उदयपुर रियासत का पोलिटिकल एजेंट कौन है? - udayapur riyaasat ka politikal ejent kaun hai?

उदयपुर रियासत का पोलिटिकल एजेंट कौन है? - udayapur riyaasat ka politikal ejent kaun hai?

उदयपुर रियासत का पोलिटिकल एजेंट कौन है? - udayapur riyaasat ka politikal ejent kaun hai?

1857 की क्रांति : प्रमुख कारण :-

सहायक सन्धि की नीति :- जनरल लार्ड वेलेजली द्वारा पारम्भ की गई, राजस्थान में सर्वप्रथम भरतपुर राज्य ने 29 सितम्बर 1803 को लार्ड वेलेजली से सहायक सन्धि की, विस्तृत सन्धि अलवर रियासत ने 14 नवम्बर 1803 को की, भारत में प्रथम सहायक सन्धि 1798 को हैदराबाद के निजाम के साथ की गई।

आश्रित पार्थक्य नीति :- पारम्भ करता लार्ड हार्डिंग्स, सर्वप्रथम करोली राज्य ने 15 नवम्बर 1817 को की, विस्तृत एंव व्यापक सन्धि कोटा राज्य ने 26 दिसम्बर 1817 को कोटा प्रशासक झाला जालिम सिंह ने की।

★ वर्ष 1818 के अंत तक सभी रियासतों ने (सिरोही को छोड़कर) ने ईस्ट इंडिया से सन्धि की। ये सन्धिया कराने चालर्स मेटकोप वह कर्नल टॉड की विशेष भूमिका रही।

विलय की नीति :- 1848 में लार्ड डलहौजी द्वारा पारंभ की गई नीति,

● सेना में एनफील्ड राइफलों में चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग ने सैनिकों की भावनाओं को आहत किया । यह क्रांति का तात्कालिक कारण था।

● विनायक दामोदर सावरकर ने 1857 की क्रान्ति को प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की संज्ञा दी थी।

● भारत में इस क्रान्ति की शुरूआत 10 मई, 1857 को मेरठ से हुई थी।

★ राजस्थान में यह क्रान्ति नसीराबाद से शुरू हुई थी। राजस्थान में इस क्रान्ति के समय छः ब्रिटिश छावनियां थी। जो निम्नलिखित थी।

1.नसीराबाद (अजमेर), 2. नीमच (राजस्थान एवं मध्यप्रदेष का सीमावर्ती क्षेत्र),3. एरिनपुरा (पाली, जोधपुर) 4. देवली (टोंक) 5. खेरवाड़ा (उदयपुर) 6. ब्यावर (अजमेर)

●1857 की क्रान्ति के समय भारत के गवर्नर जनरल लाॅर्ड केनिंग थे, तथा राजस्थान का ए. जी.जी जार्ज पैट्रिक लारेंस था। ★ ध्यान रहे 1845 से A.G.G का मुख्यालय माउन्ट आबू था।
★ क्रांति का प्रतिक चिन्ह कमल और चपाती था।

नसीराबाद:-

यहां क्रान्ति 28 मई, 1857 को शुरू हुई। क्रान्ति की शुरूआत बंगाल इनफैन्ट्री बटालियन ने
की बाद में 30 वीं बंगाल इनफैन्ट्री ने भी इसका साथ दिया।

नीमच (मध्यप्रदेश):-

यहां पर क्रान्ति 3 जून, 1857 हीरासिंह के नेतृत्व में विद्रोह हुआ।
डूंगला :- वह स्थान जंहा पर नीमच से बच कर भागे हुए 40 अंग्रेज एंव परिवारजनों को क्रांतिकारियों ने बंधक बना लिया था।

एरिनपुरा:-

21 अगस्त, 1857 को हुआ। इसी समय क्रान्तिकारियों ने एक नारा दिया ‘‘चलो दिल्ली मारो फिरंगी’’। इस समय जोधपुर के शासक तख्तसिंह थे। क्रन्तिारियों ने आऊवा के ठाकुर कुषालसिंह से मिलकर तख्तसिंह की सेना का विरोध किया। तख्तसिंह की सेना का नेतृत्व अनाड़सिंह व कैप्टन हिथकोट ने किया था। जबकि क्रान्तिकारियों का नेतृत्व ठाकुर कुशालसिंह चंपावत ने किया था। दोनो सेनाओं के मध्य 13 सितम्बर, 1857 को युद्ध हुआ। यह युद्ध बिथोड़ा (पाली) में हुआ। जिसमें कुशाल लसिंह विजयी रहें एवं हीथकोट की हार हुई। इस हार बदला लेने के लिए पेट्रिक लोरेन्स एरिनपुरा आए एवं क्रान्तिकारियाने ने इन्हे भी परास्त किया। लोरेन्स के साथ जोधपुर के मैकमोसन थे।क्रान्तिकारीयों ने मैकमोसन की हत्या कर इसका सिर आउवा के किले पर लटकाया।
इस हार का बदला लेने के लिए लार्ड कैनिन ने
रार्बट हाम्स आउवा सेना भेजी। इस क्रान्ति का दमन किया गया। यह क्रान्ति आउवा क्रान्ति या जनक्रान्ति के नाम से जानी जाती हैं।

