शिक्षक शिक्षा में पाठ्यक्रम का क्या महत्व है? - shikshak shiksha mein paathyakram ka kya mahatv hai?

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए पाठ्यक्रम की बहुत ही महत्वपूर्ण आवश्यकता मानी जाती है। इसके बिना शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सफल नहीं बनाया जा सकता है। पाठ्यक्रम ऐसा साधन है जिसके द्वारा विद्यार्थी का सम्पूर्ण विकास सम्भव है। समय व परिस्थितियों के अनुसार पाठ्यक्रम में भी विकास होना चाहिए ताकि विद्यार्थी पाठ्यक्रम के द्वारा केवल इतिहास का ही ज्ञान न प्राप्त करके उसके साथ वर्तमान तथा भविष्य की समस्याओं से भी अवगत हो। इससे वे वर्तमान तथा भविष्य की समस्याओं को दूर करने में सक्षम हो सकते हैं । पाठ्यक्रम के महत्व या उपयोगिता (utility) पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कनिंघम (Cunningham) लिखते हैं कि “यह (पाठ्यक्रम) कलाकार (शिक्षक) के हाथों में एक ऐसा उपकरण है जिसकी सहायता से वह अपनी सामग्री (छात्र) का अपने आदर्श (उद्देश्य) के अनुसार अपने कलाग्रह (विद्यालय) में निर्माण करता है।

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  • पाठ्यक्रम की आवश्यकता
    • सुव्यवस्थित शिक्षा की व्यवस्था (Well organised Education System)
    • उद्देश्यों की प्राप्ति (Attainment of Objectives)
    • ज्ञान प्राप्ति का साधन (Source of Acquiring Knowledge)
    • शिक्षण सामग्री का निर्धारण (Determination of Study Material)
    • स्तर बनाये रखने में सहायक (Helpful in Maintaining the Standard)
    • मूल्यांकन प्रक्रिया में सहायक (Helpful in Evaluation Process)
    • लोकतान्त्रिक मूल्यों का विकास (Development of Democratic Values)
    • आवश्यकताओं की पूर्ति (Fulfilment of Needs)
    • पाठ्य-पुस्तकों के निर्माण में सहायक (Helpful in Preparing Text-books)
    • शिक्षण विधियों का चयन (Selection of Proper Teaching Method)
    • समय एवं शक्ति की बचत (Saving of Time and Energy)
    • शिक्षकों के लिए मापदण्ड (The Set Criteria for Teachers)
    • निरन्तर अनुभवों का विकास (Development of Continuous Experiences)
    • विभिन्न विषयों के बारे में ज्ञान (To get Knowledge of Various Subjects)
    • स्थानीय स्रोतों का अधिक प्रयोग (Proper Use of Local Sources)
    • पाठ्यक्रम एक साधन के रूप में (Curriculum as a Source)
    • पाठ्यक्रम व विद्यालय का वातावरण (Curriculum and School Environment)
    • पाठ्यक्रम में क्रियाओं का महत्त्व (Importance of Activities in Curriculum)

पाठ्यक्रम की आवश्यकता

शिक्षण तकनीकी के रूप में भी देखें तो हम पाते हैं कि किसी भी शैक्षिक प्रक्रिया के तीन पहलू होते हैं -(1) शिक्षा क्यों ? (Why of Education ?), (2) शिक्षा कैसे ? (How of Education ?) तथा (3) शिक्षा में क्या ? (What of Education ?) इसमें प्रथम पहलू-शिक्षा क्यों का सम्बन्ध शिक्षा के उद्देश्यों से होता है, शिक्षा कैसे का सम्बन्ध शिक्षण विधियों से होता है तथा शिक्षा में क्या का सम्बन्ध शिक्षा के पाठ्यक्रम से होता है। इस प्रकार पाठ्यक्रम का सीधा सम्बन्ध शिक्षा के उद्देश्य तथा शिक्षण विधियों से होता है।

पाठ्यक्रम शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने का एक साधन है तथा शिक्षण विधियों का चयन भी अध्यापक पाठ्यक्रम के अनुसार ही करता है। इस प्रकार पाठ्यक्रम उद्देश्यों तथा शिक्षण विधियों दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही पाठ्यक्रम औपचारिक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण भाग माना जाता है।

