बाल विकास की विभिन्न अवस्थाए होती है | जिसमे बालक का विकास विभिन्न चरणों में होता है | बाल विकास की अवस्था से ही पता चलता है की बालक का विकास किस स्तर पर किस प्रकार से होता है | बाल विकास के ये स्तर गर्भ में निषेचन से प्रारंभ हो जाते है | Show
बाल विकास की अवस्थाएबाल विकास की अवस्थाए कितनी होती है ?शारीरिक विकासशारीरिक विकास के समय बाल विकास की अवस्था : 1 .गर्भावस्था 2 .शैशावस्था− 3.बाल्यावस्था− 4. किशोरावस्था− 1 .गर्भावस्थागर्भावस्था बाल विकास की प्रारम्भिक अवस्था है | बाल विकास का आरंभ गर्भावस्था से ही होता है इस अवस्था के बाद ही बाकि का विकास होता है − गर्भावस्था का समय−गर्भाधारण से 40 सप्ताह/280दिन − मानव विकास का प्रारम्भ एक कोष से होता है जिसे संयुक्त कौष के नाम से जाना जाता है। − संयुक्त कोष में एक मात्र कौष व एक पित्र कोष को शामिल किया जाता है। − महिला में अण्डाणु व पुरूष में शुक्राणु पाये जाते है। − महिला में xx गुणसुत्र व पुरूष में xy गुणसुत्र पाये जाते है। − गुणसुत्र में 23 जोडे होते है जिनकी संख्या 46 होती है। − इसमें से 22 जोडे अलैगिक गुणसुत्र व जोडा लैगिंक गुणसुत्र होता है। − गुणसुत्र की सबसे छोटी इकाई जीन होती है। − जीन को ही वंशानुक्रम याआनुवाशिंकता का ब्राहक माना जाता है। * जीन किस प्रकार की संरचना है। 1 स्थायी 2 स्थिर 3 गत्यात्मक 4 परिवर्तनशील − लिंग का निर्धारण xy गुणसुत्र के आधार पर किया जाता है। * लिंग कैसी संरचना है। 1 जैविक 2 शारीरिक 3 सामाजिक 4 सांग्कृत्रिक − लिंग एक सामाजिक संरचना है जिसके आधार पर समाज में महिला व पुरूष का निर्धारण किया जाता है तथा उनके कार्य, कर्तव्य, वेशभुषा आदि निर्धारित होते है। * लैगिंक पूर्वाग्रह− यह एक परम्परागत व रूढिवादी सोच है जिसमें लिंग के आधार पर समाज में लडकी व लडके में भेदभाव किया जाता है। * लैगिंक संवेदना− यह एक आधुनिक सोच हे जिसमें महिलाअं के कल्याण व विकास को महत्व दिया जाता है तथा महिलआं के हित में योजनाए बनाई जाती है। जैसे− बेटी बचाओ , बेटी पढाओ योजना | * डाउन्स सिण्डौम – महिला मे जब 21 वा गुणसुत्र जोडा अलग नहीं हो पाता है तो वह स्थिति डाउन्स सिण्डौम के नाम से जानी जाती है। एसी परिस्थिति में मंगोलिज्म या मंगोजिज्म संताने पैदा होती है। एसी संताने मंदबुद्धि बालक या मानसिक मंदाना कहलाता है। * क्लाइन फेन्टर सिण्डौम− इसमें पुरूष में x गुणसुत्र की मात्रा बढ जाती है अर्थात 46 की जगह 47 गुणसूत्र * टर्नर सिण्डौम – इसमें महिला में 1 या अधिक x गुणसुत्र कम हो जाता है। तो उसे टर्नर सिण्डौम या45*0 जैसे – 46 के स्थान पर 45 गुणसुत्र। * आई – ब्रेन कोर्डिनेशन पद्धति / आँख मस्तिष्क समन्वय पद्धति – इस पद्धति का प्रयोग 14 April 2015 को भारत के इंदौर विश्वविद्यालय में किया गया | * ट्राईसोमी – 13 – जब 13 वे गुणसूत्र में 1 परत गुणसूत्र की ओर बड जाए