भील भील मध्य भारत की एक जनजाति का नाम है। भील जनजाति भारत की सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई जनजाति है। प्राचीन समय में यह लोग मिश्र से लेकर लंका तक फैले हुए थे [5]। भील जनजाति के लोग भील भाषा बोलते है।[6] भील जनजाति को " भारत का बहादुर धनुष पुरुष " कहा जाता है[7]भारत के प्राचीनतम जनसमूहों में से एक भीलों की गणना पुरातन काल में राजवंशों में की जाती थी, जो विहिल वंश के नाम से प्रसिद्ध था। इस वंश का शासन पहाड़ी इलाकों में था[8] ।भील शासकों का शासन मुख्यत मालवा[9],दक्षिण राजस्थान[10],गुजरात [11]ओडिशा[12]और महाराष्ट्र[13] में था । भील गुजरात, मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान में एक अनुसूचित जनजाति है। अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के खादिम भी भील पूर्वजों के वंशज हैं।[14] [15] भील त्रिपुरा और पाकिस्तान के सिन्ध के थारपरकर जिले में भी बसे हुये हैं। भील जनजाति भारत समेत पाकिस्तान तक विस्तृत रूप से फैली हुई है। प्राचीन समय में भील जनजाति का शासन शिवी जनपद जिसे वर्तमान में मेवाड़ कहते है , स्थापित था , जब सिकंदर ने मिनांडर के जरिए भारत पर आक्रमण किया तब पंजाब और शिवी जनपद के भील शासकों ने विश्वविजेता सिकंदर को भारत में प्रवेश नहीं करने दिया , सिकंदर को वापस जाना पड़ा। मेवाड़ और मेयो कॉलेज के राज चिन्ह पर भील योद्धा का चित्र अंकित है। भील इतिहास[संपादित करें]
भीलों का अपना एक लम्बा इतिहास रहा है। कुछ इतिहासकारो ने भीलों को द्रविड़ों से पहले का भारतीय निवासी माना तो कुछ ने भीलों को द्रविड़ ही माना है। भील को ही निषाद , व्याघ्र , किरात , शबर और पुलिंद कहा गया है । आज भी पूरे हिमालय में भिल्ल महापुरुषों के स्मारक बने हुए है । भिलंगना क्षेत्र में भील्लेश्वर महादेव मंदिर भीलों से ही संबंधित है [16]। थारू जनजाति के लोगों का दावा है कि मातृ - पक्ष से वे राजपूत उत्पत्ति के हैं और पितृ - पक्ष से भील है [17] मध्यकाल में भील राजाओं की स्वतंत्र सत्ता थी। करीब 11 वी सदी तक भील राजाओं का शासन विस्तृत क्षेत्र में फैला था। इतिहास में अन्य जनजातियों जैसे कि मीना आदि से इनके अच्छे संबंध रहे है। 6 ठी शताब्दी में एक शक्तिशाली भील राजा का पराक्रम देखने को मिलता है जहां मालवा के भील राजा हाथी पर सवार होकर विंध्य क्षेत्र से होकर युद्ध करने जाते हैं। जब सिकंदर ने मिनांडर के जरिए भारत पर हमला किया इस दौरान शिवी जनपद का शासन भील राजाओं के हाथो में था। भील पूजा और हिन्दू पूजा में काफी समानतऐ मिलती ।