औपचारिक शिक्षा केवल विद्यालय, कॉलेज, विश्वविद्यालय आदि में ही सम्भव है। ऐसी शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण उस समय की आवश्यकताओं व परिस्थितियों के आधार पर होता है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के द्वारा ही विद्यार्थी अपना सर्वांगीण विकास करता है। यह विकास तभी अच्छी तरह हो सकता है जब पाठ्यक्रम का निर्माण भी उचित ढंग से होगा । एक निश्चित पाठ्यक्रम विद्यार्थी का सम्पूर्ण विकास नहीं कर सकता है इसलिए पाठ्यक्रम में समय व परिस्थितियों के अनुसार विकास व परिवर्तन करना चाहिए।

पाठ्यक्रम की आवश्यकता को निम्नांकित बिन्दुओं द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है-

शिक्षक शिक्षा में पाठ्यक्रम का क्या महत्व है? - shikshak shiksha mein paathyakram ka kya mahatv hai?
पाठ्यक्रम की आवश्यकता (Need of Curriculum)

सुव्यवस्थित शिक्षा की व्यवस्था (Well organised Education System)

पाठ्यक्रम द्वारा प्रचलित शिक्षा प्रणाली को व्यवस्थित किया जा सकता है। इससे यह निश्चित करने में सुविधा रहती है कि शिक्षा के किस स्तर पर कौन-सी विषयवस्तु पढ़ानी है, कौन-सी क्रियाएँ करनी हैं तथा कौन-कौन से अनुभव प्रदान करते हैं। पाठ्यक्रम की सहायता से ही यह निश्चित करने में सुविधा रहती है कि छात्रों में विभिन्न स्तरों पर कौन-सी दक्षताएँ, प्रवृत्तियों तथा रुचियों का विकास करना है।

उद्देश्यों की प्राप्ति (Attainment of Objectives)

समाज की शैक्षिक आकांक्षाओं तथा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सर्वप्रथम शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है और इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण तथा विकास किया जाता है। पाठ्यक्रम के अभाव में शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति असम्भव है तथा इसके अभाव में शिक्षण कार्य भी सम्भव नहीं हो पाता है।

ज्ञान प्राप्ति का साधन (Source of Acquiring Knowledge)

यह संसार ज्ञान या रहस्यों से भरा हुआ है। मनुष्य हर समय इस ज्ञान व रहस्यों को जानने के लिए उत्सुक रहता है, परन्तु यह ज्ञान वह केवल पाठ्यक्रम के द्वारा ही जान सकता है। पाठ्यक्रम का निर्माण ज्ञान प्राप्ति के आधार पर किया जाता है। ज्ञान प्राप्त करके मनुष्य अपने अनुभवों में वृद्धि करता है जिससे वह समाज में अच्छा जीवनव्यतीत कर सकता है।

शिक्षण सामग्री का निर्धारण (Determination of Study Material)

पाठ्यक्रम हमें बताता है कि क्या पढ़ना है। इसकी सहायता से शिक्षा के विभिन्न स्तरों तथा कक्षाओं के लिए पाठ्य-सामग्री का निर्धारण करने में सहायता मिलती है। पाठ्यक्रम ही बताता है कि विभिन्न कक्षाओं में क्या पढ़ाया जाय । जहाँ सुस्पष्ट पाठ्यक्रम नहीं होता है वहाँ पर निश्चित करना कठिन हो जाता है कि शिक्षक द्वारा क्या पढ़ाया जाय।

स्तर बनाये रखने में सहायक (Helpful in Maintaining the Standard)

यदि पाठ्यक्रम सुनिश्चित रहता है तो इससे शिक्षा के स्तर को बनाये रखने में सहायता मिलती है। पाठ्यक्रम ही वह तत्व है जो विभिन्न कालों तथा समाजों में शिक्षा के स्तर में एकरूपता लाता है। पाठ्यक्रम के आधार पर ही दो या अधिक शिक्षा प्रणालियों का तुलनात्मक अध्ययन करना सम्भव हो पाता है । पाठ्यक्रम के विश्लेषण से हम बहुत कुछ मात्रा में शिक्षा के स्तर के उत्थान एवं पतन का भी विश्लेषण कर सकते हैं ।

मूल्यांकन प्रक्रिया में सहायक (Helpful in Evaluation Process)

पाठ्यक्रम के कारण ही मूल्यांकन प्रक्रिया सरल, सहज तथा वैज्ञानिक बनती है। निश्चित पाठ्यक्रम होने पर ही छात्रों की योग्यताओं तथा क्षमताओं का सही मूल्यांकन सम्भव हो पाता है। पाठ्यक्रम के अभाव में मूल्यांकन सम्भव नहीं है। यदि पाठ्यक्रम के अभाव में मूल्यांकन किया जायेगा तो उसमें वैधता तथा विश्वसनीयता का अभाव होगा।

