विषयसूची भैंस की बच्चेदानी का इन्फेक्शन कैसे दूर करें?इसे सुनेंरोकेंनजदीकी पशु अस्पताल में पशु का चेकअप करवाएं। बच्चेदानी में इंफेक्शन हो सकती है। इसके लिए बच्चेदानी में तीन दिन तक एंटीबायोटिक रखनी पड़ेगी। अगली बार जब गाय हीट में आएगी तो गर्भाधान हो जाएगा। मुर्रा भैंस कितने दिन में बच्चा देती है?इसे सुनेंरोकेंभैंस में यह लगभग 310 दिन होता है। यदि भैंस बच्चा देने के 90 दिन के अंदर गाभिन हो जाये तभी 310 दिन गर्भकाल को जोड़कर, अगला बच्चा उससे 400 दिन के अंतराल पर प्राप्त किया जा सकता है। गर्भवती गाय की पहचान कैसे करें? इसे सुनेंरोकें* पशु के हीट में आने के लक्षण में पतले पारदर्शी चमकीले तांते आते हैं, ये तांते अगर पशु के क्रास या AI कराने के बाद भी आते तो समझ जाना चाहिए कि भैंस ठहरी नहीं है, दुबारा फिर क्रास की जरूरत है। * पशु के हीट में आने के 12-14 घंटे के बाद 18 वें घंटे में क्रास करवाना चाहिए। गाय गाभिन है या नहीं कैसे पता करें? गर्मी के लक्षण
गाय को ब्याने के बाद क्या क्या खिलाना चाहिए?इसे सुनेंरोकेंब्यानेके बाद यूं रखें पशु का ध्यान: ब्यानेके बाद पशु को गुनगुने पानी से भीगे कपड़े द्वारा साफ करें, ब्याने के बाद पशु को कार्बोहाइड्रेटस युक्त चारे खिलाएं। पशु को गेहूं का दलिया, सोंठ, गुड़ अजवायन पकाकर खिलाएं। ब्याने के 10 घंटे तक पशु जेर गिराए तो पशु चिकित्सक से संपर्क करें। जेर को तुरंग गड्ढे में दबा दें। भैंस का वजन कितना होता है?वॉटर बफैलो: 300 – 550 kg भैंस का गर्भकाल कितना होता है? गाय व भैंस में मदकाल, गर्भवती करने का समय, गर्भ जांच का समय व गर्भकाल की सूचक सारणी
गिर गाय कितने दिन में बच्चा देती है? इसे सुनेंरोकेंयदि गर्भाधान सही हुआ है तो आप उसके ब्याने का समय निकाल सटे हैं क्योकि गाय का औसत गर्भकाल 280-290 दिन एवं भैंस 305 – 318 दिन। भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण - Gastrointestinal parasites in buffalo in Hindiशेयर करें January 23, 2021 कई बार आवाज़ आने में कुछ क्षण का विलम्ब हो सकता है! भारत में भैंस को आर्थिक रूप से एक महत्वपूर्ण जानवर माना जाता है, क्योंकि इससे प्राप्त होने वाला दूध, मीट और खाल उच्च गुणवत्ता का होता है। भैंस के पेट में पनपने वाले परजीवियों से गंभीर संक्रमण हो जाता है, जिससे उसके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इसके लक्षण मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करते हैं कि भैंस के पेट के किस हिस्से में संक्रमण अधिक हुआ है। इसके लक्षणों में मुख्य रूप से जुगाली न करना, चारा न खाना और पतला गोबर करना आदि शामिल हैं। कुछ गंभीर मामलों में भैंस का वजन भी काफी घट जाता है। भैंस के शरीर में ये परजीवी मुख्य रूप से स्वच्छ घास न खाने और साफ पानी न पीने के कारण होता है। उदाहरण के लिए यदि भैंस तालाब का पानी पीती है, तो उसे परजीवी संक्रमण होने का खतरा हो सकता है। परजीवी व उससे होने वाले संक्रमण का पता लगाने के लिए पशु चिकित्सक भैंस के कुछ टेस्ट कर सकते हैं। टेस्ट से प्राप्त हुए परिणामों के अनुसार ही इलाज प्रक्रिया शुरू की जाती है। इसके इलाज में मुख्य रूप से डिवर्मिंग प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है। यदि इस स्थिति का समय पर इलाज न किया जाए तो ऐसे में भैंस दूध देना पूरी तरह से बंद कर सकती है और कुछ गंभीर मामलों में भैंस की मृत्यु भी हो सकती है।
भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण क्या है? - Bhains ko Gastrointestinal parasitesभैंस के पेट में पाए जाने वाले परजीवियों को गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल पैरासाइट कहा जाता है। यह एक वयस्क भैंस की तुलना में उनके छोटे बच्चों में अधिक पाए जाते हैं। यह काफी आम समस्या है, जिसके कारण पशुओं में मृत्यु दर काफी बढ़ हो जाती है और किसानों को आर्थिक रूप से काफी नुकसान हो जाता है। भैंस के पेट में मौजूद परजीवी उनके शरीर के अंगों को संक्रमित कर क्षति पहुंचाने लगते हैं, जिससे कमजोरी आने लगती है। साथ ही साथ इन परजीवियों के कारण भैंस का वजन नहीं बढ़ पाता और कुछ स्थितियों में वह गाभिन भी नही हो पाती है। पेट में परजीवी होने के कारण दूध देने वाली भैंस के उत्पादन में भी कमी हो जाती है। भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण के लक्षण - Bhains ko Gastrointestinal parasites ke lakshanपरजीवी संक्रमण होना पशु के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर समस्या हो सकती है। भैंस पर इन परजीवियों का प्रभाव उसके स्वास्थ्य, उम्र, शारीरिक स्थिति और संक्रमण की गंभीरता के अनुसार पड़ता है। भैंस के शरीर के अनुसार परजीवियों के लक्षण भी अलग-अलग हो सकते हैं। हालांकि, कुछ लक्षण हैं जो आमतौर पर देखे जा सकते हैं -
पशु चिकित्सक को कब दिखाएं? पेट में परजीवी संक्रमण एक गंभीर स्थिति है, जिसका जल्द से जल्द इलाज करवाना जरूरी है। यदि भैंस ने चारा खाना अचानक से बंद कर दिया है या फिर ऊपरोक्त में कोई अन्य गंभीर लक्षण महसूस हो रहा है, तो पशु चिकित्सक से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए। हालांकि, यदि आपकी भैंस गाभिन है तो इस बारे में पशु चिकित्सक को अवश्य बता दें। भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण के कारण - Bhains ke pet me parjivi sankraman ka karanभैंस के शरीर में परजीवी मुख्य रूप से साफ-सुथरा चारा न खाने या फिर स्वच्छ पानी न पीने के कारण होते हैं। कई बार भैंस सड़ा हुआ या कई दिन का बासी चारा खा लेती है, जिसके कारण उसके पेट में परजीवी संक्रमण हो जाता है। यदि हरी घास को कटे हुए अधिक समय हो गया है, तो उसका ढेर गर्म हो जाता है, जिससे उसमें विभिन्न प्रकार के कीड़े पैदा हो जाते हैं जो भैंस के पेट में जाकर संक्रमण पैदा करते हैं। कई बार खुरली (चारे का बर्तन) के किनारों में हरी घास फंस जाती है, यदि उसे साफ न कियी जाए तो उसमें कीड़े पैदा हो जाते हैं। ये कीड़े बहुत ही हानिकारक होते हैं, जो भैंस के पेट में विभिन्न प्रकार के इन्फेक्शन का कारण बन सकते हैं। बाहर के तालाबों से पानी पीना भी उनके शरीर में कई प्रकार के परजीवी संक्रमणों का कारण बन सकता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि कुछ तालाबों में नालों का पानी आता है, जिस कारण से पूरा तालाब दूषित हो जाता है। कई बार अधिक धूप के कारण हरी घास में कुछ कीड़े पैदा होकर एसिड बनाने लग जाते हैं और इस घास को खाने पर भी भैंस का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है। इसके अलावा कुछ अन्य स्थितियां हैं, जो पेट में परजीवी संक्रमण होने का कारण बन सकती हैं -
भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण की रोकथाम - Bhains ke pet me parasite infection ki rokthamभैंस के पेट में परजीवी पैदा होने से बचाव करना बहुत जरूरी है, क्योंकि ये गंभीर संक्रमण का कारण बन सकते हैं। ऐसा करने के लिए ध्यान रखें कि भैंस किसी भी प्रकार का बाहरी घास या अन्य कोई खाद्य पदार्थ न खा पाए। खेतों में उच्च उर्वरक व कीटनाशकों द्वारा तैयार हरी व ताजी खास खिलाएं। हालांकि, घास में किस कीटनाशक व ऊर्वरक का इस्तेमाल करना उचित है, इस बारे में डॉक्टर से सलाह अवश्य लें। भैंस को कहीं बाहर न जाने दें और ना ही किसी तालाब का पानी पीने दें। घर पर ताजा पानी पिलाएं और समय-समय पर पानी व चारे के बर्तन को साफ करते रहें। यदि किसी दूसरे पशु के शरीर पर घाव बना हुआ है, तो कोशिश करें कि भैंस चाटने न पाए। भैंस की समय-समय पर पशु चिकित्सक से जांच करवाते रहें और यदि भैंस गाभिन है तो जांच के दौरान डॉक्टर को इस बारे में अवश्य बता दें। भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण का परीक्षण - Bhains ke pet me parasite infection ki janchभैंस के पेट में परजीवियों और उनसे होने वाले संक्रमण का पता लगाने के लिए परीक्षण किया जाता है। परीक्षण के दौरान पशु चिकित्सक भैंस के शरीर के तापमान व अन्य जांच करते हैं और साथ ही मालिक से कुछ सवाल भी पूछते हैं। ये सवाल मुख्य रूप से भैंस के स्वास्थ्य संबंधी पिछली स्थितियों से जुड़े होते हैं, जिनमें निम्न शामिल है -
