वृष राशि वालों का भाग्योदय कब होता है? - vrsh raashi vaalon ka bhaagyoday kab hota hai?

वृष राशि के लोगों में होती हैं गुप्त शक्तियां, जानें उनसे जुड़ी खास बातें

वृष राशि वालों का भाग्योदय कब होता है? - vrsh raashi vaalon ka bhaagyoday kab hota hai?

राशि चक्र की द्वितीय राशि वृष स्थिर स्वभाव की, सौम्य प्रकृति की स्त्री सूचक राशि है। पृथ्वी तत्व और दक्षिण दिशा का नियमन करने वाली यह राशि मानव शरीर में मुख का प्रतिनिधित्व करती है। यह पृष्ठोदय राशि है। इस राशि का स्वामी शुक्र है। चन्द्रमा इसमें...

राशि चक्र की द्वितीय राशि वृष स्थिर स्वभाव की, सौम्य प्रकृति की स्त्री सूचक राशि है। पृथ्वी तत्व और दक्षिण दिशा का नियमन करने वाली यह राशि मानव शरीर में मुख का प्रतिनिधित्व करती है। यह पृष्ठोदय राशि है। इस राशि का स्वामी शुक्र है। चन्द्रमा इसमें उच्च का होता है। 4 से 30 अंश तक चंद्रमा मूल त्रिकोण में संस्थित होता है। राहू  इसमें उच्च और केतु नीच का होता है। इसका नैसर्गिक स्वभाव स्वार्थपूर्ण, विवेकपूर्ण, परिश्रम सम्पन्न और सांसारिक व्यवहार में कुशल आचरण होता है। वृष लग्न की गणना श्रेष्ठ लग्नों में की जाती है। इस लग्न में जन्मे लोग भाग्यशाली, धनी, सुखी व यशस्वी होते हैं। यह राशि कालपुरुष की ग्रीवा का प्रतिनिधित्व करती है तथा वृषभ राशि का सांकेतिक चिन्ह दोनों ओर विशाल सींगयुक्त बैल अर्थात् वृषभ है। वृष लगन वाले जन्मांग से प्राय: क्षीणकाय होता है। उसका मुंह गोल, गर्दन छोटी-मोटी और जंघा पुष्ट होती है। कन्धे बलशाली और उन्नत तथा बाहु छोटे-गठीले होते हैं। उसके मुखाकार पर आत्मसम्मान और अभिजात मानसिकता के चिन्ह अंकित रहते हैं। संगीत, वस्त्राभूषण, आकर्षक वस्तु और पर्यटन के प्रति सहज रुचि होती है। उसके व्यवहार और उसकी गति-मति में अद्भुत सुनिश्चितता होती है। ऐसे व्यक्तियों को सहज ही मोटा हो जाने का भय हो जाता है। 


वृष लग्न की जातिकाओं के शारीरिक सौन्दर्य में उनके पैरों तथा नितम्ब प्रदेश की मांसल सुडौलता का सर्वाधिक महत्व होता है। उनके नेत्र विशाल और सुन्दर होते हैं। कान प्राय: बड़े होते हैं,मस्तक चौड़ा होता है और देखने में भव्य आकृति होती है। वृष लग्न के जातक में कभी-कभी स्वाभिमान अहंकार का रूप ले लेता है। अपनी त्रुटिपूर्ण बात पर भी दृढ़ रहते हैं। ऐसा जातक बहुत प्यार करने वाला तथा इस सन्दर्भ में सच्चा होता है। अधिकार-प्रियता, उद्विग्न चित्तावस्था और शान्तिप्रियता उसकी प्रकृति होती है। वह धैर्य और सहिष्णुता, ईर्ष्या से ओत-प्रोत रहता है। उसे दुख में अत्यन्त सहनशीलता प्राप्त रहती है। किसी अन्य के परामर्श से उसे वितृष्णा होती है और हर काम वह अपने मन के अनुकूल करता है। वह दयापूर्ण, सदाशयी, सौभाग्यशाली और कामी होता है। विवाद में रुचि और गति प्राप्त रहती है। चित्तवृति गूढ़ होने के कारण हृदय का तथ्य शीघ्र उद्घाटित नहीं होता। अपने आनंदोपभोग के लिए सचेष्ट रहता है। मित्रों की संख्या बहुत होती है। वह धनी और मृदुभाषी होता है। जीवन का मध्य और अन्त अपेक्षाकृत अधिक सन्तोषप्रद होता है। भाग्योदय अकस्मात होता है। भूमि, पशुधन तथा प्रचुर द्रव्य का स्वामी बनता है। जातक गुरुजन-सम्मान में प्रवृत रहता है। यदि कन्या हो तो बहुत आकर्षण का केन्द्र बनती है, उसे देखकर ही पूर्ण कन्यावत स्वभाव तथा स्वरूप का बोध होता है।


