UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 8 उत्सर्जन तन्त्र (Excretory System) UP Board Class 11 Home Science Chapter 8 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. उत्सर्जी अंग तथा उनके कार्य (Excretory Organs and their Functions): फेफड़े प्रमुखतः श्वसन क्रिया में सहायक होते हैं, किन्तु कार्बन डाइ-ऑक्साइड जैसी दूषित गैस को बाहर निकालने के कारण उत्सर्जी अंग की भूमिका भी निभाते हैं। त्वचा से पसीना निकलता है। पसीने में अनेक उत्सर्जी पदार्थ होते हैं। अत: त्वचा सुरक्षा करने का साधन होने के साथ-साथ उत्सर्जन का कार्य भी करती है। यकृत रुधिर में से अधिक मात्रा में प्राप्त अमीनो अम्लों (amino acids) को तोड़कर अमोनिया को यूरिया, यूरिक अम्ल आदि कम हानिकारक पदार्थों में बदलता है। ये हानिकारक पदार्थ गुर्दो के माध्यम से मूत्र में
घुलित अवस्था में विसर्जित होते हैं। इस स्थिति में गुर्दे या वृक्क महत्त्वपूर्ण उत्सर्जन-अंग के रूप में कार्य करते हैं। बड़ी आँत मल या विष्ठा के साथ अपच पदार्थों को तो निकालती ही है, कुछ अन्य उत्सर्जी पदार्थों को भी यह बाहर निकाल देती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गुर्दे, त्वचा, फेफड़े तथा बड़ी आँत मुख्य उत्सर्जक अंग हैं। वृक्क की संरचना (Structure of Kidney): प्रत्येक वृक्क का बाहरी किनारा उभरा हुआ किन्तु भीतरी किनारा धंसा हुआ होता है, जिसमें से मूत्र नलिका (ureter) निकलती है। इस धंसे हुए भाग
को नाभि कहते हैं। मूत्र नलिका नीचे जाकर एक पेशीय थैले में खुलती है जिसे मूत्राशय कहते हैं। मूत्र नली की लम्बाई 30 से 35 सेमी होती है। आन्तरिक संरचना: वृक्क को बाहर से अन्दर की ओर लम्बाई में काटने से उसकी आन्तरिक संरचना देखी जा सकती है। इसके मध्य में लगभग खोखला तथा कीप के आकार का भाग होता है। यही भाग क्रमश: संकरा होकर मूत्र नलिका का निर्माण करता है। यह स्थान शीर्ष गुहा (pelvis) कहलाता है। वृक्क का शेष भाग ठोस तथा दो भागों में बँटा होता है। बाहरी, हल्के बैंगनी रंग का भाग वल्कुट या कॉर्टेक्स तथा भीतरी, गहरे रंग का भाग मेड्यूला कहलाता है। वृक्क में असंख्य सूक्ष्म नलिकाएँ होती हैं। ये अत्यन्त कुण्डलित तथा लम्बी संरचनाएँ हैं। इन्हें वृक्क नलिकाएँ कहते हैं। प्रत्येक वृक्क नलिका के दो प्रमुख भाग होते हैं-एक प्याले के आकार का ग्रन्थिल भाग मैल्पीघियन कणिका (malpighian corpuscle) तथा दूसरा अत्यन्त कुण्डलित नलिकाकार भाग। यह नलिकाकार भाग एक स्थान पर ‘U’ के आकार में भी स्थित होता है और बाद में फिर शीर्ष गुहा कुण्डलित हो जाता है। यह नलिका एक बड़ी संग्रह । नलिका में खुलती है।
