्य नहीं होगी कि-

                                (क) अधिकरण में कोई रिक्ति या उसके गठन में कोई त्रृटि है, या

                                (ख) अधिकरण के अध्यक्ष या अन्य सदस्य के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति की नियुक्ति में कोई त्रुटि है ।

34. अधिकरण के कर्मचारिवृन्द-(1) अधिकरण केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों को नियुक्त कर सकेगा जो वह इस अध्याय के अधीन अपने कृत्यों के दक्ष निर्वहन के लिए आवश्यक समझे ।

                (2) अधिकरण के अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवा के निबंधन और शर्तें वे होंगी, जो विनियमों द्वारा अवधारित की जाएं ।

35. अधिकरण की बैठकें-अधिकरण की बैठकें ऐसे स्थान या स्थानों पर की जा सकेंगी, जो उसे अपने कारबार के संव्यवहार के लिए सुविधाजनक लगें ।

36. रेल प्रशासन के विरुद्ध परिवाद-ऐसा कोई परिवाद कि रेल प्रशासन-

                                (क) धारा 70 के उपबंधों का उल्लंघन कर रहा है; या

                                (ख) दो स्टेशनों के बीच किसी वस्तु के वहन के लिए ऐसा रेट प्रभारित कर रहा है जो अनुचित है; या

                                (ग) कोई ऐसा अन्य प्रभार जो अनुचित है, उद्गृहीत कर रहा है,

अधिकरण से किया जा सकेगा और अधिकरण किसी ऐसे परिवाद को इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार सुनेगा और विनिश्चित करेगा ।

37. विषय जो अधिकरण की अधिकारिता के भीतर नहीं हैं-इस अध्याय की कोई बात निम्नलिखित के संबंध में अधिकरण को अधिकारिता प्रदान नहीं करेगी-

                                (क) किसी वस्तु का वर्गीकरण या पुनः वर्गीकरण;

                                (ख) स्थान भाड़े और डेमरेज प्रभारों का (जिनके अंतर्गत ऐसे प्रभारों से संलग्न शर्तें भी हैं) नियतन;

                (ग) यात्रियों के वहन के लिए उद्गृहीत किराए और सामान, पार्सल, रेल सामग्री और सैनिक यातायात के वहन के लिए भाड़े का नियतन;

                (घ) एकमुश्त रेटों का नियतन ।

38. अधिकरण की शक्तियां-(1) अधिकरण को शपथ पर साक्ष्य लेने, साक्षियों को हाजिर कराने, दस्तावेजों के प्रकटीकरण और पेश किए जाने के लिए विवश करने, साक्षियों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालने और पुनर्विलोकन के प्रयोजनों के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन सिविल न्यायायल की शक्तियां होंगी और उसे दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973(1974 का 2) की धारा 195 और अध्याय 35 के सभी प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय समझा जाएगा और ऐसी धारा या अध्याय में किसी न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के प्रति किसी निर्देश की बाबत यह समझा जाएगा कि उसके अन्तर्गत अधिकरण के अध्यक्ष के प्रति निर्देश है ।

                (2) अधिकरण को ऐसे अंतरिम और अंतिम आदेश, जिनके अन्तर्गत खर्चे के संदाय के लिए आदेश भी हैं, जो परिस्थितियों में अपेक्षित हो पारित करने की शक्ति होगी ।

39. अधिकरण को निर्देश-धारा 37 में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार, उस धारा में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी के बारे में अधिकरण को निर्देश कर सकेगी और जहां कोई ऐसा निर्देश किसी ऐसे विषय के बारे में किया जाता है वहां अधिकरण उस मामले की जांच करेगा और उस बाबत अपनी रिपोर्ट केन्द्रीय सरकार को प्रस्तुत करेगा ।

40. केन्द्रीय सरकार द्वारा सहायता-(1) केन्द्रीय सरकार अधिकरण को ऐसी सहायता देगी जिसकी वह अपेक्षा करे और उसको ऐसी जानकारी भी देगी जो केन्द्रीय सरकार के कब्जे में है और जिसे वह सरकार अधिकरण के समक्ष किसी विषय से सुसंगत समझे ।

                (2) केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त सम्यक् रूप से प्राधिकृत कोई व्यक्ति अधिकरण के समक्ष किन्हीं कार्यवाहियों में हाजिर होने और सुने जाने का हकदार होगा ।

41. सबूत, आदि का भार-धारा 36 के खण्ड (क) के अधीन किसी परिवाद के मामले में, -

(क) जब भी कभी यह दिखाया जाता है कि रेल प्रशासन किसी एक व्यापारी या व्यापारियों के किसी वर्ग से या किसी स्थानीय क्षेत्र में व्यापारियों से उसी या वैसे ही माल के लिए निम्नतर रेट प्रभारित करता है या उन्हीं या वैसी ही सेवाओं के लिए उन प्रभारों से निम्नतर प्रभार लेता है जो वह किसी अन्य स्थानीय क्षेत्र में अन्य व्यापारियों से लेता है, तब यह साबित करने का भार रेल प्रशासन पर होगा कि ऐसा निम्नतर रेट या प्रभार असम्यक् अधिमान नहीं है;

(ख) यह विनिश्चय करने में कि कोई निम्नतर रेट या प्रभार असम्यक् अधिमान नहीं है अधिकरण उस मामले पर प्रभाव डालने वाली किसी अन्य बात के अतिरिक्त इस बात पर भी विचार करेगा कि क्या ऐसा निम्नतर रेट या प्रभार लोक हित में आवश्यक है ।

42. अधिकरण का विनिश्चय आदि-अधिकरण के विनिश्चय या आदेश आसीन सदस्यों के बहुमत से होंगे और वे अन्तिम होंगे । 

43. न्यायालयों की अधिकारिता का वर्जन-किसी ऐसे विषय के संबंध में, जिसके बारे में अधिकरण कार्रवाई करने या विनिश्चय करने के लिए इस अध्याय के अधीन सशक्त है, न तो कोई वाद संस्थित किया जाएगा न ही कोई कार्यवाही की जाएगी ।

44. अनुतोष जो अधिकरण मंजूर कर सकेगा-धारा 36 के खण्ड (ख) या खण्ड (ग) के अधीन किए गए किसी परिवाद की दशा में, अधिकरण-

(i) ऐसी तारीख से जो वह उचित समझे और जो परिवाद के फाइल किए जाने की तारीख से पहले की तारीख नहीं हो, ऐसे रेट या प्रभार नियत कर सकेगा जो वह युक्तियुक्त समझे;

(ii) खण्ड (i) के अधीन अधिकरण द्वारा नियत रेट या प्रभार से अधिक रकम के, यदि कोई हो, प्रतिदाय का निदेश दे सकेगा ।

45. अधिकरण द्वारा दिए गए विनिश्चयों का पुनरीक्षण-जहां कोई रेल प्रशासन यह समझता है कि अधिकरण द्वारा विनिश्चय किए जाने की तारीख से उन परिस्थितियों में जिन पर वह आधारित था, सारवान् परिवर्तन हो गया है वहां, वह ऐसी तारीख से एक वर्ष की समाप्ति के पश्चात् अधिकरण को आवेदन कर सकेगा और अधिकरण ऐसी जांच करने के पश्चात्, जो वह आवश्यक समझे, विनिश्चय में फेरफार कर सकेगा या उसका प्रतिसंहरण कर सकेगा ।

46. अधिकरण के विनिश्चयों या आदेशों का निष्पादन-अधिकरण अपने द्वारा किए गए किसी विनिश्चय या आदेश को स्थानीय अधिकारिता रखने वाले किसी सिविल न्यायालय को भेज सकेगा और ऐसा सिविल न्यायालय ऐसे विनिश्चय या आदेश को उसी प्रकार निष्पादित करेगा मानो वह उस न्यायालय द्वारा की गई कोई डिक्री हो ।

47. केंद्रीय सरकार को रिपोर्ट-अधिकरण इस अध्याय के अधीन अपनी सभी कार्यवाहियों की रिपोर्ट प्रति वर्ष केन्द्रीय सरकार को प्रस्तुत करेगा ।

48. अधिकरण की विनियम बनाने की शक्ति-(1) अधिकरण, केंद्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से, और इस अध्याय के अधीन अपने कृत्यों के प्रभावी निर्वहन के लिए अपनी प्रक्रिया को साधारणतया विनियमित करने के लिए इस अधिनियम और नियमों से संगत विनियम बना सकेगा ।

                (2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे विनियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

                                (क) अधिकरण के अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवा के निबंधन और शर्तें;

                                (ख) अधिकरण द्वारा अपने समक्ष की किन्हीं कार्यवाहियों में खर्चा अधिनिर्णीत करना;

                (ग) अधिकरण के किसी सदस्य या किसी अधिकारी या अधिकरण द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति को, स्थानीय जांच करने के पश्चात् रिपोर्ट देने के लिए, किसी प्रश्न का निर्देश;

                (घ) अधिकरण के समक्ष सुनवाई का अधिकार, परंतु कोई भी पक्षकार व्यक्तिगत रूप से या लिखित रूप में सम्यक् रूप से प्राधिकृत प्रतिनिधि द्वारा या विधि व्यवसायी द्वारा सुने जाने के लिए हकदार होगा;

                (ङ) अधिकरण द्वारा अपने समक्ष किन्हीं कार्यवाहियों का इस बात के होते हुए भी निपटाया जाना कि उसके अनुक्रम में अधिकरण के सदस्यों के रूप में आसीन व्यक्तियों में परिवर्तन हुआ है;

                (च) अधिकरण के समक्ष कार्यवाहियों के लिए और उनके संबंध में फीसों का मापमान ।

अध्याय 8

यात्रियों का वहन

49. स्टेशनों पर कतिपय समय सारणियों और यात्री किराया सारणियों का प्रदर्शन-(1) प्रत्येक रेल प्रशासन प्रत्येक स्टेशन पर किसी सहजदृश्य और सुगम स्थान में हिन्दी और अंग्रेजी में, और उस क्षेत्र की जिसमें स्टेशन स्थित है, सामान्य प्रयोग की प्रादेशिक   भाषा में भी, -

(i) गाड़ियों के, जो यात्रियों को ले जाती हैं और उस स्टेशन पर रुकती हैं, आगमन और प्रस्थान की समय सारणी, और

(ii) ऐसे स्टेशन से ऐसे अन्य स्टेशन तक जैसा वह आवश्यक समझे, यात्री किराया सूचियां,

लगवाएगा ।

                (2) ऐसे प्रत्येक स्टेशन पर जहां यात्रियों को टिकट जारी किए जाते हैं, प्रवृत्त समय-सारणी की एक प्रति स्टेशन मास्टर के कार्यालय में रखी जाएगी ।

50. किराए के संदाय पर टिकटों का दिया जाना-(1) रेल सेवक या इस निमित्त प्राधिकृत अभिकर्ता रेल से यात्रा करने के इच्छुक किसी व्यक्ति को, किराए का संदाय करने पर, एक टिकट देगा, जिसमें निम्नलिखित विशिष्टियां होंगी, अर्थात्: -

                                (i) टिकट जारी करने की तारीख;

                                (ii) सवारी डिब्बे का दर्जा;

                                (iii) वह स्थान जिससे और वह स्थान जहां तक के लिए उसे जारी किया गया है; और

                                (iv) किराए की रकम ।

                (2) प्रत्येक रेल प्रशासन वह समय दर्शाएगा जिसके दौरान किसी स्टेशन पर टिकट खिड़कियां यात्रियों को टिकट जारी करने के लिए खुली रखी जाएंगी ।

                (3) उपधारा (1) के खंड (ii) और खंड (iii) के अधीन टिकट पर विनिर्दिष्ट की जाने के लिए अपेक्षित विशिष्टियां, -

(क) यदि वह सवारी डिब्बे के निम्नतम दर्जे के लिए है तो हिन्दी, अंग्रेजी और टिकट जारी करने के स्थान पर सामान्यतः प्रयोग की जाने वाली प्रादेशिक भाषा में होंगी; और

(ख) यदि वह सवारी डिब्बे के किसी अन्य दर्जे के लिए है तो हिंदी और अंग्रेजी में होंगी:

                परंतु जहां मशीनीकरण या किसी अन्य कारण से किसी ऐसी भाषा में ऐसी विशिष्टियों को विनिर्दिष्ट करना संभव नहीं है वहां केन्द्रीय सरकार ऐसी विशिष्टियों को उस भाषा में विनिर्दिष्ट किए जाने से छूट दे सकेगी ।

51. उस दशा के लिए उपबंध, जिसमें उस दर्जे या रेलगाड़ी के लिए, जिसमें अतिरिक्त यात्रियों के लिए स्थान उपलब्ध नहीं है, टिकट जारी किया गया है-(1) टिकट उस दर्जे के सवारी डिब्बे और उस रेलगाड़ी में, जिसके लिए टिकट जारी किया गया है, स्थान की उपलभ्यता की शर्त पर जारी किया गया समझा जाएगा ।

                (2) यदि उस दर्जे के सवारी डिब्बे में, जिसके लिए टिकट जारी किया गया है, कोई स्थान उपलब्ध नहीं है और उसका धारक निम्नतर दर्जे के सवारी डिब्बे में यात्रा करता है, तो वह उसके द्वारा दिए गए किराए और उस दर्जे के सवारी डिब्बे के लिए, जिसमें वह यात्रा करता है, देय किराए के बीच के अन्तर के प्रतिदाय को अपना टिकट वापस करने पर पाने का हकदार होगा ।

52. टिकट का रद्दकरण और प्रतिदाय-यदि कोई टिकट रद्दकरण के लिए वापस किया जाता है तो रेल प्रशासन उसे रद्द करेगा और ऐसी रकम का प्रतिदाय करेगा जो विहित की जाए ।

53. कतिपय टिकटों के अंतरण का प्रतिषेध-किसी व्यक्ति के नाम में जारी किए गए टिकट का उस व्यक्ति द्वारा ही उपयोग किया जाएगा:

                परंतु इस धारा की कोई बात एक ही रेलगाड़ी से यात्रा करने वाले यात्रियों द्वारा सीटों या शायिकाओं के पारस्परिक अंतरण को निवारित नहीं करेगी:

                परंतु यह और कि इस निमित्त प्राधिकृत कोई रेल सेवक ऐसे यात्री के, जिसने सीट या शायिका का आरक्षण कराया है, नाम के परिवर्तन को, ऐसी विशेष परिस्थितियों के अधीन, जो विहित की जाएं, अनुज्ञात कर सकेगा ।

54. पासों और टिकटों का प्रदर्शन और अभ्यर्पण-प्रत्येक यात्री इस निमित्त प्राधिकृत किसी रेल सेवक द्वारा मांग किए जाने पर अपना पास या टिकट ऐसे रेल सेवक को यात्रा के दौरान अथवा यात्रा की समाप्ति पर, परीक्षा के लिए प्रस्तुत करेगा और ऐसा टिकट-

                                (क) यात्रा की समाप्ति पर; या

                                (ख) यदि ऐसा टिकट किसी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए जारी किया गया है तो ऐसी अवधि की समाप्ति पर,

अभ्यर्पित करेगा ।

55. पास या टिकट के बिना यात्रा करने का प्रतिषेध-(1) कोई भी व्यक्ति रेल के किसी सवारी डिब्बे में, जब तक कि उसके पास उचित पास या टिकट न हो या उसने ऐसी यात्रा के लिए इस निमित्त प्राधिकृत किसी रेल सेवक की अनुज्ञा अभिप्राप्त न कर ली हो, यात्री के रूप में यात्रा करने के प्रयोजन से न तो प्रवेश करेगा और न उसमें रहेगा ।

                (2) उपधारा (1) के अधीन अनुज्ञा प्राप्त करने वाला व्यक्ति उस उपधारा में निर्दिष्ट रेल सेवक से सामान्यतया यह प्रमाणपत्र प्राप्त करेगा कि उसे ऐसे सवारी डिब्बे में यात्रा करने के लिए इस शर्त पर अनुज्ञा दी गई है कि वह उस दूरी के लिए जिस तक यात्रा की जानी है, देय किराया बाद में देगा ।

56. संक्रामक या सांसर्गिक रोगों से पीड़ित व्यक्तियों का वहन करने से इंकार करने की शक्ति-(1) ऐसे संक्रामक या सांसर्गिक रोगों से, जो विहित किए जाएं, पीड़ित कोई व्यक्ति, इस निमित्त प्राधिकृत रेल सेवक की अनुज्ञा के बिना रेल के किसी सवारी डिब्बे में प्रवेश नहीं करेगा या उसमें नहीं रहेगा या रेलगाड़ी में यात्रा नहीं करेगा ।

                (2) उपधारा (1) के अधीन अनुज्ञा देने वाला रेल सेवक ऐसे रोग से पीड़ित व्यक्ति को, उन अन्य व्यक्तियों से जो रेल में हो, अलग करने के लिए प्रबन्ध करेगा और ऐसे व्यक्ति का रेलगाड़ी में वहन ऐसी अन्य शर्तों के अधीन रहते हुए किया जाएगा जो विहित   की जाएं ।

                (3) कोई व्यक्ति जो उपधारा (1) के अधीन अपेक्षित अनुज्ञा के बिना या उपधारा (2) के अधीन विहित किसी शर्त के उल्लंघन में किसी सवारी डिब्बे में प्रवेश करेगा या उसमें रहेगा या रेलगाड़ी में यात्रा करेगा तो उस व्यक्ति और उसके साथ यात्रा करने वाले व्यक्ति के पास या टिकटें किसी रेल सेवक द्वारा समपहृत किए जाने के दायित्वाधीन होंगे और वे रेलगाड़ी से हटा दिए जाने के दायित्वाधीन होंगे ।

57. प्रत्येक कक्ष के लिए यात्रियों की अधिकतम संख्या-केंद्रीय सरकार के अनुमोदन के अधीन रहते हुए, प्रत्येक रेल प्रशासन यात्रियों की ऐसी अधिकतम संख्या नियत करेगा जो हर भांति के सवारी डिब्बे के प्रत्येक कक्ष में वहन किए जा सकेंगे और ऐसी नियत की गई संख्या को प्रत्येक कक्ष के अंदर या बाहर हिंदी और अंग्रेजी में और उन क्षेत्रों में, जिनमें से होकर रेल जाती है, सामान्य प्रयोग की प्रादेशिक भाषाओं में से एक या अधिक में भी, सहजदृश्य रीति से प्रदर्शित करेगा ।

58. महिलाओं के लिए कक्ष आदि निश्चित करना-प्रत्येक रेल प्रशासन, यात्रियों का वहन करने वाली प्रत्येक रेलगाड़ी में, एक कक्ष या इतनी संख्या में शायिकाएं अथवा सीटें जितनी रेल प्रशासन उचित समझे, महिलाओं के अनन्य उपयोग के लिए निश्चित करेगा ।

59. यात्रियों और रेलगाड़ी के भारसाधक रेल सेवकों के बीच संचार-रेल प्रशासन यात्रियों का वहन करने वाली प्रत्येक रेलगाड़ी में यात्रियों और रेलगाड़ी के भारसाधक रेल सेवक के बीच संचार के ऐसे दक्ष साधनों की व्यवस्था और उनका अनुरक्षण करेगा जो केंद्रीय सरकार द्वारा अनुमोदित किए जाएं:

                परंतु जहां रेल प्रशासन का यह समाधान हो जाता है कि किसी रेलगाड़ी में उपबंधित संचार साधनों का दुरुपयोग किया जा रहा है वहां वह उस रेलगाड़ी में ऐसे संचार साधनों को ऐसी अवधि या अवधियों के लिए जो वह ठीक समझे, बंद करा सकेगा:

                परंतु यह और कि केंद्रीय सरकार उन परिस्थितियों को विनिर्दिष्ट कर सकेगी जिनके अधीन रेल प्रशासन को किसी रेलगाड़ी में ऐसे संचार साधनों की व्यवस्था करने से छूट दी जा सकती है ।

60. इस अध्याय के विषयों की बाबत नियम बनाने की शक्ति-(1) केंद्रीय सरकार इस अध्याय के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

                (2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

                                (क) यात्रियों के लिए सुविधा और स्थान (जिसके अंतर्गत रेलगाड़ियों में सीटों या शायिकाओं का आरक्षण भी है);

                                (ख) टिकट के रद्दकरण पर प्रतिदाय की रकम;

                                (ग) वे परिस्थितियों जिनके अधीन उन यात्रियों के, जिन्होंने सीटों या शायिकाओं का आरक्षण कराया है, नामों में परिवर्तन की अनुज्ञा दी जा सकेगी;

                                (घ) सामान का वहन और वे शर्तें जिनके अधीन सामान स्टेशनों के यात्री सामान घर में रखा जा सकेगा;

                                (ङ) वे रोग जो संक्रामक या सांसर्गिक हैं;

                (च) वे शर्तें जिनके अधीन रेल प्रशासन संक्रामक या सांसर्गिक रोगों से पीड़ित यात्रियों का वहन कर सकेगा और वह रीति जिसमें ऐसे यात्रियों द्वारा उपयोग में लाए गए सवारी डिब्बे रोगाणुओं से मुक्त किए जा सकेंगे;

                (छ) साधारणतः रेल में यात्रा करने और रेल का उपयोग, कार्यचालन तथा प्रबंध करने का विनियमन करने के लिए ।

                (3) इस धारा के अधीन बनाए गए किसी नियम में यह उपबंध किया जा सकेगा कि उसका कोई उल्लंघन जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए से अधिक नहीं होगा, दण्डनीय होगा ।

                (4) प्रत्येक रेल प्रशासन अपनी रेल के प्रत्येक स्टेशन पर इस धारा के अधीन बनाए गए सभी नियमों की एक प्रति रखेगा और किसी भी व्यक्ति को उसका निरीक्षण निःशुल्क करने की अनुज्ञा देगा ।

अध्याय 9

माल का वहन

61. माल के वहन के लिए रेट-पुस्तकें आदि रखना-प्रत्येक रेल प्रशासन प्रत्येक स्टेशन और ऐसे अन्य स्थानों पर, जहां माल वहन के लिए प्राप्त किया जाता है, रेट पुस्तकें या अन्य दस्तावेज, जिनमें एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक माल के वहन के लिए प्राधिकृत रेट होंगे, रखेगा और किसी फीस के संदाय के बिना सभी युक्तियुक्त समय के दौरान किसी व्यक्ति द्वारा देखे जाने के लिए उसे   उपलबध कराएगा ।

62. माल के प्राप्त करने आदि के लिए शर्तें-(1) रेल प्रशासन किसी माल के प्राप्त करने, अग्रेषित करने, वहन करने या परिदत्त करने के संबंध में ऐसी शर्तें अधिरोपित कर सकेगा जो इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों से असंगत न हों ।

                (2) रेल प्रशासन प्रत्येक स्टेशन पर और ऐसे अन्य स्थानों पर जहां माल वहन के लिए प्राप्त किया जाता है उपधारा (1) के अधीन उस समय प्रवृत्त शर्तों की एक प्रति रखेगा और उसे किसी फीस के संदाय के बिना सभी युक्तियुक्त समय के दौरान किसी व्यक्ति द्वारा देखे जाने के लिए उसे उपलब्ध कराएगा ।

