विज्ञान शिक्षण के लक्ष्य और उद्देश्य - vigyaan shikshan ke lakshy aur uddeshy

जीव विज्ञान शिक्षण का यह मुख्य उद्देश्य है। वर्तमान शिक्षा प्रक्रिया में प्रायः इसी उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रयत्न होता रहा है। बालक को मुख्य रूप से निम्न ज्ञान प्रदान करना होता हैं-- 

(अ) जीव विज्ञान की तकनीकी शब्दावली एवं तथ्यों का ज्ञान 

(ब) जीव विज्ञान के मूलभूत सिद्धांतों तथा प्रक्रियाओं का ज्ञान 

(स) प्राकृतिक क्रियाओं का ज्ञान 

(द) जन्तु एवं वनस्पति का ज्ञान और एक-दूसरे पर निर्भरता 

(ई) जन्तु तथा वनस्पति के उद् गम एवं विकास का ज्ञान 

(फ) जीव विज्ञान के ज्ञान तथा मानव शरीर की कार्य प्रणाली में समानता का ज्ञान। 

2. जीव विज्ञान के सिद्धांतों तथा प्रक्रियाओं की समझ अथवा अवबोध 

विभिन्न जैव वैज्ञानिक तथ्य एक-दूसरे से संबंधित होते हैं। इन उपलब्ध तथ्यों के आधार पर छात्र कई सामान्यीकरण तथा सिद्धांतों का निरूपण करते हैं; जैसे-- 

(अ) कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस, पानी, प्रकाश तथा क्लोरोफिल की उपस्थित में पौधे भोजन का निर्माण करते हैं। 

(ब) विभिन्न वर्गों के जन्तुओं एवं पौधों में कई समानताएँ पाई जाती हैं। 

(द) कार्बन संश्लेषण प्रक्रिया में पौधे ऑक्सीजन गैस वायु मण्डल में छोड़ते हैं। 

3. कौशलों का विकास 

आधुनिक समय में जीव विज्ञान शिक्षण का मुख्य उद्देश्य छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त छात्र में जिज्ञासा, सत्यनिष्ठा, उपलब्ध परिणामों के आधार पर पूर्व धारणाओं में परिवर्तन, अन्धविश्वासी न होना, वस्तुनिष्ठता आदि गुण पाये जाते हैं। इन गुणों का विकास सतत प्रयत्न द्वारा ही संभव हैं। 

Que : 16. विद्यालयों में विज्ञान शिक्षण के उद्देश्यों का वर्णन कीजिये।

Answer:  विद्यालयों में विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य कैसे होने चाहिए, इस पर विद्वानों ने अलग-अलग विचार पेश किये हैं पर अधिकतर शिक्षाविदों की मान्यता है कि उद्देश्य सार्थक तथा उपयोगी हों, व्यावहारिक हों जो बालक को आगामी जीवन में एक अच्छा नागरिक बनाने में मददगार हो सकें। उद्देश्य इस तरह के होने चाहिए जिनमें समय तथा परिस्थिति के अनुकूल परिवर्तन भी किया जा सके तथा विद्यार्थी एवं शिक्षक दोनों हेतु हितकारी साबित हो सकें। इन बातों को ध्यान में रखते हुए हमारे विद्यालयों में विज्ञान शिक्षण के निम्न प्रमुख उद्देश्य होने चाहिए-

1. ज्ञान- विज्ञान शिक्षण का सबसे प्रमुख उद्देश्य ज्ञान माना जाता है क्योंकि बगैर ज्ञान के और दूसरे उद्देश्य निरर्थक हो जाते हैं। अतएव विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषय के लिए ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य पर बहुत बल दिया जाता है। अत: विज्ञान के विद्यार्थियों में निम्न तरह का ज्ञान अवश्य होना चाहिए-

(i) दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाले विज्ञान के मूलभूत सिद्धांत तथा विचारों का ज्ञान।

(ii) विज्ञान के आधुनिक आविष्कार एवं वैज्ञानिक साहित्य को समझने का पूर्ण ज्ञान।

(iii) विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के पारस्परिक संबंधों का ज्ञान।

