व्यक्ति विकास के विभिन्न आयाम: मनुष्य के आयु के साथ होने वाले परिमाणात्मक परिवर्तनों के साथ ही गुणात्मक परिवर्तन भी होते रहते है। Show
विकास शब्द का अर्थ इसी प्रकार के गुणात्मक परिवर्तनों से लगाया जाता है। वैष्णव सम्प्�... Please enable JavaScript वैष्णव सम्प्रदाय — Study29 वैष्णव सम्प्रदायमानव विकास के विभिन्न आयामों की इस प्रकार से विभाजित किया जा सकता हैं –
शारीरिक विकास | Physical Developmentजन्म से पूर्व ही गर्भावस्था में ही व्यक्ति का शारीरिक विकास प्रारम्भ हो जाता है जो एक स्वाभाविक, प्राकृतिक एवं सतत प्रक्रिया है। जिस पर वंशानुक्रम एवं वातावरण का प्रभाव पड़ता है। जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में मनुष्य के शारीरिक विकास में मुख्य रूप से निम्नलिखित बाते देखने को मिलती है। शैशवावस्था –जन्म के समय तथा सम्पूर्ण शैशवावस्था में बालक का भार बालिका के भार की तुलना में अधिक होता है। बालक की लम्बाई जन्म के समय लगभग 51.25 सेमी. और बालिका की लम्बाई 50.75 सेमी होती है। 6 वर्ष तक लम्बाई लगभग 100 या 110 सेमी हो जाती है। शुरुआत के दो वर्षो में शिशु के सिर का विकास तेजी से होता है जो बाद में दूसरे अंगों के विकास की तुलना में धीरे पड़ जाता है। प्रथम महीने में शिशु के ह्रदय की धड़कन लगभग 140 बार प्रति मिनट होती है जो लगभग छह वर्ष की आयु में घटकर 100 बार प्रति मिनट रह जाती है। बाल्यावस्था –यह अवस्था शारीरिक विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण होती है। 12 वर्ष तक भार लगभग 80-95 पौंड के मध्य हो जाता है। इस अवस्था तक स्थाई दांत निकल आते हैं। बाल्यावस्था में लम्बाई केवल 7.5 सेमी से 10 सेमी तक ही बढ़ती है। किशोरावस्था –किशोरावस्था में किशोरों का भार किशोरियों की तुलना में अधिक बढ़ता है। इस अवस्था में ऊँचाई में तीव्रता के साथ वृद्धि होती हैं। 15 वर्ष की उम्र में किशोर तथा किशोरियों की ऊँचाई लगभग समान रहती है। 18 वर्ष की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते किशोरों की लम्बाई किशोरियों से 6-7 सेमी अधिक हो जाती है। किशोरावस्था में अस्थिकरण की प्रक्रिया पूर्ण होती है और हड्डियों की संख्या (206) रह जाती है। सामाजिक-भावनात्मक विकास | Social- Emotional Developmentसामाजिक परिस्थितियों के अनुकूल बालकों में व्यवहार करने तथा समायोजन करने की योग्यता का विकास ही सामाजिक विकास या सामाजिकरण कहलाता है। शिशु जन्म से सामाजिक नहीं होता है। एक वर्ष के भीतर शिशु माता-पिता को पहचानने लगता है, प्रेम और क्रोध के व्यवहार में अंतर समझने लगता है। दो और तीन वर्ष की आयु के बीच बालक खेलने के लिए साथी बनाकर उनसे सामाजिक संबंध स्थापित करने लगता है। पांच या छह वर्ष की आयु में बालक में नैतिक भावना का विकास होता है। बाल्यावस्था में नए वातावरण से अनुकूलन करना व समूह बनाकर या समूह में शामिल होकर सामाजिक गुणों का विकास करता है। किशोरावस्था में मित्रता की भावना का समुचित विकास हो जाता है। इस अवस्था में समूहों का निर्माण, उद्देश्य पिकनिक, सिनेमा देखना, नृत्य, संगीत द्वारा सामाजिक विकास होता है। संज्ञानात्मक विकास | Cognitive Developmentसंज्ञान का अर्थ होता है- देखना, अवबोधन करना, समझना, अंतर्निहित करना अथवा जानना। इस प्रकार संज्ञानात्मक विकास का तात्पर्य होगा – जानने की वृद्धि तथा क्षमता, समयानुसार समझना और अवबोधन करना जो कि परिपक्वता तथा वातावरण के साथ अंतःक्रिया करने से सुसाध्य होता है। संज्ञान में मानसिक प्रतिमानों की संरचना करने की योग्यता समाहित है जिसमें विचार, तर्क, स्मृति और भाषा की भूमिका है। प्रत्येक व्यक्ति का उसकी प्रेक्षण करने की विशिष्ट रीति के अनुसार उसका खुद का विशिष्ट प्रतिमान होता है। यही एक तरीका है जिससे सीखने वाला अपने चारो ओर के वातावरण के बारे में सीखता है। भाषा और प्रारंभिक साक्षरता विकास | Language and Early Literacy