[18] मौर्यकाल में पश्चिम और मध्य भारत में भील जनजाति के अंतर्गत 4 नाग राजा , 7 गर्धभिल भील राजा और 13 पुष्प मित्र राजाओं की स्वतंत्र सत्ता थी [19]। इडर में एक शक्तिशाली भील राजा हुए जिनका नाम राजा मांडलिक रहा । राजा मांडलिक ने ही गुहिल वंश अथवा मेवाड़ के प्रथम संस्थापक राजा गुहादित्य को अपने इडर राज्य मे रखकर संरक्षण किया । गुहादित्य राजा मांडलिक के राजमहल मे रहता और भील बालको के साथ घुड़सवारी करता , राजा मांडलिक ने गुहादित्य को कुछ जमीन और जंगल दिए , आगे चलकर वही बालक गुहादित्य इडर साम्राज्य का राजा बना । गुहिलवंश की चौथी पीढ़ी के शासक नागादित्य का व्यवहार भील समुदाय के साथ अच्छा नहीं था इसी कारण भीलों और नागादित्य के बीच युद्ध हुआ और भीलों ने इडर पर पुनः अपना अधिकार कर लिया । बप्पा रावल का लालन - पालन भील समुदाय ने किया और बप्पा को रावल की उपाधि भील समुदाय ने ही दी थी । बप्पारावल ने भीलों से सहयोग पाकर अरबों से युद्ध किया । खानवा के युद्ध में भील अपनी आखरी सांस तक युद्ध करते रहे । मेवाड़ और मुगल काल के दौरान भीलों को रावत , भोमिया और जागीरदार के पद प्राप्त थे यह लोग आम लोगो से भोलई नामक कर वसूला करते थे [20] । भोमट के भील होलांकी गोत्र लगते थे , राणा दयालदास , राणा हरपाल भील भोमट के राजा थे[21] । नाहेसर के भील सरदार नरासिमदास भील थे जो रावत लगाते थे [22] बाबर और अकबर के खिलाफ मेवाड़ राजपूतो के साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध करने वाले भील ही थे ।
भील लोग आम जनता की सुरक्षा करते थे और यह भोलाई नामक कर वसूलते थे । शिसोदा के भील राजा रोहितास्व भील रहे थे । [23] अध्याय प्रथम वागड़ के आदिवासी: ऩररचय एवंअवधारणा - Shodhganga
सिंधु घाटी सभ्यता[संपादित करें]सिंघु घाटी सभ्यता पर हो रहे शोध के दौरान वह से भगवान शिव और नाग के पूजा करने के प्रमाण मिले है साथ ही साथ बैल ,सूअर ,मछली , गरुड़ आदि के साथ - साथ प्रकृति पूजा के प्रमाण मिले है उस आधार पर शोधकर्ताओं के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता के लोग भील प्रजाति के ही थे। भील प्रजाति अपने आप में एक विस्तृत शब्द है जिसमें निषाद , शबर , किरात , पुलिंद , यक्ष , नाग और कोल , आदि सम्मिलित है । इतिहासकारों ने माना कि करोड़ों वर्ष पूर्व भील प्रजाति के लोग यही पर वानर के रूप जन्मे और निरंतर विकासक्रम के बाद वे होमो सेपियन बने , धीरे - धीरे यही लोग एक जगह बस गए और गणराज्य स्थापित किया , इनके शासक हुआ करते थे , सरदार के आज्ञा के बगैर कोई कुछ नहीं कर सकता था । भील प्रजाति के लोग धनुष का उपयोग करते थे , समय के साथ उन्होंने नाव चलना सीख ली और वे हिंदेशिया की तरफ आने वाले पहले लोग थे , ये भील प्रजाति के लोग मिश्र से लेकर लंका तक फैले हुए थे , इन्होंने ही सिंधु घाटी सभ्यता बसाई , जब फारस , इराक में बाढ आई तब वह के लोग भारत की तरफ आए , यहां के मूलनिवासियों ने उनकी सहायता करी , लेकिन उन लोगो ने भारत पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया , भील प्रजाति के शासकों के साथ छल - कपट कर उन्हें धोखे से हरा दिया फिर यही भील प्रजाति के लोग धीरे - धीरे बिखर गए [25] । भील शब्दावली व अन्य विशेषताएं[संपादित करें]शब्दावली[संपादित करें]भील जनजाति की अपने खुद की भाषा है जिसका Iso code -ISO 639-3 हैं।