63. जोखिम रेटों का उपबंध-(1) जहां रेल प्रशासन को वहन के लिए कोई माल सौंपा जाता है वहां ऐसा वहन उस दशा के सिवाय जिसमें ऐसे माल के संबंध में स्वामी-जोखिम रेट लागू है, रेल-जोखिम रेट पर किया जाएगा ।

                (2) कोई माल जिसके लिए स्वामी-जोखिम रेट और रेल जोखिम-रेट प्रवृत्त है, किसी भी एक रेट पर वहन के लिए सौंपा जा सकेगा और यदि किसी रेट का विकल्प नहीं किया जाता है तो वह माल स्वामी-जोखिम रेट पर सौंपा गया समझा जाएगा ।

64. प्रेषण टिप्पण-(1) रेल प्रशासन को वहन के लिए माल सौंपने वाला प्रत्येक व्यक्ति ऐसे प्ररूप में, जो केंद्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए, प्रेषण टिप्पण निष्पादित करेगा:

                परंतु कोई प्रेषण टिप्पण ऐसे माल की दशा में निष्पादित नहीं किया जाएगा जो विहित किया जाए ।

                (2) परेषक, प्रेषण टिप्पण में उसके द्वारा दी गई विशिष्टियों की शुद्धता के लिए उत्तरदायी होगा ।

                (3) परेषक, प्रेषण टिप्पण में दी गई विशिष्टियों की अशुद्धता या अपूर्णता के कारण रेल प्रशासन को हुए किसी नुकसान के लिए प्रशासन की क्षतिपूर्ति करेगा ।

65. रेल रसीद-(1) रेल प्रशासन-

                                (क) उस दशा में जहां माल की ऐसा माल सौंपने वाले व्यक्ति द्वारा लदाई की जानी है, ऐसी लदाई के पूरा हो जाने पर; और

                                (ख) किसी अन्य दशा में, उसके द्वारा माल के स्वीकार कर लिए जाने पर,

ऐसे रूप में रेल रसीद जारी करेगा जो केंद्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाए ।

                (2) रेल रसीद उसमें उल्लिखित वजन और पैकेटों की संख्या का प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य होगी:

परंतु यदि परेषण वैगन-भार या रेलगाड़ी-भार में हैं और वजन की या पैकैटों की संख्या की जांच उस रेल सेवक द्वारा, जो इस निमित्त प्राधिकृत है, नहीं की जाती है, और उसके द्वारा रेल रसीद में इस आशय का कथन अभिलिखित कर दिया जाता है, तो, यथास्थिति, उसमें उल्लिखित वजन को या पैकेटों की संख्या को साबित करने का भार परेषक, परेषिती या पृष्ठांकिती पर होगा ।

66. माल के वर्णन से संबंधित कथन की अपेक्षा करने की शक्ति-(1) किसी ऐसे माल का, जो रेल द्वारा वहन किए जाने के प्रयोजन के लिए रेल पर लाया जाता है, स्वामी या उसका भारसाधक व्यक्ति और किसी परेषण का परेषिती या पृष्ठांकिती इस निमित्त प्राधिकृत किसी रेल सेवक के अनुरोध पर, यथास्थिति, ऐसे स्वामी या व्यक्ति या ऐसे परेषिती या पृष्ठांकिती द्वारा हस्ताक्षरित लिखित विवरण ऐसे रेल सेवक को परिदत्त करेगा, जिसमें माल का ऐसा वर्णन होगा जो रेल सेवक को ऐसे वहन के लिए रेट अवधारित करने में समर्थ बनाए ।

(2) यदि ऐसा स्वामी या व्यक्ति उपधारा (1) के अधीन अपेक्षित विवरण देने से इंकार करता है या देने में उपेक्षा करता है और ऐसे माल के पैकेज को, यदि रेल सेवक ऐसी अपेक्षा करे तो, खोलने से इंकार करता है, तो रेल प्रशासन इस बात के लिए स्वतंत्र होगा कि वह ऐसे माल को वहन के लिए स्वीकार करने से इंकार कर दे जब तक कि ऐसा स्वामी या व्यक्ति ऐसे वहन के लिए किसी भी वर्ग के माल के उच्चतम रेट का संदाय न करे ।

(3) यदि परेषिती या पृष्ठांकिती उपधारा (1) के अधीन यथा अपेक्षित विवरण देने से इंकार करता है या देने में उपेक्षा करता है, और ऐसे माल माल के पैकेज को, यदि रेल सेवक ऐसी अपेक्षा करे, खोलने से इंकार करता है तो रेल प्रशासन इस बात के लिए स्वतंत्र होगा कि वह ऐसे माल के वहन की बाबत किसी भी वर्ग के माल के लिए उच्चतम रेट प्रभारित करे ।

(4) यदि उपधारा (1) के अधीन दिया गया विवरण ऐसे किसी माल के वर्णन की बाबत, जिसका उससे संबंध होना तात्पर्यित है, तात्त्विक रूप से मिथ्या है तो रेल प्रशासन ऐसे माल के वहन की बाबत वह रेट प्रभारित कर सकेगा जो किसी भी वर्ग के माल के लिए उच्चतम रेट से, जो केंद्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए, दुगुने से अधिक नहीं होगा ।

(5) यदि, किसी रेल सेवक और, यथास्थिति, ऐसे स्वामी या व्यक्ति, परेषिती या पृष्ठांकिती के बीच माल के वर्णन की बाबत, जिसका उपधारा (1) के अधीन विवरण दिया गया है, कोई मतभेद पैदा हो जाता है तो रेल सेवक माल को निरुद्ध कर सकेगा और उसकी परीक्षा कर सकेगा ।

(6) जहां उपधारा (5) के अधीन किसी माल को परीक्षा के लिए निरुद्ध किया गया है, और ऐसी परीक्षा पर यह पाया जाता है कि माल का वर्णन उससे भिन्न है जो उपधारा (1) के अधीन दिए गए विवरण में दिया गया है वहां ऐसे निरोध और परीक्षा का खर्च, यथास्थिति, ऐसे स्वामी या व्यक्ति, परेषिती या पृष्ठांकिती द्वारा वहन किया जाएगा और रेल प्रशासन ऐसी किसी हानि, नुकसान या क्षय के लिए जो ऐसे निरोध या परीक्षा के कारण हो, दायी नहीं होगा ।

67. खतरनाक या घृणोत्पादक माल का वहन-(1) कोई भी व्यक्ति इस धारा के उपबंधों के अनुसरण में के सिवाय अपने साथ रेल में ऐसा खतरनाक या घृणोत्पादक माल जैसा विहित किया जाए, न तो ले जाएगा न ही रेल प्रशासन से वहन की अपेक्षा करेगा ।

(2) कोई भी व्यक्ति अपने साथ किसी रेल में उपधारा (1) में निर्दिष्ट माल नहीं ले जाएगा जब तक कि वह उनकी खतरनाक या घृणोत्पादक प्रकृति की लिखित सूचना इस निमित्त प्राधिकृत किसी रेल सेवक को नहीं दे देता है ।

(3) कोई भी व्यक्ति उपधारा (1) में निर्दिष्ट माल को वहन के लिए उस निमित्त प्राधिकृत किसी रेल सेवक को तब तक नहीं सौंपेगा जब तक कि वह ऐसे माल वाले पैकेज के बाहर उसकी खतरनाक या घृणोत्पादक प्रकृति को सुभिन्न रूप से चिह्नित नहीं कर देता है और उसकी खतरनाक या घृणोत्पादक प्रकृति की लिखित सूचना ऐसे रेल सेवक को नहीं दे देता है ।

(4) यदि किसी रेल सेवक के पास यह विश्वास करने का कारण है कि पैकेज में अंतर्विष्ट माल खतरनाक या घृणोत्पादक है और ऐसे माल की बाबत, यथास्थिति, उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन अपेक्षित सूचना नहीं दी गई है तो वह उसकी अंतर्वस्तु अभिनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए ऐसे पैकेज को खुलवा सकेगा ।

(5) इस धारा में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, कोई रेल सेवक किसी खतरनाक या घृणोत्पादक माल को वहन के लिए स्वीकार करने से इंकार कर सकेगा अथवा उसको अभिवहन में, यथास्थिति, रुकवा सकेगा या हटवा सकेगा यदि उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसे वहन के लिए इस धारा के उपबंधों का अनुपालन नहीं किया गया है ।

(6) इस धारा की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह भारतीय विस्फोटक अधिनियम, 1884 (1884 का 4) या उस अधिनियम के अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के उपबंधों का अल्पीकरण करती है और उपधारा (4) और उपधारा (5) की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह सरकार के किसी आदेश द्वारा या उसकी ओर से वहन के लिए सौंपे गए किसी माल को या किसी ऐसे माल को लागू होती है, जिसे कोई सैनिक, नौसैनिक, वायुसैनिक या संघ के सशस्त्र बल का कोई अन्य अधिकारी या कोई पुलिस अधिकारी या प्रादेशिक सेना या राष्ट्रीय कैडैट कोर का कोई सदस्य इस प्रकार अपने नियोजन या कर्तव्य के अनुक्रम में किसी रेल में अपने साथ ले जाए ।

68. संक्रामक या सांसर्गिक रोगों से पीड़ित जीवजंतुओं का वहन-रेल प्रशासन ऐसे संक्रामक या सांसर्गिक रोगों से, जो विहित किए जाएं, पीड़ित जीवजंतुओं का वहन करने के लिए आबद्ध नहीं होगा ।

69. मार्ग का बदलना-जहां रेल प्रशासन के नियंत्रण के बाहर किसी कारण से या यार्ड में संकुलन के कारण या अन्य कार्यचालन संबंधी कारणों से, माल उस मार्ग से जिससे वह बुक किया गया है किसी भिन्न मार्ग द्वारा वहन किया जाता है, वहां केवल मार्ग बदलने के कारण यह नहीं समझा जाएगा कि रेल प्रशासन ने वहन-संविदा भंग की है ।

70. असम्यक् अधिमान का प्रतिषेध-रेल प्रशासन माल के वहन में किसी विशिष्ट व्यक्ति को या किसी विशिष्ट प्रकार के यातायात को कोई असम्यक् या अयुक्तियुक्त अधिमान नहीं देगा या उसको या उसके पक्ष में कोई फायदा नहीं देगा ।

71. कतिपय माल के वहन की बाबत निदेश देने की शक्ति-(1) यदि केंद्रीय सरकार की यह राय है कि लोकहित में ऐसा करना आवश्यक है तो वह साधारण या विशेष आदेश द्वारा किसी रेल प्रशासन को-

(क) केंद्रीय सरकार द्वारा या उसको या किसी राज्य सरकार द्वारा या उसको परेषित ऐसे माल या ऐसे किसी वर्ग के माल या ऐसे अन्य माल या ऐसे वर्ग के माल के वहन के लिए, जो आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए, विशेष सुविधाएं या अधिमान देने के लिए;

(ख) ऐसे मार्ग या मार्गों द्वारा और ऐसे रेट पर जो आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए, किसी माल या किसी वर्ग के माल का वहन करने के लिए;

(ग) ऐसे स्टेशन पर, या को, वहन के लिए ऐसे माल या वर्ग के माल को जो आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए, स्वीकार करना निर्बंधित करने के लिए या स्वीकार करने से इंकार करने के लिए,

निदेश दे सकेगा ।

                (2) उपधारा (1) के अधीन किया गया कोई आदेश, ऐसे आदेश की तारीख से एक वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् प्रभावी नहीं रहेगा किन्तु वह उसी प्रकार के आदेश द्वारा एक समय में एक वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि के लिए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, समय-समय पर नवीकृत किया जा सकेगा ।

                (3) इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, प्रत्येक रेल प्रशासन उपधारा (1) के अधीन दिए गए किसी आदेश का अनुपालन करने के लिए आबद्ध होगा और ऐसे किसी आदेश के अनुसरण में रेल प्रशासन द्वारा की गई कोई कार्रवाई धारा 70 का उल्लंघन नहीं मानी जाएगी ।

72. वैगनों और ट्रकों के लिए वहन की अधिकतम क्षमता-(1) प्रत्येक वैगन या ट्रक का उसकी धुरियों पर सकल भार जब वैगन या ट्रक अपनी अधिकतम वहन क्षमता तक लदा हो ऐसी सीमा से अधिक नहीं होगा जो वैगन या ट्रक के नीचे की धुरी के वर्ग के लिए केंद्रीय सरकार द्वारा नियत की जाए ।

                (2) उपधारा (1) के अधीन नियत सीमा के अधीन रहते हुए, प्रत्येक रेल प्रशासन अपने कब्जे में के प्रत्येक वैगन या ट्रक के लिए वहन की सामान्य क्षमता अवधारित करेगा और इस प्रकार अवधारित वहन की सामान्य क्षमता को ऐसे प्रत्येक वैगन या ट्रक के बाहरी भाग पर किसी सहजदृशय रीति में शब्दों और अंकों में प्रदर्शित करेगा ।

                (3) प्रत्येक व्यक्ति जो किसी ऐसे वैगन या ट्रक का, जो किसी रेल के ऊपर से गुजरता है, स्वामी है, उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट रीति में वैगन या ट्रक की सामान्य वहन क्षमता अवधारित और प्रदर्शित करेगा ।

                (4) उपधारा (2) या उपधारा (3) में किसी बात के होते हुए भी जहां रेल प्रशासन किसी विनिर्दिष्ट वर्ग के माल का वहन करने वाले किसी वैगन या ट्रक अथवा किसी वर्ग के वैगन या किसी विनिर्दिष्ट प्रकार के ट्रक की बाबत ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझता है वहां वह ऐसे वैगन या ट्रक या ऐसे वर्ग के वैगन या ट्रकों के लिए सामान्य वहन क्षमता में परिवर्तन कर सकेगा और ऐसी शर्तों के अधीन, जो वह अधिरोपित करना ठीक समझे, ऐसे वैगन या ट्रक या वैगनों, ट्रकों के वर्ग के लिए ऐसी वहन क्षमता अवधारित कर सकेगा जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए, और इस प्रकार अवधारित वहन क्षमता प्रकट करने वाले शब्द और अंक ऐसे वैगन या ट्रक या ऐसे किसी वर्ग के वैगन या ट्रकों के बाहरी भाग पर प्रदर्शित करना आवश्यक नहीं होगा ।

73. वैगन की अतिभराई करने के लिए दण्डस्वरूप प्रभार-जहां कोई व्यक्ति धारा 72 की उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन प्रदर्शित या उपधारा (4) के अधीन अधिसूचित वैगन की अनुज्ञेय वहन क्षमता से अधिक माल का उसमें लदान करता है वहां    रेल प्रशासन, माल भाड़ा और अन्य प्रभारों के अतिरिक्त, यथास्थिति, परेषक, परेषिती या पृष्ठांकिती से शास्ति स्वरूप प्रभार ऐसी दरों पर, जो विहित की जाएं, माल के परिदान से पूर्व वसूल कर सकेगा:

                परन्तु यदि वैगन की क्षमता से अधिक लदे हुए माल का अग्रेषक स्टेशन पर या गंतव्य स्थान से पहले किसी स्थान पर पता चलता है तो रेल प्रशासन के लिए उसे उतारना और इस प्रकार उतारने की लागत और इस कारण ऐसे किसी वैगन के रोके रखने के लिए किसी प्रभार का वूसल करना विधिपूर्ण होगा ।

74. रेल रसीद के अंतर्गत आने वाले माल में संपत्ति का संक्रांत होना-रेल रसीद के अन्तर्गत आने वाले परेषण में संपत्ति, यथास्थिति, परेषिती या पृष्ठांकिती को, ऐसी रेल रसीद का उसको परिदान कर दिए जाने पर, संक्रांत हो जाएगी और उसे परेषक के सभी अधिकार और दायित्व प्राप्त होंगे ।

75. अभिवहन में रोकने या माल भाड़े के दावों के अधिकार पर धारा 74 का प्रभाव होना-धारा 74 की कोई बात निम्नलिखित पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगी या उसको प्रभावित नहीं करेगी-

(क) परेषक का रेल प्रशासन को किए गए लिखित अनुरोध पर [माल विक्रय अधिनियम, 1930 (1930 का 3) के अधीन यथापरिभाषितट असंदत्त विक्रेता के रूप में माल को अभिवहन में रोकने का कोई अधिकार;

(ख) परेषक से माल भाड़े का दावा करने का रेल का कोई अधिकार; या

(ग) उस धारा में निर्दिष्ट परेषिती या पृष्ठांकिती का, ऐसे परेषिती या पृष्ठांकिती होने के नाते कोई दायित्व ।

76. रेल रसीद का अभ्यर्पण-रेल प्रशासन रेल रसीद के अधीन परेषण का परिदान ऐसी रेल रसीद के अभ्यर्पण पर करेगा:

                परन्तु यदि रेल रसीद प्राप्त नहीं हो रही है तो परेषण उस व्यक्ति को, जो रेल प्रशासन की राय में माल प्राप्त करने का हकदार है, ऐसी रीति से, जो विहित की जाए, परिदत्त किया जा सकेगा ।

77. कतिपय मामलों में माल या उसके विक्रय आगमों का परिदान करने की रेल प्रशासन की शक्ति-जहां कोई रेल रसीद प्राप्त नहीं हो रही है और किसी परेषण या किसी परेषण के विक्रय आगमों का दो या अधिक व्यक्तियों द्वारा दावा किया जाता है वहां रेल प्रशासन, यथास्थिति, ऐसे परेषण या विक्रय आगमों का परिदान रोक सकेगा और ऐसे परेषण या विक्रय आगमों का परिदान ऐसी रीति से करेगा, जो विहित की जाए ।

78. मापने, वजन करने, आदि की शक्ति-रेल रसीद में किसी बात के होते हुए भी, रेल प्रशासन को परेषण का परिदान करने के पूर्व, यह अधिकार हो सकेगा कि-

                                (i) वह किसी परेषण का पुनः माप, पुनः वजन या पुनः वर्गीकरण करे;

                                (ii) माल भाड़ा या अन्य प्रभारों की पुनः संगणना करे; और        

                                (iii) किसी अन्य गलती का सुधार करे या ऐसी रकम का संग्रहण करे जो प्रभारित करने से रह गई है ।

79. परेषिती या पृष्ठांकिती के अनुरोध पर परेषण का वजन कराना-रेल प्रशासन, परेषिती या पृष्ठांकिती द्वारा अनुरोध किए जाने पर ऐसी शर्तों के अधीन और ऐसे प्रभार, जैसे विहित किए जाएं और डेमरेज प्रभार, यदि कोई है, के संदाय पर परेषण का वजन कराने की अनुज्ञा दे सकेगा:

                परन्तु उन मामलों को छोड़कर जहां इस निमित्त प्राधिकृत रेल सेवक ऐसा करना आवश्यक समझता है, स्वामी-जोखिम रेट पर बुक किए गए माल का या ऐसे माल का जो विनश्वर है और अभिवहन में जिसका वजन कम होने की संभावना है, वजन कराना अनुज्ञात नहीं किया जाएगा:

                परन्तु यह और कि वैगन-भार या रेलगाड़ी-भार परेषण का वजन कराने का अनुरोध तब अनुज्ञात नहीं किया जाएगा, यदि यार्ड में संकुलन के या ऐसी अन्य परिस्थितियों के कारण, जो विहित की जाएं, परेषण का वजन कराना साध्य नहीं है ।

80. गलत परिदान के लिए रेल प्रशासन का दायित्व-जहां रेल प्रशासन उस व्यक्ति को परेषण का परिदान करता है जो रेल रसीद प्रस्तुत करता है, वहां वह इस आधार पर किसी गलत परिदान के लिए उत्तरदायी नहीं होगा कि ऐसा व्यक्ति उसका हकदार   नहीं है या रेल रसीद पर पृष्ठांकन कूटकृत है या अन्यथा त्रुटिपूर्ण है ।

81. परेषणों का खुला परिदान-जहां कोई परेषण नुकसानग्रस्त हालत में पहुंचता है या उसमें गड़बड़ किए जाने के चिह्न दिखाई देते हैं और परेषिती या पृष्ठांकिती उसके खुले परिदान की मांग करता है वहां रेल प्रशासन ऐसी रीति में जो विहित की जाए, खुला परिदान देगा ।

82. परेषणों का भागतः परिदान-(1) परेषिती या पृष्ठांकिती, परिदान के लिए परेषण या उसके भाग के तैयार होते ही, ऐसे परेषण या उसके भाग का परिदान इस बात के होते हुए भी लेगा कि ऐसे परेषण या उसके भाग को नुकसान पहुंचा है ।

                (2) उपधारा (1) के अधीन भागतः परिदान की दशा में, रेल प्रशासन भागतः परिदान प्रमाणपत्र ऐसे प्ररूप में देगा, जो विहित किया जाए ।

                (3) यदि परेषिती या पृष्ठांकिती उपधारा (1) के अधीन परिदान लेने से इंकार कर देता है तो परेषण या उसका भाग, हटाए जाने के लिए अनुज्ञात समय से आगे के लिए स्थान-भाड़ा प्रभारों के अधीन होगा ।

83. माल भाड़े या किसी अन्य देय राशि के लिए धारणाधिकार-(1) यदि परेषक, परेषिती या पृष्ठांकिती किसी परेषण की बाबत उसके द्वारा देय किसी माल भाड़े या अन्य प्रभारों की मांग करने पर संदाय करने में असफल रहता है तो रेल प्रशासन ऐसे परेषण या उसके भाग को निरुद्ध कर सकेगा या यदि ऐसा परेषण परिदत्त कर दिया गया है, तो ऐसे व्यक्ति के किसी अन्य परेषण को, जो उसके कब्जे में है या जो बाद में कब्जे में आता है, निरुद्ध कर सकेगा ।

                (2) रेल प्रशासन, ऐसे परेषण या उसके भाग का जो माल भाड़े या अन्य प्रभारों की रकम के बराबर रकम वसूल करने के लिए आवश्यक हो, यदि उपधारा (1) के अधीन निरुद्ध माल-

                                (क) विनश्वर प्रकृति का है तो उसका तुरंत विक्रय कर सकेगा, या

                                (ख) विनश्वर प्रकृति का नहीं है, तो लोक नीलामी द्वारा विक्रय कर सकेगा:

                परन्तु जहां रेल प्रशासन की ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, यह राय है कि लोक नीलामी करना समीचीन नहीं है वहां ऐसे परेषण या उसके भाग का ऐसी रीति से, जो विहित की जाए, विक्रय किया जा सकेगा ।

                (3) रेल प्रशासन उपधारा (2) के खंड (ख) के अधीन लोक नीलामी की कम से कम सात दिन की सूचना एक या अधिक स्थानीय समाचारपत्रों में देगा या जहां ऐसे कोई समाचारपत्र नहीं हैं वहां ऐसी रीति में देगा, जो विहित की जाए ।

                (4) रेल प्रशासन, उपधारा (2) के अधीन प्राप्त विक्रय आगमों में से, उसे शोध्य माल भाड़े और अन्य प्रभारों, जिनके अंतर्गत विक्रय के लिए व्यय भी हैं, के बराबर राशि को प्रतिधारित कर सकेगा और ऐसे आगमों का अधिशेष और परेषण का भाग, यदि कोई हो, उसके हकदार व्यक्ति को दे दिया जाएगा ।