(iv) मनुष्य के लिए पशु विज्ञान एवं वनस्पति के महत्व का ज्ञान।

(v) मानव शरीर की रचना तथा उसकी क्रियाओं एवं उसके वर्तमान वातावरण का ज्ञान।

(vi) वैज्ञानिक तथ्यों, मान्यताओं, प्रतीकों, नामावली एवं सिद्धांतों का सही ज्ञान।

2. समझ अथवा सूझ- विज्ञान जैसे कठिन विषय को समझने हेतु विद्यार्थियों में इस तरह की समझ होनी चाहिए कि वे वैज्ञानिक तथ्यों, मान्यताओं, सिद्धांतों तथा पदार्थों को स्पष्ट कर सकें, उनकी सही ढंग से व्याख्या कर सकें एवं एक-दूसरे से संबंधित तथ्यों, प्रक्रियाओं और पदार्थों में भेद कर सकें। इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों की इतनी प्रवीण सूझ-बूझ होनी चाहिए कि वे रेखाचित्रों, सूचियों, चार्टी, सूत्रों एवं प्रयोगों का सही विश्लेषण कर सकें, अशुद्ध कथनों, प्रक्रियाओं एवं मान्यताओं में अशुद्धियाँ निकाल सकें तथा सूचियों, प्रतीकों एवं सूत्रों को एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित कर सकें।

3. योग्यताएं- विज्ञान के विद्यार्थियों में विज्ञान को पढ़ने के पश्चात् इस तरह की योग्यताएं पैदा करनी चाहिए कि वे वैज्ञानिक नामावली के प्रयोग की योग्यता उनमें हो। विज्ञान क्लब के बारे में पूरी जानकारी करें, उसकी गतिविधियों में भाग लें।

4. कौशल - विज्ञान के अध्ययन द्वारा विद्यार्थियों में उपकरण एवं मशीन को प्रयोग करने, उनको प्रयोग के लिए व्यवस्थित करने, विज्ञान के नमूने, रासायनिक पदार्थों को सुरक्षित रखने और नमूनों तथा उपकरणों आदि की उचित आकृतियाँ बनाने की योग्यता होनी चाहिए। इसके साथ उनमें मॉडलों एवं प्रयोगों को तुरंत तैयार करने की जानकारी होनी चाहिए तथा प्रयोगात्मक ढाँचे और प्रक्रिया में अशुद्धियाँ तलाश करने की योग्यता होनी चाहिए।

5. रुचि- विज्ञान के शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों में ऐसी प्रेरणा भरनी चाहिए कि वे विज्ञान के साहित्य को पढ़ें, वैज्ञानिकों के चित्र, सूचनाएं आदि एकत्रित करें, विज्ञान क्लब, विज्ञान मेलों में सक्रिय भाग लें, किसी विज्ञान योजना पर कार्य करें, वैज्ञानिक रुचि से संबंधित स्थानों का भ्रमण करें, अवसर मिलने पर प्रसिद्ध वैज्ञानिकों से मिले, अगर अवसर मिले तो विज्ञान की तर्क-प्रतियोगिताओं में एवं वाक प्रतियोगिताओं में भाग ले सकें।

6. वैज्ञानिक दृष्टिकोण- विज्ञान शिक्षण का प्रमुख कार्य है कि बालकों में उदार-मनोवृत्ति शुद्ध ज्ञान की इच्छा तथा सर्वदा नवीन विचारों एवं तथ्यों के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने को तैयार करना। वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने से वे स्वयं वैज्ञानिक सामग्री का संकलन करेंगे, अपने निर्णयों पर पुनः विचार करने को तैयार रहेंगे तथा संकीर्णता एवं अंधविश्वासी से दूर रहेंगे।

7. व्यवसाय प्रदान करना- विज्ञान एक वृहत विषय है जिसमें कई तरह की शाखाएं पाई जाती हैं जो नये-नये पाठ्यक्रमों का आधार है। इनमें से विद्यार्थी अपनी रुचि के अनुसार किसी एक व्यावसायिक पाठ्यक्रम से संबंधित विषय का चयन करता है तथा अपने आपको उसके लिए तैयार करता है, जैसे-चिकित्सा, इंजीनियरिंग, कृषि, फार्मेसी, दुग्ध विज्ञान, कीट विज्ञान, पॉलीटैक्निक, कंप्यूटर टेक्नोलॉजी आदि। विज्ञान बालकों में इन व्यवसायों के प्रति प्रेरणा पैदा करता है। विज्ञान के छात्र अपनी रुचि के अनुसार उद्योग प्रशिक्षण-संस्थानों (I.T.I.) तथा विश्वविद्यालयों में इनका अध्ययन करते हैं एवं किसी एक व्यवसाय को सीख जाते हैं जो उनके जीवन-यापन का साधन बन जाता है।

