वन संरक्षण नीति कब लागू की गई इस नीति के प्रमुख उद्देश्य क्या थे? - van sanrakshan neeti kab laagoo kee gaee is neeti ke pramukh uddeshy kya the?

राष्ट्रीय वन नीति, 1952 

  • इस नीति के तहत भारतीय वनों को मुख्यता 3 वर्गों में वर्गीकृत किया गया है-
  • संरक्षित वन (पारिस्थितिक तंत्र के आवश्यक वन)
  • राष्ट्रीय वन (ऐसे वन जिसका उपयोग आर्थिक गतिविधियों में किया जा सके)
  • ग्राम वन (ग्रामीण क्षेत्र की जरूरतों की पूर्ति करने वाले वन)

वन अनुसंधान केंद्र

  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी-देहरादून (उत्तराखंड) भारतीय प्लाईवुड उद्योग अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान-बंगलूरू (कर्नाटक) ।
  • भारतीय वन प्रबंधन संस्थान-भोपाल (मध्य प्रदेश) भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद्-देहरादून (उत्तराखंड)
  • जी. बी. पंत हिमालयन पर्यावरण और विकास संस्थान-अल्मोड़ा (उत्तराखंड)
  • उष्ण कटिबंधीय वनस्पति बागान और अनुसंधान संस्थान तिरूवनंतपुरम (केरल)
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट-नई दिल्ली ।
  • राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय-नई दिल्ली

सामाजिक वानिकी

  • इस नीति के अनुसार देश के एक-तिहाई (33 प्रतिशत) भू-भाग पर वनों का विस्तार होना चाहिये, जिसमें पर्वतीय क्षेत्रों में 60 प्रतिशत तथा मैदानी भागों में 20 प्रतिशत भाग पर वनों का विस्तार होना चाहिये ।
  • इस नीति के अंतर्गत विभिन्न उद्देश्यों को शामिल किया गया है, जैसे-मानव निर्मित वन क्षेत्रों में वृद्धि, पशुचारण व झूम कृषि पर नियंत्रण, वानिकी क्षेत्रों में शोध आदि को प्रोत्साहित करना ।
  • आगे चलकर 1988 में राष्ट्रीय वन नीति, 1952 को संशोधित कर और विस्तार दिया गया, जैसे-समस्त भौगोलिक क्षेत्र के एक- तिहाई क्षेत्र (33%) पर वनावरण, सामाजिक वानिकी कार्यक्रम को बढ़ावा देते हुए वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना, पारिस्थितिकी संतुलन को कायम रखना, वन उत्पादों के कुशलतम उपयोग पर बल देना आदि ।
  • सामाजिक वानिकी के तहत सार्वजनिक व निजी भूमि पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित किया जाता है । इस हेतु प्रथम सुझाव 1976 में 'राष्ट्रीय कृषि आयोग' द्वारा दिया गया था ।
  • इस कार्यक्रम की शुरुआत 1978 में हुई और 1980 में यह छठी पंचवर्षीय योजना का अंग बन गया ।  

कृषि वानिकी 

'कृषि वानिकी' का अर्थ है- एक ही भूमि पर कृषि फसल एवं वृक्ष प्रजाति को विधिपूर्वक रोपित कर दोनों प्रकार की उपज लेकर आय बढ़ाना ।

सामुदायिक कृषि वानिकी 

  • 'सामुदायिक कृषि वानिकी' के अंतर्गत निजी भूमि से हटकर सार्वजनिक परती पड़ी भूमि पर समुदाय द्वारा वनारोपण को बढ़ावा दिया जाता है । इसके अंतर्गत 'खेजड़ी' जैसे वृक्षों का रोपण किया जाता है, जिनका उपयोग पशुओं के चारा, ईंधन तथा औषधि के रूप में किया जाता है ।
  • सामुदायिक वानिकी का एक अन्य उद्देश्य है- भूमिविहीन लोगों को वनीकरण से जोड़ना तथा इससे उन्हें वो लाभ पहुँचाना, जो केवल भूस्वामियों को प्राप्त होते हों

शहरी वानिकी 

 शहरों और उनके इर्द-गिर्द निजी व सार्वजनिक भूमि, जैसे-हरित पट्टी, पार्क, सड़कों के साथ औद्योगिक व व्यापारिक स्थलों पर वृक्ष  लगाना और उनका प्रबंधन शहरी वानिकी के अंतर्गत आता है ।

फार्म वानिकी 

  • इसके अंतर्गत किसानों को खेतों में व्यापारिक महत्त्व वाले व अन्य पेड़ों को लगाने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है ।
  • वन विभाग इसके लिये किसानों को नि: शुल्क पौधे उपलब्ध करवाता है

भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण

(Botanical Survey of India: BSI)

बीएसआई पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत देश में वनस्पति व पौधों संबंधी अध्ययन एवं वर्गीकरण करने वाला शीर्ष अनुसंधान संगठन है । इसकी स्थापना 1890 में की गईं तथा इसका मुख्यालय कोलकाता में है । इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं -

  • देश के वनस्पति संसाधनों का पता लगाना और आर्थिक गुणवत्ता वाले पौधों की प्रजातियों की पहचान करना । 
  • गंभीर रूप से संकट ग्रस्त वनस्पतियों हेतु बीएसआई लाल सूची जारी करता है एवं उनके संरक्षण के उपाय करता है । 
  • वानस्पतिक गार्डन, संग्रहालय एवं हर्बेरियन का रख-रखाव करना पौधों से संबंधित परंपरागत ज्ञान का दस्तावेजीकरण करना
  • पर्यावरण प्रभाव का आकलन करना ।

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भारतीय वन संरक्षण अधिनियम का क्या उद्देश्य है?

भारतीय वन अधिनियम, 1927 का उद्देश्य वन उपज की आवाजाही को नियंत्रित करना था, और वनोपज के लिए वन उपज पर शुल्क लगाना था। यह एक क्षेत्र को आरक्षित वन, संरक्षित वन या एक ग्राम वन के रूप में घोषित करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया की भी व्याख्या करता है।

भारत में वन संरक्षण नीति कब लागू हुई?

1894 में घोषित पहली राष्ट्रीय वन नीति देश के सामान्य कल्याण को बढ़ावा देने के लिए जंगलों के प्रबंधन के उद्देश्य के साथ प्रख्यात की गयी थी । नीति 1952 में संशोधित की गयी, जिसका उद्देश्य संरक्षण और उत्पादन के बीच संतुलन लाने का था।