भाग्य और कर्म में मैं कर्म को ही श्रेष्ठ मानता हूँ। क्योंकि भाग्य पर कोई भरोसा नहीं है। भाग्य से आलसी बनजाते। असफल रहजाते। उससे कुछ भी हो सकता है। कर्म (श्रम) तो सफलता पाने का एकमात्र साधन है। इसका फल सदा अच्छा और सुखदायी ही होता है। श्रम करनेवाला कभी हारता नहीं है। लक्ष्य प्राप्ति अवश्य होती है। श्रम से ही संपत्ति, सुख, यश, स्वावलंबन, संतुष्टि, आत्मतृप्ति आदि ज़रूर प्राप्त होते हैं। कर्मशील व्यक्ति कभी किसी की परवाह भी नहीं करता है। Show
नमस्कार दोस्तो आप सभी का हमारे ब्लाग पर स्वागत है। आज हम आपको बताने वाले है कि भाग्य और कर्म मे श्रेष्ठ कौन है? कुछ लोग मानते है कि भाग्य बडा होता है। क्योंकि हमारे जीवन मे जो भी घटनाये घटित होती है। वह हमारे भाग्य मे पहले से ही सुनिश्चित होता है। उनका यह मानना होता है कि जो हमारे भाग्य मे लिखा होगा वही होगा। वही कुछ लोगों का मानना है कि कर्म प्रधान होता है। वो भाग्य के ऊपर बिल्कुल विश्वास नही करते है। उनका मानना है कि सबकुछ कर्म ही होता है। भाग्य कुछ नही होता है। भाग्य के भरोसे रहने वाले कुछ नही कर पाते है। एक बार भाग्य और कर्म मे बहस छिडी। भाग्य ने कहाँ कि मै बडा हूँ। कर्म ने कहा कि केवल भाग्य के भरोसे रहने वाले कुछ नही कर पाते है। इसीलिए मै बडा हूँ। दोनो मे लगातार बहस बढता ही जा रहा था। दोनो ने कहाँ कि ठीक है हमारी समस्या का समाधान माता वैष्णो देवी ही करेगी। दोनो माँ वैष्णो देवी के पास गये। दोनो की समस्या वैष्णो देवी ने सुना।माता वैष्णो देवी ने दोनो को एक गुफा मे भेज दिया और कहाँ कि आज कि रात आप दोनो को इसी गुफा मे गुजारिनी है। दोनो मान गये और गुफा मे चले गये। रात मे दोनो को भूख लगी। कर्म ने अपने लिये भोजन की तलाश करना शुरु कर दिया। भाग्य चुपचाप अपने ही स्थान पर बैठा रहा। उसका मानना था कि मेरे भाग्य मे भोजन लिखा होगा। तो मुझे मिल जायेगा। कर्म को ढूंढते-ढूंढते एक चावल की बोरी मिली। जिसमे चावल भरे थे। चावल के साथ-साथ उसमे कंकड भी भरे थे। कर्म ने चावल पकाकर खाया और जो कंकड था। उसने भाग्य को दे दिया। कुछ ही देर मे वही कंकड हीरे मे बदल गये। कर्म को बडा आश्चर्य हुआ। कि ये कंकड हीरे मे कैसे बदल गये। रात गुजारने के बाद दोनो माँ वैष्णो देवी के पास पहुचे। कर्म ने कहा कि हे माता भाग्य केवल रातभर बैठा रहा उसने कुछ नही किया। फिर भी उसे हीरे क्यो मिले। माँ वैष्णो देवी ने कहा कि कर्म और भाग्य दोनो ही अपने-अपने जगह पर बडे है। कर्म से ही भाग्य बनता है। मनुष्य के कर्म के आधार पर ही उसने अगले जन्म का निरधारण होता है। जितना अच्छा कर्म करोगे। उतना ही बढिया आपका भाग्य होगा। भाग्य को हीरे मिलने थे। इसलिए वो हीरे तुम्हे कंकड दिखे। इसीलिए तुमने उस कंकड को भाग्य को दे दिया। तुमने अपना कर्म किया रातभर तुमने भोजन ढूँढा इसीलिए तुमको भोजन मिला। तुम दोनो अपने -अपने जगह पर श्रेष्ठ हो। तुम दोनो मे न कोई छोटा है और न ही कोई बडा है। कर्म और भाग्य दोनो माँ वैष्णो देवी के उत्तर से संतुष्ट हो गये।
I hope हमारे द्वारा दी गई जानकारी आप सभी को बहुत पसंद आई होगी। हमारे इस पोस्ट को अपने Facebook, Whatsapp, Instagram पर शेयर करें, धन्यवाद। Welcome friends my name is Dinesh Jaiswal. I live in Pratapgarh (Uttar Pradesh). Dineshjaiswal.com is a professional blogging platform where you can read a lot of articles related to Make money, Education, Technology, Festival etc. Also you can write articles here on your favourite topics. Post navigationभाग्य और कर्म का किसी विशेष वर्ग, जाति, भाषा और लिंग से नहीं, बल्कि चराचर प्राणी जगत से संबंध है। मनुष्य जैसे ही पंचतत्वों से बने इस शरीर को लेकर मां के गर्भ से बाहर निकलता है, उसका कर्म आरम्भ हो जाता है। यह कार्य तब तक चलता रहता है, जब तक इस धरती पर वह अन्तिम श्वास लेता है। इसलिए मानव जीवन को