8. प्रशंसात्मक क्षमताएं- विज्ञान शिक्षण बालकों में विज्ञान की खोजें, वैज्ञानिकों की मार्मिक घटनाएं, उनके साहसिक कार्य, रोमांस की कहानियाँ, वैज्ञानिकों की जीवन कथाएं, मानव जाति की प्रगति की कहानी एवं वैज्ञानिक विकास का इतिहास आदि को बताकर शिक्षा के द्वारा प्रशंसात्मक दृष्टिकोण पैदा करता है। इससे बालक विज्ञान के महत्व को समझते हैं। उन्हें आधुनिक संसार में विज्ञान के रोचक इतिहास को पढ़कर एवं वैज्ञानिक और तकनीक की प्रगति के ज्ञान से आनंद की अनुभूति होती है। उनमें वैज्ञानिक सिद्धांतों एवं अनुसंधानों को समझने तथा जानने की लालसा पैदा होती है।

9. अवकाश का सदुपयोग- विज्ञान के बालकों में प्रयोगात्मक कौशल को विकसित करने हेतु अवकाश के समय उनके अध्यापक साधारण वस्तुओं का निर्माण करना सिखाते हैं। अपनी हॉबी अथवा रोचक कार्य के रूप में वे स्याही, साबुन, पॉलिश, क्रीम, मोमबत्ती, चॉक तथा सौंदर्य प्रसाधन आदि वस्तुएं बनाते हैं। यह उनकी रुचि के अनुसार होता है तथा अवकाश के समय इन वस्तुओं का निर्माण करते हैं। इसके अतिरिक्त वे कई रचनात्मक एवं आविष्कारक काम भी करने लगते हैं। इस तरह वे अवकाश के समय का सदुपयोग करते हैं। घर में काम आने वाली छोटी-छोटी वस्तुओं का निर्माण ऐसे समय में हँसते-खेलते करते रहते हैं। इस तरह की क्रियाएं उनमें व्यावहारिकता तथा ज्ञान का विकास करती हैं।

10. व्यावहारिक प्रयोग- आधुनिक युग में विज्ञान शिक्षण द्वारा बालकों में प्रयोगात्मक योग्यताओं का विकास करना चाहिए ताकि वे विज्ञान से बनी वस्तुओं का उपयोग अपने व्यावहारिक जीवन में कर सकें। इसके लिए विद्यार्थियों को विभिन्न तथ्यों, प्रक्रियाओं, सिद्धांतों एवं वस्तुओं के प्रयोग के बारे में पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। जैसे-बिजली का समुचित प्रयोग, उसके उपकरणों की जानकारी, उसका घर में किस तरह प्रयोग करना चाहिए, फ्यूज आदि को ठीक करना आदि, जीवन में काम आने वाले यंत्रों का प्रयोग करने की पूरी कार्य-विधि से अवगत होना चाहिए।

सन् 1956 में तारादेवी में शिमला की पहाड़ियों के बीच अखिल भारतीय विज्ञान शिक्षण सम्मेलन के अनुसार निम्न उद्देश्य प्रस्तुत किये गये-

प्राइमरी के बालकों में प्रकृति, भौतिक तथा सामाजिक वातावरण के प्रति रुचि पैदा करना, उसमें साफ एवं संयत आदतों और स्वस्थ जीवन-यापन की आदतों का निर्माण करना चाहिए। उनकी प्रयोगात्मक एवं रचनात्मक शक्तियों का विकास करना चाहिए।

माध्यमिक स्तर के बालकों को प्रकृति एवं विज्ञान की सूचनाएं देना, उन्हें विज्ञान के सामान्य नियमों से परिचित कराना और वैज्ञानिकों तथा उनके आविष्कारों की कथाओं से प्रेरित करना चाहिए ताकि उनकी विज्ञान के प्रति रुचि बढ़े।

