स्वतंत्रता के समय भारत में भू-धारण की तीन पद्धतियां – जमींदारी, रैय्यतवाङी, महालवाङी प्रचलित थी। जिसके अंतर्गत क्रमशः 19
प्रतिशत, 51 प्रतिशत, 30 प्रतिशत भूमि सम्मिलित थी। भू-धारण की पद्धतियों के बारे में विस्तृत जानकारी-अंग्रेजों की कृषि संबंधि नीति । जमींदारी व्यवस्था 1793 में
लार्ड कार्नवालिस द्वारा आरंभ की गयी। यह पद्धति दो रूपों में लागू की गयी थी- भूमि का स्थायी बंदोबस्त कब व किसने स्थापित किया था। स्थायी बंदोबस्त- इसके अंतर्गत लगान को स्थायी रूप से सुनिश्चित कर दिया जाता था, जिसमें भविष्य में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता था। यह व्यवस्था
बंगाल, बिहार, उङीसा तथा उत्तरी भारत मद्रास एवं बनारस आदि क्षेत्रों में लागू थी। अस्थायी बंदोबस्त- इसके अंतर्गत लगान को अस्थायी रूप से सुनिश्चित किया जाता था, जिसे 20 से 40 वर्ष बाद बढाया जा सकता था। यह व्यवस्था अवध में लागू की गई थी। रैय्यतवाङी व्यवस्था सर्वप्रथम 1792 में रीड द्वारा मद्रास क्षेत्र
में लागू की गयी। इसके बाद 1820 में हेक्टर मुनरो ने इसे व्यवस्थित रूप दिया और इसे महाराष्ट्र, बरार, असम और कुर्ग आदि क्षेत्रों में लागू किया। महलवाङी व्यवस्था 1822 में हाल्ट मैकेन्जी द्वारा लागू की गयी। यह व्यवस्था पंजाब, मध्य प्रदेश तथा आगरा और अवध में लागू थी। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार द्वारा भूमि सुधार के क्षेत्र में निम्नलिखित उपाय किये गये-
जमींदारी प्रथा के उन्मूलन से संबंधित कानून संपूर्ण भारत में एक ही समय में नहीं लागू किये गये। इससे संबंधित सर्वप्रथम कानून 1948 में मद्रास राज्य में लागू किये गये। जबकि सबसे अंतिम कानून पं.बंगाल में ( 1954-55 में ) लागू किया गया। काश्तकारी सुधारों के अंतर्गत 3 प्रकार के उपाय किये गये-
1950 में यू.पी. में जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 पारित हुआ और 1952 तक सभी राज्यों में इससे संबंधित विधेयक पारित हो गया। स्वतंत्रता के बाद काश्तकारों की सुरक्षा के लिए बंबई, पंजाब और मध्यप्रदेश में कानून बनाये गये। पंजाब, हैदराबाद तथा राजस्थान में कानून बनाए गये, जिससे काश्तकारों और जमींदारों को दिये जाने वाले लगान की अधिकतम सीमा निर्धारित की जा सके। कुछ राज्यों में यह नियम बनाए गये कि काश्तकार उस भूमि का मालिक बन सकता है, जिस पर वह खेती करता है। स्वतंत्रता के बाद विभिन्न पंचवर्षीय योजना के दौरान काश्तकारी सुधार से संबंधित अनेक कानून बनाए गये तथा महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गये। इनका उद्देश्य काश्तकारों को सुरक्षा प्रदान करना, लगान की सीमा निर्धारित करना तथा उसका नियमन और काश्तकारों को भूमि का मालिक बनने का अधिकार प्रदान करना था। नागालैण्ड, मेघालय और मिजोरम को छोङकर सभी राज्यों में काश्तकारी कानून लागू है। कृषि के पुनर्गठन के संबंध में 2 प्रकार के उपाय किये गये हैं-
