रामवृक्ष बेनीपुरी जी को साहित्य के क्षेत्र में क्या कहा जाता है? - raamavrksh beneepuree jee ko saahity ke kshetr mein kya kaha jaata hai?

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रामवृक्ष बेनीपुरी जी को साहित्य के क्षेत्र में क्या कहा जाता है? - raamavrksh beneepuree jee ko saahity ke kshetr mein kya kaha jaata hai?

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क्रांतिकारी िवचारोंवाले कलम के निर्भीक योद्धा थे रामवृक्ष बेनीपुरी

श्री हिंदी पुस्तकालय सोहसराय के सभागार में रविवार को जिले के साहित्यकारों व समाजसेवियों द्वारा साहित्यकार हरिश्चंद्र प्रियदर्शी की अध्यक्षता में प्रख्यात क्रांतिकारी पत्रकार और साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी की 118वीं जयंती मनाई गई। जिसमें शहर के दर्जनों साहित्यकारों, समाजसेवियों तथा प्रबुद्ध लोगों ने हिस्सा लिया। मौके पर उपस्थित सभी लोगों ने सबसे पहले बेनीपुरी जी के चित्र पर माल्यार्पण व पुष्पांजलि अर्पित किया। इस मौके पर साहित्यकार हरिश्चंद्र प्रियदर्शी ने कहा कि रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जन्म मुजफफरपुर जिले के औराई प्रखंड के बेनीपुर गांव में हुआ था। इसीलिए उन्होंने अपना उपनाम ‘बेनीपुरी’ रखा था। रामवृक्ष बेनीपुरी की आत्मा में राष्ट्रीय भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। इसके कारण आजीवन वह चैन की सांस न ले सके। क्रांतिकारी रचनाओं के कारण कई बार बेनीपुरी जी को कारावास की सजा हुई थी।

वर्ष 1942 में अगस्त क्रांति आंदोलन के कारण उन्हें हजारीबाग जेल में रहना पड़ा था। कारावास में भी वह शांत नहीं बैठे थे। वे वहां भी आग भड़काने वाली रचनाएं लिखते रहते रहे। जब भी वे जेल से बाहर आते, उनके हाथ में कई ग्रन्थों की पाण्डुलिपियां अवश्य होती थी जो आज साहित्य की अमूल्य निधि बन गई है। उनकी अधिकतर रचनाएं जेल में ही लिखी गई। रामवृक्ष बेनीपुरी जी की रचनाओं में प्रमुख रूप से उपन्यास- पतितों के देश में, आम्रपाली, कहानी संग्रह- माटी की मूरतें, निबंध- चिता के फूल, लाल तारा, कैदी की प|ी, गेहूं और गुलाब, जंजीरें और दीवारें, नाटकों में- सीता का मन, संघमित्रा, अमर ज्योति, तथागत, शकुंतला, रामराज्य, नेत्रदान, गांवों के देवता, नया समाज, विजेता, बैजू मामा इत्यादि हैं। उन्होंने कहा कि बेनीपुरी जी ने बिहार की पत्रकारिता, बिहार के साहित्य और बिहार की राजनीति में अपना दबंग हस्ताक्षर अंकित किया। उन्होंने लहेरियासराय से बालक पत्रिका निकाला फिर युवक का संपादन किया। फिर नई धार और साहित्य का संपादन किया फिर जनता पत्र का संपादन कर अपनी पत्रकारिता की अमिट छाप कर ली। बेनीपुरी जी का दावा था कि उन्होंने राजनीति को जयप्रकाश तथा साहित्य को दिनकर दिया है। उनकी प्रेरणा पर गांधी मैदान की जनसभा में दिनकर जी ने जयप्रकाश नारायण पर अपनी कविता का पाठ किया।

