वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के उपयोग पर लेख - vaikalpik oorja sroton ke upayog par lekh

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राष्ट्रीय सहारा, 24 अप्रैल, 2018

आज पवन और सौर ऊर्जा की प्रति यूनिट की दर पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों की यूनिट से कम हो गई है। इस सूचना का स्रोत भारत सरकार का ऊर्जा मंत्रालय और केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण है। इनके अनुसार पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा का उपयोग करना कीमतें गिरने से आसान हो गया है। शुरू में परमाणु ऊर्जा और सौर ऊर्जा की कीमतें अधिक थीं क्योंकि उसके उत्पादन में आने वाले उपकरण महँगे थे। ये आँकड़े संकेत देते हैं कि आने वाले समय में हमें जीवाश्म ईंधन पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।

विश्व की मुख्य पाँच अर्थव्यवस्थाओं में भारत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। आगामी दो दशकों के भीतर उसे ऊर्जा की बहुत जरूरत होगी। बढ़ती जनसंख्या के साथ ही उद्योगों को समुचित बिजली मिलती रहे, इसके प्रयास सरकारों को करने होंगे। आज कोयला आधारित ऊर्जा उत्पादन से 60 फीसद बिजली हम ले रहे हैं, जबकि आने वाले समय में कोयले की खपत हमें कम करनी होगी। पर्यावरण संरक्षण, पृथ्वी के बढ़ते तापक्रम को रोकने के लिये यह जरूरी है।

अनुमान है कि भारत को वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन के लिये 175 अरब डॉलर की जरूरत है। 2030 तक भारत 40 फीसद ऊर्जा वैकल्पिक स्रोत से लेने लगेगा। हमें पता होना चाहिए कि कोयले से प्राप्त पावर में देश 35 फीसद कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन कर रहा है। हम विश्व में कोयले की खपत के मामले में दूसरे स्थान पर हैं। इस बीच, परमाणु और डीजल से प्राप्त होने वाली ऊर्जा 2003 में 11 फीसद थी, जो 2017 तक 8 फीसद ही रह गई।

यह भी देखने में आया कि सौर ऊर्जा की कीमत एक समय अधिक थी, आज कम हो गई है। 2010 से अब तक 80 फीसद इसके प्रति यूनिट कीमत में कमी आई है। इसका कारण फोटो वोल्टिक पीवी मॉड्यूल की कीमतों का घटना है और बहुत सारे सौर ऊर्जा के प्रोजेक्ट बढ़े हैं। इसी तरह पवन ऊर्जा की प्रति यूनिट की कीमत में 50 फीसद की कमी आई है। यह कमाल एक वर्ष के भीतर हुआ है। इसके पीछे कीमतों में कमी आने का कारण इस क्षेत्र में स्पर्धा का बढ़ना है।

आज पवन और सौर ऊर्जा की प्रति यूनिट की दर पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों की यूनिट से कम हो गई है। इस सूचना का स्रोत भारत सरकार का ऊर्जा मंत्रालय और केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण है। इनके अनुसार पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा का उपयोग करना कीमतें गिरने से आसान हो गया है। शुरू में परमाणु ऊर्जा और सौर ऊर्जा की कीमतें अधिक थीं क्योंकि उसके उत्पादन में आने वाले उपकरण महँगे थे। ये आँकड़े संकेत देते हैं कि आने वाले समय में हमें जीवाश्म ईंधन पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। वैसे अभी इस ईंधन को हम त्याग नहीं सकते क्योंकि वैकल्पिक ऊर्जा के साधन पर्याप्त नहीं हैं। इस ओर और ध्यान देना होगा।

अमेरिका की ऊर्जा सूचना एजेंसी के अनुसार, अभी यानी 2017 तक अमेरिका में खनिज तेल पेट्रोल की खपत 1953 लाख बैरल प्रति दिन थी यानी विश्व के तेल की 20 फीसद की खपत अमेरिका कर रहा था। दूसरे नम्बर पर चीन था, 1202 लाख बैरल प्रतिदिन के हिसाब से खपत कर रहा था, जो विश्व में 13 फीसद की दर पर था। भारत तीसरे स्थान पर था यानी 414 लाख बैरल क्रूड ऑयल प्रतिदिन की खपत कर रहा था।