                84. अदावाकृत परेषण-(1) यदि कोई व्यक्ति: -

                                (क) किसी परेषण का; या

                                (ख) धारा 83 की उपधारा (1) के अधीन किए गए निरोध से निर्मुक्त परेषण का; या              

                                (ग) धारा 83 की उपधारा (2) के अधीन परेषण के किसी शेष भाग का,

परिदान लेने में असफल रहता है, तो ऐसे परेषण को अदावाकृत माना जाएगा ।

                (2) रेल प्रशासन-

(क) ऐसे अदावाकृत परेषण की दशा में, जो विनश्वर प्रकृति का है, ऐसे परेषण का ऐसी रीति से, जो धारा 83 की उपधारा (2) के खंड (क) में उपबंधित है, विक्रय कर सकेगा; या

(ख) ऐसे अदावाकृत परेषण की दशा में, जो विनश्वर प्रकृति का नहीं है, परेषिती को, यदि उसका नाम और पता ज्ञात है और ऐसे परेषक को, यदि परेषिती का नाम और पता नहीं है, सूचना की तामील उससे यह अपेक्षा करते हुए करवाएगा कि वह उसकी प्राप्ति से सात दिन की अवधि के भीतर माल को हटा ले और यदि ऐसी सूचना की तामील नहीं की जा सकती है या सूचना में की गई अध्यपेक्षा के पालन में असफलता होती है, तो ऐसे परेषण का, धारा 83 की उपधारा (2)    के खंड (ख) में उपबंधित रीति से, विक्रय कर सकेगा ।

                (3) रेल प्रशासन, उपधारा (2) के अधीन प्राप्त विक्रय आगमों में से उसे शोध्य माल भाड़े और अन्य प्रभारों, जिनके अंतर्गत विक्रय के लिए व्यय भी हैं, के बराबर राशि प्रतिधारित करेगा और ऐसे विक्रय आगमों का अतिशेष, यदि कोई हो, हकदार व्यक्ति को दे दिया जाएगा ।

85. कतिपय परिस्थितियों में विनश्वर परेषणों का व्ययन-(1) जहां किसी बाढ़, भूस्खलन, रेल लाइन के टूट जाने, रेल गाड़ियों के बीच टक्कर, रेलगाड़ी के पटरी से उतरने या किसी अन्य दुर्घटना के कारण या किसी अन्य कारण से किसी मार्ग पर यातायात में अवरोध होता है और ऐसे यातायात के फिर से शीघ्र चालू हाने की कोई सम्भाव्यता नहीं है और न ऐसा कोई अन्य समुचित मार्ग है जिससे विनश्वर परेषण के यातायात को इस प्रकार पथांतरित किया जा सके जिससे ऐसे परेषण की हानि या उसके क्षय या नुकसान को रोका जा सके वहां रेल प्रशासन धारा 83 की उपधारा (2) के खंड (क) में उपबंधित रीति से उसका विक्रय कर सकेगा ।

                (2) रेल प्रशासन उपधारा (1) के अधीन प्राप्त विक्रय आगमों में से, उसे शोध्य माल भाड़े और अन्य प्रभारों, जिनके अंतर्गत विक्रय के लिए व्यय भी है, के बराबर राशि को प्रतिधारित करेगा और ऐसे विक्रय आगमों का अधिशेष, यदि कोई हो, उसके हकदार व्यक्ति को दे दिया जाएगा ।

86. धारा 83 से धारा 85 तक के अधीन विक्रय का वाद के अधिकार पर प्रभाव डालना-इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, धारा 83 से धारा 85 तक के अधीन विक्रय के अधिकार का, रेल प्रशासन के उसे शोध्य किसी माल भाड़े, प्रभार, रकम या अन्य व्ययों को वाद द्वारा वसूल करने के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

87. इस अध्याय के विषयों की बाबत नियम बनाने की शक्ति-(1) केंद्रीय सरकार इस अध्याय के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

                (2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

(क) ऐसा माल, जिसकी बाबत, धारा 64 की उपधारा (1) के परंतुक के अधीन कोई प्रेषण टिप्पण निष्पादित नहीं किया जाएगा;

(ख) धारा 67 की उपधारा (1) के प्रयोजन के लिए खतरनाक और घृणोत्पादक माल;

(ग) धारा 68 के प्रयोजनों के लिए संक्रामक या सांसर्गिक रोग;

(घ) धारा 73 के अधीन शास्ति प्रभारों की दरें;

(ङ) धारा 76 के अधीन रेलरसीद के बिना परेषण का परिदान करने की रीति;

(च) धारा 77 के अधीन हकदार व्यक्ति को परेषण के या विक्रय आगमों के परिदान की रीति;

(छ) धारा 79 के अधीन वैगर-भार या रेलगाड़ी-भार परेषण का वजन करने की अनुज्ञा देने की शर्तें और उसके लिए संदेय प्रभार और वजन कराने की अनुज्ञा न देने की परिस्थितियां;

(ज) धारा 81 के अधीन खुला परिदान देने की रीति;

(झ) धारा 82 की उपधारा (2) के अधीन भागतः परिदान प्रमाणपत्र का प्ररूप;

(ञ) धारा 83 की उपधारा (2) के परंतुक के अधीन परेषण या उसके भाग के विक्रय की रीति;

(ट) धारा 83 की उपधारा (3) के अधीन सूचना देने की रीति;

(ठ) साधारणतया, रेल द्वारा माल का वहन विनियमित करने के लिए ।

                (3) इस धारा के अधीन बनाए गए किसी नियम में यह उपबंध किया जा सकेगा कि उसका उल्लंघन जुर्माने से जो एक सौ पचास रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

                (4) प्रत्येक रेल प्रशासन प्रत्येक स्टेशन पर इस धारा के अधीन तत्समय प्रवृत्त नियमों की प्रति रखेगा और किसी भी व्यक्ति को उसे निःशुल्क देखने की अनुज्ञा देगा ।

अध्याय 10

अधिसूचित स्टेशनों को बुक किए गए माल के बारे में विशेष उपबंध

88. परिभाषाएं-इस अध्याय में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, -

(क) आवश्यक वस्तु" से आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (1955 का 10) की धारा 2 के खंड (क) में परिभाषित आवश्यक वस्तु अभिप्रेत है;

(ख) अधिसूचित स्टेशन" से धारा 89 के अधीन अधिसूचित स्टेशन के रूप में घोषित स्टेशन अभिप्रेत है;

(ग) अधिसूचित स्टेशन के संबंध में, राज्य सरकार" से उस राज्य की जिसमें वह स्टेशन स्थित है, सरकार या जहां ऐसा स्टेशन किसी संघ राज्यक्षेत्र में स्थित है, वहां संविधान के अनुच्छेद 239 के अधीन नियुक्त उस संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासक, अभिप्रेत है ।

89. अधिसूचित स्टेशन घोषित करने की शक्ति-(1) यदि केंद्रीय सरकार का यह समाधान हो जाता है कि यह आवश्यक है कि केवल माल के वहन के लिए आशयित रेलगाड़ी से किसी रेल स्टेशन को वहन के लिए सौंपे गए माल को ऐसे रेल स्टेशन से अविलम्ब हटाया जाना चाहिए तो वह, अधिसूचना द्वारा, उस रेल स्टेशन को, ऐसी अवधि के लिए जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए, अधिसूचित स्टेशन घोषित कर सकती है:

                परंतु केंद्रीय सरकार इस उपधारा के अधीन किसी रेल स्टेशन को अधिसूचित स्टेशन घोषित करने के पूर्व निम्नलिखित सभी या किन्हीं बातों का ध्यान रखेगी, अर्थात्: -

                                (क) ऐसे रेल स्टेशन पर यातायात की मात्रा और भंडारकरण के लिए उपलब्ध स्थान;

                                (ख) ऐसे रेल स्टेशन को साधारणतः बुक किए जाने वाले माल की प्रकृति और मात्रा;

                (ग) ऐसे रेल स्टेशन से लम्बी अवधि तक माल को न हटाने से माल की कमी होने की संभावना और ऐसी कमी के कारण समुदाय को हो सकने वाली कठिनाई;

                (घ) यदि ऐसे रेल स्टेशन से माल को शीघ्रतापूर्वक नहीं हटाया जाता है तो वहां पर रुके रहने वाले वैगनों की सम्भाव्य संख्या और ऐसे वैगनों के शीघ्र संचलन और उपलब्धता की आवश्यकता;

                (ङ) ऐसी अन्य बातें (जो आम जनता के हित की दृष्टि से सुसंगत हैं) जो विहित की जाएं:

                परंतु यह और कि किसी रेल स्टेशन की बाबत इस उपधारा के अधीन जारी की गई किसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट अवधि पहली बार छह मास से अधिक नहीं होगी । किन्तु ऐसी अवधि, अधिसूचना द्वारा, प्रत्येक अवसर पर छह मास से अनधिक अवधि तक समय-समय पर बढ़ाई जा सकती है ।

                (2) यदि कोई व्यक्ति, जो किसी अधिसूचित स्टेशन को वहन करने के लिए किसी रेल प्रशासन को कोई माल सौंपता है, ऐसे प्ररूप और ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, कोई आवेदन करता है और उसमें उस व्यक्ति का पता विनिर्दिष्ट करता है, जिसको अधिसूचित स्टेशन पर माल के पहुंचने की सूचना रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा दी जाएगी और ऐसी सूचना देने के लिए अपेक्षित डाक प्रभार का संदाय करता है तो रेल प्रशासन अधिसूचित स्टेशन पर माल के पहुंचने के पश्चात् यथासम्भव शीघ्र, तद्नुसार ऐसी सूचना भेजेगा ।

                (3) प्रत्येक अधिसूचित स्टेशन के किसी सहजदृश्य स्थान पर विहित प्ररूप में एक विवरण प्रदर्शित किया जाएगा जिसमें ऐसे माल का, जो इस तथ्य के कारण कि वह उसके अभिवहन की समाप्ति से सात दिन की अवधि के भीतर उस स्टेशन से नहीं हटाया     गया है, धारा 90 की उपधारा (1) के उपबंधों के अनुसार लोक नीलामी द्वारा विक्रय कर दिए जाने के दायित्वाधीन होगा और उन तारीखों का जिनको उसका इस प्रकार विक्रय किया जाएगा, वर्णन होगा:

                परंतु भिन्न-भिन्न तारीखों को विक्रय किए जाने के लिए प्रस्तावित माल की बाबत भिन्न-भिन्न विवरण इस प्रकार प्रदर्शित किए जा सकेंगे ।

                (4) यदि उपधारा (3) के अधीन प्रदर्शित किए जाने वाले किसी विवरण में विनिर्दिष्ट माल के अन्तर्गत आवश्यक वस्तु भी हैं तो विवरण तैयार करने वाला रेल सेवक, ऐसे विवरण तैयार करने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र उसकी एक प्रति निम्नलिखित को भेजेगा: -

                                (क) केंद्रीय सरकार का कोई प्रतिनिधि जो उस सरकार द्वारा इस निमित्त नामनिर्देशित किया जाए;

                                (ख) राज्य सरकार का कोई प्रतिनिधि, जो उस सरकार द्वारा इस निमित्त नामनिर्देशित किया जाए; और

                                (ग) वह जिला मजिस्ट्रेट जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर वह रेल स्टेशन स्थित है ।

90. अधिसूचित स्टेशनों से हटाए गए माल का व्ययन-(1) यदि ऐसा कोई माल जो केवल वहन के लिए आशयित रेलगाड़ी द्वारा किसी अधिसूचित स्टेशन को सौंपा गया है, उस स्टेशन पर उसके अभिवहन की समाप्ति के पश्चात् सात दिन की अवधि के अंदर ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो उसे हटाने का हकदार है, उस स्टेशन से नहीं हटाया जाता है, तो रेल प्रशासन उपधारा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए लोक नीलामी द्वारा ऐसे माल का विक्रय कर सकेगा, और धारा 89 की उपधारा (3) के उपबंधों के अनुसार ऐसे माल के वर्णन वाले विवरण को प्रदर्शित करने के अलावा, ऐसी लोक नीलामी की कोई सूचना देना आवश्यक नहीं होगा, किंतु वे तारीखें जिनको इस उपधारा के अधीन ऐसे नीलामी की जाए, एक या अधिक स्थानीय समाचारपत्रों में अधिसूचित की जा सकेगी या जहां ऐसे कोई समाचारपत्र नहीं हैं वहां ऐसी रीति से, जो विहित की जाए, अधिसूचित की जा सकेगी :

                परंतु यदि ऐसे माल का हकदार कोई व्यक्ति इस उपधारा के अधीन उस माल के विक्रय के पूर्व किसी समय रेल प्रशासन को उसके बारे में देय माल भाड़ा और अन्य प्रभार और व्यय का संदाय कर देता है तो उसे वह माल हटाने दिया जाएगा ।

                (2) यदि कोई ऐसा माल, जिसका उपधारा (1) के अधीन किसी अधिसूचित स्टेशन पर लोक नीलामी द्वारा विक्रय किया जा सकेगा, आवश्यक वस्तु होने के कारण, केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा अपने उपयोग के लिए अपेक्षित है या यदि केंद्रीय सरकार अथवा वह राज्य सरकार यह समझती है कि ऐसी सभी या किन्हीं आवश्यक वस्तुओं को उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने के लिए ऐसा करना आवश्यक है, तो वह लिखित आदेश द्वारा ऐसी नीलामी के भारसाधक रेल सेवक को निदेश दे सकेगी कि वह ऐसा माल उसको या ऐसी आवश्यक वस्तुओं के विक्रय के कारबार में लगे हुए ऐसे अभिकरण, सहकारी सोसाइटी या अन्य व्यक्ति को     (जो सरकार के नियन्त्रणाधीन कोई अभिकरण, सहकारी सोसाइटी या अन्य व्यक्ति है) अन्तरित करे ।

                (3) किसी आवश्यक वस्तु के बारे में उपधारा (2) के अधीन जारी किया गया प्रत्येक निदेश ऐसे किसी रेल सेवक पर, जिसको वह जारी किया जाता है, और रेल प्रशासन पर, आबद्धकर होगा और यह बात कि ऐसी आवश्यक वस्तु ऐसे निदेश के अनुपालन में अन्तरित कर दी गई है, माल के हकदार व्यक्ति द्वारा किए गए किसी दावे के विरुद्ध पर्याप्त प्रतिरक्षा होगी:

                परंतु-

                                (क) ऐसा निदेश ऐसे किसी रेल सेवक या रेल प्रशासन पर आबद्धकर नहीं होगा यदि-

(i) ऐसा निदेश ऐसे रेल सेवक को इतने पर्याप्त समय पूर्व प्राप्त नहीं हुआ है कि वह ऐसी आवश्यक वस्तुओं के विक्रय को, जिससे निदेश का संबंध है, रोक सके; या

(ii) ऐसे माल का हकदार कोई व्यक्ति ऐसे विक्रय के लिए नियत समय के पूर्व उस माल के बारे में देय माल-भाड़े और अन्य प्रभारों और व्ययों का संदाय कर देता है और यह दावा करता है कि उसे माल हटाने दिया जाए; या

(iii) ऐसे माल के लिए संदेय कीमत (जो, यथास्थिति, केंद्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा प्राक्कलित की गई हो) रेल प्रशासन के खाते में विहित रीति से जमा नहीं की जाती है और रेल प्रशासन को उस अतिरिक्त रकम की क्षतिपूर्ति नहीं की जाती है जो वह कीमत मद्धे संदाय करने के लिए इस कारण दायी हो सकता है कि वह कीमत उपधारा (4) के उपबन्धों के अनुसार संगणित नहीं की गई है;

(ख) जहां केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकार द्वारा एक ही माल की बाबत निदेश जारी किए जाते हैं, वहां पहले प्राप्त निदेश अभिभावी होगा ।

                (4) उपधारा (2) के अधीन जारी किए गए किसी निदेश के अनुपालन में अन्तरित किसी आवश्यक वस्तु के लिए संदेय कीमत, आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (1955 का 10) की धारा 3 की उपधारा (3) के उपबंधों के अनुसार परिकलित कीमत होगी:

                परंतु-

(क) किसी ऐसी आवश्यक वस्तु की दशा में, जो ऐसा खाद्य पदार्थ है जिसके संबंध में आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (1955 का 10) की धारा 3 की उपधारा (3क) के अधीन जारी की गई कोई अधिसूचना उस परिक्षेत्र में प्रवृत्त है जिसमें अधिसूचित स्टेशन स्थित है, संदेय कीमत उस उपधारा के खण्ड (iii) और खण्ड (iv) के उपबंधों के अनुसार परिकलित की जाएगी;

(ख) किसी ऐसी आवश्यक वस्तु की दशा में, जो किसी ऐसी श्रेणी या किस्म का खाद्यान्न, खाद्य तिलहन या      खाद्य तेल है जिसके संबंध में आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (1955 का 10) की धारा 3 की उपधारा (3क) के अधीन जारी की गई कोई अधिसूचना उस परिक्षेत्र में प्रवृत्त नहीं है जिसमें अधिसूचित स्टेशन स्थित है, संदेय कीमत उस धारा की उपधारा (3ख) के उपबंधों के अनुसार परिकलित की जाएगी;

(ग) किसी ऐसी आवश्यक वस्तु की दशा में, जो किसी प्रकार की चीनी है जिसके संबंध में आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (1955 का 10) की धारा 3 की उपधारा (3क) के अधीन जारी की गई कोई अधिसूचना उस परिक्षेत्र में प्रवृत्त नहीं है जिसमें अधिसूचित स्टेशन स्थित है, संदेय कीमत, यदि ऐसी चीनी को उत्पादक द्वारा स्वयं अपने लिए बुक किया गया है तो, उस धारा की उपधारा (3ग) के उपबंधों के अनुसार परिकलित की जाएगी ।

                स्पष्टीकरण-इस खंड के प्रयोजनों के लिए उत्पादक" और चीनी" पदों के वे ही अर्थ हैं जो आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (1955 का 10) की क्रमशः धारा 3 की उपधारा (3ग) के स्पष्टीकरण और धारा 2 के खंड (ङ) में हैं ।

91. शोध्य रकम की कटौती के पश्चात् हकदार व्यक्ति को कीमत का संदाय किया जाना-(1) रेल प्रशासन, धारा 90 की उपधारा (1) के अधीन माल के विक्रय आगमों में से अथवा उस धारा की उपधारा (4) के अधीन उसके लिए संदेय कीमत में से उतनी राशि प्रतिधारित कर सकेगा जो उस माल के संबंध में देय माल-भाड़े और अन्य प्रभारों और ऐसे माल और उसकी नीलामी के संबंध में उपगत व्ययों के बराबर है तथा यदि कोई अधिशेष रह जाता है तो वह उसके हकदार व्यक्ति को देगा ।

                (2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, रेल प्रशासन उसमें निर्दिष्ट ऐसे किसी माल-भाड़े या प्रभार या किन्हीं व्ययों को, या उसके अतिशेष को वाद द्वारा वसूल कर सकेगा ।

                (3) ऐसा कोई माल, जिसका धारा 90 की उपधारा (1) के अधीन विक्रय किया जाता है या उस धारा की उपधारा (2) के अधीन जारी किए गए निदशों के अनुपालन में अन्तरण किया जाता है, सभी विल्लंगमों से मुक्त होकर किन्तु उस धनराशि को दी जाने वाली पूर्विकता के अधीन रहते हुए, जो रेल प्रशासन द्वारा उपधारा (1) के अधीन प्रतिधारित की जाए, क्रेता या अन्तरिती में निहित होगा और उस व्यक्ति द्वारा, जिसके पक्ष में ऐसा विल्लंगम विद्यमान है, ऐसे विल्लंगम की बाबत दावा उस उपधारा में निर्दिष्ट  अधिशेष पर, यदि कोई है, किया जा सकेगा ।

92. इस अध्याय के विषयों की बाबत नियम बनाने की शक्ति-(1) केंद्रीय सरकार, इस अध्याय के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

                (2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

                                (क) वे बातें जिनका केंद्रीय सरकार धारा 89 की उपधारा (1) के पहले परंतुक के खंड (ङ) के अधीन ध्यान रखेगी;

                                (ख) वह प्ररूप और रीति जिसमें धारा 89 की उपधारा (2) के अधीन कोई आवेदन किया जा सकेगा;

(ग) वह प्ररूप जिसमें धारा 89 की उपधारा (3) के अधीन कोई विवरण प्रदर्शित किया जाना अपेक्षित है;

(घ) वह रीति जिसमें धारा 90 की उपधारा (1) के अधीन लोक नीलामी की तारीखों को अधिसूचित किया जा सकेगा; और

(ङ) वह रीति जिसमें धारा 90 की उपधारा (3) के परंतुक के खंड (क) के उपखंड (iii) में निर्दिष्ट माल की कीमत रेल प्रशासन के खाते में जमा की जा सकेगी ।

अध्याय 11

वाहक के रूप में रेल प्रशासनों का उत्तरदायित्व

93. माल वाहक के रूप में रेल प्रशासन का साधारण उत्तरदायित्व-इस अधिनियम में अन्यथा उपबंधित के सिवाय, रेल प्रशासन निम्नलिखित किसी कारण के सिवाय किसी परेषण की अभिवहन में उद्भूत हानि, नाश, नुकसान या क्षय या उसके अपरिदान के लिए उत्तरदायी होगा, अर्थात्: -

(क) दैवकृत;

(ख) युद्धकृत;

(ग) लोक शत्रुकृत;

(घ) विधिक आदेशिका के अधीन गिरफ्तारी, अवरोध या अभिग्रहण;

(ङ) केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा अथवा केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा उस निमित्त उसके द्वारा प्राधिकृत उसके अधीनस्थ किसी अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा अधिरोपित निर्बन्धन या आदेश;

(च) परेषक या परेषिती या पृष्ठांकिती का या परेषक या परेषिती या पृष्ठांकिती के अभिकर्ता या सेवक का कार्य या लोप या उपेक्षा;

(छ) माल में अन्तर्निहित त्रुटि, क्वालिटी या खोट के कारण आयतन या वजन में प्राकृतिक क्षय या अपचय;

(ज) अप्रकट खराबी;

(झ) आग, विस्फोट या कोई अप्रत्याशित जोखिम:

                परन्तु जहां यह साबित भी कर दिया जाता है कि ऐसी हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान पूर्वोक्त किसी एक या अधिक कारणों से हुआ है वहां भी रेल प्रशासन ऐसी हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए अपने उत्तरदायित्व से तब तक मुक्त नहीं होगा, जब तक रेल प्रशासन यह और साबित नहीं कर देता है कि उसने माल के वहन में युक्तियुक्त दूरदर्शिता और सतर्कता बरती है ।

94. ऐसी साइडिंग पर जो रेल प्रशासन की नहीं है, माल का लदान या परिदान किया जाना-(1) जहां माल का रेल द्वारा वहन के लिए ऐसी साइडिंग पर, जो रेल प्रशासन की नहीं है, लदान किया जाना अपेक्षित है, वहां रेल प्रशासन ऐसे माल की किसी भी कारण से उद्भूत किसी हानि, नाश, नुकसान या क्षय के लिए उत्तरदायी नहीं होगा जब तक कि वह वैगन, जिसमें माल रखा हुआ है, रेल प्रशासन और साइडिंग के बीच वैगनों की अदला-बदली के विनिर्दिष्ट स्थान पर न रख दिया गया हो और इस निमित्त प्राधिकृत किसी रेल सेवक को साइडिंग के स्वामी ने तद्नुसार लिखित रूप में सूचना न दे दी हो ।

