टैक्सी एक पतली-सी सड़क पर दौड़ पड़ी - taiksee ek patalee-see sadak par daud padee

विषयसूची

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  • 1 सहाय्यक क्रिया कैसे पहचाने?
  • 2 वे मेरी और देखते रहा गए में सहायक क्रिया क्या है?
  • 3 सहायक क्रिया कितने होते है?
  • 4 निम्नलिखित वाक्यों में से किसी एक सहायक क्रिया को पहचानकर उसका मूल रूप लिखिए I आप हमारे घर में कुछ न पा सकेंगे?
  • 5 सहायक क्रिया कौन कौन सी है?
  • 6 सहायक क्रिया कितनी होती है?
  • 7 निम्नलिखित वाक्यों में से सहायक क्रिया छाँटकर लिखिए?
  • 8 निम्नलिखित वाक्यों में से किसी एक सहायक क्रिया को पहचानकर उसका मूल रूप लिखिए अ तुम रोज सवेरे घूमा करो?
  • 9 निम्नलिखित वाक्यों में से किसी एक सहायक क्रिया?
  • 10 निम्नलिखित वाक्यों में से सहायक क्रिया पहचानकर उसका मूल रूप लिखिए?

सहाय्यक क्रिया कैसे पहचाने?

इसे सुनेंरोकें→ क्रिया का एक अंश जो मुख्य अर्थ प्रदान करता है, उसे मुख्य क्रिया कहते हैं। → मुख्य क्रिया के अलावा जो भी अंश शेष रह जाता है, उसे सहायक क्रिया कहते है। → प्रायः मुख्य क्रिया पहले आती है और सहायक क्रियाएँ बाद में आती हैं। जैसे → लड़के क्रिकेट खेल चुके हैं।

वे मेरी और देखते रहा गए में सहायक क्रिया क्या है?

टैक्सी एक पतली-सी सड़क पर दौड़ पड़ी।…

सहायक क्रियामूल क्रिया
___________ ___________

निम्नलिखित वाक्यों में से सहायक क्रिया पहचानिए १ मैंने तुम्हारे सारे गहने उतरवा दिए?

सहायक क्रिया कितने होते है?

इसे सुनेंरोकेंऊपर दिए गए सभी वाक्यों में जागना, चिल्लाना, खेलना, खाना, दौड़ना, मदद करना, सीखना मुख्य के लिए आए हैं। बाकी क्रियाएं है, थे, हूं, हो सहायक क्रियाएं हैं। यह मुख्य क्रिया के अर्थ को स्पष्ट और पूरा करती हैं।

निम्नलिखित वाक्यों में से किसी एक सहायक क्रिया को पहचानकर उसका मूल रूप लिखिए I आप हमारे घर में कुछ न पा सकेंगे?

इसे सुनेंरोकेंAnswer. (4) निम्नलिखित वाक्यों में से किसी एक सहायक क्रिया को पहचानकर उसका मूल रूप लिखिए। (l) आप हमारे घर में कुछ न पा सकेंगे। सहायक क्रिया वो क्रिया होती है, जो मूल क्रिया की सहायता करती है।

उसने अपना काम पूरा कर लिया इस वाक्य में सहायक क्रिया कौन सी है?

इसे सुनेंरोकें1. सहायक क्रिया : ने .

सहायक क्रिया कौन कौन सी है?

जो क्रिया मुख्य क्रिया के साथ वाक्य के निर्माण में सहायता करती है उसे सहायक क्रिया कहते हैं।…सहायक क्रिया किसे कहते हैं

  • वह जाग रहा होगा।
  • पीयूष चिल्ला रहा है।
  • तुम खेल रहे थे।
  • तुम खा रहे हो।
  • वे सब दौड़ रहे थे।
  • मैं उसकी मदद करता हूं।
  • हमें गरीबों की मदद करनी चाहिए।
  • तुम क्या सीख रहे हो।

सहायक क्रिया कितनी होती है?

