पौधों के आवश्यक पोषक तत्व क्या है? - paudhon ke aavashyak poshak tatv kya hai?

वे सभी पोषक तत्व जो पौधों की वृद्धि एवं विकास के लिए सहायक होते है आवश्यक पादप पोषक तत्व (essential plant nutrients in hindi) कहलाते है ।

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आवशयक पोषक तत्वों का पौधों के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है ।


आवश्यक पादप पोषक तत्व क्या है? | essential plant nutrients in hindi

पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व 16 हैं जिन्हें पादप पोषक या आवश्यक पादप पोषक तत्व (essential plant nutrients in hindi) भी कहते हैं ।

ये कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, कैलशियम, मैगनीशियम, गंधक, लोहा, जिंक, मैंगनीज, कॉपर, बोरॉन, मोलिब्डीनम तथा क्लोरीन हैं ।

पौधों को C, H और O तीन पोषक वायु तथा जल से प्राप्त होते हैं परन्तु शेष 13 पोषक तत्व इन्हें मृदा से मिलते हैं ।

इनके अतिरिक्त पौधे मृदा से सिलिकॉन, ऐलुमिनियम तथा सोडियम की अल्प मात्राएँ भी शोषित कर लेते हैं ।

पौधों में पोषक तत्व आवश्यक क्यों होते है? why are nutrients essential in plants


किसी तत्त्व का पौधों के लिए आवश्यक कहलाना निम्न बातों पर निर्भर करता है—

  • आवश्यक तत्त्व पौधों के पोषण में प्रमुख स्थान रखता है ।
  • आवश्यक तत्त्वों की कमी अथवा अनुपस्थिति में पौधों की वृद्धि तथा फसल का पकना असम्भव है ।
  • आवश्यक तत्त्व की कमी से पौधों में विशेष प्रकार के लक्षण प्रतीत होते हैं जो किसी अन्य तत्त्व की कमी से नहीं होते ।
  • मृदा में किसी विशेष आवश्यक तत्त्व की कमी को केवल उसी तत्त्व को प्रदान दूर किया जा सकता है । अतः स्पष्ट है, कि एक आवश्यक तत्त्व की कमी दूसरे तत्त्व द्वारा पूरी नहीं की जा सकती ।

अत: पौधों के पोषण के लिए आवश्यक तत्त्वों में उपरोक्त गुण विद्यमान होते हैं ।


आवश्यक पादप पोषक तत्वों का वर्गीकरण classification of essential plant nutrients in hindi


पादप पोषक तत्वों का वर्गीकरण -

1. प्रधान या वृहत् या दीर्घ पोषक ( Major or Macro Nutrients )

  • प्राथमिक पोषक ( Primary Nutrients )
  • द्वितीय या गौण पोषक ( Secondary Nutrients )
2. उप-प्रधान, लघु या सूक्ष्म पोषक ( Minor, Micro or Trace Nutrients )


पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों का वर्गीकरण कीजिए? | classification of essential plant nutrients in hindi

पौधों की आवश्यकतानुसार आवश्यक पोषक तत्त्वों का वर्गीकरण निम्न प्रकार कर सकते हैं -


1. प्रधान या वृहत् या दीर्घ पोषक ( Major or Macro Nutrients )

इनके अन्तर्गत C, H, O, N, P, K, S, Ca तथा Mg आते हैं ।


इन्हें भी दो वर्गों में वर्गीकृत करते हैं -

( i ) प्राथमिक पोषक ( Primary Nutrients ) –

NPK की पौधों को अन्य तत्त्वों की अपेक्षा अधिक मात्रा में आवश्यक होती है । अतः इन्हें प्राथमिक या मुख्य पोषक तत्त्व कहते हैं ।


( ii ) द्वितीय या गौण पोषक ( Secondary Nutrients ) -

Ca, Mg तथा S भी पौधों को पर्याप्त मात्रा में चाहिये परन्तु इनका कार्य मुख्य पोषक तत्वों से कम होता है । अतः इन्हें गौण पोषक तत्त्व कहते हैं ।


2. उप-प्रधान, लघु या सूक्ष्म पोषक ( Minor, Micro or Trace Nutrients )

मृदा में विद्यमान वह तत्त्व जो पादप वृद्धि के लिए प्रधान तत्त्वों की भाँति आवश्यक होते हैं किन्तु वे पौधों द्वारा अल्प मात्रा में उपयोग में लाए जाते हैं, सूक्ष्म या विरल पोषक तत्त्व कहलाते हैं ।

ये Fe, Mn, Cu, Zn, B, Mo तथा CI हैं । सूक्ष्म तत्त्वों की अधिक मात्रा पौधों के लिए वैषिक (toxic) हो जाती है । अतः मृदा में इनकी अल्प मात्रा ही पर्याप्त होती है ।


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आवश्यक पोषक तत्वों को पौधों किस रूप में ग्रहण करते है?


