5 कार्बन डेटिंग क्या है परिभाषित कीजिए Doubtnut com? - 5 kaarban deting kya hai paribhaashit keejie doubtnut chom?

What is Carbon Dating: कार्बन डेटिंग उस प्रक्रिया का नाम है जिसका इस्तेमाल कर किसी भी वस्तु की उम्र का पता लगाया जा सकता है. ऐसी हर वो चीज जिसमें कार्बनिक अवशेष होते हैं, उनकी आयु इस प्रक्रिया के माध्यम से पता की जा सकती है.

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Gyanvapi Masjid Case

हाइलाइट्स

  • ज्ञानवापी केस की अगली सुनवाई 17 अक्टूबर को होगी. 

  •  कार्बन डेटिंग के लिए पत्थर पर कार्बन- 14 का होना जरूरी है.

Gyanvapi Mosque Case: वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग नहीं कराने का फैसला सुनाया है. कोर्ट ने शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग वाली हिंदू पक्ष की मांग को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि शिवलिंग के साथ कोई छेड़छाड़ ना हो, अभी इसकी आवश्यकता नहीं है. कोर्ट ने ये भी कहा कि इसके लिए पुरातत्व सर्वे को भी कोई निर्देश दिया जाना सही नहीं है. हिंदू पक्ष की वादियों ने कहा कि यह हमारी हार नहीं है और ना कोई झटका है. हम अपने दावे पर अडिग हैं और इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. बता दें, चार हिंदू महिलाओं ने शिवलिंग जैसी संरचना की वैज्ञानिक जांच कराने की मांग की थी. ज्ञानवापी केस की अगली सुनवाई 17 अक्टूबर को होगी. 

क्या है विवाद की वजह

22 सितंबर को हिंदू पक्ष वादी संख्या 2-5 की तरफ से शिवलिंग की कार्बन डेटिंग सहित अन्य वैज्ञानिक परीक्षण की मांग शिवलिंग के बारे में पता लगाने के लिए की गई थी. जिसका विरोध न केवल मुस्लिम पक्ष अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने किया था, बल्कि हिंदू पक्ष की ही वादी संख्या एक राखी सिंह की तरफ से वकीलों ने यह कहकर कोर्ट में आपत्ति दर्ज कराई थी कि कार्बन डेटिंग से शिवलिंग को क्षति पहुंचेगी.

क्या होती है कार्बन डेटिंग?

कार्बन डेटिंग उस प्रक्रिया का नाम है जिसका इस्तेमाल कर किसी भी वस्तु की उम्र का पता लगाया जा सकता है. ऐसी हर वो चीज जिसमें कार्बनिक अवशेष होते हैं, उनकी आयु इस प्रक्रिया के माध्यम से पता की जा सकती है. पुरातात्विक खोजों में मिले अवशेषों की उम्र का पता कार्बन डेटिंग के जरिए ही लगाया जाता है. वायुमंडल में कार्बन के 3 आइसोटोप मौजूद हैं. कार्बन 12, कार्बन 13 और कार्बन 14. इसमें प्रोटॉन की संख्या समान होती है लेकिन न्यूट्रॉन की संख्या अलग-अलग होती है. कार्बन डेटिंग के लिए कार्बन 14 की जरूरत होती है. इसमें कार्बन 12 और कार्बन 14 के बीच अनुपात निकाला जाता है. कार्बन डेटिंग की मदद से 50 हजार साल पुराने अवशेष का पता लगाया जा सकता है. हालांकि कार्बन के अभाव में किसी भी वस्‍तु की कार्बन डेटिंग नहीं की जा सकती. कार्बन डेटिंग के लिए पत्थर पर कार्बन- 14 का होना जरूरी है. शिकागो यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट विलियर्ड लिबी ने साल 1949 में कार्बन डेटिंग टेक्नोलॉजी की खोज की थी. 

इस वजह से नहीं सुनाया गया कार्बन डेटिंग का फैसला

ज्ञानवापी मामले की सुनवाई वाराणसी की जिला अदालत में चल रही है. पिछले दिनों कोर्ट ने बड़ा फैसला देते हुए दैनिक पूजा से संबंधित याचिका को सुनवाई के लिए मंजूरी दे दी थी. इसके बाद कार्बन डेटिंग पर पक्ष में फैसला आने की उम्मीद हिंदू पक्ष कर रहा था लेकिन कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग नहीं कराने का फैसला सुनाया है. कोर्ट ने मांग खारिज करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि जहां शिवलिंग पाया गया है उस स्थान को सुरक्षित रखा जाए. ऐसे में कार्बन डेटिंग कराने का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लघंन हो सकता है.