इसे सुनेंरोकेंसहायक क्रिया (Sahayak Kriya)– मुख्य क्रिया की सहायता करनेवाली क्रिया को सहायक क्रिया कहते हैं । जैसे- उसने बाघ को मार डाला । सहायक क्रिया मुख्य क्रियां के अर्थ को स्पष्ट और पूरा करने में सहायक होती है । कभी एक और कभी एक से अधिक क्रियाएँ सहायक बनकर आती हैं ।

निम्नलिखित वाक्योंसे सहाय्यक क्रिया पहचानकर उनका मूल रूप लिखिए अ बालक भूमि पर लेट गया?

इसे सुनेंरोकेंकिसी वाक्य में मुख्य क्रिया की सहायक क्रिया के रूप में जो क्रिया प्रयुक्त होती है, उसे सहायक क्रिया कहते हैं। बालक भूमि पर लेट गया। इस वाक्य में ‘लेट’ मुख्य क्रिया है, तो ‘गया’ सहायक क्रिया है। अस्पताल का ख्याल आते ही मैं काँप उठा।

निम्नलिखित वाक्यों में से सहायक क्रिया छाँटकर लिखिए?

इसे सुनेंरोकेंनिम्नलिखित वाक्य की सहायक क्रियाएं , उनके मूल रूप के साथ नीचे लिखी गई हैं। १) टैक्सी एक पतली- सी सड़क पर दौड़ पड़ी। २) यहाँ सुबह-सुबह बड़ी मात्रा में मछलियाँ पकड़ी गई। ३) बच्चे खेलने लगे।

निम्नलिखित वाक्यों में से किसी एक सहायक क्रिया को पहचानकर उसका मूल रूप लिखिए अ तुम रोज सवेरे घूमा करो?

इसे सुनेंरोकेंExpert-verified answer मुख्य क्रिया वह क्रिया है, जो कर्ता या कर्म के मुख्य कार्य को व्यक्त करती है तथा सहायक क्रिया वह क्रिया होती है जो मुख्य क्रिया की सहायक क्रिया के रूप में प्रयुक्त होती है। ऊपर दिए गए वाक्य में ‘घूमा’ एक मुख्य क्रिया है और ‘करो’ उसकी सहायक क्रिया है।

हेल्पिंग वर्ब कितनी होती है?

इसे सुनेंरोकेंHelping Verb Kya Hoti Hai (हेल्पिंग वर्ब क्या है) साधारण भाषा में अगर आपको समझाएं तो सहायक क्रिया यानि Helping Verb वे होती हैं, जो वाक्य को बताने में हेल्प करती हैं कि वाक्य Present (वर्तमान) में है, Past (भूतकाल) में है या Future ( भविष्य) में है। she is singing a song. I have completed my work on time.

निम्नलिखित वाक्यों में से किसी एक सहायक क्रिया?

इसे सुनेंरोकें२) निम्नलिखित वाक्यों में से किसी दो वाक्य की सहायक क्रिया पहचानकर उसका मूल रूप लिखिए। १) टैक्सी एक पतली- सी सड़क पर दौड़ पड़ी। २) यहाँ सुबह-सुबह बड़ी मात्रा में मछलियाँ पकड़ी गई। ३) बच्चे खेलने लगे।

निम्नलिखित वाक्यों में से सहायक क्रिया पहचानकर उसका मूल रूप लिखिए?

गोवाः जैसा मैंने देखा

टैक्सी एक पतली-सी सड़क पर दौड़ पड़ी - taiksee ek patalee-see sadak par daud padee

गोवा! यह नाम सुनते ही युवा मन तरंगायित हो उठता है। और हो भी क्यों न, यहाँ की प्रकृति, आबोहवा और रंगीनियत का आकर्षण ही ऐसा है कि पर्यटक खुद-ब-खुद यहाँ खिंचे चले आते हैं। इस नाम में एक अजीब सी कशिश है। जैसे अपने इष्टदेव का नाम सुनते ही भक्त के हदय में भक्ति-भाव जाग्रत् हो जाता है, वैसे ही गोवा शब्द सुनते ही अंग-अंग में रोमांच पनपने लगता है। देश के एक कोने में स्थित होने के बावजूद यह छोटा सा राज्य प्रत्येक युवा दिल की धड़कन है। यही कारण है कि मैं भी अपने परिवार के साथ इंदौर से गोवा जा पहुँचा। खंडवा से मेरे साड़ू साहब भी सपरिवार हमारे साथ शामिल हो गए।

