सेकेंडरी ऑक्यूपेशन का मतलब क्या होता है? - sekendaree okyoopeshan ka matalab kya hota hai?

SECONDARY OCCUPATION MEANING - NEAR BY WORDS

SECONDARY = माध्यमिक [pr.{madhyamik} ](Adjective)

Usage : Petrol is a secondary fuel obtained from crude petroleum.
उदाहरण : माध्यमिक सीए प्रमाणपत्रों के लिएः

SECONDARY = अवांतर [pr.{avanatar} ](Adjective)

उदाहरण : मेरी इतनी हैसियत नहीं है कि मैं वर्गबोध और उसके दायित्वों को फिर से परिभाषित करूं पर इतना तो देखना ही होगा कि कुछ अवांतर मान लिए जाने वाले प्रसंग अब अंतरंग होते गए हैं।

SECONDARY = गौण [pr.{gauN} ](Adjective)

उदाहरण : उसने बाहरी धार्मिक प्रतीकों को छोड़ा नहीं मगर गौण बना दिया.

SECONDARY = अतिरिक्त [pr.{atirikt} ](Noun)

उदाहरण : क्या बच्चे को प्राथमिकता प्राप्त होना चाहिए जब संग्राहक क्षैतिज अक्ष पर अतिरिक्त स्थान का आवंटन है.

Read this article to learn about secondary and tertiary occupation of people in Hindi language.

हमें प्राथमिक व्यवसायों से विविध प्रकार का कच्चा माल प्राप्त होता है । उनमें से अधिकतर माल का ज्यों का त्यों उपयोग नहीं किया जाता इसके लिए कच्चे माल पर प्रक्रिया करके उसमें आवश्यक परिवर्तन करना पड़ता है । कच्चे माल पर प्रक्रिया करके नए माल का उत्पादन करनेवाले व्यवसायों को द्‌वितीयक व्यवसाय कहते हैं । उदा., वस्त्र, लौह-इस्पात, चीनी (शक्कर) निर्मिति आदि उद्योग ।

कम समय में अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इन व्यवसायों में यंत्रों का उपयोग बड़ी मात्रा में किया जाता है । परिणामत: वस्तुओं का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर होता है । लोगों को रोजगार उपलब्ध होता है । फलस्वरूप देश के आर्थिक विकास में सहायता प्राप्त होती है ।

उद्योग के स्थानीयकीकरण के घटक:

उद्योग-धंधों का स्थान निश्चित करने को ही स्थानीयकीकरण कहते हैं । कच्चे माल की उपलब्धता, श्रमिकों की आपूर्ति, बाजार, पूँजी, ऊर्जा साधन के अलावा यातायात, संचार माध्यम, की सुविधाएँ, सरकारी नीति आदि घटकों का उद्योग-धंधों के स्थानीयकीकरण पर प्रभाव पड़ता है ।

लौह-इस्पात उद्‌योग: 

विभिन्न उद्योगों के लिए आवश्यक यंत्र, यातायात के साधन, सुरक्षा सामग्री आदि के लिए लौह तथा इस्पात की आवशकता होती है । अत: लोहे और इस्पात उद्‌योगों का औद्‌योगिकीकरण में असाधारण महत्व है ।

सेकेंडरी ऑक्यूपेशन का मतलब क्या होता है? - sekendaree okyoopeshan ka matalab kya hota hai?

लौह-इस्पात उद्‌योगों के लिए लौह, कोयला, चूने का पत्थर, मैंगनीज की आवश्यकता होती है । ये खनिज भारी होने से उनका यातायात करना खर्चीला होता है । अत: ये उद्योग कोयला अथवा लौह उत्पादक क्षेत्रों में ही होते हैं ।

छोटा नागपुर के पठारी प्रदेशों में लौह खनिज तथा कोयला विपुल मात्रा में पाया जाता है । इसलिए वहाँ लौह-इस्पात निर्मिति उद्‌योग का विकास हुआ है । आकृति १४.१ के आधार पर समझो कि भारत के जमशेदपुर में इस लौह कारखाने का स्थानीयकीकरण किस प्रकार हुआ है ।

सूती वस्त्र उद्योग: 

आकृति १४.२ में पश्चिम भारत के कपास उत्पादन के क्षेत्र तथा वस्त्र उद्योगों के केंद्र दर्शाए गए हैं ।

सेकेंडरी ऑक्यूपेशन का मतलब क्या होता है? - sekendaree okyoopeshan ka matalab kya hota hai?