तो – – इसके कारण बालक के मस्तिष्क में विभिन प्रकार के विकार / दोष पैदा हो जाते है | – बालक का व्यव्हार असामान्य हो जाता है तथा बालक की कार्य क्षमता कम हो जाती है | * ट्राईसोमी – 18 – ऐसे बालक में गंभीर ह्रदय रोग पाये जाते है और ऐसे बालक बहुत कम तक जीवित रहत्ता है | * ट्राईसोमी – 23 – ऐसे बालक में नकारात्मक व्यव्हार , क्रोधी , व्यव्हार , तथा किशोर अवस्था में आपराधिक प्रवृतियो की अधिकता पायी जाती है | * गर्भावस्था का सही क्रम :1) अंडाणु 2) शुक्राणु 3) युग्मनज 4) भूर्ण * लिंग का निर्धारण : पुरुष के आधार पर लड़की : जब महिला का X गुणसूत्र पुरुष के X गुणसूत्र के साथ मेल करता है | लड़का : जब महिला का X गुणसूत्र पुरुष के Y गुणसूत्र के साथ मेल करता है | * गर्भावस्था में गर्भस्थ शिशु की गति विधियाँ व क्रियाकलाप : – 4 सप्ताह में शिशु का हृदय धडकना शुरू हो जाता है | – 7 सप्ताह में शिशु गर्भाशय में गति करना व हलचल करना शुरू कर देता है | – 14 सप्ताह में शिशु छिकना व खासना (मूल प्रवृति) शुरू – समर्थक मैकडूगल | – 3 माह में शिशु के आंख और मस्तिष्क का निमार्ण हो जाता है | – 5 माह में गर्भस्थ शिशु के सिर पर बाल निकलना शुरू हो जाते है | – 7 माह में शिशु सपने देखना शुरू कर देता है – समर्थक J.S रोस | सेतु /पोन्स : मस्तिष्क का यह भाग सपने देखना तथा नींद से जागने के साथ जोड़ा जाता है | – 40 सप्ताह /280 दिन ने गर्भस्थ शिशु का पूर्ण विकास हो जाता है | 2 .शैशावस्था−गर्भावस्था के बाद बाल विकास की दूसरी अवस्था है |इसमें शारीरिक व मानसिक विकास दोनों ही तीव्र गति से होते है | शैशवावस्था का समयहरलॉक = जन्म से 2 सप्ताह कोलसेनिक = जन्म से 3 सप्ताह 4 सप्ताह कोल = जन्म से 2 वर्ष सिली = जन्म से 5 वर्ष J.S रोस = 1 से 5 वर्ष सामान्य रूप से शैशवावस्था का समय = जन्म से 5 वर्ष | शैशव काल का समय = जन्म से 2 वर्ष नवजात शिशु की समयावधि = जन्म से 30 दिन /1 माह * प्रमुख कथन वाटसन – 1) मुझे कोई बच्चा दे दो में उसे डॉक्टर , इंजीनियर, या कुछ भी बना सकता हु | 2) शैशवावस्था में सीखने की सीमा व तीव्रता , विकास की अन्य अवस्थाओ में सर्वाधिक तेज गति में होती है | जॉन लॉक – शिशु कोरे कागज के समान होता है जिस पर लिखने का कार्य अनुभव के द्वारा किया जाता है | Notes: टेबुल रूसा के साथ जॉन लॉक को जोड़ा जाता है, टेबुल रूसा का अर्थ – “ खाली स्लेट/ कोरा कागज / मोम का सामान | फ्रोबेल – “ माँ बालक की प्रथम अध्यापिका होती है |” पेस्टोलोजी – “ परिवार , बालक की प्रथम पाठशाला है |” रूसो : “ हाथ , पैर, और आँख बालक के प्रारंभिक शिक्षक होते है | ” ईमाउल दुर्खीम : “ समाज बालक की प्रथम पाठशाला है |” डाइड्रने − पहले हम आदतो निर्माण करते है फिर आदते हमारा निर्माण करते है । गुड एनफ – बालक के परे जीवन मे जितना भी मानसिक विकास होता है । − शिशु कल्पनाओ का नायक शक्ति पूंज है। रासेल – प्रारम्भिक 6 वर्षो मे बाद के 12 वर्षा की तुलना मे दुगुनी मानसिक विकास हो जाता है। एडलर – जन्म के कुछ माह ही यह निर्धारित किया जाता है कि बालक का अपने जीवन मे क्या स्थान रहेगा । सिंगमणड फ्रायड – 1 बालक अपने जीवन मे क्या बनेगा इसका निर्धाण 4/5 वर्ष की आयु मे ही कर दिया जाता है। 