२३ नवंबर को जब गोवा एक्सप्रेस मडगाँव रुकी तो सुबह का उजास हो गया था। आसमान हल्के लाल रंग का दिखाई दे रहा था। जिस पर लाली लिये हुए तीतर-पंखी बादलों ने अपना डेरा जमा रखा था। कई सारे नारियल के पेड़ों को देखकर ऐसा लगा, मानो वे लालिमा लिये प्रकट हुए सूर्य के स्वागत में हाथ जोड़े खड़े हैं। अचानक एक टैक्सी के हॉर्न ने मेरा ध्यान उसकी ओर खींचा और हम फटाफट उसमें बैठ गए। टैक्सी एक पतली सी सड़क पर दौड़ पड़ी। शीतल हवा के झोंकों से मन प्रसन्न हो गया और यात्रा की सारी थकान मिट गई। मैं सोचने लगा कि पर्यटन का भी अपना ही आनंद है। जब हम जीवन की कई सारी समस्याओं से जूझ रहे हों तो उनसे निजात पाने का सबसे अच्छा तरीका पर्यटन ही है। बदले हुए वातावरण के कारण मन तरोताजा हो जाता है तथा शरीर को कुछ समय के लिए विश्राम मिल जाता है।

कुछ देर बाद हमारी टैक्सी मडगाँव से पाँच कि.मी. दूर दक्षिण में स्थित एक कस्बा बेनालियम के एक रिसॉर्ट में आकर रुक गई। यह रिसॉर्ट हमने पहले से बुक कर लिया था। इसलिए औपचारिक खानापूर्ति कर हम आराम करने के इरादे से अपने-अपने स्यूट में चले गए। इससे पहले कि हम कमरों से बाहर निकलें, मैं आपको गोवा की कुछ खास बात बता दूँ। दरअसल, गोवा राज्य दो भागों में बँटा हुआ है। दक्षिण गोवा जिला तथा उत्तर गोवा जिला। इसकी राजधानी पणजी मांडवी नदी के किनारे स्थित है। यह नदी काफी बड़ी है तथा वर्ष भर भरी रहती है। फिर भी समुद्री इलाका होने के कारण यहाँ मौसम में प्राय: उमस तथा हवा में नमी बनी रहती है। शरीर चिपचिपाता रहता है, लेकिन मुंबई जितना नहीं है, क्योंकि यहाँ का क्षेत्र हरीतिमा से भरपूर है। फिर भी धूप तो तीखी ही होती है।

यहाँ की लगभग ६० प्रतिशत जनसंख्या हिंदू तथा ३० प्रतिशत जनसंख्या ईसाई है। यहाँ यूरोपियन संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। गोवा में आप कहीं भी चले जाइए, पुराने मकानों तथा चर्चों पर पुर्तगाली तथा ईरानी शैली की छाप अलग ही दिख जाएगी। दक्षिण जिले में ईसाई समाज का प्रभाव अधिक है। इसीलिए गिरजाघर भी यहाँ अधिक हैं। जगह-जगह कई छोटे-बड़े चर्च बने हुए हैं, जिनमें मोमबत्तियाँ जलती रहती हैं। कहते हैं कि दीये का रीप्लेसमेंट है—मोमबत्ती। हिंदुओं की संख्या उत्तर में अधिक है। साक्षरता का प्रतिशत भी अच्छा-खासा यानी ८७ प्रतिशत के करीब है।