(2) जहां रेल प्रशासन द्वारा किसी परेषण का ऐसी साइडिंग पर, जो रेल प्रशासन की नहीं है, परिदत्त किया जाना अपेक्षित है वहां रेल प्रशासन, ऐसे किसी परेषण की किसी भी कारण से उद्भूत किसी हानि, नाश, नुकसान या क्षय या अपरिदान के लिए तब उत्तरदायी नहीं होगा, जब रेल और साइडिंग के बीच वैगनों की अदला-बदली के विनिर्दिष्ट स्थान पर उस वैगन को जिसमें परेषण हैं, रख दिया गया हो और तद्नुसार यह सूचना इस निमित्त प्राधिकृत किसी रेल सेवक द्वारा लिखित रूप में साइडिंग के स्वामी को दे दी  गई हो ।

95. अभिवहन में विलम्ब या निरोध-रेल प्रशासन किसी ऐसे परेषण की हानि, नाश, नुकसान या क्षय के लिए उत्तरदायी नहीं होगा, जिसके बारे में स्वामी यह साबित कर देता है कि वह उनके वहन में विलम्ब या निरोध के कारण हुआ है यदि रेल प्रशासन यह साबित कर देता है कि ऐसा विलम्ब या निरोध उसके नियंत्रण के परे कारणों से हुआ है या वह उसकी या उसके किसी सेवक की किसी उपेक्षा या अवचार के बिना हुआ है ।

96. भारत में और विदेशों में रेलों पर गुजरने वाला यातायात-जहां भारत में किसी स्थान से भारत के बाहर किसी स्थान तक या भारत के बाहर किसी स्थान से भारत में किसी स्थान तक या भारत के बाहर एक स्थान से भारत के बाहर किसी अन्य स्थान तक या भारत में किसी एक स्थान से भारत के बाहर के किसी राज्यक्षेत्र से होकर भारत में किसी अन्य स्थान तक किसी परेषण के वहन के अनुक्रम में, उसे भारत में के किसी रेल प्रशासन की रेल पर वहन किया जाता है, वहां वह रेल प्रशासन इस अध्याय के उपबंधों में से किसी के अधीन माल की किसी भी कारण से उद्भूत होने वाली हानि, नाश, नुकसान या क्षय के लिए उत्तरदायी नहीं होगा जब तक कि उस माल के स्वामी द्वारा यह साबित नहीं कर दिया जाता है कि ऐसी हानि, नाश, नुकसान या क्षय उस रेल प्रशासन की रेल पर      हुआ है ।

97. स्वामी-जोखिम रेट पर वहन किया गया माल-धारा 93 में किसी बात के होते हुए भी, रेल प्रशासन तब तक स्वामी-जोखिम रेट पर वहन किए गए किसी परेषण की किसी भी कारण से उद्भूत होने वाली किसी हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए, जो अभिवहन में हो, उत्तरदायी नहीं होगा जब तक यह साबित न हो जाए कि वह हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान उसकी या उसके किसी सेवक की ओर से किसी उपेक्षा या अवचार के कारण हुआ है:

परन्तु जहां -

                (क) ऐसा संपूर्ण परेषण या ऐसा कोई संपूर्ण पैकेज, जो ऐसे परेषण का भाग है, परेषिती या पृष्ठांकिती को परिदत्त नहीं किया जाता है और रेल प्रशासन द्वारा यह साबित नहीं किया जाता है कि ऐसा अपरिदान अग्नि या रेलगाड़ी की दुर्घटना के कारण है; या

                (ख) ऐसे किसी परेषण या ऐसे किसी पैकेज के बारे में, जो ऐसे परेषण का भाग है, जो ऐसे आच्छादित या सुरक्षित किया गया था कि आच्छादन या सुरक्षा हाथ से सरलतापूर्वक नहीं हटाई जा सकती थी, परिदान किए जाने पर या उसके पूर्व रेल प्रशासन को यह बताया जाता है कि उस परेषण या पैकेज के किसी भाग का अभिवहन में मूषण किया गया है,

वहां रेल प्रशासन परेषक, परेषिती या पृष्ठांकिती को यह प्रकट करने के लिए बाध्य होगा कि उस परेषण या पैकेज को, उस संपूर्ण अवधि के दौरान जबकि वह उसके कब्जे या नियंत्रण में था, कैसे रखा गया था, किन्तु यदि ऐसे प्रकटीकरण से रेल प्रशासन या उसके किसी सेवक की ओर से उपेक्षा या अवचार का समुचित रूप से अनुमान नहीं लगाया जा सकता है तो ऐसी उपेक्षा या अवचार साबित करने का भार परेषक, परेषिती या पृष्ठांकिती पर होगा ।

98. त्रटिपूर्ण दशा में या त्रुटिपूर्ण रूप से पैक किया गया माल-(1) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, जब वहन के लिए किसी रेल प्रशासन को सौंपा गया कोई माल-

                (क) त्रुटिपूर्ण दशा में है जिसके परिणामस्वरूप उसका नुकसान, क्षय, रिसन या अपचय हो सकता है; अथवा

                (ख) या तो त्रुटिपूर्ण रूप से पैक किया गया है या ऐसी रीति से पैक नहीं किया गया है जो विहित की जाए और ऐसा त्रुटिपूर्ण या अनुचित पैकिंग के परिणामस्वरूप उसका नुकसान, क्षय, रिसन या अपचय हो सकता है,

और ऐसी दशा या त्रुटिपूर्ण या अनुचित पैकिंग का तथ्य परेषक या उसके अभिकर्ता द्वारा प्रेषण टिप्पण में अभिलिखित किया गया है, तब रेल प्रशासन किसी नुकसान, क्षय, रिसन या अपचय के लिए या उस दशा के लिए जिसमें ऐसा माल गंतव्य स्थान पर परिदान के लिए उपलभ्य है, उत्तरदायी नहीं होगा:

परन्तु यदि रेल प्रशासन या उसके किसी कर्मचारी की ओर से उपेक्षा या अवचार साबित हो जाता है तो रेल प्रशासन ऐसे किसी नुकसान, क्षय, रिसन या अपचय के लिए या उस दशा के लिए, जिसमें ऐसा माल गंतव्य स्थान पर परिदान के लिए उपलभ्य है उत्तरदायी होगा ।

(2) जब वहन के लिए रेल प्रशासन को सुपुर्द किए गए किसी माल के गन्तव्य स्टेशन पर पहुंचने पर यह पाया जाता है कि उसको नुकसान पहुंचा है या उसका क्षय, रिसन या अपचय हुआ है तो रेल प्रशासन माल के नुकसान, क्षय, रिसन या अपचय के लिए, रेल प्रशासन द्वारा यह सबूत देने पर उत्तरदायी नहीं होगा कि -

                (क) माल रेल प्रशासन को सुपुर्द किए जाते समय त्रुटिपूर्ण दशा में था या उस समय या तो त्रुटिपूर्ण रूप से पैक किया हुआ था या ऐसी रीति में पैक नहीं किया हुआ था जो विहित की जाए और जिसके परिणामस्वरूप उसका नुकसान, क्षय, रिसन या अपचय हो सकता था; और

                (ख) रेल द्वारा वहन के लिए माल को रेल प्रशासन को सुपुर्द किए जाते समय ऐसी त्रुटिपूर्ण दशा या त्रुटिपूर्ण या अनुचित पैकिंग को रेल प्रशासन या उसके किसी सेवक के ध्यान में नहीं लाया गया था:

परन्तु यदि रेल प्रशासन या उसके किसी सेवक की ओर से किसी उपेक्षा या अवचार का किया जाना साबित कर दिया जाता है तो रेल प्रशासन ऐसे किसी नुकसान, क्षय, रिसन या अपचय के लिए उत्तरदायी होगा ।

99. अभिवहन की समाप्ति के पश्चात् रेल प्रशासन का उत्तरदायित्व-(1) किसी परेषण की हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए रेल प्रशासन अभिवहन की समाप्ति के पश्चात् सात दिन की कालावधि तक भारतीय संविदा अधिनियम,1872 (1872 का 9) की धारा 151, धारा 152 और धारा 161 के अधीन उपनिहिती के रूप में उत्तरदायी होगा:

परन्तु जहां परेषण स्वामी-जोखिम रेट पर है वहां रेल प्रशासन अपनी या अपने सेवकों में से किसी की उपेक्षा या अवचार के साबित होने पर ही ऐसी हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए उपनिहिती के रूप में उत्तरदायी होगा, अन्यथा नहीं ।

(2) अभिवहन की समाप्ति से सात दिन की कालावधि के अवसान के पश्चात् उद्भूत किसी परेषण की हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए रेल प्रशासन किसी भी दशा में उत्तरदायी नहीं होगा ।

(3) इस धारा के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, रेल प्रशासन विनश्वर माल, जीवजन्तुओं, विस्फोटक पदार्थों तथा ऐसे खतरनाक या अन्य माल की, जो विहित किया जाए, हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए अभिवहन की समाप्ति के पश्चात् उत्तरदायी नहीं होगा ।

(4) इस धारा के पूर्वगामी उपबंधों की किसी बात से किसी व्यक्ति के उस समय के लिए, जब तक परेषण रेल वैगनों से उतार नहीं लिया जाता है, या रेल परिसर से हटा नहीं लिया जाता, यथास्थिति, किसी डेमरेज या स्थान-भाड़े का संदाय करने के दायित्व पर प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

100. सामान के वाहक के रूप में उत्तरदायित्व-रेल प्रशासन किसी सामान की हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए तभी उत्तरदायी होगा जब किसी रेल सेवक ने सामान बुक किया हो और उसके लिए रसीद दी हो तथा उस सामान की दशा में जो यात्री द्वारा अपने भारसाधन में वहन किया जाता है, जब यह भी साबित कर दिया जाता है कि हानि, नाश, नुकसान या क्षय उसकी या उसके किसी सेवक की उपेक्षा या अवचार के कारण हुआ था ।

101. जीवजन्तुओं के वाहक के रूप में उत्तरदायित्व-रेल प्रशासन, रेल द्वारा वहन किए गए किसी जीवजन्तु के डर जाने या व्याकुलता के कारण या परेषक द्वारा वैगनों के अधिक लदान के कारण उद्भूत किसी हानि या नाश या क्षति के लिए उत्तरदायी नहीं होगा ।

102. कतिपय दशाओं में दायित्व से विमुक्ति-इस अध्याय के पूर्वगामी उपबन्धों में किसी बात के होते हुए भी, कोई रेल प्रशासन किसी परेषण की हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए निम्नलिखित दशाओं में उत्तरदायी नहीं होगा: -

                (क) जब ऐसी हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान इस तथ्य के कारण हुआ है कि धारा 66 की उपधारा (1) के अधीन दिए गए विवरण में परेषण का तात्त्विक रूप से मिथ्या वर्णन किया गया है; या

                (ख) जहां परेषक या परेषिती या पृष्ठांकिती अथवा परेषक, परेषिती या पृष्ठांकिती के किसी अभिकर्ता द्वारा कोई कपट गया है; या

                (ग) जहां रेल प्रशासन द्वारा साबित कर दिया जाता है कि वह निम्नलिखित से कारित या उद्भूत हुआ है -

(i) परेषक या परेषिती या पृष्ठांकिती द्वारा अथवा परेषक, परेषिती या पृष्ठांकिती के किसी अभिकर्ता द्वारा अनुचित लदाई या उतराई से;

(ii) बलवा, सिविल अशांति, हड़ताल, तालेबंदी या श्रमिकों के रोके जाने या अवरोध, किसी भी कारण से है, चाहे वह आंशिक हो अथवा साधारण;

                (घ) किसी भी अप्रत्यक्ष या पारिणामिक हानि या नुकसान के लिए या ऐसी हानि के लिए जो विशिष्ट बाजार में माल न पहुंचने से हुई है ।

103. किसी परेषण के संबंध में धनीय दायित्व की सीमा-(1) जहां कोई परेषण रेल प्रशासन को रेल द्वारा वहन किए जाने के लिए सौंपा जाता है और ऐसे परेषण का मूल्य परेषक द्वारा उपधारा (2) के अधीन अपेक्षित रूप में घोषित नहीं किया जाता है वहां किसी परेषण की हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए रेल प्रशासन के दायित्व की रकम किसी भी दशा में ऐसी रकम से अधिक नहीं होगी जो ऐसे परेषण के, जो विहित किया जाए, वजन के प्रति निर्देश से परिकलित की जाती है और जहां ऐसे परेषण में कोई जीवजन्तु है, वहां दायित्व ऐसी रकम से अधिक नहीं होगा, जो विहित की जाए ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां परेषक रेल प्रशासन को रेल द्वारा वहन के लिए किसी परेषण को सौंपे जाने के समय उसका मूल्य घोषित करता है और ऐसे प्रतिशत प्रभार का, जो विहित किया जाए, ऐसे परेषण के उतने मूल्य पर, जो उपधारा (1) के अधीन, यथास्थिति, परिकलित या विनिर्दिष्ट रेल प्रशासन के दायित्व से अधिक है, संदाय करता है वहां ऐसे परेषण की हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए रेल प्रशासन का दायित्व इस प्रकार घोषित मूल्य से अधिक नहीं होगा ।

(3) केन्द्रीय सरकार, समय-समय पर अधिसूचना द्वारा यह निदेश दे सकेगी कि ऐसा माल, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, रेल द्वारा वहन के लिए तब तक स्वीकार नहीं किया जाएगा जब तक कि ऐसे माल का उपधारा (2) के अधीन यथा अपेक्षित मूल्य घोषित न किया गया हो और प्रतिशत प्रभार का संदाय न किया गया हो ।

104. खुले वैगन में वहन किए गए माल के संबंध में दायित्व की सीमा-जहां कोई माल, जो साधारण परिस्थितियों में, ढके हुए वैगनों में वहन किया जाएगा और यदि उसे अन्यथा वहन किया जाता है तो उसका नुकसान हो सकता है परेषक के प्रेषण टिप्पण में अभिलिखित सहमति से खुले वैगन में वहन किया जाता है, वहां माल के केवल इस प्रकार वहन किए जाने के कारण उद्भूत नाश, नुकसान या क्षय के लिए रेल प्रशासन का उत्तरदायित्व, इस अध्याय के अधीन अवधारित ऐसे नाश, नुकसान या क्षय के दायित्व की रकम का आधा होगा ।

105. कतिपय परेषण या सामान की अंतर्वस्तु की जांच करने का रेल प्रशासन का अधिकार-जहां किसी परेषण की बाबत धारा 103 के अधीन मूल्य घोषित किया गया है वहां रेल प्रशासन ऐसे परेषण का वहन करने के लिए यह शर्त रख सकता है कि उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी रेल सेवक का परीक्षा द्वारा या अन्यथा यह समाधान कर दिया गया है कि वहन के लिए दिए गए किसी परेषण में वही वस्तुएं हैं जो घोषित की गई हैं ।

106. प्रतिकर के लिए दावे और अधिक प्रभार के प्रतिदाय की सूचना-(1) रेल द्वारा वहन किए गए किसी माल की हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए रेल प्रशासन के विरुद्ध प्रतिकर का दावा करने के लिए कोई व्यक्ति तब तक हकदार नहीं होगा जब तक कि उसकी सूचना की तामील उसके द्वारा या उसकी ओर से -

                (क) उस रेल प्रशासन पर जिसको माल वहन के लिए सुपुर्द किया जाता है; या

                (ख) उस रेल प्रशासन पर, जिसके रेलमार्ग पर वह गन्तव्य स्टेशन है या जहां हानि, नाश, नुकसान या क्षय घटित हुआ है,

माल के सौंपे जाने को तारीख से छह मास की अवधि के भीतर नहीं कर दी जाती है ।

                (2) उपधारा (1) में वर्णित रेल प्रशासनों में से किसी से उस व्यक्ति के द्वारा या उसकी ओर से माल के अपरिदान या परिदान में हुए विलंब के संबंध में, उस माल की पहचान के लिए पर्याप्त विशिष्टियां देते हुए छह मास की उक्त अवधि के भीतर लिखित रूप में मांगी गई कोई जानकारी या की गई कोई पूछताछ या लिखित रूप में किया गया कोई परिवाद, इस धारा के प्रयोजन के लिए प्रतिकर के लिए दावे की सूचना समझी जाएगी ।

                (3) कोई व्यक्ति रेल द्वारा वहन किए गए माल के बारे में अधिक प्रभार के प्रतिदाय का तब तक हकदार नहीं होगा जब तक कि उसके द्वारा या उसकी ओर से उस रेल प्रशासन को जिसे अधिक प्रभार का संदाय किया गया है, ऐसे संदाय की तारीख से या ऐसे माल के गंतव्य स्टेशन पर परिदान की तारीख से, इन दोनों में से जो भी बाद की हो, छह मास के भीतर उसकी सूचना की तामील नहीं कर दी गई है ।

107. माल की हानि आदि के लिए प्रतिकर के वास्ते आवेदन-माल की हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए प्रतिकर के वास्ते कोई आवेदन, उस रेल प्रशासन के विरुद्ध, जिस पर धारा 106 के अधीन सूचना की तामील कर दी गई है, फाइल   किया जाएगा ।

108. प्रतिकर का दावा करने के लिए हकदार व्यक्ति-(1) यदि रेल प्रशासन, वहन के लिए उसे सौंपे गए किसी माल की हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए किसी प्रतिकर का संदाय रेल रसीद पेश करने वाले किसी परेषिती या पृष्ठांकिती को कर देता है तो यह समझा जाएगा कि रेल प्रशासन ने अपने दायित्व का निर्वहन कर दिया है और दावा अधिकरण के समक्ष रेल प्रशासन के विरुद्ध कोई आवेदन या कोई अन्य विधिक कार्यवाही इस आधार पर नहीं लाई जाएगी कि परेषिती या पृष्ठांकिती ऐसा प्रतिकर प्राप्त करने के लिए वैध रूप से हकदार नहीं था ।

(2) उपधारा (1) की कोई बात, माल में कोई हित रखने वाले किसी व्यक्ति के अधिकार पर उस उपधारा के अधीन प्रतिकर प्राप्त करने वाले परेषिती या पृष्ठांकिती के विरुद्ध उसे प्रवर्तित करने के लिए, प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगी ।

109. रेल प्रशासन, जिसके विरुद्ध वैयक्तिक क्षति के वास्ते प्रतिकर के लिए आवेदन फाइल किया जाना है-किसी यात्री की जीवन हानि या वैयक्तिक क्षति के वास्ते प्रतिकर के लिए दावा अधिकरण के समक्ष आवेदन निम्नलिखित के विरुद्ध संस्थित किया जा सकेगा-

                (क) उस रेल प्रशासन के विरुद्ध जिससे यात्री ने अपना पास अभिप्राप्त किया था या अपना टिकट क्रय किया था; या

                (ख) उस रेल प्रशासन के विरुद्ध जिसकी रेल पर गन्तव्य स्टेशन है या जहां ऐसी हानि या वैयक्तिक क्षति हुई है ।

110. सबूत का भार-किसी माल की हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए प्रतिकर के वास्ते दावा अधिकरण के समक्ष किसी आवेदन में-

                (क) वास्तव में हुई धनीय हानि; या

                (ख) जहां किसी परेषण की बाबत धारा 103 की उपधारा (2) के अधीन कोई मूल्य घोषित किया गया है, वहां यह कि इस प्रकार घोषित मूल्य उसका सही मूल्य है,

साबित करने का भार प्रतिकर का दावा करने वाले व्यक्ति पर होगा किन्तु इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए उसके लिए यह साबित करना आवश्यक नहीं होगा कि हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान किस प्रकार हुआ था ।

111. समुद्र पर दुर्घटनाओं के बारे में रेल प्रशासन के दायित्व की सीमा-(1) जब रेल प्रशासन यात्रियों या माल को अंशतः रेल द्वारा और अंशतः समुद्र द्वारा वहन करने के लिए संविदा करता है, तब जीवन की ऐसी किसी हानि, ऐसी वैयक्तिक क्षति या माल की ऐसी हानि या नुकसान के लिए, जो समुद्र द्वारा वहन के दौरान दैवकृत, लोकशत्रुकृत, आग, मशीनरी, बायलरों और वाष्प से हुई दुर्घटनाओं से और समुद्रों, नदियों और नौपरिवहन में किसी भी प्रकृति और किसी भी प्रकार के सभी और हर अन्य खतरों और दुर्घटनाओं के कारण हो, उत्तरदायित्व से रेल प्रशासन को छूट देने वाली शर्त, अभिव्यक्त किए बिना भी, संविदा का भाग समझी जाएगी और उस शर्त के अधीन रहते हुए रेल प्रशासन, चाहे वह पोत जिसका उपयोग समुद्र द्वारा वहन के लिए किया गया है, किसी भी राष्ट्रीयता या स्वामित्व का हो जीवन की ऐसी किसी हानि, वैयक्तिक क्षति या माल की हानि या नुकसान के लिए, जो समुद्र द्वारा वहन के दौरान हो, उस विस्तार तक के लिए, न कि उससे अधिक, उत्तरदायी होगा जिस तक कि वह वाणिज्य पोत परिवहन अधिनियम, 1958 (1958 का 44) के अधीन तब उत्तरदायी होता जब पोत उक्त अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत होता और रेल प्रशासन उस पोत का स्वामी होता ।

(2) यह साबित करने का भार रेल प्रशासन पर होगा कि ऐसी कोई हानि, क्षति या नुकसान जो उपधारा (1) में वर्णित है, समुद्र द्वारा वहन के दौरान हुआ था ।

112. इस अध्याय के विषयों की बाबत नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, इस अध्याय के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

                (क) रेल प्रशासन को सौंपे गए माल के, धारा 98 की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन, पैक करने की रीति;

                (ख) धारा 99 की उपधारा (3) के प्रयोजनों के लिए माल, और

                (ग) धारा 103 की उपधारा (1) के अधीन किसी परेषण की हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए रेल प्रशासन द्वारा संदेय अधिकतम रकम ।

अध्याय 12

दुर्घटनाएं

113. रेल दुर्घटना की सूचना-(1) जब किसी रेल के कार्यचालन के अनुक्रम में, निम्नलिखित में से कोई दुर्घटना होती है, अर्थात्: -

                (क) ऐसी दुर्घटना जिसमें किसी मानव जीवन की हानि या भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) में यथापरिभाषित घोर उपहति या सम्पत्ति को ऐसी गंभीर क्षति पहुंची है जो विहित की जाए; या

                (ख) ऐसी रेलगाड़ियों के बीच कोई टक्कर जिनमें से कोई एक यात्रियों का वहन करने वाली रेलगाड़ी है; या

                (ग) यात्रियों का वहन करने वाली किसी रेलगाड़ी या ऐसी रेलगाड़ी के किसी भाग का पटरी से उतरना; या

