प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की के शासक को अपडेट करने वाला देश कौन था? - pratham vishv yuddh mein turkee ke shaasak ko apadet karane vaala desh kaun tha?

प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की के शासक को अपडेट करने वाला देश कौन था? - pratham vishv yuddh mein turkee ke shaasak ko apadet karane vaala desh kaun tha?

तेरहवीं शताब्दी का एक मंगोल तीरबाज

तुर्की के इतिहास को तुर्क जाति के इतिहास और उससे पूर्व के इतिहास के दो अध्यायों में देखा जा सकता है। सातवीं से बारहवीं सदी के बीच में मध्य एशिया से तुर्कों की कई शाखाएँ यहाँ आकर बसीं। इससे पहले यहाँ से पश्चिम में आर्य (यवन, हेलेनिक) और पूर्व में कॉकेशियाइ जातियों का बसाव रहा था।

तुर्की में ईसा के लगभग ७५०० वर्ष पहले मानव बसाव के प्रमाण यहां मिले हैं। हिट्टी साम्राज्य की स्थापना १९००-१३०० ईसा पूर्व में हुई थी। १२५० ईस्वी पूर्व ट्रॉय की लड़ाई में यवनों (ग्रीक) ने ट्रॉय शहर को नेस्तनाबूत कर दिया और आसपास के इलाकों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। १२०० ईसापूर्व से तटीय क्षेत्रों में यवनों का आगमन आरंभ हो गया। छठी सदी ईसापूर्व में फ़ारस के शाह साईरस ने अनातोलिया पर अपना अधिकार जमा लिया। इसके करीब २०० वर्षों के पश्चात ३३४ इस्वीपूर्व में सिकन्दर ने फ़ारसियों को हराकर इसपर अपना अधिकार किया। बाद में सिकन्दर अफ़गानिस्तान होते हुए भारत तक पहुंच गया था। इसापूर्व १३० इस्वी में अनातोलिया रोमन साम्राज्य का अंग बना। ईसा के पचास वर्ष बाद संत पॉल ने ईसाई धर्म का प्रचार किया और सन ३१३ में रोमन साम्राज्य ने ईसाई धर्म को अपना लिया। इसके कुछ वर्षों के अन्दर ही कान्स्टेंटाईन साम्राज्य का अलगाव हुआ और कान्स्टेंटिनोपल इसकी राजधनी बनाई गई। छठी सदी में बिजेन्टाईन साम्राज्य अपने चरम पर था पर १०० वर्षों के भीतर मुस्लिम अरबों ने इसपर अपना अधिकार जमा लिया। बारहवी सदी में धर्मयुद्धों में फंसे रहने के बाद बिजेन्टाईन साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया। सन १२८८ में ऑटोमन साम्राज्य का उदय हुआ और सन् १४५३ में कस्तुनतुनिया का पतन। इस घटना ने यूरोप में पुनर्जागरण लाने में अपना महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

तुर्क प्रयाण[संपादित करें]

वर्तमान तुर्क पहले यूराल और अल्ताई पर्वतों के बीच बसे हुए थे। जलवायु के बिगड़ने तथा अन्य कारणों से ये लोग आसपास के क्षेत्रों में चले गए। लगभग एक हजार वर्ष पूर्व वे लोग एशिया माइनर में बसे। नौंवी सदी में ओगुज़ तुर्कों की एक शाखा कैस्पियन सागर के पूर्व बसी और धीरे-धीरे ईरानी संस्कृति को अपनाती गई। ये सल्जूक़ तुर्क थे।

सल्जूक़ तुर्क[संपादित करें]

