ठोस अपशिष्ट क्या है in Hindi? - thos apashisht kya hai in hindi?

भारत में ठोस अपशिष्ट: एक बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस परीक्षाओं के लिए समसामयिकी


चर्चा का कारण

हाल ही में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) ने कुम्भ मेले के समापन के बाद प्रयागराज में जमा हुए ठोस कचरे के निदान के प्रयासों पर अप्रसन्नता व्यक्त की है। साथ ही एनजीटी ने कहा है कि ठोस अपशिष्ट कचरे के कारण प्रयाग शहर महामारी के कगार पर पहुँच गया है।

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एनजीटी की रिपोर्ट

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने ठोस कचरे के निपटान और तत्काल जवाबदेही तय करने के लिये कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे। इस संबंध में एनजीटी ने जस्टिस अरुण टंडन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। इस समिति ने प्रयागराज में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर अध्ययन किया और अध्ययन करने के पश्चात् एनजीटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 60,000 मीट्रिक टन अनुपचारित ठोस अपशिष्ट बेसवार (Baswar) ठोस अपशिष्ट उपचार संयंत्र में एकत्रित किया गया था, जिसमें से 18,000 मीट्रिक टन ठोस कचरा प्रयागराज से एकत्रित किया गया था। किन्तु सितम्बर 2018 से बेसवार संयंत्र चालू स्थिति में नहीं है। इसके अलावा एनजीटी ने रिपोर्ट में बताया है कि ठोस अपशिष्ट के कारण कई प्रकार की बीमारियाँ जैसे-हेपेटाइटिस, हैजा, आंत्रज्वर, पेचिस तथा कॉलरा जैसी बीमारियों का प्रकोप स्थानीय क्षेत्रों में बढ़ गया है।

एनजीटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बड़ी संख्या में शौचालयों का निर्माण नदी के करीब किया गया, जिसके कारण गन्दा पानी गंगा नदी में और भूमिगत जल में मिल गया है, जिसकी वजह से गंगा नदी और भू-जल भी प्रदूषित हो गया है।

कुम्भ समापन के बाद की स्थिति

  • उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुम्भ मेला खत्म होते ही वहाँ फैले कूड़े-कचरे के कारण महामारी फैलने का भय उत्पन्न हो गया है। एनजीटी ने अपने एक आदेश में कहा है कि कुम्भ के बाद कूड़ा-कचरा समेत सीवेज के उपचार को लेकर तत्काल कदम उठाए जाने की जरुरत है। अन्यथा, न सिर्फ गंगा-यमुना नदी गंभीर रूप से प्रदूषित होगी, बल्कि शहर महामारी के काल में समा सकता है।
  • कुम्भ के बाद गंगा प्रदूषण को लेकर पर्यावरणविद् और अधिवक्ता एमसी मेहता ने एनजीटी के आदेशों के उल्लंघन और प्रदूषण से बचाव के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग की है।
  • वहीं एनजीटी ने रिपोर्ट पर ध्यान देते हुए कुम्भ के बाद फैली अव्यवस्था को आपात स्थिति माना है। कुम्भ मेले के बाद ठोस कचरे का उचित प्रबंधन न होने के कारण यह ‘‘ठोस कचरा प्रबंधन अधिनियम 2016’’ के नियमों का भी उल्लंघन है और एनजीटी के पूर्व आदेशों की अवहेलना भी है।
  • इस समिति ने बताया है कि शौचालयों की पाइपलाइन और कैम्प नदी से महज 10 मीटर की दूरी पर बनाए गए थे और नदी किनारे बने 36 अल्प अवधि वाले गड्ढ़ों में गंदा पानी मौजूद था। जहाँ सीवेज निकासी रोकने के लिए जियो ट्यूब तकनीक का इस्तेमाल किया गया था वहाँ, सीधे गंगा नदी में सीवेज और अन्य गन्दे पानी की निकासी हो रही थी।
  • समिति ने कहा है कि गंदे पानी को रोकने के साथ-साथ जियो ट्यूब हटाकर सभी अल्पावधि वाले जलाशयों की सफाई भी की जानी चाहिए।
  • कुम्भ मेला क्षेत्र में 1,22500 शौचालय बनाए गये थे। इन शौचालयों और कच्चे गड्ढ़ों को तैयार करने को लेकर मेला प्रशासन ने गंगा के मामलों को लेकर बनाई गई समितियों से कोई जानकारी प्राप्त नहीं की थी। यह भी एक कारण रहा, जिसके फलस्वरुप गंगा का प्रदूषण अत्यधिक बढ़ गया है।
  • वहीं राजापुर सीवेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) अपनी क्षमता से अधिक सीवेज हासिल कर रहा था। जियो ट्यूब के जरिए सिर्फ 50 फीसदी सीवेज शोधित किया जा रहा था। वहीं, 50 फीसदी बिना शोधन के सीधे गंगा में गिराया जा रहा था और सलोरी स्थित एक अन्य एसटीपी भी पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर रहा था।