जोतों की उच्चतम सीमा जल की उपलब्धि वाले क्षेत्रों में 18 एकङ तथा असिंचित क्षेत्रों में 54 एकङ तक सीमित की गई। जोतों के उप-विभाजन और उप-विखंडन की समस्या के समाधान के लिए चकबंदी व्यवस्था को लागू किया गया। भारत में सबसे पहले चकबंदी 1920 में बङौदा में लागू की गयी थी। भारत में हरित-क्रांति का आरंभ 1966 में हुआ, जिसका श्रेय डॉ. नार्मन बोरलाग तथा डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन को है। भारत में हरित-क्रांति का आधार गेहूँ को माना जाता है। भारत में सहकारी आंदोलन की स्थापना, 1904 में एक अंग्रेज अधिकारी फ्रेडरिक निकलसन द्वारा मद्रास में प्रथम सहकारी ऋण समिति की स्थापना किये जाने के साथ हुआ। भारत में सहकारिता को प्रारंभ करने और उसकी सफलताओं की जाँच पङताल करने के लिए 1901 में एडवर्ड ला की अध्यक्षता में एक समिति बनायी गयी, जिसकी सिफारिशों के आधार पर सहकारी साख अधिनियम 1904 पारित किया गया। Reference : https://www.indiaolddays.com/ विषयसूची भूमि सुधार क्या है समझाइए?इसे सुनेंरोकेंतात्पर्य: भूमि सुधार से तात्पर्य है भूमि स्वामित्व का उचित व न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित करना। अर्थात् भूमि के स्वमित्तव को इस प्रकार व्यवस्थित करना जिससे उसका अधिकतम उपयोग किया जा सके। भूमि सुधार क्या है Drishti IAS?इसे सुनेंरोकेंभूमि सुधार मानव और भूमि के बीच के संबंध का योजनाबद्ध और संस्थागत पुनर्गठन है जिसका अभिप्राय भूमि के पुनर्वितरण से है। इसके अंतर्गत भूमि का स्वामित्व, संचालन, पट्टा, बिक्री और उत्तराधिकार विनियमन शामिल है। मध्यस्थों का उन्मूलन: स्वतंत्रता-पूर्व की भूमि राजस्व प्रणाली के भू-कर संग्राहकों (यथा-ज़मींदार) को हटाने के लिये। भूमि का संरक्षण कैसे करें? भूमि संरक्षण (Soil Conservation) के कुछ उपाय निम्नलिखित है :
काश्तकारी सुधार क्या है?इसे सुनेंरोकेंकाश्तकारी में सुधार स्वतंत्रता-पूर्व अवधि के दौरान काश्तकारों द्वारा भुगतान किया जाने वाला भूमिकर अत्यधिक (पूरे भारत में 35% और 75% सकल उपज के बीच) था। भूमिकर को विनियमित करने के लिये पेश किये गए काश्तकारी सुधार काश्तकारों को कार्यकाल की सुरक्षा एवं स्वामित्व प्रदान करते हैं। भूमि सुधार क्या है भारत में इसकी भूमिका पर चर्चा करें?इसे सुनेंरोकेंभूमि सुधार के उद्देश्य कृषि क्षेत्र में विद्यमान संस्थागत विसंगतियों को दूर करना तथा इसे तर्क संगत और आधुनिक बनाना। जैसे- जोत का आकार, भूमि स्वामित्व, भूमि उत्तराधिकार ,काश्तकार की सुरक्षा, आधुनिक संस्थागत सहायता और आधुनिकीकरण आदि पर ध्यान दिया जाना था। भूमि सुधार के क्या उद्देश्य है? इसे सुनेंरोकेंशामिल किया जाता है जिनका सम्बन्ध भूमि स्वामी व् भूमि जोत दोनों में होने वाले सुधार से होता है। इसमें मध्यस्थो का उन्मूलन, जोतो की सुरक्षा, उचित लगान का निर्धारण, अधिकतम व् न्यूनतम भूमि सीमा निर्धारण, सहकारी खेती, चकबंदी व् भूदान आंदोलन आदि को सम्मलित किया जाता है। भूमि सुधार कैसे करें?इसे सुनेंरोकेंउत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम के कृषि वैज्ञानिक (तत्कालीन) डॉ. केबी त्रिवेदी बताते हैं, “ऊसर सुधारने के लिए किसान अपने खेतों को पहले छोटे-छोटे भाग में बांट कर उनकी मेड़बंदी कर ले। जहां-जाहां ज्यादा लोना (नमक) फूल रहा हो वहां की मिट्टी खुरच कर हटा दें। फिर उन प्लाटों को जुताई कर समतल कर लें। भूमि संरक्षण का कौन सा एक उपाय नहीं है?