नमस्कार साथियों 🙏 आपका स्वागत है। आज हम आपको हिंदी विषय के अति महत्वपूर्ण पाठ रस – परिभाषा,अंग,भेद,उदाहरण | ras in hindi | हिंदी में रस से परिचित कराएंगे। Show
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हमने इस टॉपिक में क्या क्या पढ़ाया है? (1) रस की
परिभाषा Ras kise kahte hai,रस की परिभाषा भेद उदाहरण सहित,रस की परिभाषा एवं भेद,रस की परिभाषा व भेद,रस परिभाषा भेद और उदाहरण,रास की परिभाषा और उसके भेद,रस की परिभाषा और प्रकार,रस की परिभाषा और उसके प्रकार,रस की परिभाषा और उसके प्रकार बताइए,रस की परिभाषा और उनके प्रकार,रस की परिभाषा एवं प्रकार,रस की परिभाषा व उसके भेद,रस के भेद की परिभाषा,रस की परिभाषा व प्रकार,रस की परिभाषा रस के भेद,रस की परिभाषा और रस कितने प्रकार के होते हैं,रस की परिभाषा कितने प्रकार के होते हैं,रस की परिभाषा रस के प्रकार,रस के भेद और उदाहरण,रस की परिभाषा प्रकार,रस की परिभाषा तथा प्रकार,रस – परिभाषा,अंग,भेद,उदाहरण,ras in hindi,हिंदी में रस, रस – परिभाषा,अंग,भेद,उदाहरण | ras in hindi | हिंदी में रसRas in hindi,रस हिंदी ग्रामर,रस हिंदी ग्रामर क्लास १०,the topic ras in hindi,रस हिंदी में,रस हिंदी व्याकरण,रस हिंदी व्याकरण में,रस हिन्दी व्याकरण,रस हिन्दी व्याकरण pdf,रस हिंदी साहित्य में,रस – परिभाषा,अंग,भेद,उदाहरण,ras in hindi,हिंदी में रस,रस की परिभाषा | रस किसे कहते हैंकाव्य को पढ़ने, सुनने या नाटक को देखने में जो आनन्द आता है, उसे ‘रस’ कहते हैं । यह आनन्द अलौकिक तथा अवर्णनीय होता है। रस-निष्पत्तिरस की अनुभूति कैसे होती है? इस सम्वन्ध में भरत मुनि ने नांट्यशास्त्र में लिखा है- विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रस-निष्पत्तिः । “विभाव, अनुभाव और व्यभिचारियों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।’‘ रस के अंग(1) विभाव (1) विभावजिस सामग्री द्वारा स्थाथी भाव जागृत तथा तीव्र होता है, उसे विभाव कहते हैं। विभाव के भेद | विभाव के प्रकारइसके दो भेद होते हैं- (i) आलम्बन-विभाव (i) आलम्बन-विभावजिस व्यक्ति अथवा वस्तु के कारण कोई स्थायी भाव जागृत होता है. इसके दो अंग होते हैं- (क) आश्रय-जिस व्यक्ति के हृदय में स्थायी भाव जागृत होता है, उसे आश्रय कहा जाता है। (ख) विषय-जिस वस्तु या व्यक्ति के कारण आश्रय के हृदय में रति आदि स्थायी भाव जागृत होते हैं, उसे ‘विषय’ कहते हैं। जैसे – (ii) उद्दीपन-विभावजिस व्यक्ति, दृश्य अथवा आलम्बन की चेष्टा से पूर्व जागृत स्थायी भाव और उद्दीप्त (तीव्र) हो, उसे उद्दीपन-विभाव कहते हैं। जैसे– पुष्प वाटिका में सीता को देखकर राम के रति भाव का वर्णन । राम आश्रय, सीता ‘आलम्बन, रति ‘स्थायीं भाव तथा चारों और खिले फूल,सुगंधित वायु, चाँदनी आदि उद़दीपन विभाव होंगे। (2) अनुभावआलम्बन तथा उद्दीपत के द्वारा आश्रय के हृदय में स्थायी भाव के जागृत तथा उद्दीप्त होने पर आश्रय में जो चेष्टाये होती है, उन्हें अनुभाव कहते हैं। जैसे – उत्साह में शत्रु को ललकारना, क्रोध में ऑखे लाल होना आदि। अनुभाव के प्रकार | अनुभाव के भेदये चार प्रकार के होते हैं- (i) सात्विक अनुभाव (i) सात्विक-अनुभावजो अनुभाव बिना आश्रय के प्रयास के आप से आप होते हैं, वे सात्विक अनुभाव कहलाते हैं। ये आठ होते हैं- (1)स्तम्भ (अंगरों की गति रुक जाना) (ii) कायिक अनुभावअनुभाव-इनका सम्बन्ध शरीर से होता है। शरीर जो चेष्टाएँ आश्रय की इच्छानुसार जान-बूझ कर प्रयत्नपूर्वक करता है, उन्हें कायिक अनुभाव कहते हैं। जैसे – क्रोध में कठोर शब्द कहना, उत्साह में पैर पटकना आदि। (iii) मानसिक अनुभावमन में हर्ष,विषाद आदि भावों के उद्वेलन से जो भाव प्रदर्शित होते किये जाते हैं,मानसिक अनुभाव कहते हैं। (iv) आहार्य अनुभावमन के भावों के अनुसार अलग अलग प्रकार की कृत्रिम वेश रचना को आहार्य अनुभाव कहते हैं। (3) व्यभिचारी अथवा संचारी भावआश्रय के हृदय में स्थायी भाव जागृृत होने पर कुछ क्षणिक भाव संचारी भेद की संख्या कितनी हैं ? यद्यपि ये अनेक हो सकते हैं तथापि इनकी संख्या 33 मानी गयी है। संचारी भाव के भेद | संचारी भाव के प्रकारये निम्नलिखित हैं- (1)