लोकतान्त्रिक मूल्यों का विकास (Development of Democratic Values)

वर्तमान युग लोकतन्त्र का युग है। जहाँ पर सभी नागरिकों को एक समान समझा जाता है, वहीं दूसरी ओर उन्हें बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त है।

लोकतन्त्र में सभी को समानता व स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है जिससे उनमें उदारता, न्याय, भ्रातृत्व सामूहिक जीवन आदि गुणों को पैदा किया जाता है। यह गुण छात्रों में केवल विद्यालय पाठ्यक्रम के द्वारा ही पैदा करता है। ये गुण छात्रों में लोकतान्त्रिक मूल्यों का विकास करने में सहायक माने जाते हैं।

आवश्यकताओं की पूर्ति (Fulfilment of Needs)

विद्यालय में पढ़ने वाले प्रत्येक छात्र की बहुत आवश्यकताएँ होती हैं । इन आवश्यकताओं की पूर्ति वह पाठ्यक्रम के द्वारा ही करता है। बालक के साथ साथ प्रत्येक राष्ट्र व समाज की भी अपनी आवश्यकताएँ होती हैं । इन सबकी पूर्ति भी पाठ्यक्रम द्वारा ही सम्भव है।

प्रत्येक समाज व राष्ट्र चाहता है कि उसके नागरिकों में राष्ट्र प्रेम, अच्छी नागरिकता व राष्ट्र के प्रति कर्तव्य की भावना पैदा हो । यह केवल पाठ्यक्रम द्वारा ही सम्भव हो सकता है। पाठ्यक्रम ही नागरिकों में ऐसे गुणों का विकास करने में सहायक हो सकता है। विद्यालय पाठ्यक्रम का निर्माण, राष्ट्र, समाज व बालक की आवश्यकताओं के आधार पर करके इन सबकी पूर्ति करता है।

पाठ्य-पुस्तकों के निर्माण में सहायक (Helpful in Preparing Text-books)

पाठ्यक्रम की सहायता से ही सुनिश्चित पाठ्य-पुस्तकों की रचना करना सम्भव होता है। पाठ्यक्रम के अभाव में सामान्य पुस्तकें तो लिखी जा सकती हैं , परन्तु पाठ्य-पुस्तकें नहीं। हम यह भी जानते हैं कि पाठ्य-पुस्तकों के अभाव में शिक्षा को व्यवस्थित रूप प्रदान करना सम्भव नहीं होता।

शिक्षण विधियों का चयन (Selection of Proper Teaching Method)

पाठ्यक्रम शिक्षण विधियों का निर्धारण करता है। जैसा पाठ्यक्रम होगा तदनुरूप ही शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है। यही कारण है कि हिन्दी भाषा की शिक्षण पद्धतियाँ रसायन विज्ञान की शिक्षण पद्धतियों से भिन्न होती हैं । पाठ्यक्रम के अभाव में शिक्षक के लिए शिक्षण विधियों का चयन करना बड़ा कठिन हो जाता है।

समय एवं शक्ति की बचत (Saving of Time and Energy)

पाठ्यक्रम के कारण ही शिक्षक तथा छात्र अनेकानेक निरर्थक क्रियाओं से बच जाते हैं । वे अपनी क्रियाओं को पाठ्यक्रम की सीमाओं में ही सीमित रखते हैं  इससे उनके समय तथा शक्ति की बचत होती है।

पाठ्यक्रम के कारण ही अध्यापक यह सुनिश्चित कर पाता है कि उसे क्या और कब पढ़ाना है। वह अपने शिक्षण की योजना बना पाता है तथा छात्र भी यह जान लेते हैं कि उन्हें क्या और कब पढ़ना है। पाठ्यक्रम के कारण उन्हें उधर-इधर भटकने की आवश्यकता नहीं रहती है। इससे छात्र एवं शिक्षक दोनों को ही सुविधा मिलती है।

शिक्षकों के लिए मापदण्ड (The Set Criteria for Teachers)

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में पाठ्यक्रम शिक्षक द्वारा आगे बढ़ाया जाता है। पाठ्यक्रम शिक्षकों के लिए मापदण्ड तैयार करता है कि शिक्षक पाठ्यक्रम को किस प्रकार छात्रों तक पहुँचाए। सभी विषयों को एक ही शिक्षक द्वारा आसानी से नहीं पढ़ाया जा सकता है। इसलिए पाठ्यक्रम शिक्षकों के लिए मापदण्ड तैयार करता है। शिक्षक को अपने विषय की उचित जानकारी होनी चाहिए ताकि शैक्षिक उद्देश्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सके।