कर्मक्षेत्र कहा जाता है। मानव की जीवंतता उसके चलते रहने में, उसके कर्मशील बने रहने में ही है। इसीलिए जीवन की तुलना गाड़ी से की जाती है। इस कर्मक्षेत्र में कर्म के फल से ही जीवन में सुख-दुख आते हैं। कर्म का फल यदि सुखद हो तो सुख की अनुभूति होती है, दुखद हो, निराशाजनक हो तो दुख की अनुभूति होती है। लेकिन हम सबके जीवन में अक्सर ऐसा भी होता है, जब उसने कर्म अच्छा किया हो और उसका परिणाम या फल वैसा न मिला हो। कर्म के अनुकूल फल न मिलने और उसके अधिक या कम मिलने पर- दोनों ही स्थितियों में हम भाग्य का नाम लेते हैं। इसीलिए कर्मफल और भाग्य ऐसे विषय हैं, जिनके बारे में जानने के लिए हर व्यक्ति सदा आतुर रहता है। भारतीय चिन्तन कर्म को प्रधान मानता है। गीता में कृष्ण समझाते हैं, तेरा अधिकार कर्म करना है, फल पर तेरा अधिकार नहीं है। लेकिन मनुष्य अपने कर्म के आधार पर ऊंच-नीच, श्रेष्ठ-निकृष्ट, अच्छे-बुरे मनुष्य की कोटि में जाना चाहता है। यदि फल की चिन्ता नहीं करे तो फिर उसे भाग्य पर आश्रित रहना होगा, भरोसा करना होगा। अब मन में जिज्ञासा उठती है कि फिर भाग्य क्या है? किसी ने भाग्य को ईश्वर की इच्छा समझा है, तो किसी ने भाग्य को समय का चक्र जिसे जीतना असंभव है। कोई मानता है कि जो आज का पुरुषार्थ है, वही कल का भाग्य है। असल में भाग्य को ईश्वरप्रदत्त इसलिए मान लिया जाता है कि वह हमारे वर्तमान के कर्म पर आधारित नहीं होता। जब भी हमारी इच्छा के खिलाफ या इच्छा से कम या अधिक प्राप्ति होती है तो हम भाग्य को ही उसका आधार मान लेते हैं, लेकिन है वह भी कर्म का ही फल। जो दृश्य है वह कर्म और जो अदृश्य है वह भाग्य। जो दिखाई दे रहा है वह कर्म और जो नहीं दिखाई दे रहा है वह भाग्य। भारतीय चिन्तन पुनर्जन्म पर विश्वास करता है। हमने जो जन्म लिया है उसका पिछले जन्म से भी और अगले जन्म से भी सम्बन्ध होता है। अर्थात् हमारे कर्म का खाता आज भी हमारे साथ चल रहा है और जब पुनर्जन्म लेंगे तब भी वह कर्म खाता साथ चलेगा। इस आधार पर भाग्य की बात कुछ समझ आती है कि जिस तरह हमारा स्थूल धन अर्थात पूंजी चाहे वह धन के रूप में हो या वस्तु के रूप में, वह हमारे मरने से समाप्त नहीं हो जाती, इसी प्रकार हमारे कर्म का खाता भी जरूरी नहीं कि हमारे एक जन्म के साथ समाप्त हो जाए। वह भी शेष रहता है। यही कारण है कि हम कर्म को भी प्रधान मानते हैं और भाग्य की बात भी कहते हैं। हम जैसे कर्म करेंगे वैसा ही हमारा बहीखाता होगा और उसी के आधार पर हमें इस जन्म में संचित कर्म का फल प्राप्त होगा। इस तरह हमारा भाग्य भी कर्म से ही बनता है और भाग्य के मूल में भी कर्म ही होता है। भाग्य का प्रभाव मनुष्य में ही नहीं, सभी प्राणियों में देखा जा सकता है। एक कुत्ता किसी धनवान के घर में रहता है और एक साधारण व्यक्ति के घर में। एक शेर चिड़ियाघर में रहता है और एक जंगल में। एक जानवर गुस्सैल और कटखना तथा दूसरा बेहद शांत और सीधा होता है। कर्म और भाग्य का प्रभाव आप उनके जीवन में भी देख सकते हैं। भाग्य और कर्म में किसे श्रेष्ठ मानते हैं क्यों?भाग्य का जनक होने से कर्म ही श्रेष्ठ है । दूसरे शब्दों में कहें तो कर्मफल ही भाग्य है । कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है । कर्म श्रेष्ठ है ।
भाग्य और कर्म में कौन बड़ा है?इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है। इंसान को कर्म करते रहना चाहिए, क्योंकि कर्म से भाग्य बदला जा सकता है।
कर्म और भाग्य में क्या अंतर है?कर्म और भाग्य में मूल अंतर है। कर्म वो हैं जिसे मनुष्य वर्तमान में काम या मेहनत या कुछ भी कर रहे हैं। वह कर्म कहलाते हैं। भाग्य वो है जिसे ईश्वर ने कर्म के आधार पर देते हैं, वह भाग्य कहलाते हैं।
कौन सा कर्म श्रेष्ठ है?अपनी बुद्धि को शुद्ध करना सबसे श्रेष्ठ कर्म है. सब शुभ कर्म इसलिए ही किए जाते हैं.
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