Show सहयोग व्यक्ति की जन्मजात आवश्यकता है।
उसका अस्तित्व, विकास तथा जीवन सहयोग पर निर्भर है। भूख व्यक्ति की मौलिक आवश्यकता है, इसकी संतुष्टि के लिए उसे किन-किन व्यक्तियों से सम्पर्क स्थापित करना पड़ता है, यह सभी जानते हैं। इसी प्रकार उसकी बहुत-सी आवश्यकतायें हैं जिनकी संतुष्टि के लिए दूसरों का सहयोग सहयोग प्राप्त करना आवश्यक है। आगवर्न तथा निम्काफ - जब व्यक्ति समान उददेश्य के लिए एक साथ कार्य करते हैं तो उनके व्यवहार को सहयोग कहते हैं। फेयरचाइल्ड, एच0पी0 - सहयोग वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एकाधिक व्यक्ति या समूह अपने प्रयत्नों को बहुत कुछ संगठित रूप में सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संयुक्त करते हैं। उपर्लिखित परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि सहयोग व्यक्ति की मौलिक आवश्यकता है क्योंकि इससे उसकी आवश्यकताओं की संतुष्टि तथा उद्देश्यों की पूर्ति होती है। व्यक्ति चेतन रूप से सहयोगिक क्रिया में भाग लेता है। अर्थात सहयोग चेतन अवस्था है जिसमें संगठित एवं सामूहिक प्रयत्न किये जाते हैं क्योंकि समान उद्देश्य होता है। सभी की सहभागिता होती है, क्रियाओं एवं विचारों का आदान-प्रदान होता है। अन्तःक्रिया सकारात्मक होती है तथा सहायता करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। सहयोग में भाग लेने वाले व्यक्ति उत्तरदायित्व पूरा करते हैं। परन्तु उसके निश्चित प्रतिमान होते हैं। सहयोग की आवश्यक शर्तें सहयोग तभी प्राप्त किया जा सकता है जब उसकी आवश्यक शर्तें पूरी हों। ये आवश्यक शर्तें हैं: 1. समान उद्देश्य - व्यक्ति सहयोग के लिए तभी तत्पर होते हैं जब उनके उद्देश्य में समानता हो। उदाहरण के लिए किसी संगठन का सदस्य इसलिए बनता है क्योंकि उससे उसके हितों की पूर्ति होती है। 3. सामूहिक प्रयत्न - सामूहिक प्रयत्नों के द्वारा ही व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए विकास एवं उन्नति कर सकते हैं। 4. समान इच्छा - सहयोग के लिए आवश्यक है कि सहयोग करने वाले व्यक्तियों की समान इच्छा हो तथा मानसिक रूप से सहयोग करने के लिए तत्पर हों। 7. सम्बन्धों की घनिष्ठता - सम्बन्धों की प्रगाढ़ता सहयोग के प्रकार को निश्चित करती हैं जितने ही सम्बन्ध घनिष्ट होते हैं उतना ही सहयोग अधिक प्राप्त होता है। 8. अन्तः क्रिया - बिना अन्तःक्रिया के सहयोग का प्रारम्भ ही नहीं हो सकता है। व्यक्ति , हाव-भाव, शब्द, शारीरिक गति आदि के द्वारा एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। सहयोग के प्रकार 1. प्राथमिक सहयोग - प्राथमिक सम्बन्ध होते हैं। प्राथमिक समूहों में पाया जाता है। व्यक्ति तथा समूह के स्वार्थों में कोई भिन्नता नहीं होती हैं। त्याग की भावना प्रधान होती है। परिवार तथा मित्र मंडली, इसके प्रमुख उदाहरण हैं। 2. द्वितीयक सहयोग - यह जटिल समाजों में पाया जाता है। औपचारिकता अधिक होती है। व्यक्तिगत हितों की प्रधानता होती है। स्कूल, आफिस, कारखाने आदि में द्वितीयक सहयोग पाया जाता है। 