साहित्यकार में बेनीपुरी जी की विशेष ख्याति
साहित्य प्रेमी राकेश बिहारी शर्मा ने अपने कहा कि पत्रकार और साहित्यकार के रूप में बेनीपुरीजी ने विशेष ख्याति अर्जित की थी। उन्होंने अनेकों पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। उनकी लेखनी बड़ी निर्भीक थी। उन्होंने इस कथन को अमान्य सिद्ध कर दिया था कि अच्छा पत्रकार अच्छा साहित्यकार नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि ‘कलम के जादूगर’ रामवृक्ष बेनीपुरी शराबबंदी के पुरजोर पक्षधर थे। बेनीपुरी जी को शराब के नाम से नफरत थी। उनका मानना था कि शराब समाज व परिवार खोखला बनाती है। यह नई पीढ़ी को गलत रास्ता दिखाती है। बेनीपुरी जी साहित्यकार को समाज-निर्माता मानते थे और इस नाते शराब पर केन्द्रित कोई भी रचना उन्हें स्वीकार नहीं थी। चाहे वह रचना कितने भी बड़े साहित्यकार की क्यों न हो। बेनीपुरी जी की शराब के खिलाफ सोच सार्वजनिक रूप से तब सामने आयी, जब डा. हरिवंश राय बच्चन ने मधुशाला लिखी थी। उस समय शराबबंदी के पक्षधर बेनीपुरी जी ने उनका जबर्दस्त विरोध किया था। बेनीपुरीजी ने जीवनियां, कहानी संग्रह, संस्मरण आदि विधाओं की लगभग 80 पुस्तकों की रचना की थी। बेनीपुरी जी 1957 में बिहार विधानसभा के सदस्य भी चुने गए थे। सादा जीवन और उच्च विचार के आदर्श पर चलते हुए उन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र में बहुत काम किया था। वे भारतीयता के सच्चे अनुयायी थे और सामाजिक भेदभावों पर विश्वास नहीं करते थे। वे केवल साहित्यकार नहीं थे, उनके भीतर केवल वही आग नहीं थी, जो कलम से निकल कर साहित्य बन जाती है। वे उस आग के भी धनी थे, जो राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों को जन्म देती है।

सामाजिकता से संबंधित नाटकों का किया मंचन
साहित्यकार डा. लक्ष्मी कांत सिंह ने कहा कि रामवृक्ष बेनीपुरी एक साहित्यकार के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी तथा बिहार विधानसभा के जनप्रतिनिधि भी रहे हैं। वे उपन्यास के साथ कथा-कहानी एवं कविता के अलावा राष्ट्रभक्ति तथा सामाजिक संदर्भ से संबंधित नाटकों का लेखन किया। इनकी कई लोकप्रिय नाटक काफी चर्चा में रही है। इस मौके पर साहित्यकार अरुण कुमार पटेल, शिक्षक सत्येंद्र प्रसाद, संजय पाण्डेय, साधना कुमारी सिन्हा, सुरेंद्र कुमार, सूर्य प्रकाश गुप्ता, अशोक कुमार सहित दर्जनों लोग उपस्थित थे।

श्री हिंदी पुस्तकालय सोहसराय के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में शामिल साहित्यकार।

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Rambriksh Benipuri ka jeevan Parichay : सदैव देशहित में लोगों के अंदर अपनी कृतियों के माध्यम से क्रांतिकारी भावना उत्पन्न करने वाले लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जीवन परिचय (Rambriksh Benipuri Biography in Hindi) यहां दिया गया है। मां भारती की सेवा ही तो उन्हें जेल जाना भी पड़ा; लेकिन कभी उन्होंने हार नहीं मानी अपने समय और ऊर्जा को कभी व्यर्थ नहीं जाने दिया। जेल में रहकर भी अनेकों ग्रंथों की रचना की और अपने क्रांतिकारी विचारों के माध्यम से लोगों को जागृत एवं प्रेरित किया।

हिंदी साहित्य के इतिहास में जब भी उत्तम भाषा के प्रयोग की बात की जाती है; तो रामवृक्ष बेनीपुरी जी का नाम उन चंद लेखकों में गिना जाता है; जिन्हें ‘भाषा का जादूगर’ कहा जाता है। रामवृक्ष बेनीपुरी जी के हिंदी साहित्य में योगदान के महत्व को इस प्रकार समझा जा सकता है, कि उनके के सम्मान में बिहार सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष ‘अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार’ दिया जाता है।

रामवृक्ष बेनीपुरी जी का परिचय (संक्षिप्त में)

रामवृक्ष बेनीपुरी जी को साहित्य के क्षेत्र में क्या कहा जाता है? - raamavrksh beneepuree jee ko saahity ke kshetr mein kya kaha jaata hai?

