जब मनुष्य मोह-माया को त्याग कर सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है और वैराग्य धारण कर परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होता है तो मनुष्य के मन को जो शान्ति मिलती है, उसे शांत रस कहते हैं। शांत रस का स्थायी भाव निर्वेद होता है, जिसका आशय उदासीनता से है। Show
शांत रस की परिभाषा शांत रस की परिभाषा अगर आपसे शांत रस की परिभाषा जाये तो आप ये भी बता सकते हैं कि, “ज्ञान की प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने के पश्चात जब मनुष्य को न सुख-दुःख और न किसी से द्वेष-राग होता है, तो ऐसी मनोस्थिति में मन में उठा विभाव शांत रस कहलाता है।” पहले इसे रस नहीं माना जाता था, बाद में ऋषियो और मुनियों ने इस भाव को शांत रस की संज्ञा दी। शांत रस का स्थायी भाव निर्वेद होता है, जब यह स्थायी होकर विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों से संयुक्त होकर रस रूप में परिणत हो जाता है, तब शान्त रस कहलाता है। शांत रस का स्थायी भाव क्या है? शान्त रस का स्थायी भाव शम / निर्वेद या वीतराग / वैराग्य है, जिसका आशय उदासीनता है।] शांत रस का उदाहरण – Shant ras ka udaharan शांत रस के 10 उदाहरण निम्नलिखित हैं- उदाहरण १- मन रे तन कागद का पुतला। लागै बूँद बिनसि जाए छिन में, गरब करे क्या इतना॥ उदाहरण २- कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगौ। श्री रघुनाथ-कृपालु-कृपा तें सन्त सुभाव गहौंगो। जथालाभ सन्तोष सदा काहू सों कछु न चहौंगो। परहित-निरत-निरंतर, मन क्रम वचन नेम निबहौंगो। शांत रस का उदाहरण शांत रस उदाहरण ३- मन पछितैहै अवसर बीते। दुरलभ देह पाइ हरिपद भजु, करम वचन भरु हीते सहसबाहु दस बदन आदि नृप, बचे न काल बलीते॥ उदाहरण ४- ‘ तपस्वी! क्यों इतने हो क्लांत, वेदना का यह कैसा वेग? आह! तुम कितने अधिक हताश बताओ यह कैसा उद्वेग? उदाहरण ५- मन रे ! परस हरि के चरण, सुलभ सीतल कमल कोमल, त्रिविधा ज्वाला हरण उदाहरण ७- जब मैं था तब हरि नाहिं अब हरि है मैं नाहिं, सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं। उदाहरण ८- देखी मैंने आज जरा हो जावेगी क्या ऐसी मेरी ही यशोधरा हाय! मिलेगा मिट्टी में वह वर्ण सुवर्ण खरा सुख जावेगा मेरा उपवन जो है आज हरा उदाहरण ९- लम्बा मारग दूरि घर विकट पंथ बहुमार कहौ संतो क्युँ पाइए दुर्लभ हरि दीदार उदाहरण १०- भरा था मन में नव उत्साह सीख लूँ ललित कला का ज्ञान इधर रह गंधर्वों के देश, पिता की हूँ प्यारी संतान। शांत रस: इसका स्थायी भाव निर्वेद (उदासीनता) होता है इस रस में तत्व ज्ञान कि प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर, परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर मन को जो शान्ति मिलती है वहाँ शान्त रस कि उत्पत्ति होती है जहाँ न दुःख होता है, न द्वेष होता है मन सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है मनुष्य वैराग्य प्राप्त कर लेता है शान्त रस कहा जाता है। Shant Ras Ki Paribhashaतत्त्व-ज्ञान की प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर शान्त रस की उत्पत्ति होती है। जहाँ न दुःख है, न सुख, न द्वेष, न राग और न कोई इच्छा है, ऐसी मनोस्थिति में उत्पन्न रस को मुनियों ने ‘शान्त रस’ कहा है। कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगौ। स्पष्टीकरण:-इस पद में तुलसीदास ने श्री रघुनाथ की कृपा से सन्त-स्वभाव ग्रहण करने की कामना की है। संसार से पूर्ण विरक्ति और निर्वेद ‘स्थायी भाव’ है। राम की भक्ति ‘आलम्बन’ है।