हाईस्कूल के विद्यार्थियों को अपने वैज्ञानिक वातावरण से परिचित कराना चाहिए ताकि वे उसके अनुरूप अपने को ढाल सकें। उन्हें वैज्ञानिक प्रणाली से परिचित कराना एवं वैज्ञानिक विकास के विषय में बताना चाहिए।

कोठारी आयोग ने भी प्राइमरी से सैकंडरी स्तर तक सन् 1966 में उद्देश्यों के विषय मंे निम्न सुझाव पेश किये हैं, जो इस तरह हैं-

निम्न प्राइमरी स्तर पर बच्चों के भौतिक, सामाजिक तथा जीव-विज्ञान संबंधी वातावरण पर ध्यान देना चाहिए। प्रथम तथा द्वितीय श्रेणी में उनकी सफाई, अच्छी आदतों के निर्माण एवं निरीक्षण शक्ति के विकास पर बल देना चाहिए। तीसरी तथा चौथी में स्वास्थ्य-रक्षा एवं सफाई के बारे में बताना चाहिए और उन्हें वैज्ञानिक नाप-तौल की इकाइयों के प्रतीक एवं रासायनिक तत्वों और मिश्रणों के चिन्हों को रोमन अक्षरों से सिखाना चाहिए।

सैकंडरी स्तर ज्ञान प्राप्ति, चिंतन, विश्लेषण तथा प्रयोग द्वारा निष्कर्ष निकालकर निर्णय लेना आदि बातों पर विशेष बल देना चाहिए। इस अवस्था में विद्यार्थियों को भौतिक-विज्ञान, रसायन-विज्ञान, जीव-विज्ञान, भूमि-विज्ञान, नक्षत्र-विज्ञान आदि विषयों को पढ़ाना चाहिए। इस बात पर ज्यादा बल देना चाहिए कि विद्यार्थी मानसिक अनुशासन एवं उच्च अध्ययन की तैयारी हेतु विज्ञान की शिक्षा का गहराई से अध्ययन करें। हायर सैकंडरी स्तर पर विभिन्न पाठ्यक्रमों एवं विशेषज्ञता की व्यवस्था होनी चाहिए।

विज्ञान शिक्षण के विशिष्ट उद्देश्य :

उच्च प्राथमिक स्तर पर विज्ञान-शिक्षण के उद्देश्य अति आवश्यक हैं क्योंकि बगैर उद्देश्य के कोई भी विषय नीरस एवं अपूर्ण है। उद्देश्य ही विज्ञान का स्तर है। उद्देश्य की जानकारी छात्रों के लिए अति आवश्यक है।

उच्च प्राथमिक शालाओं में विज्ञान-शिक्षण के उद्देश्य इस तरह हैं-

1. छात्रों को प्रकृति के विषय में जानकारी देना - बालक को सर्वप्रथम अपने पर्यावरण से प्रत्यक्ष परिचय कराना जरूरी है। जीवन में उसे नित्य पेड़-पौधे, पशु-पक्षी तथा विभिन्न जीव-जंतु देखने को मिलते हैं। इस पर्यावरण में सूर्य, चंद्रमा तथा तारे भी नियमित दृष्टिगोचर होते हैं शुद्ध जल, वायु, भोजन, सिंचाई, खेती तथा स्वास्थ्य भी हमारे दैनिक जीवन से संबंधित हैं। इन सबका ज्ञान बालक को वास्तविक अनुभव के आधार पर होना चाहिए। साथ ही समस्त जानकारी का अंतिम लक्ष्य यह होना चाहिए कि बालक मानव-शरीर तथा उसकी कार्य-प्रणाली से परिचित होकर यह जान सके कि उसे स्वस्थ कैसे रखा जा सकता है ?