जियोट्यूब तकनीक की विफलता

  • इस टेक्नोलॉजी के जरिये नालों और चमड़े के कारखानों से आने वाले गंदे पानी को मोटे पाइप के द्वारा जियो ट्यूब में डाला जाता है। तकरीबन एक लाख लीटर पानी की क्षमता वाली दो जियो ट्यूब अलग-अलग एक साथ लगी होती हैं।
  • पहली ट्यूब खास तकनीक के जरिये पानी और गंदगी को अलग कर देती है। गंदगी से अलग हुआ साफ पानी पहली ट्यूब से खुद ही दूसरी ट्यूब में चला जाता है। दूसरी ट्यूब में कुछ केमिकल पड़े होते हैं जो पानी की शुद्धता को मापते हैं।
  • कुम्भ मेले में जियो ट्यूब तकनीक से पानी साफ कर गंगा में भेजा गया, जो गंदे पानी को पूर्णरूप से साफ नहीं कर पा रही थी।
  • कुम्भ मेले की समाप्ति के पश्चात् एनजीटी ने जियो ट्यूब तकनीक को लेकर, उसकी विफलता को उजागर किया है। जहाँ यह तकनीक लगी थी, वहाँ भी गंगा में नाले का अनुपचारित पानी था। एनजीटी ने कहा कि जियो ट्यूब संतोषजनक ढंग से काम नहीं कर रही थी और नाले में 50 फीसदी सीवेज फंस गया था और बाकी गंगा में जा रहा था।

ठोस अपशिष्ट क्या हैं?

  • कचरे के ढेर आज एक आम बात बन गई है, जो पर्यावरण, नदी, तलाब और कुँओं तथा झीलों को प्रदूषित करता जा रहा है।
  • ठोस कचरा आवासीय, औद्योगिक या वाणिज्यिक क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न अवांछित या बेकार ठोस सामग्री है। इसे तीन रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है मूल आधार (घरेलू, औद्योगिक, वाणिज्यिक तथा निर्माण या संस्थागत), सामग्री (जैविक, कांच, धातु, प्लास्टिक व पेपर आदि), खतरनाक कारक (विषाक्त, गैर विषैले, ज्वलनशील, रेडियोधर्मी तथा संक्रामक) इत्यादि।

अपशिष्ट के अन्य प्रकार

  • तरल अपशिष्ट- घरेलू और उद्योग स्थलों द्वारा उत्पन्न तरल अपशिष्ट।
  • कार्बनिक अपशिष्ट- खाद्य, उद्यान और लॉन की कटाई-छटाई से निकलने वाले पदार्थ।
  • जैव चिकित्सा अपशिष्ट- मनुष्यों या जानवरों के निदान, उपचार या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट।
  • पुनर्नवीनीकरण अपशिष्ट- उन सभी अपशिष्ट वस्तुओं का समावेश, जिन्हें पुनः उपयोग में लाने के लिए परिवर्तित किया जाता है।

अपशिष्ट प्रबंधन का वर्तमान स्वरूप

  • स्वच्छ भराव क्षेत्र
  • महासागर डंपिंग
  • भस्मीकरण
  • खाद
  • अपशिष्टों का पृथक्करण, पुनर्नवीनीकरण और पुनः प्राप्ति
  • अपशिष्टों का मैकेनिकल और जैविक उपचार

डब्ल्यूटीई संयंत्रों की जरूरत क्यों

  • देश भर में प्रतिदिन लगभग 1.43 लाख टन नगरपालिका का ठोस कचरा उत्पन्न होता है, जिसे निपटाने की विशेष जरूरत है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार भारत में 25,940 टन प्रतिदिन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है।
  • केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रलय के अनुसार, वर्ष 2031 तक 4.5 लाख टन प्रतिदिन कचरे का उत्पादन होगा, जो 2050 तक 11.9 लाख टन प्रतिदिन तक यह पहुँच जाएगा।
  • भारत में नगरपालिका के ठोस कचरे में कम कैलोरी और उच्च नमी की मात्र पाई जाती है।
  • अधिकांश अपशिष्टों में अत्यंत निष्क्रिय पदार्थ मौजूद होते हैं, जो संयंत्र में अपशिष्ट को पृथक करने के लिये उपयुत्तफ़ नहीं हैं।
  • नीति आयोग का प्रयास है कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत डब्ल्यूटीई संयंत्रों से 800 मेगावाट तक की बिजली उत्पन्न की जा सके।

