ऊर्जा के परंपरागत एवं गैर परंपरागत स्रोत कौन से हैं? - oorja ke paramparaagat evan gair paramparaagat srot kaun se hain?

प्रश्न : ऊर्जा के परंपरागत स्रोत तथा ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोतों में अंतर व्यक्त करें।

उत्तर :

नोट : अंतर लिखते समय दोनों के मध्य एक रेखा खींचे।

1) ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों में कोयला, पेट्रोलियम तथा बिजली शामिल है जबकि ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोतों में सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा, बायोमास आदि शामिल है।

2) वाणिज्यिक ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों के रूप में ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों का प्रयोग लंबे समय से किया जा रहा है जबकि ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोतों से अधिकतर अभी भी प्रायोगिक अवस्था में है और बहुत कम सीमा तक वाणिज्यिक ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों के रूप में इनका प्रयोग किया जा रहा है।

3) पिछले कई दशकों में परंपरागत स्रोत विशेषकर कोयला और पेट्रोलियम का प्रयोग वातावरण की परवाह किए बिना हो रहा है जबकि वातावरण प्रदूषण को रोकने के दृष्टिकोण से ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोतों का विकास वाणिज्यिक ऊर्जा के स्रोतों के रूप में किया जा रहा है।

Q: Differentiate between traditional sources of energy and non-conventional sources of energy.

Answer :

Note: While writing the difference, draw a line between the two.

1) Traditional sources of energy include coal, petroleum and electricity while non-conventional sources of energy include solar energy, wind energy, biomass etc.

2) Traditional sources of energy have been used for a long time as various sources of commercial energy whereas most of the non-conventional sources of energy are still in experimental stage and to a lesser extent as different sources of commercial energy. They are being used.

3) In the last several decades, conventional sources, especially coal and petroleum, have been used irrespective of the environment, while non-conventional sources of energy are being developed as sources of commercial energy with a view to preventing environment pollution.

प्रश्न : ऊर्जा के प्राथमिक तथा अंतिम स्रोतों के मध्य अंतर लिखें।

नोट : यहां दोनों के अंतर को लिखते समय मध्य में एक रेखा खींचने की कोई आवश्यकता नहीं है।

उत्तर :

ऊर्जा के प्राथमिक स्रोत :

ऊर्जा के प्राथमिक स्रोत वे स्रोत हैं (जैसे कोयला, लिग्नाइट, पेट्रोलियम तथा गैस) जो प्रकृति से निशुल्क उपहार के रूप में प्राप्त होते हैं। ऊर्जा के स्रोत के रूप में प्रयोग होने से पहले इनको किसी भी रूपांतरण की आवश्यकता नहीं होती। वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में इनका उर्जा-आगतों के रूप में अप्रत्यक्ष प्रयोग होता है, जिसमें बिजली शक्ति जैसे ऊर्जा के अन्य स्रोतों का उत्पादन भी शामिल है।

ऊर्जा के अंतिम स्रोत :

यह ऊर्जा के वे स्रोत हैं जिनका प्रयोग अंतिम उत्पाद के रूप में किया जाता है। “बिजली की शक्ति” ऊर्जा के अंतिम स्रोत का एक जाना माना उदाहरण है। इसका अंतिम पदार्थ के रूप में प्रयोग वाणिज्य तथा गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। परंतु यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस भी बिजली की भांति ऊर्जा के अंतिम स्रोतों के रूप में प्रयोग होते हैं। अतएव, अंतिम प्रयोग पर निर्भर ऊर्जा की किसी विशेष स्रोत का प्रयोग प्राथमिक स्रोत, अंतिम स्रोत अथवा दोनों रूप में हो सकता है।

Question : Write the difference between primary and final sources of energy.

Note: While writing the difference of the two, there is no need to draw a line in the middle.

Answer :

Primary sources of energy:

Primary sources of energy are those sources (such as coal, lignite, petroleum and gas) which are received as a free gift from nature. They do not require any conversion before being used as a source of energy. They are used indirectly as energy inputs in the production of goods and services, including the production of other sources of energy such as electric power.

Final sources of energy:

These are the sources of energy that are used as the final product. “Electric power” is a known example of the ultimate source of energy. It is used as a final material for commercial and non-commercial purposes. But the thing to note here is that coal, petroleum and natural gas are also used as final sources of energy like electricity. Therefore, a particular source of energy dependent on the end use can be used as primary source, final source, or both.