Developmentलगभग सभी लोग एक ही तरीके से अपनी-अपनी भाषा का विकास करते हैं। यह बात अलग है कि भाषा विकास की गति हर एक की भिन्न-भिन्न होती है। यह माना जाता है कि सीखने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है, आसपास का वातावरण, प्रकृति, चीजों व लोगों से कार्य व भाषा दोनों के माध्यम से संवाद स्थापित करना है। ऐसी स्थिति में बालक की परिपक्वता की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। भाषा के विभिन्न अंश और उसके प्रयोग के तरीके बहुत हद तक अनुभव पर निर्भर करते है। अनेक भाषाओं के विकास और संप्रेषण प्रक्रियाओं के अनुसार महत्वपूर्ण परिवारों के बच्चों के बीच अंतर करते हैं। ऐसे परिवार वे होते हैं, जहाँ संप्रेषण अधिक सीमित होता है और जहाँ बच्चों की बात बहुत कम सुनी जाती है और उन पर कम ही ध्यान दिया जाता है। बच्चे सुनने, बोलने, पढ़ने, पूछने, उस पर सोचने, विमर्श करने तथा लिखित रूप से अभिव्यक्त करने से सबसे अधिक सीखते हैं। अर्थ से पहले अवधारणा को ग्रहण करते हैं। विद्यालय में प्रवेश करते समय बच्चे के पास बहुत सारी अवधारणाएं होती हैं, जो उसकी अपनी परिवेश की भाषा में ही होती हैं। नैतिक विकास | Moral Developmentचरित्र एक अर्जित मानसिक संरचना है जिससे बालक अपनी उस सामामिक परम्परा के अनुसार व्यवहार करता है जिसके बीच उसके व्यक्तित्व का विकास होता है। इच्छा शक्ति, मूल प्रवृतियाँ, संवेगों, स्थायी भावों और आदतों का नैतिक विकास की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण स्थान हैं। चरित्र का आधार मूल प्रवृत्तियां होती है। यह मूल प्रवृत्तियाँ व्यक्ति को जन्म से ही प्राप्त होती है। सामान्यतः माध्यमिक विद्यालय स्तर के बालक दूसरे लोगों द्वारा उन नियमों का पालन न करते देख भ्रमित होते हैं जो कुछ लोगों पर लागू होते हैं, परन्तु कुछ लोगों पर नहीं। उदाहरण के लिए, हम बच्चों को अपनी नोटबुक से पृष्ठ फाड़ने से मना करते हैं लेकिन कई बार हम उनकी नोटबुक से दो या तीन खाली पृष्ठ फाड़ लेते है। इस प्रकार के अनुभव बालकों के नियमों के प्रत्ययों को परिवर्तित कर देते हैं। निष्कर्ष – इस प्रकार हम कह सकते है व्यक्ति के जीवन में विकास के विभिन्न आयाम का योगदान रहता है। ये व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार से प्रभावित करते रहते है। बालक को जिस प्रकार का सामाजिक, नैतिक, भाषाई वातावरण मिलेगा उसमें वैसे ही गुणों का विकास होगा। शारीरिक विकास का क्षेत्र क्या होता है?शारीरिक विकास वह प्रक्रिया है जो मानव शैशवावस्था में शुरू होती है और किशोरावस्था के साथ-साथ स्थूल और सूक्ष्म मोटर कौशल पर केंद्रित उत्तर किशोरावस्था में जारी रहती है। यह मानव शरीर को संरचना, रूप और कार्य देता है और इसी तरह इसमें मस्तिष्क, मांसपेशियों, इंद्रिय अंगों, हड्डियों, शरीर में परिवर्तन आदि शामिल हैं।
शारीरिक विकास कितने प्रकार के होते हैं?शारीरिक विकास के चार प्रमुख चरण. स्वास्थ्य. बाल स्वास्थ्य. शैशवावस्था : शारीरिक, पेशीय एवं स्नायविक विकास. शारीरिक विकास के चार प्रमुख चरण. शारीरिक विकास का उद्देश्य क्या है?शारीरिक विकास को सदैव भिन्न अंगों के अनुपात में परिवर्तन द्वारा जाना जाता है। शरीर के विभिन्न अंग अपने-अपने ढंग से विकसित होते हैं। जन्म के समय, बच्चों के शीर्ष भाग भारी होते हैं। बाल्यावस्था में, शरीर के दूसरे अंगों की अपेक्षा उनका सिर मन्द गति से बढ़ता है।
शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व कौन कौन से हैं?अन्य कारक शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कुछ अन्य कारक है- (1) रोग या दुर्घटना के कारण शरीर में उत्पन्न होने वाली विकृति या अयोग्यता (2) अच्छी और खराब जलवायु (3) दोषपूर्ण सामाजिक परम्पराएँ, जैसे- बाल-विवाह ( 4 ) गर्भिणी माता का स्वास्थ्य (5) परिवार का रहन-सहन और आर्थिक स्थिति ।
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