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कार्बन-१४ द्वारा कालनिर्धारण की विधि (अंग्रेज़ी:कार्बन-१४ डेटिंग) का प्रयोग पुरातत्व-जीव विज्ञान में जंतुओं एवं पौधों के प्राप्त अवशेषों के आधार पर जीवन काल, समय चक्र का निर्धारण करने में किया जाता है। इसमें कार्बन-१२ एवं कार्बन-१४ के मध्य अनुपात निकाला जाता है।[4] कार्बन के दो स्थिर अरेडियोधर्मी समस्थानिक: कार्बन-१२ (12C) और कार्बन-१३ (१३C) होते हैं। इनके अलावा एक अस्थिर रेडियोधर्मी समस्थानिक (१३C) के अंश भी पृथ्वी पर मिलते हैं।[5] अर्थात कार्बन-१४ का एक निर्धारित मात्रा का नमूना ५७३० वर्षों के बाद आधी मात्रा का हो जाता है। ऐसा रेडियोधर्मिता क्षय के कारण होता है। इस कारण से कार्बन-१४ पृथ्वी से बहुत समय पूर्व समाप्त हो चुका होता, यदि सूर्य की कॉर्मिक किरणों के पृथ्वी के वातावरण की नाइट्रोजन पर प्रभाव से और उत्पादन न हुआ होता। ब्रह्माण्डीय किरणों से प्राप्त न्यूट्रॉन नाइट्रोजन अणुओं (N२) से निम्न परमाणु प्रतिक्रिया करते हैं:

कार्बन-१४ के उत्पादन की अधिकतम दर ९-१५  कि.मी. (३०,००० से ५०,००० फीट) की भू-चुम्बकीय ऊंचाइयों पर होती है; किन्तु कार्बन-१४ पूरे वातावरण में समान दर से फैलता है और ऑक्सीजन के अणुओं से प्रतिक्रिया कर कार्बन डाईआक्साइड बनाता है। यह कार्बन डाईआक्साइड सागर के जल में भि घुल कर फैल जाती है। पौधे वातावरण की कार्बन डाईआक्साइड को प्रकाश-संश्लेषण द्वारा प्रयोग करते हैं, एवं उनका सेवन कर पाचन के बाद जंतु इसे निष्कासित करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक जीवित प्राणी लगातार कार्बन-१४ को वातावरण से लेन-देन करता रहता है, जब तक वो जीवित रहता है। उसके जीवन के बाद ये अदला-बदली समाप्त हो जाती है। इसके बाद कार्बन-१४ की शरीर में शेष मात्रा का रेडियोधर्मी बीटा क्षय के द्वारा ह्रास होने लगता है। इस ह्रास की दर अर्ध आयु काल यानि ५,७३०±४० वर्ष में आधी मात्रा होती है।

कार्बन १४ की खोज २७ फरवरी, १९४० में मार्टिन कैमेन और सैम रुबेन ने कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय रेडियेशन प्रयोगशाला, बर्कले में की थी। जब कार्बन का अंश पृथ्वी में दब जाता है तब कार्बन-१४ (१४C) का रेडियोधर्मिता के कारण ह्रास होता रहता है। पर कार्बन के दूसरे समस्थाकनिकों का वायुमंडल से संपर्क विच्छे१द और कार्बन डाईआक्साइड न बनने के कारण उनके आपस के अनुपात में अंतर हो जाता है। पृथ्वी में दबे कार्बन में उसके समस्थानिकों का अनुपात जानकर उसके दबने की आयु का पता लगभग शताब्दी में कर सकते हैं।[6]

कार्बनकाल विधि के माध्यम से तिथि निर्धारण होने पर इतिहास एवं वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी होने में सहायता मिलती है। यह विधि कई कारणों से विवादों में रही है वैज्ञानिकों के अनुसार रेडियोकॉर्बन का जितनी तेजी से क्षय होता है, उससे २७ से २८ प्रतिशत ज्यादा इसका निर्माण होता है। जिससे संतुलन की अवस्था प्राप्त होना मुश्किल है। ऐसा माना जाता है कि प्राणियों की मृत्यु के बाद भी वे कार्बन का अवशोषण करते हैं और अस्थिर रेडियोधर्मी-तत्व का धीरे-धीरे क्षय होता है। पुरातात्विक नमूने में उपस्थित कॉर्बन-१४ के आधार पर उसकी डेट की गणना करते हैं। ३५६ ई. में भूमध्य सागर के तट पर आये विनाशाकारी सूनामी की तिथि निर्धारण वैज्ञानिकों ने कार्बन डेटिंग द्वारा ही की है।[7]

