संसद अपने ऊपर कैसे नियंत्रण रखती है? - sansad apane oopar kaise niyantran rakhatee hai?

 संसदकेकार्यएवंशक्तियां 

भारत के संविधान द्वारा निम्नलिखित कार्य एवं शक्तियाँ प्रदान की गयी है-

विधिनिर्माणकीशक्ति

संसद को सातवीं अनुसूची के संघ सूची तथा समवर्ती सूची में अन्तर्विष्ट विषयों पर विधि निर्माण का पूर्ण अधिकार है लेकिन उसे निम्नलिखित स्थितियों में राज्य सूची में शामिल किये गये विषयों पर भी विधि निर्माण का अधिकार है-

  (क) जब राष्ट्रीय आपात या राज्य में आपात स्थिति प्रवर्तन में हो (अनुच्छेद 350)

  (ख) जब दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमंडल प्रस्ताव पारित करके संसद से विधि निर्माण का अनुरोध करें (अनुच्छेद 252)

  (ग) जब राज्य सभा दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करके संसद से विधि निर्माण का अनुरोध करे (अनुच्छेद 249)

वित्तीयशक्ति

संसद को संघ के वित्त पर पूर्ण अधिकार है। प्राक्कलन समिति तथा लोक लेखा समिति  का गठन संसद द्वारा किया जाता है तथा भारत की संचित निधि पर संसद का पूर्ण नियंत्रण होता है संसद द्वारा निर्मित विधि के प्रावधानों के अनुसार ही भारत की संचित निधि से धन निकाला जा सकता है। संसद को आकस्मिक निधि को भी स्थापित करने का अधिकार है संसद के समक्ष वार्षिक बजट पेश किया जाता है, जिसमें वर्ष के प्राक्कलित प्राप्तियों तथा व्ययों का विवरण होता है। उसके अतिरिक्त संसद को विनियोग विधेयक, अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान, लेखानुदान, प्रत्यानुदान तथा अपवादानुदान के सम्बन्ध में पर्याप्त  शक्ति है। कराधान प्रस्तावों को प्रवर्तित करने हेतु संसद को वित्त विधेयक पारित करने की शक्ति है।

कार्यपालिकासंबन्धीशक्ति

संसद सदस्यों में से ही सत्तापक्ष के सदस्यों से मंत्रिपरिषद का गठन किया जाता है। संसद सदस्य कई प्रस्तावों के माध्यम से मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण रखते हैं तथा मंत्रिपरिषद को संसद (विशेषकर लोकसभा) के प्रति उत्तरदायी बनाये रखते हैं।

राज्योंसेसम्बन्धितशक्ति

संसद राज्यों की सीमाओं तथा नामों में परिवर्तन कर सकती है, नये राज्यों का गठन कर सकती है, राज्यों का विभाजन कर सकती है तथा कई राज्यों को मिलाकर एक राज्य बना सकती है। साथ ही किसी विद्यमान राज्य को किसी विद्यमान राज्य में मिला सकती है।

संविधानमेंसंशोधनकीशक्ति

संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन संसद का यह अधिकार असीमित नहीं है क्योंकि संसद संविधान संशोधन द्वारा संविधान के मूल ढांचे को परिवर्तित नहीं कर सकती ।

निर्वाचन सम्बन्धीकार्य

संसद के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेते है तथा संसद उपराष्ट्रपति को निर्वाचित करती है।

महाभियोगकीशक्ति

अनुच्छेद 61 के अनुसार संसद को राष्ट्रपति तथा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को महाभियोग प्रक्रिया के माध्यम से पदमुक्त करने का अधिकार है।