पोषक तत्त्वों के रूप जिनमें पौधे उन्हें ग्रहण करते हैं - पौधे पोषक तत्त्वों को मृदा घोल या मृदा कोलॉइड जटिल की सतह से प्राय: आयनिक रूप में ग्रहण करते हैं ।

इसके अतिरिक्त C, H तथा O को पौधे मुख्यत: वायु तथा पानी से लेते हैं ।


आवश्यक पोषक तत्त्वों को पौधे निम्न रूपों में ग्रहण करते हैं -

पौधों के आवश्यक पोषक तत्व क्या है? - paudhon ke aavashyak poshak tatv kya hai?
आवश्यक पोषक तत्वों का वर्गीकरण एवं पौधों में इनके कार्य, कमी के लक्षण व महत्व लिखिए

पोषक तत्त्व - पौधों द्वारा शोषित प्राप्य अवस्थाएँ -

  • कार्बन - CO2, CO3' ' (कार्बोनिट) तथा HCO3' (बाइकार्बोनेट) आयन
  • हाइड्रोजन - H2O, H + तथा OH-
  • ऑक्सीजन - CO2, H2O, OH-, CO3' ' तथा SO4' '
  • नाइट्रोजन - NH4+, NO3- तथा NO2- (नाइट्राइट आयन)
  • फॉस्फोरस - HPO4 ' ' तथा H2 PO4' (डाइहाइड्रोजन फॉस्फेट आयन)
  • पोटेशियम - K+ (पोटेशियम आयन)
  • सल्फर - SO4' ' (सल्फेट आयन) तथा SO3' ' (सल्फाइट आयन)
  • कैल्सियम - Ca++ (कैलशियम आयन)
  • मैगनीशियम - Mg++ (मैगनीशियम आयन)
  • आयरन - Fe++ (फैरस आयन) तथा Fe+++ (फैरिक आयन)
  • मैंगनीज - Mn++ (मैंगनीज आयन), Mn+++
  • बोरॉन - BO3' ' ' (बोरेट आयन)
  • जिंक - Zn++ (जिंक आयन)
  • कॉपर - Cu+ (क्यूप्रस आयन) तथा Cu++ (क्यूप्रिक आयन)
  • मोलिब्ड - Mo O4 ' ' (मोलिब्डेट आयन)
  • क्लोरीन - CI- (क्लोराइड आयन)


निम्नलिखित पोषक तत्वों के पौधों में कार्य, कमी के लक्षण एवं महत्व लिखिए?

पादप ऊतकों की प्रोटीन संरचना में लिप्त तीन सहायक संरचनात्मक पोषक तत्वों के नाम कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा गन्धक ऐसे तत्त्व हैं जो पहले प्रोटीन और फिर जीवद्रव्य की संरचना में भाग लेते हैं ।

अतः ये पादप ऊतकों की प्रोटीन संरचना में सहायक संरचनात्म पोषक तत्त्व होते हैं ।


C, H तथा O के पादप वृद्धि में महत्त्व का वर्णन निम्न प्रकार कर सकते हैं -


1. कार्बन के पौधों में कार्य एवं‌ महत्व -

यह पौधों का विशेष अंग है और यह पौधों में स्थित तत्त्वों में सबसे अधिक मात्रा में होता है । प्रायः पौधे कार्बन वायुमण्डलीय CO2 से प्राप्त करते हैं । मृदा में यह कार्बोनेट के रूप में पौधों को प्राप्त होता है ।

हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) प्रक्रम द्वारा CO2 तथा जल के संयोग से ग्लूकोस तथा फ्रुक्टोस आदि सरल शर्कराएँ तथा अन्य कार्बोहाइड्रेट्स बनाते हैं ।