वृषभ लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्ति की बात यदि ध्यानपूर्वक न सुनी जाए तो उसे बहुत क्रोध आता है। यहांं तक कि अधिक क्रोध आने पर वह वृषभ की तरह क्रोध करता है। उसे अपनी बौद्धिक क्षमता पर पूर्ण विश्वास होता है तथा अपने स्थायी सिद्धांतों पर दृढ़ रहता है। इसमें गजब की सहनशीलता होती है और एक प्रकार की गुप्त शक्ति और विशिष्ट ऊर्जा सन्निहित रहती है। ये अपने विचारों पर अमल करते हैं व प्यार और आनंद तथा मनोरंजन आदि उनकी कमजोरी होती है। सन्तान से सम्बद्ध सुख अपेक्षाकृत कम होता है। वृष लगन के व्यक्तियों के व्यक्तित्व में एक चुम्बकीय आकर्षण होता है।  

वृषभ

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मेष • वृषभ • मिथुन • कर्क • सिंह • कन्या • तुला
वृश्चिक • धनु • मकर • कुम्भ • मीन

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राशि चिह्न सांड
अवधि (ट्रॉपिकल, पश्चिमी) 20 अप्रैल – 21 मई (2022, यूटीसी)
नक्षत्र वृषभ तारामंडल
राशि तत्त्व पृथ्वी
राशि गुण फ़िक्स्ड
स्वामी शुक्र
डेट्रिमेण्ट मंगल देवता
एग्ज़ाल्टेशन चंद्रमा
फ़ॉल कोई ग्रह नहीं
खगोलशास्त्र प्रवेशद्वार खगोलशास्त्र परियोजना

उदेश सिंह

वॄष (Taurus)[संपादित करें]

राशि चक्र की यह दूसरी राशि है, इस राशि का चिन्ह ’बैल’ है, बैल स्वभाव से ही अधिक पारिश्रमी और बहुत अधिक वीर्यवान होता है, साधारणत: वह शांत रहता है, किन्तु क्रोध आने पर वह उग्र रूप धारण कर लेता है। यह स्वभाव वृष राशि के जातक में भी पाया जाता है, वॄष राशि का विस्तार राशि चक्र के 30 अंश से 60 अंश के बीच पाया जाता है, इसका स्वामी शुक्र ग्रह है। इसके तीन देष्काणों में उनके स्वामी ’शुक्र-शुक्र”, शुक्र-बुध’, और शुक्र-शनि, हैं। इसके अन्तर्गत कृत्तिका नक्षत्र के तीन चरण,रोहिणी के चारों चरण, और मृगसिरा के प्रथम दो चरण आते हैं। इन चरणों के स्वामी कॄत्तिका के द्वितीय चरण के स्वामी सूर्य-शनि, तॄतीय चरण के स्वामी चन्द्रमा-शनि, चतुर्थ चरण के स्वामी सूर्य-गुरु, हैं।रोहिणी नक्षत्र के प्रथम चरण के स्वामी चन्द्रमा-मंगल, दूसरे चरण के स्वामी चन्द्रमा-शुक्र, तीसरे चरण के स्वामी चन्द्रमा-बुध, चौथे चरण के स्वामी चन्द्रमा-चन्द्रमा, है।मृगसिरा नक्षत्र के पहले चरण के मालिक मंगल-सूर्य, और दूसरे चरण के मालिक मंगल-बुध है।