यों तो गोवा अपने खूबसूरत सफेद रेतीले तटों, महँगे होटलों तथा एक खास जीवन-शैली के लिए जाना जाता है, लेकिन इन सबके बावजूद यह अपने में एक सांस्कृतिक विरासत भी समेटे हुए है। अगर हम नाम से ही शुरुआत करें तो महाभारत काल में गोवा को 'गोपराष्ट्र' कहा जाता था, यानी गाय चरानेवालों का देश। यह कोंकण काशी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि भगवान् परशुराम ने एक युद्ध के दौरान अपने बाणों की वर्षा कर समुद्र को काफी पीछे धकेल दिया था, तभी से गोवा के एक स्थान का नाम 'बाणावली' पड़ गया, जिसे पुर्तगालियों ने 'बानावलियम' कर दिया, जो बाद में 'बेनालियम' हो गया।

अरे! यहीं तो हम ठहरे हैं। कहते हैं—यहाँ की शाम बड़ी अच्छी होती है तो चलो, इस शाम का आनंद लेने के लिए बेनालियम बीच की ओर चलें। आप भी चलें, क्योंकि बहुत ही खूबसूरत तथा शांत जगह है बेनालियम। दिनभर की थकान तथा उमस भरी गरमी के बाद शाम को बीच पर जाना बड़ा अच्छा लग रहा था। रिसॉर्ट से बीच की दूरी कोई एक किमी ही थी, लेकिन जल्दी-जल्दी चलने के बाद भी यह दूरी तय हो ही नहीं पा रही थी। अरब सागर देखने का उत्साह बढ़ता ही जा रहा था। तभी अचानक लहरों की आवाज सुनाई दी, जो किसी रणभेरी की तरह थी। हम सभी दौड़ पड़े। सड़क पीछे छूट गई थी, इसलिए रेत पर तेजी से दौडऩा मुश्किल हो रहा था। फिर भी धँसे हुए पैरों को पूरी ताकत से उठा-उठाकर भाग रहे थे। खूबसूरत समुंदर देखते ही मैं उससे जाकर लिपट गया। लहरें मुझे बाहर फेंक देतीं, मैं ढीठ जैसा फिर जाकर लिपट जाता। इधर बच्चे रेत का घर बनाने में जुट गए। लहरें उनका घर गिरा देतीं तो वे दूसरी लहर आने के पहले फिर नया घर बनाने में जुट जाते। यही क्रम चलता रहा। मैंने इन बच्चों से सीखा कि जीवन में आशावादिता हो तो कोई काम असंभव नहीं है। शाम गहराने पर हम किनारे पर बैठ गए। आती-जाती लहरों को देखते रहे। मानो हर लहर कह रही हो कि बनने के बाद मिटना ही नियति है। यही जीवन का सत्य भी है।

यहाँ एक मजेदार दृश्य भी देखने को मिला। लहरों की आवाज के बीच पक्षियों की टीं-टीं-टीं की आवाज भी आपका ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। दरअसल, ये पक्षी लहरों के साथ बहकर आई मछलियों का शिकार करने के लिए किनारे पर ही मँडराते रहते हैं, लेकिन जब तेज हवा के कारण एक ही दिशा में सीधे नहीं उड़ पाते हैं तो सुस्ताने के लिए किनारे पर बैठ जाते हैं। यहाँ बैठे कुत्तों को इसी बात का इंतजार रहता है। मौका मिलते ही वे इन पर झपट पड़ते हैं, लेकिन बेचारे कुत्तों को सफलता कम ही मिल पाती है। पक्षियों का बैठना, कुत्तों का दौडऩा और पक्षियों का टीं-टीं-टीं कर उड़ जाना—यह दृश्य सैलानियों का अच्छा मनोरंजन करता है। इधर जैसे ही सूर्य देवता ने विदा ली, वैसे ही चंद्रमा की चाँदनी में नहाकर समुद्र का नया ही चेहरा नजर आने लगा। अब समुद्र स्याह और भयावह दिखने लगा।