इस प्रकार कार्बन से शर्करा का निर्माण होता है ।

6CO2 + 6H2O + 677Cal. ---> C6H12O6(ग्लूकोस व फ्रुक्टोस) + 602

सरल शर्कराओं (पेन्टोसेस, C5H10O5 तथा हैक्सोसेस, C6H12O6) के बहुलीकरण (polymerisation) द्वारा वसा पदार्थ तथा तेलों का संश्लेषण होता है ।


2. हाइड्रोजन के पौधों में कार्य एवं‌ महत्व -

यह तत्त्व पौधों के लिए अत्यन्त आवश्यक है । पौधों की वृद्धि लिए आवश्यक हाइड्रोजन जल से प्राप्त होती है ।

पौधों द्वारा शोषित सम्पूर्ण जल की केवल अतिसूक्ष्म मात्रा इसके बढ़वार प्रक्रमों में काम आती है । जल की इस सूक्ष्म मात्रा से भोज्य पदार्थों के निर्माण में आवश्यक हाइड्रोजन की पूर्ति हो जाती है ।

हाइड्रोजन CO2 के साथ संयोग कर विभिन्न रासायनिक क्रियाओं द्वारा शर्करा का निर्माण करती है ।


3. ऑक्सीजन के पौधों में कार्य एवं‌ महत्व -

पौधों को ऑक्सीजन जल तथा CO2 से प्राप्त होती है । प्रकाश संश्लेषण प्रक्रम में उत्पन्न स्वतन्त्र ऑक्सीजन को पौधे अपनी श्वसन क्रिया में उपयोग में लाते हैं ।

पौधे रात को श्वसन (respiration) में ऑक्सीजन ग्रहण कर CO2 छोड़ते हैं और दिन में CO2 ग्रहण कर O2 बाहर निकालते हैं ।

इस प्रकार ऑक्सीजन पौधों में श्वसन और प्रकाश संश्लेषण क्रियाओं में महत्त्वपूर्ण कार्य करती है ।


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पौधों में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम (NPK) इत्यादि पोषक तत्वों के कार्य, कमी के लक्षण एवं महत्व लिखिए?

1. पौधों में नाइट्रोजन के कार्य, कमी के लक्षण एवं महत्व लिखिए?


पौधों में नाइट्रोजन के दैहिक कार्य निम्नलिखित हैं -

  • नाइट्रोजन क्लोरोफिल का एक प्रमुख अवयव होता है । नाइट्रोजन से पत्तियों का रंग में गहरा हरा होकर पौधों में क्लोरोफिल की मात्रा में वृद्धि होती जाती है । इससे प्रकाश संश्लेषण द्वारा कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण अधिक होता है ।
  • नाइट्रोजन से कृषि सम्बन्धी पौधों के भूसा और पुआल में वृद्धि हो जाती है । इससे कुछ सीमा तक फल और गन्ने के वजन में वृद्धि होती है ।
  • नाइट्रोजन से वनस्पति की वृद्धि अधिक होती है । इससे पौधे लम्बे हो जाते हैं जिससे फसल के गिरने का भय रहता है । नाइट्रोजन की अधिकता में अनाज की अपेक्षा भूसे का अनुपात बढ़ जाता है ।
  • नाइट्रोजन के उपयोग द्वारा पत्तियाँ अधिक बढ़ने से पौधों की पूर्ण वृद्धि अर्थात् फसल के तैयार होने में अधिक समय लगता है । इसे पूर्ण वृद्धि अवरोध कहते हैं ।
  • नाइट्रोजन से पौधों की जल धारण शक्ति बढ़ जाती है और पौधों द्वारा कैलशियम के शोषण की शक्ति कम हो जाती है ।
  • नाइट्रोजन से स्टार्च के जल अपघटन में विभिन्न प्रकार की शर्कराओं के कार्बनिक अम्लों में परिवर्तित होने में सहायता मिलती है ।
  • नाइट्रोजन पौधों में नियन्त्रक (regulator) का कार्य करती है । इससे फॉस्फोरस तथा पोटेशियम का विनिमय भी सन्तुलित रहता है ।