By :
Manish Kapoor
Lect in Economics


कोयला:

भारत की वाणिज्यिक ऊर्जा जरूरतों के लिये कोयले का सबसे अधिक महत्व है। संपीड़न की मात्रा, गहराई और समय के अनुसार कोयले के तीन प्रकार होते हैं जो नीचे दिये गये हैं।

लिग्नाइट: यह भूरे रंग का और निम्न दर्जे का कोयला होता है। लिग्नाइट मुलायम होता है और इसमें अधिक नमी होती है। तमिल नाडु के नैवेली में लिग्नाइट के मुख्य भंडार हैं। लिग्नाइट का इस्तेमाल बिजली के उत्पादन में होता है।

बिटुमिनस कोयला: इस प्रकार के कोयले का निर्माण उच्च तापमान और अधिक गहराई में दबने के कारण हुआ था। यह कोयला वाणिज्यिक इस्तेमाल के दृष्टिकोण से सबसे लोकप्रिय माना जाता है। लोहा उद्योग के लिये बिटुमिनस कोयले को आदर्श माना जाता है।

एंथ्रासाइट कोयला: यह सख्त और सबसे अच्छे ग्रेड का कोयला होता है।

भारत में पाया जाने वाला कोयला दो मुख्य भूगर्भी युगों की चट्टानों की परतों में मिलता है। गोंडवाना कोयले का निर्माण बीस करोड़ साल पहले हुआ था। गोंडवाना कोयले के मुख्य स्रोत दामोदर घाटी में हैं। इस क्षेत्र में झरिया, रानीगंज और बोकारो में कोयले की मुख्य खदाने हैं। कोयले के भंडार गोदावरी, महानदी, सोन और वर्धा की घाटियों में भी हैं।

टरशियरी निक्षेप के कोयले का निर्माण लगभग साढ़े पाँच करोड़ साल पहले हुआ था। पूर्वोत्तर के मेघालय, असम, अरुणाचल और नागालैंड में टरशियरी कोयला पाया जाता है।



पेट्रोलियम

कोयले के बाद पेट्रोलियम भारत का मुख्य ऊर्ज संसाधन है । ऊर्जा के स्रोत के अलावा पेट्रोलियम उत्पादों का इस्तेमाल कच्चे माल के रूप में कई उद्योगों में होता है। उदाहरण: प्लास्टिक, टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स, आदि।

भारत में पाया जाने वाला पेट्रोलियम टरशियरी चट्टानों की अपनति और भ्रंश ट्रैप में पाया जाता है। चूना पत्थर या बलुआ पत्थर की सरंध्र परतों में तेल पाया जाता है जो बाहर भी बह सकता है। लेकिन बीच बीच में स्थित असरंध्र परतों के कारण इस तेल के रिसाव की रोकथाम होती है। इसके अलावा सरंध्र और असरंध्र परतों के बीच बने फॉल्ट में भी पेट्रोलियम पाया जाता है। गैस हल्की होती है इसलिए सामान्यतया तेल के ऊपर पाई जाती है।

मुम्बई हाई से भारत का 63% पेट्रोलियम निकलता है। 18% पेट्रोलियम गुजरात से और 13% असम से आता है। अंकलेश्वर में गुजरात का सबसे महत्वपूर्ण तेल का क्षेत्र है। असम भारत का सबसे पुराना पेट्रोलियम उत्पादक है। दिगबोई, नहरकटिया और मोरन-हुगरीजन में असम के मुख्य तेल के कुँए हैं।

प्राकृतिक गैस

प्राकृतिक गैस या तो पेट्रोलियम के साथ पाई जाती है या अकेले भी। प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल ईंधन और कच्चे माल के तौर पर होता है। कृष्णा गोदावरी बेसिन में प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार की खोज हुई है। इसके अलावा खंभात की खाड़ी, मुम्बई हाई और अंदमान निकोबार में भी प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार हैं।

मुम्बई हाई और कृष्णा गोदावरी बेसिन को पश्चिमी और उत्तरी भारत के खाद, उर्वरक और औद्योगिक क्षेत्रों को एक 1700 किमी लम्बी हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर पाइपलाइन से जोड़ा गया है। प्राकृतिक गैस को मुख्य रूप से उर्वरक और बिजली उत्पादन में इस्तेमाल किया जाता है। आजकल, गाड़ियों के ईंधन के रूप में सीएनजी (कॉम्प्रेस्ड नैचुरल गैस) का इस्तेमाल भी होने लगा है।

बिजली

विद्युत का उत्पादन मुख्य रूप से दो तरीकों से होता है: पनबिजली और थर्मल पावर। एक तरीके में बहते पानी से टरबाइन चलाया जाता है। दूसरे तरीके में कोयला, पेट्रोलियम या प्राकृतिक गैस को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करके भाप बनाई जाती है और फिर उस भाप से टरबाइन चलाया जाता है। देश के मुख्य पनबिजली उत्पादक हैं भाखड़ा नांगल, दामोदर वैली कॉरपोरेशन, कोपिली हाइडेल प्रोजेक्ट, आदि। वर्तमान में भारत में 300 से अधिक थर्मल पावर स्टेशन हैं।