2. विज्ञान के प्रति रुचि तथा प्रेम जागृत करना- आज के इस वैज्ञानिक युग में हर कार्य में वैज्ञानिक उपकरणों, यंत्रों तथा औजारों का उपयोग जरूरी होता जा रहा है। अत: बालकों में विज्ञान के प्रति सही रुचि पैदा होना आवश्यक है, ताकि उन उपकरणों तथा साधनों से भली भाँति परिचित होकर उनका समुचित ढंग से उपयोग करना सीख सकें एवं अपने दैनिक जीवन में लाभ उठा सकें।

3. प्रकृति के नियमों की वैज्ञानिक जानकारी देकर अंध-विश्वास दूर करना- ब्रह्माण्ड में ऐसी घटनाएं तथा क्रियाएं नित्य होती रहती हैं जिनके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक नियम कार्यरत होते हैं। इस जानकारी के अभाव में बालक उन्हें जादू के समान ही विचित्र घटनाएं मानकर अंध-विश्वासी बनने के लिए विवश होता है। बीज से विशाल वृक्ष कैसे तैयार होता है? इंद्रधनुष क्यों दिखाई देता है ? बादल कहाँ से आते हैं ? आदि ऐसे प्रश्न हैं जिनका वैज्ञानिक कारण नहीं जानने से अंध-विश्वास का पनपना स्वाभाविक है। इसी भाँति, हवा, पानी, भोजन आदि बुनियादी आवश्यकताओं की वस्तुएं भी वैज्ञानिक नियमों से संचालित होती हैं। अतः छात्रों को विज्ञान के नियमों तथा सिद्धांतों की प्रारंभिक जानकारी देना अत्यंत आवश्यक है जिससे उनमें अंध-विश्वास की भावना दूर हो सके।

4. छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास- छात्रों को यह जानना जरूरी है कि हर कार्य में स्वाभाविक कारण निहित होता है। अत: उन्हें वैज्ञानिक ढंग से सोचने की आदत डालनी चाहिए। विशुद्ध वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास हेतु बालकों द्वारा निम्नलिखित बातों को अपने दैनिक जीवन में व्यवहार में लाना आवश्यक है-

(क) अंध-विश्वासी नहीं होना चाहिए।

(ख) दूसरे के मतों का आदर करना चाहिए।

(ग) तथ्यों के आधार पर ही किसी बात को सत्य मानना चाहिए।

(घ) नये तथ्यों के आधार पर अपनी मान्यताओं को परिवर्तित करने को तत्पर होना चाहिए।

(ङ) कभी भी सीधे निष्कर्ष पर नहीं आना चाहिए। बालक के व्यवहार में इन सभी लक्षणों की उपस्थिति वैज्ञानिक दृष्टिकोण का द्योतक है।

5. छात्रों में वैज्ञानिक ढंग से सोचने की आदत पैदा होना- किसी महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पूर्व उस विषय पर गंभीर सोच-विचार करना, उसकी उचित जांच-पड़ताल कर लेना एवं उसके बाद ही किसी निर्णय पर पहुँचना उचित है। यह एक वैज्ञानिक पद्धति है, अतः इसकी आदत बालकों में शुरू से ही पड़नी चाहिए।

6. छात्रों में धैर्य, स्वाध्याय तथा स्वावलंबन की भावना का विकास - विज्ञान के अध्ययन से बालक में आत्म-विश्वास एवं आत्म-विश्वास एवं आत्म-निर्भरता का विकास होता है। वैज्ञानिक अन्वेषकों की जीवनियाँ-असीम धैर्य, निष्ठा, लगन, सतत, अध्ययन, चिंतन एवं मनन की गाथाएं हैं। इनके अध्ययन से बालकों में नैतिकता का विकास किया जा सकता है।

विज्ञान-शिक्षण के सामान्य उद्देश्य :

विज्ञान-शिक्षण के प्रमुख सामान्य उद्देश्य इस तरह हैं-

1. व्यावहारिक उद्देश्य आज का जीवन वैज्ञानिक चमत्कारों से भरा पड़ा है। प्रतिदिन हमारे उपयोग में आने वाली वस्तुएं विज्ञान की ही देन हैं। अतः विज्ञान शिक्षण का उद्देश्य यह। नहीं है कि बालक सिद्धांतों की जाँच सिर्फ प्रयोगशाला में करना सीखे, वरन् यह है कि वह है उनका उपयोग दैनिक जीवन में भी कर सके।