विशेषताएं[संपादित करें]
मुद्दे[संपादित करें]भीलो के प्रमुख मुद्दे
भील आन्दोलन[संपादित करें]1632 का भील विद्रोह = 1632 के समय भारत में मुगल सत्ता स्थापित थी , उस दौरान प्रमुख रूप से भीलों ने मुघलों का विद्रोह किया । 1643 = 1632 के बाद भील और गोंड जनजाति ने मिलकर मुगलों के खिलाफ 1643 में विद्रोह किया [29]।
1819 में पुनः विद्रोह कर भीलों ने पहाड़ी चौकियों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। अंग्रेजों ने भील विद्रोह को कुचलने के लिए सतमाला पहाड़ी क्षेत्र के कुछ नेताओं को पकड़ कर फाँसी दे दी। किंतु जन सामान्य की भीलों के प्रति सहानुभूति थी। इस तरह उनका दमन नहीं किया जा सका। 1820 में भील सरदार दशरथ ने कम्पनी के विरुद्ध उपद्रव शुरू कर दिया। पिण्डारी सरदार शेख दुल्ला ने इस विद्रोह में भीलों का साथ दिया। मेजर मोटिन को इस उपद्रव को दबाने के लिए नियुक्त किया गया, उसकी कठोर कार्रवाई से कुछ भील सरदारों ने आत्मसमर्पण कर दिया। 1822 में भील नेता हिरिया भील ने लूट-पाट द्वारा आतंक मचाना शुरू किया, अत: 1823 में कर्नल राबिन्सन को विद्रोह का दमन करने के लिए नियुक्त किया। उसने बस्तियों में आग लगवा दी और लोगों को पकड़-पकड़ कर क्रूरता से मारा। 1824 में मराठा सरदार त्रियंबक के भतीजे गोड़ा जी दंगलिया ने सतारा के राजा को बगलाना के भीलों के सहयोग से मराठा राज्य की पुनर्स्थापना के लिए आह्वान किया। भीलों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया एवं अंग्रेज सेना से भिड़ गये तथा कम्पनी सेना को हराकर मुरलीहर के पहाड़ी किले पर अधिकार कर लिया। परंतु कम्पनी की बड़ी बटालियन आने पर भीलों को पहाड़ी इलाकों में जाकर शरण लेनी पड़ी। तथापि भीलों ने हार नहीं मानी और पेडिया, बून्दी, सुतवा आदि भील सरदार अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करते रहे। कहा गया है कि लेफ्टिनेंट आउट्रम, कैप्टेन रिगबी एवं ओवान्स ने समझा बुझा कर तथा भेद नीति द्वारा विद्रोह को दबाने का प्रयास किया। आउट्रम के प्रयासों से अनेक भील अंग्रेज सेना में भर्ती हो गये और कुछ शांतिपूर्वक ढंग से खेती करने लगे। उन्हें तकाबी ऋण दिलवाने का आश्वासन दिया।
निवास क्षेत्र[संपादित करें]भील शब्द की उत्पत्ति "वील" से हुई है जिसका द्रविड़ भाषा में अर्थ होता हैं "धनुष"। भारत[संपादित करें]भील भारत के बड़े क्षेत्र में बसे हुए है , भीलों की अधिक आबादी मध्यप्रदेश , राजस्थान , गुजरात और महाराष्ट्र में है । भील आंध्र प्रदेश , कर्नाटक , त्रिपुरा , पश्चिम बंगाल और उड़ीसा समेत कई राज्यो में बसे है । बंगाल[संपादित करें]बंगाल के मूलनिवासी भील , संथाल , मुंडा और शबर जनजातियां है । यही आदिवासी लोग सबसे पहले बंगाल प्रांत में बसे थे वहीं भील राजाओं ने बंगाल में अपना शासन स्थापित किया [30] । पाकिस्तान[संपादित करें]पाकिस्तान में करीब 40 लाख भील निवास करते है। पाकिस्तान में जबरन भिलों को इस्लाम धर्म में परिवर्तित किया जा रहा है । कृश्ण भील पाकिस्तान में प्रमुख आदिवासी हिन्दू नेता है । उप-विभाग[संपादित करें]भील कई प्रकार के कुख्यात क्षेत्रीय विभाजनों में विभाजित हैं, जिनमें कई कुलों और वंशों की संख्या है। इतिहास में भील जनजाति को कई नाम से संबोधित किया है जैसे किरात कोल शबर और पुलिंद आदि । भील जनजाति की उपजातियां व भील प्रजाति से संबंधित जातियां