2 शैशवास्था जीवन का आधारशीला काल है। (मनोविशलेषण विचारधारा) पेलेन्टाइन – (1) शैशवास्था सीखने का आदेश काल है । (2) शैशवास्था जीवन का संवेदनशील काल है। वाइगोस्टकी – (1) लगभग 2 वर्ष की आयु तक बालक मे भाषा ओर विचार का प्रथक −2 स्वतत्र रूप से विकास होता है। (2) शैशवास्था गुडे – गुडियो की अवस्था है। ब्रिजेज – लगभग 2 वर्ष की आयु तक बालक मे सभी सवेगो का पुर्ण विकास हो जाता है। स्ट्रग – बालक अपने ओर अपने संसार के बारे में अधिकांश बाते खेल के माधयम से सीखता है। * शैशवावस्था की विशेषता :
2 . शैशवावस्था में शिशु में मूल प्रवृतियो व संवेगों का विकास हो जाता है |
(नार्सिज्म शब्द का प्रयोग सिगमंड फ्रायड ने किया था | ) (नार्सिज्म शब्द का अर्थ – आत्म प्रेम / स्वयं से लगाव )
(I) खेल विधि – कोल्ड वेल कुक (II) किंडर गार्डन विधि – फ्रोबेल (III) मोंटेसरी विधि – मेडम मरिया मोंटेसर (IV) कहानी विधि – प्लेटो व अरस्तु
3.बाल्यावस्था−*बाल्यावस्था का समय :हरलॉक = 2 – 12 वर्ष काल = 2 – 12 वर्ष कोलसेनिक = 2 ½ से 12 वर्ष जे.एस रोस = 5 से 12 वर्ष सामान्य दृष्टिकोण = 6 से 12 वर्ष * बाल्यावस्था के अन्य नाम :
* प्रमुख कथन : किल पैट्रिक : “ बाल्यावस्था प्रतिहान्दात्मक सामाजीकरण की अवस्था है। रॉस − 1. बाल्यावस्था छदम परिपक्वता का काल या मिथ्या परिपक्वता का काल है।
कॉल्सैनिक – 1. सामुहिक खेल और शारीरिक न्यायाम प्राथमिक विधालय शिक्षा पाढयक्रम के अभिन्न अंग होने चाहिए । बाल्यवस्था मे बालक को सरल कहानियो के माधयम से नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए । सिगमणड फ्रायड − बाल्यवस्था जीवन का निर्माणकारी काल है। हरलाँक – बाल्यवस्था मे विधालय जो परिवार का स्थान ले लेता है । और अध्यापक मां का स्थान ले लेता है। कोल व ब्रस – बाल्यवस्था सवेगात्मक विकास की हष्टि से जीवन का अनौखा काल है। क्रो व क्रो – 20 वी शताब्दी बालक की शाताब्दी है। स्ट्रग – 1. शायद ही ऐसा कोई खेल हो जिमे 10 वर्ष का बालक ना खेल पाए । बाल्यवस्था मे बालक की भाषा मे सर्वाधिक रूचि पाई जाती है। ब्लेपर जोन्स सिम्पसन – बाल्यावस्था शैक्षिक विकाम की हष्टि से जीवन की महत्वपूर्ण अवस्था है ।बाल्यावस्था वह अवस्था है जिसमे बालक अपने भावी जीवन के आधारभूत मुल्यो भावनाओ आदर्शो और द्रष्टिकोण का निर्माण करना शुरू कर देता है । बाल्यवस्था की प्रमुख विशेषताए
Note− बालक मे सामाजिकता की भावना को विकसित करने वाली सबसे अच्छे विधि – सामाजीकृत विधि है।