2. अनुशासनात्मक उद्देश्य- विज्ञान के अध्ययन से कार्य में नियमितता तथा विचारों में क्रमबद्धता आती है। इसमें तथ्यों के साथ-साथ वैज्ञानिक पद्धति का भी ज्ञान प्राप्त होता है। इस तरह व्यवस्थित तथा अनुशासित जीवन-यापन का अमूल्य प्रशिक्षण प्राप्त होता है। यह मानसिक अनुशासन ही व्यक्तित्व के निर्माण में मददगार होता है।

3. सांस्कृतिक तथा नैतिक उद्देश्य- वर्तमान समय पर विज्ञान अत्यंत प्रभावी है। वैज्ञानिक खोजों एवं आविष्कारों ने मनुष्य के माध्यम से क्रमशः विजय प्राप्त कर वर्तमान सभ्यता को विकसित किया है। अतः समाज के नागरिक को मानव उन्नति का ज्ञान और वैज्ञानिक नियमों तथा तथ्यों की सामान्य जानकारी आवश्यक है तभी वह अपना योगदान समाज को दे सकता है। विज्ञान से अध्ययन के निष्पक्ष चिंतन तथा निरीक्षण करने की योग्यता आती है। इसके कारण आत्म-विश्वास तथा आत्म-निर्भरता का जन्म होता है। एक आदर्श नागरिक में इन गुणों का होना आवश्यक है। इसके अलावा विज्ञान का अध्ययन उन महान् आविष्कारों की जानकारी भी प्रदान करता है, जिनसे मानव-जीवन सुखी तथा समृद्ध हो सका है। उन वैज्ञानिकों की लगन, निष्ठा एवं कठोर परिश्रम आदि की जानकारी व्यक्ति में हर्ष, उत्साह, त्याग, निष्ठा एवं परोपकार की भावना जागृत करती है और नैतिक विकास होता है।

4. व्यावसायिक उद्देश्य भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है। यहाँ बेरोजगारी भयावह स्थिति में है। इसलिए सबके लिए खाना जुटा पाना देश के लिए एक महत्वपूर्ण समस्या है। ऐसी परिस्थिति में विज्ञान की शिक्षा तथा विशेषतया तकनीकी शिक्षा हमारे नवयुवकों को न सिर्फ डॉक्टर, इंजीनियर, इलेक्ट्रीशियन, लाइनमेन तथा ओवरसियर आदि व्यवसायों के लिए तैयार करेगी, वरन् उन्हें अपने दैनिक जीवन में आने वाली समस्याओं को समुचित ढंग से हल करने की योग्यता प्रदान करेगी।

विज्ञान-शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य :

प्राप्य उद्देश्य कक्षा में शिक्षक द्वारा बताये जाने वाले तात्कालिक तथ्य होते हैं। इनके द्वारा छात्रों के व्यवहार में जो परिवर्तन आता है उनका पूर्वानुमान लगाकर इन्हें अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तनों के रूप में व्यक्त करने की चेष्टा की जाती है। सतत अभ्यास द्वारा छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित होते हैं, उन लक्ष्यों को प्राप्य उद्देश्य कहा जाता है। उन उद्देश्यों के आधार पर शिक्षण के उद्देश्य निर्धारित होते हैं एवं पुनः विभिन्न विधियों का प्रयोग कर व्यवहारगत परिवर्तन की आशा की जाती है-

विज्ञान शिक्षण के लक्ष्य और उद्देश्य - vigyaan shikshan ke lakshy aur uddeshy

विज्ञान-शिक्षण के कई प्राप्य उद्देश्य हैं, उनमें से कुछ मुख्य स्थान रखते हैं-

(1) वैज्ञानिक रुचि रुझान।

(2) वैज्ञानिक दृष्टि का विकास।

(3) वैज्ञानिक उपयोगिता को समझने की आदत।

(4) अन्वेषण प्रवृत्ति का विकास।

(5) प्रायोगिक कौशल का विकास।

(6) वैज्ञानिक सिद्धांत एवं तथ्यों का ज्ञान प्राप्त करना।

(7) साधारण सिद्धातों का नई घटनाओं में उपयोग करने की क्षमता।

(8) वैज्ञानिक ज्ञान तथा सूचना बढ़ाने की नवृत्ति का विकास।

उद्देश्यों एवं प्राप्य उद्देश्यों में अंतर :