उल्लेखनीय लोग[संपादित करें]पौराणिक और धार्मिक[संपादित करें]
क्रांतिकारी[संपादित करें]
मराठो ने सहयोग मांगा ।
शिक्षा का क्षेत्र[संपादित करें]
कला प्रेमी[संपादित करें]
मध्यप्रदेश
राजनीति / नेता[संपादित करें]
खेल क्षेत्र[संपादित करें]भील राजवंश[संपादित करें]
उन्हीं के वंश में जन्मे एक भील राजा ने 730 ईसा पूर्व के दौरान दिल्ली के शासक को चुनौती दी , इस प्रकार मालवा उस समय एक शक्ति के रूप में विद्यमान था। [47]।
गुजरात के दंता नगर की स्थापना की थी [54]।
लखिया देवी था उन्हीं के नाम के आधार पर उनकी रियासत का नाम लखैयपुर रखा गया । यह किला गाव के दक्षिण पश्चिम दिशा में है यही मुहाने नदी किनारे जलेश्वर मंदिर स्थित है ,जन्हा ज्योतिर्लिंग हमेशा पानी में डूबा रहता है । इस विशाल किले से एक सुरंग, नदी के नजदीक बने तालाब तक जाती है जनहा रानी और अन्य स्त्रियां स्नान के लिए जाती थी ।
धार्मिक स्थल[संपादित करें]
संस्कृति[संपादित करें]भीलों के पास समृद्ध और अनोखी संस्कृति है। भील अपनी पिथौरा पेंटिंग के लिए जाना जाता है।[76] घूमर भील जनजाति का पारंपरिक लोक नृत्य है।[77][78] घूमर नारीत्व का प्रतीक है। युवा लड़कियां इस नृत्य में भाग लेती हैं और घोषणा करती हैं कि वे महिलाओं के जूते में कदम रख रही हैं। कला[संपादित करें]भील पेंटिंग को भरने के रूप में बहु-रंगीन डॉट्स के उपयोग की विशेषता है। भूरी बाई पहली भील कलाकार थीं, जिन्होंने रेडीमेड रंगों और कागजों का उपयोग किया था। अन्य ज्ञात भील कलाकारों में लाडो बाई , शेर सिंह, राम सिंह और डब्बू बारिया शामिल हैं।[79] भोजन[संपादित करें]भीलों के मुख्य खाद्य पदार्थ मक्का , प्याज , लहसुन और मिर्च हैं जो वे अपने छोटे खेतों में खेती करते हैं। वे स्थानीय जंगलों से फल और सब्जियां एकत्र करते हैं। त्योहारों और अन्य विशेष अवसरों पर ही गेहूं और चावल का उपयोग किया जाता है। वे स्व-निर्मित धनुष और तीर, तलवार, चाकू, गोफन, भाला, कुल्हाड़ी इत्यादि अपने साथ आत्मरक्षा के लिए हथियार के रूप में रखते हैं और जंगली जीवों का शिकार करते हैं। वे महुआ ( मधुका लोंगिफोलिया ) के फूल से उनके द्वारा आसुत शराब का उपयोग करते हैं। त्यौहारों के अवसर पर पकवानों से भरपूर विभिन्न प्रकार की चीजें तैयार की जाती हैं, यानी मक्का, गेहूं, जौ, माल्ट और चावल। भील पारंपरिक रूप से सर्वाहारी होते हैं।[80] आस्था और उपासना[संपादित करें]भीलों के प्रत्येक गाँव का अपना स्थानीय देवता ( ग्रामदेव ) होते है और परिवारों के पास भी उनके जतीदेव, कुलदेव और कुलदेवी (घर में रहने वाले देवता) होते हैं जो कि पत्थरों के प्रतीक हैं। 