पूरा नाम रामवृक्ष बेनीपुरी
जन्म जन्म 1902 ई0, बेनीपुर (मुजफ्फरपुर)
मृत्यु सन 1968 ई0
भाषा संस्कृत, अंग्रेजी और उर्दू
प्रमुख कृतियां गेहूँ और गुलाब, पतितो के देश में, चिता के फूल, मील के पत्थर

रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जीवन परिचय (Biography of Rambriksh Benipuri in Hindi)

रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 1902 ई0 में बिहार स्थित मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गांव में हुआ था। इनके पिता श्री फूलवंत सिंह एक साधारण किसान थे। बचपन में ही इनके माता-पिता का निधन हो गया था और इनके पालन पोषण की जिम्मेदारी उनकी मौसी के हाथों में रही।

इनकी प्रारंभिक शिक्षा बेनीपुर में ही हुई। बाद में इनकी शिक्षा इनके ननिहाल में भी हुई। मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पूर्व ही सन 1920 ई0 में इन्होंने अध्ययन छोड़ दिया और महात्मा गांधी के नेतृत्व में प्रारंभ हुए असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। बाद में हिंदी साहित्य से ‘विशारद ‘ की परीक्षा उत्तीर्ण करने की।

यह राष्ट्रीय सेवा के साथ-साथ साहित्य की भी साधना करते रहे। साहित्य की और इनकी रूचि ‘रामचरितमानस’ के अध्ययन से जागृत हुई। 15 वर्ष की आयु से ही यह पत्र-पत्रिकाओं मे लिखने लगे थे। इन्होंने जो कुछ लिखा है; वह स्वतंत्र भाव से लिखा है।

यह एक राजनीतिक एवं सामाजिक व्यक्ति थे। विधानसभा, सम्मेलन, किसान सभा, राष्ट्रीय आंदोलन, विदेश यात्रा, भाषा आंदोलन आदि के बीच में रमे रहते हुए भी उनका साहित्यकार व्यक्तित्व हिंदी साहित्य को अनेक सुंदर ग्रंथ दे गया। उनकी अधिकांश रचनाएं जेल में लिखी गए हैं; किंतु उनका राजनीतिक व्यक्तित्व इनके साहित्यकार व्यक्तित्व को दबा नहीं सकता। देश सेवा के परिणाम स्वरुप इनको अनेक वर्षों तक जेल की यात्राएं भी सहनी पड़ी।

रामधारी सिंह दिनकरने बेनीपुरी जी के विषय में कहा था “स्वर्गीय पंडित रामवृक्ष बेनीपुरी केवल साहित्यकार नहीं थे, उनके भीतर केवल वही आग नहीं थी जो कलम से निकल कर साहित्य बन जाती है। वे उस आग के भी धनी थे जो राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों को जन्म देती है, जो परंपराओं को तोड़ती है और मूल्यों पर प्रहार करती है। जो चिंतन को निर्भीक एवं कर्म को तेज बनाती है। बेनीपुरी जी के भीतर बेचैन कवि, बेचैन चिंतक, बेचैन क्रान्तिकारी और निर्भीक योद्धा सभी एक साथ निवास करते थे।”

रामवृक्ष बेनीपुरी की आत्मा में राष्ट्रीय भावना लहू के संग बहती थी; जिसके कारण आजीवन वह चैन की साँस न ले सके। उनके फुटकर लेखों से और उनके साथियों के संस्मरणों से ज्ञात होता है कि जीवन के प्रारंभ काल से ही क्रान्तिकारी रचनाओं के कारण बार-बार उन्हें कारावास भोगना पड़ा।

सन् 1942 में अगस्त क्रांति आंदोलन के कारण उन्हें हजारीबाग जेल में रहना पड़ा। जेलवास में भी वह शान्त नहीं बैठे सकते थे। वे वहाँ जेल में भी आग भड़काने वाली रचनायें लिखते थे। जब भी वे जेल से बाहर आते उनके हाथ में दो-चार ग्रन्थों अवश्य होते थे, जो आज साहित्य की अमूल्य निधि बन गईं हैं। उनकी अधिकतर रचनाएं जेलवास की कृतियाँ हैं। सन 1968 ई0 में महान क्रांतिकारी साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी का देहावसान हो गया।

रामवृक्ष बेनीपुरी जी की रचनाएं ( Rambriksh Benipuri’s Compositions)

बेनीपुरी जी ने उपन्यास, नाटक, कहानी, स्मरण, निबंध और रेखा चित्र आदि सभी गद्य विधाओं में अपनी कलम उठाई है। इन के कुछ प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार हैं :