आज खनिज तेल की खपत में बाजार एशिया की तरफ हो गया है। चीन, भारत और जापान मिलकर अमेरिका से अधिक खपत कर रहे हैं और तेल के भण्डार भी एशिया की धरती पर हैं। तेल उत्पादक देशों के हाथ में तेल की कीमतों को घटाने-बढ़ाने का नियंत्रण है। विश्व बाजार में खनिज तेल की कीमतें नियंत्रण में हैं, लेकिन भारत के आम व्यक्ति को उसका फायदा नहीं मिल रहा। भारत सरकार को तेल की कीमतों को नहीं बढ़ाना चाहिए। हर व्यक्ति इससे प्रभावित है। इसके चलते आने वाले आम चुनाव में जनता वर्तमान सरकार को नकार सकती है।

उत्पादकों पर दबाव डालना चाहिए क्योंकि जब हमारे पास ऊर्जा के अन्य विकल्प हैं, तो उनका अधिक से अधिक उत्पादन कर खनिज तेलों पर निर्भरता छोड़ देनी चाहिए। इससे स्वयं ही विश्व बाजार में तेल की खपत कम होने से तेल के भाव लुढक सकते हैं। बाजार में कीमतों को घटाने-बढ़ाने का एकाधिकार ओपेक देशों के पास है। इस निर्भरता को समाप्त करने की कोशिश होनी चाहिए।

अभी कई वर्षों से विश्व में खनिज तेल के भाव उस गति से नहीं बढ़े, जिस गति से 2010 से 2014 के बीच बढ़े थे। उसके बाद विशेषकर अमेरिका ने अपने संसाधनों की ओर ध्यान दिया जिसके फलस्वरूप ओपेक देशों को तेल के दाम गिराने पड़े। इन पाँच सालों में विश्व बाजार में तेल की कीमतें नहीं बढ़ीं या कहें कि स्थिर रहीं पर भारत में यह स्थिरता देखने को नहीं मिली।

देश की खुशहाली हर व्यक्ति चाहता है, उस खुशहाली को बरकरार रखने के लिये सही योजनाओं और नीतियों की सख्त जरूरत है। इस तरह के उपाय होने चाहिए जिनमें आम नागरिक देश की प्रगति में अपना हिस्सा दे सके। साथ ही, ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को अपनाकर कार्बन उत्सर्जन को कम-से-कम करने की ओर देश कदम बढ़ा सके।

"वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत" पर लघु लेख

"वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत" पर लघु लेख

ऊर्जा की मांग में तेजी से वृद्धि ने इसकी आपूर्ति के बारे में चिंता पैदा की है। ऊर्जा के मुख्य स्रोत पारंपरिक स्रोत हैं। वे गैर-नवीकरणीय और संपूर्ण स्रोत हैं।

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पूरे विश्व में ऊर्जा की मांग बढ़ गई है और यह स्थिति वर्ष 2030-35 तक पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे ऊर्जा के स्रोतों पर खतरा पैदा कर देती है यदि कोई वैकल्पिक स्रोत उन्हें प्रतिस्थापित या पूरक नहीं करता है।

भारत सरकार ऊर्जा के घटते पारंपरिक स्रोतों के पूरक के रूप में वैकल्पिक, गैर-पारंपरिक और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को उच्च प्राथमिकता देती है। इन वैकल्पिक स्रोतों में शामिल हैं - सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, बायोमास ऊर्जा आदि।

इन ऊर्जा स्रोतों में ऊर्जा की विशाल क्षमता है और वे विभिन्न तरीकों से उपयोगी हो सकते हैं।