                (घ) किसी प्रकार की ऐसी कोई दुर्घटना जिसमें प्रायः मानव जीवन की हानि या यथापूर्वोक्त घोर उपहति या सम्पत्ति की गंभीर क्षति होती है; या

                (ङ) किसी अन्य प्रकार की ऐसी कोई दुर्घटना, जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में इस निमित्त अधिसूचित करे,

तब जहां दुर्घटना हुई है, उस स्थान से निकटतम स्टेशन का स्टेशन मास्टर या जहां कोई स्टेशन मास्टर नहीं है वहां रेल के उस अनुभाग का, जिस पर दुर्घटना हुई है, भारसाधक रेल सेवक बिना विलम्ब के दुर्घटना की सूचना उस जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक को देगा जिसकी अधिकारिता के भीतर दुर्घटना हुई है, या उस पुलिस थाने के, जिसकी स्थानीय सीमाओं के भीतर दुर्घटना हुई है, भारसाधक अधिकारी को देगा या, ऐसे अन्य मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को देगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त नियुक्त किया जाए ।

                (2) वह रेल प्रशासन जिसकी अधिकारिता के भीतर दुर्घटना होती है तथा वह रेल प्रशासन जिसकी वह रेल है, जो दुर्घटनाग्रस्त हुई है, बिना विलम्ब के, दुर्घटना की सूचना राज्य सरकार को और उस आयुक्त को देगा जिसकी दुर्घटनास्थल पर अधिकारिता है ।

114. आयुक्त द्वारा जांच-(1) यात्रियों का वहन करने वाली किसी रेलगाड़ी के ऐसे दुर्घटनाग्रस्त होने की जिसमें मानव जीवन की हानि या घोर उपहति हुई है जिससे किसी यात्री को स्थायी प्रकृति की पूर्ण या आंशिक निःशक्तता हुई है, या रेल सम्पत्ति को गंभीर नुकसान हुआ है, सूचना की धारा 113 के अधीन प्राप्ति पर आयुक्त, यथासंभव शीघ्र उस रेल प्रशासन को जिसकी अधिकारिता के भीतर दुर्घटना हुई है, उन कारणों की, जिनसे दुर्घटना हुई है, जांच करने के अपने आशय को अधिसूचित करेगा और साथ ही जांच की तारीख, समय और स्थान नियत करेगा और संसूचित करेगा :

परन्तु आयुक्त किसी ऐसी अन्य दुर्घटना के बारे में भी जांच करने के लिए स्वतंत्र होगा जिसकी ऐसी जांच करना उसकी राय में अपेक्षित है ।

(2) यदि किसी कारणवश आयुक्त दुर्घटना होने के बाद यथाशक्यशीघ्र जांच करने के लिए समर्थ नहीं है तो वह तद्नुसार रेल प्रशासन को अधिसूचित करेगा ।

115. रेल प्रशासन द्वारा जांच-जहां आयुक्त द्वारा धारा 114 की उपधारा (1) के अधीन कोई जांच नहीं की जाती है या जहां आयुक्त ने उस धारा की उपधारा (2) के अधीन रेल प्रशासन को यह सूचित कर दिया है कि वह जांच करने के लिए समर्थ नहीं है वहां रेल प्रशासन, जिसकी अधिकारिता के भीतर दुर्घटना हुई है, विहित प्रक्रिया के अनुसार जांच कराएगा ।

116. जांच के संबंध में आयुक्त की शक्तियां-(1) इस अध्याय के अधीन रेल पर किसी दुर्घटना के कारणों की जांच करने के प्रयोजन के लिए आयुक्त को, धारा 7 में विनिर्दिष्ट शक्तियों के अतिरिक्त निम्नलिखित विषयों के संबंध में ऐसी शक्तियां होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय किसी सिविल न्यायालय में निहित होती हैं, अर्थात्: -

                (क) व्यक्तियों को समन करना और हाजिर कराना और शपथ पर उनकी परीक्षा करना;

                (ख) दस्तावेजों के प्रकटीकरण और उनके पेश किए जाने की अपेक्षा करना;

                (ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य प्राप्त करना;

                (घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतियों की अध्यपेक्षा करना;

                (ङ) कोई अन्य विषय, जो विहित किया जाए ।

(2) आयुक्त को इस अध्याय के अधीन जांच करते समय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 195 और अध्याय 26 के प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय माना जाएगा ।

117. आयुक्त के समक्ष किया गया कथन-आयुक्त के समक्ष किसी जांच में साक्ष्य देने के अनुक्रम में किसी व्यक्ति द्वारा किया गया कोई कथन, ऐसे कथन द्वारा मिथ्या साक्ष्य देने के लिए अभियोजन के सिवाय, उसे किसी सिविल या दाण्डिक कार्यवाही के अध्यधीन नहीं बनाएगा या ऐसी कार्यवाही में उसके विरुद्ध उपयोग में नहीं लाया जाएगा:

परन्तु यह तब जबकि वह कथन-

                (क) ऐसे किसी प्रश्न के उत्तर में किया जाता है जिसका उत्तर देने की आयुक्त ने अपेक्षा की है;

                (ख) उस जांच की विषय-वस्तु से सुसंगत है ।

118. प्रक्रिया, आदि-इस अध्याय के अधीन जांच करने वाला कोई रेल प्रशासन या आयुक्त, जांच की सूचना ऐसे व्यक्तियों को भेज सकेगा, ऐसी प्रक्रिया का पालन कर सकेगा और रिपोर्ट उस रीति में तैयार कर सकेगा जो विहित की जाए ।

119. यदि जांच आयोग की नियुक्ति की जाती है, तो कोई भी जांच, अन्वेषण आदि नहीं किया जाएगा-इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, जहां दुर्घटना की जांच करने के लिए जांच आयोग अधिनियम, 1952 (1952 का 60) के अधीन जांच आयोग नियुक्त किया जाता है, वहां उस दुर्घटना के संबंध में लंबित कोई जांच, अन्वेषण या अन्य कार्यवाही नहीं की जाएगी, और ऐसी जांच से संबंधित सभी अभिलेख या अन्य दस्तावेज ऐसे प्राधिकारी को, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाए, भेज दिए जाएंगे ।

120. ऐसी दुर्घटना की जांच, जो धारा 113 के अंतर्गत नहीं आती-जहां ऐसी प्रकृति की कोई दुर्घटना, जो धारा 113 में विनिर्दिष्ट नहीं है, रेल के कार्यकरण के अनुक्रम में होती है, वहां वह रेल प्रशासन जिसकी अधिकारिता के भीतर दुर्घटना हुई है, दुर्घटना के कारणों की ऐसी जांच करा सकेगा जो विहित की जाए ।

121. विवरणियां-प्रत्येक रेल प्रशासन, अपनी रेल पर घटित होने वाली दुर्घटनाओं की एक विवरणी, चाहे उन दुर्घटनाओं में किसी व्यक्ति को क्षति पहुंची हो, अथवा नहीं, ऐसे प्ररूप और ऐसी रीति में और ऐसे अंतरालों पर, जो विहित किए जाएं, केन्द्रीय सरकार को भेजेगा ।

122. इस अध्याय के विषयों की बाबत नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार इस अध्याय के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

                (क) संपत्ति की क्षति, जो धारा 113 की उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन गंभीर मानी जाएगी;

                (ख) दुर्घटनाओं की सूचना, जो धारा 113 के अधीन दी जानी है, का प्ररूप और दुर्घटना की वे विशिष्टियां जो ऐसी सूचनाओं में होंगी;

                (ग) दुर्घटनाओं की सूचनाएं भेजने की रीति, जिसके अंतर्गत दुर्घटना के तुरंत पश्चात् भेजे जाने वाले वर्ग की दुर्घटनाएं भी हैं;

                (घ) किसी दुर्घटना होने पर आयुक्त, रेल प्रशासन, रेल सेवक, पुलिस अधिकारी और मजिस्ट्रेट के कर्तव्य;

                (ङ) वे व्यक्ति जिन्हें इस अध्याय के अधीन किसी जांच की बाबत सूचनाएं भेजी जानी हैं, ऐसी जांच में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया और वह रीति जिसमें ऐसी जांच की रिपोर्ट तैयार की जाएगी;

                (च) रेल प्रशासन द्वारा धारा 120 के अधीन दुर्घटना के कारणों के लिए की जाने वाली जांच की प्रकृति;

                (छ) रेल प्रशासन द्वारा धारा 121 के अधीन दुर्घटनाओं की विवरणी भेजने का प्ररूप और उसकी रीति ।

अध्याय 13

दुर्घटनाओं के कारण यात्रियों की मृत्यु और क्षति के लिए रेल प्रशासन का दायित्व

123. परिभाषाएं-इस अध्याय में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, -

                (क) दुर्घटना" से धारा 124 में वर्णित प्रकार की दुर्घटना अभिप्रेत है;

(ख) आश्रित" से मृतक यात्री का निम्नलिखित कोई नातेदार अभिप्रेत है, अर्थात्: -

(i) पत्नी, पति, पुत्र और पुत्री, और यदि मृतक यात्री अविवाहित या अवयस्क है तो उसके माता-पिता;

(ii) माता-पिता, अवयस्क भाई या अविवाहित बहिन, विधवा बहिन, विधवा पुत्रवधु और पूर्व मृत पुत्र की अवयस्क संतान, यदि वह मृतक यात्री पर पूर्ण या आंशिक रूप से आश्रित है;

(iii) पूर्व मृत पुत्री की अवयस्क संतान यदि वह मृतक यात्री पर पूर्ण रूप से आश्रित है;

(iv) पितामह-पितामही, जो मृतक यात्री पर पूर्ण रूप से आश्रित हैं ।

                                 [(ग) अनपेक्षित घटना" से अभिप्रेत है, -

                 (1) यात्रियों को वहन करने वाली किसी रेलगाड़ी में या उस पर अथवा किसी रेल स्टेशन की प्रसीमाओं के भीतर प्रतीक्षालय, यात्री सामान घर अथवा आरक्षण या बुकिंग कार्यालय में या किसी प्लेटफार्म पर या किसी अन्य स्थान में किसी व्यक्ति द्वारा, -

(i) आतंकवादी और विध्वंसक क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1987 (1987 का 28) की धारा 3 की उपधारा (1) के अर्थ में कोई आतंकवादी कार्य किया जाना;

                                (ii) कोई हिंसात्मक आक्रमण किया जाना अथवा लूट या डकैती किया जाना;

                                (iii) बलवा किया जाना, गोली मारना या आग लगाया जाना;

                (2) यात्रियों को वहन करने वाली किसी रेलगाड़ी से किसी व्यक्ति का दुर्घटनावश गिर जाना ।]

124. दायित्व की सीमा-जब किसी रेल के कार्यकरण के अनुक्रम में कोई दुर्घटना होती है, जो या तो ऐसी रेलगाड़ियों के बीच टक्कर हो जिनमें एक यात्रियों का वहन करने वाली रेलगाड़ी है अथवा यात्रियों का वहन करने वाली किसी रेलगाड़ी या ऐसी रेलगाड़ी का कोई भाग पटरी से उतर गया हो या कोई अन्य दुर्घटना हुई हो, तब चाहे रेल प्रशासन की ओर से ऐसा कोई दोषपूर्ण कार्य, उपेक्षा या व्यतिक्रम हुआ हो या न हुआ हो जो उस यात्री को, जो क्षतिग्रस्त हुआ है या जिसने हानि उठाई है, उसके बारे में अनुयोजन करने और नुकसानी वसूल करने के लिए हकदार बनाता है, रेल प्रशासन, किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, ऐसी दुर्घटना के परिणामस्वरूप मरने वाले यात्री की मृत्यु के कारण हुई हानि के लिए और ऐसी दुर्घटना के परिणामस्वरूप हुई वैयक्तिक क्षति तथा यात्री के स्वामित्व में ऐसे माल की, जो उसके साथ उस कक्ष में या उस रेलगाड़ी में हो, हानि, नाश, नुकसान, या क्षय के लिए, उस सीमा तक, जो विहित की जाए, और केवल उस सीमा तक ही, प्रतिकर देने के दायित्वाधीन होगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए यात्री" के अंतर्गत कर्तव्यारूढ़ रेल सेवक आता है ।

 [124क. अनपेक्षित घटनाओं मद्धे प्रतिकर-जब किसी रेल के कार्यकरण के अनुक्रम में कोई अनपेक्षित घटना होती है तब चाहे रेल प्रशासन की ओर से ऐसा कोई दोषपूर्ण कार्य, उपेक्षा या व्यतिक्रम हुआ हो या न हुआ हो, जिसका उस यात्री को जो उससे क्षतिग्रस्त हुआ है या उस यात्री के जिसकी मृत्यु हो गई है, आश्रित को उसके बारे में अनुयोजन करने और नुकसानी वसूल करने के लिए हकदार बनाता है, रेल प्रशासन, किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, ऐसी अनपेक्षित घटना के परिणामस्वरूप किसी यात्री की हुई मृत्यु, या उसको हुई क्षति द्वारा पहुंची हानि के लिए उस सीमा तक, जो विहित की जाए, और केवल उस सीमा तक ही, प्रतिकर देने के दायित्वाधीन होगा :

परन्तु इस धारा के अधीन रेल प्रशासन द्वारा कोई प्रतिकर संदेय नहीं होगा, यदि यात्री की निम्नलिखित के कारण मृत्यु होती है या उसको क्षति होती है, अर्थात्: -

                (क) उसके द्वारा आत्महत्या या किया गया आत्महत्या का प्रयत्न;

                (ख) उसके द्वारा स्वयं को पहुंचाई गई क्षति;

                (ग) उसका अपना आपराधिक कार्य;

                (घ) उसके द्वारा मत्तता या उन्मत्तता की हालत में किया गया कोई कार्य;

                (ङ) कोई प्राकृतिक कारण या बीमारी अथवा चिकित्सीय या शल्य चिकित्सीय उपचार जब तक कि ऐसा उपचार उक्त अनपेक्षित घटना द्वारा हुई क्षति के लिए आवश्यक नहीं हो जाता है ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, यात्री" के अंतर्गत निम्नलिखित आते हैं, अर्थात्:-

                (i) कर्तव्यारूढ़ रेल सेवक; और

                (ii) ऐसा व्यक्ति जिसने यात्रियों का वहन करने वाली किसी रेलगाड़ी द्वारा, किसी तारीख को, यात्रा करने के लिए कोई विधिमान्य टिकट या कोई विधिमान्य प्लेटफार्म टिकट क्रय किया है और वह व्यक्ति किसी अनपेक्षित घटना का शिकार हो जाता है ।]

125. प्रतिकर के लिए आवेदन-(1) धारा 124 [या धारा 124क] के अधीन प्रतिकर के लिए आवेदन दावा अधिकरण को निम्नलिखित द्वारा किया जा सकेगा: -

                (क) उस व्यक्ति द्वारा जिसे क्षति पहुंची है या कोई हानि हुई है; या

                (ख) ऐसे व्यक्ति द्वारा इस निमित्त सम्यक् रूप से प्राधिकृत किसी अभिकर्ता द्वारा; या

                (ग) जहां ऐसा व्यक्ति अवयस्क है, वहां उसके संरक्षक द्वारा; या

                (घ) जहां दुर्घटना 1[या अनपेक्षित घटनाट के परिणामस्वरूप मृत्यु हो गई है वहां मृतक के किसी आश्रित द्वारा या जहां ऐसा आश्रित अवयस्क है वहां उसके संरक्षक द्वारा ।

(2) इस धारा के अधीन प्रतिकर के लिए किसी आश्रित द्वारा प्रत्येक आवेदन प्रत्येक अन्य आश्रित के फायदे के लिए होगा ।

126. रेल प्रशासन द्वारा अंतरिम राहत-(1) जहां कोई ऐसा व्यक्ति, जिसने धारा 125 के अधीन प्रतिकर के लिए कोई आवेदन किया है, अंतरिम राहत का संदाय चाहता है, वहां वह, रेल प्रशासन को अंतरिम राहत के संदाय के लिए, उस धारा के अधीन किए गए आवेदन की प्रति सहित आवेदन कर सकेगा ।

(2) जहां उपधारा (1) के अधीन किए गए किसी आवेदन की प्राप्ति पर और ऐसी जांच करने के पश्चात् जो रेल प्रशासन ठीक समझता है, उसका समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियां विद्यमान हैं जिनके कारण आवेदक को अविलम्ब राहत देना अपेक्षित है वहां वह दावा अधिकरण द्वारा धारा 124  [या धारा 124कट के अधीन संदेय प्रतिकर की वास्तविक रकम का अवधारण किए जाने तक, किसी ऐसे व्यक्ति को जिसे क्षति पहुंची है या जिसे हानि हुई है या उस दशा में जब दुर्घटना के परिणामस्वरूप मृत्यु हो गई है, मृतक के किसी आश्रित को उतनी राशि संदत्त कर सकेगा जितनी वह ऐसी राहत देने के लिए युक्तियुक्त समझता है किन्तु संदत्त राशि ऐसी दर से, जो विहित की जाए, संदेय प्रतिकर की रकम से अधिक नहीं होगी  ।

(3) रेल प्रशासन, उपधारा (2) के अधीन अंतरिम राहत देने के बारे में आदेश करने के पश्चात्, यथाशक्यशीघ्र उसकी एक प्रति दावा अधिकरण को भेजेगा ।

(4) उपधारा (2) के अधीन रेल प्रशासन द्वारा संदत्त किसी राशि को, दावा अधिकरण द्वारा उस समय गणना में लिया जाएगा जब वह संदेय प्रतिकर की रकम अवधारित करे ।

127. माल को हुई किसी क्षति या हानि की बाबत प्रतिकर का अवधारण-(1) ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए जो बनाए जाएं, किसी क्षति की बाबत संदेय प्रतिकर की दरों का अवधारण दावा अधिकरण द्वारा किया जाएगा ।

(2) किसी माल की हानि की बाबत संदेय प्रतिकर उतना होगा जितना दावा अधिकरण, मामले की परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए युक्तियुक्त अवधारित करे ।

128. कतिपय अधिकारों के बारे में व्यावृत्ति-(1) धारा 124 [या धारा 124क] के अधीन प्रतिकर का दावा करने के लिए किसी व्यक्ति के अधिकार से कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 (1923 का 8) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन संदेय प्रतिकर को वसूल करने के उसके अधिकार पर प्रभाव नहीं पड़ेगा; किन्तु किसी भी व्यक्ति को उसी दुर्घटना के बारे में एक से अधिक बार प्रतिकर का दावा करने का हक नहीं होगा ।

(2) उपधारा (1) की कोई बात मृत्यु या वैयक्तिक क्षति के लिए या संपत्ति के नुकसान के लिए प्रतिकर के संदाय का उपबंध करने वाली किसी संविदा या स्कीम के अधीन संदेय प्रतिकर का अथवा किसी बीमा पालिसी के अधीन संदेय किसी राशि का दावा करने के किसी व्यक्ति के अधिकार पर प्रभाव नहीं डालेगी ।

129. इस अध्याय के विषयों की बाबत नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार इस अध्याय के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

                (क) मृत्यु के लिए संदेय प्रतिकर;

                (ख) उन क्षतियों की प्रकृति जिनके लिए प्रतिकर दिया जाएगा और ऐसे प्रतिकर की रकम ।

अध्याय 14

काम के घंटों और विश्राम की अवधि का विनियमन

130. परिभाषाएं-इस अध्याय में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, -

                (क) रेल सेवक का नियोजन, उन दशाओं के सिवाय, निरंतर" कहा जाता है जबकि ऐसा नियोजन अपवर्जित कर दिया जाता है या आवश्यक रूप से आंतरायिक या श्रम प्रधान घोषित कर दिया गया है;

                (ख) रेल सेवक का नियोजन तब आवश्यक रूप से आंतरायिक" कहा जाता है जब वह विहित प्राधिकारी द्वारा इस आधार पर ऐसा घोषित कर दिया गया है कि रेल सेवक के काम के दैनिक घंटों के अंतर्गत बारह घंटे ड्यूटी के दौरे में प्रसामान्यतः निष्क्रियता की (कम से कम एक घंटे से अन्यून एक ऐसी कालावधि या प्रत्येक आधे घंटे से अन्यून दो ऐसी कालावधियों सहित) कुल मिलाकर पचास प्रतिशत या अधिक की (औसतन लगातार बहत्तर घंटे से अधिक की) ऐसी कालावधियां आती हैं जिनमें रेल सेवक ड्यूटी पर तो होता है किन्तु उससे शारीरिक सक्रियता या अविरत ध्यान देने की अपेक्षा नहीं होती है ;

                (ग) रेल सेवक के नियोजन का अपवर्जित" होना तब कहा जाता है जब वह निम्नलिखित प्रवर्गों में से किसी एक का हो, अर्थात्: -

                                (i) प्रबंधकीय या गोपनीय हैसियत में नियोजित रेल सेवक;

                                (ii) सशस्त्र गारद या अन्य कार्मिक जो किसी भी सशस्त्र पुलिस बल के समान ही अनुशासन के अधीन है;

                                (iii) तकनीकी प्रशिक्षण या शास्त्रीय (एकेडेमिक) शिक्षा देने वाले रेल स्कूलों के कर्मचारिवृन्द;

                                (iv) ऐसे कर्मचारिवृन्द, जो नियमों के अधीन पर्यवेक्षक कर्मचारिवृन्द के रूप में विनिर्दिष्ट किए जाएं;

                                (ध्) कर्मचारिवृन्द के ऐसे अन्य प्रवर्ग जो विहित किए जाएं ।

                (घ) रेल सेवक के नियोजन का श्रम प्रधान" होना तब कहा जाता है जब उसका ऐसा होना विहित प्राधिकारी द्वारा इस आधार पर घोषित कर दिया गया हो कि वह श्रम साध्य प्रकृति का है जिसमें निरन्तर एकाग्रता या कठोर शारीरिक श्रम अंतवर्लित है, तथा जिसमें विश्राम की अवधि अल्प है, या नहीं है ।

131. अध्याय का कतिपय रेल सेवकों को लागू होना-इस अध्याय की कोई बात ऐसे किसी रेल सेवक को लागू नहीं होगी जिसे कारखाना अधिनियम, 1948 (1948 का 63) या खान अधिनियम, 1952 (1952 का 35) या रेल सुरक्षाबल अधिनियम,1957 (1957 का 23) या वाणिज्य पोत परिवहन अधिनियम, 1958 (1958 का 44) लागू होता है ।

132. काम के घंटों की परिसीमा-(1) वह रेल सेवक जिसका नियोजन आवश्यक रूप से आन्तरायिक है किसी भी सप्ताह में पचहत्तर घंटे से अधिक के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा ।

(2) वह रेल सेवक जिसका नियोजन निरन्तर है, चौदह दिनों की दो साप्ताहिक कालावधियों में औसतन पैंतालीस घंटे प्रति सप्ताह से अधिक के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा ।

(3) वह रेल सेवक जिसका नियोजन श्रम प्रधान है चौदह दिनों की दो साप्ताहिक कालावधियों में औसतन पैंतालीस घंटे प्रति सप्ताह से अधिक के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा ।

