पूर्ण प्रतियोगिता बाजार के उस रूप का नाम है जिसमें विक्रेताओं की संख्या की कोई सीमा नहीं होती। फ़लतः कोई भी एक उत्पादक (विक्रेता) बाजार में वस्तु की कीमत पर प्रभाव नहीं डाल सकता। अर्थशास्त्र में बाजार को मुख्त्यः दो रूपों में बांटा जाता है : पूर्ण प्रतियोगिता और अपूर्ण प्रतियोगिता। बाजार संरचना के दो चरम बिन्दुओं पर पूर्ण प्रतियोगिता और एकाधिकार हैं। Show
पूर्ण प्रतियोगिता के लक्ष््ण[संपादित करें]पूर्ण प्रतियोगिता के होने के लिये कुछ पूर्वानुमान लिये जाते हैं जो इस प्रकार हैं : १. प्रत्येक
उत्पादक बाजार की पूरी आपूर्ति का इतना छोटा हिस्सा प्रदान करता है की वो अकेला बाजार में वस्तु की कीमत पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकता। यद्यपि पूर्ण प्रतियोगिता व्यावहारिक जीवन में सम्भव नहीं है, पर शेयर बाजार इसकी विशेषताओं की दृष्टि से बहुत पास पहुंच जाता है। कृषि क्षेत्र(चावल, गेहूं आदि) में भी प्रतियोगिता पूर्ण प्रतियोगिता के समान ही होती है। पूर्ण प्रतियोगिता में बाजार मूल्य का निर्धारण[संपादित करें]पूर्ण प्रतियोगिता में कोई भी विक्रेता वस्तू का मूल्य स्वंय निर्धारित नहीं कर सकता। अतः वस्तु का मूल्य बाजार में निर्धारित होता है। मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया को समझने के लिये मांग और आपूर्ति को समझना आवश्यक है। मांग: एक निश्चित मूल्य पर किसी वस्तु की जितनी मात्रा लोग खरीदना कर उपयोग करना चाहते हैं उसे वसतू की मांग कहते हैं। जब बाजार में कोइ वस्तु आती है तो उसके मांग और उसकी आपूर्ति में सम्बन्ध स्थापित होता है और मूल्य का निर्धारण होता है। विक्रेता द्वारा उपयुक्त विक्रय परिमाण का निर्धारण पूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेता का मांग-वक्र पुर्णतः लोचशील होता है क्योंकि वह बाजार निर्धारित मूल्य पर जितना चाहे उत्पादन कर सकता है और उसे बेच सकता है। अतः उसे उप्युक्त परिमाण निर्धारित करने के लिये अपने सीमांत लागत वक्र का निर्धरण करना होता है। सीमांत लागत का अर्थ है वर्तमान स्थिति में एक और वस्तु के उत्पाद करने का लागत। सीमांत लागत वक्र अंग्रेजी के अक्षर 'U' के आकार का होता है। इस्का अर्थ है कि जब उत्पादन क्षमता का
पूरा प्रयोग नहीं हो रहा है तब सीमांत लागत घट रहा होता है, एक निश्चित क्षमता तक पहुंचने के बाद यह बढ़ने लगता है। जिस बिन्दु पर सीमांत लागत वक्र उत्पादक के मांग वक्र को काटता है, उस बिन्दु पर उपयुक्त उत्पादन का निर्धारण होता है। पूर्ण प्रतियोगिता से क्या समझते है?पूर्ण प्रतियोगिता एक बाजार का रूप है, जिसमें क्रेता तथा विक्रेताओं की एक बड़ी संख्या होती है, जो समरूप या एक जैसी वस्तुओं का उद्योग द्वारा निर्धारित कीमतों पर क्रय-विक्रय करते हैं।
पूर्ण प्रतियोगिता से आप क्या समझते हैं पूर्ण प्रतियोगिता में किस प्रकार मूल्य निर्धारण होता है समझाइए?पूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ तथा परिभाषाएँ
पूर्ण प्रतियोगिता, बाजार की वह दशा होती है जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है। इसमें कोई भी एक क्रेता अथवा विक्रेता व्यक्तिगत रूप से वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। समस्त बाजार में वस्तु का एक ही मूल्य होता है।
पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएं क्या है?पूर्ण प्रतियोगिता मे उद्योग मे लगी सभी फर्में जो वस्तु बना रही है वे बिल्कुल समान तथा एक जैसी होती है, अर्थात् वस्तु विभेद अनुपस्थित रहता है। वस्तुओं मे भौतिक दृष्टि से ही समानता नही होती बल्कि वस्तुओं मे व्यापारिक चिन्ह, ब्राण्ड, नाम आदि का भी अंतर नही होता।
पूर्ण और अपूर्ण प्रतियोगिता में क्या अंतर है?पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म अल्पकाल में लाभ, सामान्य लाभ व हानि अर्जित करती है तथा दीर्घकाल में फर्म को मात्र सामान्य लाभ ही प्राप्त होता है। अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म अल्पकाल में लाभ, सामान्य लाभ व हानि की स्थिति में हो सकती है। तथा दीर्घकाल में फर्म को केवल सामान्य लाभ ही अर्जित हो पाता है।
|