प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित बच्चों के लिए गुणवत्तापरक, अबाधित, सुरक्षित शिक्षा देना और सामाजिक एकजुटता सुनिश्चित करना Show
UNICEF/2017/Dhiraj Programme Menu
प्राकृतिक आपदाओं जैसी आपातकालीन स्थितियों के दौरान बच्चों की दशा बहुत संवेदनशील होती है। भारत, विश्व के सर्वाधिक आपदा-संभावित देशों में से एक है और यहां प्रतिवर्ष बाढ़, भूस्खलन, सूखा और तूफान आने की आशंका रहती है। भारत में बार-बार और अत्यधिकप्राकृतिक आपदाओं और मौसम में बदलावों के कारणबड़ी संख्या में बच्चों पर इसका असर होता है। पर्यावरण के स्तरों में गिरावट, मौसम में बदलाव और अनियोजित विकास में वृद्धि के कारण, आपदाओं की घटनाएं बढ़ी हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश में इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है, जहां लोगों की संख्या अत्याधिक है,वह कृषि पर निर्भर करते हैं तथा जोखिम की हालत में रहते हैं। जब भारत में कोई आपदा आती है तो भारत सरकार और राज्य सरकारें आपात प्रतिक्रिया की स्थिति में आ जाती हैं। सरकार के आमंत्रण पर यूनिसेफ द्वारा अक्सर संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसियों तथा भागीदारों के साथ समन्वय करके तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई जाती है और प्रभावित क्षेत्रों में चल रहे कार्यों पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। किसी प्राकृतिक आपदा अथवा संकट के बाद यूनिसेफ की पहली प्राथमिकता सदैव यह होती है कि प्रभावितों को तत्काल मदद दी जाए, किन्तु हम दीर्घकालिक पूर्णबहाली की योजना भी तैयार करते हैं। प्रभावित देशों को पुनः प्रगति के पथ पर वापस लाने के लिए शिक्षा प्रदान करना पहला कदम होता है। यह ऐसा कदम होता है जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित लोगों की पुनर्बहाली के लिए मदद होती है। शिक्षा स्वयं में एक अंत नहीं है, यह किए जा रहे हल का एक हिस्सा होता है। शिक्षण संस्थान समाज के ज्ञान, मूल्यों और परंपराओं का एक संग्रहालय होते हैं, जो लोगों को एक साथ लाते हैं, क्योंकि वे अपने देश का भविष्य सुधारने के लिए काम करते हैं। आपदाएँ, आपात स्थितियाँ और हिंसा बच्चों पर गहरा असर छोड़ती हैं। शिक्षा में यह क्षमता है कि इससे जरूरतमंदों को ज्ञान और कौशल दिया जा सकता है ताकि वे शांति और अहिंसा की संस्कृति, वैश्विक नागरिकता और सांस्कृतिक विविधता का मूल्यांकन कर सकें और सतत् विकास के लिए सांस्कृतिक योगदान दे सकें। भारत में छोटे बच्चों की देखभाल, सुरक्षा और मानसिक एवं सामाजिक सहायता के लिए यूनिसेफ द्वारा निर्धारित प्रणाली की हिमायत की जाती है तथा विशेषकर उन युवाओं के लिए अपेक्षित गुणवत्तापरक शिक्षा के प्रावधान किए जाते हैं, जो स्कूल छोड़ चुके हैं और संघर्ष तथा युद्ध की परिस्थितियों में आ गए हैं। हम अपने फील्ड कार्यालयों के माध्यम से राज्य सरकारों को समर्थन देते हैं ताकि आपात स्थितियों के दौरान तथा उनके बाद भी शिक्षा प्रदान की जाती रहे। हम सार्क (SAARC) के कम्प्रेहेंसिव स्कूल सेफ्टी फ्रेमवर्क को बढ़ावा देते हैं और हम पूरे भारत में प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाने के लिए कम्प्रेहेंसिव स्कूल सेफ्टी का समर्थन करते हैं। आपदा का अर्थआपदा का अर्थ है विपत्ति, मुसीबत या कठिनाई। आपदा को अंग्रेजी में डिजास्टर कहते हैं। डिजास्टर शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। डेस अर्थात बुरा या अशुभ और ऐस्ट्रो का मतलब स्टार या नक्षत्र। पुराने जमाने में किसी विपत्ति, मुसीबत और कष्ट का कारण बुरा नक्षत्रों का प्रकोप माना जाता था। वर्तमान में आपदा का अर्थ उन प्रकृति और मानव जनित अप्रत्याशित या त्वरित घटनाओं से लिया जाता है जो मानव पर कहर बरसाती है। साथ ही जन्तु और पादप समुदाय को अपार क्षति पहुंचाती है। आपदा की विशेषताएँ
