1. सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज कभी- कभी निस्तब्धता को अवश्य भंग कर देती थी। गाँव की झोंपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज़ ‘हरे राम! हे भगवान!’ की टेर अवश्य सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकारकर रो पड़ते थे। पर इससे रात्रि की निःस्तब्धता में विशेष बाधा नहीं पड़ती थी। Show 2. लुट्टन के माता-पिता उसे नौ वर्ष की उम्र में ही अनाथ बनाकर चल बसे थे। सौभाग्यवश शादी हो चुकी थी, वरना वह भी माँ-बाप का अनुसरण करता। विधवा सास ने पाल-पोस कर बड़ा किया। बचपन में वह गाय चराता,
धारोष्ण दूध पीता और कसरत किया करता था। गाँव के लोग उसकी सास को तरह-तरह की तकलीफ़ दिया करते थे लुट्टन के सिर पर कसरत की धुन लोगों से बदला लेने के लिए ही सवार र्हुइ थी। नियमित कसरत ने किशोरावस्था में ही उसके सीने और बाँहों को सुडौल तथा मासल बना दिया था जवानी में कदम रखते ही वह गाँव में सबसे अच्छा पहलवान समझा जाने लगा। लोग उससे डरने लगे और वह दोनों हाथों को दोनों ओर 45 डिग्री की दूरी पर फैलाकर, पहलवानों की भाँति चलने लगा। वह कुश्ती भी लड़ता था। 3. विजयी लुट्टन कूदता-फाँदता, ताल-ठोंकता सबसे पहले बाजे वालों की ओर दौड़ा और ढोलों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। फिर दौड़कर उसने राजा साहब को गोद मेंउठा लिया। राजा साहब के कीमती कपडे मिट्टी में सन गए। मैनेजर साहब ने आपत्ति की-‘‘हें-हें.अरे-रे!’’ किंतु राजा साहब ने स्वयं उसे छाती से लगाकर गद्गद् होकर
कहा-‘‘जीते रहो, बहादुर! तुमने मिट्टी की लाज रख ली।’’ 4. दोनों ही लड़के
राज-दरबार के भावी पहलवान घोषित हो चुके थे। अतः दोनों का भरण-पोषण दरबार से ही हो रहा था। प्रतिदिन प्रातःकाल पहलवान स्वयं ढोलक बजा-बजाकर दोनों से कसरत करवाता। दोपहर में, लेटे-लेटे दोनों को सांसारिक ज्ञान की भी शिक्षा देता- ‘‘समझे! ढोलक की आवाज पर पूरा ध्यान देना। हाँ, मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है, समझे! ढोल की आवाज के प्रताप से ही मैं पहलवान हुआ। दंगल में उतरकर सबसे पहले ढोलों को प्रणाम करना, समझे!’’ ........... ऐसी ही बहुत-सी बातें वह कहा करता। फिर मालिक को कैसे खुश रखा जाता है, कब कैसा
व्यवहार करना चाहिए, आदि की शिक्षा वह नित्य दिया करता था। 5. रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक
ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस ख्याल में ढोलक बजाता हो, किन्तु गाँव के अर्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बूढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पन्दन-शक्ति शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज में न तो बुखार हटाने का र्कोइ गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूँदते समय कोई तकलीफ नहीं
होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे। 6. रात्रि की विभीषिका को सिर्फ़ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो, किंतु गाँव के अर्धमृत, औषधि-उपचार पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बूढ़े-बच्चे-जवानों
की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य, नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूँदते समय कोई तकलीफ़ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे। पहलवान के बेटों का भरण पोषण दरबार से होने का क्या कारण था?उत्तर: (क) पहलवान के बेटो का भरण-पोषण राज दरबार से इसलिए होता था क्योंकि उसके दोनों बेटे राज दरबार के भावी पहलवान घोषित हो चुके थे। (ख) पहलवान अपने पुत्रों को यह शिक्षा दिया करता था कि ''ढोल की आवाज पर पूरा ध्यान देना। मेरा गुरु कोई पहलवान नही यही ढोल है।
पहलवान के बेटे की अंतिम इच्छा क्या थी?उत्तर: पहलवान की अंतिम इच्छा थी कि मरने के बाद उसे चिता पर पेट के बल लिटा दिया जाए क्योंकि वह जीवन में कभी 'चित' नहीं हुआ। इसके अलावा चिता सुलगाने के समय ढोलक बजाया जाए।
श्याम नगर के राजा चाँद सिंह को दरबार में रखने की बात क्यों कर रहे थे?सौभाग्यवश शादी हो चुकी थी, वरना वह भी माँ-बाप का अनुसरण करता। विधवा सास ने पाल-पोस कर बड़ा किया। बचपन में वह गाय चराता, धारोष्ण दूध पीता और कसरत किया करता था। गाँव के लोग उसकी सास को तरह-तरह की तकलीफ़ दिया करते थे; लुट्टन के सिर पर कसरत की धुन लोगों से बदला लेने के लिए ही सवार हुई थी ।
पहलवान अपने बेटों को क्या शिक्षा देता था?Answer: 'ढोल' लुट्टन को प्रेरणा स्रोत लगता है। यही कारण है कि लुट्टन अपने बेटों को भी पहलवानी सिखाते समय ढोल बजाता है ताकि उसी की भांति वे भी ढोल से प्रेरणा लें। जब उसके गाँव में महामारी फैलती है, तो लोगों की दयनीय स्थिति उसे झकझोर देती है।
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