सौर ऊर्जा एक विस्तृत स्रोत है। सौर सेल, सौर कुकर, सौर तालाब आदि सौर ऊर्जा को फंसाने वाले उपकरण हैं। यह बिजली पैदा कर सकता है, भोजन बना सकता है, पानी गर्म कर सकता है और ऊर्जा के अन्य रूपों में परिवर्तित हो सकता है।

सौर फोटोवोल्टिक प्रणाली जो सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए सौर कोशिकाओं का उपयोग करती है, वैकल्पिक ऊर्जा का सबसे आशाजनक और प्रगतिशील स्रोत है।

पवन ऊर्जा काइनेटिक ऊर्जा के रूप में है। पवनचक्की का एक ब्लेड हवाओं को उड़ाकर ले जाया जाता है और काम करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। सैद्धांतिक रूप से लगभग 60% पवन ऊर्जा को ऊर्जा के अन्य रूपों में परिवर्तित किया जा सकता है। उपयुक्त स्थानों पर इस ऊर्जा का दोहन करने के लिए दुनिया में पवन चक्की फार्म स्थापित किए जा रहे हैं।

भूतापीय ऊर्जा का उपयोग बिजली का उत्पादन करने के लिए किया जा सकता है। हालाँकि, पृथ्वी की आंतरिक ऊष्मा हर जगह उपलब्ध नहीं है जिसका व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है। ऐसी क्षमता भारत में जम्मू और कश्मीर में पेगु घाटी में पाई गई है।

ज्वार की गतिज ऊर्जा से जुड़ी ज्वारीय ऊर्जा को टरबाइन के उपयोग से बिजली में परिवर्तित किया जा सकता है। तटीय क्षेत्रों में यह संभावना उपलब्ध है।

गांवों में बायोमास ऊर्जा का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन विधि और वैज्ञानिक उपकरणों में सुधार से उपयोग में वृद्धि हो सकती है। यह अपशिष्ट पदार्थों को कम करता है और सस्ती ऊर्जा देता है। जथ्रोपा एक संयंत्र है जो डीजल का उत्पादन करता है और यह प्रदूषण मुक्त है। रेलवे लाइनों के अलावा, जथरोपा रोपण कार्यान्वयन में है। हाइड्रोजन भी ऊर्जा का एक बड़ा लाभकारी स्रोत साबित होता है।

आजकल, परमाणु ऊर्जा अत्यधिक महत्व प्राप्त कर रही है।

ऊर्जा के ये वैकल्पिक स्रोत स्थायी तरीके से एक नए क्षितिज का वादा करते हैं।

ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत क्या हैं इनका क्या महत्व है?

इन्हें वैकल्पिक ऊर्जा के नाम से जाना जाता है। इनकी प्रमुख विशेषता है, इसका कभी क्षय न होना। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय एवं लहरीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, समुद्री ताप ऊर्जा, बायोगैस तथा बायेामास, वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के नाम से जाने जाते हैं। विज्ञान ने वैकल्पिक ऊर्जा को उपलब्ध कराने का कार्य तीव्रता से कर दिया है।

वैकल्पिक ऊर्जा के स्त्रोत कौन कौन से हैं?

वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों चार मुख्य वैकल्पिक ऊर्जा संसाधन - हवा, सूरज, ज्वार और बायोमास (संयंत्र मैटर)। इन्हें अक्षय ऊर्जा संसाधनों के रूप में भी जाना जाता है।

वैकल्पिक ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत क्या है?

सौर ऊर्जा जहां पेड़ पौधों के लिए प्रकाश संश्लेषण में जरूरी है। वहीं वैश्विक स्तर पर सूर्य ऊर्जा का एक अच्छा और बड़ा विकल्प है।

ऊर्जा के वैकल्पिक गैर पारंपरिक स्रोत क्या हैं?

आज पुनरोपयोगी और गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के दायरे में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल विद्युत्, बायो गैस, हाइड्रोजन, इंधन कोशिकाएं, विद्युत् वहां, समुद्री उर्जा, भू-तापीय उर्जा, आदि जैसी नवीन प्रौद्योगिकियां आती हैं