प्रकोप और आपदा में अन्तरप्रकोप और आपदा में निकट का सम्बन्ध है। प्रकोप में आपदा की सम्भावना छिपी रहती है। जब किसी क्षेत्र में प्रकोप आता है तो वहां मानव जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है तो उसे आपदा कहेंगें। यदि किसी निर्जन तट पर चक्रवात आता है तो उसे प्रकोप कहेंगें क्योंकि उससे आम जनता प्रभावित नहीं होती है।प्रकोप सामान्यतया उन प्राकृतिक एवं मानवीय प्रक्रमों से सम्बन्धित होते हैं जो चरम घटनाएं उत्पन्न करते हैं जबकि आपदा वे त्वरित और अचानक होने वाली घटनाएं होती है जो मानव समाज और जैव समुदाय को अधिक क्षति पहुंचाती हैं। प्रकोप आपदा से पूर्व की स्थिति है और इसमें आपदा के आगमन का खतरा मौजूद रहता है और इससे मनुष्य की आबादी के नष्ट होने का खतरा बना रहता है। आपदाओं को सदा मानव के सन्दर्भ में देखा जाता है। आपदाओं की गहनता तीव्रता एवं परिमाण का आंकलन धन जन की हानि के परिप्रेक्ष्य में किया जाता है। प्रकोप एक प्राकृतिक घटना है जबकि आपदा इसका परिणाम है। प्रकोप एक प्राकृतिक घटना है जिससे जान माल दोनों का नुकसान होता है जबकि आपदा इस संकट का अनुभव है।’’ (जान बिहरो-डिसास्टर 1980) आपदा का कार्य मानवीय कार्य भी हो सकता है जैसे सड़क पर हुई कोई दुर्घटना और औद्योगिक विस्फोट अथवा प्राकृतिक प्रकोप भी हो सकता है जैसे ज्वालामुखी, भूकम्प आदि। यदि भूकम्प .4.0 से कम परिमाण का आता है तो वह उस क्षेत्र के लोगों के लिए आपदा नहीं होगी क्योंकि इसका प्रभाव उस क्षेत्रों के लोगों पर नगण्य होगा और यदि भूकम्प 7.0 से अधिक परिणाम वाले आते हैं तो वह उस स्थान को तहस-नहस कर देते हैं। अप्रैल 2015 में नेपाल में आया भूकम्प जो भारतीय ओर यूरेशियन प्लेट के खिसकाव के कारण आया था प्राकृतिक आपदा का उदाहरण है। आपदा के प्रकार
भूगर्भीय आपदा
जलीय आपदा
मौसमी आपदा
प्रश्नोतर प्रकोप एवं आपदा
मानव कृत प्रकोप एवं आपदा
रसायनिक आपदा
जैविक आपदा
प्रौद्योगिकी आपदा
आपदाओं की प्रकृतिप्रारम्भ में मनुष्य पर पर्यावरण के सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता था जिसे निश्चयवाद की संज्ञा दी जाती है। वर्तमान में उद्योगों तथा प्रौद्योगिकी के विकास के कारण पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है जिसके कारण पर्यावरण पर मानवीय कार्यों के परिणामों पर अधिक जोर दिया जाने लगा है क्योंकि पर्यावरण में परिवर्तन का प्रभाव मानव समाज पर पड़ने लगा है और इसका प्रभाव बाढ़, सूखा, भूकम्प आदि प्रकोप व आपदा के रूप में दिखाई पड़ने लगा है। इसका अध्ययन विभिन्न विषयों में अलग-अलग दृष्टिकोंण से किया जाने लगा है। अभी तक छह दृष्टिकोंण सामने आए हैं।1. भौगोलिक दृष्टिकोण - इस दृष्टिकोंण के प्रमुख प्रर्वतक हारलैड वैराजे और गिलनर है। इसमें आपदा का विस्तार, आने के कारणों तथा समाज पर उसके प्रमुख प्रभावों तथा उससे निपटने के लिए विभिé उपायों पर चर्चा की गई है। 2. समाजशास्त्री दृष्टिकोण - इसमें आपदाओं का समाज, मानव के रहन-सहन तथा व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है का अध्ययन किया जाता है। इसमें मनोविज्ञान आधारित प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पद्धति का आपदा के सन्दर्भ में अध्ययन किया जाता है। रस्सल आर डाइनेस और एनरिको एल क्वैरेनटेलि इस दृष्टिकोंण के प्रमुख प्रवर्तक हैं। 3. शास्त्रीय दृष्टिकोण - इसमें सभ्यताओ के नष्ट होने में आपदाओं की भूमिकाओं पर चर्चा की गई है। इसमें आपदाओं का सामाजिक आर्थिक विकास पर क्या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इसका अध्ययन किया जाता है। आपदा के कारण प्रभावित समुदाय अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ रहता है। इसी कारण लोगों के प्रवजन या स्थानान्तरण की दशा का जिक्र किया गया है। 