अगले दिन हमने बस से गोवा घूमने की योजना बनाई। वैसे घूमने-फिरने के लिए यहाँ बाइक आदि किराए पर मिल जाती हैं और घूमने का मजा भी उन पर ही आता है, लेकिन बच्चों के कारण हमने बस से जाना ठीक समझा। यहाँ सी-फूड की अधिकता होने के कारण उत्तर भारतीय पर्यटकों को सुस्वादु शाकाहारी भोजन की समस्या से भी दो-चार होना पड़ता है। काफी भटकने के बाद अच्छा भोजन मिल गया तो समझो किस्मत और जेब तो ढीली हो ही गई। यह समस्या हमें पहले से पता थी। इसलिए हम अपने रिसोर्ट के स्यूट में उपलब्ध किचन में ही भोजन करते थे। दोनों सुंदरियाँ (मेरी पत्नी और साली) फटाफट भोजन बना लेतीं और हम सभी भरपेट खाकर ही घूमने निकलते। हालाँकि इन कोमलांगियों को रसोई की यह सुविधा दुविधा ही लगी, क्योंकि जींस-टॉप पहनकर उनको घूमना-फिरना पसंद है...खाना तो बना और पूरे समय हमने अच्छा भोजन किया। चाहे जो हो, उन्होंने खिलाया पूरे मन से, इसलिए दोनों को धन्यवाद।

सबसे पहले हम अंजुना बीच पहुँचे। गोवा में छोटे-बड़े करीब ४० बीच हैं, लेकिन प्रमुख ७ या ८ ही हैं। अंजुना बीच नीले पानीवाला पथरीला तथा बहुत ही खूबसूरत बीच है। इसके एक ओर लंबी सी पहाड़ी है, जहाँ से बीच का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। समुद्र तक जाने के लिए थोड़ा नीचे उतरना पड़ता है। नीला पानी काले पत्थरों पर पछाड़ खाता रहता है। पानी ने काट-काटकर इन पत्थरों में कई छेद कर दिए हैं, जिससे ये पत्थर कमजोर भी हो गए हैं। साथ ही समुद्र के काफी पीछे हट जाने से कई पत्थरों के बीच में पानी भर गया है। इससे वहाँ काई ने अपना घर बना लिया है। फिसलने का डर हमेशा लगा रहता है, लेकिन संघर्षों में ही जीवन है, इसलिए यहाँ घूमने का भी अपना अलग आनंद है। यहाँ युवाओं का दल तो अपनी मस्ती में डूबा रहता है, लेकिन परिवार के साथ आए पर्यटकों का ध्यान अपने बच्चों को खतरों से सावधान रहने के दिशा-निर्देश देने में ही लगा रहता है। मैंने देखा कि समुद्र किनारा होते हुए भी बेनालियम बीच तथा अंजुना बीच का अपना-अपना सौंदर्य है। बेनालियम बीच रेतीला तथा उथला है। यह मछुआरों की पहली पसंद है। यहाँ सुबह-सुबह बड़ी मात्रा में मछलियाँ पकड़ी जाती हैं, लेकिन मजे की बात यह है कि इतनी सारी मछलियाँ स्थानीय बाजारों में ही बेची जाती हैं। इनका निर्यात बिल्कुल भी नहीं होता है। इसके विपरीत अंजुना बीच गहरा और नीले पानीवाला है। यह बॉलीवुड की पहली पसंद है। यहाँ कई हिट फिल्मों की शूटिंग हुई है। दोनों बीच व्यावसायिक हैं, पर मूल अंतर व्यवसाय की प्रकृति का है। इसके बाद हम लोग पणजी शहर तथा कई छोटे-छोटे गाँवों से गुजरे। यहाँ स्थानीय लोग कोंकणी, मराठी तथा हिंदी भाषा बोलते हुए मिले। यहाँ बिहारी तथा राजस्थानी लोग भी अपना छोटा-मोटा व्यवसाय करते दिखाई दिए।