पौधों में नत्रजन की कमी के लक्षण -

  • पौधों की पत्तियों का रंग पीला अथवा हल्का हरा हो जाता है ।
  • पौधों की वृद्धि ठीक प्रकार न होकर या रुककर पैदावार कम हो जाती है ।
  • विशेषकर दाने वाली फसलों में पौधों की निचली पत्तियाँ सूखना आरम्भ हो जाती हैं और फिर धीरे - धीरे ऊपर की पत्तियाँ भी सूख जाती हैं ।
  • गेहूँ तथा अन्य टिलर बनाने वाली फसलों में टिलर कम बनते हैं ।
  • फलों वाले वृक्षों में फल प्रायः पकने से पूर्व ही गिर जाते हैं और फलों का आकार छोटा रहता है ।
  • हरी पत्तियों के बीच - बीच में सफेद धब्बे पड़ जाते हैं ।
  • नाइट्रोजन की अधिक कमी में पत्तियों का रंग अधिक सफेद हो जाता है और कभी - कभी पौधों की पत्तियाँ जल जाती हैं ।


पौधों में नाइट्रोजन का महत्व -

  • नाइट्रोजन को अपनी जड़ों द्वारा अमोनियम आयन्स (NH) तथा पौधे मृदा नाइट्रेट आयन्स (NOJ) के रूप में ग्रहण करते हैं । सम्भवतः नाइट्रेट आयन्स पौधों में अमोनियम आयन्स में अपचयित हो जाते हैं । पेड़ - पौधों के पत्तों में इन अमोनियम आयन्स और प्रकाश संश्लेषण द्वारा उत्पन्न कार्बोहाइड्रेट्स के संयोग से ऐमीनो अम्ल और प्रोटीन बनते हैं । प्रोटीन द्वारा प्रोटोप्लाज्म की उत्पत्ति होती है जो जीव कोशिका (living cell) का अंग है और जिसकी अनुपस्थिति में पौधे जीवित नहीं रह सकते । इस प्रकार नाइट्रोजन प्रोटीन तथा प्रोटोप्लाज्म का प्रमुख अवयव होने के कारण पौधे की वृद्धि के लिए अत्यन्त आवश्यक है ।
  • प्रोटीन उत्पादक तत्त्व होने के कारण नाइट्रोजन से पौधों की पत्तियाँ बढ़ती हैं अधिक नाइट्रोजन के व्यवहार से और मृदा में अधिक नाइट्रोजन होने के कारण पौधों की पत्तियों की कोशिका दीवारें पतली हो जाती हैं जिससे पत्तियों में कीड़े तथा फफूँदी लग जाती हैं । नाइट्रोजन कम होने से पत्तियों की कोशिकाएँ छोटी होती हैं ।
  • नाइट्रोजन द्वारा पत्तियों का क्षेत्रफल बढ़ने से जल का वाष्पोत्सर्जन (transpiration) बढ़ जाता है । इससे यह सिद्ध होता है कि मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होने से पौधों के लिए जल की आवश्यकता बढ़ जाती है । अतः मृदा में खाद के रूप में अधिक नाइट्रोजन देते समय मृदा की सिंचाई आवश्यक है अन्यथा पौधे नष्ट हो जाएँगे ।


पौधों में नत्रजन के आधिक्य के लक्षण (toxic effects) -

  • पौधों में कोमलता आकर तने कमजोर हो जाते हैं जिससे थोड़ी - सी हवा चलने पर फसल गिर जाती है ।
  • पौधों में वानस्पतिक वृद्धि होकर फसल देर में पक कर तैयार होती है ।
  • गेहूँ आदि में दानों की अपेक्षा भूसा अधिक हो जाता है ।
  • गन्ने की फसल में शक्कर की मात्रा कम हो जाती है ।
  • आलू तथा अन्य फसलों में पत्तियों की वृद्धि अधिक होकर फसल का उत्पादन कम हो जाता है ।
  • दाने और फल वाली फसलों में उत्पादन की किस्म गिर जाती है ।
  • पौधों की दीवारें पतली होने के कारण कोहरे और खुश्की से बहुत हानि होती है ।
  • कोमल पौधों पर कीड़े - मकोड़ों का आक्रमण भी शीघ्र तथा अधिक होता है ।
  • फसलों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है, कार्बोहाइड्रेट तथा खनिज पदार्थों की मात्रा कम हो जाती है ।
  • सब्जियों तथा फलों में रखने का गुण कम हो जाने से इन्हें अधिक समय तक नहीं रखा जा सकता ।


2. पौधों में फॉस्फोरस के कार्य, कमी के लक्षण एवं महत्व लिखिए?