नक्षत्र चरण फ़ल[संपादित करें]

  • कॄत्तिका के दूसरे चरण और तीसरे चरण के मालिक सूर्य-शनि, जातक के जीवन में पिता पुत्र की कलह फ़ैलाने में सहायक होते है, जातक का मानस सरकारी कामों की तरफ़ ले जाने, और सरकारी ठेकेदारी का कार्य करवाने की योग्यता देते हैं, पिता के पास जमीनी काम या जमीन के द्वारा जीविकोपार्जन का साधन होता है। जातक अधिक तर मंगल के बद हो जाने की दशा में शराब, काबाब और भूत के भोजन में अपनी रुचि को प्रदर्शित करता है।
  • कॄत्तिका के चौथे चरण के मालिक सूर्य और गुरु का प्रभाव जातक में ज्ञान के प्रति अहम भाव को पैदा करने वाला होता है, वह जब भी कोई बात करता है तो गर्व की बात करता है, सरकारी क्षेत्रों की शिक्षाये और उनके काम जातक को अपनी तरफ़ आकर्षित करते हैं, और किसी प्रकार से केतु का बल मिल जाता है तो जातक सरकार का मुख्य सचेतक बनने की योग्यता रखता है।
  • रोहिणी के प्रथम चरण का मालिक चन्द्रमा-मंगल है, दोनो का संयुक्त प्रभाव जातक के अन्दर मानसिक गर्मी को प्रदान करता है, कल कारखानों, अस्पताली कामों और जनता के झगडे सुलझाने का काम जातक कर सकता है, जातक की माता आपत्तियों से घिरी होती है, और पिता का लगाव अन्य स्त्रियों से बना रहता है।
  • रोहिणी के दूसरे चरण के मालिक चन्द्र-शुक्र जातक को अधिक सौन्दर्य बोधी और कला प्रिय बनादेता है। जातक कलाकारी के क्षेत्र में अपना नाम करता है, माता और पति का साथ या माता और पत्नी का साथ घरेलू वातावरण में सामजस्यता लाता है, जातक या जातिका अपने जीवन साथी के अधीन रहना पसंद करता है।
  • रोहिणी के तीसरे चरण के मालिक चन्द्र-बुध जातक को कन्या संतान अधिक देता है, और माता के साथ वैचारिक मतभेद का वातावरण बनाता है, जातक या जातिका के जीवन में व्यापारिक यात्रायें काफ़ी होती हैं, जातक अपने ही बनाये हुए उसूलों पर अपना जीवन चलाता है, अपनी ही क्रियायों से वह मकडी जैसा जाल बुनता रहता है और अपने ही बुने जाल में फ़ंस कर अपने को समाप्त भी कर लेता है।
  • रोहिणी के चौथे चरण के मालिक चन्द्र-चन्द्र है, जातक के अन्दर हमेशा उतार चढाव की स्थिति बनी रहती है, वह अपने ही मन का राजा होता है।
  • मॄगसिरा के पहले चरण के मालिक मंगल-सूर्य हैं, अधिक तर इस युति मैं पैदा होने वाले जातक अपने शरीर से दुबले पतले होने के वावजूद गुस्से की फ़ांस होते हैं, वे अपने को अपने घमंड के कारण हमेशा अन्दर ही अन्दर सुलगाते रहते हैं। उनके अन्दर आदेश देने की वॄति होने से सेना या पुलिस में अपने को निरंकुश बनाकर रखते है, इस तरह के जातक अगर राज्य में किसी भी विभाग में काम करते हैं तो सरकारी सम्पत्ति को किसी भी तरह से क्षति नहीं होने देते.
  • मॄगसिरा के दूसरे चरण के मालिक मंगल-बुध जातक के अन्दर कभी कठोर और कभी नर्म वाली स्थिति पैदा कर देते हैं, कभी तो जातक बहुत ही नरम दिखाई देता है, और कभी बहुत ही गर्म मिजाजी बन जाता है। जातक का मन कम्प्यूटर और इलेक्ट्रोनिक सामान को बनाने और इन्ही की इन्जीनियरिंग की तरफ़ सफ़लता भी देता है।