संसदकीविधायीप्रक्रिया

देश के लिए कानून का निर्माण करना संसद का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है । लोकसभा, राज्यसभा तथा राष्ट्रपति (संसद के तीनों अंग) की सहमति से कानून का निर्माण होता है। जब किसी प्रस्तावित कानून को लोकसभा तथा राज्यसभा द्वारा पारित किया जाता है, तब उसे विधेयक कहा जाता है। लेकिन विधेयक को कानूनी शक्ति तबतक प्राप्त नहीं होती है, जब तक विधेयक को राष्ट्रपति अपनी सहमति दे देता । राष्ट्रपति की सहमति के पश्चात विधेयक अधिनियम के रूप में प्रवृत्त हो जाता है और वह कानून का रूप ले लेता है ।

संसद में पेश किये जाने वाले विधेयक और उसके पारित करने की प्रक्रिया के अनुसार विधेयक को निम्नलिखित प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है-

सरकारीविधेयक

अनुच्छेद 107 के अनुसार सरकारी विधेयक के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रक्रिया अपनायी जाती है-

विधेयकोंकाप्रारूपतैयारकरना- जब सरकार के समक्ष कोई विधायी प्रस्ताव आता है, तब सम्बन्धित मंत्रालय उसके राजनीतिक, प्रशासनिक, वित्तीय तथा अन्य परिमाणों की जांच करता है और आवश्यकतानुसार अन्य मंत्रालयों से भी परामर्श लिया जाता है। प्रस्ताव के विधिक तथा संवैधानिक पहलुओं के सम्बन्ध में विधि मंत्रालय तथा महान्ययवादी से भी सलाह ली जाती है। प्रस्ताव के सभी पहलुओं की जांच के बाद उसे अनुमोदन के लिए मंत्रिमण्डल के समक्ष रखा जाता है। मंत्रिमंडल का अनुमोदन प्राप्त करने के बाद सरकारी प्ररूपकार, विभागीय विशेषज्ञ तथा अधिकारियों की सहायता से प्रस्ताव को विधेयक का रूप देते हैं।

वाचन- किसी भी विधेयक का सदन में तीन बार वाचन होता है, जो निम्न प्रकार है-

(1.) प्रथमवाचन-प्रथम वाचन में विधेयक पेश करने वाला मंत्री विधेयक पेश करने के कारणों तथा विधेयक के उद्देश्य के सम्बन्ध में बताता है। यह कार्य मंत्री द्वारा लोकसभाध्यक्ष या सभापति द्वारा नियत की गयी तिथि को उनके अनुमति से किया जाता है।

(2.) द्वितीयवाचन- विधेयक के सम्बन्ध में द्वितीय वाचन का अत्यधिक महत्व है और इसमें विधेयक की विस्तृत एवं बारीकी से जांच की जाती है। द्वितीय वाचन विधेयक की वह अवस्था है जिसमें विधेयक के खण्ड-उपखण्ड पर गम्भीरता से विचार किया जा सकता है। द्वितीय वाचन में निम्नलिखित दो चरण होते हैं-

  1.  प्रथम चरण-द्वितीय वाचन के प्रथम चरण में विधेयक के अन्तर्निहित सिद्वांतों पर विचार विमर्श किया जाता है तथा आवश्यक होने पर विधेयक को प्रवर समिति या संयुक्त प्रवर समिति को सौपा जाता है।
  2. द्वितीयचरण- प्रवर/संयुक्त प्रवर समिति द्वारा प्रतिवेदित विधेयक को स्वीकार करने के बाद विधेयक के खण्डों एवं उपखण्डों पर सदन द्वारा विचार प्रारम्भ होता है । इसी विचारण के दौरान सदन के सदस्यों के द्वारा विधेयक में संशोधन पेश किये जाते है। यदि संशोधन स्वीकार कर लिए जाते है, तो विधेयक के अंग बन जाते है।

(3.) तृतीयवाचन-जब विधेयक को सभी खण्डो तथा उपखण्डों पर, संशोधन सहित, सदन द्वारा विचार विमर्श कर लिया जाता है, और सदन द्वारा उसे स्वीकार कर लिया जाता है, तब विधेयक पेश कने वाला मंत्री यह प्रस्ताव रखता है कि विधेयक को पारित किया जाय। इस प्रस्ताव पर विधेयक को स्वीकार किये जाने या अस्वीकार किये जाने के सम्बन्ध में तर्क पेश किये जाते है। इसके बाद या तो विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया जाता है या उस पर मतदान होता है। यदि विधेयक के पक्ष में बहुमत होता है तो विधेयक को पारित मान लिया जाता है । 