जीन प्याजे − लगभग 8 वर्ष की आयु मे बालक अपने नैतिक नियमो का निर्माण करना व समाज के नैतिक नियमो मे विश्वास करना शुरू कर देता है।
Note − मस्तिसक उद्धेलन विधि का प्रतिपादक – आसबर्न 4. किशोरावस्था−किशोरावस्था शब्द अंग्रेजी भाषा के एडोलसेस शब्द से बना है। अग्रेजी भाषा का एडोलसेस शब्द लैटिन भाषा के शब्द एडोल सियर शब्द से बना है जिसका शब्दिक अर्थ है परिपक्वता की और आगे बढना या प्रजनन क्षमता का विकास हो जाता। क्षमता के विकास का दुसरा नाम परिपक्वता व कौशल का विकास है। किशोर मनोविज्ञान का जनक – स्टनेल हाल स्टेनले हाल की पुस्तक का नाम – एडोलसेन्म किशोरावस्था के अन्य नाम
प्रमुख कथन − स्टेनले हाल – 1. किशोरवस्था संघर्ष तनाव तुफान की अवस्था है। किशोरावस्था एक नया जीवन है क्योकि इसमे व्यक्ति अपने विकास के सर्वोतम लक्षणो को प्राप्त करता है| कालसेनिक − 1 किशोर प्रोढो को अपने मार्ग मे बाधा समझते है क्योकि वे उन्हे स्वत्रता प्राप्त करने से रोकते है । 2 किशोरावस्था मे किशोर किशोरियो को अपनी सुन्दरता और स्वास्थय की अधिक चिंता बनी रहती है । J.S. रास – किशोरावस्था शैशवास्था की पुनरावृति है। H.E. जोन्स – किशोरावस्था शैशवास्था की पुनरावृति है। कुल्हन – किशोरवस्था वह अवस्था है जिसमे कोई विचारशील व्यक्ति परिपक्वता की ओर आगे बढना शुरू कर देता है। जरशिल्ड – किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमे कोई विचारशील व्यक्ति परिपक्वता की ओर आगे बढना शुरू कर देता है । हेडो कपेटी – 11-12 वर्ष की आयु मे बालक की नसो मे एक ज्वार उठना शुरू हो जाता है। जिसे किशोरावस्था के नाप से जाना जाता है । जीन प्याजे – किशोरावस्था आदर्शो की अवस्था है सिद्धांत की अवस्था है और जीवन का सामान्य समायोजन है। गसेल – किशोरवस्था मे किशोर – किशोरियो अध्ययन के साथ साथ टीवी देखना रेडियो सुनना और ग्रामोफोन सुनने मे रूचि लेना शुरू कर देती है । वेलेन्टाइन – 1 किशोरावस्था अपराध प्रवृति के विकास का सबसे नाजुक समय है। 2 सच्चि मित्रता और स्थायी शत्रुता किशोरा अवस्था की प्रमुख विशेषण है। फिलपैट्रिक – किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है। किशोरावस्था का समयकोलसैजिक – 12 से 21 वर्ष हरलाक − 12-13 वर्ष से 20-21 वर्ष कौल − 15 से 20 वर्ष J.S. रास − 12 से 18 वर्ष सामान्य दृष्टिकोण − 13 से 19 वर्ष (Teenage) किशोरावस्था मे विकास के सिद्धांत
−इसे त्वरित परिवर्तन का सिद्धांत भी कहा जाता है। −इसके अनुसार किशोरवस्था मे जो भी शारीरिक मानसिक और सवेगात्मक परिवर्तन होते है ये अचानक व तेज गति से होत है। 2.कमिक परिवर्तन का सिद्धांत(समर्थक−थार्नडाइक−फिग−हालिग बर्थ) − इनके अनुसार किशोरवस्था मे जो शारीरिक मानसिक और सवेगात्मक परिवर्तन होते है वे काफी धीमी गति से निरन्तर होते है। किंग – जिस प्रकार एक ऋतु का आगमन दुसरी ऋतु के अन्त से होता है और पहली ऋतु मे दुसरी ऋतु के आगमन के लक्ष्ण दिखाई देना शुरू हो जाती है उसी प्रकार बाल्य व किशोर अवस्था भी एक दुसरे से संबधित है। किशोरावस्था की विशेषता1.बिग्गे व हष्ट – किशोरावस्था की विशेषताओ को अभिव्य व्यत करने वाला एकमात्र शब्द है परिवर्तन
