प्लेटो (४२८/४२७ ईसापूर्व - ३४८/३४७ ईसापूर्व), या अफ़्लातून, यूनान का प्रसिद्ध दार्शनिक था। वह सुकरात (Socrates) का शिष्य तथा अरस्तू (Aristotle) का गुरू था। इन तीन दार्शनिकों की त्रयी ने ही पश्चिमी संस्कृति का दार्शनिक आधार तैयार किया। यूरोप में ध्वनियों के वर्गीकरण का श्रेय प्लेटो को ही है। [1] Show
जीवनी[संपादित करें]प्लेटो का जन्म एथेंस के समीपवर्ती ईजिना नामक द्वीप में हुआ था। उसका परिवार सामन्त वर्ग से था। उसके पिता 'अरिस्टोन' तथा माता 'पेरिक्टोन' इतिहास प्रसिद्ध कुलीन नागरिक थे। 404 ई. पू. में प्लेटो सुकरात का शिष्य बना तथा सुकरात के जीवन के अंतिम क्षणों तक उनका शिष्य बना रहा। सुकरात की मृत्यु के बाद प्रजातंत्र के प्रति प्लेटो को घृणा हो गई। उसने मेगोरा, मिस्र, साएरीन, इटली और सिसली आदि देशों की यात्रा की तथा अन्त में एथेन्स लौट कर अकादमी की स्थापना की। प्लेटो इस अकादमी का अन्त तक प्रधान आचार्य बना रहा। [1] सुव्यवस्थित धर्म की स्थापना पाश्चात्य जगत में सर्वप्रथम सुव्यवस्थित धर्म को जन्म देने वाला प्लेटो ही है। प्लेटो ने अपने पूर्ववर्ती सभी दार्शनिकों के विचार का अध्ययन कर सभी में से उत्तम विचारों का पर्याप्त संचय किया, उदाहरणार्थ- 'माइलेशियन का द्रव्य', 'पाइथागोरस का स्वरूप', 'हेरेक्लाइटस का परिणाम', 'पार्मेनाइडीज का परम सत्य', 'जेनो का द्वन्द्वात्मक तर्क' तथा 'सुकरात के प्रत्ययवाद' आदि उसके दर्शन के प्रमुख स्रोत थे। प्लेटो का मत प्लेटो के समय में कवि को समाज में आदरणीय स्थान प्राप्त था। उसके समय में कवि को उपदेशक, मार्गदर्शक तथा संस्कृति का रक्षक माना जाता था। प्लेटो के शिष्य का नाम अरस्तू था। प्लेटो का जीवनकाल 428 ई.पू. से 347 ई.पू. माना जाता है। उसका मत था कि "कविता जगत की अनुकृति है, जगत स्वयं अनुकृति है; अतः कविता सत्य से दोगुनी दूर है। वह भावों को उद्वेलित कर व्यक्ति को कुमार्गगामी बनाती है। अत: कविता अनुपयोगी है एवं कवि का महत्त्व एक मोची से भी कम है।" रचनाएँ प्लेटो की प्रमुख कृतियों में उसके संवाद का नाम विशेष उल्लेखनीय है। प्लेटो ने 35 संवादों की रचना की है। उसके संवादों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
प्लेटो की रचनाओं में 'द रिपब्लिक', 'द स्टैट्समैन', 'द लाग', 'इयोन', 'सिम्पोजियम' आदि प्रमुख हैं। काव्य के महत्त्व की स्वीकार्यता[संपादित करें]प्लेटो काव्य के महत्व को उसी सीमा तक स्वीकार करता है, जहां तक वह गणराज्य के नागरिकों में सत्य, सदाचार की भावना को प्रतिष्ठित करने में सहायक हो। प्लेटो के अनुसार "मानव के व्यक्तित्व के तीन आंतरिक तत्त्व होते हैं-
काव्य विरोधी होने के बावजूद प्लेटो ने वीर पुरुषों के गुणों को उभारकर प्रस्तुत किए जाने वाले तथा देवताओं के स्तोत्र वाले काव्य को महत्त्वपूर्ण एवं उचित माना है। प्लेटो के काव्य विचार सन्दर्भ[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
प्लेटो के अनुसार शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य, पाठ्यक्रम, विधियाँ, तथा क्षेत्र में योगदानप्लेटो के अनुसार शिक्षा का अर्थ प्लेटो के अनुसार शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य, पाठ्यक्रम, विधियाँ, तथा क्षेत्र में योगदान- शिक्षाशास्त्री चाहे वह पाश्चात्य देशों में जन्मे हों या भारतीय परिवेश में, सभी का उद्देश्य शिक्षा को व्यापक तथा सर्वहित के योग्य बनाना रहा है। सभी शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा को सभी के लिये उपयोगी बनाने के प्रयास को उचित ठहराया है। रूसो, फ्रॉबेल, मॉण्टेसरी, पेस्टालाजी, डीवी तथा रसेल आदि पाश्चात्य शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर नये आयाम प्रस्तुत किये हैं। प्रमुख पश्चात्य शिक्षा विचारक निम्नलिखित हैं- (1) प्लेटो, (2) रूसो, (3) जॉन डीवी, (4) फ्रॉबेल तथा (5) मारिया मॉण्टेसरी। प्लेटो Plato (427-347 B.C.)सुकरात के बाद शिक्षा दार्शनिकों में प्लेटो का नाम बड़े ही आदर तथा गौरव के साथ लिया जाता है। इसका जन्म धनी तथा पूर्ण वैभवसम्पन्न घराने में एथेन्स के अन्तिम राजा काडूस के घर 427 ई. पू. में हुआ था। प्लेटो की माँ सोलन वंश की थी। वह भी धन तथा वैभव से परिपूर्ण घराना था अर्थात् प्लेटो राजघराने का शाही बेटा था। राजनीतिक घराने के कारण प्लेटो को सबकुछ अपने पिता अरिस्टन से प्राप्त तो हो गया किन्तु प्लेटो धनसम्पन्नता तथा राजसी ठाट-बाट के कारण लोकहित सोच से परिचित नहीं हो सका। युवावस्था आते-आते मानसिक उथल-पुथल नेप्लेटो को झकझोर दिया। इस कारण प्लेटो का शासन निर्दयी शासकों के सानिध्य में आ गया। सुकरात के साथ निर्दयी व्यवहार में इन्हीं शासकों का हाथ था। इस घटना से भी प्लेटो व्यथित था। वह युवावस्था में सुकरात के सम्पर्क में आ चुका था। उसने सुकरात के दर्शन तथा गुरुता में अपनी आस्था को विलीन कर दिया। प्लेटो महात्मा सुकरात का लगभग दस वर्ष तक शिष्य रहा। जब सुकरात को विष देकर प्राण हनन किया गया तब प्लेटो 28 वर्ष का था। अपने परम प्रिय तथा आदरणीय गुरु सुकरात की जघन्य हत्या से प्लेटो की आत्मा रो उठी। आश्चर्य तो इस बात का है कि प्लेटो का गुरु सुकरात 116 वर्तमान भारतीय समाजएवं प्रारम्भिक शिक्षा नितान्त गरीब था, जबकि प्लेटो गजघराने का शाही पुत्र था। यह विद्रोह स्वरूप एथेन्स छोड़ विश्व भ्रमण हेतु मेगारा, मिस्त्र, इटली तथा भारत आदि की यात्रा पर दर्शन के प्रसारार्थ निकल पड़ा। अपने गुरु की यादें उसे रह रहकर शेष छूटे कार्यों को पूरा करने के लिये प्रेरित कर रही थीं। प्लेटो दसवर्ष बाहर रहने के बाद एथेन्स पुन: वापस आ गया और वहाँ उसने एकेडेमी की स्थापना की। यह एकेडेमी प्लेटो द्वारा लगभग 40 वर्षों तक शिक्षण तथा शिक्षा प्रसार में कार्यरत रही। प्लेटो की लगभग सभी रचनाएँ संवाद के रूप में लिखी गयी हैं। इसकी सात रचनाएँ प्राप्त हो चुकी हैं, जिनमें से छ: इस प्रकार हैं-(1)Apology (अपोलॉजी), (2) Crito (क्रीटो), (3) Phaedo (फीडो), (4) Symposium (सिम्पोजियम), (5) Republic(रिपब्लिक),(6) The Laws (दी लॉज)। उसकी पुस्तकों में रिपब्लिक’ बहुत प्रसिद्ध है। इस पुस्तक में प्लेटो ने आदर्श राज्य के स्वरूप का उल्लेख किया है। प्लेटो के शिक्षा सम्बन्धी विचार ‘रिपब्लिक’ तथा ‘दि लॉज’ पुस्तक से प्राप्त होते हैं। प्लेटो व्यक्ति को एक आदर्श नागरिक बनाना चाहता था। प्लेटो ने अकादमी में मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, संगीत, गणित तथा राजनीति विज्ञान आदि विषयों के शिक्षण की व्यवस्था की। 80 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गयी। प्लेटो के अनुसार शिक्षा का अर्थ |