दूसरेसदन कोविधेयकभेजाजाना- जिस सदन में विधेयक पेश किया गया हो, उसमें पारित किये जाने के बाद विधेयक को इस आशय से दूसरे सदन में भेजा जाता है कि वह भी विधेयक पारित कर दे, यदि दूसरा सदन विधेयक को पारित कर दे, तो उसे राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजा जाता है। दूसरे सदन में गतिरोध उत्पन्न होना और संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक - जब विधेयक को एक सदन द्वारा पारित करके दूसरे सदन को भेजा जाता है, तब उस विधेयक के सम्बन्ध में गतिरोध उत्पन्न हो सकता है यदि दूसरे सदन द्वारा निम्नलिखित में से कोई कार्यवाही की जाती है -

  • वह पहले सदन द्वारा पारित विधेयक को पूर्णतया अस्वीकार कर दे, या
  • वह विधेयक को संशोधन सहित पारित करे। जब विधेयक संशोधन सहित पारित किया जाता है, तब विधेयक को पहले सदन के पास वापस भेजा जाता है। पहले सदन में संशोधन पटल पर रखा जाता है । यदि पहला सदन संशोधन से सहमत हो जाता है, तब विधेयक को दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है । यदि पहला सदन संशोधन से सहमत नहीं होता, तो विधेयक को फिर से दूसरे सदन में भेजा जाता है, और यदि दूसरा सदन संशोधन पर जोर देता है, तो यह माना जाता है कि दोनो सदनों के बीच गतिरोध उत्पन्न हो गया है।
  • वह विधेयक को पारित करने की कार्यवाही नहीं करता और उसे छः मास तक अपने पास रोके रखता है। जब ऐसी स्थिति उत्पन्न हो, तब यह माना जाता है कि विधेयक के सम्बन्ध में गतिरोध उत्पन्न हो गया है।

राष्ट्रपतिकीसहमति-जब कोई विधेयक दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग या संयुक्त  बैठक  में पारित कर दिया जाता है, तो उस पर राष्ट्रपति की अनुमति प्रदान करने के बाद वह विधेयक अधिनियम के रूप में प्रवृत्त हो जाता है ।

गैर सरकारीविधेयक

जो विधेयक मंत्रिपरिषद के सदस्यों के अतिरिक्त संसद के किसी भी सदन के किसी भी सदस्य द्वारा किसी भी सदन में पेश किया जाता है, उसे गैर सरकारी विधेयक कहते हैं। गैर सरकारी विधेयक को पेश करने के लिए प्रत्येक माह के प्रथम शुक्रवार को ढाई घण्टे का समय नियत है। गैर सरकारी विधेयक संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है । गैर सरकारी विधेयक को पेश करने से पहले अध्यक्ष या सभापति को एक माह पूर्व सूचना देनी पड़ती है लेकिन अध्यक्ष या सभापति इसे अल्प सूचना पर भी पेश करने की अनुमति दे सकते हैं। विधेयक एक मास पूर्व सदन के सचिवालय में जमा किया जाता है और विधेयक पेश करने के कारणों तथा विधेयक के उद्देश्य को भी संलग्न किया जाता है।

धनविधेयक

अनुच्छेद 110 के अनुसार, धन विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति से लोकसभा में पेश किया जाता है । लोकसभा द्वारा पारित किये जाने के बाद इसे राज्यसभा में भेजा जाता है। जब राज्यसभा को विधेयक भेजा जाता है तब उसके साथ लोकसभाध्यक्ष का यह प्रमाण-पत्र संलग्र होता है कि वह विधेयक धन विधेयक ही है। लोकसभाध्यक्ष को ही निर्णीत करने की शक्ति है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं ।  राज्यसभा अपने यहां विधेयक को 14 दिन से अधिक नहीं रोक सकती यदि राज्यसभा धन विधेयक को 14 दिन से अधिक रोकती है, तो विधेयक को उस रूप में पारित माना जाएगा, जिस रूप में लोकसभा ने पारित किया था ।