पौधों में फॉस्फोरस के दैहिक कार्य निम्नलिखित हैं -

  • फॉस्फोरस न्यूक्लियो प्रोटीन, न्यूक्लीक अम्ल, फायटिन (phytin) तथा फॉस्पोलिपिड्स का मुख्य अवयव होता है ।
  • यह फलीदार फसलों की जड़ों में स्थित ग्रनथियों की संख्या तथा आकार में वृद्धि करता है जिससे वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण अधिक होता है ।
  • फल वाले वृक्षों और अन्य पौधों में जहाँ फल अधिक नहीं लगते और केवल पत्तियाँ फैलने लगती हैं, फॉस्फेटयुक्त खाद देने से फल और बीज अधिक उत्पन्न होते हैं ।
  • फॉस्फेट की उपस्थिति में पराग सेचन (pollination) अच्छा होता है जो फसल की मात्रा एवं गुणों को प्रभावित करता है । इससे भूसा और तना मजबूत हो जाते हैं ।
  • यह ऊर्जा के रूपान्तरण में एक महत्त्वपूर्ण कार्य करता है । यह पौधों में वसा तथा कार्बोहाइड्रेट्स के परपाचन (assimilation) के लिए आवश्यक है ।
  • अकार्बनिक फॉस्फेट पौधों के रस में घुलकर उभयप्रतिरोधी (buffers) का कार्य करते हैं ।
  • जाइमेज एन्जाइम के लिए फॉस्फेट कोएन्जाइम के रूप में कार्य कर रेडॉक्स अर्थात् ऑक्सीकरण - अपचयन (cxidation - reduction) क्रियाओं में सहायता करते हैं ।
  • यह पौधों द्वारा पोटेशियम तथा अन्य तत्त्वों ग्रहण करने में सहायक होता है ।


पौधों में फॉस्फोरस की कमी के लक्षण -

  • अनाज वाली फसलों की पत्तियों का रंग भूरा - हरा (greyish green) हो जाता है ।
  • कभी - कभी निचली पत्तियाँ सूखने लगती हैं ।
  • पौधों की वृद्धि रुक जाती है ।
  • पौधों के तने निर्बल एवं पतले हो जाते हैं ।
  • पौधों की जड़ों की वृद्धि एवं विकास कम हो जाता है ।
  • फसल देर से पकती है और दाने छोटे व कम बनते हैं ।
  • फलों, दानों और बीजों की उपज में पर्याप्त कमी हो जाती है ।


पौधों में फॉस्फोरस का महत्व -

  • फॉस्फोरस से फल और बीज शीघ्र बनते हैं । इससे पौधों और फलों में पूर्ण वृद्धि कम हो जाती है अर्थात् फसल शीघ्र पक जाती है । फॉस्फोरस का यह लक्षण नाइट्रोजन के लक्षण के विपरीत होता है । यही कारण है कि यदि मृदा में नाइट्रोजन खाद दी जाती है तो उसमें फॉस्फोरस की आवश्यकता होती है ।
  • फॉस्फेट कोशिका वृद्धि में सहायता पहुँचाता है । अतः फॉस्फेट के प्रयोग से मृदा में पौधों की जड़ें बहुत फैलती हैं । फॉस्फेट की यह क्रिया कृषि में बहुत लाभकारी है । पानी की कमी वाले खेतों में जड़ों के फैलने से पौधों को पानी अधिक मिलने लगता है । चिकनी (भारी) मृदा जिसमें जड़े बहुत नहीं फैलती, फॉस्फेट जड़ के फैलने में सहायक होता है ।


3. पौधों में पोटेशियम के कार्य, कमी के लक्षण एवं महत्व लिखिए?