प्रत्येक संग्रह नलिका एक मीनार जैसे भाग, पिरामिड में खुलती है। वृक्कों में ऐसे 10-12 पिरामिड दिखाई देते हैं जो अपने सँकरे भाग से शीर्षआन्तरिक संरचना का गुहा में खुलते हैं। वृक्क नलिका द्वारा मूत्र छनना : वृक्क की क्रिया-विधि (Filteration of Urine by Renal Duct : Mechanism of Kidney): मैल्पीघियन कणिका में दो भाग होते हैं- (i) प्याले के आकार का बोमेन सम्पुट तथा (ii) वृक्क में आई धमनी की एक छोटी शाखा से बना केशिकाओं का जाल अर्थात् केशिकागुच्छ। केशिकागुच्छ में धमनी की जो शाखा आती है, वह इससे निकलने वाली शाखा से काफी चौड़ी होती है। इस प्रकार केशिका गुच्छ में अधिक रुधिर आता है, किन्तु निकल कम पाता है; अत: इसका प्लाज्मा केशिकाओं की पतली भित्ति से छन जाता है और सम्पुट में होकर वृक्क नलिका में आ जाता है। इस छने हुए तरल में आवश्यक तथा अनावश्यक सभी प्रकार के पदार्थ उपस्थित होते हैं। बाद में नलिका के अन्दर आगे बढ़ते हुए प्लाज्मा (तरल पदार्थ) से भोजन, लवण आदि आवश्यक पदार्थ वृक्क नलिका तथा उस पर लिपटी अनेक रुधिर केशिकाओं की भित्ति में होकर रुधिर में अवशोषित कर लिए जाते हैं; किन्तु अन्य पदार्थ, जिनमें हानिकारक उत्सर्म्य पदार्थ भी सम्मिलित हैं, अधिकांश जल के साथ वृक्क नलिका में ही रह जाते हैं। यही तरल मूत्र (urine) है। वृक्क नलिकाओं से मूत्र संग्रह नलिका, पिरामिड, शीर्ष गुहा से होता हुआ मूत्र नलिका द्वारा मूत्राशय में एकत्रित होता रहता है। वृक्क नलिका के ‘U’ भाग पर लिपटी हुई रुधिर केशिकाओं का निर्माण, केशिकागुच्छ से निकलने वाली धमनी की शाखा से होता है। बाद में केशिकाओं के जाल से छोटी-सी एक शिरा बन जाती है तथा वृक्क के अन्दर इस प्रकार की सभी शिराएँ मिलकर वृक्कीय शिरा (renal vein) का निर्माण करती हैं। प्रश्न 2. (1) अधिचर्म (Epidermis): यह त्वचा की मोटी और ऊपरी परत होती है। इसमें कोशिकाओं की 3 या 4 परतें होती हैं। सबसे बाहरी परत में कोशिकाएँ मृत होती हैं, जिसको सिंगी स्तर (horny layer)
कहते हैं। इसके नीचे की ओर जीवित कोशिकाओं की बनी परत, मैल्पीघियन स्तर (malpighian layer) कहलाती है। इसकी कोशिकाएँ विभाजित होती रहती हैं। जब शरीर की बाहरी त्वचा का सिंगी स्तर समाप्त हो जाता है, तब उसका स्थान मैल्पीघियन स्तर की सबसे बाहरी परत लेती है। यह परत भी इसके अन्दर उपस्थित परतों से बनती है। अधिचर्म (epidermis) के बाहरी ओर कुछ बाल और नलिकाएँ होती हैं, ये दोनों ही आन्तरिक त्वचा के भाग कहलाते हैं। (2) चर्म (Dermis): यह परत अधिचर्म से काफी मोटी होती है। इसमें निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण भाग पाए जाते हैं
त्वचा के कार्य (Functions of Skin):
UP Board Class 11 Home Science Chapter 8 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. ये व्यर्थ पदार्थ न केवल व्यर्थ एवं विजातीय ही होते हैं बल्कि ये शरीर के लिए हानिकारक तथा विषैले भी होते हैं; अतः इन पदार्थों का शरीर से शीघ्र बाहर निकलना अति आवश्यक होता है। इन व्यर्थ पदार्थों के नियमित विसर्जन की स्थिति में हमारा शरीर स्वस्थ तथा नीरोग बना रहता है। यदि इन विजातीय तत्त्वों का समुचित विसर्जन रुक जाए तो निश्चित रूप से शरीर विकार-युक्त हो जाता है। इसीलिए उत्सर्जन तन्त्र का शरीर में विशेष महत्त्व है। वास्तव में उत्सर्जन तन्त्र शरीर की आन्तरिक सफाई की व्यवस्था को बनाए रखता है। प्रश्न 2:.