गैर परंपरागत ऊर्जा संसाधन

परमाणु ऊर्जा: परमाणु की संरचना में बदलाव करके परमाणु ऊर्जा प्राप्त की जाती है। परमाणु की संरचना में बदलाव करने की प्रक्रिया में बहुत भारी मात्रा में ताप ऊर्जा निकलती है। इस ताप ऊर्जा के इस्तेमाल से बिजली पैदा की जाती है। ताप ऊर्जा से भाप बनाई जाती है और फिर भाप से टरबाइन चलाकर बिजली पैदा की जाती है। परमाणु ऊर्जा के निर्माण के लिए यूरेनियम और थोरियम को इस्तेमाल किया जाता है। ये खनिज झारखंड में और राजस्थान की अरावली पहाड़ियों में पाये जाते हैं। केरल में पाई जाने वाली मोनाजाइट रेत में भी थोरियम प्रचुर मात्रा में होती है।

सौर ऊर्जा: फोटोवोल्टाइक टेक्नॉलोजी के इस्तेमाल से सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में में बदला जाता है। भुज के निकट माधापुर में भारत का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा प्लांट बनाया गया है। सौर ऊर्जा से भविष्य के लिए नई उम्मीदें जगती हैं। सौर ऊर्जा से ग्रामीण इलाकों में जलावन और उपलों पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी। इससे जीवाष्म ईंधन का संरक्षण भी बेहतर तरीके से होगा। सौर ऊर्जा पर्यावरण हितैषी है।

पवन ऊर्जा: भारत को अब विश्व में “पवन सुपर पावर” माना जाता है। भारत के सबसे बड़े विंड फार्म क्लस्टर तामिलनाडु में नगरकोइल से मदुरै तक हैं। पवन ऊर्जा के मामले में आंध्र प्रदेश, कर्णाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र और तामिलनाडु भी महत्वपूर्ण हैं।

बायोगैस: खरपतवार, कृषि अपशिष्ट और पशु और मानव अपशिष्ट से बायोगैस बनाया जा सकता है। केरोसीन, उपले और चारकोल की तुलना में बायोगैस अधिक कार्यकुशल है। बायोगैस प्लांट को म्यूनिसिपल, को-ऑपरेटिव और व्यक्तिगत स्तर पर भी बनाया जा सकता है। गोबर गैस प्लांट से हमें ऊर्जा के साथ साथ खाद भी मिलती है।

ज्वारीय ऊर्जा: ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पानी के प्रवाह को नियंत्रित करना होता है। इसके लिए ज्वार वाले तटों पर बाँध बनाया जाता है। ज्वार के समय पानी बाँध के पीछे पहुँचता है और गेट बंद होने से वहीं जमा होता है। जब ज्वार चला जाता है तो गेट खोल दिया जाता है ताकि पानी वापस समुद्र की ओर चला जाये। पानी के बहाव से टरबाइन चलाकर बिजली बनाई जाती है। नेशनल हाइड्रोपावर कॉरपोरेशन द्वारा कच्छ की खाड़ी में 900 मेगावाट का एक ज्वारीय ऊर्जा प्लांट बनाया गया है।

भू-तापीय ऊर्जा: आपने पढ़ा होगा कि धरती के अंदर काफी गरमी होती है। यह उष्मा कुछ स्थानों पर दरारों से होकर सतह पर आ जाती है। ऐसी जगह पर भूमिगत जल गर्म हो जाता है और भाप के रूप में ऊपर उठता है। इस भाप का इस्तेमाल टरबाइन चलाने में किया जाता है। भारत में प्रयोग के तौर पर भू-तापीय ऊर्जा से बिजली बनाने के दो संयंत्र लगाये गये हैं। उनमे से एक हिमाचल प्रदेश में मणिकरण के निकट पार्वती घाटी में है और दूसरा लद्दाख में पूगा घाटी में है।


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ऊर्जा के परंपरागत और गैर परंपरागत स्रोत कौन कौन से हैं?

परंपरागत ऊर्जा के स्रोत: जलावन, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और बिजली। गैर परंपरागत ऊर्जा के स्रोत: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, बायोगैस और परमाणु ऊर्जा

परंपरागत ऊर्जा का स्रोत कौन सा है?

परंपरागत ऊर्जा के स्रोत: जलावन, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और बिजली। गैर परंपरागत ऊर्जा के स्रोत: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, बायोगैस और परमाणु ऊर्जा

ऊर्जा का गैर पारंपरिक स्रोत क्या है?

गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोत क्या हैं? (Non conventional sources of energy in hindi) गैर पारंपरिक स्रोत वे हैं, जो हाल ही में प्रयोग में आए हैं। इन स्रोतों को प्रयोग करने का उपाय तथा तकनीक, पहले दोनों ही नहीं थे। ये पृथ्वी पर असीमित मात्रा में हैं।