पौधों में पोटेशियम के दैहिक कार्य निम्नलिखित हैं -

  • पोटेशियम से पौधों के पत्ते स्वस्थ होते हैं और उनमें होने वाली रासायनिक क्रियाएँ अत्यन्त तीव्र गति से होती हैं ।
  • पोटेशियम के रहने से पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट्स तथा प्रोटीन अधिक उत्पन्न होते हैं ।
  • पोटेशियम से प्रोटोप्लाज्म की भौतिक अवस्था में उन्नति होती है और उसमें श्लेषीय अविरोध (gelatinous consistency) आ जाता है ।
  • नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस की उपस्थिति में बीज के देरी या शीघ्रता से पकने के स्वभाव को पोटेशियम सन्तुलित करता है ।
  • पोटेशियम की उपस्थिति में पौधों में रोग उत्पादक सूक्ष्म जीवाणुओं के आक्रमण जलवायु तथा भूमि की कुदशाओं का सामना करने की रोधक शक्ति बढ़ जाती है ।
  • यह कोशिकाओं में विभाजन तथा निर्माण में सहायता करता है ।
  • पोटाश के प्रभाव से गल्ले वाली (cereals) और घास - पात वाली फसलों के तने भूसा तथा डंठल प्रबल एवं कठोर बनते हैं जिससे फसल के गिरने का भय नहीं रहता है ।
  • पोटेशियम लोहे के वाहक (Iron carrier) के रूप में अनेक प्रकार की ऑक्सीकरण - अपचयन अभिक्रियाओं में सहायक होता है ।
  • यह क्लोरोफिल के विकास में सहायक होता है । यह तेल, वसा और ऐलब्युमिनॉयड में नहीं पाया जाता परन्तु इनके संश्लेषण में सहायता देता है ।


पौधों में पोटेशियम की कमी के लक्षण -

  • पौधों की पत्तियों के सिरे समय से पहले मुरझाकर पीले पड़ जाते हैं ।
  • टिलर पर बालियाँ नहीं आती और दानों का विकास नहीं हो पाता ।
  • हरी सब्जियों तथा फलों की गुणवत्ता पर दुष्प्रभाव पड़ता है ।
  • प्रकाश - संश्लेषण में कमी हो जाती है और मुक्त स्टार्च तथा शर्करा का निर्माण होता है ।
  • प्रोटीन उपापचय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और मुक्त ऐमीनो अम्लों में वृद्धि होती है ।
  • पौधे निर्बल रहते हैं और उनकी अल्प वृद्धि होती है।
  • नींबू वर्गीय पेड़ों में फूल आने के समय पत्तियाँ अत्यधिक झड़ती हैं, कोपलें तथा नयी पत्तियाँ कड़ी होने से पूर्व ही झड़ जाती हैं ।


पौधों में पोटेशियम का महत्व -

  • अधिक पोटेशियम वाली मृदाओं में उपजने वाले पौधे यथेष्ट जल न रहने के कारण सूखते नहीं हैं । इससे यह पता चलता है कि इन पौधों की पत्तियाँ जल उत्स्वेदन (transpiration ) क्रिया द्वारा अधिक जल वाष्प के रूप में पृथक नहीं करतीं । अतः मृदा में पोटाश के रहने से पौधे जल लेने में मितव्ययिता का परिचय देते हैं ।
  • पोटाश अधिक होने से प्रोटोप्लाज्म जो पौधों की कोशिकाओं में कोलॉइडी अवस्था में रहता है, जल को सुगमतापूर्वक पृथक नहीं कर सकता । यही कारण है कि जल पौधों में रह जाता है और पौधों को जल की आवश्यकता अधिक नहीं होती ।


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आवश्यक पोषक तत्वों के पौधों में कार्य, कमी के लक्षण एवं महत्व लिखिए?


पौधों में कैल्सियम के कार्य, कमी के लक्षण एवं महत्व लिखिए?


पौधों में कैल्सियम के दैहिक कार्य निम्नलिखित हैं -

  • यह पौधों की कोशिकाओं की दीवारों के निर्माण में आवश्यक है ।
  • यह पौधों के मूल रोमों के विकास में सहायता करता है जिससे पौधे की पोषक ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है ।
  • यह फलीदार पौधों में पर्याप्त मात्रा में मिलता है और प्रोटीन के संश्लेषण में सहायता देता है ।
  • यह कार्बोहाइड्रेट के स्थानान्तरण में सहायक है ।


पौधों में कैल्सियम की कमी के प्रमुख लक्षण -

  • नयी पत्तियों का आकार छोटा और विकृत हो जाता है । इसके किनारे कटे - फटे होते हैं ।
  • जड़ों का विकास सुचारू रूप से नहीं हो पाता ।
  • ट्यूबर (मूलों) का आकार छोटा और इनकी संख्या कम हो जाती है ।
  • आलू के पौधे झाड़ी की भाँति हो जाते हैं ।
  • दलहनी फसलों में जड़ों में कम और छोटी ग्रन्थियाँ उत्पन्न होती हैं ।
  • नींबू जाति के पेड़ों की पत्तियों का हरा रंग उनके किनारों की ओर से फीका पड़ना आरम्भ हो जाता है ।


