11 मुद्रण संस्कृति ने भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की ?`? - 11 mudran sanskrti ne bhaarateey raashtravaad ke vikaas mein kya madad kee ?`?

Solution : मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में सहायता - मुद्रण शक्ति संस्कृति ने भारत के लोगों में एक नयी प्रकार की राजनीतिक चितना को जागकर भारत में राष्ट्रवाद की गति को तीव्रता प्रदान की और भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण सहयोग दिया। <br> भारतीय प्रेस ने भी राष्ट्रीय भावनाओं को देश के एक कोने से दूसरे कोने तक फैलाने में बड़ा पत्र-पत्रिकाओं ने राष्ट्रीय आंदोलन को शक्तिशाली बनाने में सराहनीय कार्य किया। <br> मुद्रण संस्कृति के प्रभावधीन जो भारत में साहित्य का सृजन हुआ, उसने भी राष्ट्रवाद के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश काल में जो साहित्य लिखा गया उसका एक बड़ा भाग अंग्रेजी साम्राज्य के अवगुणों को प्रकट करने, पश्चिमी दार्शनिक तथा राजनीतिज्ञों के विचार भारती लोगों तक पहुँचाने, प्राचीन भारतीय सभ्यता के उच्चतम पहलुओं को लोगों के सामने लाने तथा भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना भरने के लिए हुआ। भारतीय लेखकों ने इस देश की दुर्दशा का चित्रण करके तथा दूसरे स्वतन्त्र देशों से तुलना करके लोगों के मन में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध जोश भर दिया। इसी प्रकार जब विदेशी जातियों का पराधीनता के विरुद्ध किया जाने वाला संघर्ष भारतीयों के सामने आया तो उनके मन में भी अग्रजों के विरुद्ध संघर्ष करने की इच्छा उत्पन्न हुई। अपनी प्राचीन भारतीय सभ्यता की महानता को देखकर भारत के लोगों में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की भावनाएँ जागृत हो गयीं। इन सब कारणों ने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को उत्तेजित करने में बड़ा भाग लिया।

मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास से क्या मदद की?

मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेजी काल में भारतीय लेखकों ने अनेक ऐसी पुस्तकों की रचना की जो राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत थी। बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास आनंदमठ ने लोगों में देश प्रेम की भावना का संचार किया । वंदे मातरम गीत भारत के कोने कोने में गूंजने लगा।

भारत में राष्ट्रवाद के विकास में प्रिंट संस्कृति का क्या योगदान रहा?

मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की ? Solution : मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में सहायता - मुद्रण शक्ति संस्कृति ने भारत के लोगों में एक नयी प्रकार की राजनीतिक चितना को जागकर भारत में राष्ट्रवाद की गति को तीव्रता प्रदान की और भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण सहयोग दिया।

मुद्रण संस्कृति क्या है इसमें चीन की क्या भूमिका है?

उत्तर :- मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई। यह छपाई हाथ से होती थी। लगभग 594 ई॰ से चीन में स्याही लकड़ी के ब्लॉक या तख्ती पर कागज को रगड़कर किताबें छापे जाने लगी थी। चूँकि पतले छिद्रित कागज के दोनों तरफ छपाई संभव नहीं था।

यूरोप में मुद्रण संस्कृति का विकास कैसे हुआ?

पढ़ने की यह नयी संस्कृति एक नयी तकनीक के साथ आई। उन्नीसवीं सदी के अंत में पश्चिमी शक्तियों द्वारा अपनी चौकियाँ स्थापित करने के साथ ही पश्चिमी मुद्रण तकनीक और मशीनी प्रेस का आयात भी हुआ