इसके साथ ही कैस्पियन सागर के पश्चिम में वे मध्य तुर्की के कोन्या में स्थापित हो गए। 1071 में उन लोगों ने बिजेंटाइनों को परास्त कर एशिया माइनर पर अपना आधिपत्य जमा लिया। मध्य टर्की में कोन्या को राजधानी बनाकर उन्होंने इस्लामी संस्कृति को अपनाया। इस साम्राज्य को 'रुम सल्तनत' कहते हैं क्योकि इस इलाके़ में पहले इस्तांबुल के रोमन शासकों का अधिकार था जिसके नाम पर इस इलाक़े को जलालुद्दीन रुमी कहते थे। यह वही समय था जब तुर्की के मध्य (और धीरे-धीरे उत्तर) भाग में ईसाई रोमनों (और ग्रीकों) का प्रभाव घटता गया। इसी क्रम में यूरोपीयों का उनके पवित्र ईसाई भूमि, यानि येरुशलम और आसपास के क्षेत्रों से संपर्क टूट गया - क्योकि अब यहाँ ईसाइ के बदले मुस्लिम शासकों का राज हो गया था। अपने ईसाई तीर्थ स्थानों की यात्रा का मार्ग सुनिश्चित करने और कई अन्य कारणों की वजह से यूरोप में पोप ने धर्म युद्धों का आह्वान किया। योरोप से आए धर्म योद्धाओं ने यहाँ पूर्वी तुर्की पर अधिकार बनाए रखा पर पश्चिमी भाग में सल्जूक़ों का साम्राज्य बना रहा। लेकिन इनके दरबार में फ़ारसी भाषा और संस्कृति को बहुत महत्व दिया गया। अपने सामानान्तर के पूर्वी सम्राटों, गज़नी के शासकों की तरह, इन्होंने भी तुर्क शासन में फ़ारसी भाषा को दरबार की भाषा बनाया। सल्जूक़ दरबार में ही सबसे बड़े सूफ़ी कवि रूमी (जन्म 1215) को आश्रय मिला और उस दौरान लिखी शाइरी को सूफ़ीवाद की श्रेष्ठ रचना माना जाता है। सन् 1220 के दशक से मंगोलों ने अपना ध्यान इधर की तरफ़ लगाया। कई मंगोलों के आक्रमण से उनके संगठन को बहुत क्षति पहुँची और 1243 में साम्राज्य को मंगोलों ने जीत लिया। हाँलांकि इसके शासक 1308 तक शासन करते रहे पर साम्राज्य बिखर गया।

उस्मानी साम्राज्य[संपादित करें]

मंगोलों का प्रभाव समाप्त होते ही आटोमन साम्राज्य की स्थापना हुई जिसका प्रथम सम्राट् उसमान था। इस समय टर्की की सीमाओं में बहुत विस्तार हुआ। 1516 और 1517 में क्रमश: सीरिया और मिस्र जीत लिया गया। सुलतान सुलेमान के शासनकाल में एशिया माइनर, कुछ अरब प्रदेश, उत्तरी अफ्रीका, पूर्वी भूमध्यसागरीय द्वीप, बालकन, काकेशस और क्रीमिया में टर्की का प्रभुत्व था। 18वीं और 19वीं शताब्दियों में राष्ट्रीयता के उदय से टर्की की सीमाएँ संकुचित होती गईं और उसके द्वारा अधिकृत प्रदेश एक एक कर स्वतंत्र होते गए।

राजशाही का अन्त[संपादित करें]

सत्रहवीं सदी के उत्तरार्ध में रूस से शत्रुता आरंभ हुई और १८५४ में क्रीमिया का युद्ध हुआ।