  • उपन्यास – पतितो के देश में
  • रेखा चित्र – माटी की मूरत , लाल तारा
  • कहानी – चिता के फूल
  • नाटक – अम्बपाली , सीता की माँ, संघमित्रा , अमर ज्योति , तथागत, सिंहल विजय, शकुन्तला, रामराज्य, नेत्रदान , गाँव के देवता, नया समाज, विजेता , बैजू मामा, नेशनल बुक ट्र्स्ट, शमशान में अकेली अन्धी लड़की के हाथ में अगरबत्ती।
  • संस्मरण एवं निबंध –  कैदी की पत्नी, गेहूँ और गुलाब , जंजीरें और दीवारें, उड़ते चलो, मील के पत्थर।
  • यात्रा वर्णन – पैरों में पंख बांधकर।

बेनीपुरी जी ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया है; जिनमें से कुछ इस प्रकार है :

  • पत्र पत्रिकाएं – बालक, तरुण भारती, युवक, किसान मित्र, कैदी, योगी, जनता, हिमालय, नई धारा, चुन्नू मुन्नू।

बेनीपुरी जी के संपूर्ण साहित्य को बेनीपुरी ग्रंथावली नाम से 10 खंडों में प्रकाशित कराने की योजना थी, जिसके कुछ खंड प्रकाशित हो सके। निबंध और रेखा चित्रों के लिए इनकी ख्याति सर्वाधिक है। माटी की मूरत इनके सर्वश्रेष्ठ रेखा चित्रों का संग्रह है जिसमें बिहार के जन-जीवन को पहचानने के लिए अच्छी सामग्री उपलब्ध है। कुल 12 रेखाचित्र हैं और सभी एक से बढ़कर एक हैं।

रामवृक्ष बेनीपुरी की भाषा शैली (Language style of Rambriksh Benipuri)

बेनी जी के निबंध संस्मरणत्मक और भावात्मक है। भावुक हृदय के तीव्र उच्चवास की छाया इनके सदैव सभी निबंधों में विद्यमान है। बेनीपुरी जी के गद्य साहित्य मे गहन अनुभूतियां एवं कल्पनाओं की स्पष्ट झांकी देखने को मिलती है। भाषा में वजन है. इनकी खड़ी बोली में कुछ आंचलिक शब्द भी आ जाते हैं, किंतु इन प्रांतीय शब्दों से भाषा के प्रवाह में कोई बाधा नहीं उपस्थित होती है।

भाषा के तो यह जादूगर माने जाते हैं। इनकी भाषा में संस्कृत, अंग्रेजी और उर्दू के प्रचलित शब्दों का प्रयोग हुआ है। भाषा को सजीव, सरल और प्रभावी बनाने के लिए मुहावरों और लोक पंक्तियां का प्रयोग किया है। इनकी रचनाओं में विषय के अनुरूप विविध शैलियों के दर्शन होते हैं; शैली में विविधता है। कहीं डायरी शैली, कहीं नाटक शैली। किंतु सर्वत्र भाषा में प्रवाह विद्वान है। वाक्य छोटे होते हैं किंतु भाव पाठकों को विभोर कर देते हैं।

इनकी शैली की विशेषताएं कई है; जो इनके हर लेखन में मिलती है। बेनीपुरी का गद्य हिंदी साहित्य, हिंदी की प्रकृति के अनुकूल है, बातचीत के करीब है और कथन को सहज भाव से पाठक की चेतना में उतार देता है।

रामवृक्ष बेनीपुरी जी का साहित्य में स्थान (Rambriksh Benipuri’s place in literature)

बेनीपुरी जी बहुमुखी प्रतिभा वाले लेखक हैं। इन्होंने गद्दे की विविध विधाओं को अपनाकर विपुल मात्रा में साहित्य की सृष्टि की। पत्रकारिता से ही इनकी साहित्य साधना का प्रारंभ हुआ। साहित्य साधना और देशभक्ति दोनों ही इनके प्रिय विषय रहे हैं। इनकी रचनाओं में कहानी, उपन्यास, नाटक, रेखाचित्र, संस्मरण, जीवनी, यात्रा वृतांत, ललित लेख आदि के अच्छे उदाहरण मिल जाते हैं।

गेहूं बनाम गुलाब इनके गेहूं और गुलाब नामक ग्रंथ का पहला निबंध है। इसमें लेखक ने गेहूं को आर्थिक और राजनैतिक प्रगति का मैं बाधक तक माना है तथा गुलाब को सांस्कृतिक प्रगति का। मानव संस्कृति के विकास के लिए साहित्यकारों एवं कलाकार की भूमिका गुलाब की भूमिका है और इसका अपना स्थान है। यह इनका बहुत ही सुंदर और सफल निबंध रहा है।

FAQ – रामवृक्ष बेनीपुरी जी से जुड़े सवाल जवाब

Q.1 रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म कब हुआ था ?

रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जन्म 1902 ई0 को हुआ था।

Q.2 रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जन्म कहां हुआ था ?

रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जन्म बेनीपुर (मुजफ्फरपुर) मैं हुआ था।

Q.3 रामवृक्ष बेनीपुरी जी की भाषा शैली क्या है ?

बेनीपुरी जी संस्कृत, अंग्रेजी और उर्दू भाषाओं के साथ विविध शैलियों का प्रयोग करते थे उनकी कृतियों में डायरी शैली और नाटक शैली का अधिक प्रयोग हुआ है।

Q.4 रामवृक्ष बेनीपुरी की प्रमुख दो रचनाएं कौन सी है ?

गेहूं बनाम गुलाब और माटी की मूरत, रामवृक्ष बेनीपुरी जी की दो प्रमुख रचनाएं हैं।

Q.5 गेहूं बनाम गुलाब किसकी रचना है ?

गेहूं बनाम गुलाब रामवृक्ष बेनीपुरी जी की रचना है।

Q.6 माटी की मूरत किसकी रचना है ?

माटी की मूरत रामवृक्ष बेनीपुरी जी की रचना है।

Q.7 कलम का सिपाही किसकी रचना है ?

कलम का सिपाही रामवृक्ष बेनीपुरी जी की रचना है।

Q.8 कलम का जादूगर किसे कहा जाता है ?

क्रांतिकारी लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी जी, कलम का जादूगर उपाधि से प्रसिद्ध है।

Q.9 रामवृक्ष बेनीपुरी की मृत्यु कब हुई ?

रामवृक्ष बेनीपुरी की मृत्यु 1968 ई0 में हुई।

आज आपने क्या सीखा ):-

प्रिय पाठकों, उपयुक्त लेख में हमने क्रांतिकारी विचारधारा के साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी के जीवन परिचय (Rambriksh Benipuri Biography in Hindi) के अंतर्गत उनके पारिवारिक जीवन, शिक्षा, हिंदी साहित्य में योगदान, भाषा और शैली तथा रामवृक्ष बेनीपुरी जी की प्रमुख कृतियों के बारे में जाना।

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रामवृक्ष बेनीपुरी को क्या कहा जाता है?

रामवृक्ष बेनीपुरी (२३ दिसंबर, १८९९ - ७ सितंबर, १९६८) भारत के एक महान विचारक, चिन्तक, मनन करने वाले क्रान्तिकारी साहित्यकार, पत्रकार, संपादक थे। वे हिन्दी साहित्य के शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध साहित्यकार थे।

रामवृक्ष बेनीपुरी के साहित्य की प्रमुख विशेषताएं क्या है?

बेनीपुरी जी बहुमुखी प्रतिभा के साहित्‍य-सेवी थे। इन्‍होंने कहानी, नाटक, उपन्‍यास, रेखाचित्र, यात्रा-विवरण, संस्‍मरण एवं निबन्‍ध्‍ आदि गद्य-विधाओं में विपुल साहित्‍य की रचना की। पन्‍द्रह वर्ष की अल्‍पायु से ही इन्‍होंने पत्र-पत्रिकाओं में लिखना प्रारम्‍भ किया था।

रामवृक्ष बेनीपुरी के रचनाओं में अधिकतम किसका वर्णन मिलता है?

बेनीपुरी जी की रचनाएँ उनके फुटकर लेखों से और उनके साथियों के संस्मरणों से ज्ञात होता है कि जीवन के प्रारंभ काल से ही क्रान्तिकारी रचनाओं के कारण बार-बार उन्हें कारावास भोगना पड़ता। सन 1942 में “अगस्त क्रांति आंदोलन” के कारण उन्हें हज़ारीबाग़ जेल में रहना पड़ा था।

रामवृक्ष बेनीपुरी ने कितनी अवस्था में लिखने का कार्य किया?

उनका देहावसान सन् 1968 में हुआ। 15 वर्ष की अवस्था में बेनीपुरी जी की रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगीं। वे बेहद प्रतिभाशाली पत्रकार थे। उन्होंने अनेक दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया, जिनमें तरुण भारत, किसान मित्र, बालक, युवक, योगी, जनता, जनवाणी और नयी धारा उल्लेखनीय हैं।