इस उद्योग पर कच्चे माल की उपलब्ध्ता और अनुकूल जलवायु जैसे प्रमुख घटकों का प्रभाव पड़ता है । कपास नाशवान वस्तु नहीं है । बिनौले निकाले जाने पर कपास हल्की तथा भार में कम न होनेवाली होती   है । इसलिए इसे दूर तक ढोकर ले जा सकते हैं ।

परिणामत: यह उद्‌योग कच्चे माल के क्षेत्र से दूरीवाले क्षेत्रों में भी शुरू किया जा सकता है । नम जलवायु में कपास के लंबे धागे (सूत) निकलते हैं तथा धागा टूटने की मात्रा भी कम रहती है । इसलिए इन उद्योगों का विकास प्रारंभ में मुंबई जैसे नम जलवायु प्रदेश में हुआ ।

अभियांत्रिकी उद्योग: 

विविध उद्योगों में लगनेवाली यंत्र सामग्री और यंत्रों के पुर्जें तैयार करनेवाले कारखानों का अंतर्भाव अभियांत्रिकी उद्योगों में होता है । लौह इस्पात उद्योगों से प्राप्त होनेवाले इस्पात को पक्का माल कहते हैं परंतु पक्का माल अभियांत्रिकी उयोगों में कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होता है । इससे यंत्र बनाए जाते हैं । अतः अभियांत्रिकी से सबंधित यंत्र सामग्री के उद्योग प्राय: कच्चे माल की आपूर्ति करनेवाले धातु क्षेत्रों में पाए जाते हैं ।

तृतीयक व्यवसाय:

हमें अपने दैनिक जीवन में अनेक सेवाओं की आवश्यकता होती है । वित्त सेवा, स्वास्थ्य सेवा, मनोरंजन, यातायात जैसी सेवाओं से लेकर घड़ी की मरम्मत करना, छुरियों को धारदार बनाना जैसी सभी सेवाओं का अंतर्भाव तृतीयक व्यवसायों में होता है । इन सेवाओं को पाने के लिए पारिश्रमिक देना पड़ता है । तृतीयक व्यवसायों की कुछ सेवाओं के बारे में हम अधिक जानकारी प्राप्त करेंगे ।

यातायात: 

यात्री, माल अथवा डाक एक जगह से दूसरी जगह तक ले जाने के लिए यातायात सेवाओं का उपयोग किया जाता है । इसके लिए सड़कें, रेल मार्ग, जल मार्ग, विमान मार्ग जैसी सुविधाओं को उपयोग में लाना पड़ता है । इन सेवाओं के कारण विविध वस्तुओं की जहाँ माँग होती है; वहाँ वे समय पर पहुँचाई जाती हैं । द्रुतगति यातायात के साधनों से समय की बचत होती है । आपातकालीन स्थिति में यातायात सेवा को असाधारण महत्व प्राप्त है ।

पर्यटन: 

प्रतिदिन की रेलपेल की जिंदगी में अनेक प्रकार से दबाव निर्माण होते हैं । अत: हमारे लिए मनोरंजन की आवश्यकताएँ होती हैं । मानसिक रूप से तरोताजा रहने के लिए हम प्राकृतिक अथवा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक आदि सुंदर स्थलों का पर्यटन करते हैं ।

इसी को पर्यटन कहते हैं । पर्यटकों को यातायात एवं निवास की सेवाएँ देनी पड़ती हैं इन्हीं सेवाओं के कारण पर्यटन व्यवसाय का निर्माण हुआ है । इस प्रकार की सेवाओं की आपूर्ति करनेवाले व्यवसायों का समावेश पर्यटन व्यवसाय में होता है ।

उपरोक्त सेवाओं के अलावा समाज को अन्य सेवाओं की भी आवश्यकता होती है । हमें वकील, डाक्टर, अध्यापक, प्रबंधन विशेषज्ञ अपनी सेवाएँ प्रदान करते हैं । इन सबका समावेश तृतीयक सेवाओं में होता है । भारत की अर्थव्यवस्था में तृतीयक व्यवसायों का महत्व बढ़ने लगा है ।

व्यापार:

उत्पादकों द्वारा तैयार माल को उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के व्यवसाय को व्यापार कहते हैं । व्यापार के कारण उत्पादकों को अपनी वस्तुओं का मूल्य प्राप्त होता है तथा उपभोक्ता आवश्यक वस्तुएँ मूल्य देकर खरीद सकता है । स्थानीय, देशांतर्गत, अंतर्राष्ट्रीय आदि स्तरों पर व्यापार किया जाता है । व्यापार के कारण देश के आर्थिक विकास में सहयोग प्राप्त होता है ।

द्वितीयक और तृतीयक व्यवसायों के पर्यावरणीय दुष्परिणाम: 

उद्‌योग तथा यातायात के साधनों से वायु, ध्वनि तथा जल प्रदूषण की समस्याएँ निर्माण हुई हैं । वायु में कार्बन डाइआक्साइड, कार्बन मोनाक्साइड, क्लोरोफ्लूरो कार्बन आदि की मात्रा बढ़ रही है । मानवीय जीवन पर इसके दुष्परिणाम हो रहे हैं । कारखानों के यंत्रों तथा यातायात के साधनों की आवाजों से ध्वनि प्रदूषण होता है । फलस्वरूप बहरापन, मानसिक वीमारी जैसी समस्याएँ निर्माण होती हैं ।

कारखानों से, शहरों से निकला हुआ दूषित धावन जल तथा जलयानों से होने वाली तेल रिसाई के कारण जल प्रदूषण में वृद्धि हुई है । फलत: जलचरों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है । प्रदूषण का स्तर कम करने के लिए बड़े शहरों तथा कारखानों के क्षेत्रों में विविध उपाय योजनाओं को करना अनिवार्य किया जा रहा है । प्रदूषण तथा उसके दुष्परिणामों के बारे में समाज में बोध निर्माण करना आवश्यक है ।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन अनुबंध:

बीसवीं शताब्दी में विविध राष्ट्रों के स्वतंत्र होने के बाद उन्होंने अपने देश का विकास करने की नीति अपनाई है । यह करते समय राष्ट्रों ने आयात पर प्रतिबंध लगाए । इससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सिकुड़ने लगा । इसे रोकने के लिए राजनैतिक नेताओं, अर्थशास्त्रियों तथा उद्यमियों ने खुले व्यापार नीति को समर्थन दिया ।

इसी में से आगे चलकर विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष जैसी संस्थाओं का जन्म हुआ । विज्ञान-तकनीक का विकास, गैट अनुबंध के अनुसार व्यापार विषयक बातचीत, मुक्त व्यापार के लिए उपाययोजनाएँ जैसी बातों से व्यापार के वैश्वीकरण को गति प्राप्त हुई । बीसवीं शताब्दी के अंतिम दस वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के ढाँचे में परिवर्तन आने लगा है ।

गैट:

सीमा शुल्क तथा व्यापारसंबंधी साधारण अनुबंध नामक विश्व संगठन की स्थापना १९४८ में हुई । विश्व के कई देश इस संगठन के सदस्य हैं । गैट संगठन का मुख्य उद्देश्य विश्व में खुले व्यापार का वातावरण निर्माण करना था । इस संदर्भ में संगठन की आठ बैठक हुईं ।

गैट में चर्चा के माध्यम से ११८६ में विश्व व्यापार संगठन World Trade Organization (WTO) का निर्माण हुआ । विश्व स्तर पर इस संगठन का कार्य १ जनवरी १९९५ में प्रारंभ हुआ । यह स्थायी तथा वैधानिक संगठन है । भारत इस संगठन का संस्थापक सदस्य है । इस संगठन का कार्य गैट की तुलना में अधिक व्यापक है ।

सार्क:

दक्षिणी एशियाई प्रादेशिक सहयोग हेतु यह संगठन स्थापित किया गया है । सार्क अंतर्राष्ट्रीय स्तर का एक प्रादेशिक संगठन है । भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका तथा मालदीव राष्ट्रों ने प्रादेशिक स्तर पर सहयोग देने और पाने के लिए इस संगठन का निर्माण किया है । इस संगठन के मंच पर दो राष्ट्रों के बीच चल रहे विवाद के मुद्‌दों पर चर्चा नहीं की जाती ।

इस संगठन के सभी राष्ट्रों की आर्थिक समस्याएँ सामान्यत: एक जैसी हैं । इन समस्याओं के निवारण के लिए और विश्व स्तर पर ठोस प्रतिनिधित्व निर्माण करने हेतु इन देशों के लिए यह बहुत उपयुक्त सिद्‌ध हुआ है । इस संगठन को स्थापित करने में भारत अग्रसर रहा है । इन दिनों इस संगठन में अफगानिस्तान का भी समावेश हुआ है ।

वैश्वीकरण:

व्यापार का वैश्वीकरणएक प्रक्रिया है । सरल भाषा में कहना हो तो स्थानीय अथवा प्रादेशिक स्तर की वस्तुओं को विश्व स्तर पर उपलब्ध कराने की प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहते हैं । वैश्वीकरणप्रक्रिया से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अधिक विस्तार तथा खुलापन आने लगा है ।

इन दिनों वैश्वीकरणयह शब्द प्राय: आर्थिक वैश्वीकरणके अर्थ में प्रयुक्त होता है । अलग-अलग राष्ट्रों ने अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था का अन्य राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं से समन्वय बिठाने का प्रयत्न शुरू किया       है । फलस्वरूप व्यापार, सीधे विदेशी निवेश, निवेश का बहाव लोगों का स्थलांतरण तथा प्रौद्‌योगिकी प्रसार आदि बातों में वृद्‌धि हुई है ।

सेकेंडरी ऑक्यूपेशन का मतलब क्या है?

कच्चे माल पर प्रक्रिया करके नए माल का उत्पादन करनेवाले व्यवसायों को द्‌वितीयक व्यवसाय कहते हैं । उदा., वस्त्र, लौह-इस्पात, चीनी (शक्कर) निर्मिति आदि उद्योग ।

सेकेंडरी का मतलब क्या होता है?

उदाहरण : यह द्वितीयक कार्य है।

ऑक्यूपेशन का हिंदी में मतलब क्या होता है?

ऑक्यूपेशन एक noun है जिसके कई सारे हिंदी अर्थ होते हैं जैसे- धन्धा, पेशा, व्यवसाय, कब्ज़ा आदि।

प्राइमरी ऑक्यूपेशन का मतलब क्या होता है?

प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित व्यवसायों को प्राथमिक व्यवसाय कहते हैं । शिकार, खाद्‌यान्न संकलन, वन उत्पादन संकलन, पशु पालन, मत्स्य व्यवसाय, खेती, खदान कार्य आदि प्राथमिक व्यवसाय हैं ।