इसे सुनेंरोकें✎… दिए गए विकल्पों में से विकल्प भी सही है अर्थात अतिचारण भूमि संरक्षण का एक उपाय नहीं है। अति चारण से भूमि की उर्वरता कम होती है, और भूमि की गुणवत्ता घटती है। वनारोपण करना भूमि संरक्षण का एक श्रेष्ठतम उपाय है, इसके अतिरिक्त उर्वरकों एवं कीटनाशकों का कम प्रयोग भूमि संरक्षण में मदद करता है। भूमि अपरदन को कैसे रोका जा सकता है? इसे सुनेंरोकेंअर्थात इन कार्यों की दिशा खेत के ढाल के समानांतर न होकर लम्बवत होती है जिससे भूक्षरण में कमी आती है। इसके अंतर्गत क्यारियां बनाकर (रिज फरो सिस्टम) वर्षा जल प्रवाह को कम करके भूक्षरण को रोका जाता है। 6. पट्टीदार खेती : यह पद्धति भूमि की उर्वरता बढ़ाने तथा अप्रवाह एवं भूक्षरण रोकने हेतु प्रयोग में लाई जाती है। किसान और काश्तकार क्या है?इसे सुनेंरोकेंकिसान और काश्तकार में क्या अंतर है? – Quora. किसान सिर्फ खेती करने वालों को कहा गया है जबकि काश्तकार के पास अपनी खुद की जमीन होती हैं जिसमें वह किसानी करता है। भारत में भूमि सीमा बंदी की उच्चतम सीमा असिंचित भूमि में क्या है?इसे सुनेंरोकेंदो फसली खेत के लिए यह सीमा 32 एकड़ है। इसी तरह किसी किसान के पास सिंचित जमीन 36 एकड़ से अधिक नहीं हो सकती। असिंचित की दशा में यह सीमा 55 एकड़ है। नई कृषि नीति के प्रस्ताव में कहा गया है कि वर्तमान एक्ट कृषि के विकास में बाधक है। भारतीय अर्थव्यवस्था में भूमि सुधार के क्या उपाय? इसे सुनेंरोकेंसरकार योजनाओं में निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त लिए इन प्रमुख उपायों पर जोर देती है: (i) बिचौलियों का उन्मूलन, (ii) लगान के नियमन, काश्तकारों की सुरक्षा एवं उन्हें भूमिधर बनाने के उद्देश्यों से काश्तकारी में सुधार की व्यवस्था, कृषि-भूमि पर सीमाबंदी तथा बेशी भूमि का वितरण (iv) जोती की चकबंदी, (v) कृषि-भूमि सम्बंधी … भारत में भूमि सीमा बंदी की उच्चतम सीमा असिंचित भूमि में क्या है?दो फसली खेत के लिए यह सीमा 32 एकड़ है। इसी तरह किसी किसान के पास सिंचित जमीन 36 एकड़ से अधिक नहीं हो सकती। असिंचित की दशा में यह सीमा 55 एकड़ है। नई कृषि नीति के प्रस्ताव में कहा गया है कि वर्तमान एक्ट कृषि के विकास में बाधक है।
उच्चतम भूमि सीमा से क्या तात्पर्य है?भूमि की उच्चतम सीमा से क्या अभिप्राय है? Solution : भूमि की उच्चतम सीमा का अर्थ है कि एक व्यक्ति या परिवार अधिक से अधिक कितनी खेती योग्य भूमि का स्वामी हो सकता है।
भूमि की अधिकतम सीमा क्या है?इन दिशा-निर्देश में सबसे अच्छी भूमि की सीमा 10-18 एकड़, द्वितीय श्रेणी के भूमि की सीमा 18-27 एकड़ और शेष भूमि सीमा 27-54 एकड़ थी, लेकिन पहाड़ी एवं रेगिस्तानी इलाकों में भूमि की सीमा इनसे थोड़ी अधिक थी।
असिंचित भूमि क्या कहलाती है?असिंचित भूमि उस भूमि को कहा जाता है जहाँ सिंचाई का कोई साधन नहीं हो अर्थात उस भूमि पर सिंचाई नहीं की जाती।
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