3. तृतीयक सहयोग - उद्देश्य प्राप्ति तक सहयोग किया जाता है। लक्ष्य बिल्कुल अस्थायी होता है। अवसर की प्रधानता होती है। चुनाव जीतने के लिए भिन्न पार्टियों में सहयोग या लड़ाई के समय विभिन्न पार्टियों में सहयोग तृतीयक सहयोग होता है। मैकाइवर तथा पेज ने सहयोग के दो प्रकार बताये हैं: 1. प्रत्यक्ष - परोक्ष इन सहयोग के प्रकारों को वही विशेषता है जो प्राथमिक तथा द्वितीयक सहयोग की है। 4. सहयोग के स्वरूप - सहयोग की आवश्यकता प्रत्येक क्षेत्र में होती है। जितने प्रकार की क्रियायें होती हैं सहयोग भी उतने प्रकार का होता है। सामान्यतः सहयोग के निम्न स्वरूप हैंः 1. सामाजिक सहयोग 2. मनोवैज्ञानिक सहयोग 3. सांस्कृतिक सहयोग 4. शैक्षिक सहयोग 5. आर्थिक सहयोग सहयोग का महत्व - मानव जीवन की सुरक्षा, उन्नति तथा विकास के लिए सहयोग आवश्यक प्रक्रिया है। इसका महत्व जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हैं। 1. सामाजिक क्षेत्र - सहयोग से सामाजिक गुण विकसित होते हैं। व्यवहार करना सीखता है। सामाजिक सम्बन्धों का विकास होता है। सामाजिक व्यवस्था बनी रहती है। सामजिक संगठन कार्य करने में सक्षम होते हैं। 2. मनोवैज्ञानिक क्षेत्र - व्यक्तित्व का विकास होता है। मनोवृत्तियाँ विकसित होती हैं। निर्णय करने की क्षमता आती है। सांवेगिक पक्ष दृढ़ होता है। प्रत्यक्षीकरण उचित दिशा में होता है। समस्याओं का समाधान करना सीखता है। 3.सांस्कृतिक क्षेत्र - संस्कृति का विकास होता है। संस्कृति की रक्षा होती है। सांस्कृतिक परिवर्तन सहयोग पर निर्भर है। सांस्कृतिक गुण सहयोग से आते है। 4.शैक्षिक क्षेत्र - सभी प्रकार का सीखना सहयोग पर निर्भर है। शैक्षणिक उन्नति का आधार सहयोग है। अर्जित ज्ञान की रक्षा सहयोग पर निर्भर है। 4.आर्थिक क्षेत्र - आवश्यकताओं की पूर्ति सहयोग ही कर सकता है। आर्थिक विकास सहयोग पर निर्भर है। सहयोग की परिभाषा दीजिए सहयोग का समाज में क्या महत्व है?अर्थात सहयोग चेतन अवस्था है जिसमें संगठित एवं सामूहिक प्रयत्न किये जाते हैं क्योंकि समान उद्देश्य होता है। सभी की सहभागिता होती है, क्रियाओं एवं विचारों का आदान-प्रदान होता है। अन्तःक्रिया सकारात्मक होती है तथा सहायता करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। सहयोग में भाग लेने वाले व्यक्ति उत्तरदायित्व पूरा करते हैं।
सामाजिक सहयोग से आप क्या समझते हैं?किस प्रकार से व्यक्ति एक दूसरे से सहयोग, प्रतियोगिता तथा संघर्ष करते हैं तथा उसे वे क्या रूप देते हैं? 2022-23 समाज का बोध सहयोग, प्रतियोगिता तथा संघर्ष होते हैं। यह सब कुछ सामाजिक संरचना तथा स्तरीकरण व्यवस्था में व्यक्तियों एवं समूह की स्थिति पर निर्भर करता है।
सहयोग से आप क्या समझते हैं?सहयोग का अर्थ (sahyog ka arth)
जिसका अभिप्राय है, मिलकर काम करना। अर्थात् सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिये मिलजुलकर कार्य करना ही सहयोग है। सहयोग एक एकीकरण करने वाली प्रक्रिया है। यह मानव समाज की सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
संगठन में सहयोग का क्या महत्व है?सहयोग विविध लोगों या टीमों के साथ प्रभावी ढंग से और सम्मानपूर्वक काम करने, समझौता करने, निर्णय लेने में आम सहमति बनाने, सहयोगी कार्य के लिए साझा जिम्मेदारी संभालने, और व्यक्तिगत टीम के सदस्यों की राय और योगदान को दृढ़ आत्म-स्थिति से प्रदर्शित करने की क्षमता को प्रदर्शित करता है। पहचान।
|