लगन[संपादित करें]

जब चन्द्रमा निरयण पद्धति से वॄष राशि में होता है तो जातक की वॄष राशि मानी जाती है, जन्म समय में जन्म लगन वॄष होने पर भी यही प्रभाव जातक पर होता है। इस राशि में पैदा होने वाले जातक शौकीन तबियत, सजावटी स्वभाव, जीवन साथी के साथ मिलकर कार्य करने की वॄत्ति, अपने को उच्च समाज से जुड कर चलने वाले, अपने नाम को दूर दूर तक फ़ैलाने वाले, हर किसी के लिये उदार स्वभाव, भोजन के शौकीन, बहुत ही शांत प्रकॄति, मगर जब क्रोध आजाये तो मरने मारने के लिये तैयार, बचपन में बहुत शैतान, जवानी में कठोर परिश्रमी, और बुढापे में अधिक चिंताओं से घिरे रहने वाले, जीवन साथी से वियोग के बाद दुखी रहने वाले, और अपने को एकांत में रखने वाले, पाये जाते हैं। इनके जीवन में उम्र की 45 वीं साल के बाद दुखों का बोझ लद जाता है, और अपने को आराम में नहीं रखपाते हैं। वॄष पॄथ्वी तत्व वाली राशि और भू मध्य रेखा से 20 अंश पर मानी गई है, वॄष, कन्या, मकर, का त्रिकोण, इनको शुक्र-बुध-शनि की पूरी योग्यता देता है, माया-व्यापार-कार्य, या धन-व्यापार-कार्य का समावेश होने के कारण इस राशि वाले धनी होते चले जाते है, मगर शनि की चालाकियों के कारण यह लोग जल्दी ही बदनाम भी हो जाते हैं। गाने बजाने और अपने कंठ का प्रयोग करने के कारण इनकी आवाज अधिकतर बुलन्द होती है। अपने सहायकों से अधिक दूरी इनको बर्दास्त नहीं होती है।

प्रकॄति और स्वभाव[संपादित करें]

वृष राशि - श्वेत वर्ण, शुक्रग्रह स्वामी, लंबा कद, चतुप्पाद (चार पैर), रात्रिबली, दक्षिण दिशा का स्वामी, ग्रामवासी, वैश्य जाति, भूमिचारी, रजोगुणी और पृष्ठोदयी।[1] वृष राशि वाले जातक शांति पूर्वक रहना पसंद करते हैं, उनको जीवन में परिवर्तन से चिढ सी होती है, इस राशि के जातक अपने को बार बार अलग माहौल में रहना अच्छा नहीं लगता है। इस प्रकार के लोग सामाजिक होते हैं और अपने से उच्च लोगों को आदर की नजर से देखते है। जो भी इनको प्रिय होते हैं उनको यह आदर खूब ही देते हैं, और सत्कार करने में हमेशा आगे ही रहते है। सुखी और विलासी जीवन जीना पसंद करते हैं।

आर्थिक गतिविधियां[संपादित करें]