4. विकासात्मक दृष्टिकोण - आपदाओं के प्रभाव सबसे अधिक विकासशील देशों में होता है क्योंकि गरीबी के कारण प्राकृतिक प्रकोप की मार और भी घातक हो जाती है। इसी कारण इस दृष्टिकोंण में सहायता और राहत कार्य, शरणाथ्र्ाी प्रबंध, स्वास्थ्य, देखरेख और भुखमरी जैसी समस्याओं तथा इससे निपटने के उपायों पर चर्चा की गई है। 5. आपदा औषधि और महामारी विज्ञान - आपदा के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं बाधित हो जाती है जिसके कारण पड़े पैमाने पर लोगों की मृत्यु तक हो जाती है। इसी कारण इसमें मृत्यु के प्रबंधन, क्षत विक्षत रोगियों का इलाज, संक्रामक और महामारी आदि से ग्रसित रोगियों के उपचार पर बल दिया जाता है। 6. तकनीकी दृष्टिकोण - इसमें आपदा के विभिन्न पक्षों के अध्ययन के लिए विभिन्न विज्ञानों जैसे आपदा विज्ञान, ज्वालामुखी विज्ञान, भू आकृति विज्ञान, भूगर्भशास्त्र तथा भौतिकी का सहारा लिया जाता है। प्राकृतिक और शारीरिक विज्ञान इस प्रकार के दृष्टिकोण पर महत्व देते हैं। आपदा के कारणप्रकृतिजन्य और मानव जनित अप्रत्याशित एवं दुष्प्रभाव वाली चरम घटनाओं को आपदा कहते हैं। ये आपदाएं कभी त्वरित एवं कभी मन्द गति से घटित होती है। इन आपदाओं के घटने के कई विवर्तनिक तथा मानवजनित कारण है जिनका संक्षिप्त में यहाँ विवरण दिया जा रहा है।
आपदा के प्रभावसंयुक्त राष्ट्र संघ (2015) की रिपोर्ट के अनुसार 2005 से 2014 के मध्य मौसम से सम्बन्धित आपदाओं में चक्रवात, बाढ़ और सूखा में बढ़ोत्तरी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष औसत 335 आपदाएं आती हैं। वर्ष 1955 से 2004 तक आपदाओं में निरन्तर वृद्धि हुई है। भारत, इन्डोनेशिया और फिलीपाइन देशों का प्रतिशत सबसे अधिक आपदा प्रभावित देशों में रहा। इस रिपोर्ट के अनुसर 1994-2014 के मध्य से विभिन्न आपदाओं से 440 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार पिछले बीस वर्षों में विकासशील और अविकसित देश प्राकृतिक आपदा से अधिक प्रभावित रहे हैं। अविकसित देशों का प्रतिशत 33 प्रतिशत रहा है। लेकिन आपदा से 81 प्रतिशत लोगों की मृत्यु इन्हीं देशों में हुई है।आपदाओं की प्रकृति, अवधि, तीव्रता अलग-अलग होती है। इसी कारण इन आपदाओं के प्रभाव तथा इनके परिणाम अलग होते हैं। आपदा के प्रभावों का मूल्यांकन विभिन्न आपदाओं की तीव्रता के आधार पर किया जा सकता है।
आपदा क्या है और इसके प्रभाव?आपदा (aapda) एक प्राकृतिक अथवा मानवजनित घटना हैं, जिसका व्यापक परिणाम मानव क्षति हैं, अर्थात – आपदा उन अप्रत्याशित दुष्प्रभावी चरम घटनाओं एवं प्रकोपों को कहा जाता हैं, जो प्रकृतिजन्य या मानवजनित होतीं हैं तथा जिनकें द्वारा मानव, जीव-जंतु एवं पादप समुदाय को अपार क्षति होती हैं!
आपदाओं का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?मानव जीवन की क्षति, जीविका उपार्जन के साधनों, सम्पत्ति और पर्यावरण का अवक्रमण इन आपदाओं का परिणाम होता है। आपदाओं से समाज के सामान्य क्रियाकलापों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और इसका दुष्प्रभाव दीर्घकालीन होता है। भूकम्प, चक्रवात, बाढ़ और सूखा प्राकृतिक आपदाओं के उदाहरण हैं।
आपदा का क्या अर्थ है आपदाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए?आपदाएं दो प्रकार की होती हैं प्राकृतिक आपदा व मानव जनित आपदा। प्राकृतिक आपदाओं में भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन, बाढ़, सूखा, वनों में आग लगना , शीतलहर, समुद्री तूफान, तापलहर, सुनामी, आकाशीय बिजली का गिरना, बादलों का फटना आदि आते हैं।
आपदाओं को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं?पर्यावरण के स्तरों में गिरावट, मौसम में बदलाव और अनियोजित विकास में वृद्धि के कारण, आपदाओं की घटनाएं बढ़ी हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश में इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है, जहां लोगों की संख्या अत्याधिक है,वह कृषि पर निर्भर करते हैं तथा जोखिम की हालत में रहते हैं।
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