(4) ऐसे किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए जो विहित किए जाएं, उपधारा (1) या उपधारा (2) या उपधारा (3) के उपबंधों से रेल सेवकों को विहित प्राधिकारी द्वारा अस्थायी छूट दी जा सकेगी यदि उसकी यह राय है कि ऐसी अस्थायी छूट रेल के सामान्य कार्यकरण में गम्भीर बाधा दूर करने के लिए या वास्तविक या आशंकित दुर्घटना की दशाओं में या उस समय, जब रेल या चलस्टाक पर किसी अति आवश्यक कार्य का किया जाना अपेक्षित है, या किसी आपात स्थिति में, जिसका पूर्वाभास या निवारण नहीं हो सकता था, या काम के असाधारण दवाब की अन्य दशाओं में आवश्यक है :

परन्तु जहां ऐसी छूट से उपधाराओं में से किसी में निर्दिष्ट किसी रेल सेवक के नियोजन के घंटों में वृद्धि हो जाती है वहां उसे काम के अतिरिक्त घंटों के लिए वेतन की उसकी सामान्य दर से दुगुने से अन्यून दर से अतिकाल का संदाय किया जाएगा ।

133. कालिक विश्राम देना-(1) इस धारा के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उस रेल सेवक को-

                (क) जिसका नियोजन श्रम प्रधान या निरंतर है, रविवार को प्रारंभ होने वाले हर सप्ताह में तीस क्रमवर्ती घंटों से अन्यून का विश्राम दिया जाएगा;

                (ख) जिसका नियोजन आवश्यक रूप से आंतरायिक है, रविवार को प्रारंभ होने वाले हर सप्ताह में एक पूरी रात्रि सहित चौबीस क्रमवर्ती घंटों से अन्यून का विश्राम दिया जाएगा ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, -

                (i) रेल इंजन या यातायात चल कर्मचारिवृन्द को प्रत्येक मास में कम से कम चार ऐसी कालावधियों का विश्राम दिया जाएगा जिनमें से प्रत्येक कम से कम तीस क्रमवर्ती घंटों की होगी या कम से कम पांच ऐसी कालावधियों का विश्राम दिया जाएगा जिसमें से प्रत्येक एक पूरी रात्रि सहित कम से कम बाइस क्रमवर्ती घंटों की होगी;

                (ii) केन्द्रीय सरकार नियमों द्वारा उन रेल सेवकों को, जिन्हें उपधारा (1) में अधिकथित मापमान से कम मापमान पर विश्राम की कालावधियां दी जा सकेंगी, और ऐसी कालावधियों को, विनिर्दिष्ट कर सकेगी ।

(3) ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए जो इस निमित्त बनाए जाएं, यदि विहित प्राधिकारी की राय है कि ऐसी परिस्थितियां, जो धारा 132 की उपधारा (4) में निर्दिष्ट की गई हैं, विद्यमान हैं तो वह किसी रेल सेवक को उपधारा (1) या उपधारा (2) के खंड (i) के उपबंधों से छूट दे सकेगा:

परन्तु इस प्रकार छूट प्राप्त रेल सेवक को, ऐसी परिस्थितियों में जो विहित की जाएं, ऐसी कालावधियों के लिए जिनको उसने छोड़ा है, विश्राम की प्रतिकरात्मक कालावधियां दी जाएंगी ।

134. रेल सेवक का ड्यूटी पर रहना-इस अध्याय या उसके अधीन बनाए गए नियमों की कोई बात, जहां किसी रेल सेवक के भारमुक्त होने की सम्यक् व्यवस्था कर दी गई है वहां, जब तक वह भारमुक्त न कर दिया जाए, अपनी ड्यूटी को छोड़ देने के लिए प्राधिकृत नहीं करेगी ।

135. रेल श्रमिकों के पर्यवेक्षक-(1) ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो इस निमित्त बनाए जाएं, केन्द्रीय सरकार रेल श्रमिकों के पर्यवेक्षक नियुक्त कर सकेगी ।

(2) रेल श्रमिकों के पर्यवेक्षकों के कर्तव्य निम्नलिखित होंगे-

                (i) यह अवधारण करने के लिए रेलों का निरीक्षण करना कि क्या इस अध्याय और इसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों का सम्यक् अनुपालन किया जाता है; और

                (ii) ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करना जो विहित किए जाएं ।

(3) रेल श्रमिकों के पर्यवेक्षक को धारा 7 और धारा 9 के प्रयोजनों के लिए आयुक्त समझा जाएगा ।

136. इस अध्याय के विषय की बाबत नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार इस अध्याय के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्: -

                (क) वे प्राधिकारी जो किसी रेल सेवक के नियोजन को आवश्यक रूप से आंतरायिक या श्रमप्रधान घोषित कर सकेंगे;

                (ख) ऐसी किसी घोषणा के विरुद्ध अपीलें और वह रीति जिसमें और वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए, ऐसी कोई अपील फाइल की जा सकेगी और सुनी जा सकेगी;

(ग) कर्मचारिवृन्द के वे प्रवर्ग जो धारा 130 के खंड (ग) के उपखंड (iv) और उपखंड (ध्) के अधीन विनिर्दिष्ट किए जा सकेंगे;

(घ) वे प्राधिकारी जिनके द्वारा धारा 132 की उपधारा (4) या धारा 133 की उपधारा (3) के अधीन छूटें दी जा सकेंगी;

                                (ङ) खंड (घ) में निर्दिष्ट प्राधिकारियों द्वारा शक्तियों का प्रत्यायोजन;

                (च) वे रेल सेवक जिनको धारा 133 की उपधारा (2) का खंड (ii) लागू होता है और विश्राम की वे कालावधियां जो उनकी दी जाएंगी;

                                (छ) रेल श्रमिकों के पर्यवेक्षकों की नियुक्ति और उनके कृत्य ।

अध्याय 15

शास्तियां और अपराध

137. उचित पास या टिकट के बिना कपटपूर्वक यात्रा करना या यात्रा करने का प्रयत्न करना-(1) यदि कोई व्यक्ति रेल प्रशासन को धोखा देने के आशय से, -

                (क) धारा 55 के उल्लंघन में रेल के किसी सवारी डिब्बे में प्रवेश करेगा या उसमें रहेगा अथवा किसी रेलगाड़ी में यात्रा करेगा; या

                (ख) ऐसे किसी एक तरफा पास या एक तरफा टिकट को जो पूर्वतन यात्रा में पहले ही उपयोग में लाया जा चुका है या वापसी टिकट की दशा में उसके आधे को, जो पहले ही ऐसे उपयोग में लाया जा चुका है, उपयोग में लाएगा या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा,

तो वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा:

                परन्तु तत्प्रतिकूल विशेष और पर्याप्त कारणों के अभाव में, जो न्यायालय के निर्णय में वर्णित किए जाएंगे, ऐसा दंड पांच सौ रुपए के जुर्माने से कम नहीं होगा ।

                (2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट व्यक्ति, उस दूरी के लिए जिस तक वह यात्रा कर चुका है एक तरफ के साधारण किराए के या जहां उस स्टेशन के बारे में जहां से वह चला था, कोई संदेह है वहां उस स्टेशन से जहां से रेलगाड़ी आरंभ होकर चली थी, एक तरफ के साधारण किराए के या यदि रेलगाड़ी में यात्रा करने वाले यात्रियों के टिकटों की रेलगाड़ी के आरंभ होकर चलने के पश्चात् परीक्षा की जा चुकी है तो उस स्थान से जहां टिकटों की इस प्रकार परीक्षा की गई थी, या उस दशा में जिसमें उनकी एक से अधिक बार परीक्षा की गई है उस स्थान से, जहां उनकी अंतिम बार परीक्षा की गई थी, एक तरफ के साधारण किराए के अतिरिक्त उपधारा (3) में वर्णित अधिक प्रभार देने के लिए भी दायी होगा ।

                (3) उपधारा (2) में निर्दिष्ट अधिक प्रभार, उस उपधारा में निर्दिष्ट एक तरफ के साधारण किराए के बराबर राशि या [दो सौ पचास रुपए], दोनों में से जो भी अधिक हो, होगा ।

                (4) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 65 में किसी बात के होते हुए भी, अपराधी को सिद्धदोष ठहराने वाला न्यायालय यह निदेश दे सकेगा कि न्यायालय द्वारा अधिरोपित जुर्माने के संदाय में व्यतिक्रम करने वाला व्यक्ति ऐसी अवधि का, जो छह मास तक की हो सकेगी, कारावास भोगेगा ।

138. बिना उचित पास या टिकट के यात्रा करने के लिए या प्राधिकृत दूरी से आगे यात्रा करने के लिए अधिक प्रभार और किराए का उद्ग्रहण-(1) यदि कोई यात्री, -

                (क) किसी रेलगाड़ी में होते हुए या उससे उतरने पर अपना पास या टिकट धारा 54 के अधीन उसके लिए कोई मांग की जाने पर परीक्षा या परिदान के लिए तुरन्त पेश नहीं करेगा या करने से इंकार करेगा, या

                (ख) धारा 54 के उपबंधों के उल्लंघन में रेलगाड़ी से यात्रा करेगा,

तो वह इस निमित्त प्राधिकृत किसी रेल सेवक द्वारा मांग की जाने पर, उस दूरी के लिए, जिस तक वह यात्रा कर चुका है, एक तरफ के साधारण किराए के, या जहां उस स्टेशन के बारे में जहां से वह चला था कोई संदेह है वहां उस स्टेशन से, जहां से रेलगाड़ी आरंभ होकर चली थी, एक तरफ के साधारण किराए के, या, यदि रेलगाड़ी में यात्रा करने वाले यात्रियों के टिकटों की, रेलगाड़ी के आरंभ होकर चलने के पश्चात् परीक्षा की जा चुकी है तो उस स्थान से जहां टिकटों की इस प्रकार परीक्षा की गई थी या उस दशा में जिसमें उनकी एक से अधिक बार परीक्षा की गई है, उस स्थान से जहां उनकी अंतिम बार परीक्षा की गई थी, एक तरफ के साधारण किराए के अतिरिक्त उपधारा (3) में वर्णित अधिक प्रभार देने के लिए दायी होगा ।

                (2) यदि कोई यात्री, -

(क) ऐसे सवारी डिब्बे में या पर, या ऐसी रेलगाड़ी द्वारा यात्रा करेगा या यात्रा करने का प्रयत्न करेगा, जो उस श्रेणी से, जिसके लिए उसने पास अभिप्राप्त किया है या टिकट खरीदा है, उच्चतर श्रेणी का है; या

                                (ख) किसी सवारी डिब्बे में या उस पर अपने ऐसे पास या टिकट द्वारा प्राधिकृत स्थान से आगे, यात्रा करेगा,

तो वह, इस निमित्त प्राधिकृत किसी रेल सेवक द्वारा मांग की जाने पर, उसके द्वारा दिए गए किराए और उसके द्वारा की गई यात्रा के संबंध में संदेय किराए के बीच के अंतर और उपधारा (3) में निर्दिष्ट अधिक प्रभार के संदाय के लिए दायी होगा ।

                (3) ऐसा अधिक प्रभार, यथास्थिति, उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन संदेय रकम के बराबर राशि या [दो सौ पचास रुपए,] दोनों में से जो भी अधिक हो, होगा:

                परंतु यदि ऐसे यात्री के पास धारा 55 की उपधारा (2) के अधीन अनुदत्त प्रमाणपत्र है तो कोई अधिक प्रभार संदेय नहीं होगा ।

                (4) यदि उपधारा (1) में वर्णित अधिक प्रभार और किराया, या उपधारा (2) में वर्णित अधिक प्रभार और किराए का कोई अन्तर देने के दायित्वाधीन कोई यात्री इन उपधाराओं में से किसी के अधीन उसकी मांग करने जाने पर, उसे, नहीं देता है या देने से इंकार करता है तो इस निमित्त रेल प्रशासन द्वारा प्राधिकृत कोई रेल सेवक ऐसी संदेय राशि की वसूली के लिए, यथास्थिति, किसी महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम अथवा द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट को आवेदन कर सकेगा मानो वह जुर्माना हो और यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि वह राशि संदेय है तो वह उसे इस प्रकार वसूल किए जाने का आदेश देगा और यह आदेश भी दे सकेगा कि उसके संदाय के लिए दायी व्यक्ति संदाय न करने पर दोनों में से किसी भांति का कारावास, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी किन्तु दस दिन से कम की नहीं होगी, भोगेगा ।

                (5) उपधारा (4) के अधीन वसूल की गई कोई राशि वसूल की जाते ही रेल प्रशासन को संदत्त की जाएगी ।

139. व्यक्तियों को हटाने की शक्ति-धारा 138 में निर्दिष्ट किराया और अधिक प्रभार न देने वाला या देने वाला या देने से इन्कार करने वाला कोई व्यक्ति, इस निमित्त प्राधिकृत किसी रेल सेवक द्वारा हटाया जा सकेगा जो उसे हटाने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को अपनी सहायता के लिए बुला सकेगा:

परन्तु इस धारा की किसी बात से यह नहीं समझा जाएगा कि वह उच्चतर श्रेणी के सवारी डिब्बे से हटाए गए व्यक्ति को उस श्रेणी के सवारी डिब्बे में, जिसके लिए पास या टिकट उसके पास है, अपनी यात्रा जारी रखने से प्रवारित करती है:

परन्तु यह और कि किसी स्त्री या बालक को, यदि उसके साथ कोई पुरुष यात्री नहीं है तो, उस स्टेशन पर, जिससे उसने अपनी यात्रा प्रारम्भ की है या किसी जंक्शन या टर्मिनल स्टेशन पर या सिविल जिले के मुख्यालय में स्थित स्टेशन पर, और केवल दिन में ही हटाया जाएगा, अन्यथा नहीं ।

140. कतिपय मामलों में सदाचार के लिए प्रतिभूति-(1) जब किसी न्यायालय का धारा 137 या धारा 138 के अधीन किसी व्यक्ति को अपराध का सिद्धदोष ठहराते समय यह निष्कर्ष है कि वह अभ्यासतः उस अपराध को कर रहा है या करने का प्रयत्न कर रहा है और न्यायालय की यह राय है कि उस व्यक्ति से सदाचार के लिए बंधपत्र निष्पादित करने की अपेक्षा करना आवश्यक या वांछनीय है तब ऐसा न्यायायल उस व्यक्ति पर दंडादेश पारित करते समय से प्रतिभुओं सहित या उनके बिना ऐसी रकम के लिए और तीन वर्ष से अनधिक की ऐसी कालावधि के लिए, जो वह ठीक समझे, बंधपत्र निष्पादित करने का आदेश दे सकेगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन आदेश किसी अपील न्यायालय द्वारा, या पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग करते समय उच्च न्यायालय द्वारा भी, किया जा सकेगा ।

141. रेलगाड़ी के संचार साधनों में अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप करना-यदि कोई यात्री या कोई अन्य व्यक्ति, यात्रियों और रेलगाड़ी के भारसाधक रेल सेवक के बीच के संचार के लिए रेल प्रशासन द्वारा रेलगाड़ी में व्यवस्थित किन्हीं साधनों का उपयोग या उनमें हस्तक्षेप, युक्तियुक्त और पर्याप्त कारण के बिना करेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दंडनीय होगा:

परन्तु तत्प्रतिकूल विशेष और पर्याप्त कारणों के अभाव में, जिनका उल्लेख न्यायालय के निर्णय में किया जाएगा, यदि कोई यात्री युक्तियुक्त और पर्याप्त कारण के बिना उस खतरे की जंजीर का प्रयोग करेगा जिसकी व्यवस्था रेल प्रशासन द्वारा की गई है तो ऐसा दंड-

(क) प्रथम अपराध के लिए दोषसिद्धि की दशा में, पांच सौ रुपए के जुर्माने से कम का नहीं होगा; और

(ख) द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध के लिए दोषसिद्धि की दशा में तीन मास के कारावास से कम का नहीं होगा ।

142. टिकटों के अंतरण के लिए शास्ति-(1) यदि कोई व्यक्ति, जो इस निमित्त प्राधिकृत कोई रेल सेवक या अभिकर्ता नहीं है, -

                (क) कोई टिकट या वापसी टिकट का कोई भी आधा भाग विक्रय करेगा या विक्रय करने का प्रयत्न करेगा; या

                (ख) कोई ऐसा टिकट, जिस पर सीट या बर्थ का आरक्षण किया जा चुका है या वापसी टिकट का कोई भी आधा भाग या सीजन टिकट किसी को देगा या देने का प्रयत्न करेगा,

जिससे कि कोई अन्य व्यक्ति उसे लेकर यात्रा कर सके तो वह कारावास से जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा तथा वह टिकट भी जो उसने विक्रय किया हो या जिसके विक्रय करने का प्रयत्न किया हो, अथवा दिया हो या देने का प्रयत्न किया हो, समपहृत हो जाएगा ।

                (2) यदि कोई व्यक्ति इस निमित्त प्राधिकृत रेल सेवक या अभिकर्ता से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति से उपधारा (1) के खंड (क) में निर्दिष्ट कोई टिकट क्रय करेगा या उस उपधारा के खंड (ख) में निर्दिष्ट कोई टिकट अपने कब्जे में लेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी और जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा और यदि किसी पूर्वोक्त टिकट का क्रेता या धारक उससे यात्रा करेगा या यात्रा करने का प्रयत्न करेगा तो उसका वह टिकट, जो उसने इस प्रकार क्रय या प्राप्त किया है, समपहृत हो जाएगा और उसके बारे में यह समझा जाएगा कि वह उचित टिकट के बिना यात्रा कर रहा है और उसके विरुद्ध धारा 138 के अधीन कार्रवाई की जा सकेगी :

                परन्तु तत्प्रतिकूल विशेष और पर्याप्त कारणों के अभाव में, जिनका उल्लेख न्यायालय के निर्णय में किया जाएगा, उपधारा (1) और उपधारा (2) के अधीन ऐसा दंड दो सौ पचास रुपए के जुर्माने से कम का नहीं होगा ।

143. रेल टिकटों को उपाप्त करने और प्रदाय करने का अप्राधिकृत कारबार चलाने के लिए शास्ति-(1) यदि कोई व्यक्ति, जो इस निमित्त प्राधिकृत कोई रेल सेवक या अभिकर्ता नहीं है, -

(क) किसी रेल में यात्रा के लिए या किसी रेलगाड़ी में यात्रा के लिए आरक्षित स्थान के लिए टिकट उपाप्त करने और प्रदाय करने का कोई कारबार करेगा; या

(ख) ऐसा कोई कारबार करने की दृष्टि से स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा टिकट क्रय करेगा या उसका विक्रय करेगा अथवा क्रय करने या विक्रय करने का प्रयत्न केरगा,

तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा और ऐसे टिकट भी, जो उसने इस प्रकार उपाप्त किए हों, प्रदाय किए हों, क्रय किए हों, विक्रय किए हों अथवा जिनके क्रय या विक्रय का प्रयत्न किया हो, समपहृत हो जाएंगे:

                परन्तु तत्प्रतिकूल विशेष और पर्याप्त कारणों के अभाव में, जिनका उल्लेख न्यायालय के निर्णय में किया जाएगा, ऐसा दंड एक मास की अवधि के कारावास से या पांच हजार रुपए के जुर्माने से कम का नहीं होगा ।

                (2) जो कोई इस धारा के अधीन दंडनीय किसी अपराध का दुष्प्रेरण करेगा, चाहे ऐसा अपराध किया गया है अथवा नहीं, वह उसी दंड से दंडनीय होगा जो उस अपराध के लिए उपबंधित है ।

144. फेरी लगाने आदि और भीख मांगने पर प्रतिषेध-(1) यदि कोई व्यक्ति रेल प्रशासन द्वारा इस निमित्त अनुदत्त अनुज्ञप्ति में दिए गए निबंधनों और शर्तों के अधीन या अनुसार के सिवाय, रेल के किसी सवारी डिब्बे में या रेल के किसी भाग पर किसी ग्राहकी के लिए संयाचना करेगा या किसी भी प्रकार की किसी वस्तु के विक्रय के लिए फेरी लगाएगा या उसे प्रदर्शित करेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा :

परन्तु तत्प्रतिकूल विशेष और पर्याप्त कारणों के अभाव में, जिनका उल्लेख न्यायालय के निर्णय में किया जाएगा, ऐसा दंड एक हजार रुपए के जुर्माने से कम का नहीं होगा ।

(2) यदि कोई व्यक्ति रेल के किसी सवारी डिब्बे में या किसी रेल स्टेशन पर भीख मांगेगा तो वह उपधारा (1) में उपबंधित दंड का दायी होगा ।

(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) में निर्दिष्ट कोई व्यक्ति इस निमित्त प्राधिकृत किसी रेल सेवक द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा, जिसे ऐसा रेल सेवक अपनी सहायता के लिए बुलाए, यथास्थिति, रेल के किसी सवारी डिब्बे या रेल के किसी भाग या रेल स्टेशन से हटाया जा सकेगा ।

145. मत्तता या न्यूसेंस-यदि किसी रेल के सवारी डिब्बे में या रेल के किसी भाग पर कोई व्यक्ति, -

                (क) मत्तता की हालत में होगा; या

                (ख) कोई न्यूसेंस या अशिष्ट कार्य करेगा अथवा गाली गलौच की या अश्लील भाषा का उपयोग करेगा; या

                (ग) जानबूझकर या किसी प्रतिहेतु के बिना रेल प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई किसी सुख-सुविधा में बाधा डालेगा जिससे किसी यात्री की आरामदायक यात्रा पर प्रभाव पड़ता हो,

तो वह किसी रेल सेवक द्वारा रेल से हटाया जा सकेगा, और उसके पास या टिकट के समपहरण के अतिरिक्त, कारावास से, जो छह मास तक का हो सकेगा और जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा:

                परन्तु तत्प्रतिकूल विशेष और पर्याप्त कारणों के अभाव में, जिनका उल्लेख न्यायालय के निर्णय में किया जाएगा, ऐसा दंड-

                                (क) प्रथम अपराध के लिए दोषसिद्धि की दशा में, एक सौ रुपए के जुर्माने से कम का नहीं होगा; और

                (ख) द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध के लिए दोषसिद्धि की दशा में, एक मास के कारावास से और दो सौ पचास रुपए के जुर्माने से, कम का नहीं होगा ।

146. रेल सेवक के कर्तव्यों में बाधा डालना-यदि कोई व्यक्ति किसी रेल सेवक के कर्तव्यों के निर्वहन में जानबूझकर बाधा या रुकावट डालेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

147. अतिचार और अतिचार से प्रतिविरत रहने से इंकार करना-(1) यदि कोई व्यक्ति किसी रेल पर या उसके किसी भाग में विधिपूर्ण प्राधिकार के बिना प्रवेश करेगा या ऐसे भाग में विधिपूर्ण रूप से प्रवेश करने के पश्चात् ऐसी सम्पत्ति का दुरुपयोग करेगा या वहां से जाने से इंकार करेगा, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा:

परन्तु तत्प्रतिकूल विशेष और पर्याप्त कारणों के अभाव में, जिनका उल्लेख न्यायालय के निर्णय में किया जाएगा, ऐसा दंड पांच सौ रुपए के जुर्माने से कम का नहीं होगा ।

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई व्यक्ति किसी रेल सेवक द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा जिसे ऐसा रेल सेवक अपनी सहायता के लिए बुलाए, रेल से हटाया जा सकेगा ।