निरन्तर अनुभवों का विकास (Development of Continuous Experiences)

पाठ्यक्रम निरन्तर तथा क्रमानुसार अनुभवों के विकास का परिणाम है क्योंकि समय व परिस्थितियों के अनुसार प्रत्येक वस्तु में परिवर्तन होता है उसी तरह पाठ्यक्रम निरन्तर व क्रमानुसार अनुभवों का विकास करता है।

विद्यार्थी में निरन्तर व क्रमानुसार अनुभवों का विकास करने में पाठ्यक्रम बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि विद्यार्थी को एक क्रम के अनुसार ज्ञान प्रदान किया जाता है जैसे बालक पहले अपने परिवार व आस-पास के वातावरण को समझता है व उसके बाद उसे राष्ट्र व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की जानकारी दी जाती है। यह विकास निरन्तर व क्रमानुसार चलता रहता है।

विभिन्न विषयों के बारे में ज्ञान (To get Knowledge of Various Subjects)

पाठ्यक्रम छात्रों को विभिन्न विषयों के बारे में ज्ञान प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पाठ्यक्रम के द्वारा ही हम विभिन्न विषयों जैसे विज्ञान, दर्शनशास्त्र, भूगोल, समाजशास्त्र व इतिहास आदि के बारे में विस्तारपूर्वक ज्ञान प्राप्त करते हैं । पाठ्यक्रम विभिन्न विषयों को एकसूत्र में बाँधकर छात्रों के उसके जीवन में प्रयोग करने के लिए तैयार करता है। ये विषय छात्रों के दैनिक जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए तैयार करते हैं ।

स्थानीय स्रोतों का अधिक प्रयोग (Proper Use of Local Sources)

पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय स्थानीय स्रोतों का अधिक प्रयोग किया जाता है। पाठ्यक्रम को जब विद्यार्थी कक्षा या विद्यालय में ग्रहण करते है तो उसे अपने स्थानीय स्रोतों के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है। वे उन स्रोतों को अच्छी तरह से प्रयोग करना सीखते हैं ।

वे स्थानीय स्रोतों को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार प्रयोग कर सकते हैं जिससे उनके ज्ञान में वृद्धि होती है। अतः पाठ्यक्रम में स्थानीय स्रोतों का महत्वपूर्ण स्थान है जो छात्रों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सहायता करता है।

पाठ्यक्रम एक साधन के रूप में (Curriculum as a Source)

पाठ्यक्रम की आवश्यकता छात्रों को उनके जीवन में विकसित करने के लिए भी होती है। छात्र जब विद्यालय में जाते हैं तो वे अपने आपको सामाजिक व आर्थिक जीवन के लिए तैयार करते हैं । पाठ्यक्रम निर्धारित करके विद्यालय छात्रों को सहायता प्रदान करता है। वे अपना पूर्ण विकास करके समाज में अच्छे नागरिक बनते हैं ।

समाज की आवश्यकताओं के आधार पर शिक्षाशास्त्री व दर्शनशास्त्री पाठ्यक्रम का निर्माण करते हैं । इस पाठ्यक्रम को छात्रों की रुचियों के आधार पर भी निर्मित किया जाता है। समय के साथ-साथ पाठ्यक्रम में परिवर्तन अनिवार्य होते हैं । ये परिवर्तन समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं । अतः यह स्पष्ट होता है कि पाठ्यक्रम एक विद्यालय में वह साधन है जिसको हर छात्र को अपने उद्देश्यों की पूर्ति व विकास के लिए अपनाना ही पड़ता है।

पाठ्यक्रम व विद्यालय का वातावरण (Curriculum and School Environment)

एक विद्यालय में पाठ्यक्रम को सुचारु रूप से चलाने के लिए उचित वातावरण का होना अति आवश्यक है। यदि पाठ्यक्रम का निर्माण छात्रों के विकास व हितों के आधार पर होता है तो उस पाठ्यक्रम को चलाने के लिए विद्यालय ऐसे वातावरण का निर्माण करता है जिसके द्वारा पाठ्यक्रम में शामिल क्रियाएँ सम्भव होती हैं ।