प्रश्न 3. 2. अतिरिक्त ऐमीनो अम्लों को यूरिया, यूरिक अम्ल आदि में बदलता है: यकृत ही अतिरिक्त ऐमीनो अम्लों को निम्नलिखित प्रक्रिया द्वारा यूरिया में बदलता है (क) डीएमीनेशन: अतिरिक्त ऐमीनो अम्लों को यकृत कोशिकाओं में ऑक्सीजन की उपस्थिति में तोड़ा जाता है। इस क्रिया में अमोनिया बनती है। इसमें पाइरुविक अम्ल भी बनता है जो श्वसन के काम में आ जाता है। (ख) यूरिया का निर्माण: अमोनिया एक हानिकारक गैस है। इसको यकृत कोशिकाएँ ही कार्बन डाइ-ऑक्साइड के साथ मिलाकर यूरिया (urea) का निर्माण करती हैं। इस कार्य के लिए अनेक जैव-रासायनिक क्रियाएँ होती हैं। ये सब क्रियाएँ एक चक्र के रूप में होती हैं। प्रश्न 4.
प्रश्न 5. साधारण अवस्था में, एक स्वस्थ मनुष्य प्रतिदिन लगभग 1.5 से 2 : 0 लीटर मूत्र त्याग करता है। मूत्र वृक्क नलिकाओं से बनकर हर समय बूंद-बूंद मूत्राशय में आता रहता है। मूत्रमार्ग के निरन्तर बन्द रहने के कारण मूत्र इसी में एकत्रित होता रहता है। इसके द्वार पर वर्तुल पेशियाँ (circular muscles) होती हैं, जो फैलने पर ही मूत्र को बाहर जाने देती हैं। मूत्राशय में मूत्र की पर्याप्त मात्रा (लगभग 200-250 मिली) एकत्र हो जाने पर मूत्र त्याग की इच्छा अनुभव होने लगती है तथा मूत्र त्याग कर दिया जाता है। इस प्रकार मूत्र त्याग करने से मूत्र के माध्यम से शरीर के अनेक व्यर्थ एवं विषैले पदार्थ शरीर से विसर्जित हो जाते हैं। UP Board Class 11 Home Science Chapter 8 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. UP Board Class 11 Home Science Chapter 8 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. UP Board Solutions for Class 11 Home Scienceउत्सर्जन का शरीर में क्या महत्व है?वास्तविक अर्थों में शरीर में बने नाइट्रोजनी विषाक्त अपशिष्ट पदार्थों के बाहर निकालने की प्रक्रिया उत्सर्जन कहलाती है। यह चयापचय के अपशिष्ट उत्पादों और साथ ही साथ अन्य तरल और गैसीय अपशिष्ट के उन्मूलन के लिए जिम्मेदार है।
मनुष्य का प्रमुख उत्सर्जन कौन सा है?मनुष्यों में प्रमुख उत्सर्जन उत्पाद यूरिया है।
उत्सर्जन के शरीर विज्ञान की प्रक्रिया क्या है?उत्सर्जी उत्पाद विलेय नाइट्रोजनी यौगिकों के रूप में वृक्क में नेफ्रॉन द्वारा निकाले जाते हैं । उत्सर्जन तंत्र का अर्थ है शरीर से अपशिष्ट पदार्थो को बाहर निकालने की व्यवस्था । अतः उत्सर्जन शरीर की वह व्यवस्था है जिसमें शरीर की कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट को बाहर निकाला जाता है ।
उत्सर्जन संस्था का सबसे महत्वपूर्ण अंग कौन सा है?Solution : वृक्क (Kidney)।
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