NOTE – निर्देशन व परामर्श को किशोरावस्था के साथ जोडा जाता है। 4 किशोरावस्था मे ही बालक अपने सामाजिक व्यवहार की मान्यता व स्वीकृती चाहिए। 5 स्वतंत्रण या विद्रहो की भावना 6 देशप्रम या देशद्रोहो की भावना 7 किशोरावस्था को वीर पुजा या आदर्श के निर्धारण के साथ जोडा जाता है। 8 किशोरावस्था के प्रमुख संवेग – भय क्रोध काम प्रवृति NOTE−सिगमण्ड फ्रायड का मानना है कि किशोरावस्था मे काम प्रवृति की भावना किशोरो के जीवन मे उथल पुथल मचा देती है। 9 अमुर्त चिंतन तार्किकता निर्णय क्षमता। 10 मित्रो को अधिक महत्व देना 11 किशोरो को अभिप्रेरणा सहानुभुति और जिम्मेदारी दी जानी चाहीए। 12 किशोरावस्था को खुशी रहित अवस्था कहा जाता है। क्योकी − किशोरो की व्यक्तिगत आवश्यकता अलग अलग होती है। − किशोरो को शारीरिक परिवर्तन नये नये अनुभव प्रदान करता है। − किशोर यह अनुभव करते है की समाज उन्हे नकार रहा है। 13 किशोरावस्था मे किशोर दुसरो के दुख को देखकर दुखी हो जाता है क्योकि किशोरो मे सामाजिक चैतना विकसित हो जाती है। 14 दिवास्वान की अधिक प्रवृति पाई जाती है। बाल विकास की अवस्थाContinue Readingशैशवावस्था में सर्वाधिक महत्व किसका है?शैशवावस्था का महत्व :-
शैशवावस्था में सीखने की सीमा और तीव्रता विकास की अन्य किसी अवस्था की तुलना में बहुत अधिक होती है। शैशवावस्था ही वह आधार है जिस पर बालक के आने वाले जीवन का निर्माण किया जा सकता है, इसलिए शैशवावस्था में शिशु को जितना उत्तम और अच्छा निर्देशन दिया जाएगा उसका उतना ही अच्छा विकास होगा।
शैशवावस्था से आप क्या समझते हैं शैशवावस्था की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?इस अवस्था में बालक के जीवन में प्रथम 3 वर्षों में शारीरिक विकास तीव्र गति से होने लगता है। प्रथम वर्ष में लंबाई तथा भार दोनों में तीव्र गति से वृद्धि होती है। उसके कर्मेन्द्रियों, आंतरिक अंगों, मांसपेशियों आदि का भी विकास तीव्र गति से होता है।
शैशवावस्था के दौरान बालक की क्या आयु होती है?छह वर्ष का बालक जन्म से लेकर पाँच वर्ष की अवस्था शैशव अवस्था कही जाती है। छह वर्ष की अवस्था से ही बाल्यकाल माना गया है।
शैशवावस्था को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण काल क्यों कहा गया है?सभी अवस्थाओं में शैशवावस्था सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। यह अवस्था ही वह आधार है जिस पर बालक के भावी जीवन का निर्माण किया जा सकता है। इस अवस्था में उनका जितना भी अधिक निरीक्षण और निर्देशन किया जाता है। उतना ही अधिक उत्तम उसका विकास और जीवन होता है।
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