1839 में व्यापक सुधार आंदोलन आरंभ हुआ, जिससे सुलतान के अधिकर नियंत्रित कर दिए गए। इसी आशय का एक संविधान 1876 में पारित हुआ, किंतु एक वर्ष तक चलने के बाद वह स्थगित हो गया। तब वहाँ अनियंत्रित राजतंत्र पुन: स्थापित हो गया। 1908 में युवक क्रांति हुई, जिसके बाद 1876 का संविधान फिर लागू हुआ। 1913 में सुलतान मेहमत शासन का अध्यक्ष बना। प्रथम विश्वशुद्ध के समय टर्की के नेताओं ने जर्मनी का साथ दिया। इस युद्ध में टर्की पराजित हुए। युद्ध-विराम-संधि के होते ही अनबर पाशा और उसके सहयोगी अन्य शीर्षस्तरीय नेता टर्की छोड़कर भाग गए। एशिया माइगर आदि क्षेत्र ब्रिटेन, फ्राँस, ग्रीस और इटली में बटँ गए। 1919 में ग्रीस ने अनातोलिया पर आक्रमण किया, किंतु मुस्तफा कमाल अतातुर्क (कमाल अतातुर्क) के नेतृत्व में हुए संघर्ष में (1922) ग्रीस पराजित हुआ। सुलतान का प्रभाव क्षीण होने लगा और अंकारा में मुस्तफा कमाल के नेतृत्व में व्यापक मान्यताप्राप्त राष्ट्रीय सरकार की स्थापना हुई। 1923 की लासेन संधि के अनुसार टर्की का प्रभुत्व एशिया माइनर तथा थ्रेस के कुछ भाग पर मान लिया गया। 29 अक्टूबर 1923 को टर्की गणराज्य घोषित हुआ।

इसके पश्चात् टर्की में अतातुर्क सुधारों के नाम से अनेक सामाजिक राजनीतिक और विधिक सुधार हुए। गणतांत्रिक संविधान में धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक संगठनों के उत्मूलन और स्त्रियों के उद्धार आदि की व्यवस्था हुई। अरबी लिपि के स्थान पर रोमन लिपि का प्रचलन घोषित हुआ। मुस्तफा कमाल की मृत्यु (1938) के पूर्व तक उसके नेतृत्व में रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी अत्यधिक प्रभावशाली और मुख्य राजनीतिक संगठन के रूप में रही।

युद्ध और उपरांत[संपादित करें]

प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की ने जर्मनी का साथ दिया। 1919 में मुस्तफ़ा कमाल पाशा (अतातुर्क) ने देश का आधुनिकीकरण आरंभ किया। उन्होंने शिक्षा, प्रशासन, धर्म इत्यादि के क्षेत्रों में पारम्परिकता छोड़ी और तुर्की को आधुनिक राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।

द्वितीय विश्वयुद्ध में टर्की प्राय: तटस्थ रहा। 1945 में यह "संयुक्त राष्ट्रसंघ" (यू. एन. ओ.) का सदस्य बना। 1947 में संयुक्त राज्य अमरीका ने टर्की को रूस के विरुद्ध सैनिक सहायता देने का वचन दिया। वह सहायता अब भी जारी है। इस समय टर्की नाटो, सेंटो और बाल्कन पैक्ट का सदस्य है।

मुस्लिम-टर्की धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता का पूरा आश्वासन है। मुसलमानों में सुन्नी बहुसंख्यक हैं। तुर्की यहाँ प्राय: सार्वभौम भाषा है। इसमें वर्णों की रचना ध्वनि पर आधारित है। 1928 के भाषासुधार आंदोलन से अरबी लिपि के स्थान पर रोमन लिपि का प्रयोग होने लगा है।

1960 तक तत्कालीन प्रधान मंत्री मेंडरीज (Menderes) ने विधिक स्वातंत्र्य, भाषा, लेखन और प्रेस स्वातंत्र्य पर रोक लगा दी। इसके विरुद्ध प्रबल आंदोलन हुआ। 27 मई 1960 को प्रधान मंत्री मेंडरीज़ और राष्ट्रपति बायर (Bayar) "नेशनल यूनिटी कमिटी" (National unity committee) द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए। जनरल गुरसेल (Gursel) कार्यवाहक अध्यक्ष तथा प्रधान मंत्री के रूप में कार्य करने लगे। ग्रांड नेशनल असेंबली की स्थापना हुई और 1961 में जनरल गुरसेल राष्ट्रपति निर्वाचित हुए।