पौधों में कैल्सियम का महत्व -

  • कैल्सियम पौधों के लिए अत्यावश्यक है । पौधों की जड़ें कैल्सियम कार्बोनेट और कैल्सियम सल्फेट से पौधों के पोषण के लिए कैल्सियम सुगमतापूर्वक ग्रहण कर लेती हैं ।
  • यह पौधों के मेटाबोलिज्म में स्वतन्त्र हुए कार्बनिक अम्लों को उदासीन करता है । इस प्रकार विषैले कार्बनिक अम्ल अघुलनशील कैल्सियम लवणों के रूप में पृथक हो जाते हैं ।


पौधों में मैगनीशियम के कार्य, महत्व एवं कमी के लक्षण लिखिए?


पौधों में मैगनीशियम के दैहिक कार्य निम्नलिखित हैं -

  • मैगनीशियम क्लोरोफिल का एक अवयव है । अतः यह पादप वृद्धि के लिए एक अनिवार्य तत्त्व है ।
  • इनके बिना कोई पौधा हरा नहीं रह सकता । मृदा में मैगनीशियम न रहने के कारण पौधे पीले पड़ जाते हैं ।
  • क्लोरोफिल का प्रधान अंग होने के कारण मैगनीशियम वायु से CO2 लेकर पत्तों द्वारा शर्करा के निर्माण में सहायता करता है ।
  • यह बीजों में फॉस्फोरस के स्थानान्तरण में महत्त्वपूर्ण कार्य करता है ।
  • यह पौधों की कोशिकाओं में तेलों और न्यूक्लिओप्रोटीन के संश्लेषण में सहयोग देता है ।


पौधों में मैगनीशियम की कमी के प्रमुख लक्षण -

  • पत्तियाँ व शिराएँ लाल हो जाती हैं । पत्तियाँ अन्दर की ओर मुड़कर अन्त में नीचे गिर जाती हैं ।
  • पेड़ों से फल गिरने लगते हैं ।
  • पौधों में हरिमाहीनता (chlorosis) उत्पन्न हो जाती है ।
  • नींबू जाति के पौधों की पत्तियाँ पीली धब्बेदार हो जाती हैं ।
  • आलू के पौधों में पत्तियाँ खस्ता तथा शीघ्र टूटने वाली हो जाती हैं ।


पौधों में गन्धक (सल्फर) के कार्य, महत्व एवं कमी के लक्षण लिखिए?

पौधे मृदा से गन्धक सल्फेट के रूप में ग्रहण करते हैं । सल्फेट के पानी में घुलनशील होने के कारण अधिक वर्षा वाले प्रदेशों की मृदा में गन्धक की कमी रहती है ।

पौधे के आवश्यक पोषक तत्व क्या है?

मुख्य पोषक तत्व- नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश। गौण पोषक तत्व- कैलशियम, मैग्नीशियम एवं गन्धक। सूक्ष्म पोषक तत्व- लोहा, जिंक, कापर, मैग्नीज, मालिब्डेनम, बोरान एवं क्लोरीन। पौधों में आवश्यक पोषक तत्व एवं उनके कार्य 👉🏻 पौधों के सामान्य विकास एवं वृद्धि हेतु कुल 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।

पौधों के लिए कितने पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है?

पौधों के विकास के लिए आवश्यक 17 आवश्यक पोषक तत्व निम्नलिखित हैं:.
हाइड्रोजन (H).
कार्बन (C).
नाइट्रोजन (N).
फॉस्फोरस (P).
पोटेशियम (K).
सल्फर (S).
कैल्शियम (Ca).
मैग्नीशियम (Mg).

मुख्य पोषक तत्व कौन कौन से हैं?

भोजन में मुख्य पोषक तत्व हैं - कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन तथा खनिज लवण | इसके अलावा हमारे भोजन में आहारी रेशे ( रुक्षांश) और जल भी शामिल हैं

पोषक तत्व किसे कहते हैं कितने प्रकार के होते हैं?

पोषक तत्व की परिभाषा –.
पोषक तत्व की परिभाषा – ऐसे पदार्थ या तत्व जिनकी आवश्यकता जीवो की अनेक प्रकार की दैहिक जैविक कार्यों के संचालन के लिए होते हैं, पोषक तत्व कहलाते हैं। ... .
एक व्यस्क व्यक्ति में 20 से 30 % ऊर्जा वसा से ही प्राप्त होती है। ... .
यह कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का बना होता है।.