यदि पाठ्यक्रम विस्तृत है, परन्तु विद्यालय उस पाठ्यक्रम को पूर्ण करने में अच्छा वातावरण नहीं उपलब्ध करवाता तो पाठ्यक्रम अच्छा होने के बावजूद भी छात्रों तक नहीं पहुंच पाता है। यह विद्यालय की जिम्मेदारी है कि जो पाठ्यक्रम छात्रों के लिए निर्मित किया गया है उसे पूरा करने के लिए वे सभी साधन व वातावरण उपलब्ध करवायें जिससे पाठ्यक्रम का विकास हो । यदि गतिशील वातावरण विद्यालय में नहीं होगा तो पाठ्यक्रम पूर्णरूप से छात्रों तक नहीं पहुँच सकता है। इससे पाठ्यक्रम का लाभ छात्र अच्छे ढंग से अपना नहीं पाते हैं ।

पाठ्यक्रम में क्रियाओं का महत्त्व (Importance of Activities in Curriculum)

पाठ्यक्रम में क्रियाओं को शामिल करके छात्रों को निपुण व हर कार्य करने में सक्षम बनाया जाता है। एक विद्यालय में छात्रों से सम्बन्धित विभिन्न क्रियाएँ होती हैं जो छात्रों के विकास में सहायता करती है। पाठ्यक्रम केवल कक्षाकक्ष तक ही सम्बन्धित नहीं होता है बल्कि इसमें सहगामी क्रियाओं, पुस्तकालय, प्रयोगशालाएँ, कर्मशालाएँ, खेल का मैदान, विद्यालय की सीमा में घटित क्रियाएँ भी शामिल होती हैं । इससे बच्चों में करके सीखने की शक्ति का विकास होता है। इससे छात्रों, अध्यापकों व अन्य कर्मचारियों के अनुभव भी शामिल होते हैं जिनको पाठ्यक्रम को लागू करने में प्रयोग किया जाता है।

इस प्रकार शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में पाठ्यक्रम का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। इसके बिना शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की कल्पना भी नहीं की जा सकती है और न ही शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति हो सकती है। शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति पाठ्यक्रम के द्वारा ही सम्भव है। इसके साथ-साथ विद्यार्थी के सम्पूर्ण विकास, लोकतान्त्रिक मूल्यों का विकास, ज्ञान प्राप्ति, आवश्यकताओं की पूर्ति, शिक्षण विधियों का चयन, उत्तम नागरिकता का विकास और शोध कार्य को प्रोत्साहित करने आदि के विकास में पाठ्यक्रम की आवश्यकता पड़ती है। पाठ्यक्रम के द्वारा ही विद्यार्थी, समाज व राष्ट्र का विकास सम्भव है।

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शिक्षण में पाठ्यक्रम का क्या महत्व है?

पाठ्यक्रम शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने का एक साधन है तथा शिक्षण विधियों का चयन भी अध्यापक पाठ्यक्रम के अनुसार ही करता है। इस प्रकार पाठ्यक्रम उद्देश्यों तथा शिक्षण विधियों दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही पाठ्यक्रम औपचारिक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण भाग माना जाता है

पाठ्यक्रम क्या है इसके महत्व को समझाइए?

पाठ्यक्रम – शिक्षा एक व्यापक एवं गतिशील प्रक्रिया है। यह मानव विकास की आधारशिला है। यह एक जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में लगातार परिवर्तन होता रहता है। शिक्षा प्रकाश का वह स्रोत है जिससे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारा सच्चा पथ प्रदर्शन होता रहता है।

पाठ्यचर्या का क्या महत्व है?

पाठ्यचर्या का उद्देश्य बाल-केन्द्रित शिक्षा प्रदान करना है। इसके अंतर्गत छात्रों की व्यक्तिगत एवं शैक्षिक रूचियों, योग्यताओं व क्षमताओं को दृष्टिगत रखते हुए छात्रों को शिक्षा प्रदान करना है। इससे लाभ यह है कि सर्वप्रथम तो बालक विद्यालय आने मे रूचि लेने लगेगा एवं इस प्रकार वह अपनी रूचि अनुसार ज्ञान प्राप्त करेगा।

पाठ्यक्रम की आवश्यकता क्यों होती है?

पाठ्यक्रम की आवश्यकता (1) पाठ्यक्रम के द्वारा ही स्पष्ट किया जाता है कि विद्यालय में विभिन्न स्तरों पर किस-किस विषय का ज्ञान छात्रों को दिया जायेगा। इस प्रकार पाठ्यक्रम से पाठ्यसामग्री का निर्धारण होता है जिससे शिक्षण-प्रक्रिया को सुनियोजित करने में सहायता मिलती है।