धनविधेयक कीपरिभाषा- धन विधेयक ऐसे विधेयक को कहा जाता है, जिसमें निम्नलिखित विषयों में से सभी या किसी सम्बन्ध में प्रावधान हो-

  • किसी कर का अधिरोपण, उत्पादन, परिहार, परिवर्तन  या विनिमयन,
  • भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने या कोई प्रत्याभूति देने का विनिमयन अथवा भारत सरकार द्वारा अपने ऊपर ली गयी या ली जाने वाली किन्ही वित्तीय बाध्यताओं से सम्बन्धित विधि का संशोधन।
  • भारत की संचित निधि या आकस्मिक निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी निधि में धन जमा करना या उसमें से धन निकालना,
  • भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग,
  • किसी व्यय को भारत की संचित निधि या भारत लोक लेखा के मद में धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन संघ व राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा करना।

विनियोग विधेयक

संसद विनियोग विधेयक पारित करके भारत सरकार को भारत की संचित निधि से धन निकालने की अनुमति देती है । इस विधेयक को केवल लोकसभा में ही पेश किया जाता है इस विधेयक पर विचार-विमर्श केवल उन्ही मदों पर सीमित होता है, जिन्हे अनुदानों और आगणनों के विचार-विमर्श में शामिल न किया गया हो। विनियोग विधेयक के पूर्व लोकसभा ने जिन अनुदानों को स्वीकार कर लिया हो, उस पर न तो कोई संशोधन पेश किया जा सकता है और न ही अनुदान के लक्ष्य को बदला जा सकता है और न ही उस धनराशि में परिवर्तन किया जा सकता है जिसकी अदायगी भारत की संचित निधि से की जानी होगी । लोकसभा द्वारा विधेयक को पारित किये जाने पर इसे राज्यसभा को भेजा जाता है। राज्यसभा विनियोग विधेयक को अपने यहां 14 दिनों से अधिक रोक नहीं सकती और न ही उसमें कोई संशोधन कर सकती है। इस संदर्भ में राज्यसभा में केवल सिफारिश करने की शक्ति प्राप्त है, किन्तु यह लोकसभा पर निर्भर करता है कि वह राज्यसभा की सिफारिश को स्वीकार करे या न करे। इसके बाद विधेयक को पारित मान करके राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजा जाता है।

वित्तविधेयक

संविधान के अनुच्छेद 112 वित्त विधेयक को परिभाषित करता है। जिन वित्तीय प्रस्तावों को सरकार आगामी वर्ष के लिए सदन में प्रस्तुत करती है, उन वित्तीय प्रस्ताओं को मिलाकर वित्त विधेयक की रचना होती है। इस प्रकार जब धन विधेयक में कानूनी प्रावधान जोड़ दिये जाते है तो उसे वित्त विधेयक कहा जाता है। वित्त विधेयक को केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है और वित्त विधेयक के सम्बन्ध में राज्यसभा तथा लोकसभा को वही शक्तियां प्राप्त है, जो धन विधेयक तथा विनियोग विधेयक के सम्बन्ध में है। वित्त विधेयक को पारित करने में तथा अधिनियमित करने में उसी प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है, जिसका अनुसरण धन विधेयक तथा विनियोग विधेयक के सम्बन्ध में किया जाता  है । वार्षिक वित्त विधेयक में बहुत से उपबंध होते हैं। परंतु उसे धन विधेयक समझा जाता है क्योंकि अध्यक्ष के प्रमाण-पत्र  और पृष्ठांकन में उसे धन विधेयक कहा जाता है।