अपशिष्ट प्रबंधन में भारत की स्थिति

हमारे गाँवों व शहरों में जगह-जगह लगे कचरे के ढेर और उनमें पनपते रोग आज गंभीर खतरा बन चुके हैं। पशु-पक्षियों की मृत्यु भी आज कचरा खाने के साथ ही कचरे में उत्पन्न विषैली गैसों, और कीटाणुओं से हो रही है। ऐसे में आज कचरे का प्रबंधन उचित तकनीक के माध्यम से होना समय की मांग है।

  • 1987 के बाद से, देश भर में 15 डब्ल्यूटीई संयंत्र स्थापित किए गए हैं, लेकिन इनमें से सात संयंत्र बंद हो गए हैं। बंद संयंत्रों में दिल्ली के अलावा, कानपुर, बंगलुरू, हैदराबाद, लखनऊ, विजयवाड़ा और करीमनगर के संयंत्र शामिल हैं।
  • विश्लेषकों के अनुसार भारत में लगभग 32 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पन्न होता है और इसका 60% से भी कम इकट्ठा किया जाता है और केवल 15% ही संसाधित होता है।
  • भारत में अपशिष्ट प्रबंधन की बढ़ती समस्याओं के कारण ग्रीनहाउस गैस का बढ़ता प्रभाव तथा लैंडफिल के साथ भारत ऐसे मामलों में तीसरे स्थान पर है।
  • भारत सरकार ने इन समस्याओं को देखते हुए 16 साल के बाद सॉलिड वेस्ट मैनेजमेन्ट को संशोधित किया है जिसके अंतर्गत एक संस्थागत ढाँचे का प्रावधान किया गया है।

अपशिष्ट संग्रह और प्रबंधन के विधि

  • डोर-टू-डोर संग्रह
  • सूखे तथा गीले कचरे का अलग संग्रह करना
  • कचरे को भूमिगत डम्पिंग करना
  • अपशिष्ट कचरे के प्रबंधन को लेकर प्रत्येक क्षेत्र में नई-नई तकनीकों के माध्यम से उचित प्रबंधन के प्रयास भी किये जा रहे हैं साथ ही हम वेस्ट टू वेल्थ यानी ‘कचरे से सम्पन्न’ की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।

पुनर्चक्रण विधि के अन्य तरीके

  • भौतिक पुनः परिष्करण- पुनर्चक्रण का लोकप्रिय अर्थ व्यापक संग्रह और रोजाना अपशिष्ट पदार्थों का पुनः प्रयोग को संदर्भित करता है जैसे कि खाली पेय पात्र, अखबार और कांच की बोतले आदि सभी वस्तुओं को इकट्ठा कर इनका पुनर्चक्रण किया जाता है।
  • ऊर्जा के रूप में ठोस अपशिष्ट- ओखला, दिल्ली थर्मल ट्रीटमेंट में एनर्जी प्लांट के ठोस अपशिष्ट से ऊर्जा प्राप्त की जाती है तथा अपशिष्ट को कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प और राख में बदल दिया जाता है। यह कचरे से ऊर्जा को पुनर्प्राप्त करने का एक साधन है।
  • जैविक उपचार विधियाँ- इसमें कचरे के जैव निम्नीकरणीय घटकों को विघटित करने के लिये सूक्ष्म जीवों का उपयोग किया जाता है, इसमें दो प्रकार की प्रक्रियाएँ होती हैं-
  • एरोबिक यह ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है, इसमें विंड्रो कम्पोस्टिंग तथा इन पॉट कम्पोस्टिंग तथा वर्मी कल्चर शामिल हैं।
  • एनारोबिक-ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है इसमें लैंडफिल तथा ओपन डम्पिंग शामिल है।
  • जिम्मेदारी और हितधारक सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट- यह राज्य का विषय है कि राज्य यह सुनिश्चित करें कि उसके सभी शहरों और कस्बों में उपयुक्त ठोस कचरा प्रबंधन सुविधा/तकनीक है की नहीं। हालाँकि ठोस कचरा प्रबंधन करना नगरपालिका का कर्त्तव्य है। जो इसके लिए सीधे जिम्मेदार है, इसके द्वारा संबंधित शहरों/कस्बों में ठोस कचरा प्रबंधन की योजना डिजाइन, संचालन ओर रख-रखाव किया जाता है। नगरपालिका के बजट का 10% से 50% ठोस कचरा प्रबंधन के लिए आवंटित किया गया है।
  • ठोस कचरा प्रबंधन से जुड़े नियम और कानूनः 74वें संवैधानिक संशोधन के तहत, नगरपालिका सॉलिड वेस्ट के निपटान और  प्रबंधन नगर निगमों और नगर पंचायतों के 18 कार्यात्मक डोमेन में से एक है। ठोस प्रबंधन के लिए कानून-जैव चिकित्सा अपशिष्ट नियम 1998, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट नियम 2000, प्लास्टिक अपशिष्ट नियम 2011 तथा ई-अपशिष्ट नियम 2011 हैं।
  • रैगपिकर्स/मैनुअल स्कैवेंजिंग वेस्ट मैनेजमेंट- इनके माध्यम से ही अनेक स्थानों पर कचरा इकट्ठा किया जाता है और साथ ही अनौपचारिक क्षेत्र का बड़ा नेटवर्क भी स्थानीय स्तर पर कचरे के प्रबंधन में प्रभावी रूप से सहायक होता है। भारत में रैगपिकर्स की एक राष्ट्रीय संस्था एनएसडब्ल्युएआई (NSWAI- National Solid waste association of India) है। यह इंटरनेशनल सॉलिड वेस्ट एसोसिएशन से भी जुड़ी है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट क्षेत्र में सूचना और विशेषज्ञता के आदान-प्रदान का एक मंच है जिसके द्वारा लोगों में जागरूकता फैलायी जाती है।