1961 के संविधान में टर्की पुन: प्रजातांत्रिक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बना, जिसमें जनअधिकारों तथा विधिसम्मत न्याय की पूर्ण व्यवस्था है। राष्ट्र पर किसी एक व्यक्ति, समूह या वर्ग का अधिकार नहीं है।

टर्की की आधी राष्ट्रीय आय का स्रोत कृषि है। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् उद्योगीकरण की ओर राष्ट्र की प्रवृत्ति बढ़ी। कृषि के क्षेत्र में मशीनों के प्रयोग ने विशेष क्रांति को जन्म दिया। 1960 में सैनिक शासन स्थापित होने के समय टर्की की आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं थी। विकास-योजनाओं को तेजी से बढ़ा देने के कारण टर्की ऋणग्रस्त हो गया। व्यापार में घाटे की स्थिति उत्पन्न हो गई। इसके बाद आर्थिक उन्नति के लिए व्ययों में कटौती, मूल्यनियंत्रण का उन्मूलन, करों में संशोधन आदि आवश्यक कदम उठाए गए।

टर्की में प्राकृतिक साधन तो प्रचुर मात्रा में हैं, किंतु अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए उसे मशीनी उद्योग में अधिक व्यय करना पड़ता है। इसके निमित्त उसे पाश्चात्य देशों से, विशेषकर अमरीका से, ऋण भी मिलता है। 1990 के दशक में देश में मुद्रास्फीति 70% तक बढ़ गई थी।

सारांश[संपादित करें]

  • तुर्क (500-1300)
  • रुम सल्तनत (1000–1300)
  • अनातोली बिलिक्स
  • आटोमान साम्राज्य (1299–1922)
  • तुर्की का स्वतंत्रता संग्राम (1919-1922)
  • तुर्की गणतंत्र (1923–)

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • उस्मानी साम्राज्य
  • बाल्कन युद्ध
  • तुर्की का राष्ट्रीय स्मारक
  • युवा तुर्क आन्दोलन
  • तुर्की का स्वतंत्रता संग्राम
  • मुस्तफा कमाल पाशा

प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की के शासक को हटाने वाला देश कौन था?

प्रथम विश्व युद्ध इतिहासकार मानते हैं कि 18वीं और 19वीं सदी में साइंस और टेक्नॉलॉजी में यूरोप ने तेजी से प्रगति लेकिन तुर्क ऐसा नहीं कर सके. प्रथम विश्व युद्ध में तुर्कों ने जर्मनी का साथ दिया था और जंग के खत्म होते-होते तुर्कों का साम्राज्य हाशिये पर चला गया.

प्रथम विश्व युद्ध के समय तुर्की का सुल्तान कौन था?

(3) युवा तुर्क आंदोलन 1908 ई. हुई. (4) अब्‍दुल हमीद द्वितीय के शासनकाल में में युवा तुर्क आंदोलन की शुरुआत हुई. (5) प्रथम विश्‍वयुद्ध के बाद तुर्की के साथ हुई भीषण अपमानजनक संधि को सेब्र की संधि के नाम से जाना जाता है.

प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की की क्या स्थिति थी?

तुर्की की महत्त्वाकांक्षा ही उसे ले डूबी। सबसे पहले तो उसने जर्मनी ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया और दूसरी ओर मित्र राष्ट्रों के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। परिणामतः इस विश्वयुद्ध में सबसे अधिक नुकसान तुर्की को ही उठाना पड़ा क्योंकि मित्रराष्ट्रों के खिलाफ विद्रोह करने के कारण वह सबसे अलग-थलग पड़ गया और वह पराजित हो गया ।

तुर्की के तानाशाह कौन था?

कमाल अतातुर्क उर्फ मुस्तफ़ा कमाल पाशा (1881 - 1938) एक तुर्की क्षेत्र के मार्शल, क्रांतिकारी राजनेता, लेखक और तुर्की गणराज्य के संस्थापक, 1923 से अपनी मृत्यु तक (1938 तक) इसके पहले राष्ट्रपति के रूप में सेवा करते हुए।