इस राशि के जातको में धन कमाने की प्रवॄति और धन को जमा करने की बहुत इच्छा होती है, धन की राशि होने के कारण अक्सर ऐसे जातक खुद को ही धन के प्रयुक्त करते हैं, बुध की प्रबलता होने के कारण जमा योजनाओं में उनको विश्वास होता है, इस राशि के लोग लेखाकारी, अभिनेता, निर्माता, निर्देशक, कलाकार, सजावट कर्ता, सौन्दर्य प्रसाधन का कार्य करने वाले, प्रसाधन सामग्री के निर्माण कर्ता, आभूषण निर्माण कर्ता, और आभूषण का व्यवसाय करने वाले, विलासी जीवन के साधनो को बनाकर या व्यापार करने के बाद कमाने वाले, खाद्य सामग्री के निर्माण कर्ता, आदि काम मिलते हैं। नौकरी में सरकारी कर्मचारी, सेना या नौसेना में उच्च पद, और चेहरे आदि तथा चेहरा सम्भालने वाले भी होते हैं। धन से धन कमाने के मामले में बहुत ही भाग्यवान माने जाते हैं।

स्वास्थ्य और रोग[संपादित करें]

वृष राशि वालो के लिये अपने ही अन्दर डूबे रहने की और आलस की आदत के अलावा और कोई बडी बीमारी नहीं होती है, इनमे शारीरिक अक्षमता की आदत नहीं होती है, इनके अन्दर टांसिल, डिप्थीरिया, पायरिया, जैसे मुँह और गले के रोग होते हैं, जब तक इनके दांत ठीक होते है, यह लोग आराम से जीवन को निकालते हैं, और दांत खराब होते ही इनका जीवन समाप्ति की ओर जाने लगता है। बुढापे में जलोदर और लकवा वाले रोग भी पीछे पड जाते है।

सारावली भदावरी ज्योतिष

  1. page 49 https://instapdf.in/download-pdf/?pdfid=11876&from=amp&filekey=rGG5W6QHkz7wWX+df1HdOax6+46cK8r1sd17BFVHlAjBKSRY7d+98eLYKK/hOMigeVr8SwQ6A2z4C7Wx1ctLhULcIOAkJ5OReE1KjvUbalvBY8royme5uZmJm2UfQOoP/BFNooBOaxJkbmQ5EDzs6bjP/glDGWGktr6NEYqqzu8NMxopJrp9q8Dmtbv4ThfQ3zR4wWugbm6Onvskj5RgJeCIko3tf8lDm9jRQG9UeoIY9Y8uLTUp6LDGjr4r0wu52zkK5K+NO3vxYnfkMnlxau8k8/BLC/7NJIdzi8Jn1SvXfkQow0ciYZEd4CHllJZ5PjRNYzdm6mcUo7RN

वृषभ राशि वालों की किस्मत कब खुलेगी?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, वृषभ राशि के जातकों का भाग्योदय उनके जीवन के 33वें वर्ष में, 44वें वर्ष, और 61वें वर्ष में होता है. इन वर्षों के दौरान इनकी किस्मत खुल जाती है.

वृषभ राशि के अच्छे दिन कब आएंगे 2022?

वृषभ राशिफल 2022 के अनुसार आर्थिक जीवन शुरुआती महीनों में आर्थिक स्थिति कुछ खास नहीं बदलेगी, लेकिन साल के अंत तक सामान्य से बेहतर धन आगमन के संकेत हैं। 13 अप्रैल के बाद गुरु बृहस्पति का आय के भाव में गोचर करेंगे उस दौरान धन अच्छा आएगा... धन संग्रह का योग भी बन रहा है यानी धन का संचय करने में सफल रहेंगे।

2022 में वृषभ राशि का क्या हाल है?

वृषभ राशिफल 2022 ( Taurus Horoscope 2022) वृषभ राशि के जातक धन, संपत्ति और ख्याति प्राप्त करना पसंद करते हैं। इस राशि के जातकों में हावी रहने की प्रवृत्ति रहती है, इसलिए ये लोग स्वभाविक रूप से कठोर और निश्चयी रहते हैं। ये लोग अपनी दिनचर्या में किस तरह का परिवर्तन पसंद नहीं करते हैं।

वृषभ राशि वालों का कौन सा ग्रह खराब चल रहा है?

वृषभ लग्न की बाधक राशि वृश्चिक तथा बाधक ग्रह मंगल है