'भाटी देव' और 'भीलट देव' उनके नाग-देवता हैं। 'बाबा देव' उनके ग्राम देवता हैं। बाबा देव का प्रमुख स्थान झाबुआ जिले के ग्राम समोई में एक पहाड़ी पर है।भील बड़े अंधविश्वासी होते है। करकुलिया देव उनके फसल देवता हैं, गोपाल देव उनके देहाती देवता हैं, बाग देव उनके शेर भगवान हैं, भैरव देव उनके कुत्ते भगवान हैं। उनके कुछ अन्य देवता हैं इंद्र देव, बड़ा देव, महादेव, तेजाजी, लोथा माई, टेकमा, ओर्का चिचमा और काजल देव। उन्हें अपने शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक उपचारों के लिए अंधविश्वासों और भोपों पर अत्यधिक विश्वास है।[80] त्यौहार[संपादित करें]कई त्यौहार हैं, अर्थात। भीलों द्वारा मनाई जाने वाली राखी,दिवाली,होली । वे कुछ पारंपरिक त्योहार भी मनाते हैं। अखातीज, दीवा( हरियाली अमावस)नवमी, हवन माता की चालवानी, सावन माता का जतरा, दीवासा, नवाई, भगोरिया, गल, गर, धोबी, संजा, इंदल, दोहा आदि जोशीले उत्साह और नैतिकता के साथ। कुछ त्योहारों के दौरान जिलों के विभिन्न स्थानों पर कई आदिवासी मेले लगते हैं। नवरात्रि मेला, भगोरिया मेला (होली के त्योहार के दौरान) आदि।[80] नृत्य और उत्सव[संपादित करें]उनके मनोरंजन का मुख्य साधन लोक गीत और नृत्य हैं। महिलाएं जन्म उत्सव पर नृत्य करती हैं, पारंपरिक भोली शैली में कुछ उत्सवों पर ढोल की थाप के साथ विवाह समारोह करती हैं। उनके नृत्यों में लाठी (कर्मचारी) नृत्य, गवरी/राई, गैर, द्विचकी, हाथीमना, घुमरा, ढोल नृत्य, विवाह नृत्य, होली नृत्य, युद्ध नृत्य, भगोरिया नृत्य, दीपावली नृत्य और शिकार नृत्य शामिल हैं। वाद्ययंत्रों में हारमोनियम , सारंगी , कुंडी, बाँसुरी , अपांग, खजरिया, तबला , जे हंझ , मंडल और थाली शामिल हैं। वे आम तौर पर स्थानीय उत्पादों से बने होते हैं।[80] भील लोकगीत[संपादित करें]1.सुवंटिया - (भील स्त्री द्वारा) 2.हमसीढ़ो- भील स्त्री व पुरूष द्वारा युगल रूप में किले[संपादित करें]
फिल्म और धारावाहिक[संपादित करें]
इन्हें देखे[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
राजस्थान में नील जनजाति कौन से जिले में निवास करती है?अनुसूचित क्षेत्र. भील जनजाति सर्वाधिक कौन से जिले में पाई जाती है?बाँसवाड़ा- राजस्थान में सर्वाधिक भील जनजाति वाला जिला बाँसवाड़ा है जिसमें भीलों की आबादी लगभग 13. 40 लाख है। 2. डूँगरपुर- बाँसवाड़ा जिले के बाद राजस्थान में जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा जिला डूँगरपुर है राजस्थान के डूँगरपुर जिले में भीलों की कुल जनसंख्या लगभग 6.87 लाख है।
राजस्थान की सबसे आदिम जनजाति कौन सी है?भील राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति है। भीलों के घरों को "कू" कहा जाता है। भीलों के घरों को टापरा भी कहा जाता है। भीलों की झोपडियों के समुह को "फला " कहते है।
राजस्थान में कुल कितनी जनजाति है?राजस्थान की अनुसूचित जनजातियां. |