सवालों से मिले जवाब और भैंस की शारीरिक स्थिति के अनुसार कुछ विशेष टेस्ट किए जाते हैं। टेस्ट करने के लिए भैंस के गोबर, मूत्र या खून से सैंपल लिए जाते हैं। टेस्ट की मदद से यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि किस परजीवी के कारण संक्रमण हुआ है। साथ ही परीक्षण की मदद से यह भी पता लगाने की कोशिश की जाती है कि संक्रमण पेट के अंदर किस भाग में हैं (लिवर, फेफड़े, गुर्दे या आंत)। परीक्षण के दौरान यह बताना बेहद आवश्यक है कि भैंस गाभिन है या नहीं। भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण का इलाज - Bhains ko Gastrointestinal parasites infection ka ilaajभैंस के पेट में परजीवी संक्रमण का इलाज मुख्य रूप से परीक्षण के परिणाम के अनुसार किया जाता है, इसका मुख्य लक्ष्य परजीवियों को मारकर शरीर से बाहर निकालना होता है। शरीर से परजीवियों को नष्ट करने की इलाज प्रक्रिया को भी डिवर्मिंग (Deworming) कहा जाता है। डिवर्मिंग में पशु चिकित्सक परजीवी के प्रकार व संक्रमण किस भाग में है उसके अनुसार दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। इन दवाओं की मदद से ये परजीवी या तो भैंस के शरीर के अंदर ही नष्ट हो जाते हैं या फिर गोबर आदि के माध्यम से शरीर से बाहर निकलने लगते हैं। डिवर्मिंग प्रक्रिया की मदद से भैंस के स्वास्थ्य में सुधार आने लगता है, वह धीरे-धीरे चारा व पानी लेने लग जाती है। एक दो दिन के भीतर भैंस स्वस्थ दिखने लगती है और उसका दूध उत्पादन भी जल्द ही बढ़ने लगता है। हालांकि, यदि भैंस गाभिन है तो पशु चिकित्सक को यह पता होना जरूरी है। भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण की जटिलताएं - Bhains ke pet me parjivi sankraman ki jatiltayenयदि भैंस के शरीर में परजीवी संक्रमण हो गया है, तो वह खाना-पीना बंद कर देती है, जिससे उसका वजन घटने लगता है और दूध के उत्पादन में भी कमी आने लगती है। यदि समय पर इसकी जांच करवाकर इसकी इलाज प्रक्रिया शुरू न की जाए तो संक्रमण गंभीर रूप धारण कर लेता है और संक्रमित अंग को क्षतिग्रस्त कर देता है। ऐसी स्थिति में संक्रमण शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैलने लगता है, जिसके कारण भैंस की मृत्यु भी हो सकती है। यदि भैंस गाभिन है, तो संक्रमण के कारण गर्भपात भी हो सकता है या फिर गर्भ में पल रहे बच्चे तक भी संक्रमण फैल सकता है। सम्बंधित लेखभैंस का इन्फेक्शन कैसे ठीक करें?पशुओं में जब यह बीमारी काफी दिनों से हो रही होती है तथा जब उपचार बहुत मुश्किल होता है तो पशु बाँझ तक हो सकती है। इसलिए पशु का ध्यान सावधानी से रखना चाहिए । यदि पशु द्वारा ब्याने के 10 से 12 घंटे तक जेर नहीं गिरायी है तो तुरन्त पशु चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए ।
भैंस चारा नहीं खाती है तो क्या करना चाहिए?अगर आपकी गाय या भैंस को भूख कम लग रही है, तो उसे लीवर टॉनिक दें। इसे 50 मिलीग्राम दें। साथ ही जो पशु कम चारा खा रहा है उसे पाचक पाउडर दें। आप अपने पशु को एक मिक्सर बना कर भी दें, इसमें आप 200 ग्राम काला जीरी डालें और उसमें 50 ग्राम हींग मिलाएं।
कमजोर भैंस को क्या देना चाहिए?भैंस के लिये संतुलित आहार कैसे बनायें ?. मक्का/जौ/जर्इ 40 किलो मात्रा बिनौले की खल 16 किलो मूंगफली की खल 15 किलो ... . जौ 30 किलो सरसों की खल 25 किलो बिनौले की खल 22 किलो ... . मक्का या जौ40 किलो मात्रा मूंगफली की खल 20 किलो दालों की चूरी 17 किलो ... . गेहूं 32 किलो मात्रा सरसों की खल 10 किलो ... . गेहूं, जौ या बाजरा20 किलो मात्रा. भैंस फूल दिखाए तो क्या करना चाहिए?फूल दिखाए तो ठंडे पानी में लाल दवाई से साफ कर चढ़ाए। देशी करेले की बेल का एक कप रस हर रोज पशु को पिलाएं। हर्बल पाउडर बी लेप्स के 100 ग्राम की पुड़िया, 250 ग्राम बेसन 150 ग्राम सरसों के तेल दें।
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