सार्वजनिक संवाद क्या है यह शिक्षकों के लिए क्यों जरूरी है? - saarvajanik sanvaad kya hai yah shikshakon ke lie kyon jarooree hai?

सार्वजनिक संवाद क्या है यह शिक्षकों के लिए क्यों जरूरी है? - saarvajanik sanvaad kya hai yah shikshakon ke lie kyon jarooree hai?

पैरेंट्स-टीचर मीटिंग के दौरान शिक्षक और अभिभावक संवाद करते हुए।

21वीं सदी के वर्तमान दौर में शिक्षक की भूमिका काफी चुनौतीपूर्ण हो गई है। इस भूमिका का निर्वाह जिस शिद्दत के साथ आप कर रहे हैं वह काबिल-ए-तारीफ है। शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले तमाम सकारात्मक बदलाव शिक्षकों के प्रयासों, प्रतिबद्धता और आंतरिक रूप से प्रेरित होकर काम करने की कहानियां भर हैं। 

सतत प्रोत्साहन की जरूरत

शिक्षक साथियों ने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी अच्छा काम करके अपनी क्षमता का परिचय दिया है। हम आपस में एक-दूसरे के छोटे-छोटे सार्थक प्रयासों को प्रोत्साहित करेंगे ताकि काम करने की ऊर्जा और उत्साह सतत बना रहे। हमें प्रोत्साहित करने की संस्कृति (Culture of appriciation) का विकास करना है ताकि हमारा काम करने फोकस बना रहे।

शिक्षकों के ‘जीवन की गुणवत्ता’ का सवाल

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राजस्थान के एक सरकारी विद्यालय में बच्चों को कहानी की किताबें देते शिक्षक

हमारे मन में छात्रों को अच्छी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का लक्ष्य सदैव सर्वोपरि रहे। इस सवाल को हल करने की दिशा में होने वाले प्रयासों को शिक्षकों के ‘जीवन की गुणवत्ता’ वाले सवाल से भी जूझना होगा। काम करने की स्वतंत्रतता, निर्णय की आज़ादी और भरोसे के साथ प्रतिस्पर्धात्मक वेतन व नियमित नियुक्ति जैसी व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने की दिशा में प्रयास करने ही होंगे।

उपरोक्त स्थिति में शिक्षकों को शिक्षा के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र बच्चों के ऊपर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी। ऐसे में वे शिकायत करने की बजाय ध्यान रखेंगे कि समुदाय और स्कूल के सभी  बच्चों को सम्मान के साथ शिक्षा मिले और सम्मान के साथ भोजन मिले। विभिन्न शैक्षिक और सह-शैक्षिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी मिले और उनके आगे की राह आसान हो, इसके लिए हमें विपरीत परिस्थितियों को भी पक्ष में मोड़ने के रास्ते खोजने होंगे।

निजी समस्याओं को सार्वजनिक बनाने से बचें

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एक सरकारी स्कूल में एक-दूसरे को सीखने में मदद करते बच्चे।

आपकी यात्रा में, अपनी निजी समस्याओं को सार्वजनिक बनाने के अवसर मिलेंगे। मगर ऐसी समस्याओं को प्रमुख मुद्दा बनाने से बचना चाहिए जिसका सीधा असर बच्चों की शिक्षा और उनके भविष्य से न हो। अपने भविष्य की परवाह के लिए बच्चों की शिक्षा और उनके जीवन के सबसे रचनात्मक लम्हों को दाँव पर लगाने वाली राजनीतिक व सामाजिक बुराइयों से खुद को बचाना होगा, तभी हम सच्चे अर्थों में अपने शिक्षक होने की सार्थकता को जीवंत बना पाएंगे।

बच्चों के खिलाफ हो रही हिंसा रोकने की पहल करें

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यह तस्वीर महाराष्ट्र के एख सरकारी विद्यालय की है।