साधु-सम्पर्क एवं श्री रघनाथ की कृपा ‘उद्दीपन’ है। धैर्य, सन्तोष तथा अचिन्ता ‘अनुभाव’ है। निर्वेद, हर्ष स्मति आदि ‘संचारी भाव’ है। इस प्रकार यहाँ शान्त रस का पूर्ण परिपाक हुआ है। (अन्य छोटे और सरल उदाहरण नीचे दिये गए हैं।) शांत रस के अवयव (उपकरण )
Shant ras ka sthayi bhav / शांत रस का स्थायी भावशांत रस का स्थायी भाव निर्वेद (उदासीनता) होता है। इस रस में तत्व ज्ञान कि प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर, परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर मन को जो शान्ति मिलती है वहाँ शान्त रस कि उत्पत्ति होती है। ‘नवरस’अष्टनाट्यरसों का स्वरूप निरूपित करने के पश्चात् ‘नाट्यशास्त्र’ में शान्त रस की सम्भावना का निर्देश निम्नलिखित शब्दों में किया गया है और ‘नवरस’ शब्द का भी उल्लेख सर्वप्रथम यहीं हुआ है –
अर्थात मोक्ष और आध्यात्म की भावना से जिस रस की उत्पत्ति होती है, उसको शान्त रस नाम देना सम्भाव्य है। नाट्यज्ञ लोगों की दृष्टि में इस प्रकार विविध लक्षणों से युक्त नौ रस होते हैं। उक्त अंश के अतिरिक्त ‘नाट्यशास्त्र’ में ही एक स्थान पर यह भी प्रतिपादित किया गया है कि शान्त रस में ही रति आदि आठ स्थायी भावों की उत्पत्ति होती है और शान्त में ही उनका विलय हो जाता है –
शान्त रस का महत्व
निर्वेद को आचार्य ने शोक के प्रवाह को फैलाने वाली विशेष चित्तवृत्ति माना, जिसकी उत्पत्ति दो प्रकार से होती है –
आगे के शास्त्रकारों ने शान्त रस के स्थायी भाव-विषयक उनके मत को स्वीकार नहीं किया। इसके मूल में कदाचित् दो कारण मुख्य थे-
शान्त रस के स्थायी भाव सम्बन्धी वाद-विवाद का यहीं अन्त नहीं हुआ, साहित्य में और भी मत व्यक्त किये गए हैं।
शांत रस (Shant Ras) के भेदश्रृंगारादि की तरह शान्त रस के भेद-प्रभेद करने की ओर आचार्यों का ध्यान प्राय: नहीं गया है। केवल ‘रस-कलिका’ में रुद्रभट्ट द्वारा चार भेद किये गए हैं –
शान्त रस के समानान्तर कुछ नये रसों की कल्पना भी की गई,
संस्कृत साहित्य में, विशेषकर धनंजय द्वारा निर्वेद को स्थायी मानने का विरोध किया गया है, पर कुछ रीतिकालीन हिन्दी काव्याचार्यों ने मम्मट का मत मानते हुए ‘शम’ के स्थान पर ‘निर्वेद’ को ही शान्त रस का स्थायी भाव बताया है। कुलपति मिश्र ने शांत रस के वारे में कहा है
नन्दराम के शांत रस के वारे में विचार
पद्माकर के अनुसार शांत रस
शांत रस के उदाहरण – Shant Ras ka Udaharan1. लम्बा मारग दूरि घर विकट पंथ बहुमार 2. देखी मैंने आज जरा Shant ras ka easy example3. जब मै था तब हरि नाहिं अब हरि है मै नाहिं
रस के प्रकार या भेद
हिन्दी व्याकरण
शांत रस कब उत्पन्न होता है उदाहरण?जब मनुष्य मोह-माया को त्याग कर सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है और वैराग्य धारण कर परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होता है तो मनुष्य के मन को जो शान्ति मिलती है, उसे शांत रस कहते हैं।
शांत रस के देवता कौन है?शांत रस के देवता नारायण और उसका वर्ण कुंदेटु बताया जाता है। प्रथम आठ रसों के क्रमश: श्याम, सित, रक्त, कपोत, गौर, पीत, नील तथा कृष्ण वर्ण माने गए हैं।
शांत रस कैसे पहचाने?मोक्ष और आध्यात्म की भावना से जिस रस की उत्पत्ति होती है, उसको शान्त रस नाम देना सम्भाव्य है। इस रस में तत्व ज्ञान कि प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर, परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर मन को जो शान्ति मिलती है। वहाँ शान्त रस कि उत्पत्ति होती है जहाँ न दुःख होता है, न द्वेष होता है।
शांत रस का स्थायी भाव क्या होता है?शांत रस का स्थायी भाव निर्वेद (उदासीनता) होता है. शान्त रस को हिंदी साहित्य में प्रसिद्ध नौ रसों में अन्तिम रस माना जाता है।
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