वैज्ञानिक विधि से अपशिष्ट पदार्थों का प्रबंधन

  • 3-आर (3-R) की अवधारणा- 3-आर अर्थात रीयूज, रीड्यूस और रीसायकल। यह ठोस प्रबंधन का महत्वपूर्ण तरीका है।
  • शून्य अपशिष्ट प्रणाली- उद्योगों द्वारा अपशिष्ट प्रबंधन के कार्य को सरल बनाकर और अपने अपशिष्ट प्रबंधन को केन्द्रीकृत करके, इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना।

अपशिष्ट प्रबंधन के लाभ

प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षाः वनों, गैसों और पानी जैसे कई प्राकृतिक संसाधनों की घटती समस्या हमारे लिए गम्भीर चिन्ता का विषय बन गई है। इसलिए आवश्यक है कि प्लास्टिक आदि की बनी वस्तुओं के पुनः उपयोग से हम वनों की कटाई इत्यादि को रोक सकते हैं।

ऊर्जा क्षमता में बढ़ोत्तरीः पुनरावृत्ति ऊर्जा का उत्पादन करने का एक शानदार तरीका है। नई वस्तुओं का उत्पादन करने हेतु अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। प्रयोगों से यह पता चला है कि हमारे घरों के अपशिष्ट पदार्थों को एक विशेष प्रणाली के द्वारा बिजली उत्पन्न में प्रयोग किया जा सकता है।

प्रदूषण में कमीः खुले में कचरा इकट्ठा करना या फिर भूमिगत डम्पिंग से जल प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। यदि अपशिष्ट प्रबंधन वैज्ञानिक विधि से किया जाए तो प्रदूषण का स्तर कम हो सकता है।

अपशिष्ट पुनरावृत्तिः अपशिष्ट दिन-प्रतिदिन गम्भीर समस्या बनते जा रहे हैं, जैसे-अपशिष्टों का समुद्र में प्रवाह तथा कचरे को नदियों या खुले क्षेत्रों में फैंकना आदि, लेकिन अपशिष्टों को उपयोगी रूप में पुनः परिवर्तित कर इस समस्या को कम किया जा सकता है।

ठोस अपशिष्ट की परिभाषा क्या है?

ठोस अपशिष्ट वे पदार्थ होते हैं जो उपयोग के बाद निरर्थक एवं बेकार हो जाते हैं तथा जिनका कोई आर्थिक उपयोग नहीं होता है। जैसे-डिब्बे, काँच के सामान, प्लास्टिक, अखबार, आवासीय कचरा आदि।

ठोस अपशिष्ट कितने प्रकार के होते हैं?

ठोस अपशिष्ट के प्रकार: ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं: (क) नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW); (ख) हानिकारक अपशिष्ट; (ग) औद्योगिक अपशिष्ट; (घ) कृषि अपशिष्ट; (ड़) जैव-चिकित्सा अपशिष्ट; (च) अपशिष्ट न्यूनतमकरण।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन क्या है?

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 की मुख्य विशेषताएँ गीला (बायोडिग्रेडेबल) । सूखा (प्लास्टिक, कागज़, धातु, लकड़ी आदि) । घरेलू खतरनाक अपशिष्ट (डायपर, नैपकिन, खाली कंटेनर आदि) तथा अलग किये गए कचरे को अधिकृत कचरा बीनने वालों या कचरा संग्रहकर्ता या स्थानीय निकायों को सौंपना।

ठोस अपशिष्ट के स्रोत क्या है?

ठोस अपशिष्ट पदार्थों के मुख्य स्त्रोत हैं- इसमें डिब्बे, बोतल, कांच, पॉलिथिन बैग, प्लास्टि का सामान, राख, घरेलू कचरा, लोह-लक्कड़, टिन, ब्लेड, कागज आदि सम्मिलित है। इसके अतिरिक्त पुराने वाहन, टायर, फिज, इलेक्ट्रोनिक सामान आदि का निस्तारण विकट समस्या है।