सामाजिक स्तरीकरण का अर्थSamajik starikaran arth paribhasha visheshtayen aadhar;समाज मे सभी व्यक्ति एक से नही होते। उनमे अनेक जैविक और सामाजिक भेद होते है। ये भेद कमोबेश सभी समाजों मे देखने को मिलते है। आदिम समाज सरल होते है। उनमे सामाजिक
और सांस्कृतिक भेद कम होते है। ऐसे समाजों मे व्यक्ति की सामाजिक स्थिति और उसके कार्यों का निर्धारण प्रधानतया जैविक तत्वों जैसे-- आयु, लिंग, शारिरीक एवं मानसिक क्षमता के द्वारा ही होता है। इसके विपरीत आधुनिक समाज जटिल होता है। उसमे श्रम विभाजन विशेषीकरण पर आधारित होता है। व्यक्ति की समाज मे स्थिति जैविक तत्वों पर कम और सामाजिक भेदों पर अधिक निर्भर करती है। तकनीकी ज्ञान, शिक्षा, व्यवसाय, एवं आर्थिक स्थिति आधुनिक समाजों मे सामाजिक भेद के मुख्य आधार है। समाज मे विभेदीकरण की प्रक्रिया निरन्तर
क्रियाशील होती है। समाज मे क्रिमिक एवं सतत भिन्नता का मुखर होना ही विकास हैं। Show
दूसरे शब्दों मे, सामाजिक स्तरीकरण समाज का बहुत कुछ स्थायी समूहों एवं श्रेणियों, जो उच्चता व निम्नता के बोध से परस्पर आबध्द होते हैं, मे विभाजन है। वास्तव मे सामाजिक स्तरीकरण का आधार सामाजिक विभेदीकरण है। जब भिन्न सामाजिक विशिष्टताओं के साथ भिन्न सामाजिक प्रतिष्ठा जुड़ जाती है जिससे कतिपय सामाजिक विशिष्टताओं को समाज मे ऊँचा स्थान, अच्छी सुविधाएँ और पुरस्कार प्रदान किया जाता है तो समाज न केवल विभेदीकृत होता है, बल्कि स्तरीकृत भी हो जाता है। पी. गिसबर्ट, " सामाजिक स्तरीकरण समाज का उन स्थायी समूहों अथवा श्रेणियों मे विभाजन है, जो कि उच्चता एवं अधिकता संबंधों मे परस्पर सम्बध्द होते हैं।" मेलविन के अनुसार," स्तरीकरण, विभेदीकरण एवं मूल्य निर्धारण के संयोग का परिणाम है। वास्तव मे स्तरीकरण का किसी भी व्यवस्था के कार्य मे परिणत होने होने के लिए कम से कम चार मुख्य प्रक्रियायें है-- विभेदीकरण, श्रेणीकरण, मूल्यांकन और पुरस्कार।" शलफाट पारसन स्तरीकरण की व्याख्या करते हुए लिखते है कि ," मानवीय व्यक्तियों के भेदीय-वर्ग जो एक विशेष सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करते है, एक निश्चित महत्वपूर्ण सामाजिक सम्मान के रूप मे उनका व्यवहार उच्च एवं निम्न की भावना से परस्पर संबंधित होता है।" सोरोकिन के अनुसार," सामाजिक स्तरीकरण का तात्पर्य है, एक जनसंख्या विशेष को एक दूसरे के ऊपर, ऊँच-नीच स्तरणात्मक वर्गों मे विभेदीकरण। इसकी अभिव्यक्ति उच्चतर एवं निरंतर स्तरों के विद्यमान होने के माध्यम से होती है। सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताएं (samajik starikaran ki visheshta)सामाजिक स्तरीकरण की निम्न विशेषताएं है-- 1. सार्वभौमिकता सामाजिक स्तरीकरण के आधार (samajik starikaran ke aadhar) समाज मे समूहों एवं उनके भिन्न स्तरों के अध्ययन मे समाजशास्त्री विभिन्न संरचनात्मक इकाइयों का प्रयोग करते है। इन संरचनात्मक इकाइयों मे जाति, वर्ग, अभिजात, समूह तथा व्यावसायिक एवं
पेशेजन्य श्रेणियां प्रमुख है। समाज मे विभिन्न समूहों के बीच श्रेणी अथवा स्तर के निर्धारण मे भूमिका अथवा स्थिति को इकाई के रूप मे लिया जाता हैं। समाज मे स्थितियों एवं भूमिकाओं का श्रेणीकरम मनमाने ढंग से नही होता, बल्कि निश्चित मूल्यों एवं मानदण्डों के आधार पर होता है। ये मूल्य आम समति या वैचारिक सामंजस्य पर आधारित होते है। समाज के स्तरीकरण मे जाती, वर्ग एवं शक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका है। सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है--- शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी सामाजिक स्तरीकरण क्या है इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए?वास्तव मे सामाजिक स्तरीकरण का आधार सामाजिक विभेदीकरण है। जब भिन्न सामाजिक विशिष्टताओं के साथ भिन्न सामाजिक प्रतिष्ठा जुड़ जाती है जिससे कतिपय सामाजिक विशिष्टताओं को समाज मे ऊँचा स्थान, अच्छी सुविधाएँ और पुरस्कार प्रदान किया जाता है तो समाज न केवल विभेदीकृत होता है, बल्कि स्तरीकृत भी हो जाता है।
सामाजिक स्तरीकरण के कितने आधार है?सामाजिक स्तरीकरण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है- जातिगत और वर्गगत। जातिगत स्तरीकरण:- जाति के आधार पर व्यक्ति अथवा समूह का सामाजिक स्तर निश्चित करना जातिगत स्तरीकरण कहा जाता है; जैसे – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र।
सामाजिक स्तरीकरण से आप क्या समझते हैं समाज में इसके महत्व की चर्चा कीजिए?सामाजिक स्तरीकरण की व्यवस्था के द्वारा व्यक्तियों के कार्यों का विभाजन होता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने निश्चित कार्य को कुशलता से करके लोगों की आवश्यकता की पूर्ति में सहायक होता है। सामाजिक स्तरीकरण का एक महत्व यह भी है कि के द्वारा व्यक्तियों को समाज में उचित स्थान मिलता है जिसे उस व्यक्ति की प्रस्थिति भी कही जाती है।
सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप क्या है?बंद स्तरीकरण वह व्यवस्था है जिस में व्यक्ति की स्थिति का निर्धारण जन्म के आधार पर होता है। साथ ही इसमें किसी प्रकार की गतिशीलता नहीं पाई जाती है। इस व्यवस्था के अनुसार जन्म से व्यक्ति के कार्य, हैसियत एवं सुविधा और असुविधा का निर्धारण हो जाता है।
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