कोटा:-

15 अक्टूबर,1857 को कोटा में विद्रोह हुआ।
कोटा के । मेजर बर्टन इनके समय में क्रान्तिकारियों की कमान जयदयाल (वकील) मेहराबखां (रिसालदार) के हाथ में थी।
इन दोनो के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने मेजर
बर्टन,उसके दो पुत्रव डाॅ. मिस्टर काटम की हत्या कर दी। मिस्टर राॅर्बटस ने इस क्रान्ति का दमन 1858 में किया। छः माह तक कोटा क्रान्तिकारियों के अधीन रहा।

धौलपुर :-

धौलपुर में क्रान्ति का नेतृत्व रामचन्द्र व हीरालाल ने किया, क्रांतिकारियों ने राजा भगवन्तसिंह को बंदी बनाकर रियासत की तोपे लूट ली। और इन तोपो का उपयोग आगरा आक्रमण में किया ।

भरतपुर:-

31 मई 1857 को भरतपुर राज्य की एक सैनिक टुकड़ी,और गुर्जर वह मेव जनता ने विद्रोह किया
● भरतपुर पोलिटिकल एजेंट मोरिसन हारकर आगरा भाग गया।

टोंक में विद्रोह :-टोंक के नवाब वजीरुद्ददोला ने अंग्रेजो का साथ दिया,किन्तु उसके मामा ने मीर आलम खान के नेत्तरत्व में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।
● टोंक के विद्रोह में महिलाओं ने भी भाग लिया

1857 की क्रान्ति के समय तांत्या टोपे की भूमिका:-

तांत्या टोपे 2 बार राजस्थान आयें। पहली बार 8 अगस्त,1857 को वह भीलवाड़ा आये, इस समय इन्होने रार्बट्स को हराया और टोपे ने झालावाड़ के शासक पृथ्वीसिंह को भी हराया।

11 दिसम्बर, 1857 को दूसरी बार राजस्थान आये। इस समय उन्होने बांसवाड़ा को जीता।
मेजर ईंड़न को सूचना का पता चला तो वह
तांत्या टोपे का पीछा करते हुए बांसवाड़ा पहुंचा।
बांसवाड़ा से उदयपुर अन्त में तांत्या टोपे के
विष्वासघाती मित्र मानसिंह नरूका ने धोखा किया व ईंड़न को टोपे का पता बता दिया एवं
इन्हें फांसी की सजा दी गईं।

1857 की क्रान्ति की असफलता के कारण:-

राजस्थान के राजाओें ने क्रान्तिकारियों का साथ न देकर ब्रिटिश सरकार का साथ दिया। क्रान्ति नेतृत्वहीन थी। क्रान्तिकारियों में एकता व सम्पर्क का अभाव था।

1857 की क्रान्ति के प्रभाव:-

राजस्थान की रियासतें पूर्णतः ब्रिटिश सरकार के हाथों में चली गई।राजस्थान की जनता पर
अंग्रेजों की गुलामी का अंकुश लगा। समाज में राष्ट्रीय और राजनैतिक चेतना का उदय हुआ,
यातायात के साधनों का विकास हुआ।

इन्हें भी जाने :-

● कोटा में क्रांति के नायक जयदयाल एंव मेहराब खान थे उनके नेत्तत्व में भवानी व नारायण नामक सैन्य टुकड़ियों ने विद्रोह किया।

● विद्रोह के समय कोटा नरेश राम सिंह दिर्तीय थे,जिन्हें विद्रोहियों ने 6 माह तक नजरबन्द रखा,और एकमात्र नरेश क्रांति के बाद इनकी तोपो की सलामी में कमी की गई।

● जयपुर महाराजा रामसिंह द्विर्तीय को सितार ए हिन्द की उपाधि दी।

● राजपुताना की एकमात्र रियासत बीकानेर थी, जिसके राजाओ के प्रभाव के चलते अंग्रेज चाहकर

भी

पोलिटिकल एजेंट की नियुक्ति नही कर पाए।

● राजपूताने का एकमात्र नरेश जिसने विद्रोह के दौरान अंग्रेजो को साथ देने में स्पष्ट मना किया था,बूंदी नरेश महाराव रामसिंह हाड़ा था।

● कर्नल होम्स ने आउवा दुर्ग जीतकर वँहा से सुगाली माता की मूर्ति + 6 पीपल + 7 लोहे की तोपे अजमेर लाया था।

● राजस्थान का प्रथम AGG एजेंट मि.लॉकेट था।

● बीकानेर महाराजा सरदार सिंह एकमात्र नरेश थे जो विद्रोह को दबाने राज्य की सीमा से बहार गए।

● क्रांति का पहला शहीद अमरचन्द बाठिया था,इन्हें क्रांति का भामाशाह कहते है।

●क्रांति का सबसे युवा शहीद हेमू कालाणी था,जिसे टोंक में फाँसी दी गई।

● सिरोही नरेश शिव सिंह ने 11 सितम्बर 1823 को कम्पनी के साथ सन्धि की (अंतिम राज्य)

● विद्रोह के समय राजपूताने में पॉलिटिकल एजेंट मारवाड़ में मोकमेसन , मेवाङ में मेजर शावर्स, कोटा में मेजर बर्टन व जयपुर में कर्नल ईडन थे।

● खेरवाड़ा (उदयपुर) , ब्यावर (अजमेर) इन दो छावनियों ने क्रांति में भाग नही लिया।