रेडियोकार्बन डेटिंग तकनीक का आविष्कार १९४९ में शिकागो विश्वविद्यालय के विलियर्ड लिबी और उनके साथियों ने किया था। १९६० में उन्हें इस कार्य के लिए रसायन विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने कार्बन डेटिंग के माध्यम से पहली बार लकड़ी की आयु पता की थी। वर्ष २००४ में यूमेआ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों कोस्वीडन के दलारना प्रांत की फुलु पहाड़ियों में लगभग दस हजार वर्ष पुराना देवदार का एक पेड़ मिला है जिसके बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह विश्व का सबसे पुराना वृक्ष है। कार्बन डेटिंग पद्धति से गणना के बाद वैज्ञानिकों ने इसे धरती का सबसे पुराना पेड़ कहा है।[8] इसके अलावा कार्बन-१४ डेटिंग का प्रयोग अनेक क्श्जेत्रों में काल-निर्धारण के लिए किया जाता है।[9] व्हिस्की कितनी पुरानी है, इसके लिए भी यह विधि कारगर एवं प्रयोगनीय रही है। आक्सफोर्ड रेडियो कार्बन एसीलरेटर के उप निदेशक टाम हाइहम के अनुसार १९५० के दशक में हुए परमाणु परीक्षण से निकले रेडियोसक्रिय पदार्थो की मौजूदगी के आधार पर व्हिस्की बनने का समय जाना जा सकता है।[10]

इन्हें भी देखें

  • पृथ्वी का इतिहास
  • क्रम-विकास से परिचय
  • पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व का इतिहास
  • पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास

सन्दर्भ

  1. "वायुमंडलीय δ14C रिकॉर्ड वेलिंग्टन से". कार्बन डाईआक्साइड सूचना विश्लेषण केंद्र. मूल से 1 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ मई २००८.
  2. "δ14कार्बन डाईआक्साइड रिकॉर्ड वर्मुंट से". कार्बन डाईआक्साइड सूचना विश्लेषण केंद्र. मूल से 23 सितंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ मई २००८.
  3. "कार्बन काल निर्धारण विधि". यूट्रेच विश्वविद्यालय. मूल से 9 दिसंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ मई २००८.
  4. कार्बन-१४ डेटिंग- अंग्रेजी भाषा की डिक्शनरी पर
  5. "रेडियोकार्बन- अंग्रेजी भाषा की डिक्शनरी पर". मूल से 5 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 सितंबर 2009.
  6. सभ्यरता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं- कालचक्र: सभ्यता की कहानी Archived 2011-09-20 at the Wayback Machine। १९ फरवरी, २००८। मेरी कलम से
  7. "फिर से आ सकता है धरती पर 'खौफनाक दिन'". मूल से 17 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 सितंबर 2009.
  8. वैज्ञानिकों ने खोजा `सबसे बूढ़ा पेड़' Archived 2008-07-24 at the Wayback Machine बुधवार, २१ मई, २००८। डॉ॰ खुशालसिंह पुरोहित। पर्यावरण डायजेस्ट
  9. वैज्ञानिक पद्धति 'कार्बन डेटिंग' से भी इन स्तरों की तिथि 1100 से 900 ईपू निर्धारित हुई[मृत कड़ियाँ] हिन्दुस्तान दैनिक
  10. व्हिस्की की उम्र बताने में परमाणु बम परीक्षण मददगार Archived 2011-11-11 at the Wayback Machine याहू जागरण पर

बाहरी कड़ियाँ

  • कालनिर्धारण की विधियाँ

5 कार्बन डेटिंग क्या है परिभाषित कीजिए?

वैज्ञानिक भाषा में कहा जाए तो कार्बन डेटिंग के जरिये कार्बन-12 और कार्बन-14 के बीच अनुपात निकाला जाता है. कार्बन-14 एक तरह से कार्बन का ही रेडियोधर्मी आइसोटोप है, इसका अर्धआयुकाल 5730 साल का है. कार्बन डेटिंग को रेडियोएक्टिव पदार्थो की आयुसीमा निर्धारण करने में प्रयोग किया जाता है.

कार्बन डेटिंग की खोज कब हुई?

कार्बन डेटिंग को रेडियो कार्बन डेटिंग भी कहा जाता है. इस टेक्नोलॉजी की खोज शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड लिबी ने साल 1949 में की थी. उन्होंने सबसे पहले इस विधि के जरिए एक लड़की की उम्र का पता लगाया था. साल 1960 को लिबी को उनकी उपलब्धि के लिए नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था.

रेडियो कार्बन डेटिंग का उपयोग किसकी आयु का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है?

सही उत्तर जीवाश्म है। रेडियोकार्बन डेटिंग का उपयोग जीवाश्मों की आयु का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है।