विज्ञान के उद्देश्य तथा प्राप्य उद्देश्यों में अंतर इस तरह हैं-

(1) प्रत्येक उद्देश्य के अंतर्गत कई प्राप्य उद्देश्य आते हैं। उद्देश्यों की पूर्ति हेतु शिक्षक को कई छोटे-छोटे लक्ष्य बनाने पड़ते हैं, जिन्हें प्राप्य उद्देश्य कहते हैं।

(2) बालक के व्यवहारगत परिवर्तन एवं पाठ्यवस्तु की आवश्यकता उसके प्राप्य उद्देश्य के लिए होती है। इससे केवल एक ही विषय का प्राप्य उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है।

(3) प्राप्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मौखिक, लिखित अथवा प्रायोगिक परीक्षा ली जाती है।

(4) प्राप्य उद्देश्यों की पूर्ति किस सीमा तक हुई है, इसके लिए उनके व्यवहार परिवर्तन की परीक्षा के लिए कुछ प्रश्न पाठ्य-पुस्तक में होते हैं।

(5) उद्देश्य जहाँ एक आदर्श होते हैं, वहाँ प्राप्य उद्देश्य प्राप्य तथा निश्चित होते हैं। अर्थात् क्रियाएं अथवा अभ्यास कार्य छोटे-छोटे लक्ष्यों के निर्धारण, विशिष्ट उद्देश्यों के निर्धारण, लक्ष्य की प्राप्ति एवं उद्देश्यनिष्ठ शिक्षण व्यवस्था प्राप्य उद्देश्य और विभिन्न शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति करता है जो कि इस तरह है-

(1) ज्ञानात्मक उद्देश्य,

(2) अवबोधात्मक उद्देश्य,

(3) अनुपयोगात्मक उद्देश्य,

(4) कौशलात्मक उद्देश्य,

(5) अभिवृत्यात्मक उद्देश्य,

(6) अभिरुच्यात्मक उद्देश्य।

उद्देश्य प्राप्य उद्देश्य, व्यावहारिक परिवर्तन एवं पाठ्य-विषय यह सब एक-दूसरे से संबंधित है।

यहाँ वैज्ञानिक ज्ञान से संबंधित एक प्राप्य उद्देश्य बालकों के सामने रखते हैं। उसके अंतर्गत बालकों के व्यवहार में निम्न परिवर्तन अपेक्षित हैं-

विज्ञान शिक्षण के लक्ष्य क्या है?

विज्ञान शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य यह है कि विद्यार्थियों को यह समझाया जाए कि विज्ञान का संबंध केवल पुस्तक तथा प्रयोगशाला तक ही सीमित नहीं है बल्कि उसका संबंध दैनिक जीवन में भी है। विज्ञान का शिक्षण तभी सफल हो सकता है जब विज्ञान शिक्षण दैनिक जीवन की क्रियाओं पर आधारित हो।

विज्ञान के लक्ष्य क्या है?

Solution : विज्ञान का मूलभूत लक्ष्य हमारे चारों ओर के वातावरण में होने वाली प्राकृतिक परिघटनाओं का विश्लेषण तथा सत्य की खोज करना है।

प्राथमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण के क्या उद्देश्य है?

उच्च प्राथमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य क्या है?.
मानसिक संकाय विकसित करना.
तर्कसंगत सोच विकसित करना.
सूत्र सीखने की क्षमता विकसित करना.
अभ्यास प्रश्नों को हल करने की क्षमता विकसित करना.

माध्यमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण के लक्ष्य क्या है?

यह विकास उनमें भौतिक विज्ञान के अध्ययन के प्रति रुचि एवं जिज्ञासा, रचनात्मकता और सौंदर्य बोध उत्पन्न करना है। भौतिक विज्ञान शिक्षण से छात्र का दृष्टिकोण वैज्ञानिक हो जाता है। वह परम्परागत रूढ़ि या अन्धविश्वास से मुक्त होकर वैज्ञानिक सोच स्वयं में उत्पन्न करता है। इस प्रकार छात्र के मानसिक विकास का द्वार खुलता है।