घूम-फिरकर शाम को हम कलिंगबुड बीच पर पहुँचे। यह काफी रेतीला तथा गोवा का सबसे लंबा बीच है, जो ३ से ४ किमी. तक फैला है। यहाँ पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं। यही कारण है कि यह स्थानीय लोगों के व्यवसाय का केंद्र भी है। यहाँ कई प्रकार के वाटर स्पोट्र्स होते हैं, जिनमें कुछ तो हैरतअंगेज होते हैं, जिन्हें देखने में ही आनंद आता है। आप भी अपनी रुचि के अनुसार हाथ आजमा सकते हैं। मैंने कई खेलों में हिस्सा लिया, लेकिन सबसे अधिक रोमांच पैराग्लाइडिंग में ही आया। काफी ऊँचाई से अथाह जलराशि को देखना जितना विस्मयकारी है, उतना ही भयावह भी। दूर-दूर तक पानी-ही-पानी, तेज हवा और रस्सियों से हवा में लटके हम। हम यानी मैं और मेरी पत्नी। दोनों डर भी रहे हैं और खुश भी हो रहे हैं। डर इस बात का कि छूट गए तो समझो गए और खुशी इस बात की कि ऐसा रोमांचक दृश्य पहली बार देखा। सचमुच अद्भुत!

हम यहाँ चार-छह दिन रहे, लेकिन हमारी एक ही दिनचर्या रही। सुबह जल्दी उठना, फटाफट नाश्ता करना और दिन भर घूम-फिरकर थककर शाम को रिसॉर्ट आकर थकान मिटाने के लिए पूल में तैरना! एक दिन कोलावा बीच पर हमने बोटिंग का भी आनंद लिया। यहाँ हमने डॉल्फिन मछलियाँ देखीं। हालाँकि ये छोटी थीं, पर बच्चों ने अच्छा आनंद लिया।

इस दौरान यहाँ नवरात्रि तथा दशहरा पर्व मनाने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। उत्तर भारत में जिस तरह हर घर तथा गली-मोहल्ले में माँ दुर्गा की घट स्थापना कर तथा लड़कियों द्वारा गरबा कर पर्व मनाया जाता है, ऐसा यहाँ कुछ भी नहीं होता है। यहाँ देवी के मंदिरों में नौ दिन तक माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दशहरा का रंग भी कुछ ऐसा ही होता है। रावण का पुतला कहीं भी नहीं जलाया जाता है। सुबह से लोग अपने वाहनों की सफाई कर उनकी पूजा करते हैं और शाम को भगवान् की एक पालकी मंदिर ले जाई जाती है। इसके बाद एक पेड़ विशेष की पत्तियाँ तोड़कर लोग एक-दूसरे को देकर बधाई देते हैं। बस इतना ही। हमें तो यहाँ रहकर लगा ही नहीं कि आज दशहरा है। खैर, सबकी अपनी-अपनी सांस्कृतिक परंपरा है।

इतने कम दिन में मैं गोवा को पूरा देख-समझ तो नहीं पाया, पर इतना जरूर समझ गया कि पश्चिमी फैशन और सभ्यता में रचा-बसा होने के बावजूद यह भारतीय संस्कृति को पूरी तरह से आत्मसात् किए हुए है। पर्यटक फैशन के रंग में कुछ देर के लिए भले ही स्वयं को रँगकर चले जाते हों, लेकिन स्थानीय लोग अपनी सांस्कृतिक परंपरा की उँगली अब भी पकड़े हुए हैं।

१८७, अंबिकापुरी मेन, एयरपोर्ट रोड, इंदौर (म.प्र.)
दूरभाष : ०९८२६०३७१०६

टैक्सी तेजी से सड़क पर दौड़ पड़ी वाक्य में सहायक क्रिया कौन सी है?

सोचकर सहायक क्रिया है।

निम्नलिखित वाक्यों में से सहायक क्रिया पहचानकर लिखिए?

1. साइकिल एक पतली सड़क पर दौड़ पड़ी। 2. पुलिस ने चोर को पकड़ लिया।

निम्नलिखित वाक्यों में से किसी एक सहायक क्रिया को पहचानकर उसका मूल रूप लिखिए अ तुम रोज सवेरे घूमा करो?

Numeric Code दिया गया है।

11 निम्नलिखित वाक्यों में से किन्ही दो वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए अ टैक्सी एक पतलि सी सड़क पर दौड़ पड़ा?

इसका अल्प प्रयोग 1830 से 1842 के बीच हुआ था।