वित्त विधेयक के दो लक्षण धन विधेयक के समान होते हैं-

  • दोनों लोकसभा में आरंभ किये जाते है, और
  • उन्हें राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति के बिना पेश नहीं किया जा सकता।

दो प्रकार के वित्त विधेयक को अध्यक्ष का एक प्रमाण-पत्र नहीं मिलता कि वे धन विधेयक हैं-

  • कोई विधेयक जिसमें अनुच्छेद 110 में प्रगणित विषयों के बारे में उपबंध नहीं है। उसमें कुछ अन्य विषय भी है, जैसे- कोई विधेयक जिसमें लौह अयस्क के बारे में उपबंध है और अयस्क पर उपकर भी लगाया जाता है, वित्त विधेयक होता है (अनुच्छेद 117 (1.)
  • ऐसा विधेयक जिसमें ऐसे उपबंध है जिसके कारण भारत की संचित निधि में से व्यय का प्रावधान हो।

अनुच्छेद 117 (1) के अधीन आने वाले वित्त विधेयक को राज्यसभा में पुरःस्थापित  नहीं किया जा सकता । दूसरे प्रकार या वित्त विधेयक जो भारत की संचित निधि में से व्यय से संबंधित होता है, को किसी भी सदन में पुरःस्थापित किया जा सकता है। इसके पुरःस्थापन के लिए राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति आवश्यक नहीं होती। किन्तु दोनो सदनों के विचार-विमर्श के लिए राष्ट्रपति की सिफारिश की अपेक्षा होती है। इस प्रकार अनुच्छेद 117 (3) के आधीन आने वाला विधेयक राज्यसभा द्वारा तभी पारित किया जा सकता है जब राष्ट्रपति ने वित्त विधेयक पर विचार करने की सिफारिश की हो। वित्त विधेयक को राज्यसभा द्वारा भी पारित किया जाना चाहिए। यदि दोनो सदनों के बीच इसको लेकर असहमति हो जाती है तो अनुच्छेद 108 के तहत संयुक्त  बैठक का आयोजन किया जा सकता है ।  धन विधेयक के सम्बन्ध में संयुक्त बैठक नहीं होती ।

भारत की संचित निधि से किये जाने वाले व्यय

भारत की संचित निधि से निम्नलिखित व्यय किये जाते हैं-

  • राष्ट्रपति का वेतन, भत्ते तथा उसके पद से सम्बन्धित अन्य व्यय,
  • राज्यसभा के सभापति, उपसभापति तथा लोकसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते,
  • ऐसे ऋण का भार, जिनका दायित्व भारत सरकार पर है। ऐसे भारत में ऋण का ब्याज, निक्षेप निधि भार, मोचन भारत तथा उधार लेने और ऋण सेवा एवं ऋण मोचन से सम्बन्धित अन्य व्यय शामिल हैं।
  • उच्चतम् न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के वेतन, भत्ते तथा पेंशन,
  • किसी न्यायालय या मध्यस्थ या अधिकरण के निर्णय, आज्ञाप्ति या पंचाट भुगतान के लिए अपेक्षित कोई धनराशि,
  • संविधान द्वारा या संसद द्वारा भारित घोषित किया गया कोई अन्य व्यय।

       भारत की संचित निधि से किये जाने वाले व्यय से सम्बन्धित प्राक्कलन संसद  मतदान के लिए पेश नहीं किये जायेंगे किन्तु संसद को मतदान के लिए व्ययों के प्रत्येक मद पर विचार विमर्श का अधिकार होगा। अन्य व्यय से सम्बंधित व्यय लोकसभा के समक्ष अनुदान की मांग के रूप में पेश किये जाते हैं। लोकसभा किसी मांग को स्वीकार कर सकती है, कम कर सकती है या अस्वीकार कर सकती हैं। राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना अनुदान की मांग को लोकसभा में पेश नहीं किया जा सकता ।