148. प्रतिकर के लिए आवेदन में मिथ्या कथन करने के लिए शास्ति-यदि धारा 125 के अधीन प्रतिकर के लिए किसी आवेदन में कोई व्यक्ति ऐसा कथन करेगा जो मिथ्या है या जिसके मिथ्या होने का उसे या तो ज्ञान या विश्वास है या जिसके सही होने का उसे विश्वास नहीं है तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दंडनीय होगा ।

149. प्रतिकर के लिए मिथ्या दावा करना-यदि कोई व्यक्ति किसी रेल प्रशासन से किसी परेषण की हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के लिए किसी प्रतिकर की अपेक्षा करने के लिए कोई ऐसा दावा करेगा जो मिथ्या है या जिसके मिथ्या होने का उसे या तो ज्ञान या विश्वास है या जिसके सही होने का उसे विश्वास नहीं है तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

150. रेलगाड़ी को विद्वेषतः ध्वस्त करना या ध्वस्त करने का प्रयत्न करना-(1) उपधारा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए यह है कि यदि कोई व्यक्ति इस आशय से या ज्ञान से कि यह संभाव्य है कि वह रेल पर यात्रा करने वाले या विद्यमान किसी व्यक्ति का क्षेम संकटापन्न कर सकता है विधिविरुद्धतया, -

                (क) किसी रेल के ऊपर या आरपार कोई काष्ठ, पत्थर या अन्य पदार्थ या चीज रखेगा या फेंकेगा; या

                (ख) किसी रेल की पटरी, स्लीपर या अन्य पदार्थ या चीज को उठाएगा, हटाएगा, ढीला करेगा या विस्थापित करेगा; या

(ग) किसी रेल के किन्हीं प्वाइंटों या अन्य मशीनरी को घुमाएगा, चलाएगा, खोलेगा या उसका दिशाभंग        करेगा; या

                (घ) किसी रेल पर या उसके निकट कोई सिगनल या प्रकाश करेगा या दिखाएगा या उसे छिपाएगा या हटाएगा; या

                (ङ) किसी रेल के संबंध में कोई अन्य कार्य या बात करेगा या करवाएगा या करने का प्रयत्न करेगा,

तो वह आजीवन कारावास से या कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा:

                परन्तु तत्प्रतिकूल विशेष और पर्याप्त कारणों के अभाव में, जिनका उल्लेख न्यायालय के निर्णय में किया जाएगा, जहां कोई व्यक्ति कठोर कारावास से दंडनीय है वहां ऐसा कारावास-

                                (क) प्रथम अपराध के लिए दोषसिद्धि की दशा में, तीन वर्ष से कम का नहीं होगा, और

                                (ख) द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध के लिए दोषसिद्धि की दशा में, सात वर्ष से कम का नहीं होगा ।

                (2) यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) के खंडों में से किसी खंड में निर्दिष्ट कोई कार्य या बात, -

(क) किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने के आशय से विधिविरुद्धतया करेगा और ऐसे कार्य या बात के करने से किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित हो जाती है; या

(ख) इस बात को जानते हुए विधिविरुद्धतया करेगा कि वह कार्य या बात इतनी आसन्नसंकट है कि पूरी संभाव्यता है कि वह किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित कर ही देगी या किसी व्यक्ति को ऐसी शारीरिक क्षति कारित कर ही देगी जिससे ऐसे व्यक्ति की मृत्यु कारित होना संभाव्य है,

तो वह मृत्यु दंड या आजीवन कारावास से दंडनीय होगा ।

151. कतिपय रेल संपत्तियों का नुकसान या विनाश-(1) यदि कोई व्यक्ति, इस आशय से या इस ज्ञान से कि यह नुकसान संभाव्य है कि उससे उपधारा (2) में निर्दिष्ट रेल सम्पत्तियों में से किसी का नुकसान या नाश हो सकता है अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा या अन्यथा, ऐसी संपत्ति का नुकसान करेगा या ऐसी संपत्ति का नाश करेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट रेल संपत्तियां, रेल की पटरी, पुल, स्टेशनों के भवन और संस्थापन, सवारी डिब्बे या वैगन, लोकोमोटिक, सिगनल, दूर संचार, विद्युत कर्षण और ब्लाक उपस्कर और ऐसी अन्य सम्पत्तियां हैं जिन्हें केन्द्रीय सरकार यह राय रखते हुए कि उनके नुकसान या नाश से किसी रेल के कार्यचालन को खतरा होना संभाव्य है, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट कर सकेगी ।

152. रेल द्वारा यात्रा करने वाले व्यक्तियों को विद्वेषतः उपहति पहुंचाना या उपहति पहुंचाने का प्रयत्न करना-यदि कोई व्यक्ति रेलगाड़ी के भागस्वरूप किसी चल स्टाक पर, उसके सामने, उसमें या उसके ऊपर कोई काष्ठ, पत्थर या अन्य पदार्थ या चीज इस आशय से या इस ज्ञान से कि यह संभाव्य है कि ऐसे चल स्टाक में या पर या उसी रेलगाड़ी के भागस्वरूप किसी अन्य चल स्टाक में या पर विद्यमान किसी व्यक्ति की सुरक्षा संकटापन्न हो सकती है, विधिविरुद्धतया फेंकेगा या गिराएगा या मारेगा तो वह आजीवन कारावास से, या कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा ।

153. रेल द्वारा यात्रा करने वाले व्यक्तियों को सुरक्षा को जानबूझकर किए गए कार्य या लोप द्वारा संकटापन्न करना-यदि कोई व्यक्ति किसी रेल पर यात्रा करने वाले या विद्यमान किसी व्यक्ति की सुरक्षा को किसी विधिविरुद्ध कार्य या जानबूझकर किए गए किसी लोप या उपेक्षा से संकटापन्न करेगा या करवाएगा या किसी रेल पर किसी चल स्टाक में बाधा डालेगा या डलवाएगा या बाधा डालने का प्रयत्न करेगा, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा ।

154. रेल द्वारा यात्रा करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा को उतावलेपन या उपेक्षापूर्ण कार्य या लोप से संकटापन्न करना-यदि कोई व्यक्ति उतावलेपन से और उपेक्षापूर्ण रीति से कोई कार्य करेगा, या ऐसा कार्य करने का लोप करेगा, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध है, और रेल पर यात्रा करने वाले या विद्यमान किसी व्यक्ति की सुरक्षा उस कार्य या लोप से संकटापन्न होनी संभाव्य है, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

155. आरक्षित कक्ष में प्रवेश करना या अनारक्षित कक्ष में प्रवेश का प्रतिरोध करना-(1) यदि कोई यात्री-

                (क) किसी ऐसे कक्ष में प्रवेश करके जिसमें रेल प्रशासन द्वारा उसके उपयोग के लिए कोई शायिका या सीट आरक्षित नहीं की गई है; या

                (ख) किसी अन्य यात्री के उपयोग के लिए रेल प्रशासन द्वारा आरक्षित की गई किसी शायिका या सीट पर अप्राधिकृत रूप से दखल करके,

उसे तब छोड़ने से इंकार करेगा, जब ऐसा करने के लिए इस निमित्त प्राधिकृत किसी रेल सेवक द्वारा अपेक्षा की गई हो तो ऐसा रेल सेवक उसे, यथास्थिति, उस कक्ष, शायिका या सीट से हटा सकेगा या किसी अन्य व्यक्ति की सहायता से हटवा सकेगा और वह ऐसे जुर्माने से भी, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

                (2) यदि कोई यात्री किसी ऐसे कक्ष में, जो प्रतिरोध करने वाले यात्री के उपयोग के लिए आरक्षित नहीं किया गया है, किसी अन्य यात्री के विधिपूर्ण प्रवेश का प्रतिरोध करेगा तो वह जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

156. रेलगाड़ी की छत, सीढ़ियों या इंजन पर यात्रा करना-यदि कोई यात्री या कोई अन्य व्यक्ति, किसी रेल सेवक द्वारा प्रतिविरत रहने की चेतावनी दिए जाने के पश्चात् भी, किसी सवारी डिब्बे की छत, सीढ़ियों या पायदानों पर या किसी इंजन पर या रेलगाड़ी के अन्य ऐसे किसी भाग में, जो यात्रियों के उपयोग के लिए आशयित नहीं है, यात्रा करता रहेगा तो वह कारावास से जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से दंडनीय होगा और उसे किसी रेल सेवक द्वारा रेल से हटाया जा सकेगा ।

157. पास या टिकट में फेरफार करना या उसे विरूपित करना-यदि कोई यात्री अपने पास या टिकट में जानबूझकर फेरफार करेगा या उसे विरूपित करेगा जिससे उसकी तारीख, संख्यांक या कोई तात्त्विक भाग अपठनीय हो जाता है, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

158. अध्याय 14 के उपबन्धों में से किसी के उल्लंघन के लिए शास्ति-वह व्यक्ति जिसके प्राधिकार से किसी रेल सेवक को अध्याय 14 या उसके अधीन बनाए गए नियमों के किन्हीं उपबंधों का उल्लंघन करके नियोजित किया जाता है, जुर्माने से जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

159. रेल सेवकों आदि के निदेशों की यानों के ड्राइवरों या संवाहकों द्वारा अवज्ञा-यदि किसी यान का कोई ड्राइवर या संवाहक, रेल के परिसर में होते हुए किसी रेल सेवक या पुलिस अधिकारी के उचित निदेशों की अवज्ञा करेगा तो वह कारावास से जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

160. समतल क्रासिंग फाटक का खोलना या तोड़ना-(1) यदि कोई व्यक्ति, जो रेल सेवक या इस निमित्त प्राधिकृत व्यक्ति नहीं है, किसी समतल क्रासिंग के, जो सड़क यातायात के लिए बंद कर दिया गया है, दोनों ओर किसी स्थापित फाटक या चेन या रोध को खोलेगा तो, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा ।

(2) यदि कोई व्यक्ति किसी समतल क्रासिंग के, जो सड़क यातायात के लिए बन्द कर दिया गया है, दोनों ओर स्थापित किसी फाटक या चेन या रोध को तोड़ेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा ।

161. समतल क्रासिंग को, जिस पर आदमी नहीं है, उपेक्षापूर्वक पार करना-यदि किसी यान को चलाने या ले जाने वाला कोई व्यक्ति किसी समतल क्रासिंग को, जिस पर कोई आदमी नहीं है, उपेक्षापूर्वक पार करेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए किसी समतल क्रासिंग को, जिस पर कोई आदमी नहीं है, यान चलाकर या ले जाकर, पार करने वाले किसी व्यक्ति के संबंध में, उपेक्षा" से अभिप्रेत है, ऐसे व्यक्ति द्वारा ऐसे समतल क्रासिंग को-

                (क) यह संप्रेक्षण करने के लिए कि आ रहा कोई चल स्टाक दृष्टिगोचर है, ऐसे समतल क्रासिंग के निकट यान रोके बिना या उसे रोकने की सावधानी बरते बिना पार करना; या

                (ख) तब पार करना जब आ रहा चल स्टाक दृष्टिगोचर है ।

162. महिलाओं के लिए आरक्षित किसी सवारी डिब्बे या अन्य स्थान में प्रवेश करना-यदि कोई पुरुष यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि किसी रेलगाड़ी में कोई सवारी डिब्बा, कक्ष, शायिका या सीट अथवा कोई कमरा या अन्य स्थान रेल प्रशासन द्वारा महिलाओं के अनन्य उपयोग के लिए आरक्षित किया गया है, विधिपूर्ण प्रतिहेतु के बिना-

                (क) उस सवारी डिब्बे, कक्ष, कमरे या अन्य स्थान में प्रवेश करेगा या ऐसे सवारी डिब्बे, कक्ष, कमरे या स्थान में प्रवेश करने के पश्चात् उसमें रहेगा; या

                (ख) किसी रेल सेवक द्वारा ऐसी शायिका या सीट को खाली करने की अपेक्षा करने पर भी उस पर दखल रखेगा,

तो वह अपने पास या टिकट के समपहृत किए जाने के दायी होने के अतिरिक्त, ऐसे जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा और वह किसी रेल सेवक द्वारा हटाया भी जा सकेगा ।

163. माल का मिथ्या वर्णन देना-यदि कोई व्यक्ति, जिससे माल का वर्णन देने की धारा 66 के अधीन अपेक्षा की जाती है, ऐसा वर्णन देगा जो तात्त्विक रूप से मिथ्या है तो वह और यदि वह माल का स्वामी नहीं है तो स्वामी भी, इस अधिनियम के किसी उपबन्ध के अधीन किसी माल-भाड़े या अन्य प्रभार का संदाय करने के अपने दायित्व पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे जुर्माने से, जो ऐसे माल के प्रति क्विंटल या उसके भाग के लिए पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

164. खतरनाक माल को विधिविरुद्धतया रेल पर लाना-यदि कोई व्यक्ति धारा 67 के उल्लंघन में अपने साथ कोई खतरनाक माल वहन के लिए ले जाएगा या किसी ऐसे माल को वहन के लिए रेल प्रशासन को सौंपेगा, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से जो एस हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा और ऐसे माल को रेल पर ले जाने के कारण हुई किसी हानि, क्षति या नुकसान के लिए भी दायी होगा ।

165. घृणोत्पादक माल को विधिविरुद्धतया रेल पर लाना-यदि कोई व्यक्ति, धारा 67 के उल्लंघन में अपने साथ कोई घृणोत्पादक माल वहन के लिए ले जाएगा या ऐसा माल वहन के लिए रेल प्रशासन को सौंपेगा तो वह जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा और ऐसे माल को रेल पर ले जाने के कारण हुई किसी हानि, क्षति या नुकसान के लिए भी दायी होगा ।

166. सार्वजनिक सूचनाओं को विरूपित करना-यदि कोई व्यक्ति विधिपूर्ण प्राधिकार के बिना, -

                (क) रेल प्रशासन के आदेश द्वारा रेल या किसी चल स्टाक पर लगाए गए या चिपकाए गए किसी बोर्ड या दस्तावेज को उखाड़ेगा या जानबूझकर नुकसान पहुंचाएगा; या

                (ख) किसी ऐसे बोर्ड या दस्तावेज या किसी चल स्टाक पर के किन्हीं अक्षरों या अंकों को मिटाएगा या बदलेगा,

तो वह कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से, दंडनीय होगा ।

167. धूम्रपान-(1) यदि रेलगाड़ी के किसी कक्ष में कोई अन्य यात्री धूम्रपान पर आक्षेप करता है तो कोई भी व्यक्ति उस कक्ष में धूम्रपान नहीं करेगा ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, रेल प्रशासन किसी रेलगाड़ी या रेलगाड़ी के किसी भाग में धूम्रपान प्रतिषिद्ध कर सकेगा ।

(3) जो कोई उपधारा (1) या उपधारा (2) के उपबंधों का उल्लंघन करेगा, वह जुर्माने से, जो एक सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

168. रेल पर यात्रा करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा को संकटापन्न करने वाले कार्यों के, बालकों द्वारा किए गए अपराध के बारे में उपबंध-(1) यदि बारह वर्ष से कम आयु का कोई व्यक्ति धारा 150 से धारा 154 तक के अधीन किसी अपराध का दोषी है तो उसे सिद्धदोष ठहराने वाला न्यायालय ऐसे व्यक्ति के पिता या संरक्षक से ऐसी रकम का और ऐसी अवधि के लिए, जो न्यायालय निर्दिष्ट करे, ऐसे व्यक्ति के सदाचरण के लिए एक बंधपत्र ऐसी अवधि के भीतर जो न्यायालय नियत करे, निष्पादित करने की अपेक्षा कर सकेगा ।

(2) बंधपत्र की रकम यदि समपहृत हो जाए तो न्यायालय द्वारा ऐसे वसूलीय होगी मानो वह स्वयं उसके द्वारा अधिरोपित जुर्माना हो ।

(3) यदि पिता या संरक्षक न्यायालय द्वारा नियत समय के भीतर उपधारा (1) के अधीन कोई बंधपत्र निष्पादित करने में असफल रहेगा तो वह जुर्माने से, जो पचास रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

169. गैर-सरकारी रेल पर शास्ति का उद्ग्रहण-यदि कोई गैर-सरकारी रेल केन्द्रीय सरकार द्वारा इस अधिनियम के किसी उपबंध के अधीन की गई अध्यपेक्षा का, किए गए किसी विनिश्चय या निदेश का अनुपालन करने में असफल रहेगी अथवा इस अधिनियम के किसी उपबंध का अन्यथा उल्लंघन करेगी तो केन्द्रीय सरकार आदेश द्वारा ऐसी शास्ति, जो दो सौ पचास रुपए से अधिक नहीं होगी और अतिरिक्त शास्ति, जो प्रत्येक दिन के लिए जिसके दौरान उल्लंघन जारी रहता है, एक सौ पचास रुपए से अधिक नहीं होगी, उद्गृहीत कर सकेगी :

परन्तु ऐसी कोई शास्ति गैर-सरकारी रेल को ऐसा अभ्यावेदन, जो वह ठीक समझे, करने का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात् ही उद्गृहीत की जाएगी, अन्यथा नहीं ।

170. शास्ति की वसूली-केंद्रीय सरकार द्वारा धारा 169 के अधीन अधिरोपित कोई शास्ति उस स्थान पर, जहां गैर-सरकारी रेल का मुख्यालय स्थित है, अधिकारिता रखने वाले जिला न्यायालय में वाद द्वारा वसूलीय होंगी ।

171. धारा 169 या धारा 170 का केन्द्रीय सरकार को कोई अन्य कार्रवाई करने से प्रवारित करना-धारा 169 या धारा 170 की कोई बात इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन गैर-सरकारी रेल पर अधिरोपित किसी बाध्यता के निर्वहन के लिए उसको विवश करने के लिए कोई अन्य कार्रवाई करने से केन्द्रीय सरकार को प्रवारित नहीं करेगी ।

172. मत्तता के लिए शास्ति-यदि कोई रेल सेवक ड्यूटी पर होते हुए मत्तता की हालत में होगा तो वह जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा और जब ऐसी हालत में किसी कर्तव्य के पालन किए जाने से रेल पर यात्रा करने वाले या उसमें विद्यमान किसी व्यक्ति की सुरक्षा संकटापन्न होनी संभाव्य हो तब ऐसा रेल सेवक ऐसे कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

173. प्राधिकार के बिना रेलगाड़ी, आदि का परित्याग-यदि किसी रेल सेवक को, जो ड्यूटी पर है किसी रेलगाड़ी या अन्य चलस्टाक को एक स्टेशन या स्थान से दूसरे स्टेशन या स्थान तक चलाने के संबंध में कोई उत्तरदायित्व सौंपा जाता है और वह उस स्टेशन या स्थान पर पहुंचने से पहले, प्राधिकार के बिना या ऐसी रेलगाड़ी या चलस्टाक को किसी अन्य प्राधिकृत रेल सेवक को समुचित रूप से सौंपे बिना अपनी ड्यूटी का परित्याग कर देता है तो वह कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

174. रेलगाड़ी आदि के चलने में बाधा डालना-यदि कोई रेल सेवक (ड्यूटी पर होते हुए या अन्यथा) या कोई अन्य व्यक्ति-

                (क) रेल की पटरी पर बैठ कर या पिकेटिंग करके किसी रेल रोको आंदोलन या बंद के दौरान; या

                (ख) रेल पर बिना प्राधिकार कोई चल स्टाक रख कर; या

                (ग) रेल के होजपाइप में छेड़छाड़ करके, उसे विलग करके या किसी अन्य रीति से उसे बिगाड़ कर या सिगनल गियर से छेड़छाड़ करके, या अन्यथा,

रेल पर किसी रेलगाड़ी या अन्य चल स्टाक को बाधा पहुंचाएगा या बाधा पहुंचवाएगा या बाधा पहुंचाने का प्रयत्न करेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

175. व्यक्तियों की सुरक्षा को संकटापन्न करना-यदि कोई रेल सेवक जो ड्यूटी पर है, -

                (क) इस अधिनियम के अधीन बनाए गए किसी नियम की अवज्ञा करके; या

                (ख) इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन किसी अनुदेश, निदेश या आदेश की अवज्ञा करके; या

                (ग) किसी उतावलेपन के या उपेक्षापूर्ण कार्य या लोप द्वारा,

किसी व्यक्ति की सुरक्षा को संकटापन्न करेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

176. समतल क्रासिंग में बाधा डालना-यदि कोई रेल सेवक अनावश्यक रूप से-

(क) किसी चलस्टाक को ऐसे स्थान के आर-पार खड़ा रहने देगा जहां रेल किसी लोक मार्ग को समतल पर पार करती है; या

(ख) समतल क्रासिंग को जनता के लिए बंद रखेगा, तो वह जुर्माने से, जो एक सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

177. मिथ्या विवरणियां-यदि इस अधिनियम के द्वारा या अधीन कोई विवरणी देने के लिए अपेक्षित कोई रेल सेवक किसी ऐसी विवरणी पर हस्ताक्षर करेगा और उसे देगा जो किसी तात्त्विक विशिष्टि में मिथ्या है या जिसके मिथ्या होने का उसे या तो ज्ञान या विश्वास है या जिसके सही होने का उसे विश्वास नहीं है तो वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

178. किसी रेल सेवक द्वारा मिथ्या रिपोर्ट करना-यदि कोई रेल सेवक जिससे रेल प्रशासन किसी परेषण की हानि, नाश, नुकसान, क्षय या अपरिदान के किसी दावे के बारे में जांच करने की अपेक्षा करता है, ऐसी कोई रिपोर्ट करेगा जो मिथ्या है या जिसके मिथ्या होने का उसे या तो ज्ञान या विश्वास है या जिसके सही होने का उसे विश्वास नहीं है तो वह कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से, दंडनीय होगा ।

 [179. कतिपय धाराओं के अधीन अपराधों के लिए गिरफ्तारी-(1) यदि कोई व्यक्ति धारा 150 से धारा 152 में वर्णित कोई अपराध करेगा तो वह किसी रेल सेवक या पुलिस अधिकारी द्वारा, जो हैड कांस्टेबल की पंक्ति से नीचे का न हो, वारंट या अन्य लिखित प्राधिकार के बिना गिरफ्तार किया जा सकेगा ।

(2) यदि कोई व्यक्ति धारा 137 से धारा 139, धारा 141 से धारा 147, धारा 153 से धारा 157, धारा 159 से धारा 167 और धारा 172 से धारा 176 तक में वर्णित कोई अपराध करेगा तो वह केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित किसी आदेश द्वारा प्राधिकृत अधिकारी द्वारा, वारंट या अन्य किसी लिखित प्राधिकार के बिना, गिरफ्तार किया जा सकेगा ।

(3) यथास्थिति, रेल सेवक या पुलिस अधिकारी या प्राधिकृत अधिकारी, यथास्थिति, उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन गिरफ्तारी करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को अपनी सहायता के लिए बुला सकेगा ।

(4) इस धारा के अधीन इस प्रकार गिरफ्तार किए गए किसी व्यक्ति को, गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर, ऐसी गिरफ्तारी से चौबीस घंटे की कालावधि के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा ।]

180. ऐसे व्यक्तियों की गिरफ्तारी जिनका फरार होना आदि संभाव्य है-(1) यदि कोई व्यक्ति जो इस अधिनियम के अधीन  [धारा 179 की उपधारा (2)] में वर्णित अपराध से भिन्न, कोई अपराध करता है या धारा 138 के अधीन मांगे गए अधिक प्रभार या अन्य राशि के संदाय के लिए दायी है अपना नाम और पता देने में असफल रहेगा या देने से इंकार करेगा या जहां यह विश्वास करने का कारण है कि उसके द्वारा दिया गया नाम और पता कल्पित है या यह कि वह फरार हो जाएगा तो 2[प्राधिकृत अधिकारी] वारंट या लिखित प्राधिकार के बिना उसे गिरफ्तार कर सकेगा ।

(2) 2[प्राधिकृत अधिकारी या पुलिस अधिकारी] उपधारा (1) के अधीन गिरफ्तारी करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को अपनी सहायता के लिए बुला सकेगा ।

(3) इस धारा के अधीन गिरफ्तार किए गए किसी व्यक्ति को जब तक कि उसे जमानत देने पर या यदि उसका सही नाम और पता अभिनिश्चित कर लिया गया है तो उस अपराध के लिए उसका विचारण करने की अधिकारिता रखने वाले किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष उसकी हाजिरी के लिए प्रतिभुओं के बिना बंधपत्र निष्पादित किए जाने पर, उसे पहले ही नहीं छोड़ दिया जाता है, गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर, ऐसी गिरफ्तारी से चौबीस घंटे की कालावधि के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा ।

(4) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अध्याय 23 के उपबंध जहां तक हो सके, इस धारा के अधीन जमानत देने और बंधपत्र के निष्पादित करने की बाबत लागू होंगे ।

 [180क. अपराधों के किए जाने को अभिनिश्चित करने के लिए प्राधिकृत अधिकारी द्वारा जांच-किसी मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को अभिनिश्चित करने के लिए, प्राधिकृत अधिकारी, धारा 179 की उपधारा (2) में वर्णित किसी अपराध के किए जाने की जांच कर सकेगा और यदि यह पाया जाता है कि वह अपराध किया गया है तो सक्षम न्यायालय में कोई परिवाद फाइल कर सकेगा ।

180ख. प्राधिकृत अधिकारी की जांच करने की शक्तियां-कोई जांच करते समय प्राधिकृत अधिकारी को, -

                (i)  किसी व्यक्ति को समन करने और हाजिर कराने तथा उसका कथन अभिलिखित करने;

                (ii) किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करने;

                (iii) किसी कार्यालय, प्राधिकारी या व्यक्ति से कोई लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अध्यपेक्षा करने;

                (iv) किसी परिसर में प्रवेश करने और उस परिसर या किसी व्यक्ति की तलाशी लेने तथा किसी संपत्ति या दस्तावेज को जो जांच की विषयवस्तु से सुसंगत हो, अभिग्रहण करने,

की शक्ति होगी ।

180ग. गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का व्ययन-धारा 179 की उपधारा (2) के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए गिरफ्तार प्रत्येक व्यक्ति को यदि गिरफ्तारी प्राधिकृत अधिकारी से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा की गई थी तो उसे बिना विलम्ब के ऐसे अधिकारी को भेज दिया जाएगा ।

180घ. गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के विरुद्ध जांच किस प्रकार की जाएगी-(1) जब किसी व्यक्ति को इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए प्राधिकृत अधिकारी द्वारा गिरफ्तार किया जाता है तब ऐसा अधिकारी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध आरोप की जांच करने के लिए अग्रसर होगा ।

(2) इस प्रयोजन के लिए, किसी संज्ञेय मामले का अन्वेषण करते समय प्राधिकृत अधिकारी उन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा और उन्हीं उपबंधों के अधीन होगा जिनका किसी पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी प्रयोग कर सकता है और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के जिन उपबंधों के अधीन वह होता है:

परन्तु यह कि-

(क) यदि प्राधिकृत अधिकारी की यह राय है कि अभियुक्त व्यक्ति के विरुद्ध संदेह करने का पर्याप्त साक्ष्य है या युक्तियुक्त आधार है तो वह उसे, मामले में अधिकारिता रखने वाले किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष जमानत के लिए पेश करेगा या उसे ऐसे मजिस्ट्रेट की अभिरक्षा में भेजेगा;

(ख) यदि प्राधिकृत अधिकारी को यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त व्यक्ति के विरुद्ध संदेह का पर्याप्त साक्ष्य नहीं है या युक्तियुक्त आधार नहीं है तो वह अभियुक्त व्यक्ति को, प्रतिभूओं सहित या उसके बिना, उसके बंधपत्र निष्पादित करने पर छोड़ देगा, जैसा प्राधिकृत अधिकारी, यदि और जब ऐसा अपेक्षित हो अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष उपसंजात होने के लिए निदेश दे ।

180ङ. तलाशी, अभिग्रहण और गिरफ्तारी किस प्रकार की जाएगी-इस अधिनियम के अधीन सभी तलाशियां, अभिग्रहण और गिरफ्तारियां दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अधीन तलाशियों और गिरफ्तारियों से क्रमशः संबंधित उपबंधों के अनुसार की जाएंगी ।

180च. प्राधिकृत अधिकारी द्वारा किए गए किसी परिवाद का न्यायालय द्वारा संज्ञान-कोई न्यायालय, प्राधिकृत अधिकारी के द्वारा किए गए किसी परिवाद के सिवाय, धारा 179 की उपधारा (2) में वर्णित किसी अपराध का संज्ञान नहीं लेगा ।

180छ. जांच से संबंधित कतिपय अपराधों के लिए दंड-जो कोई जांच कार्यवाहियों में साशय अपमान करेगा या कोई विघ्न कारित करेगा अथवा जांच अधिकारी के समक्ष जानबूझकर मिथ्या कथन करेगा, वह ऐसी अवधि के सादा कारावास से, जो छह मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से दंडित किया जाएगा ।]

181. अधिनियम के अधीन अधिकारिता रखने वाला मजिस्ट्रेट-दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय से अवर कोई न्यायालय इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा ।

182. विचारण का स्थान-(1) इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम के अधीन अपराध करने वाले किसी व्यक्ति का ऐसे अपराध के लिए विचारण ऐसे किसी स्थान पर, जहां वह हो या जिसे राज्य सरकार इस निमित्त अधिसूचित करे, और किसी अन्य स्थान पर भी जहां तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन उसका विचारण किया जा सकता हो, किया जा सकेगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक अधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित की जाएगी और उसकी एक प्रति ऐसे रेल स्टेशनों के, जिन्हें राज्य सरकार निर्दिष्ट करे, किसी सहजदृश्य स्थान में सार्वजनिक जानकारी के लिए प्रदर्शित की जाएगी ।

अध्याय 16

प्रकीर्ण

183. अन्य परिवहन सेवाओं की व्यवस्था करने की शक्ति-(1) रेल प्रशासन यात्रियों या माल के वहन को सुकर बनाने के प्रयोजन के लिए या ऐसे वहन के लिए एकीकृत सेवा की व्यवस्था करने के लिए, किसी अन्य प्रकार के परिवहन की व्यवस्था कर सकेगा ।

(2) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के उपबंध उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रकार के परिवहन द्वारा यात्रियों या माल के वहन के संबंध में लागू होंगे ।

184. स्थानीय प्राधिकारियों द्वारा रेलों पर कराधान-(1) किसी अन्य विधि में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, रेल प्रशासन किसी स्थानीय प्राधिकारी को निधियों की सहायता के लिए कोई कर संदत्त करने के लिए तब तक दायी नहीं होगा जब तक कि केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा, ऐसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट कर के संदाय के लिए रेल प्रशासन को दायी घोषित नहीं करती ।

(2) जब उपधारा (1) के अधीन केन्द्रीय सरकार की कोई अधिसूचना प्रवृत्त हो तब रेल प्रशासन या तो ऐसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट कर या उसके बदले में ऐसी राशि, यदि कोई हो, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त नियुक्त कोई अधिकारी, मामले की सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर उचित और युक्तियुक्त अवधारित करे, स्थानीय प्राधिकारी को संदत्त करने के लिए दायी होगा ।

(3) केन्द्रीय सरकार उपधारा (1) के अधीन जारी की गई किसी अधिसूचना को किसी भी समय प्रतिसंहृत या परिवर्तित कर सकेगी ।

(4) इस धारा की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह रेल प्रशासन को किसी स्थानीय प्राधिकारी से जल या विद्युत के प्रदाय के लिए या रेल परिसरों की सफाई के लिए या किसी अन्य सेवा के लिए, जो ऐसा स्थानीय प्राधिकारी रेल प्रशासन के लिए करता हो या करने के लिए तैयार हो, संविदा करने से निवारित करती है ।

185. विज्ञापन के लिए रेलों पर कराधान-(1) किसी अन्य विधि में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, रेल प्रशासन, रेल के किसी भाग में किए गए किसी विज्ञापन के संबंध में किसी स्थानीय प्राधिकारी को किसी कर के संदाय के लिए तब तक दायी नहीं होगा जब तक कि केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा, ऐसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट कर के संदाय के लिए रेल प्रशासन को, दायी घोषित   नहीं करती ।

(2) केन्द्रीय सरकार उपधारा (1) के अधीन जारी की गई किसी अधिसूचना को किसी भी समय प्रतिसंहृत या परिवर्तित कर सकेगी ।

186. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण-इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों या किए गए किन्हीं आदेशों के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार, किसी रेल प्रशासन, रेल सेवक या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध नहीं होगी ।

187. रेल संपत्ति के विरुद्ध निष्पादन पर निर्बन्धन-(1) कोई चल-स्टाक, मशीनरी, संयंत्र, औजार, फिटिंग, सामग्री या चीजबस्त, जो रेल प्रशासन द्वारा अपनी रेल पर यातायात के, या अपने स्टेशनों या कर्मशालाओं के, प्रयोजन के लिए उपयोग में लाई जाती है या उपलब्ध कराई जाती है, किसी न्यायालय की या स्थानीय प्राधिकारी या ऐसे किसी व्यक्ति की, जिसे विधि द्वारा संपत्ति को कुर्क या करस्थम् करने या संपत्ति को निष्पादन में अन्यथा लेने की शक्ति प्राप्त है, किसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में केन्द्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना, नहीं ली जा सकेगी ।

(2) उपधारा (1) की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह रेल के उपार्जनों को किसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में कुर्क कर लेने के किसी न्यायालय के प्राधिकार पर प्रभाव डालती है ।

188. रेल सेवकों का भारतीय दंड संहिता के अध्याय 9 और धारा 409 के प्रयोजन के लिए लोक सेवक होना-(1) कोई रेल सेवक, जो भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक नहीं है, उस संहिता के अध्याय 9 और धारा 409 के प्रयोजनों के लिए लोक सेवक समझा जाएगा ।

(2) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 161 में वैध पारिश्रमिक" की परिभाषा में सरकार" शब्द से, उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए यह समझा जाएगा कि उसके अंतर्गत रेल सेवक का उस हैसियत में कोई नियोजक भी है ।

189. रेल सेवकों द्वारा कोई व्यापार करना-कोई रेल सेवक-

(क) धारा 83 या धारा 84 या धारा 85 या धारा 90 के अधीन नीलाम की जाने वाली किसी संपत्ति को न तो स्वयं न अभिकर्ता द्वारा अपने नाम में या दूसरे के नाम में अथवा संयुक्ततः या दूसरों के साथ हिस्सेदारी में, क्रय करेगा और न उसके लिए बोली लगाएगा;

                (ख) रेल प्रशासन के इस निमित्त किसी निदेश के उल्लंघन में व्यापार नहीं करेगा ।

190. रेल सेवक द्वारा निरुद्ध संपत्ति के रेल प्रशासन को परिदान के लिए प्रक्रिया-यदि कोई रेल सेवक सेवोन्मोचित या निलंबित कर दिया जाता है या मर जाता है या फरार हो जाता है या स्वयं अनुपस्थित रहता है और वह या उसकी पत्नी या विधवा या उसके कुटुम्ब का कोई सदस्य या उसका प्रतिनिधि, रेल प्रशासन को यथापूर्वोक्त किसी ऐसी घटना के घटने पर ऐसे रेल सेवक के कब्जे या अभिरक्षा में रेल प्रशासन का कोई स्टेशन, कार्यालय या अन्य भवन उसके अनुलग्नकों सहित या कोई पुस्तकें, कागज-पत्र, चाबियां, उपस्कर या अन्य वस्तुएं उस प्रयोजन के लिए लिखित सूचना के पश्चात्, रेल प्रशासन को या रेल प्रशासन द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी व्यक्ति को देने से इन्कार करता है या देने में उपेक्षा करता है तो कोई महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट, रेल प्रशासन द्वारा या उसकी ओर से किए गए आवेदन पर किसी पुलिस अधिकारी को आदेश दे सकेगा कि वह उचित सहायता सहित उस स्टेशन, कार्यालय या अन्य भवन में प्रवेश करे और वहां पाए जाने वाले किसी व्यक्ति को हटा दे और उसका कब्जा ले ले या पुस्तकों, कागज-पत्रों या अन्य वस्तुओं को कब्जे में ले ले और उन्हें रेल प्रशासन को या रेल प्रशासन द्वारा उस निमित्त नियुक्त व्यक्ति को परिदत्त कर दे ।

191. अभिलेखों और दस्तावेजों में प्रविष्टियों का सबूत-रेल प्रशासन के अभिलेखों या अन्य दस्तावेजों में की गई प्रविष्टियों को रेल प्रशासन द्वारा या उसके विरुद्ध सब कार्यवाहियों में साक्ष्य में ग्रहण किया जाएगा और ऐसी सब प्रविष्टियां, या तो ऐसी प्रविष्टियां अंतर्विष्ट करने वाले रेल प्रशासन के अभिलेखों या अन्य दस्तावेजों के पेश किए जाने पर या उन प्रविष्टियों की ऐसी प्रतिलिपि पेश किए जाने पर जो उन अभिलेखों या अन्य दस्तावेजों की अभिरक्षा रखने वाले अधिकारी द्वारा उसके हस्ताक्षरों के अधीन इस कथन के साथ प्रमाणित हो कि वह मूल प्रविष्टियों की सत्य प्रतिलिपि है और ऐसी मूल प्रविष्टियां उसके कब्जे में रेल प्रशासन के अभिलेखों या अन्य दस्तावेजों में अंतर्विष्ट हैं, साबित की जा सकेंगी ।

192. रेल प्रशासन पर सूचना, आदि की तामील-किसी ऐसी सूचना या अन्य दस्तावेज की, जिसकी रेल प्रशासन पर तामील करना इस अधिनियम द्वारा अपेक्षित या प्राधिकृत है, किसी अंचल रेल की दशा में महाप्रबंधक पर या महाप्रबंधक द्वारा प्राधिकृत किसी रेल सेवक पर और किसी अन्य रेल की दशा में, उस रेल के स्वामी या पट्टाधारी पर या किसी करार के अधीन रेल चलाने वाले व्यक्ति पर, -

                (क) उसे उसको परिदत्त करके; या

                (ख) उसके कार्यालय में उसे छोड़कर; या

                (ग) उसके कार्यालय के पते पर रजिस्ट्रीकृत डाक से भेजकर,

तामील की जा सकेगी ।

193. रेल प्रशासन द्वारा सूचना, आदि की तामील-जब तक इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों में अन्यथा उपबंधित न हो, किसी ऐसी सूचना या अन्य दस्तावेज की, जिसकी रेल प्रशासन द्वारा किसी व्यक्ति पर तामील करना इस अधिनियम द्वारा अपेक्षित या प्राधिकृत है, -

                (क) उसे ऐसे व्यक्ति को परिदत्त करके; या

                (ख) उस व्यक्ति के प्रायिक या अंतिम ज्ञात निवास-स्थान पर उसे छोड़कर; या

                (ग) उस व्यक्ति को उसके प्रायिक या अन्तिम ज्ञात निवास-स्थान के पते पर रजिस्ट्रीकृत डाक से भेजकर,तामील की जा सकेगी ।

194. जहां सूचना की तामील डाक द्वारा की गई है वहां उपधारणा-जहां सूचना या अन्य दस्तावेज की तामील डाक द्वारा की जाती है वहां यह समझा जाएगा कि उसकी तामील उस समय हो गई जब उसे अंतर्विष्ट रखने वाला पत्र डाक के मामूली अनुक्रम में परिदत्त हो जाता और ऐसी तामील को साबित करने में यह साबित करना पर्याप्त होगा कि सूचना या अन्य दस्तावेज अंतर्विष्ट रखने वाले पत्र पर ठीक पता लिखा गया था और वह रजिस्ट्रीकृत था ।

195. रेल प्रशासन का प्रतिनिधित्व-(1) रेल प्रशासन, लिखित आदेश द्वारा, किसी सिविल, दांडिक या अन्य न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही में, यथास्थिति, उसकी ओर से कार्य करने के लिए या उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी रेल सेवक या अन्य व्यक्ति को प्राधिकृत कर सकेगा ।

(2) रेल प्रशासन द्वारा उसकी ओर से अभियोजन संचालित करने के लिए प्राधिकृत कोई व्यक्ति, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 302 में किसी बात के होते हुए भी, मजिस्ट्रेट की अनुज्ञा के बिना ऐसे अभियोजनों को संचालित करने के लिए हकदार होगा ।

196. अधिनियम से रेल को छूट देने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, किसी रेल को इस अधिनियम के सभी या किन्हीं उपबंधों से छूट दे सकेगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन जारी की गई प्रत्येक अधिसूचना, उसके जारी किए जाने के पश्चात्, यथाशक्य शीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी ।

197. रेल" और रेल सेवक" की परिभाषाओं से संबंधित अनुपूरक विषय-(1) धारा 67, धारा 113, धारा 121, धारा 123, धारा 147, धारा 151 से धारा 154, धारा 160, धारा 164, धारा 166, धारा 168, धारा 170, धारा 171, धारा 173 से धारा 176, धारा 179, धारा 180, धारा 182, धारा 184, धारा 185, धारा 187 से धारा 190, धारा 192, धारा 193, धारा 195 और इस धारा के प्रयोजनों के लिए रेल" शब्द से, चाहे वह अकेला आया हो या अन्य शब्दों के उपसर्ग के रूप में आया हो, किसी सन्निर्माणाधीन रेल या ऐसी रेल के किसी प्रभाग के प्रति और यात्रियों, जीवजन्तुओं या माल के सार्वजनिक वहन के लिए उपयोग में न आने वाली किसी रेल या ऐसी रेल के किसी प्रभाग के और साथ ही धारा 2 के खंड (31) में उस शब्द की परिभाषा के अंतर्गत आने वाली रेल के प्रति, निर्देश है ।

(2) धारा 7, धारा 24, धारा 113, धारा 146, धारा 172 से धारा 176 और धारा 188 से धारा 190 तक के प्रयोजनों के लिए रेल सेवक" पद के अंतर्गत वह व्यक्ति है जो रेल की सेवा के संबंध में किसी रेल के अधीन ऐसे व्यक्ति द्वारा नियोजित हो जो रेल प्रशासन के साथ किसी संविदा को पूरी कर रहा है ।

198. नियम बनाने की साधारण शक्ति-इस अधिनियम में अन्यत्र अंतर्विष्ट नियम बनाने की किसी शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, केन्द्रीय सरकार साधारणतः इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी ।

199. संसद् के समक्ष नियमों का रखा जाना-इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम उसके बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन, उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह नियम ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा, किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

200. निरसन और व्यावृत्ति-(1) भारतीय रेल अधिनियम, 1890 (1890 का 9) इसके द्वारा निरसित किया जाता है ।

(2) भारतीय रेल अधिनियम, 1890 (1890 का 9) (जिसे इसमें इसके पश्चात् निरसित अधिनियम कहा गया है) के निरसन के होते हुए भी-

(क) निरसित अधिनियम के अधीन की गई या किए जाने के लिए तात्पर्यित कोई बात या कार्रवाई (जिसके अंतर्गत बनाया गया कोई नियम, जारी की गई कोई अधिसूचना, किया गया कोई निरीक्षण या आदेश या की गई कोई नियुक्ति या सूचना या घोषणा या दी गई अनुज्ञप्ति, अनुज्ञा, प्राधिकार या छूट या निष्पादित किया गया कोई दस्तावेज या लिखत या दिया गया कोई निदेश या की गई कोई कार्यवाही, अधिरोपित की गई कोई शास्ति या जुर्माना भी है), जहां तक वह इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत नहीं है, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबंधों के अधीन समझी जाएगी ;

(ख) निरसित अधिनियम की धारा 41 की उपधारा (1) के अधीन रेल रेट अधिकरण को किया गया कोई परिवाद किन्तु जिसका इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व निपटान नहीं किया गया है और ऐसा परिवाद जो निरसित अधिनियम के अधीन रेल प्रशासन के किसी कार्य या लोप के विरुद्ध उक्त अधिकरण को किया जाए, इस अधिनियम के अध्याय 7 के उपबंधों के अनुसार इस अधिनियम के अधीन गठित अधिकरण द्वारा सुना जाएगा और विनिश्चित किया जाएगा ।

                (3) उपधारा (2) में विशिष्ट विषयों के वर्णन से यह नहीं माना जाएगा कि उससे निरसन के प्रभाव की बाबत, साधारण खंड अधिनियम, 1897 (1897 का 10) की धारा 6 के साधारणतया लागू होने पर प्रतिकूल प्रभाव या कोई प्रभाव पड़ता है ।

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रेलवे अधिनियम कब लागू हुआ?

26 जनवरी, 1919 को रॉलेट एक्ट की स्थापना हुई थी।

भारत में प्रथम रेल की शुरुआत कब हुई थी?

- बता दें कि 16 अप्रैल 1853 को पहली ट्रेन चलाई गई थी और यह ट्रेन 35 किलोमीटर की दूरी पर चलाई गई. जिस वक्त यह ट्रेन पटरी पर दौड़ी उस वक्त समय हो रहा था दोपहर के तीन बजकर 35 मिनट. - यह ट्रेन बोरीबंदर (छत्रपति शिवाजी टर्मिनल) से ठाणे के बीच चलाई गई थी.

भारतीय रेल का जनक कौन है?

लॉर्ड डलहौजी को भारतीय रेलवे के जनक के रूप में जाना जाता है। भारतीय रेलवे की स्थापना 16 अप्रैल, 1853 में की गई थी। भारतीय रेलवे का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। स्वतंत्र भारत के लिए पहला रेल बजट जॉन मथाई ने नवंबर 1947 में पेश किया था।

भारत की पहली ट्रेन का नाम क्या था?

(1) भारतीय रेलवे का नेटवर्क दुनिया के टॉप-5 नेटवर्क में से एक है और करीब 15 लाख कर्मचारियों को रोजगार देने वाला सबसे बड़ा विभाग है. (2) आज ही के दिन साल 1853 में भारत में पहली ट्रेन पटरी पर दौड़ी थी. यह ट्रेन बोरीबंदर (छत्रपति शिवाजी टर्मिनल) से ठाणे के बीच चलाई गई थी. (3) भारत में 1856 में भाप के इंजन बनना शुरू हुए.