निर्वेद (2) ग्लानि (3) आवेग (4) दैन्य (5) श्रम (4) स्थायी भावरस रूप में परिणत होने वाले तथा मनुष्य के हृदय में स्थायी रूप से रहने वाले भावो को स्थायी भाव कहते हैं। मनुष्य के हृदय में रति, शोक आदि कुछ भाव हर समय सुप्तावस्था में रहते हैं, जिन्हें स्थायी भाव कहते हैं। स्थायी भाव के प्रकार | स्थायी भाव के भेदस्थायी भावों की संख्या 9 मानी गयी है। ये निम्नलिखित हैं- (1) रति (दाम्पत्य प्रेम), (2) उत्साह, (3) शोक, (4) क्रोध, (5) हास, (6) भय, (7) जुगुत्सा, (8) विस्मय, तथा (9) निर्वेद कुछ विद्वान वात्सल्य (सन्तान प्रेम) को दसवाँ स्थायी भाव मानते हैं। प्रत्येक स्थायी भाव का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है- (1) रति – स्त्री-पुरुष के मन में एक दूसरे के प्रति उत्पन्न प्रेम- भाव को रति कहते हैं। (2) हास – किसी के अंगों, वेश-भूषा, वाणी आदि के विकारों के ज्ञान से मन में उत्पन्न प्रफुल्लता को हास कहते हैं। (3) शोक – प्रियवस्तु (इष्ट जन, वैभव आदि) के नाश अथवा अनिष्ट-आगम के कारण मन में उत्पन्न होने वाली व्याकुलता शोक है। (4) क्रोध – अपना काम बिगाड़ने वाले अपराधी को दण्ड देने के लिए उत्तेजित करने वाली मनोवृत्ति क्रोध कहलाती है। यह असाधारण अपराध, विवाद, उत्तेजनापूर्ण अपमान आदि के कारण भी उत्पन्न हो सकती है। (5) उत्साह – दान, दया, वीरता आदि के प्रसंग से उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त होने वाली मनोवृत्ति को उत्साह कहते हैं। (6) भय – प्रबल अनिष्ट करने में समर्थ विषयों को देखकर मन में जो व्याकुलता उत्पन्न होती है, उसे भय कहते हैं। (7) जुगुप्सा – घृणा उत्पन्न करने वाली वस्तुओं को देखकर उनसे सम्बन्ध न रखने के लिए बाध्य करने वाली मनोवृत्ति को जुगुत्सा (8) विस्मय – किसी असाधारण अथवा अलौकिक वस्तु को देखकर, सुनकर या स्मरण करने से जो आश्चर्य होता है, उसे विस्मय कहते हैं। (9) निर्वेद – सांसारिक विषयों के प्रति त्याग अर्थात् वैराग्य की उत्पत्ति को निर्वेद कहते हैं। आप अन्य रस भी पढ़िये(A) श्रृंगार रस (B) शांत रस ( c) हास्य रस (D) करुण रस (E) रौद्र रस (F) भयानक रस (G) वीभत्स रस (H) वीर रस (i) अद्भुत रस ( J) भक्त्ति रसरस के भेद | रस के प्रकाररस के 9 भेद हैं – (1) श्रृंगार रस (2) वीर रस (3) करुण रस नोट – भक्ति रस और वात्सल्य रस श्रृंगार रस के विस्तृत क्षेत्र में आते हैं। भरत मुनि ने इनको रस नही माना । इसीलिए मूल रस 9 ही माने गए हैं। रस एवं उनके स्थायी भाव
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रस क्या है रस की परिभाषा देते हुए उसके अंगों की विवेचना कीजिए?शव काव के पठन अथवा शवर एवं दश काव के दश्न तथा शवर मे जो अलौचकक आनन पाप होता है, वही काव मे रस कहलाता है। रस सेचजस भाव की अनुभूचत होती हैवह रस का सथायी भाव होता है। रस, छंद और अलंकार - काव रिना के आवशक अवयव है।
रस की परिभाषा कितने प्रकार के होते हैं?रस की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण (Ras in Hindi). विभाव स्थायी भावों के उदबोधक कारण को विभाव कहते हैं विभाव 2 प्रकार के होते हैं। ... . श्रृंगार रस ... . हास्य रस ... . करुण रस ... . वीर रस ... . अदभूत रस ... . भयानक रस ... . रौद्र रस. |