अनुपूरक अनुदान

जब विनियोग विधेयक द्वारा किसी विशेष सेवा पर चालू वर्ष के दौरान व्यय किये जाने के लिए प्राधिकृति धनराशि अपर्याप्त मानी जाती है या वार्षिक बजट में उल्लिखित किसी सेवा पर व्यय की आवश्यकता उत्पन्न होती है, राष्ट्रपति संसद के समक्ष अनुदान मांग पेश करवाता है और इसे पारित करने के लिए वही प्रक्रिया अपनायी जाती है, जो विनियोग विधेयक के लिए अपनायी जाती है ।

लेखानुदान

विनियोग विधेयक को पारित करने के पहले, जब सरकार को धन की आवश्यकता होती है, तब लोकसभा लेखानुदान के माध्यम से सरकार के व्यय के लिए अग्रिम धनराशि की व्यवस्था करती है ।

अधिकअनुदान

जब किसी वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर उस वर्ष और उस सेवा के लिए अनुदान की गयी रकम से कोई अधिक धन व्यय की हो गया है, तो राष्ट्रपति लोकसभा में अधिक अनुदान की मांग रखवाता है।

संसदमेंचर्चापररोक

संसद में उच्चतम् न्यायालय या उच्च न्यायालयों के किसी न्यायाधीश के अपने कर्तव्य पालन में किये गये आचरण पर चर्चा नहीं की जा सकती सिवाय उस स्थिति के जब न्यायाधीश को हटाने के लिए प्रस्ताव पर विचार-विमर्श हो रहा हो (अनुच्छेद 121)।

न्यायालयों द्वारा संसद की कार्यवाहियों की जांच न किया जाना

न्यायालय संसद की कार्यवाही पर न तो जांच कर सकेंगे और न तो संसद का कोई सदस्य या अधिकारी अपनी शक्तियों के प्रयोग के विषय में न्यायालय की अधिकारिता के अधीन होगा।

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संसद कार्यपालिका पर कैसे नियंत्रण?

विभिन्न संसदीय प्रक्रियाओं, यथा- प्रश्न काल, शून्य काल आदि के माध्यम से भी कार्यपालिका पर नियंत्रण रखा जाता है। विभिन्न संसदीय समितियों के माध्यम से भी विधायिका द्वारा कार्यपालिका का नियंत्रण किया जाता है। बजट प्रक्रिया के दौरान विभिन्न वित्तीय समितियों के ज़रिये भी विधायिका कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है।

प्रशासन पर नियंत्रण कैसे करें?

Way # 1. प्रशासन पर विधायी नियंत्रण (Legislative Control over Administration): प्रत्येक देश में प्रशासन की नीतियों का निर्धारण व्यवस्थापिका द्वारा ही किया जाता है, प्रशासन स्वयं नीतियों का निर्माण नहीं कर सकता है । इसके अतिरिक्त लोक-प्रशासन का संचालन, पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण भी विधानमंडल का सामान्य अधिकार है ।

भारत में वित्त पर संसदीय नियंत्रण के तंत्र क्या हैं?

वित्त पर संसदीय नियंत्रण विधानमंडल की स्वीकृति के लिए बजट तैयार करना केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों, का संवैधानिक दायित्व है। कराधान पर विधायी विशेषाधिकार, व्यय पर विधायी नियंत्रण तथा वित्तीय मामलों पर कार्यपालिका द्वारा पहल संसदीय वित्तीय नियंत्रण प्रणाली के कुछ मूलभूत सिद्धान्त हैं

संसद क्या होता है?

संसद भारत का सर्वोच्‍च विधायी निकाय है। भारतीय संसद में राष्‍ट्रपति तथा दो सदन - राज्‍य सभा (राज्‍यों की परिषद) एवं लोकसभा (लोगों का सदन) होते हैं। राष्‍ट्रपति के पास संसद के दोनों में से किसी भी सदन को बुलाने या स्‍थगित करने अथवा लोकसभा को भंग करने की शक्ति है। भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को प्रवृत्‍त हुआ।