आज के दौर में बच्चों पर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने, अच्छे नंबर लाने और बड़ों की हर अपेक्षा पर खरे उतरने का दबाव है। उनके खिलाफ होने वाली हिंसा भी बढ़ रही है, ऐसे में समाज आपकी तरफ उम्मीद भरी नज़रों से देख रहा है कि आप ऐसी स्थितियों का समाधान करने के लिए पहल करें। अभिभावकों के भरोसे को फिर से बहाल करने की जरूरत है। उनका सहयोग हासिल करने की जरूरत है। बच्चों को घर पर अच्छा माहौल मिले। अभिभावक उनको घर पर पढ़ने के लिए बैठाएं। स्कूल छोड़कर चले गये बच्चे फिर से स्कूल लौटकर आएं।

ठेके की आलोचना से घबराने की जरूरत नहीं

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जॉन डिवी का मानना था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो स्कूल छोड़ने के बाद भी काम आए।

वे बच्चे जो स्कूल फिर से लौट आए हैं, वे स्कूली शिक्षा पूरी करने से पहले कुछ सीखें। कम से कम पढ़ना-लिखना और अपने जीवन की समस्याओं पर सोचना, समाधान करने के लिए पहल करना, आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कहना, धैर्य के साथ अपने साथियों और बड़ों को सुनने जैसी बुनियादी क्षमताओं का विकास कर सकें।

यह काम सच्चे अर्थों में राष्ट्र के निर्माण का काम है। देश के हित का काम है। ऐसे काम के लिए किस के दिल में आपके लिए सम्मान की भावना नहीं होगी। आपकी आलोचनाओं के ठेके दिये जाते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण का डर फैलाया जा रहा है।

वर्तमान में सरकारी स्कूलों के खिलाफ दुष्प्रचार अपने चरम पर है, मगर दिल्ली सरकारी के एक फैसले ने सरकार की ताकत और निजी स्कूलों की मनमानी दोनों को सलीके से सामने रखा है। इसके साथ ही स्कूलों के उस पहलू को हमारे सामने रखा है कि अगर सरकार चाह ले और शिक्षकों की तरफ से अच्छा सहयोग मिले तो सरकारी स्कूलों के दिन फिर से लौट सकते हैं।

रवांडा की कहानी एक मिशाल है

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अफ्रीका के एक छोटे से देश रवांडा की कहानी सरकारी स्कूलों की सफलता की कहानी के बहाने बहुत कुछ कह जाती है, उसका संदेश साफ है कि मजबूत और पारदर्शी सरकार के अच्छे नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़ीरो टालरेंस वाली नीति से बदलाव संभव है। यहां के निजी स्कूल सरकारी संरक्षण के अभाव में बंद होने की कगार पर हैं। जिन संस्थाओं के निजी स्कूल बंद हो रहे हैं, अब वे सरकार से सरकारी फीस पर बच्चों को पढ़ाने के लिए सहयोग करने की माँग कर रहे हैं। लेकिन सरकार ने इस विचार को सिरे से नकार दिया है।”

आपसी सहयोग और प्रोत्साहन की संस्कृति का विकास करें

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हो सकता है किसी दिन हमारी सरकार की तरफ से भी शिक्षा में बदलाव की दिशा में ऐसे प्रयासों को गति मिले।

एक उम्मीद तो कर ही सकते हैं। शायद ऐसी ही उम्मीद के सहारे हमारे बहुत से शिक्षक साथी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी अच्छा काम कर रहे हैं।

हम आपस में एक-दूसरे के ऐसे छोटे-छोटे और सार्थक प्रयासों को प्रोत्साहित करते रहेंगे। इससे बदलाव की ऊर्जा और काम करने का उत्साह सतत बना रहे।

आप भी उन शिक्षकों को याद करें, जिन्होंने आपके जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाने में अहम भूमिका निभाई है। इसी बात के साथ हम आज अपनी बात समाप्त करते हैं, आप सभी को ‘शिक्षक दिवस‘ की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाइयां।